By Vaishnav, For Vaishnav

Tuesday, 28 February 2023

व्रज - फाल्गुन शुक्ल दशमी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल दशमी
Wednesday, 01 March 2023

सुन्दर स्याम सुजान सिरोमनि देहु कहा कहि गारी जू।।बड़े लोग के औगुन ब्ररनत सकुच होत जिय भारी।।1।।
को करि सके पिता को निर्णय जाति पांति को जानें।। जिनके जिय जेसी बनि आवे तेसी भांति बखानें।।2।।
माया कुटिल नटी तन चितयो कोन बड़ाई पाई।।उन चंचल सब जगत विगोयो जहाँ तहाँ भई हँसाई।।3।।
तुम पुनि प्रगट होई बारेते कोन भलाई कीनी।।मुक्ति वधू उत्तम जन लायक ले अधमन कों दीनी।।4।।
बसि दस मास गर्भ माता के उन आशा करी जाये।।सो घर छांडि जीभ के लालच व्हे गाये पूत पराये।।5।।
बारेही ते गोकुल गोपिन के सूने ग्रह तुम डाटे।।व्हे निशंक तहाँ पेठि रंकलो दधि के भाजन चाटे।।6।।
आपु कहाय बड़े के ढोटा बात कृपन लों मांग्यो।।मनभंग पर दूजें याचत नेंक संकोच न लाग्यो।।7।।
लरिकाई तें गोपन के तुम सूने भवन ढढोरे।। यमुना न्हात गोपकन्या के निपट निलज पट चोरे।।8।।
वेन बजाय विलास कियो बन बोलि पराई नारी।।वे बतें मुनि राजसभा में व्हे निसंक विस्तारी।।9।।
सब कोउ कहत नंद बाबा को घर भर्यो रतन अमोले।। गिरे गंजा सिर मोर पखौवा गायन के संग डोले।।10।।
राजसभा को बेठनहारो कोन त्रियन संग नाचे।। अग्रज सहित राजमारग में कुबजा देखत राचे।।11।।
अपनी सहोदरा आपुही छल करि अर्जुन संग भजाई।।भोजन करि दासी सुत के घर जादों जाति लजाई।।12।।
ले ले भजे राजन की कन्या यहधों कोन भलाई।।सत्यभामा जु गोत में ब्याही उलटी चाल चलाई।।13।।
बहनि पिता की सास कहाई नेंक हू लाज न आई।। एते पर दीनी जु बिधाता अखिल लोक ठकुराई।।14।।
मोहन वशीकरन चट चेटक यंत्र मंत्र सब जाने।।ताते भलें भलें करी जाने भलें भलें जग माने।।15।।
वरनों कहा यथामती मेरी वेद हू पार न पावे।।दास गदाधर प्रभु की महिमा गावत ही उर आवे।।16।।

डोलोत्सव के आपके (तिलकायत श्री) के श्रृंगार आरम्भ 

आज से प्रतिदिन झारीजी सभी समय यमुनाजल से भरी जाएगी. प्रतिदिन दो समय (राजभोग व संध्या) की आरती थाली में की जाएगी और डोलोत्सव की नौबत की बड़ी बधाई बैठेगी.

आज से द्वितीया पाट के दिन तक प्रभु को विशिष्ट श्रृंगार धराये जाने प्रारंभ हो जाते हैं. इन्हें ‘आपके श्रृंगार’ अथवा ‘तिलकायत श्री के श्रृंगार’ कहा जाता है. ‘आपके श्रृंगार’ डोलोत्सव के अलावा जन्माष्टमी एवं दीपावली के पूर्व भी धराये जाते हैं.

इन श्रृंगार के अधिकृत श्रृंगारी स्वयं पूज्य श्री तिलकायतजी होते हैं.

आज नियम का श्रृंगार है जिसमें दोहरी किनारी वाले श्वेत चौखाना वस्त्र के घेरदार वागा और श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर लूम की किलंगी धराये जाते हैं. 

विगत कुछ दिनों से श्रीजी में डोलोत्सव की सामग्रियां सिद्ध होना प्रारंभ हो गयी है. इनमें से कुछ सामग्रियां आज से प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में प्रभु को अरोगायी जाती हैं. 

इस श्रृंखला में सर्वप्रथम आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डु अरोगाये जाते हैं.  

आज से राजभोग के खेल में टिपकियाँ नहीं की जाती और भारी खेल होता है और अबीर की टिपकियां की जाती है. आज प्रभु की दाढ़ी रंगी जाती है और खेल के समय गुलाल भी फेंट (पोटली) में भर कर वैष्णवों पर उड़ाई जाती है.
प्रभु की चोली पर खेल नहीं होता.  

कीर्तनों में कल (दशमी) तक अष्टपदी गायी जाती है और परसों से डोल के भाव के कीर्तन आरंभ होंगे.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : काफी) 

गोपकुमार लिये संग हो हो होरी खेले व्रजनायक l ईत व्रजयुवति यूथ मधिनायक श्रीवृषभान किशोरी ll 1 ll
मोहन संग डफ दुंदुभी सहनाई सरस धुनि राजे l बीचबीच युवती मनमोहन महुवर मुरली बाजे ll 2 ll
श्याम संग मृदंग झांझ आवज आन भांत बजावे l किन्नरी बीन आदि बाजे साजे गिनत न आवे ll 3 ll
ईत व्रजकुंवर करनी कर राजत रत्न खचित पिचकाई l उत करकमल कुसुम नवलासी गावत गारि सुहाई ll 4 ll.....अपूर्ण

साज - आज श्रीजी में राजभोग में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल व अबीर से कलात्मक खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत चौखाना वस्त्र का सूथन, चोली, घेरदार वागा धराये जाते हैं. श्वेत रंग का कटि-पटका धराया जाता है जिसका एक छोर आगे व एक बगल में होता है. ठाडे वस्त्र गहरे लाल रंग के धराये जाते हैं. 
सभी वस्त्र दोहरी रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं और सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं व दाढ़ी भी रंगी जाती है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल मीना व स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर सफ़ेद रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर पट्टीदार सिरपैंच, लाल गोटी, लूम की सुनहरी किलंगी तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट चीड़ का, गोटी चांदी की व आरसी शृंगार में बड़ी डांडी की एवं राजभोग में बटदार आती है. 

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ व श्रीमस्तक के आभरण बड़े किये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते 

Monday, 27 February 2023

व्रज - फाल्गुन शुक्ल नवमी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल नवमी
Tuesday, 28 February 2023

 फ़िरोज़ी लट्ठा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर जमाव के क़तरा के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को फ़िरोज़ी लट्ठा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर जमाव के क़तरा का शृंगार धराया जायेगा.

आज राजभोग में श्रीजी की कटि में एक गुलाल की पोटली बांधी जाती हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : वसंत)

आई ऋतु चहूँदिस फूले द्रुम कानन कोकिला समूह मिलि गावत वसंतहि।
मधुप गुंजारत मिलत सप्तसुर भयो है हुलास तन मन सब जंतहि॥
मुदित रसिक जन उमगि भरे हैं नहिं पावत मन्मथ सुख अंतहि।
कुंभनदास स्वामिनी बेगि चलि यह समें मिलि गिरिधर नव कंतहि॥

साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को फ़िरोज़ी लट्ठा का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र श्याम रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को फ़ागण का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का क़तरा लूम तुर्रा रूपहरी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल  धराये जाते हैं.
आज श्रीकंठ में अक्काजी की एक माला धरायी जाती हैं.
 गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का एवं गोटी फागुन की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं.
 लूम तुर्रा रूपहरी धराये रहे.

Sunday, 26 February 2023

व्रज - फाल्गुन शुक्ल अष्टमी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल अष्टमी 
Monday, 27 February 2023

होलकाष्टकारंभ

विशेष –आज से होलकाष्टक प्रारंभ हो जाता है. होली के आठ दिन पूर्व शुरू होने वाले होलकाष्टक के दिनों में कोई लौकिक शुभ कार्य नहीं किये जाते.

व्रज में इस अष्टमी, नवमी व दशमी से होली तक नंदगांव व बरसाना में विश्वप्रसिद्द लट्ठमार होली खेली जाती है. इसे होरंगा भी कहा जाता है और इसे देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक व्रज में जाते हैं.

आज श्री नवनीतप्रियाजी में बगीचा उत्सव है. आज के दिन प्रभु श्री नवनीतप्रियाजी मंदिर में श्री महाप्रभुजी की बैठक वाले बगीचे में फाग खेलने को पधारते हैं. 

व्रज में नन्दगाँव के पास नंदरायजी का बगीचा है जहाँ नंदकुमार खेलने के लिए पधारते थे इस भाव से आज बैठक के बगीचे को नंदरायजी का बगीचा मानकर श्री नवनीतप्रियाजी वहां राजभोग व उत्सव भोग अरोग कर फाग खेलने पधारते हैं.

लाड़ले लाल बगीचे में पधारते हैं अतः श्रीजी को भी आज नियम का मुकुट काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. 

श्रीजी में आज से गोविंदस्वामी के गारी के पद गाये जाते हैं.

आज प्रभु को चोवा की चोली, हरे मलमल के सूथन, काछनी व पीताम्बर धराये जाते हैं. 
श्रृंगार दर्शन में कमल के भाव की चित्रांकन वाली पिछवाई आती है जिसे ग्वाल दर्शन में बड़ा कर दिया जाता है.

साज – आज श्रीजी में फ़िरोज़ी रंग के आधार-वस्त्र पर कमल के फूलों के चित्रांकन वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. यह पिछवाई केवल श्रृंगार दर्शन में ही धरायी जाती है क्योंकि उसके बाद सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल अबीर से खेल किया जाता है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज हरे मलमल  का सूथन, काछनी, रास-पटका एवं चोवा की चोली धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (लट्ठा) के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल, हरे एवं मेघश्याम मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर मीना का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मीना के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की शिखा (चोटी) धरायी जाती है. 
दो माला अक्काजी की धरायी जाती है. पीले एवं लाल पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लहरिया के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

Saturday, 25 February 2023

व्रज - फाल्गुन शुक्ल सप्तमी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल सप्तमी
Sunday, 26 February 2023

प्रभु मथुराधीशजी (कोटा) का पाटोत्सव, पुष्टिमार्गीय प्रधान गृहाधीश परमपूज्य गौस्वामी तिलकायत श्री इन्द्रदमनजी (श्री राकेशजी) महाराजश्री का जन्मदिवस

विशेष - आज कोटा में विराजित निधि स्वरुप श्री मथुराधीशजी का पाटोत्सव है. 
इसके अतिरिक्त आज श्रीजी में पुष्टिमार्गीय प्रधान गृहाधीश परमपूज्य गौस्वामी तिलकायत श्री इन्द्रदमनजी (श्री राकेशजी) का जन्मदिवस है.(विस्तृत विवरण अन्य पोस्ट में)

दोनों शुभ प्रसंगों की श्रीमान तिलकायत, चिरंजीवी विशाल बावा व समस्त पुष्टि-सृष्टि को बधाई

श्रीजी का सेवाक्रम - तिलकायत का जन्मदिन होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

आज प्रभु को विशेष रूप से पतंगी चाकदार वागा और श्रीमस्तक पर दुमाला के ऊपर सेहरे का श्रृंगार धराया जाता है. 
श्रृंगार दर्शन में सेहरे के भाव की चित्रांकन की पिछवाई आती है जिसे ग्वाल दर्शन में बड़ा कर लिया जाता है.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं. 

