By Vaishnav, For Vaishnav

Wednesday, 31 January 2024

व्रज – माघ कृष्ण षष्ठी

व्रज – माघ कृष्ण षष्ठी 
Thursday, 01 February 2024

फ़िरोज़ी बड़े बूटा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर सीधी चंद्रिका के शृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को फ़िरोज़ी साटन के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर जमाव का क़तरा का शृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

जाको मन लाग्यो गोपाल सों ताहि ओर कैसें भावे हो ।
 लेकर मीन दूधमे राखो जल बिन सचु नहीं पावे हो ।।१।।
ज्यो सुरा रण घूमि चलत है पीर न काहू जनावे हो ।
ज्यो गूंगो गुर खाय रहत है सुख स्वाद नहि बतावे हो ।।२।।
जैसे सरिता मिली सिंधुमे ऊलट प्रवाह न आवे हो । 
तैसे सूर  कमलमुख निरखत चित्त ईत ऊत न डुलावे हो ।।३।।

साज – श्रीजी में आज फ़िरोज़ी रंग की साटन (Satin) की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज बड़े बूटा के रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र स्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.स्याम मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर फ़िरोज़ी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, नागफणी (जमाव) का कतरा तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में २ जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में कमल माला एवं श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में गुलाबी मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी(एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट फ़िरोज़ी व गोटी चाँदी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Tuesday, 30 January 2024

व्रज – माघ कृष्ण पंचमी

व्रज – माघ कृष्ण  पंचमी 
Wednesday, 31 January 2024

बसंत-पंचमी का प्रतिनिधि का श्रृंगार

वसंत ऋतु आई फूलन फूले सब मिल गावोरी बधाई l
कामनृपति रतिपति आवत है चहुर्दिश कामिनी भोंह सों चोंप चढ़ाई ll

विशेष – आज बसंत-पंचमी का प्रतिनिधि का श्रृंगार धराया जाता है. सभी बड़े उत्सवों के पहले उस श्रृंगार का प्रतिनिधि का श्रृंगार धराया जाता है.

विक्रमाब्द १९७०-७१ में तत्कालीन परचारक श्री दामोदरलालजी ने प्रभु प्रीति के कारण अपने पिता और तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी से विनती कर इस श्रृंगार की आज्ञा ली और यह प्रतिनिधि का श्रृंगार धराया था. 

वस्त्र आदि इस रीती के धराये गये कि जैसे बसंतपंचमी आ गयी हो और प्रभु बसंत की गुलाल खेलें हों.
तदुपरांत यह श्रृंगार प्रतिवर्ष धराया जाता है.

बसंत के पूर्व श्रीजी में गुलाल वर्जित होती है अतः पिछवाई एवं वस्त्रों लाल रंग के वस्त्रों को काट कर ऐसा सुन्दर भरतकाम किया गया है जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि प्रभु ने गुलाल खेली हो.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : पंचम/मालकौंस)

बोलत श्याम मनोहर बैठे कदंबखंड और कदम की छैंया l
कुसुमित द्रुम अलि गुंजत सखी कोकिला कलकुजत तहियां ll 1 ll
सुनत दुतिका के वचन माधुरी भयो है हुलास जाके मन महियां l
‘कुंभनदास’ व्रजकुंवरि मिलन चली रसिककुंवर गिरिधरन पैयां ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में बसंतपंचमी का प्रतिनिधि का श्रृंगार धराया जाता है अतः साज एवं वस्त्रादि सभी अबीर, गुलाल एवं चौवा से खेले हों ऐसा भरतकाम (Work) किया गया होता है. सफ़ेद रंग की पिछवाई में लाल रंग के वस्त्रों को काटकर गुलाल की चिड़ियों के भरतकाम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को सफ़ेद साटन का पीली, लाल, केसरी एवं श्याम रंग की टिपकियों के भरतकाम (Work) वाला सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं जिसमें रंगीन टिपकियों का भरतकाम (Work) किया गया है. 
पटका श्वेत मोठड़ा का व मोजाजी मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी में मध्य का (घुटने से दो अंगुल नीचे तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा, पन्ना, माणक, मोती व स्वर्ण के मिलवा सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की लाल एवं श्याम रंग की टिपकियों के भरतकाम (Work) वाली छज्जेदार पाग पर पट्टीदार सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में माणक के चार कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत एवं पीले पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में स्वर्ण के बंटदार वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
आरसी बड़ी डांडी की, पट चीड़ का व गोटी चाँदी की आती है.
आज के दिन वस्त्र के छोगा, छड़ी भी आते हैं.

Monday, 29 January 2024

व्रज – माघ कृष्ण चतुर्थी (द्वितीय)

व्रज – माघ कृष्ण चतुर्थी (द्वितीय)
Tuesday, 30 January 2024

गुलाबी साटन के घेरदार वागा पर स्याम रंग की ज़री की फतवी एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका के शृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को गुलाबी साटन का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा पर स्याम रंग की ज़री की फतवी (आधुनिक जैकेट जैसी पौशाक) एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आशावरी)

व्रज के खरिक वन आछे बड्डे बगर l
नवतरुनि नवरुलित मंडित अगनित सुरभी हूँक डगर ll 1 ll
जहा तहां दधिमंथन घरमके प्रमुदित माखनचोर लंगर l
मागधसुत वदत बंदीजन जस राजत सुरपुर नगरी नगर ll 2 ll
दिन मंगल दीनि बंदनमाला भवन सुवासित धूप अगर l
कौन गिने ‘हरिदास’ कुंवर गुन मसि सागर अरु अवनी कगर ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में शीतकाल की लाल रंग की सुनहरी ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी साटन का रूपहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, घेरदार वागा, चोली एवं स्याम रंग पर ज़री की फतवी (Jacket) धरायी जाती है. सुनहरी रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फ़िरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज फ़तवी धराए जाने से त्रवल, कटिपेच बाजु एवं पोची नहीं धरायी जाती हैं. आज प्रभु को श्रीकंठ में हीरा की कंठी धराई जाती हैं.
 श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्तं में चाँदी के एक वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गुलाबी एवं गोटी चाँदी की आती हैं.

Sunday, 28 January 2024

व्रज – माघ कृष्ण चतुर्थी (प्रथम)

व्रज – माघ कृष्ण चतुर्थी (प्रथम)
Monday, 29 January 2024

दोहरा वस्त्र के शृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को मेघस्याम रंग के दरियाई का सूथन एवं मेघस्याम रंग के दरियाई पर केसरी रंग का हांसिया का तीन कोनो वाला चोली एवं चाकदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर फेटा का साज का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आशावरी)

व्रज के खरिक वन आछे बड्डे बगर l
नवतरुनि नवरुलित मंडित अगनित सुरभी हूँक डगर ll 1 ll
जहा तहां दधिमंथन घरमके प्रमुदित माखनचोर लंगर l
मागधसुत वदत बंदीजन जस राजत सुरपुर नगरी नगर ll 2 ll
दिन मंगल दीनि बंदनमाला भवन सुवासित धूप अगर l
कौन गिने ‘हरिदास’ कुंवर गुन मसि सागर अरु अवनी कगर ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की मेघस्याम हाशिया की पिछवाई धरायी जाती है गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को मेघस्याम रंग के दरियाई पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन एवं मेघस्याम रंग के दरियाई पर केसरी रंग का हांसिया का तीन कोनो वाले चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. मोज़ाजी केसरी रंग के धराये जाते है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर फेंटा का साज धराया जाता है. मेघस्याम रंग के केसरी खिड़की वाले फेंटा के ऊपर सिरपैंच, केसरी व मेघस्याम रंग की रेशम की बीच की चंद्रिका, दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मोती की लोलकबंदी-लड़वाले कर्णफूल धराये जाते हैं. 
कमल माला धरावे.
स्वेत एवम् पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, स्वर्ण के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट केसरी एवं गोटी चाँदी की बाघ बकरी की धरायी जाती हैं.

Friday, 26 January 2024

व्रज – माघ कृष्ण द्वितीया

व्रज – माघ कृष्ण द्वितीया
Saturday, 27 January 2024

मोरको शिर मुकुट दीये मोर ही की माला ।
दुल्हीनसि राधाजु दुल्हे नंदलाला ।।१।।
वचन रचन चारु हास गावत व्रजबाला ।
धोंधी के प्रभु राजत है मंडप गोपाला ।।२।।

शीतकाल के सेहरा का चतुर्थ शृंगार

शीतकाल में श्रीजी को चार बार सेहरा धराया जाता है. इनको धराये जाने का दिन निश्चित नहीं है परन्तु शीतकाल में जब भी सेहरा धराया जाता है तो प्रभु को मीठी द्वादशी आरोगाई जाती हैं. आज प्रभु को गुड़ की मीठी लापसी (द्वादशी) आरोगाई जाती हैं.