शृंगार दर्शन 

साज – श्रीजी में आज संकेत वन में विवाह लीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को पतंगी रंग का, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं राजशाही पटका धराये जाते हैं. 
ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल, हरे, मेघश्याम एवं सफ़ेद मीना व स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर पतंगी रंग के दुमाला के ऊपर स्वर्ण का मीनाकारी का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. दुमाला के दायीं ओर सेहरे की मीना की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
एक चन्द्रहार व दो माला अक्काजी की धरायी जाती है. श्वेत एवं पीले पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, स्वर्ण के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट चीड़ का व गोटी चाँदी की आती है.

Friday, 24 February 2023

व्रज - फाल्गुन शुक्ल षष्ठी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल षष्ठी
Saturday, 25 February 2023

पीले लट्ठा के घेरदार वागा, श्रीमस्तक पर गोल पाग और गोल चंद्रिका के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को पीले लट्ठा का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

कीर्तनों में राजभोग समय अष्टपदी गाई जाती है. 
राजभोग के खेल में प्रभु के कपोल मांडे जाते हैं. 
वैष्णवों पर फेंट भर कर गुलाल उड़ाई जाती है.

कल पुष्टिमार्गीय प्रधान पीठाधीश पूज्य गौस्वामी तिलकायत श्री इन्द्रदमन जी (श्री राकेश जी) महाराज श्री का जन्मदिवस है. 

राजभोग दर्शन - 

कीर्तन – (राग : काफी)

तुम आवोरी तुम आवो l
मोहनजु को गारि सुनावो होरी रस रंग बढ्यो ll 1 ll
हरि कारोरी हरि कारो l यह द्वे बापन बिचवारो ll 2 ll
हरि नटवारी हरि नटवा l राधाजू के आगे लटुवा ll 3 ll
हरि मधुकररी हरि मधुकर l रस चाखत डोलत घरघर ll 4 ll
हरि खंजनरी हरि खंजन l राधाजु के मनको रंजन ll 5 ll
हरि रंजनरी हरि रंजन l ललिता ले आई अंजन ll 6 ll
हरि नागररी हरि नागर l जाको बाबा नन्द उजागर ll 7 ll
हम जानेरी हम जाने l राधा मोहन गहि आने ll 8 ll....अपूर्ण

साज - आज श्रीजी में आज सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, अबीर व चन्दन से कलात्मक खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को पीले लट्ठा का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं कटि-पटका धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. सभी वस्त्रों और श्रृंगारों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, चमक की गोल चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. पाग पर भी अबीर, गुलाल से खेल खिलाया जाता है. लाल एवं श्वेत पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं. शयन समय श्रीमस्तक पर सुनहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.

Thursday, 23 February 2023

व्रज - फाल्गुन शुक्ल पंचमी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल पंचमी
Friday, 24 February 2023
                   
फागुन में रसिया घर बारी फागुन में ।
हो हो बोले गलियन डोले गारी दे दे मत वारी ।।१।।
लाजधरी छपरन के ऊपर आप भये हैं अधिकारी ।
"पुरुषोत्तम" प्रभु की छबि निरखत ग्वाल करे सब किलकारी ।।२।।

गुलाबी लट्ठा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर फेटा का साज के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को गुलाबी लट्ठा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर फेटा का साज का शृंगार धराया जायेगा.

राजभोग खेल में प्रभु की कटि में गुलाल व की पोटली बांधी जाती है. आज प्रभु के कपोल पर गुलाल अबीर लगाये जाते  जाते है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन (राग : बिलावल) 

बरसाने की गोपी मागन फगुवा आई l कियो हे जुहार नंदजुको भीतर भवन बुलाई ll 1 ll
एक नाचत एक गावत एक बजावत तारी l काहे मोहन राय दूरि रहे मैयाय दिवावत गारी ll 2 ll
आदर देत व्रजरानी अब निज भागि हमारे l प्रीतम सजन कुलवधू पाये दरस तुम्हारे ll 3 ll
सुने कुंवरि मेरी राधे अबही जिन मुख मांडो l जेंवत श्याम सखन संग जिन पिचकाई छांडो ll 4 ll
केसरि बहोत अरगजा कित मोहन पर डारो l सीत लगे कोमल तन तुमही चित्त विचारो ll 5 ll.....अपूर्ण

साज - आज श्रीजी में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, अबीर व चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी लट्ठा के सुथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग के फेंटा के ऊपर सिरपैंच, मोरशिखा, दोहरा कतरा एवं बायीं और शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में लोलकबंदी-लड़ वाले कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में अक्काजी की एक माला धरायी जाती है.
 पीले एवं लाल पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं. फेटा बड़ा नहीं किया जाता व लूम तुर्रा भी नहीं धराये जाते हैं. 

Wednesday, 22 February 2023

व्रज - फाल्गुन शुक्ल चतुर्थी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल चतुर्थी
Thursday, 23 February 2023

मोहन होहो होहो होरी।।
काल्ह हमारे आंगन गारी देआयो सो कोरी।।1।।
अब क्योंदूर बैठे जसोदा ढिंग निकसो कुंज बिहारी।।
उमगउमग आईं गोकुल की वे सब वाई दिन बारी।।2।।
तबही लाल ललकार निकारे रूप सुधाकी प्यासी।।
लपट गई घनश्याम लालसों चमक चमक चपलासी।।3।।
काजर दे भजिभार भरुवाकें हँसहँस ब्रजकीनारी।।
कहें रसखान एक गारीपर सो आदर बलिहार।।4।।

केसरी लट्ठा के घेरदार वागा, श्रीमस्तक पर लाल गोल पाग और चंद्रिका के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को लाल लट्ठा का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर लाल गोल पाग पर चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

कीर्तनों में अष्टपदी गाई जाती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन खेलो होरी फाग सबे मिल झुमक गावो झुमक गावो ll ध्रु ll
संग सखा खेलन चले वृषभान गोप की पौरी l श्रवन सुनत सब गोपिका गई है कुंवरि पे दोरी ll 1 ll
मोहन राधा कारने गहि लीनो नौसर हार l हार हेत दरसन भयो सब ग्वालन कियो जुहार ll 2 ll
राधा ललितासो कह्यो नेंक हार हाथ ते लेहूं l चंद्रभागा सो यों कह्यो नेंक इनही बैठन देहु ll 3 ll
बहोत भांति बीरा दीये कीनों बहोत सन्मान l राधा मुख निरखत हरि मानो मधुप करत मधुपान ll 4 ll
मोहन कर पिचकाई लीये बंसी लिये व्रजनारी l जीती राधा गोपिका सब ग्वालन मानी हार ll 5 ll
फगुआ को पट खेंचते मुरली आई हाथ l फगुआ दीये ही बने तुम सुनो गोकुल के नाथ ll 6 ll
मधु मंगल तब टेरियो लीनो सुबल बुलाय l मुरली तो हम देयगी प्यारी, राधा को सिर नाय ll 7 ll
ढोल मुरंज डफ बाजही और मुरलीकी घोर l किलकत कौतुहल करे मानो आनंद निर्तत मोर ll 8 ll
राधा मोहन विहरही सुन्दर सुघर स्वरुप l पोहोप वृष्टि सुरपति करें तुम धनि धनि व्रज के भूप ll 9 ll
होरी खेलत रंग रह्यो चले यमुना जल न्हान l सिंधपोरी ठाड़े हरी गोपी वारि वारि दे दान ll 10 ll
नरनारी आनंद भयो तनमन मोद बढाय l श्रीगोकुलनाथ प्रताप तें जन ‘श्यामदास’ बलिजाय ll 11 ll

साज – आज श्रीजी में आज सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया गया है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी लट्ठा का रंगों की छांट वाला एवं सफ़ेद ज़री की तुईलैस की दोहरी किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं कटि-पटका धराये जाते हैं. 
लाल ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. 

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फाल्गुन के लाल, सफ़ेद मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर केसरी रंग की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. पाग एवं कपोल पर अबीर गुलाल से खेल खिलाया जाता है. लाल एवं सफ़ेद पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, फ़ीरोज़ा के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं. शयन समय श्रीमस्तक पर सुनहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.

Tuesday, 21 February 2023

व्रज - फाल्गुन शुक्ल तृतीया (द्वितीया क्षय)

व्रज - फाल्गुन शुक्ल तृतीया (द्वितीया क्षय)
Wednesday, 22 February 2023

नेंक मोहोंड़ो मांड़न देहो होरी के खिलैया ।
जो तुम चतुर खिलार कहावत अंगुरीन को रस लेहौ ।।1।।
उमड़े घुमड़े फिरत रावरे सकुचत काहे हो ।
सूरदास प्रभु होरी खेलों फगुवा हमारो देहो ।।2।।

गौस्वामी तिलकायत श्री राकेशजी महाराजश्री के जन्मदिवस की बधाई बैठवे का श्रृंगार , बड़ा मनोरथ (अधकि छप्पनभोग)    

विशेष – आज से पांच दिन उपरांत पूज्य गोस्वामी तिलकायत श्री राकेशजी महाराजश्री का जन्मदिवस होगा अतः आज आपश्री के जन्मदिवस की नौबत की बधाई बैठती है.

छप्पनभोग मनोरथ (बड़ा मनोरथ)

आज श्रीजी में श्रीजी में किन्हीं वैष्णव द्वारा आयोजित छप्पनभोग का मनोरथ होगा.
नियम (घर) का छप्पनभोग वर्ष में केवल एक बार मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को ही होता है. इसके अतिरिक्त विभिन्न खाली दिनों में वैष्णवों के अनुरोध पर श्री तिलकायत महाराज की आज्ञानुसार मनोरथी द्वारा छप्पनभोग मनोरथ आयोजित होते हैं. 
इस प्रकार के मनोरथ सभी वैष्णव मंदिरों एवं हवेलियों में होते हैं जिन्हें सामान्यतया ‘बड़ा मनोरथ’ कहा जाता है.

बड़ा मनोरथ के भाव से श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

आज दो समय की आरती थाली की आती हैं.

मणिकोठा, डोल-तिबारी, रतनचौक आदि में छप्पनभोग के भोग साजे जाते हैं अतः श्रीजी में मंगला के पश्चात सीधे राजभोग अथवा छप्पनभोग (भोग सरे पश्चात) के दर्शन ही खुलते हैं.

आज प्रभु को छप्पनभोग मनोरथ के भाव से लाल लट्ठा के चाकदार वस्त्र व श्रीमस्तक पर टिपारा का श्रृंगार धराया जाएगा.

कीर्तनों में बधाई के कीर्तन गाये जाते हैं. 

श्रृंगार दर्शन भीतर होंगे परंतु यह साज व श्रृंगार धराये जाएंगे.

श्रृंगार दर्शन :

साज - आज श्रीजी में आज केसरी किनारी के खानों वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल लट्ठा का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाडे वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सफ़ेद मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर जड़ाव टिपारा का साज – लाल रंग की टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में जड़ाव मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
बायीं और मीना की चोटी धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में अक्काजी की दो मालाजी धरायी जाती है. पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, श्याम मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.

Monday, 20 February 2023

व्रज - फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा

व्रज - फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा
Tuesday, 21 February 2023

नवरंगी लाल बिहारी हो तेरे,द्वै बाप,द्वै महतारी ।।
नवरंगीले नवल बिहारी हम, दैंहि कहा कही गारी ।।१।।
द्वै बाप सबै जग जाने, सोतो वेद पुरान बखाने।।
वसुदेव देवकी जाये, सो तो नंदमहर के आये ।।२।।
हम बरसानेकी नारी, तुम्हें दें दें हँसि गारी ।।
तेरी भूआ कुंति रानी, सो तो सूरज देखी लुभानी।।३।।
तेरी बहन सुभद्रा क्वारी, सो तो अर्जुन संग सिधारी।।
तेरी द्रुपदसुता सी भाभी, सो तो पांच पुरुष मिलि लाभी।।४।।
हम जाने जू हम जानै, तुम उखल हाथ बँधाने।।
हम जानी बात पहिचानी, तुम कब ते दधि दानी।।५।।
तेरी माया ने सब जग ढूंढ्यो,कोई छोड्यो न बारो बूढ्यो।।
"जन कृष्णा" गारी गावे, तब हाथ थार कों लावे।।६।।

चंदन की चोली

विशेष - माघ और फाल्गुन मास में होली की धमार एवं विविध रसभरी गालियाँ भी गायी जाती हैं. 
विविध वाद्यों की ताल के साथ रंगों से भरे गोप-गोपियाँ झूमते हैं. कई बार गोपियाँ प्रभु को अपने झुण्ड में ले जाती हैं और सखी वेश पहनाकर नाच नचाती हैं और फगुआ लेकर ही छोडती हैं. 

इसी भाव से आज श्रीजी को नियम से चन्दन की चोली धरायी जाती है. फाल्गुन मास में श्रीजी चोवा, गुलाल, चन्दन एवं अबीर की चोली धराकर सखीवेश में गोपियों को रिझाते हैं.

कीर्तनों में राजभोग समय अष्टपदी गाई जाती है. 
राजभोग के खेल में प्रभु के कपोल मांडे जाते हैं वहीँ चोली पर कोई भी सामग्री से खेल नहीं होता. 

वैष्णवों पर फेंट भर कर गुलाल उड़ाई जाती है.

राजभोग दर्शन -

कीर्तन (राग : सारंग)

अहो पिय लाल लड़ेंती को झुमका, सरस सुर गावत मिल व्रजबाल, अहो कल कोकिल कंठ रसाल ll
लाल बलि झुमका हो ll ध्रु ll
नवजोबनी शरद शशि वदनी युवती यूथ जुर आई l नवसत साज श्रृंगार सुभग तन करन कनक पिचकाई ll 
एकन सुवन यूथ नवलासी दमिनीसी दरसाई l एक सुगंध संभार अरगजी भरन नवलको आई ll 1 ll
पहेरे वसन विविध रंगरंगन अंग महारस भीनी l अतरोंटा अंगिया अमोल तन सुख सारी अति झीनी ll 
गजगति मंद मराल चाल झलकत किंकिणी कटि झीनी l चोकी चमक उरोज युगल पर आन अधिक छबि दीनी ll 2 ll
मृगमद आड़ ललाट श्रवण ताटक तरणि धुति हारी l खंजन मान हरन अखियां अंजन रंजित अनियारी ll 
यह बानिक बन संग सखी लीनी वृषभान दुलारी l एक टक दृष्टि चकोर चंद ज्यों चितये लाल विहारी ll 3 ll
रुरकत हार सुढ़ार जलजमनि पोत पुंज अति सोहे l कंठसरी दुलरी दमकनि चोका चमकनि मन मोहे ll 
बेसर थरहरात गजमोती रति भूली गति जो हे l सीस फूल सीमान्त जटित नग बरन करन कवि को हे ll 4 ll
नवलनिकुंज महल रसपुंज भरे प्यारी पिय खेले l केसर और गुलाल कुसुमजल घोर परस्पर मेले ll
मधुकर यूथ निकट आवत झुक अति सुगंध की रेले l प्रीतम श्रमित जान प्यारी तब लाल भूजा भर झेले ll 5 ll
बहुविध भोग विलास रासरस रसिक विहारन रानी l नागर नृपति निकुंज विहारी संग सुरति रति मानी ll 
युगलकिशोर भोर नही जानत यह सुख रैन विहानी l प्रीतम प्राण पिया दोऊ विलसत ललितादिक गुनगानी ll 6 ll

साज - आज श्रीजी में आज सफ़ेद रंग की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, अबीर व चन्दन से कलात्मक खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को सफ़ेद लट्ठा के सूथन, घेरदार वागा एवं चोली धराये जाते हैं. चोली के ऊपर आधी बाँहों वाली चन्दन की चंदनिया रंग की चोली धरायी जाती है. चंदनिया रंग का ही कटि-पटका ऊर्ध्वभुजा की ओर धराया जाता है. गहरे हरे रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. 
चोली को छोड़कर अन्य सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. 
प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं. 

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर सफ़ेद रंग की खिड़की की छज्जेदार-पाग के ऊपर सिरपैंच, दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में गोल कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में आज त्रवल नहीं धराये जाते वहीँ कंठी धरायी जाती है. श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं. शयन समय श्रीमस्तक पर रुपहली लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.

Sunday, 19 February 2023

व्रज - फाल्गुन कृष्ण अमावस्या

व्रज - फाल्गुन कृष्ण अमावस्या
Monday, 20 February 2023

सोमवती अमावस्या

अरि हों श्याम रंग रंगी ।
रिझवे काई रही सुरत पर सुरत मांझ पगी ।।१।।
देख सखी अेक मेरे नयनमें बैठ रह्यो करी भौन ।
घेनु चरावन जात वृंदावन सौंधो कनैया कोन ।।२।।
कौन सुने कासौ कहे सखी कौन करे बकवाद ।
तापे गदाधर कहा कही आवे गूंगो गुड़को स्वाद ।।३।।

चोवा से रंगे स्याम घेरदार वागा, श्रीमस्तक पर गोल पाग और क़तरा के शृंगार

विशेष – आज फाल्गुन की अमावस्या के दिन श्रीजी को नियम के चोवा से रंगे दोहरी सुनहरी किनारी के स्याम घेरदार वस्त्र एवं श्रीमस्तक पर गोल-पाग के ऊपर सुनहरी चमक का क़तरा धराया जाता है.

श्याम वस्त्रों में श्यामसुंदर प्रभु की अद्भुत छटा का शब्दों में वर्णन करना किसी के लिए संभव नहीं है. 

राजभोग में फेंट में भर कर गुलाल खिलायी जाती हैं. चोवा के वस्त्र को गुलाल, अबीर, चंदन, चोवा सबसे खिलाया जाता हैं.

राजभोग दर्शन 

कीर्तन – (राग : सारंग)

मोहन खेलत होरी ll ध्रु ll
बंसीबट जमुनातट कुंजन तर ठाड़े बनवारी l उतही सखिन को मंडल जोर श्रीवृषभान दुलारी ll
होड़ा होड़ी करत परस्पर गावत आनंद गारी l अबीर गुलाल फेंट भर भामिनी करकंचन पिचकारी ll 1 ll
बाजत बीन बांसुरी किन्नरी महुवर अरु मुख चंगा l आवाज अमृत कुंडली अघवट तातें सरस उपंगा ll
ताल मृदंग झांझ डफ बाजत सूरके उठत तरंगा l गावत नाचत करत कुतूहल छिरकत केसर अंगा ll 2 ll
तबहि श्याम सब सखा बुलाये सबहिन मतो सुनाये l भैया तुम चोक्कस रहीयो मति कोऊ उपाय गहायो ll
जो काहू को पकर पाये है करि है मन को भायो l तातें सावधान व्है रहियो में तुमको समझायो ll 3 ll
तबही किसोरी राधा गोरी मनमें मतोजुकीनो l एक सखी ता बोल आपनी भेख सुबल को दीनो ll
ताके मिलन चले उठ मोहन सखा न कोई चीन्हो l नैंसिक बात लगाय लालको पाछे ते गहिलीनो ll 4 ll....अपूर्ण

साज – आज श्रीजी में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, अबीर व चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को चोवा से रंगा श्याम रंग का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. उर्ध्वभुजा की ओर चोवा से रंगा श्याम रंग का ही कटि-पटका भी धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्र दोहरे सुनहरी किनारी से सुसज्जित होते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सफ़ेद मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर श्याम रंग की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच सुनहरी चमक का क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
 सफ़ेद पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है.  

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.

Saturday, 18 February 2023

व्रज - फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी

व्रज - फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी
Sunday, 19 February 2023

पीले लट्ठा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर लाल ग्वालपगा के ऊपर पगा चंद्रिका के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को पीले लट्ठा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर लाल ग्वालपगा के ऊपर पगा चंद्रिका का शृंगार धराया जायेगा.

आज राजभोग में श्रीजी की कटि में एक गुलाल की पोटली बांधी जाती हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : वसंत)

आई ऋतु चहूँदिस फूले द्रुम कानन कोकिला समूह मिलि गावत वसंतहि।
मधुप गुंजारत मिलत सप्तसुर भयो है हुलास तन मन सब जंतहि॥
मुदित रसिक जन उमगि भरे हैं नहिं पावत मन्मथ सुख अंतहि।
कुंभनदास स्वामिनी बेगि चलि यह समें मिलि गिरिधर नव कंतहि॥

साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को पीले लट्ठा का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र श्याम रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को फ़ागण का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

 श्रीमस्तक पर लाल रंग के ग्वालपगा के ऊपर सिरपैंच, बीच की  चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धरायी जाती हैं.
आज एक माला अक्काजी की धरायी जाती हैं.
 गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, फ़िरोज़ा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी(एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट चीड़ का एवं गोटी फागुन की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर पगा रहे  लूम तुर्रा नहीं आवे.