आज श्रीजी को लाल रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली चाकदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : जेतश्री)

अति रंग लाग्यो बनाबनी ।
दोऊजन अनुरागे पागे रजनी जुवती ज़ूथ चारु चितवनी ।।१।।
वृंदावन नित धाय रसिकवर तब गुनागुनी ।
मदनमोहन चिरजीयो दोऊ दुल्हे और दुल्हनी ।।२।।

साज – श्रीजी में आज लाल रंग के आधारवस्त्र (Base Fabric) पर विवाह के मंडप की ज़री के ज़रदोज़ी के काम (Work) से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है जिसके हाशिया में फूलपत्ती का क़सीदे का काम एवं जिसके एक तरफ़ श्रीस्वामिनीजी विवाह के सेहरा के शृंगार में एवं दूसरी तरफ़ श्रीयमुनाजी विराजमान हैं और गोपियाँ विवाह के मंगल गीत का गान साज सहित  कर रही हैं. गादी, तकिया पर लाल रंग की एवं चरणचौकी पर सफ़ेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग का साटन का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं एवं केसरी मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. लाल ज़री के मोजाजी भी धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल रंग के दुमाला के ऊपर हीरा पन्ना व माणक का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. सेहरा पर मीना की चोटी दायीं ओर धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला धरायी जाती है. 
लाल एवं पीले पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक मीना के) धराये जाते हैं. 
पट लाल एवं गोटी उत्सव की आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के शृंगार सेहरा एवं श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं.अनोसर में दुमाला बड़ा करके छज्जेदार पाग धरायी जाती हैं.

Thursday, 25 January 2024

व्रज – माघ कृष्ण प्रतिपदा

व्रज – माघ कृष्ण  प्रतिपदा 
Friday, 26 January 2024

हरे साटन के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर क़तरा या चंद्रिका के शृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को हरे साटन का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर क़तरा या चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आशावरी/तोड़ी) 
माईरी लालन आये आयेरी मया कर तन मन धन सब वारो।
 हों बलिगई सखी आजकी आवनी पर पलकसों मग झारो।।१।।
 अति सुकुमार कोमल पद कारण सखीरी कंकर गुन सब तारो।
नन्ददास प्रभु नंदनंदन सों ऐसी प्रीति नित धारो।।२।।

साज – श्रीजी में आज हरे रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज हरे रंग की साटन (Satin) का सूथन, चोली, घेरदार वागा तथा मोजाजी धराये जाते हैं. घेरदार वागा, लाल किनारी से सुसज्जित होते हैं. मोजाजी भी लाल फून्दों से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग  के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) चार माल का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर हरे रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, कतरा या चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में गुलाबी मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धरायी जाती हैं.   
पट हरा एवं गोटी चाँदी की आती है.

Wednesday, 24 January 2024

व्रज – पौष शुक्ल पूर्णिमा

व्रज – पौष शुक्ल पूर्णिमा
Thursday, 25 January 2024

अरी में रतन जतन करि पायो ।
ऊधरे भाग आज सखी मेरे रसिक सिरोमनि आयो ।।१।।
आवतही उठ के दे आदर आगे ढिंग बैठायो ।
मुख चुंबन दे अधर पान कर भेट सकल अंग लायो ।।२।।
अद्भुत रूप अनूप श्यामको निरखत नैन सिरायो ।
निसदिन यही अपने ठाकुर को रसिक गुढ जश गायो ।।३।।

श्वेत साटन के चागदार वागा लाल गाती का पटका एवं श्रीमस्तक पर जड़ाऊ कूल्हे और मुकुट का पान के शृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को श्वेत साटन का सूथन, चोली एवं चागदार वागा और गुलाबी गाती का पटका का एवं श्रीमस्तक पर जड़ाऊ कूल्हे और मुकुट का पान श्रृंगार धराया जायेगा.

विशेष – वर्षभर में बारह पूर्णिमा होती है जिनमें से आज के अतिरिक्त सभी ग्यारह पूर्णिमाओं को नियम के श्रृंगार धराये जाते हैं अर्थात केवल आज की ही पूर्णिमा का श्रृंगार ऐच्छिक है.

आज प्रभु को किरीट धराया जायेगा जिसे खोंप अथवा पान भी कहा जाता है. किरीट दिखने में मुकुट जैसा ही होता है परन्तु मुकुट एवं किरीट में कुछ अंतर होते हैं :

- मुकुट अकार में किरीट की तुलना में बड़ा होता है.
- मुकुट अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में नहीं धराया जाता अतः इस कारण देव-प्रबोधिनी से डोलोत्सव तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक नहीं धराया जाता परन्तु इन दिनों में किरीट धराया जा सकता है.
- मुकुट धराया जावे तब वस्त्र में काछनी ही धरायी जाती है परन्तु किरीट के साथ चाकदार अथवा घेरदार वागा धराये जा सकते हैं.
- मुकुट धराया जावे तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत जामदानी (चिकन) के धराये जाते है परन्तु किरीट धराया जावे तब किसी भी अनुकूल रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जा सकते हैं.
- मुकुट सदैव मुकुट की टोपी पर धराया जाता है परन्तु किरीट को कुल्हे एवं अन्य श्रीमस्तक के श्रृंगारों के साथ धराया जा सकता है.

कीर्तन – (राग : आसावरी)

नवल किशोर में जु बन पाये l
नव घनश्याम फले वा वैभव देखत नयन चटपटी लाये ll 1 ll
धातु विचित्र काछनी कटितट ता महीं पीत वसन लपटाये l
माथे मोर मुकुट रचि बहु विधि ऊर गुंजामनि हार बनाये ll 2 ll
तिलक लिलाट नासिका बेसरी मुख गुन कहत सुनाए l
‘चत्रभुज’ प्रभु गिरिधर तनमन लियो चोरी मंद मुसकाए ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज लाल रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को सफ़ेद साटन के  का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं सफ़ेद रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. लाल रंग का गाती का रुमाल (पटका) धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर जड़ाऊ कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, जड़ाव का छोटा पान के ऊपर किरीट का बड़ा जड़ाव पान (खोंप) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी एवं कमल माला धरायी जाती हैं. पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर थागवाली मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में भाभीजी वाले  वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट श्वेत एवं गोटी मीना की आती हैं.

Tuesday, 23 January 2024

व्रज – पौष शुक्ल चतुर्दशी

व्रज – पौष शुक्ल चतुर्दशी
Wednesday, 24 January 2024

कहो तुम सांचि कहांते आये भोर भये नंदलाल ।
पीक कपोलन लाग रही है घूमत नयन विशाल ।।१।।
लटपटी पाग अटपटी बंदसो ऊर सोहे मरगजी माल ।
कृष्णदास प्रभु रसबस कर लीने धन्य धन्य व्रजकी लाल ।।२।।

नवम (पतंगी) घटा

आज श्रीजी में पतंगी (गहरे गुलाबी) घटा के दर्शन होंगे. इसका क्रम नियत नहीं है और खाली दिन होने के कारण आज ली जा रही है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

आजु नीको जम्यो राग आसावरी l
मदन गोपाल बेनु नीको बाजे नाद सुनत भई बावरी ll 1 ll
कमल नयन सुंदर व्रजनायक सब गुन-निपुन कियौ है रावरी l
सरिता थकित ठगे मृग पंछी खेवट चकित चलति नहीं नावरी ll 2 ll
बछरा खीर पिबत थन छांड्यो दंतनि तृन खंडति नहीं गाव री l
‘परमानंद’ प्रभु परम विनोदी ईहै मुरली-रसको प्रभाव री ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज पतंगी रंग की दरियाई की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर पतंगी बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को पतंगी रंग का दरियाई  का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी पतंगी रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर पतंगी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, चमकना रूपहरी कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीमस्तक पर अलख धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
सभी समाँ में गुलाब के पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. आज पचलड़ा एवं हीरा का हार धराया जाता है. श्रीहस्त में चांदी के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट पतंगी व गोटी चांदी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर हल्के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर रुपहली लूम तुर्रा धराये जाते हैं.

Monday, 22 January 2024

व्रज – पौष शुक्ल त्रयोदशी

व्रज – पौष शुक्ल त्रयोदशी
Tuesday, 23 January 2024

पतंगी रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की किनारी के फूलों से सुसज्जित सूथन, चोली घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर क़तरा के शृंगार

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आशावरी)

माई मेरो श्याम लग्यो संग डोले l
जहीं जहीं जाऊं तहीं सुनी सजनी बिनाहि बुलाये बोले ll 1 ll
कहा करो ये लोभी नैना बस कीने बिन मोले l
‘हित हरिवंश’ जानि हितकी गति हसि घुंघटपट खोले ll 2 ll 

साज – आज श्रीजी में गुलाबी रंग ज़री की शीतकाल की हरे रंग के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को पतंगी रंग का सुनहरी ज़री के पुष्पकाम के वस्त्र का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र स्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फ़िरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते है.

श्रीमस्तक पर पतंगी गोलपाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
 लाल रंग एवं श्वेत रंग के पुष्पों की दो अत्यंत सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

 श्रीहस्तं में हरे मीना के एक वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट पतंगी एवं गोटी मीना की आती हैं.

Sunday, 21 January 2024

व्रज – पौष शुक्ल द्वादशी

व्रज – पौष शुक्ल द्वादशी
Monday, 22 January 2024

भोग श्रृंगार यशोदा मैया श्री बिटठ्लनाथ के हाथ को भावे ।
नीके न्हवाय श्रृंगार करतहे आछी रूचिसो मोहि पाग बॅधावे ।।१।।
ताते सदाहो उहाहि रहत हो तू डर माखन दुध छिपावे ।
छीतस्वामी गिरिधरन श्री बिटठ्ल निरख नयना त्रैताप नसावे ।।२।।

शीतकाल की चतुर्थ चौकी के वस्त्र श्रृंगार निश्चित हैं. आज प्रभु को श्याम खीनखाब के चाकदार वस्त्र एवं श्रीमस्तक पर जड़ाव के ग्वाल-पगा के ऊपर सादी मोर चंद्रिका का विशिष्ट श्रृंगार धराया जाता है. 