Friday, 17 February 2023

व्रज - फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी

व्रज - फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी
Saturday, 18 February 2023

भोरही आयो मेरे द्वार जोगिया अलख कहे कहे जाग ।
मोहन मूरति एनमेनसी नैन भरे अनुराग ।।
अंग विभूतिगरें बिचसेली देखीयत विरह बिराग ।
तनमन वारुं धीरज के प्रभु पर राखूंगी बांध सुहाग ।।
तुम कोनकेवस खेले हो रंगीले हो हो होरियां ।
अंजन अधरन पीक महावरि नेनरंगे रंगरोरियां ।।
वारंवार जृंभात परस्पर निकसिआई सब चोरियां ।
'नंददास' प्रभु उहांई वसोकिन जहां वसेवेगोरियां ।।

महा शिवरात्रि

विशेष – आज महाशिवरात्रि है. भगवान शंकर प्रथम वैष्णव हैं और श्रीजी के प्रिय भक्त हैं अतः आज नियम का मुकुट और गोल-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. 

गोल-काछनी को मोर-काछनी भी कहा जाता है क्योंकि यह यह देखने में नृत्यरत मयूर जैसी प्रतीत होती है. ऐसा प्रतीत होता है जैसे प्रभु गोपियों संग रास रचाते आनंद से मयूर की भांति नृत्य कर रहें हों. 
आज चोवा की चोली धरायी जाती है. आज प्रभु को अंगूरी (हल्के हरे) रंग की गोल-काछनी व रास पटका धराया जाता है जिस पर बसंत के छांटा होते हैं.

कई शिव-भक्त अंगूरी (हल्के हरे) रंग को शिव के प्रिय पेय भंग के रंग से जोड़कर भी देखते हैं यद्यपि यहाँ इस रंग का प्रयोग केवल प्रभु सुखार्थ किया जाता है.

श्रृंगार समय कमल के भाव की पिछवाई आती है जो कि श्रृंगार दर्शन उपरांत बड़ी कर श्वेत मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसपर राजभोग समय खेल होता है.

कीर्तन – (राग : सारंग)

कर तारी देदे नाचेही बोले सब होरी हो ll ध्रु ll
संगलिये बहु सहचरि वृषभान दुलारी हो l गावत आवत साजसो उतते गिरिधारी हो ll 1 ll
दोऊ प्रेम आनंदसो उमगे अतिभारी l चितवन भर अनुरागसो छुटी पिचकारी ll 2 ll
मृदुंग ताल डफ बाजही उपजे गति न्यारी l झुमक चेतव गावही यह मीठी गारी ll 3 ll
लाल गुलाल उड़ावही सोंधे सुखकारी l प्यारी मुखही लगावही प्यारो ललनविहारी ll 4 ll
हरे हरे आई दूर करी अबीर अंधियारी l घेर ले गयी कुंवरको भर के अंकवारि ll 5 ll
काहु गहिवेनी गुही रचि मांग संवारी l काहु अंजनसो आज अरु अंखिया अनियारी ll 6 ll
कोई सोंधेसो सानके पहरावत सारी l करते मुरली हरि लई वृषभान दुलारी ll 7 ll
तब ललिता मिलके कछु एक बात विचारी l पियावसन पियको दैहे पिय के दिये प्यारी ll 8 ll
मृगमद केसर घोंरके नखशिख तें ढारी l सखियन गढ़ जोरो कियो हस मुसकाय निहारी ll 9 ll
याही रस निवहो सदा यह केलि तिहारी l निरख ‘माधुरी’ सहचरी छबि पर बलिहारी ll 10 ll

शृंगार दर्शन 

साज – आज श्रीजी में फ़िरोज़ी रंग के आधार-वस्त्र पर कमल के फूलों के चित्रांकन वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. यह पिछवाई केवल श्रृंगार दर्शन में ही धरायी जाती है क्योंकि उसके बाद सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल अबीर से खेल किया जाता है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज अंगूरी (हल्के हरे) रंग का सूथन, गोल-काछनी (मोर-काछनी), रास-पटका एवं चोवा की चोली धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (लट्ठा) के धराये जाते हैं. चोली को छोड़कर सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं. आज प्रभु की दाढ़ी भी रंगी जाती है.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर मीना की मुकुट की टोपी पर मीनाकारी का स्वर्ण का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में सोना के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. आज शिखा (चोटी) नहीं धरायी जाती है.
श्रीकंठ में अक्काजी की दो माला धरायी जाती है. पीले एवं लाल पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, सोने के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है. 

Thursday, 16 February 2023

व्रज - फाल्गुन कृष्ण द्वादशी (एकादशी व्रत)

व्रज - फाल्गुन कृष्ण द्वादशी (एकादशी व्रत)
Friday, 17 February 2023

ताजबीबी की भावपूर्ण अंतिम धमार

बहोरि डफ बाजन लागे, हेली।। ध्रुव.।। 
खेलत मोहन साँवरो,हो, केहिं मिस देंखन जाय।। 
सास ननद बैरिन भइ अब,  कीजे कोन उपाय।। १।। 
ओजत गागर ढारीये, यमुना जल के काज,।। 
यह मिस बाहिर निकसकें हम, जायें मिलें तजि लाज।।२।।
आओ बछरा मेलियें, बनकों देहिं विडार।। 
वे दे हें, हम ही पठे हम, रहेंगी घरी द्वे चार।। ३।। 
हा हा री हों जातहों मोपें, नाहिन परत रह्यो।। 
तू तो सोचत हीं रही तें, मान्यों न मेरो कह्यो।। ४।। 
राग रंग गहगड मच्यो, नंदराय दरबार।। 
गाय खेल हंस लिजिये, फाग बडो त्योहार।। ५।। 
तिनमें मोहन अति बने, नाचत सबे ग्वाल।। 
बाजे बहुविध बाजहि रंज, मुरज डफ ताल।। ६।। 
मुरली मुकुट बिराजही, कटिपट बाँधे पीत।। 

इस पंक्ति को गाते गाते अकबर बादशाह की बेगम ताजबीबी को अत्यंत विरह हुआ और अपना देह त्याग श्रीजी की लीला में प्रविष्ट हुई, उनके ये पद की अंतिम पंक्ति श्रीनाथजी ने पूर्ण की

नृत्यत आवत *ताज* के प्रभु गावत होरी गीत।।७।।

अबीर की चोली

विशेष - माघ और फाल्गुन मास में होली की धमार एवं विविध रसभरी गालियाँ भी गायी जाती हैं. विविध वाद्यों की ताल के साथ रंगों से भरे गोप-गोपियाँ झूमते हैं. 

कई बार गोपियाँ प्रभु को अपने झुण्ड में ले जाती हैं और सखी वेश पहनाकर नाच नचाती हैं और फगुआ लेकर ही छोडती हैं. 

इसी भाव से आज श्रीजी को नियम से अबीर की चोली धरायी जाती है. फाल्गुन मास में श्रीजी चोवा, गुलाल, चन्दन एवं अबीर की चोली धराकर सखीवेश में गोपियों को रिझाते हैं. 

राजभोग समय अष्टपदी गाई जाती है. अबीर की चोली पर कोई रंग (गुलाल आदि) नहीं लगाए जाते.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

ग्वालिनी सोंधे भीनी अंगिया सोहे केसरभीनी सारी l
लहेंगा छापेदार छबीलो छीन लंक छबि न्यारी ll 1 ll
अधिक वार रिझवार खिलवार चलत भुज डारी l
अत्तर लगाए चतुर नारी तब गावत होरी की गारी ll 2 ll
बड़ी बड़ी वरूणी तरुणी करुणी रूप जोबन मतवारी l 
छबि फुलेल अलके झलके ललके लख छेल विहारी ll 3 ll
हावभाव के भवन केंधो भूखन की उपमा भारी l
वशीकरण केंधो जंत्रमंत्र मोहन मन की फंदवारी ll 4 ll
अंचल में न समात बड़ी अखिया चंचल अनियारी l
जानो गांसी गजवेल कामकी श्रुति बरसा न संवारी ll 5 ll
वेसरके मोतिन की लटकन मटकन की बलिहारी l
मानो मदनमोहन जुको मन अचवत अधर सुधारी ll 6 ll
बीरी मुख मुसकान दसन, चमकत चंचल चाकोरी l
कोंधि जात मानो घन में दामिनी छबिके पुंज छटारी ll 7 ll
श्यामबिंदु गोरी ढोडीमें उपमा चतुर विचारी l
जानो अरविंद चूम्यो न चले मचल्यो अलिको चिकुलारी ll 8 ll
पोति जोति दुलरी तिलरी तरकुली श्रवण खुटि लारी l
खयन बने कंचन विजायके करन चूरी गजरारी ll 9 ll
चंपकली चोकी गुंजा गजमोतिन की मालारी l
करे चतुर चितकी चोरी डोरीके जुगल झवारी ll 10 ll....अपूर्ण

साज - आज श्रीजी में आज सफ़ेद रंग की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, अबीर व चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को बिना किनारी का पतंगी (रानी) रंग का सूथन, घेरदार वागा एवं चोली धराये जाते हैं. चोली के ऊपर अबीर की सफ़ेद चोली धरायी जाती है. 
रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित केसरी कटि-पटका ऊर्ध्वभुजा की ओर धराया जाता है. गहरे हरे रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. 
सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. केवल चोली पर रंगों से खेल नहीं किया जाता.
प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं. 

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर पतंगी रंग की बाहर की खिड़की की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, मच्छी घाट को दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में आज त्रवल नहीं धराये जाते, कंठी व पदक धराये जाते हैं.
सफ़ेद एवं पीले पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं परन्तु अबीर की चोली नहीं खोली जाती है. 
शयन समय श्रीमस्तक पर रुपहली लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.

Wednesday, 15 February 2023

व्रज – फाल्गुन कृष्ण एकादशी(दशमी क्षय)

व्रज –  फाल्गुन कृष्ण एकादशी(दशमी क्षय)
Thursday, 16 February 2023

आज एकादशी तिथि है परन्तु विजया एकादशी व्रत कल शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2023 (फाल्गुन कृष्ण द्वादशी) के दिन होगा.

कान्हा धर्यो रे मुकुट खेले होरी कान्हा धर्यो रे ।। 

ईतते आये कुंवर कन्हाई, 
उतते आई राधा गोरी............... कान्हा 

कहां तेरो हार कहां नकवेसर, 
कहां मोतीयनकी लर तोरी........ कान्हा 

गोकुल मेरो हार मथुरा नकवेसर, 
बृदावन में लर तोरी.................. कान्हा 

चोवा चंदन अगर अरगजा, 
अबिर उडावो भर भर झोरी....... कान्हा 

पुरुषोत्तम प्रभु की छबी निरखत, 
फगुवा लियो भर भर झोरी........ कान्हा 

मुकुट-काछनी के श्रृंगार

विजया एकादशी

विशेष – आज विजया एकादशी है. विश्व के सभी धर्माचार्यों ने कई वस्तुओं को निषेध कहा है उन सभी वस्तुओं को श्री वल्लभाचार्यजी ने प्रभु की सेवा में जोड़ कर उनका सदुपयोग किया है. 

उदाहरणार्थ काम, क्रोध, मोह एवं लोभ मानव के शत्रु हैं एवं इनका त्याग करने को सर्व धर्माचार्य कहते हैं परन्तु श्रीमद वल्लभाचार्यजी ने इन चारों वस्तुओं को प्रभु सेवा से जोड़ने की आज्ञा की जिससे ये सभी भी भगवदीय बनें. इस अमूल्य आज्ञा के अनुसरण करने वाले कई प्रभु के कृपापात्र वैष्णवों ने काम, क्रोध, लोभ एवं मोह को प्रभु सेवा में विनियोग कर इन पर विजय प्राप्त की अतः आज की एकादशी को विजया एकादशी कहा जाता है.

शीत कम हो गयी है अतः आज से श्रीजी में मुकुट काछनी का श्रृंगार प्रारंभ हो जायेगा. गोपाष्टमी के बाद आज ही श्रीजी में मुकुट धराया जा रहा है. 

प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है. 

अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी का पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता.

जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है. 

जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं.

जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है.

आज प्रभु को पीले बसंत के छांटा की काछनी व पीताम्बर, चोवा की चोली व सफ़ेद लट्ठा के ठाडे वस्त्र धराये जाते हैं. 

आज की विशेषता यह है कि आज श्रीजी को धराये जाने वाले वस्त्र द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से सिद्ध हो कर आते हैं. वस्त्रों के साथ श्रीजी के भोग हेतु सामग्री की एक छाब भी वहां से आती है.

श्रृंगार दर्शन 

कीर्तन – (राग : काफी)

पीताम्बर काजर कहाँ लग्यो हो ललना
कोन के पोंछे हें नयन ll ध्रु ll
कोनके गेह नेह रस पागे वे गोरी कछु ओर l 
देहु बताय कान राखति हों ऐसे भये चितचोर ll 1 ll
अधरन अंजन लिलाट महावर राजत पिक कपोल l
घुमि रहे रजनी जागेसे दुरत न काम कलोल ll 2 ll
नखनिशान राजत छतियन पर निरखो नयन निहार l
झुम रहीं अलके अलबेली पागके पेंच संवार ll 3 ll
हम डरपे जसुदाजुके त्रासन नागर नंदकिशोर l
पाय परे फगुवा प्रभु देहो मुरली देहो अकोर ll 4 ll
धन्य धन्य गोकुलकी गोपी, जीन हरी लीने हराय l
‘नंददास’ प्रभु कीये कनोड़े छोड़े नाच नचाय ll 5 ll 

साज – आज श्रीजी में फ़िरोज़ी रंग के आधार-वस्त्र पर कमल के फूलों के चित्रांकन वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. यह पिछवाई केवल श्रृंगार दर्शन में ही धरायी जाती है क्योंकि उसके बाद सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल अबीर से खेल किया जाता है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज चंपाई (पीले) रंग का सूथन, काछनी, रास-पटका एवं चोवा श्याम रंग की चोली धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (लट्ठा) के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल, हरे, मेघश्याम एवं सफ़ेद मीना तथा जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर मीना की मुकुट टोपी, मीना का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में जड़ाव मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की शिखा (चोटी) धरायी जाती है. 
दो माला अक्काजी की धरायी जाती है.
श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्प की छड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का व गोटी फागुन की आती है.

Tuesday, 14 February 2023

व्रज – फाल्गुन कृष्ण नवमी

व्रज –  फाल्गुन कृष्ण नवमी
Wednesday, 15 February 2023

जय-गोपाल (कुंडवारा का मनोरथ)

केसरी लट्ठा के घेरदार वागा, श्रीमस्तक पर लाल गोल पाग और क़तरा के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को लाल लट्ठा का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर लाल गोल पाग पर क़तरा का श्रृंगार धराया जायेगा.

आज श्रीजी में जय गोपाल (कुण्डवारा) मनोरथ होगा.

कुंडवारा मनोरथ में ठाकुरजी को अनसखड़ी में गेहूं की सेव (पाटिया) के लड्डू, कठोर मठड़ी (ठोड़), चून का सीरा (गेहूं के आटे का हलवा), गेहूं के आटे की सेवई की खीर और सखड़ी में दहीभात आदि सामग्रियां अरोगायी जाती हैं.

श्रीजी में कुंडवारा मनोरथ तिलकायत की आज्ञा के बिना नहीं हो सकता एवं मनोरथी चाहे कोई भी हो समाधान विभाग के चौपड़ा में व मनोरथ की रसीद पर पूज्य श्री तिलकायत का ही नाम लिखा जाता है. 

श्रीजी व पुष्टिमार्ग के अन्य मंदिरों में परम्परानुसार कुंडवाय मनोरथ कभी भी किसी भी माह की षष्ठी, द्वादशी, मंगलवार व रविवार को नहीं होता.

निकुंजनायक प्रभु श्रीजी के मंदिर में गौलोक की भावना से कुंडवारा का भोग गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग के साथ अरोगाया जाता है जबकि अन्य घरों (मंदिरों) में नंदालय के भाव से यह ग्वाल के पश्चात राजभोग के साथ अरोगाया जाता है. इसी कारण से सेवा प्रकार में कुछ अंतर है, जिस दिन कुंडवारा मनोरथ हो श्रीजी में ग्वाल के दर्शन अवश्य खोले जाते हैं.

 श्रीजी के निज-मंदिर अथवा जहाँ भी कुंडवाय का भोग रखा जाय वहां हल्दी में भीगी सूती डोरी से आड़ी व खड़ी लकीरें छांटी जाती है. इन लकीरों से वर्ग बनाये जाते हैं जिनके मध्य कुंडवारा के भोग साजे जाते हैं. यह वर्ग 4 के गुणक में होते हैं अर्थात 4, 8, 16 अथवा 32 इस प्रकार के वर्गों को गुणा कहा जाता है.

इस मनोरथ में सीरा, दहीभात एवं खीर सोने-चांदी के बर्तनों के बजाय मिट्टी के बड़े-बड़े मलड़ों में प्रभु को अरोगाये जाते हैं. हल्दी शुद्धता एवं शुभत्व का प्रतीक है अतः भोग के मिट्टी के बर्तनों को भी हल्दी से लीपा जाता है.

कुंडवारा मनोरथ की एक और मुख्य विशेषता है कि यदि कोई गोस्वामी बालक उपस्थित न हों तो कुंडवारा का मनोरथ नहीं किया जा सकता क्योंकि कुंडवारा का भोग रखने के लिए किसी गोस्वामी बालक का उपस्थित होना आवश्यक है.

कुंडवारा मनोरथ में ठाकुरजी को मुख्यतः पांच सामग्रियां अरोगायी जाती है -

1 - पाटिया (गेहूँ के आटे की सेव) के लड्डू
2 - मठड़ी (कड़क ठोड़) 
3 - चून (गेहूँ के आटे) का सीरा
4 - पाटिया (गेहूँ के आटे की सेव) की खीर
5 - दहीभात

केवल दहीभात के अलावा सभी सामग्रियां अनसखड़ी में ठाकुरजी को आरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : वसंत) (अष्टपदी)

खेलत वसंत गिरिधरनलाल, कोकिल कल कूजत अति रसाल ll 1 ll
जमुनातट फूले तरु तमाल, केतकी कुंद नौतन प्रवाल ll 2 ll
तहां बाजत बीन मृदंग ताल, बिचबिच मुरली अति रसाल ll 3 ll
नवसत सज आई व्रजकी बाल, साजे भूखन बसन अंग तिलक भाल ll 4 ll
चोवा चन्दन अबीर गुलाल, छिरकत पिय मदनगुपाल लाल ll 5 ll
आलिंगन चुम्बन देत गाल, पहरावत उर फूलन की माल ll 6 ll
यह विध क्रीड़त व्रजनृपकुमार, सुमन वृष्टि करे सुरअपार ll 7 ll
श्रीगिरिवरधर मन हरित मार, ‘कुंभनदास’ बलबल विहार ll 8 ll

साज – आज श्रीजी में सफ़ेद रंग की मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी लट्ठा का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं. पटका केसरी रंग का धराया जाता हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को फ़ागण का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर केसरी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में मीना के कर्णफूल की एक जोड़ी धरायी जाती हैं.
 गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, स्याम मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का एवं गोटी फागुण की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Monday, 13 February 2023

व्रज – फाल्गुन कृष्ण अष्टमी

व्रज –  फाल्गुन कृष्ण अष्टमी
Tuesday, 14 February 2023

सेहरा के शृंगार

आज श्रीजी को लाल रंग का सूथन, चोली चाकदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. श्रीमस्तक पर लाल रंग के दुमाला के ऊपर मीना का सेहरा धराया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : वसंत)

देखो राधा माधो,सरस जोर,
खेलत बसंत पिय नवल किशोर।।ध्रु।
  ईत हलधर संग,समस्त बाल।।
मधि नायक सोहे नंदलाल।।
उत जुवती जूथ,अदभूत रूप।।
मधि नायक सोहें,स्यामा अनूप।।१।।
  बहोरि निकसि चले जमुनातीर,।।
मानों रति नायक जात धीर।।
देखत रति नायक बने जाय।।
संग ऋतु बसंत ले परत पाय।।२।।
  बाजत ताल,मृदंग तूर,।।
पुनि भेरि निसान रवाब भूर।।
डफ सहनाई,झांझ ढोल।।
हसत परस्पर करत बोल।।३।।
  जाई जूही,चंपक रायवेलि।।
रसिक सखन में करत केलि।।४।।
  ब्रज बाढ्यो कोतिक अनंत।।
सुंदरि सब मिलि कियो मंत।।
तुम नंदनंदन को पकरि लेहु।।
सखी संकरषन को माखेहु।।५।।
  तब नवलवधू कींनो उपाई।।
चहुँ दिशते सब चली धाई।।
श्रीराधा पकरि स्याम कों लाई।।
सखी संकरषन ,जिन भाजिपाई।।६।
  अहो संकरषन जू सुनो बात बात।।
नंदलाल छांडि,तुम कहां जात।।
दे गारी बोहो विधि अनेक।।
तब हलधर पकरे सखी अनेक।।७।।
  अंजन हलधर नेन दीन।।
कुंकुम मुख मंजन जू किन।।
हरधवजू फगवा आनी देहु।।
जुम कमल नेन कों छुडाई लेहु।।८।।
      जो मांग्यो सो़ं फगूआ दीन ।।
नवललाल संग केलि कौन हसत,
खेलत चले अपने धाम।।
व्रज युवती भई पूरन काम।।९।।
  नंदरानी ठाडी पोरि द्वार।।
नोछावरि करि देत वार ।।
वृषभान सुता संग रसिकराय।।
जन माणिक चंद बलिहारि जाय।।१०।।

साज – आज श्रीजी में सफ़ेद रंग की मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर राजभोग में गुलाल से चवरी मांडी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं एवं केसरी मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) फागुण का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल रंग के दुमाला के ऊपर फ़ीरोज़ा का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में दो जोड़ी मीना मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. सेहरा पर मीना की चोटी दायीं ओर धरायी जाती है. 
आज अक्काजी वाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
लाल एवं पीले पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट चीड़ का एवं गोटी फागुण की आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के शृंगार एवं श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं.
दुमाला रहे लूम तुर्रा नहीं आवे.