सामान्यतया श्रीमस्तक पर मोरपंख की सादी चंद्रिका धरें तब कर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं और छोटा (कमर तक) अथवा मध्य का (घुटनों तक) श्रृंगार धराया जाता है. 
आज के श्रृंगार की विशिष्टता यह है कि वर्ष में केवल आज मोर-चंद्रिका के साथ मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं और वनमाला का (चरणारविन्द तक) श्रृंगार धराया जाता है.

आज श्रीजी को विशेष रूप से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में तवापूड़ी अरोगायी जाती है.

श्रीजी में पांचवी और अंतिम चौकी आगामी बसंत पंचमी के एक दिन पूर्व अर्थात माघ शुक्ल चतुर्थी को गुड़कल की अरोगायी जाएगी.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

गोवर्धन की शिखर सांवरो बोलत धौरी धेनु l
पीत बसन सिर मोर के चंदोवा धरि मोहन मुख बेनु ll 1 ll
बनजु जात नवचित्र किये अंग ग्वालबाल संग सेनु l
‘कृष्णदास’ बलि बलि यह लीला पीवत धैया मथमथ फेनु ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में श्याम रंग की खीनखाब की बड़े बूटा की पिछवाई धरायी जाती है जो कि लाल रंग की खीनखाब की किनारी के हांशिया से सुसज्जित है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्याम रंग की खीनखाब का सूथन, चोली, चाकदार वागा लाल रंग का पटका एवं टकमां हीरा के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा, मोती तथा जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर हीरा एवं माणक का जड़ाऊ ग्वाल पगा के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
त्रवल नहीं धराया जाता हैं.हीरा की बघ्घी धरायी जाती हैं.
एक कली की माला धरायी जाती हैं.
 सफेद एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में विट्ठलेशजी  के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट काशी का व गोटी कूदती हुई बाघ-बकरी की आती है.
आरसी शृंगार में पीले खंड की एवं राजभोग में सोने की दिखाई जाती हैं.

Saturday, 20 January 2024

व्रज – पौष शुक्ल एकादशी

व्रज – पौष शुक्ल एकादशी
Sunday, 21 January 2024

रसिकनी रसमे रहत गढी ।
कनकवेली व्रुषभानुं नंदिनी श्याम तमाल चढी ।।१।।
बिहरत श्री गिरिधरनलाल संग कोने पाठ पढी ।
कुंभनदास प्रभु गोवर्धनधर रति-रस केलि बढी ।।२।।

पुत्रदा एकादशी, श्रीजी में रस मंडान
त्रिकुटी के बागा को श्रृंगार 

विशेष - आज पुत्रदा एकादशी है. आज श्रीजी में शाकघर का रस-मंडान होता है. रस-मंडान के दिन श्रीजी को संध्या-आरती में शाकघर में सिद्ध 108 स्वर्ण व रजत के पात्रों में गन्ने का रस अरोगाया जाता है. 
इस रस की विशेषता है कि इस रस में विशेष रूप से कस्तूरी भी मिलायी जाती है. 
आज प्रभु को संध्या-आरती दर्शन में चून (गेहूं के आटे) का सीरा का डबरा भी अरोगाया जाता है जिसमें गन्ने का रस मिश्रित होता है.

प्रभु के समक्ष उपरोक्त ‘रसिकनी रसमें रहत गढ़ी’ सुन्दर कीर्तन गाया जाता है. 

राजभोग दर्शन –

साज – आज श्रीजी में शीतकाल की  सुन्दर कलात्मक पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को अमरसी रंग के साटन के तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार (त्रिकुटी के) वागा धराये जाते हैं. पतंगी तथा सुनहरी ज़री का गाती का त्रिखुना पटका धराया जाता है. सुनहरी ज़री के मोजाजी एवं ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर पन्ना का त्रिखुना टीपारा का साज़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
आज चोटीजी नहीं आती हैं.
श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला माला धरायी जाती है. गुलाब के पुष्पों की एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
 श्रीहस्त में लहरियाँ के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट अमरसी एवं गोटी बाघ बकरी की आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर हल्के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक टिपारा का साज बड़ा कर के छज्जेदार पाग धरा कर  रुपहली लूम तुर्रा धराये जाते हैं.

Friday, 19 January 2024

व्रज – पौष शुक्ल दशमी

व्रज – पौष शुक्ल दशमी
Saturday, 20 January 2024

कोयली साटन के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर स्वर्ण की गोल पाग और गोल चंद्रिका के शृंगार

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आशावरी)

व्रज के खरिक वन आछे बड्डे बगर l
नवतरुनि नवरुलित मंडित अगनित सुरभी हूँक डगर ll 1 ll
जहा तहां दधिमंथन घरमके प्रमुदित माखनचोर लंगर l
मागधसुत वदत बंदीजन जस राजत सुरपुर नगरी नगर ll 2 ll
दिन मंगल दीनि बंदनमाला भवन सुवासित धूप अगर l
कौन गिने ‘हरिदास’ कुंवर गुन मसि सागर अरु अवनी कगर ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में कोयली रंग की शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को कोयली साटन का सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, घेरदार वागा एवं चोली धरायी जाती है. सुनहरी एवं रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर स्वर्ण की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की चार सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्तं में स्वर्ण के एक वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट कोयली एवं गोटी सोना की चिड़िया की आती हैं.

Thursday, 18 January 2024

व्रज – पौष शुक्ल नवमी

व्रज – पौष शुक्ल नवमी
Friday, 19 January 2024

जुगल वर आवत है गठजोरें ।
संग शोभित वृषभान नंदिनी ललितादिक तृण तोरे ।।१।।
शीश सेहरो बन्यो लालकें, निरख हरख चितचोरे ।
निरख निरख बलजाय गदाधर छबि न बढी कछु थोरे ।।२।।

शीतकाल के सेहरा का तृतीय शृंगार

शीतकाल में श्रीजी को चार बार सेहरा धराया जाता है. इनको धराये जाने का दिन निश्चित नहीं है परन्तु शीतकाल में जब भी सेहरा धराया जाता है तो प्रभु को मीठी द्वादशी आरोगाई जाती हैं. आज प्रभु को खांड़ के रस की मीठी लापसी (द्वादशी) आरोगाई जाती हैं.

आज श्रीजी को केसरी रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली चाकदार वागा पर फ़िरोज़ा के सेहरा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

मोरको सिर मुकुट बन्यो मोर ही की माला l
दुलहनसि राधाजु दुल्हे हो नंदलाला ll 1 ll
बचन रचन चार हसि गावत व्रजबाला l
घोंघी के प्रभु राजत हें मंडप गोपाला ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज लाल रंग के आधारवस्त्र (Base Fabric) पर विवाह के मंडप की ज़री के ज़रदोज़ी के काम (Work) से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है जिसके हाशिया में फूलपत्ती का क़सीदे का काम एवं जिसके एक तरफ़ श्रीस्वामिनीजी विवाह के सेहरा के शृंगार में एवं दूसरी तरफ़ श्रीयमुनाजी विराजमान हैं और गोपियाँ विवाह के मंगल गीत का गान साज सहित  कर रही हैं. गादी, तकिया पर लाल रंग की एवं चरणचौकी पर सफ़ेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग का साटन का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं एवं केसरी मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. लाल ज़री के मोजाजी भी धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर केसरी रंग के दुमाला के ऊपर फ़िरोज़ा का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. सेहरा पर मीना की चोटी दायीं ओर धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला माला धरायी जाती है. 
लाल एवं पीले पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, झीने लहरिया के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक मीना के) धराये जाते हैं. 
पट केसरी एवं गोटी राग रंग की आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के शृंगार सेहरा एवं श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं.अनोसर में दुमाला बड़ा करके छज्जेदार पाग धरायी जाती हैं.

Wednesday, 17 January 2024

व्रज – पौष शुक्ल अष्टमी

व्रज – पौष शुक्ल अष्टमी
Thursday, 18 January 2024

फूल गुलाबी साज अति शोभित तापर राजत बालकृष्ण बिहारी ।
फ़ेंटा गुलाबी पिछोरा रह्यो फबि फूल गुलाबी रंग अति भारी ।।१।।
वाम भाग वृषभाननंदनी पहेरे गुलाबी कंचुकी सारी ।
फूल गुलाबी हस्तकमलमें छबि पर कुंभनदास बलिहारी ।।२।।

अष्टम (गुलाबी) घटा

आज श्रीजी में गुलाबी घटा के दर्शन होंगे.

यह घटा निश्चित है पर इसका दिन व क्रम ऐच्छिक है और इस वर्ष आठवें क्रम पर ली गयी है.

श्रीजी में शीतकाल में विविध रंगों की घटाओं के दर्शन होते हैं. घटा के दिन सर्व वस्त्र, साज आदि एक ही रंग के होते हैं. आकाश में वर्षाऋतु में विविध रंगों के बादलों के गहराने से जिस प्रकार घटा बनती है उसी भाव से श्रीजी में मार्गशीर्ष व पौष मास में विविध रंगों की द्वादश घटाएँ द्वादश कुंज के भाव से होती हैं. 

कई वर्षों पहले चारों यूथाधिपतिओं के भाव से चार घटाएँ होती थी परन्तु गौस्वामी वंश परंपरा के सभी तिलकायतों ने अपने-अपने समय में प्रभु के सुख एवं वैभव वृद्धि हेतु विभिन्न मनोरथ किये. इसी परंपरा को कायम रखते हुए नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज ने निकुंजनायक प्रभु के सुख और आनंद हेतु सभी द्वादश कुंजों के भाव से आठ घटाएँ बढ़ाकर कुल बारह (द्वादश) घटाएँ (दूज का चंदा सहित) कर दी जो कि आज भी चल रही हैं. 

इनमें कुछ घटाएँ (हरी, श्याम, लाल, अमरसी, रुपहली व बैंगनी) नियत दिनों पर एवं अन्य कुछ (गुलाबी, पतंगी, फ़िरोज़ी, पीली और सुनहरी घटा) ऐच्छिक है जो बसंत-पंचमी से पूर्व खाली दिनों में ली जाती हैं. 

ये द्वादश कुंज इस प्रकार है –
अरुण कुंज, हरित कुंज, हेम कुंज, पूर्णेन्दु कुंज, श्याम कुंज, कदम्ब कुंज, सिताम्बु कुंज, वसंत कुंज, माधवी कुंज, कमल कुंज, चंपा कुंज और नीलकमल कुंज.
जिस रंग की घटा हो उसी रंग के कुंज की भावना होती है. इसी श्रृंखला में आज कमल कुंज की भावना से श्रीजी में गुलाबी घटा होगी. साज, वस्त्र आदि सभी गुलाबी रंग के होते हैं. सर्व आभरण गुलाबी मीना एवं स्वर्ण के धराये जाते हैं. 

सभी घटाओं में राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में काफ़ी जल्दी हो जाता है. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन 

आज शृंगार निरख श्यामा को नीको बन्यो श्याम मन भावत ।
यह छबि तनहि लखायो चाहत कर गहि के मुखचंद्र दिखावत ।।१।।
मुख जोरें प्रतिबिम्ब विराजत निरख निरख मन में मुस्कावत ।
चतुर्भुज प्रभु गिरिधर श्री राधा अरस परस दोऊ रीझि रिझावत ।।२।।

साज – श्रीजी में आज गुलाबी दरियाई वस्त्र की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर गुलाबी बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी दरियाई वस्त्र का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी गुलाबी धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर गुलाबी गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, गुलाबी रेशम के दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में गुलाबी मीना का  कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज दो दुलड़ा धराये जाते हैं.
 श्रीकंठ में चार माला धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में गुलाबी मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गुलाबी व गोटी चाँदी की आती है.

संध्या-आरती उपरान्त प्रभु के श्रीकंठ व श्रीमस्तक के आभरण बड़े कर शयन समय छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रुपहरी धराये जाते हैं. इन दिनों शयन दर्शन बाहर नहीं खोले जाते. 

Tuesday, 16 January 2024

व्रज – पौष शुक्ल सप्तमी

व्रज – पौष शुक्ल सप्तमी
Wednesday, 17 January 2024

हरे छिट के साटन के चागदार वागा एवं श्रीमस्तक पर टीपारा का साज के शृंगार

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : तोड़ी)

सोने की मटुकिया, जराव की इंडुरिया, श्याम प्रेम भरी भूल गयी गोरस।। 
प्रीतम को नाम ले ले, कहेत लेओरी कोऊ, ब्रजमें डोलत बोलत है चहुँओ रस || १|| 
चलो श्याम सुन्दर एकांत दधि खाइए, न जात तजे वाको रस।। 
“तानसेन" के प्रभु हौंजू कहतहों, साँझ भई रटत निकसी हुती भोरस।। २ ।।

साज – आज श्रीजी में हरे रंग की साटन की शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है जो कि रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया से सुसज्जित है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को हरे छिट के साटन के सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं.
श्रीमस्तक पर टिपारा का साज (मध्य में चन्द्रिका, दोनों ओर दोहरा कतरा) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. सफेद एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में लाल मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी व एक सोने के धराये जाते हैं.
पट हरा गोटी बाघ बकरी की धरायी जाती हैं.

Monday, 15 January 2024

व्रज – पौष शुक्ल षष्ठी

व्रज – पौष शुक्ल षष्ठी
Tuesday, 16 January 2024

नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दामोदरलालजी महाराज का उत्सव

श्रीजी को नियम के पीले रंग के साटन के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर हीरे की टिपारा की टोपी के ऊपर टिपारा का साज धराया जाता है.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनमनोहर (केशर बूंदी) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी और चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में मीठी सेव, केसरयुक्त पेठा व छह-भात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात व नारंगी भात) अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग दर्शन में प्रभु सम्मुख छह बीड़ा सिकोरी (सोने का जालीदार पात्र) में रखे जाते हैं. मुखियाजी प्रभु को एक कलदार रुपया न्यौछावर कर कीर्तनिया को देते हैं. 

आज श्री नवनीतप्रियाजी में पलना के मनोरथी स्वयं श्रीजी के तिलकायत होते हैं. सामान्य दिनों में श्री नवनीतप्रियाजी को पलना की सामग्री के रूप में बूंदी के लड्डू अरोगाये जाते हैं परन्तु आज श्री लाड़लेलाल प्रभु को पलना में तवापूड़ी अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन – 

साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की साटन (Satin) की पिछवाई धरायी जाती है जिसके सलमा-सितारा के चित्रांकन में पलने में झूलते श्री गोवर्धननाथजी को एक ओर नन्दराय-यशोदा जी खिलौनों से खिला रहें हैं एवं दायीं ओर श्री गोवर्धनलालजी महाराज एवं श्री दामोदरलालजी प्रभु को पलना झुला रहे हैं. पलने के ऊपर मोती का तोरण शोभित है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को पीला रंग की साटन का, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पतंगी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटनों तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर हीरे के जड़ाव की टोपी के ऊपर तीन तुर्री, बाबरी, अलख (घुंघराले केश की लटें) मध्य में हीरे के जड़ाव की मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. हीरा की चोटी धरायी जाती है. 
श्रीकर्ण में जड़ाव मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. पीठिका के ऊपर हीरे के जड़ाव का चौखटा धराया जाता है. हास, त्रवल सब धराये जाते हैं. एक माला कली की व एक कमल माला धरायी जाती है. 

गुलाबी एवं पीले रंग की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं हीरा-जड़ित दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट पीला, गोटी श्याम मीना की व आरसी लाल मखमल की आती है.

Sunday, 14 January 2024

व्रज – पौष शुक्ल पंचमी(चतुर्थी क्षय)

व्रज – पौष शुक्ल पंचमी(चतुर्थी क्षय)
Monday, 15 January 2024

मलार मठा खींच को लोंदा।
जेवत नंद अरु जसुमति प्यारो जिमावत निरखत कोदा॥
माखन वरा छाछ के लीजे खीचरी मिलाय संग भोजन कीजे॥
सखन सहित मिल जावो वन को पाछे खेल गेंद की कीजे॥
सूरदास अचवन बीरी ले पाछे खेलन को चित दीजे॥

उत्तरायण पर्व मकर-संक्रांति

श्रीजी में आज रेशमी छींट के वस्त्र धराये जाते हैं. 
प्रभु के समक्ष नयी गेंदे धरी जाती है. सभी समां में गेंद खेलने के पद गाये जाते हैं.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में कट-पूवा अरोगाये जाते हैं.

राजभोग में अनसखड़ी में नियम से दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में केसरी पेठा, मीठी सेव, विशेष रूप से सिद्ध सात धान्य का खींच व मूंग की द्वादशी अरोगायी जाती है. इसके साथ प्रभु को आज गेहूं का मीठा खींच भी अरोगाया जाता है.

श्रीजी की व्रतोत्सव की टिप्पणी के अनुसार इस वर्ष मकर संक्रांति विगत कल रविवार की रात्रि 2 बजकर 54 मिनिट पर प्रारंभ हो रही है अतः मकर-संक्रांति का पुण्यकाल आज सोमवार, 15 जनवरी 2024 को प्रातः सूर्योदय अर्थात 7 बजकर 25 मिनिट से प्रारंभ होकर दोपहर 3 बजकर 25 मिनिट तक रहेगा जिसमें आरम्भ के 2 घंटे (प्रातः 7.25 से 9.24 तक) अतिमुख्य पुण्यकाल है.

इस अवधि में गोपीवल्लभ (ग्वाल) समय श्रीजी को तिलवा व उत्सव भोग धरे जाएंगे. इसी समयावधि में वैष्णव भी अपने सेव्य स्वरूपों को तिलवा के भोग घर सकते हैं.

उत्सव भोग में श्रीजी को तिलवा के गोद के बड़े लड्डू, श्री नवनीतप्रियाजी, श्री विट्ठलनाथजी एवं श्री द्वारकाधीश प्रभु के घर से आये तिलवा के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांड़ी, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा एवं तले हुए बीज-चालनी के नमकीन सूखे मेवे का भोग अरोगाया जाता है.

मकर संक्रांति में श्रीजी के कीर्तन -

श्रृंगार दर्शन – (राग-धनाश्री)

तरणी तनया तीर आवत है प्रातसमें गेंद खेलत देख्योरी आनंदको कंदवा l
काछिनी किंकिणी कटि पीतांबर कस बांधे लाल उपरेना शिर मोरनके चंदवा ll

आरती दर्शन -(राग-नट)

तुम मेरी मोतीन लर क्यों तोरी ।
रहो रहो ढोटा नंदमहरके करन कहत कहा जोरी ।।१।।
में जान्यो मेरी गेंद चुराई ले कंचुकी बीच होरी ।
परमानंद मुस्काय चली तब पूरन चंद चकोरी ।।२।।

शयन - (राग-धनाश्री) 

ग्वालिन तें मेरी गेंद चुराई l
खेलत आन परी पलका पर अंगिया मांझ दुराई ll 1 ll
भुज पकरत मेरी अंगिया टटोवत छुवत छतियाँ पराई l
‘सूरदास’ मोहि यहि अचंभो एक गयी द्वै पाई ll 2 ll

राजभोग दर्शन –

साज – आज श्रीजी में बड़े बूटों वाली लाल रंग की छींट की केरी भात की पिछवाई धरायी जाती है जो कि रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल रंग की छींट का रुई भरा सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र श्वेत लट्ठे के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा, मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल रंग की छींट की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में त्रवल नहीं आवे व कंठी धरायी जाती है. सफ़ेद एवं पीले पुष्पों की चार कलात्मक मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में स्वर्ण के वेणुजी एवं एक वेत्रजी (विट्ठलेशरायजी के) धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी स्याम मीना की आती हैं.
आरसी श्रृंगार में सोना की दिखाई जाती हैं.