Sunday, 12 February 2023

व्रज - फाल्गुन कृष्ण सप्तमी

व्रज - फाल्गुन कृष्ण सप्तमी
Monday, 13 February 2023

आज की पोस्ट बहुत लम्बी पर उत्सव के आनंद के रंग से सराबोर है अतः समय देकर पूरी पढ़ें

सभी वैष्णवों को निकुंजनायक श्रीजी व श्री लाड़लेलाल प्रभु के पाटोत्सव की ख़ूबख़ूब बधाई

निकुंजनायक श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी का पाटोत्सव

होली खेल के 40 दिनों में पाटोत्सव का अपना अलग ही महत्व है, जो प्रभु कृपा और सर्व-समर्पण की भावना से उत्पन्न हुआ है.

श्रीजी प्रभु आज ही के दिन, श्री गुसाईंजी के घर सतघरा पधारे थे। श्री गिरिधरजी ने श्रीजी की आज्ञा से आपश्री को अपने कंधों पर विराजित कर उन्हें अपने घर पधरा ले गए. 
वहाँ श्रीजी ने श्रीगुसाँईजी के परिवार के सभी बालक, बेटीजी और बहूजी के साथ होली खेली. 
तब श्री गिरिधरजी के परिवार की सभी महिलाओं ने अपने सभी आभरणों (आभूषणों) का प्रभु चरणों में समर्पण किया (आज भी सर्व-समर्पण का प्राचीन जडाव का चौखटा प्रभु जन्माष्टमी आदि कई विशिष्ट दिनों पर अंगीकार करते हैं).
इस समय जब श्री गिरिधरजी के बहूजी की नथ रह गयी, तब श्रीजी ने अपनी वेणुजी से संकेत किया और वह भी माँग ली.

इसे ही प्रभु कृपा कहते हैं.

विशेष – आज निकुंजनायक श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी का पाटोत्सव है. 
आज के दिन श्रीजी प्रभु व्रज से पधारने के उपरांत वर्तमान श्रीजी मंदिर के बाहर के चौक में स्थित खर्च-भण्डार में बिराजे थे.यहाँ पर प्रभु तीन बार (संवत 1623, 1728 व 1864) में बिराजे एवं कुछ वर्ष उपरांत वर्तमान मंदिर निर्माण के पूर्ण होने पर डोलोत्सव के अगले दिन द्वितीया पाट के दिन अपने वर्तमान पाट पर विराजे.

खर्च-भण्डार में जिस स्थान पर प्रभु विराजे उस स्थान पर श्रीजी की छवि स्थित है और उसकी सेवा प्रतिदिन श्रीजी के घी-घरिया करते हैं. 
आज खर्च-भंडार में विराजित श्रीजी की छवि को सैंकड़ों लीटर केसर व मेवे युक्त दूध का भोग अरोगाया जाता है और शयन पश्चात सभी वैष्णवों एवं नगरवासियों को वितरित किया जाता है.

आज से सेवाक्रम में कुछ परिवर्तन होंगे. 

पुष्टिमार्ग में प्रत्येक ऋतु का आगमन व पूर्व ऋतु की विदाई प्रभु सुखार्थ धीरे-धीरे क्रमानुसार होती है. 

प्रभुसेवा में आज से शीतकाल की विदाई आरंभ हो गयी है अतः जल रंगों (Water Colors) के चित्रांकन की पिछवाईयां धरायी जानी प्रारंभ हो जाती है.

आज से डोलोत्सव तक इस प्रकार की पिछवाईयां केवल श्रृंगार के दर्शनों में ही धरायी जाती हैं एवं ग्वाल में बड़ी (हटा) कर सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती हैं क्योंकि राजभोग में प्रभु को गुलाल खेलायी जाती है. 

आज से चरणारविंद के श्रृंगार धराये जाते हैं. आज से प्रभु को मोजाजी भी नहीं धराये जाते परन्तु यदि अधिक शीत हो तो आज का दिन छोड़कर प्रभु सुखार्थ शीत रहने तक राजभोग तक मोजाजी पुनः धराये जा सकते हैं.

आज से डोलोत्सव तक श्रीजी और श्री नवनीतप्रियाजी में ख्याल (स्वांग) प्रारंभ होंगे. ख्याल बनने वाले बालक, बालिकाएं विविध देवों, गन्धर्वों एवं सखाओं के रूप धरकर ख्याल बनकर शयन के दर्शन में प्रभु के समक्ष नाचते हैं जिससे बालभाव में प्रभु आनंदित होते हैं.

कई वर्षों पूर्व जब प्रभु व्रज में थे तब वहां इस प्रकार के ख्याल (स्वांग) निकलते थे. श्रीजी का मन ऐसे ख्याल (स्वांग) देखने बाहर जाने का हुआ तब श्री गिरधरजी ने प्रभु के सुखार्थ सतघरा में ही ख्याल (स्वांग) बनाने की प्रथा प्रारंभ की जो कि आज भी जारी है.

प्रभु को नियम के केसरी (अमरसी) डोरिया के रुपहली ज़री की तुईलैस की दोहरी किनारी से सुसज्जित घेरदार वागा, चोली एवं कटि-पटका धराये जाते हैं. चोली के ऊपर आधी बाँहों वाली श्याम रंग की चोवा की चोली धरायी जाती है. 

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में खरमंडा, केसर-युक्त गेहूं के रवा (संजाब) की खीर, श्रीखंडवड़ी का डबरा, मंगोड़ा (मूंग की दाल के गोल दहीवड़ा) की छाछ व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग अरोगाया जाता है. 

श्रृंगार दर्शन – 

कीर्तन – (राग : देवगंधार)

आज माई मोहन खेलन होरी l 
नवतन वेष काछी ठाड़े भये संग राधिकागोरी ll 1 ll
अपने भामते आये देखनको जुरि जुरि नवलकिशोरी l 
चोवा चन्दन और कुंकुमा मुख मांडत ले रोरी ll 2 ll
छूटी लाज तब तन संभारत अति विचित्र बनी जोरी l
मच्यो खेल रंग भयो भारे या उपमाको कोरी ll 3 ll
देत असीस सकल व्रजवनिता अंग अंग सब भोरी l 
‘परमानंद’ प्रभु प्यारीकी छबी पर गिरधर देत अकोरी ll 4 ll

साज – आज प्रभु को होली के सुन्दर चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है जिसमें व्रजभक्त प्रभु को होली खिला रहे हैं और ढप वादन के संग होली के पदों का गान कर रहे हैं. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.राजभोग में श्वेत मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी डोरिया के दोहरा रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, घेरदार वागा, चोली एवं कटि-पटका धराये जाते हैं. चोली के ऊपर आधी बाँहों वाली श्याम रंग की चोवा की चोली धरायी जाती है. ठाड़े वस्त्र श्वेत चिकने लट्ठा के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फ़ीरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर केसरी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम की कीलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में फ़िरोज़ा के एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में चार माला धरायी जाती है.
 पीले पुष्पों की कलात्मक थागवाली एक मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, फ़ीरोज़ा के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का एवं गोटी फागुन की आती है.

Saturday, 11 February 2023

व्रज - फाल्गुन शुक्ल षष्ठी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल षष्ठी
Sunday, 12  February 2023

श्री गोकुल राजकुमार लाल रंग भीने हें ।
खेलत डोलत फाग सखा संग लीने हें  ।।१।।
चित्र विचित्र सुदेश सबे अनुकुले हें  ।
राजत रंग विरंग सरोजसे फुले हें ।।२।।
अेकनके कर कंठण जोरी जराय की ।
अेकनके पिचकाई सु हेम भराय की ।।३।।
अेसोई ध्यान सदा हरीको जीय जो रहे ।
तापे गदाधर याके भाग्यकी को रहे ।।४।।

चढ़ीहस्ती (चढ़ी आस्तीन) के वस्त्र का श्रृंगार

कल श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी का पाटोत्सव है और इसके एक दिन पूर्व, आज श्रीजी प्रभु को नियम के वस्त्र, श्रृंगार धराये जाते हैं.
इसे ‘चढ़ीहस्ती के वस्त्र का श्रृंगार’ कहा जाता है. आज के वस्त्रों की विशेषता यह है कि प्रभु की चोली की बाहें चोवा में भीगी होती है. 
यह इस भाव से होता है कि प्रभु चोवा, गुलाल एवं अबीर से खेलते हुए अपनी बांह भर बैठे हैं. 

इसके अतिरिक्त आज की एक और विशेषता है कि आज शीतकाल में श्रीजी को नियम से अंतिम बार मोजाजी धराये जाते हैं अर्थात कल मोजाजी नहीं धराये जायेंगे.
यद्यपि आने वाले दिनों में यदि अधिक शीत शेष हो तो कल का दिन (श्रीजी का पाटोत्सव) छोड़कर प्रभु सुखार्थ शीत रहने तक मोजाजी धराये जा सकते हैं.

आज राजभोग के खेल में प्रभु की कटि पर गुलाल व अबीर की पोटली बांधी जाती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : बिलावल)

वंदो मुनसाई नंदके जुवती झंडा केसें लेहोजु l ये सब सुंदरि घोखकि क्यों परिरंभन देहो ll 1 ll
फाल्गुन मास देत फगुआ अति क्रीड़ा रस खेलो l तनकी गति ओर भई बोली ढोली मेलो ll 2 ll
काहेको अकुलात हो मन को भायो करि हैं l हो भैया बलदेवको पृथक पृथक करि धरि है ll 3 ll
पांच सखी मिलि एक व्है बीच झंडा ले रोप्यो l फरहर रतिपति ऊपरे बहोत नगन जट ओप्यो ll 4 ll....अपूर्ण

साज - आज श्रीजी में आज सफ़ेद रंग की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, अबीर व चन्दन से कलात्मक खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत रंग का सूथन, चढ़ी आस्तीन की चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. मोज़ाजी एवं पटका गुलाबी रंग के धराये जाते हैं. ठाडे वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर जड़ाव टिपारा का साज – गुलाबी रंग की टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में जड़ाव मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
बायीं और मीना की चोटी धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में अक्काजी की दो मालाजी धरायी जाती है. लाल एवं श्वेत पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लहरियाँ  के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है.

राजभोग खेल में एक गुलाल व एक अबीर की पोटली प्रभु की कटि पर बांधी जाती है. प्रभु के कपोल भी मांडे जाते हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं. टिपारा बड़ा नहीं किया जाता व लूम तुर्रा भी नहीं धराये जाते हैं. 