आज शयनभोग में प्रभु को शाकघर में सिद्ध सूखे मेवे का अद्भुत खींच भी अरोगाया जाता है जो कि वर्षभर में केवल आज के दिन ही अरोगाया जाता है.

Saturday, 13 January 2024

व्रज – पौष शुक्ल तृतीया

व्रज – पौष शुक्ल तृतीया
Sunday, 14 January 2024

केसरी साटन के चागदार वागा एवं श्रीमस्तक पर ग्वाल पगा पर पगा चंद्रिका के शृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को केसरी साटन के चागदार वागा एवं श्रीमस्तक पर ग्वाल पगा पर पगा चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आसावरी)

आज शृंगार निरख श्यामा को नीको बन्यो श्याम मन भावत ।
यह छबि तनहि लखायो चाहत कर गहि के मुखचंद्र दिखावत ।।१।।
मुख जोरें प्रतिबिम्ब विराजत निरख निरख मन में मुस्कावत ।
चतुर्भुज प्रभु गिरिधर श्री राधा अरस परस दोऊ रीझि रिझावत ।।२।।

साज – श्रीजी को आज केसरी साटन पर सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं.ठाड़े वस्त्र मेघस्याम  रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हीरा के जड़ाऊ पगा पर सिरपैंच, पगा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धराये जाते हैं.
 श्वेत एवं पीले पुष्पों की गुलाबी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में लाल मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट केसरी व गोटी मीना की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Friday, 12 January 2024

व्रज – पौष शुक्ल द्वितीया

व्रज – पौष शुक्ल द्वितीया
Saturday, 13 January 2024

तै जु नीलपट दियौरी ।
सुनहु राधिका श्यामसुंदरसो बिनहि काज अति रोष कियौरी ।।१।।
जलसुत बिंब मनहु जब राजत मनहु शरद ससि राहु लियो री ।
भूमि घिसन किधौं कनकखंभ चढि मिलि रसही रस अमृत पियौंरी ।।२।।
तुम अति चतुर सुजान राधिका कित राख्यौ भरि मान हियौरी ।
सूरदास प्रभु अंगअंग नागरि, मनहुं काम कियौ रूप बिचौरी ।।३।।
 
नवम (फिरोज़ी) घटा

आज श्रीजी में फिरोज़ी घटा के दर्शन होंगे. इसका क्रम ऐच्छिक है और खाली दिन होने के कारण आज धरायी जाएगी.

आज श्रीजी में फ़िरोज़ी घटा होगी. 
साज, वस्त्र आदि सभी फ़िरोज़ी रंग के होते हैं. सर्व आभरण फिरोज़ी मीना के धराये जाते हैं. 

फिरोज़ी घटा श्री यमुनाजी के भाव से धरायी जाती है. जिस प्रकार समुद्र में लहरें उठती हैं तब समुद्र का जल नभ के फ़िरोज़ी रंग सा प्रतीत होता है उस भाव से आज प्रभु को फ़िरोज़ी घटा धरायी जाती है. 

नंददास जी ने इस भाव का एक पद भी गाया है.
“श्याम समुद्र में प्रेम जल पूरनता तामे राधाजु लहर री,” 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

कृष्णनाम जबते श्रवण सुन्योरी आली, भूलीरी भवन हों तो बावरी भईरी l
भरभर आवें नयन चितहु न परे चैन मुख हुं न आवे बेन तनकी दशा कछु ओरें भईरी ll 1 ll
जेतेक नेम धर्म व्रत कीनेरी मैं बहुविध अंग अंग भई हों तो श्रवण मईरी l
‘नंददास’ जाके श्रवण सुने यह गति माधुरी मूरति कैधो कैसी दईरी ll 2 ll 

साज – श्रीजी में आज फ़िरोज़ी रंग के दरियाई वस्त्र की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर फ़िरोज़ी बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को फ़िरोज़ी रंग के दरियाई वस्त्र का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी फ़िरोज़ी रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण फिरोज़ी मीना के धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर फ़िरोज़ी रंग की मलमल की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, फिरोज़ी दोहरा कतरा एवं बायीं ओर फिरोज़ी मीना के शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में फिरोज़ी मीना के कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज चार माला धरावे.
 श्वेत पुष्पों की सुन्दर रंगीन थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में फिरोज़ी मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट फिरोज़ी व गोटी चांदी की आती है.

Thursday, 11 January 2024

व्रज – पौष शुक्ल प्रतिपदा

व्रज – पौष शुक्ल प्रतिपदा
Friday, 12 January 2024

लाल साटन के घेरदार वागा, केसरी पटका एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका के शृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को लाल साटन का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : तोडी)

हों बलि बलि जाऊं तिहारी हौ ललना आज कैसे हो पाँव धारे l
कौन मिस आवन बन्यो पिय जागे भाग्य हमारे ll 1 ll
अब हों कहा न्योछावर करूँ पिय मेरे सुंदर नंददुलारे l
'नंददास' प्रभु तन-मन-धन प्राण यह लेई तुम पर वारे ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज लाल रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका केसरी मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र स्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर गोल पाग के ऊपर सिरपैंच और गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल की एक जोड़ी धरायी जाती हैं. श्रीकंठ में पिले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी मीना की आती है.

Wednesday, 10 January 2024

व्रज – पौष कृष्ण अमावस्या

व्रज – पौष कृष्ण अमावस्या
Thursday, 11 January 2024

नाथद्वारा के युवराज चिरंजीवी गौस्वामी श्री भूपेशकुमारजी (श्री विशालबावा) का जन्मदिवस

विशेष – आज नाथद्वारा के युवराज, युवा वैष्णवों के हृदय सम्राट चिरंजीवी गौस्वामी श्री भूपेशकुमारजी (श्री विशालबावा) का 43 वां जन्मदिवस है.

Shreenathji nity darshan की तरफ़ से आपश्री को जन्मदिवस की ख़ूबख़ूब बधाई

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध दो प्रकार के फलों के मीठा का अरोगाये जाते हैं.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में मीठी सेव, केशरयुक्त पेठा, व छहभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात और नारंगी भात) आरोगाये जाते हैं. 
शामको भोग समय मगद के बड़े नग आरोगाये जाते हैं.
संध्या-आरती में मनोरथ के भाव से श्रीजी और श्री नवनीतप्रियाजी में विविध सामग्रियां, दूधघर सामग्री आदि लवाज़मा सहित अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन - 

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीवल्लभ श्रीवल्लभ मुख जाके l
सुन्दर नवनीत के प्रिय आवत हरि ताहि के हिय जन्म जन्म जप तप करि कहा भयो श्रमथाके ll 1 ll
मनवच अघ तूल रास दाहनको प्रकट अनल पटतर को सुरनर मुनि नाहिन उपमा के l
‘छीतस्वामी’ गोवर्धनधारी कुंवर आये सदन प्रकट भये श्रीविट्ठलेश भजनको फल ताके ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज श्याम रंग के आधारवस्त्र के ऊपर झाड़ फ़ानुश एवं सेवा करती सखियों की सुनहरी कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली तथा पुष्पों के सज्जा के कशीदे के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी रंग का खीनखाब का सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, घेरदार वागा, चोली एवं मैरुन ज़री की फतवी (Jacket) धरायी जाती है. मैरुन रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के लट्ठा के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा मोती के सर्वआभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर केसरी खीनखाब के चीरा  (ज़री की पाग) के ऊपर जड़ाऊ लूम तुर्रा सुनहरी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
 श्रीकर्ण में एक जोड़ी गेड़ी के कर्णफूल धराये जाते हैं.
कस्तूरी, कली एवं कमल माला धरायी जाती है. 
 पीले पुष्पों की सुन्दर कलात्मक थागवाली मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में नवरत्न के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट केसरी एवं गोटी जड़ाऊ की धरायी जाती हैं.
आरसी लाल मख़मल की दिखाई जाती हैं.

Tuesday, 9 January 2024

व्रज – पौष कृष्ण चतुर्दशी

व्रज – पौष कृष्ण चतुर्दशी
Wednesday, 10 January 2024

पीताम्बर को चोलना पहरावत मैया ।
कनक छाप तापर धरी झीनी एक तनैया ।।१।।
लाल इजार चुनायकी और जरकसी चीरा ।
पहोंची रत्न जरायकी ऊर राजत हीरा ।।२।।
ठाडी निरख यशोमति फूली अंग न समैया ।
काजर ले बिंदुका दियो बृजजन मुसकैया ।।३।।
नंदबाबा मुरली दई कह्यो ऐसै बजैया ।
जोई सुने जाको मन हरे परमानन्द बलजैया ।।४।।

आज उपरोक्त पद ‘पीताम्बर को चोलना’ के आधार पर होने वाले विशिष्ट श्रूँगार के दर्शन का आनंद ले

विशेष – जिस प्रकार जन्माष्टमी के पश्चात भाद्रपद कृष्ण एकादशी से अमावस्या तक बाल-लीला के पांच श्रृंगार धराये जाते हैं उसी प्रकार श्री गुसांईजी के उत्सव के पश्चात चार श्रृंगार बाल-लीला के धराये जाते हैं. 