Friday, 10 February 2023

व्रज - फाल्गुन कृष्ण पंचमी

व्रज - फाल्गुन कृष्ण पंचमी
Saturday, 11 February 2023

दोहरा मनोरथ ( भलका चौथ) के वस्त्र का शृंगार

आज श्रीजी को दोहरा मनोरथ ( भलका चौथ) के केसरी डोरिया के दोहरी किनारी का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 
श्रीमस्तक पर केसरी रंग की गोल पाग एवं मोर चंद्रिका धरायी जायेगी.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : वसंत) (अष्टपदी)

खेलत वसंत गिरिधरनलाल, कोकिल कल कूजत अति रसाल ll 1 ll
जमुनातट फूले तरु तमाल, केतकी कुंद नौतन प्रवाल ll 2 ll
तहां बाजत बीन मृदंग ताल, बिचबिच मुरली अति रसाल ll 3 ll
नवसत सज आई व्रजकी बाल, साजे भूखन बसन अंग तिलक भाल ll 4 ll
चोवा चन्दन अबीर गुलाल, छिरकत पिय मदनगुपाल लाल ll 5 ll
आलिंगन चुम्बन देत गाल, पहरावत उर फूलन की माल ll 6 ll
यह विध क्रीड़त व्रजनृपकुमार, सुमन वृष्टि करे सुरअपार ll 7 ll
श्रीगिरिवरधर मन हरित मार, ‘कुंभनदास’ बलबल विहार ll 8 ll

साज – आज श्रीजी में आज सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया गया है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को दोहरा मनोरथ ( भलका चौथ) के केसरी डोरिया  एवं सफ़ेद ज़री की तुईलैस की दोहरी किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं कटि-पटका धराये जाते हैं. 
लाल ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. 

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना एवं सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर केसरी रंग की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. लाल एवं सफ़ेद पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.

Thursday, 9 February 2023

व्रज - फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी (द्वितीय)

व्रज - फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी (द्वितीय)
Friday, 10 February 2023     

श्वेत लट्ठा के घेरदार वागा ,श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को श्वेत लट्ठा का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा, श्रीमस्तक पर लाल गोल पाग पर गोल चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : बिलावल)

नंदसुवन व्रजभामते फाग संग मिल खेलोजु l
आज हमें तुम जानि है जो युवती दल पेलोजु ll 1 ll
रसिक सिरोमनि सांवरे श्रवन सूनत उठि धाये l
बलि समेत सब टेरिके घरघर तें सखा बुलाये ll 2 ll
बाजे बहुविध बाजही ताल मृदंग उपंग l
डिमडिम दुंदुभी झालरी आवाज कर मुख चंग ll 3 ll...(अपूर्ण)

साज – आज श्रीजी में श्वेत रंग की मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत लट्ठा का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं हरे रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं. लाल बंध धराया जाता हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को फ़ागण का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लाल रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
 गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, स्याम मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का एवं गोटी फागुण की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Wednesday, 8 February 2023

व्रज - फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी

व्रज - फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी
Thursday, 09 February 2023
                
गुलाबी लट्ठा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गुलाबी ग्वालपगा के ऊपर पगा चंद्रिका के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को गुलाबी लट्ठा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गुलाबी ग्वालपगा  के ऊपर पगा चंद्रिका का शृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

श्याम सुभगतन शोभित छींटे नीकी लागी चंदनकी ।
मंडित सुरंग अबीरकुंकुमा ओर सुदेश रजवंदनकी ।।१।।
कुंभनदास मदन तनमन बलिहार कीयो नंदनंदनकी ।
गिरिधरलाल रची विधि मानो युवति जन मन कंदनकी ।।२।।

साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी लट्ठा का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को फ़ागण का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

 श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग के ग्वालपगा के ऊपर सिरपैंच, बीच की  चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धरायी जाती हैं.
आज एक माला अक्काजी की धरायी जाती हैं.
 गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, फ़िरोज़ा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी(एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट चीड़ का एवं गोटी फागुन की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर पगा रहे  लूम तुर्रा नहीं आवे.

Tuesday, 7 February 2023

व्रज - फाल्गुन कृष्ण तृतीया

व्रज - फाल्गुन कृष्ण तृतीया
Wednesday, 08 February 2023

फागुन में रसिया घर बारी फागुन में ।
हो हो बोले गलियन डोले गारी दे दे मत वारी ।।१।।
लाजधरी छपरन के ऊपर आप भये हैं अधिकारी ।
पुरुषोत्तम प्रभु की छबि निरखत ग्वाल करे सब किलकारी ।।२।।

गुलाल की चोली

विशेष – फाल्गुन मास में होली की धमार एवं विविध रसभरी गालियाँ भी गायी जाती हैं. विविध वाद्यों की ताल के साथ रंगों से भरे गोप-गोपियाँ झूमते हैं. कई बार गोपियाँ प्रभु को अपने झुण्ड में ले जाती हैं और सखी वेश पहनाकर नाच नचाती हैं और फगुआ लेकर ही छोडती हैं.

इसी भाव से आज श्रीजी को हरे घेरदार वागा पर गुलाल की चोली धरायी जाती है. चोली की गुलाल में गुलाब का इत्र मिश्रित होता है. चोली को गुलाल से ही खेलाया जाता है जबकि अन्य सभी वस्त्र गुलाल, अबीर, चन्दन व चोवा से खेलाए जाते हैं.

फाल्गुन मास में श्रीजी चोवा, गुलाल, चन्दन एवं अबीर की चोली धराकर सखीवेश में गोपियों को रिझाते हैं.

राजभोग समय अष्टपदी गाई जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : जेतश्री/घनाश्री)

रिझावत रसिक किशोर को खेलतरी प्यारी राधा फाग l पहेरे नवरंग चूनरी अंगियारी आछे अंग लाग ll 1 ll
कनिक खचित खुभिया बनी दुलरीरी मोतिन बिच लाल l किकिंनी नूपुर मेखला लोचनरी शुभ सुखद विशाल ll 2 ll
गौर गातकी कहा कहु बेसरि रही कच अरुझाय l सब सुंदरी मिलि गावही, देखत हु मनमथ हिल जाय ll 3 ll
मृदुमुसकनि मुख पटदयो पिचकारी कर लई है दुराय l बंदनबुकी अंजुली नागरि ले दई उड़ाय ll 4 ll
मिडत लोचन नागरि पकरयो पीताम्बर धाय l सबे सखी जुरि आय गई, घेरे हो मोहन बलिआय ll 5 ll
मुरली छीनी चुम्बन दीयो कीनों अधरामृत पान l कमल कोष ज्यों भृंगको छांड़त नहीं बिन भये विहान ll 6 ll
मानो बहुरंग विकसत कमल मधुकर मन मोहनलाल l नयनन स्वाद सबे गहे पीवत मकरंद रसाल ll 7 ll
ऋतु वसंत बन गहगह्यो कूजत शुकपिक अलिमोर l तान मानगति भेदसों गावत गिरिधर पियजोर ll 8 ll
बेन झांझ डफ झालरी गोमुख ताल मुरंज मुखचंग l युवती युथ बजावही निर्तत मधि साल अंग ll 9 ll
त्रिगुण समीर त्यहां बहे सुंदर कालिंदीकूल l सुर सुरपति सुरअंगना डारत जयजय कहि फूल ll 10 ll
निरख निरख सचुपावही मनभये खगमृग व्रजवास l श्रीवल्लभ पदरज प्रतापबल गावत ‘विष्णुदास’ रसरास ll 11 ll 

साज - आज श्रीजी में आज सफ़ेद रंग की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया गया है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज के वस्त्रों में लाल एवं हरे रंगों का सुन्दर संयोजन होता है. आज श्रीजी को हरे रंग का सूथन एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. गुलाल की लाल चोली धरायी जाती है. रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित लाल कटि-पटका धराया जाता है जिसका एक छोर आगे व दूसरा बगल में होता है. 
लाल रंग के मोजाजी एवं पीले रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. चोली को गुलाल से ही खेलाया जाता है और अन्य सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं. 

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लाल रंग की हरी खिड़की वाली पाग के ऊपर सिरपैंच, लाल रंग का रेशम का जमाव (नागफणी) का कतरा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में त्रवल नहीं धराये जाते व कंठी धरायी जाती है. सफ़ेद एवं पीले पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में पुष्प की छड़ी, स्वर्ण के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का व गोटी फागुन की आती है

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं परन्तु गुलाल की चोली नहीं खोली जाती है. 
शयन समय श्रीमस्तक पर रुपहली लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.

Monday, 6 February 2023

व्रज – फाल्गुन कृष्ण द्वितीया

व्रज – फाल्गुन कृष्ण द्वितीया
Tuesday, 07 February 2023         

छप्पनभोग मनोरथ (बड़ा मनोरथ)

आज श्रीजी में श्रीजी में किन्हीं वैष्णव द्वारा आयोजित छप्पनभोग का मनोरथ होगा.
नियम (घर) का छप्पनभोग वर्ष में केवल एक बार मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को ही होता है. इसके अतिरिक्त विभिन्न खाली दिनों में वैष्णवों के अनुरोध पर श्री तिलकायत की आज्ञानुसार मनोरथी द्वारा छप्पनभोग मनोरथ आयोजित होते हैं. 
इस प्रकार के मनोरथ सभी वैष्णव मंदिरों एवं हवेलियों में होते हैं जिन्हें सामान्यतया ‘बड़ा मनोरथ’ कहा जाता है.
 
बड़ा मनोरथ के भाव से श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

आज दो समय की आरती थाली की आती हैं.

मणिकोठा, डोल-तिबारी, रतनचौक आदि में छप्पनभोग के भोग साजे जाते हैं अतः श्रीजी में मंगला के पश्चात सीधे राजभोग अथवा छप्पनभोग (भोग सरे पश्चात) के दर्शन ही खुलते हैं.
श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.
राजभोग की अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में मीठी सेव, केसरयुक्त पेठा व पाँच-भात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात) अरोगाये जाते हैं. 

छप्पनभोग दर्शन में प्रभु सम्मुख 25 बीड़ा सिकोरी (सोने का जालीदार पात्र) में रखे जाते है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

मदन गोपाल गोवर्धन पूजत l
बाजत ताल मृदंग शंखध्वनि मधुर मधुर मुरली कल कूजत ll 1 ll
कुंकुम तिलक लिलाट दिये नव वसन साज आई गोपीजन l
आसपास सुन्दरी कनक तन मध्य गोपाल बने मरकत मन ll 2 ll
आनंद मगन ग्वाल सब डोलत ही ही घुमरि धौरी बुलावत l
राते पीरे बने टिपारे मोहन अपनी धेनु खिलावत ll 3 ll
छिरकत हरद दूध दधि अक्षत देत असीस सकल लागत पग l
‘कुंभनदास’ प्रभु गोवर्धनधर गोकुल करो पिय राज अखिल युग ll 4 ll

साज – आज श्रीजी में आज सफ़ेद रंग की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया गया है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी लट्ठा का रुपहली ज़री की तुईलैस से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज फाल्गुन का वनमाला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर टिपारा का साज (केसरी टिपारा के ऊपर सिरपैंच, मोरशिखा, दोनों ओर मोरपंख के दोहरा कतरा सुनहरे फोन्दना के) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. दो माला अक्का जी की एवम् सफेद एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 

श्रीकर्ण में मीना के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
चोटीजी मीना की बायीं ओर धरायी जाती है.
कमल माला धरायी जाती हैं. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
लहरियाँ के वेणुजी और दो वेत्रजी(एक सोना का) धराये जाते हैं. पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है.

Sunday, 5 February 2023

व्रज – फाल्गुन कृष्ण प्रतिपदा

व्रज – फाल्गुन कृष्ण प्रतिपदा
Monday, 06 February 2023   

श्री गोकुल राजकुमार लाल रंग भीने हें ।
खेलत डोलत फाग सखा संग लीने हें  ।।१।।
चित्र विचित्र सुदेश सबे अनुकुले हें  ।
राजत रंग विरंग सरोजसे फुले हें ।।२।।
अेकनके कर कंठण जोरी जराय की ।
अेकनके पिचकाई सु हेम भराय की ।।३।।
अेसोई ध्यान सदा हरीको जीय जो रहे ।
तापे गदाधर याके भाग्यकी को रहे ।।४।।

श्वेत लट्ठा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर जमाव का क़तरा के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को आज प्रभु को श्वेत रंग के  लट्ठा के चाकदार वस्त्र पर धराये जाते है. श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर जमाव का क़तरा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : बिलावल)

वंदो मुनसाई नंदके जुवती झंडा केसें लेहोजु l ये सब सुंदरि घोखकि क्यों परिरंभन देहो ll 1 ll
फाल्गुन मास देत फगुआ अति क्रीड़ा रस खेलो l तनकी गति ओर भई बोली ढोली मेलो ll 2 ll
काहेको अकुलात हो मन को भायो करि हैं l हो भैया बलदेवको पृथक पृथक करि धरि है ll 3 ll
पांच सखी मिलि एक व्है बीच झंडा ले रोप्यो l फरहर रतिपति ऊपरे बहोत नगन जट ओप्यो ll 4 ll....अपूर्ण

साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत लट्ठा का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को फ़ागण का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
 गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, स्याम मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का एवं गोटी फागुन की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लूम तुर्रा रूपहरी आवे.

Saturday, 4 February 2023

व्रज – माघ शुक्ल पूर्णिमा

व्रज – माघ शुक्ल पूर्णिमा 
Sunday, 05 February 2023

चटकीली चोली पहेरें बीच बीच चोवा लपटानो ।
परम प्रिय लागत प्यारीको अपने प्रीतम को बानो ।।१।।
देखत शोभा अंगअंगकी मनसिज मन हिल जानो ।
सुधरराय प्रभु प्यारीकी छबि निरखत मोह्यो गोवर्धनरानो ।।२।।

होली डांडा रोपण (रोपणी को उत्सव)

विशेष – बसंत पंचमी से आज माघ शुक्ल पूर्णिमा तक के दिन बसंत के खेल के कहे जाते हैं. 
इन दस दिनों में प्रिया-प्रीतम को युगल स्वरुप के रूप में पधराकर शांत भाव से सूक्ष्म खेल किया जाता है. प्रकृति के सौन्दर्य के दर्शन का आनंद विशेष प्रकार से लिया जाता है जो कि बसंत के कीर्तनों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. 
श्यामसुंदर को मूर्तिमंत बसंत स्वरुप जान के भक्तजन इसका वर्णन कर प्रभु को रिझाते हैं. 

“देखो प्यारी कुंजविहारी मूरतिमंत वसंत l
मोर तरुन तरुलता तन में मनसिज रस वरसंत ll”

आज माघ शुक्ल पूर्णिमा को होली डांडा रोपण के पश्चात से दस दिन धमार खेल के होंगे. तत्पश्चात फाल्गुन कृष्ण एकादशी से आगामी दस दिन फाग के और फाल्गुन शुक्ल षष्ठी से अंतिम दस दिन होली के खेल होते हैं. 

इस प्रकार 40 दिनों की होली खेल की सेवा चार (बसंत, धमार, फाग एवं होली) रीतियों से की जाती हैं. होली खेल की लीला का स्वरुप ऐसा है कि जैसे-जैसे दिन व्यतीत होते जाते हैं, वैसे-वैसे होली के खेल में वृद्धि होती जाती है. 
बसंत का खेल नन्दभवन में, धमार का खेल पोल (पोरी) में, तीसरा फाग का खेल गली में और चौथा होली का खेल गाँव के बाहर के चौक में खेला जाता है.

श्रीजी में आज रोपणी का उत्सव है अर्थात आज होली डांडा रोपण किया जाता है. 
व्रज में प्राचीन परम्परानुसार होली-डांडा रोपण होली के एक मास पूर्व आज पूर्णिमा के दिन गाँव के चौक अथवा गाँव के बाहर किया जाता है. 
यमुना पुलिन, गिरिराज जी, वृन्दावन, कुंज-निकुंजों आदि में डांडा रोपण किया जाता है. 

इसके पीछे यह भावना है कि व्रजभक्तों को सुख-दान हेतु प्रभु रसक्रीड़ा करते हैं तब एक मास तक निर्विध्न सब खेल हों इसके लिए ब्राह्मण स्वस्तिवाचन, मंत्रोच्चार एवं वेद-ध्वनि कर डांडा रोपण करते हैं. 
डांडा के ऊपर लाल रंग की ध्वजा फहरायी जाती है जो कि हार-जीत की प्रतीक है अर्थात योगी प्रभु श्रीकृष्ण को अपने वश में करने आये कामदेव की चुनौती प्रभु ने स्वीकार कर ली है. 
नंदरायजी, वृषभानजी, बड़े गोप, यशोदाजी, गोपी-ग्वाल, गोपाल, बलदेव आदि सभी दंडवत प्रणाम कर धमार का प्रारंभ करते हैं.

आज शाम 6.18 सूर्यास्त पश्चात नाथद्वारा नगर में स्थित होली-मगरा पर होली-डांडा रोपण किया जायेगा. 

इस वर्ष मुहुर्तानुसार होलिका दहन फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा (07 मार्च 2023) सुबह को 6.54 सूर्योदय के पूर्व होगा.

आज श्रीजी के मुख्य पंड्याजी, खर्च-भंडारी, घी-घरिया, श्रीनाथ गार्ड्स, श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के कीर्तनिया आदि कीर्तन गाते हुए सूर्यास्त के पश्चात श्रीजी मंदिर से होली-मगरा जाकर मंत्रोच्चार और कीर्तन की मधुर ध्वनि के बीच पूजन कर व भोग धरकर होरी-डांडा रोपण करते हैं. 
कल से प्रतिदिन डांडा के चारों ओर कांटे की ढेरियाँ डाल कर होली तैयार की जाएगी. नाथद्वारा नगर में सबसे ऊँची और बड़ी होली श्रीजी की ही होती है.

आज से प्रतिदिन राजभोग दर्शन में प्रभु के मुखारविंद (कपोल) पर गुलाल लगायी जाती है.

आज से श्रीजी में गुलाल की फेंट (पोटली) भरी जाती है, पुष्प की छड़ी एवं गुलाल पिचकारी धरी जाती है, गुलाल-अबीर का खेल भारी होता जाता है, होली की गालियाँ भी गायीं जाती है और झांझ, मृदंग, ढप बांसुरी आदि वाध्य बजाये जाते हैं. 

आज का उत्सव श्री यमुनाजी की सेवा के दस दिन की पूर्णता का उत्सव है. फाल्गुन कृष्ण प्रतिपदा से दस दिन धमार के दिन कहे जाते हैं और ये श्री चन्द्रावलीजी की सेवा के दिवस हैं. 

श्रीजी में बसंत पंचमी से केवल वसंत राग के पद गाये जाते हैं जबकि होली-डांडा रोपण के पश्चात धमार का प्रारंभ हो जायेगा अर्थात आज से अन्य राग के पद भी गाये जा सकेंगे. धमार एक विशिष्ट ताल होती है और आज से दस दिनों तक इस ताल के पद भी गाये जायेंगे. आज से डोलोत्सव तक मान के पद नहीं गाये जाते हैं.

आज से एक मास तक श्रीजी को कुल्हे का श्रृंगार नहीं धराया जाता क्योंकि कुल्हे का श्रृंगार बाल-भाव का श्रृंगार माना जाता है और होली-खेल की लीला किशोर-भावना की है अतः सेहरा, मुकुट, टिपारा आदि के श्रृंगार धराये जाते हैं. घेरदार वागा अधिक धराये जाते हैं और श्रीमस्तक पर मोरचन्द्रिका के बदले कतरा, मोरशिखा, गोल-चंद्रिका, चमक की चंद्रिका आदि धराये जाते हैं.

सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है और आरती दो समां में थाली में की जाती है. राजभोग में 6 बीड़ा की शिकोरी(स्वर्ण का जालीदार पात्र) आवे.

मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है. 
आज प्रभु को नियम के श्वेत घेरदार वस्त्रों के ऊपर चोवा की चोली धरायी जाती है. श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की पाग के ऊपर मोरपंख का दोहरा कतरा धराया जाता है.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में सिकोरी (मूंग की दाल, इलायची व मावे के मीठे मसाले से भरी तवापूड़ी जैसी सामग्री) व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग अरोगाया जाता है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है एवं सखड़ी में केसरी पेठा एवं मीठी सेव आरोगाये जाते हैं.
भोग में फीका की जगह चालनी अरोगायी जाती हैं

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : वसंत)

लालन संग खेलन फाग चली l
चोवा चन्दन अगर कुंकुमा छिरकत गोख गली ll 1 ll
ऋतु वसंत आगम नव नागरी जोबन भार भरी l
देखत चली लाल गिरिधरको नंदजुके द्वार खरी ll 2 ll
रातीपीरी चोली पहेरें नौतन झुमक सारी l
मुखहि तंबोल नेनमें काजर देत भामती गारी ll 3 ll
बाजत ताल मृदंग बांसुरी गावत गीत सुहाये l
नवल गुपाल नवल व्रजवनिता निकसि चोहटे आये ll 4 ll
देखो आई कृष्णजुकीलीला विहरत गोकुल माहीं l
कहत न बने दास ‘परमानंद’ यह सुख अनतजु नाहीं ll 5 ll

साज - आज श्रीजी में आज सफ़ेद रंग की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया गया है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को सफ़ेद रेशम का सूथन, चोवा की श्याम चोली एवं सफ़ेद घेरदार वागा धराये जाते हैं. सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सफ़ेद मोठड़ा का कटि-पटका ऊर्ध्वभुजा की ओर धराया जाता है. मेघश्याम रंग के मोजाजी एवं लाल रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर श्वेत स्याम खिड़की की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी फ़ोन्दना का दोहरा मोरपंख का कतरा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में चार कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज चार माला तायत वाली धरायी जाती हैं. आज त्रवल नहीं धराया जाता हैं कंठी धरायी जाती हैं.
 लाल एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में पुष्प की छड़ी, स्वर्ण के बटदार वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
 पट चीड़ का एवं गोटी चाँदी की आती हैं.
आरसी बड़ी डाँडी की दिखाई जाती हैं.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.

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