गत एकादशी के दिन कुल्हे का प्रथम श्रृंगार धराया गया उसी श्रृंखला में आज ‘पीताम्बर को चोलना’ का दूसरा बाल-लीला का श्रृंगार धराया जाएगा जो कि उपरोक्त कीर्तन के आधार पर धराया जाता है.
‘पीताम्बर को चोलना पहरावत मैया, जोई सुने ताको मन हरे परमानंद बलि जैया.’

दिनभर बाल लीला के कीर्तन गाये जाते हैं. बाल-लीला का आगामी श्रृंगार तिलकायत श्री दामोदरलालजी के उत्सव के दिन (पौष शुक्ल षष्ठी) व चौथा श्रृंगार माघ कृष्ण अमावस्या के दिन धराया जाता है.

आज के श्रृंगार में विशेष यह है कि आज लाल छापा की सूथन एवं पीला छापा का सुनहरी किनारी का घेरदार वागा धराया जाता है. सामान्यतया सूथन एवं घेरदार वागा एक ही रंग के धराये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आसावरी)

माई मीठे हरिजु के बोलना ।
पांय पैंजनी रुनझुन बाजे आंगन आंगन डोलना ।।१।।
काजर तिलक कंठ कठुला पीतांबर कौ चोलना ।
परमानंददास को ठाकुर गोपी झुलावे झोलना ।।२।।

साज – आज श्रीजी में मेघश्याम रंग की, सुनहरी सुरमा-सितारा के कशीदे से चित्रित मोर-मोरनियों के भरतकाम (Work) वाली अत्यंत आकर्षक पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल छापा का सूथन, पीले रंग की, सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित चोली एवं घेरदार वागा धराया जाता है. मोजाजी सुनहरी ज़र्री के एवं ठाड़े वस्त्र मेघस्याम रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
 मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर सुनहरी ज़री की पाग (चीरा) के ऊपर सिरपैंच, लूम तुर्री तथा जमाव (नागफणी) का कतरा एवं बायीं शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में लोलकबंदी-लड़ वाले कर्णफूल धराये जाते हैं. 
कड़ा, हस्त, सांखला, हांस, त्रवल,एक हालरा, बघनखा सभी धराये जाते हैं. कली की माला धरायी जाती है.
रंग-बिरंगे पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट पिला एवं गोटी सोना की चिड़िया की धरायी जाती हैं.

Monday, 8 January 2024

व्रज – पौष कृष्ण त्रयोदशी

व्रज – पौष कृष्ण त्रयोदशी
Tuesday, 09 January 2024

छठी (बैंगनी) घटा

विशेष – आज श्रीजी में बैंगनी घटा के दर्शन होंगे. यह घटा नियत है और सामान्यतया आज के दिन ही होती है यद्यपि इसका क्रम निश्चित नहीं और इस वर्ष छठे क्रम पर ली गयी है.

श्रीजी में शीतकाल में विविध रंगों की घटाओं के दर्शन होते हैं. घटा के दिन सर्व वस्त्र, साज आदि एक ही रंग के होते हैं. 
आकाश में वर्षाऋतु में विविध रंगों के बादलों के गहराने से जिस प्रकार घटा बनती है उसी भाव से श्रीजी में मार्गशीर्ष व पौष मास में विविध रंगों की द्वादश घटाएँ द्वादश कुंज के भाव से होती हैं. 

कई वर्षों पहले चारों यूथाधिपतिओं के भाव से चार घटाएँ होती थी परन्तु गौस्वामी वंश परंपरा के सभी तिलकायतों ने अपने-अपने समय में प्रभु के सुख एवं वैभव वृद्धि हेतु विभिन्न मनोरथ किये. 
इसी परंपरा को कायम रखते हुए नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज ने निकुंजनायक प्रभु के सुख और आनंद हेतु सभी द्वादश कुंजों के भाव से आठ घटाएँ बढ़ाकर कुल बारह (द्वादश) घटाएँ (दूज का चंदा सहित) कर दी जो कि आज भी चल रही हैं. 

इनमें कुछ घटाएँ (हरी, श्याम, लाल, अमरसी, रुपहली व बैंगनी) नियत दिनों पर एवं अन्य कुछ (गुलाबी, पतंगी, फ़िरोज़ी, पीली और सुनहरी घटा) ऐच्छिक है जो बसंत-पंचमी से पूर्व खाली दिनों में ली जाती हैं.

ये द्वादश कुंज इस प्रकार है –

अरुण कुंज, हरित कुंज, हेम कुंज, पूर्णेन्दु कुंज, श्याम कुंज, कदम्ब कुंज, सिताम्बु कुंज, वसंत कुंज, माधवी कुंज, कमल कुंज, चंपा कुंज और नीलकमल कुंज.

जिस रंग की घटा हो उसी रंग के कुंज की भावना होती है. इसी श्रृंखला में आज श्रीजी में बैंगनी घटा होगी. साज, वस्त्र आदि सभी बैंगनी रंग के होते हैं. सर्व आभरण हीरे के धराये जाते हैं. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

ए कहूं उमडे घुमडे गाजतहो पिय कहुं बरखत कहुं उघरजात ।
कहुं दमकत चमकत चपला ज्यों एकठोरन ठहरात ।।१।।
स्याम घनके लछन तुमहीपें स्यामघन मेहनेह आडंबर वृथा वहे जात ।
मुरारीदास प्रभु तिहारे वाम चरन पुजीयेजु को किनकी कही न बात को पत्यात ।।२।।

साज – श्रीजी में आज बैंगनी रंग के दरियाई वस्त्र की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर बैंगनी बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को बैंगनी रंग के दरियाई वस्त्र का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी बैंगनी रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर बैंगनी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, मोती की लूम तथा चमकनी गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. हीरे की एक माला हमेल की भांति धरायी जाती है.एक हार एवं पचलड़ा धराया जाता हैं.
आज श्रीकंठ में पुरे दिन सफ़ेद मनका की माला धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में चाँदी के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट बैंगनी एवं गोटी चाँदी आती हैं.

Sunday, 7 January 2024

व्रज – पौष कृष्ण द्वादशी

व्रज – पौष कृष्ण द्वादशी
Monday, 08 January 2024

शीतकाल की तृतीय चौकी

आज के वस्त्र श्रृंगार निश्चित हैं. आज प्रभु को हरे खीनखाब के चाकदार वस्त्र एवं श्रीमस्तक पर रुपहली ज़री की पाग पर साज सहित टिपारा धराया जाता है.

आज से विशेष रूप से ललित राग के कीर्तन भी प्रारंभ हो जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

नंद बधाई दीजे ग्वालन l
तुम्हारे श्याम मनोहर आये गोकुल के प्रति पालन ll 1 ll
युवतिन बहु विधि भूषन दीजे विप्रन को गौदान l
गोकुल मंगल महा महोच्छव कमल नैन घनश्याम ll 2 ll
नाचत देव विमल गंधर्व मुनि गावत गीत रसाल l
‘परमानंद’ प्रभु तुम चिरजीयो नंदगोपके लाल ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में हरे रंग की किनखाब की पिछवाई धरायी जाती है जो कि सुनहरी ज़री के केरी भांत के भरतकाम एवं रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया से सुसज्जित है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को हरे रंग की खीनखाब का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं (मोजाजी जड़ाऊ) धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं. हीरा की बघ्घी धरायी जाती है और हांस, त्रवल नहीं धराये जाते. 
श्रीमस्तक पर टिपारा का साज (हीरा पन्ना, माणक के टिपारा के ऊपर सिरपैंच, मोरशिखा, दोनों ओर मोरपंख के दोहरा कतरा सुनहरे फोन्दना के) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. सफेद एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में विट्ठलेशरायजी वाले वेणुजी एवं वेत्रजी व एक सोने के धराये जाते हैं.
पट उत्सव का गोटी सोना की बाघ बकरी की धरायी जाती हैं.
आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोने की दांडी की दिखाई जाती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर हल्के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक टीपारा बड़ा करके लाल छज्जेदार पाग धरा कर सुनहरी लूम तुर्रा धराये जाते हैं.

Saturday, 6 January 2024

व्रज – पौष कृष्ण एकादशी

व्रज – पौष कृष्ण एकादशी 
Sunday, 07 January 2024

नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविंदजी का उत्सव, सफला एकादशी

विशेष – आज सफला एकादशी है. आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दजी महाराज का उत्सव है. आपका जन्म विक्रम संवत 1769 में गौस्वामी श्री विट्ठलेशजी के द्वितीय पुत्र के रूप में हुआ. 

आपके बड़े भ्राता श्री गोवर्धनेशजी के यहाँ कोई पुत्र ना होने के कारण उनके पश्चात आप तिलकायत पद पर आसीन हुए. वर्तमान की भांति तब भी एक पीढ़ी में दो तिलकायत हुए. 

पुष्टिमार्ग में आप बाल-भाव भावित तिलकायत हुए हैं. एक बार बाल्यकाल में आप श्रीजी के शैया मंदिर में रह गये तब श्रीजी ने आपको अपने हाथों से महाप्रसाद खिलाया था. 

आपने प्रभु सुखार्थ कई मनोरथ किये. आपके पुत्र श्री गिरधारीजी ने श्रीजी को घसियार से नाथद्वारा पधराकर नवीन नाथद्वारा का निर्माण किया.

उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. आज दो समय की आरती थाली में करी जाती हैं.

गद्दल, रजाई सफ़ेद खीनखाब के आते हैं.
निजमंदिर के सभी साज (गादी, तकिया आदि) पर आज पुनः सफेदी चढ़ जाती है. 
श्री गोविंदजी महाराज के यशस्वरुप आज श्वेत खीनखाब के वस्त्र एवं अनुराग के भाव से लाल ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. 
 
श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त जलेबी के टूक व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है. सखड़ी में खरमंडा अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीवल्लभ नंदन रूप अनूप स्वरुप कह्यो न जाई l
प्रकट परमानंद गोकुल बसत है सब जगत के सुखदाई ll 1 ll
भक्ति मुक्ति देत सबनको निजजनको कृपा प्रेम बर्षन अधिकाई l
सुखद रसना एक कहां लो वरनो ‘गोविंद’ बलबल जाई ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज श्वेत साटन के वस्त्र के ऊपर फूल-पत्तियों के लाल, हरे, पीले रंग के कलाबत्तू के काम (Work) वाली पिछवाई धरायी जाती है जो कि फिरोजी रंग के वस्त्र के ऊपर पुष्प-लता के भरतकाम (Work) से सुसज्जित होती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को रुपहली ज़री का बड़े बूटा का किनखाब का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं धराये जाते हैं. पटका लाल रंग का धराया जाता हैं. मोजाजी हरे केरीभात के धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
ठाडी लड़ मोती धरायी जाती है. श्रीमस्तक पर पन्ना की जड़ाऊ कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर उत्सव की मीना की चोटी धरायी जाती है.
 श्रीकंठ में माणक का दुलड़ा हार (जो आपश्री ने श्रीजी को भेंट किया था), कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है. गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में जड़ाव स्वर्ण के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (पन्ना व सोने के) धराये जाते हैं. पट उत्सव का व गोटी श्याम मीना की आती है. आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोने की दिखाई जाती हैं.

Friday, 5 January 2024

व्रज – पौष कृष्ण दशमी

व्रज – पौष कृष्ण दशमी
Saturday, 06 January 2024

श्री गुसांईजी के उत्सव का परचारगी श्रृंगार

विशेष – आज श्री गुसांईजी के उत्सव का परचारगी श्रृंगार धराया जाता है. आज सभी साज, वस्त्र एवं श्रृंगार पिछली कल की भांति ही होते हैं. इसे परचारगी श्रृंगार कहते हैं.

श्रीजी में लगभग सभी बड़े उत्सवों के एक दिन बाद उस उत्सव का परचारगी श्रृंगार होता है. परचारगी श्रृंगार के श्रृंगारी श्रीजी के परचारक महाराज (चिरंजीवी श्री विशाल बावा) होते हैं. यदि वो उपस्थित हों तो वही श्रृंगारी होते हैं.

आज राजभोग में सखड़ी में विशेष रूप से सूरण प्रकार अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

नंद बधाई दीजे ग्वालन l
तुम्हारे श्याम मनोहर आये गोकुल के प्रति पालन ll 1 ll
युवतिन बहु विधि भूषन दीजे विप्रन को गौदान l
गोकुल मंगल महा महोच्छव कमल नैन घनश्याम ll 2 ll
नाचत देव विमल गंधर्व मुनि गावत गीत रसाल l
‘परमानंद’ प्रभु तुम चिरजीयो नंदगोपके लाल ll 3 ll

साज - श्रीजी में आज लाल रंग की मखमल की, सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. यही पिछवाई जन्माष्टमी के दिन भी आती है. आज भी सभी साज जडाऊ आते हैं, गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट नहीं आती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.
आज दो समय की आरती थाली में करी जाती हैं.

वस्त्र – श्रीजी को आज सुन्दर केसरी साटन के वस्त्र - बिना किनारी का अडतू का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. पटका केसरी किनारी के फूल का व ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) दो जोड़ी का भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा-हीरा, मोती, माणक, पन्ना तथा जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर जड़ाव हीरा एवं पन्ना जड़ित स्वर्ण की केसरी कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर हीरा की चोटी (शिखा) धरायी जाती है.
 श्रीकंठ में त्रवल, टोडर दोनों धराये जाते हैं. पीठिका के ऊपर प्राचीन जड़ाव स्वर्ण का चौखटा धराया जाता है. कस्तूरी, कली आदि सब माला धरायी जाती हैं. श्वेत, गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट उत्सव का गोटी जडाऊ आती है. आरती चार झाड़ की व सोने की डांडी की आती है.

Thursday, 4 January 2024

व्रज – पौष कृष्ण नवमी

व्रज – पौष कृष्ण नवमी
Friday, 05 January 2023

श्रीवल्लभ नंदन वह फिरि आये।
वेद स्वरुप फेर वह लीला करत आप मन भाये।।१।।
वे फिर राज करत गोकुल में वोही रीत प्रकटाये।
वही श्रृंगार भोग छिन छिन में वह लीला पुनि गाये।।२।।
जे जसुमति को आनंद दीनो सो फिर व्रज में आये।
श्रीविट्ठल गिरधर पद पंकज गोविंद उर में लाये।।३।।

श्रीमद प्रभुचरण श्री विट्ठलनाथजी (श्री गुसांईजी) का प्राकट्योत्सव

आज पुष्टिमार्ग में बहुत विशिष्ट दिन है. पुष्टिमार्ग के आधार राग, भोग व श्रृंगार को अद्भुत भाव-भावना के अनुरूप नियमबद्ध करने वाले प्रभुचरण श्री विट्ठलनाथजी (श्री गुसांईजी) का आज प्राकट्योत्सव है.(विस्तुत विवरण अन्य पोस्ट में)

सभी वैष्णवों को प्रभुचरण श्री गुसांईजी के प्राकट्योत्सव की ख़ूबख़ूब बधाई

श्री गुसांईजी का प्राकट्य स्वयं प्रभु का प्राकट्य है. श्रीजी ने स्वयं आनंद से यह उत्सव मनाया है एवं कुंभनदासजी व रामदासजी को आज्ञा कर जलेबी टूक की सामग्री मांग कर अरोगी है. 
इसी कारण आज श्रीजी को मंगला भोग से शयन भोग तक प्रत्येक भोग में विशेष रूप से जलेबी टूक की सामग्री अरोगायी जाती है और आज के उत्सव को जलेबी उत्सव भी कहा जाता है. 

श्रीजी को नियम से केवल जलेबी टूक ही अरोगाये जाते हैं अर्थात गोल जलेबी के घेरा की सामग्री कभी नहीं अरोगायी जाती. विविध मनोरथों पर बाहरी मनोरथियों द्वारा घेरा की सामग्री अरोगायी जाती है.

सभी वैष्णवों को भी आज अपने सेव्य स्वरूपों को यथाशक्ति जलेबी की सामग्री सिद्धकर अंगीकार करानी चाहिए.

मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, उबटन एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

आज निज मन्दिर में विराजित श्री महाप्रभुजी के पादुकाजी का भी अभ्यंग व श्रृंगार किया जाता है.  

श्रीजी को आज नियम के केसरी साटन के बिना किनारी का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर जड़ाव हीरे व पन्ने की केसरी कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चंद्रिका का भारी में भारी श्रृंगार धराया जाता है जिसका विस्तृत विवरण नीचे दिया है.

श्रीजी को कुछ इसी प्रकार के भारी आभरण जन्माष्टमी के दिन भी धराये जाते हैं. भारी श्रृंगार व बहुत अधिक मात्रा में जलेबी के भोग के कारण ही आज सेवाक्रम जल्दी प्रारंभ किया जाता है.

श्रृंगार दर्शन में श्रीजी के मुख्य पंड्याजी प्रभु के सम्मुख वर्षफल पढ़ते हैं.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त जलेबी के टूक, दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में केशरयुक्त पेठा, मीठी सेव व पांचभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात और वड़ी-भात) आरोगाये जाते हैं. 
प्रभु सम्मुख 25 पान के बीड़ा सिकोरी में अरोगाये जाते हैं.

राजभोग समय उत्सव भोग रखे जाते हैं जिनमें प्रभु को केशरयुक्त जलेबी टूक, दूधघर में सिद्ध मावे के मेवायुक्त पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी (मलाई-पूड़ी), बासोंदी, जीरा मिश्रित दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, श्रीखंड-वड़ी का डबरा, घी में तला हुआ बीज-चालनी का सूखा मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, विविध प्रकार के फल, शीतल आदि अरोगाये जाते हैं.

इसी प्रकार श्रीजी के निज मंदिर में विराजित श्री महाप्रभुजी की गादी को भी एक थाल में यही सब सामग्रियां भोग रखी जाती हैं. 

राजभोग समय प्रभु को बड़ी आरसी (उस्ताजी वाली) दिखायी जाती है, तिलक किया जाता है, थाली में चून (आटे) का बड़ा दीपक बनाकर आरती की जाती है एवं राई-लोन-न्यौछावर किये जाते हैं. 

कल की post में भी मैंने बताया था कि विगत रात्रि से प्रतिदिन श्रीजी को शयन के पश्चात अनोसर भोग में एवं आज से प्रतिदिन राजभोग के अनोसर में शाकघर में सिद्ध सौभाग्य सूंठ अरोगायी जाती है.

केशर, कस्तूरी, सौंठ, अम्बर, बरास, जाविन्त्री, जायफल, स्वर्ण वर्क, विविध सूखे मेवों, घी व मावे सहित 29 मसालों से निर्मित सौभाग्य-सूंठ के बारे में कहा जाता है कि अत्यन्त सौभाग्यशाली व्यक्ति ही इसे खा सकता है.

आयुर्वेद में भी शीत एवं वात जन्य रोगों में इसके औषधीय गुणों का वर्णन किया गया है अतः विभिन्न शीत एवं वात जन्य रोगों, दमा, जोड़ों के दर्द में भी इसका प्रयोग किया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

तिलक होवे तब का कीर्तन – (राग : सारंग)

आज वधाई को दिन नीको l
नंदघरनी जसुमति जायौ है लाल भामतो जीकौ ll 1 ll
पांच शब्द बाजे बाजत घरघरतें आयो टीको l
मंगल कलश लीये व्रज सुंदरी ग्वाल बनावत छीको ll 2 ll
देत असीस सकल गोपीजन चिरजीयो कोटि वरीसो l
‘परमानंददास’को ठाकुर गोप भेष जगदीशो ll 3 ll

साज - श्रीजी में आज लाल रंग की मखमल की, सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.
यही पिछवाई जन्माष्टमी पर आती है. लाल मखमल के गादी, खंड आदि व जड़ाव के तकिया धरे जाते हैं (गादी एवं तकिया पर सफेद खोल नहीं चढ़ायी जाती). चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज सुन्दर केसरी साटन के वस्त्र - बिना किनारी का सूथन, चोली, अडतू किये चाकदार वागा एवं टंकमा हीरा के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) तीन जोड़ी का भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा-हीरा, मोती, माणक, पन्ना तथा जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
सर्व साज, वस्त्र, श्रृंगार आदि जन्माष्टमी की भांति ही होते हैं. श्रीमस्तक पर जड़ाव हीरा एवं पन्ना जड़ित स्वर्ण की केसरी कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. त्रवल, टोडर दोनों धराये जाते हैं. दो हालरा व बघनखा भी धराये जाते हैं. 
बायीं ओर हीरा की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. 
पीठिका के ऊपर प्राचीन जड़ाव स्वर्ण का चौखटा धराया जाता है. 
कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं. श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर थागवाली मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.पट उत्सव का एवं गोटी जड़ाऊ की आती हैं.
आरसी जड़ाऊ एवं सोना की डाँडी की दिखाई जाती हैं.

Wednesday, 3 January 2024

व्रज – पौष कृष्ण अष्टमी

व्रज – पौष कृष्ण अष्टमी
Thursday, 04 January 2024

श्री गुसांईजी के उत्सव के आगम का श्रृंगार

विशेष – कल प्रभुचरण श्री गुसांईजी का प्राकट्योत्सव है अतः आज उत्सव के एक दिन पूर्व धराया जाने वाला हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 

लगभग सभी बड़े उत्सवों के एक दिन पूर्व लाल वस्त्र एवं पाग-चन्द्रिका का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 

यह श्रृंगार अनुराग के भाव से धराया जाता है और इसे उत्सव के आगम का श्रृंगार कहा जाता है. 
आज दिनभर उत्सव की बधाई एवं ढाढ़ी के कीर्तन गाये जाते हैं.

आज से प्रतिदिन श्रीजी को शयन उपरांत अनोसर भोग में एवं कल अर्थात नवमी से राजभोग उपरांत अनोसर भोग में शाकघर में सिद्ध सौभाग्य सूंठ अरोगायी जानी आरंभ हो जाएगी.

केशर, कस्तूरी, सौंठ, अम्बर, बरास, जाविन्त्री, जायफल, स्वर्ण वर्क, विविध सूखे मेवों, घी व मावे सहित 29 मसालों से निर्मित सौभाग्य-सूंठ के बारे में कहा जाता है कि इसे खाने वाला व्यक्ति अत्यन्त सौभाग्यशाली होता है.

आयुर्वेद में भी शीत एवं वात जन्य रोगों में इसके औषधीय गुणों का वर्णन किया गया है अतः विभिन्न शीत एवं वात जन्य रोगों, दमा, जोड़ों के दर्द में भी इसका प्रयोग किया जाता है. 

नाथद्वारा के श्रीजी मंदिर में निर्मित इस सामग्री को प्रभु अरोगे पश्चात देश-विदेश के वैष्णव मंगाते हैं. 

राजभोग दर्शन – 
कीर्तन – (राग : धनाश्री)

रानी तेरो चिरजीयो गोपाल ।
बेगिबडो बढि होय विरध लट, महरि मनोहर बाल॥१॥
उपजि पर्यो यह कूंखि भाग्य बल, समुद्र सीप जैसे लाल।
सब गोकुल के प्राण जीवन धन, बैरिन के उरसाल॥२॥
सूर कितो जिय सुख पावत हैं, निरखत श्याम तमाल।
रज आरज लागो मेरी अंखियन, रोग दोष जंजाल॥३।

साज – आज श्रीजी में लाल रंग की मखमल की, सुनहरी लप्पा की  ज़री की तुईलैस के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को लाल रंग की साटन (Satin) का बिना किनारी का अड़तू का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. उर्ध्व भुजा की ओर सुनहरी किनारी से सुसज्जित कटि-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. ठाडी लड़ मोती की धरायी जाती है. श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. पट लाल व गोटी सोना की आरसी शृंगार में सोना की एवं राजभोग में बटदार आती है.

Tuesday, 2 January 2024

व्रज – पौष कृष्ण सप्तमी

व्रज – पौष कृष्ण सप्तमी
Wednesday, 03 January 2024

विशेष – आज श्री गुसांईजी के द्वितीय पुत्र गोविन्दरायजी के प्रथम पुत्र कल्याणरायजी का जन्मोत्सव है. 
आप श्री गुसांईजी के सबसे ज्येष्ठ पौत्र थे एवं उनके जीवित रहते ही आपका जन्म विक्रम संवत १६२५ में गोकुल में हुआ था.(विस्तुत विवरण अन्य पोस्ट में)

आज द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर (मंदिर) से श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु घेरा (जलेबी) की सामग्री सिद्ध हो कर आती है.

आज से पौष कृष्ण द्वादशी तक प्रतिदिन श्रीजी को मोरपंख की चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है. इसका विशिष्ट कारण यह है कि मयूर भी निष्काम वियोगी भक्त का स्वरुप है. 
श्री गुसांईजी को छः माह तक श्रीजी के विप्र-योग का अनुभव हुआ था अतः आपके उत्सव को बीच में रख कर छः दिवस तक प्रतिदिन मोरपंख की चन्द्रिका श्रीजी को धरायी जाती है.

राजभोग दर्शन – 
कीर्तन – (राग : सारंग)
जशोदा फूली ना मात मन में l
नाचत गावत देत बधाई, जोवत युवती जनमें ll 1 ll
गोकुल के कुल को रखवारो प्रकट्यो गोपी गगन में l
काल्हि फिरे बालक बलिके संग जैहे वृन्दावनमें ll 2 ll
सूंकत घाननको ज्यों पान्यो यो पायो या पनमें l
गिरिधरलाल ‘कल्यान’ कहत व्रजमहरि मगन सुसदन में ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में लाल साटन की, तोते, चिड़िया, मयूर आदि विभिन्न पक्षियों के भरतकाम (Work) से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है जिसमें रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी का हांशिया बना है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की साटन (Satin) का रुपहली ज़री के पक्षियों के भरतकाम एवं तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. पटका लाल मलमल का धराया जाता हैं.किनखाब के ठाड़े वस्त्र मेघश्याम छापा  के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर मीना के पक्षी की मीनाकारी वाली कुल्हे के ऊपर पान, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की चोटी (शिखा) धरायी जाती है.
कली कस्तूरी आदी सब माला धराई जाती हैं.
 श्वेत, गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में मीना के पक्षी के वेणुजी (एक सोना का) एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल गोटी मीना की पक्षी की धरायी जाते हैं.
आरसी शृंगार में पीले खंड की एवं राजभोग में सोना की डांडी की दिखाई जाती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर हल्के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर कुल्हे बड़ीं कर लाल कुल्हे धराये जाते हैं.

Monday, 1 January 2024

व्रज – पौष कृष्ण षष्ठी

व्रज – पौष कृष्ण षष्ठी 
Tuesday, 02 January 2023

दूधिया साटन के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर मंडिल की गोल पाग पर गोल चंद्रिका के शृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को दूधिया साटन का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर मंडिल की गोल पाग पर गोल चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीविट्ठलेश चरण कमल पावन त्रैलोक करण दरस परस सुंदर वर वारवार वंदे ।
समरथ गिरिराज धरण लीला प्रकट करण संतन हित मानुषतनु वृंदावनचंदे ।।१।।
चरणोदक लेत प्रेत ततक्षण ते मुक्त भये करुणामय नाथ सदा आनंद निधिकंदे । 
वारनें भगवानदास विहरत सदा रसिकराय जयजय यश बोलबोल गावत श्रुति छंदे ।।२।।

साज – श्रीजी में आज दूधिया रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज दूधिया साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर दूधिया रंग की मंडिल की गोल पाग पर के ऊपर सिरपैंच, गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल की एक जोड़ी धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट दूधिया व गोटी मीना की आती है.

प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृगार संध्या-आरती उपरांत बड़े (हटा) कर शयन समय छोटे (छेड़ान के) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर चीरा पर लूम तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया  Saturday, 01 February 2025 इस वर्ष माघ शुक्ल पंचमी के क्षय के कारण कल माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन बसंत पंचमी का पर्व ह...