By Vaishnav, For Vaishnav

Saturday, 30 November 2024

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण अमावस्या

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण अमावस्या
Sunday, 01 December 2024

अरि हों श्याम रंग रंगी ।
रिझवे काई रही सुरत पर सुरत मांझ पगी ।।१।।
देख सखी अेक मेरे नयनमें बैठ रह्यो करी भौन ।
घेनु चरावन जात वृंदावन सौंधो कनैया कोन ।।२।।
कौन सुने कासौ कहे सखी कौन करे बकवाद ।
तापे गदाधर कहा कही आवे गूंगो गुड़को स्वाद ।।३।।

द्वितीय (स्याम) घटा

विशेष – श्रीजी में शीतकाल में विविध रंगों की घटाओं के दर्शन होते हैं. 
घटा के दिन सर्व वस्त्र, साज आदि एक ही रंग के होते हैं. आकाश में वर्षाऋतु में विविध रंगों के बादलों के गहराने से जिस प्रकार घटा बनती है उसी भाव से श्रीजी में मार्गशीर्ष व पौष मास में विविध रंगों की द्वादश घटाएँ द्वादश कुंज के भाव से होती हैं.

कई वर्षों पहले चारों यूथाधिपतिओं के भाव से चार घटाएँ होती थी परन्तु गौस्वामी वंश परंपरा के सभी तिलकायतों ने अपने-अपने समय में प्रभु के सुख एवं वैभव वृद्धि हेतु विभिन्न मनोरथ किये. 
इसी परंपरा को कायम रखते हुए नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज ने निकुंजनायक प्रभु के सुख और आनंद हेतु सभी द्वादश कुंजों के भाव से आठ घटाएँ बढ़ाकर कुल बारह (द्वादश) घटाएँ (दूज का चंदा सहित) कर दी जो कि आज भी चल रही हैं.

इनमें कुछ घटाएँ (हरी, श्याम, लाल, अमरसी, रुपहली व बैंगनी) नियत दिनों पर एवं अन्य कुछ (गुलाबी, पतंगी, फ़िरोज़ी, पीली और सुनहरी घटा) ऐच्छिक है जो बसंत-पंचमी से पूर्व खाली दिनों में ली जाती हैं. 

ये द्वादश कुंज इस प्रकार है –

अरुण कुंज, हरित कुंज, हेम कुंज, पूर्णेन्दु कुंज, श्याम कुंज, कदम्ब कुंज, सिताम्बु कुंज, वसंत कुंज, माधवी कुंज, कमल कुंज, चंपा कुंज और नीलकमल कुंज.

जिस रंग की घटा हो उसी रंग के कुंज की भावना होती है. इसी श्रृंखला में श्याम कुंज के भाव से आज श्रीजी में श्याम घटा होगी. 

आज सभी साज, वस्त्र, श्रृंगार आदि श्याम रंग के होते हैं. कीर्तन भी श्याम घटा की भावना के ऐसे गाये जाते हैं जिनमें ‘श्याम’ शब्द आवे अथवा ‘श्याम’ का नाम आवे. 

सभी घटाओं में राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में काफ़ी जल्दी हो जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

माई मेरो श्याम लग्यो संग डोले l
जहीं जहीं जाऊं तहीं सुनी सजनी बिनाहि बुलाये बोले ll 1 ll
कहा करो ये लोभी नैना बस कीने बिन मोले l
‘हित हरिवंश’ जानि हितकी गति हसि घुंघटपट खोले ll 2 ll 

स्यामा स्याम आवत कुंज महल ते रंगमगे-रंगमगे ।
मरगजी वनमाल सिथिल कटि किंकिन, अरुन नैन मानौं चारौ जाम जगे ।।१।।
सब सखी सुघराई गावत बीन बजावत, सब सुख मिली संगीत पगे ।
श्रीहरिदास के स्वामी स्याम कुंजबिहारी  की कटाक्ष सों कोटि काम दगे ।।२।।

साज – श्रीजी में आज श्याम रंग की साटन (दरियाई) की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर श्याम बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्याम रंग की साटन (दरियाई) का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी श्याम रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण हीरा के धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर श्याम रंग की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, रुपहली दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. एक हार एवं पंचलड़ा धराया जाता है.
श्वेत रंग के पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. सभी समाँ में तुलसी की माला धरायी जाती है. हीरा की हमेल भी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में चांदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
 पट श्याम व गोटी चांदी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर हल्के हीरा के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर रुपहली लूम तुर्रा धराये जाते हैं.

आज के दिन विशेष रूप से संध्या-आरती व शयन की आरती सभी बत्तियां (Lights) बुझा कर की जाती है. आरती की लौ की रौशनी में हीरे के आभरण व प्रभु के अद्भुत स्वरुप की अलौकिक छटा वास्तव में अद्वितीय होती है.

Friday, 29 November 2024

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्दशी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्दशी 
Saturday, 30 November 2024

पीले साटन के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर पीली छज्जेदार पाग पर क़तरा या चंद्रिका के शृंगार 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : टोडी)

आये अलसाने लाल जोयें हम सरसाने अनत जगे हो भोर रंग राग के l
रीझे काहू त्रियासो रीझको सवाद जान्यो रसके रखैया भवर काहू बाग़ के ll 1 ll
तिहारो हु दोस नाहि दोष वा त्रिया को जाके रससो रस पागे जाग के l
‘तानसेन’ के प्रभु तुम बहु नायक आते जिन बनाय सांवरो पेच पाग के ll 2 ll 

साज – श्रीजी में आज पीले रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज पीले रंग के साटन पर  सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं  घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र पतंगी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर पीली छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच,क़तरा या चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल की एक जोड़ी धराये जाते हैं.
 लाल एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 हरे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट पीला व गोटी मीना की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Thursday, 28 November 2024

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण त्रयोदशी (द्वितीय)

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण त्रयोदशी (द्वितीय)
Friday, 29 November 2024

छप्पनभोग (बड़ा मनोरथ)

आज श्रीजी में श्रीजी में किन्हीं वैष्णव द्वारा आयोजित छप्पनभोग का मनोरथ होगा.
नियम (घर) का छप्पनभोग वर्ष में केवल एक बार मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को ही होता है. इसके अतिरिक्त विभिन्न खाली दिनों में वैष्णवों के अनुरोध पर श्री तिलकायत की आज्ञानुसार मनोरथी द्वारा छप्पनभोग मनोरथ आयोजित होते हैं. 
इस प्रकार के मनोरथ सभी वैष्णव मंदिरों एवं हवेलियों में होते हैं जिन्हें सामान्यतया ‘बड़ा मनोरथ’ कहा जाता है.
 

मणिकोठा, डोल-तिबारी, रतनचौक आदि में छप्पनभोग के भोग साजे जाते हैं अतः श्रीजी में मंगला के पश्चात सीधे राजभोग अथवा छप्पनभोग (भोग सरे पश्चात) के दर्शन ही खुलते हैं.
श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.
राजभोग की अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में मीठी सेव, केसरयुक्त पेठा व पाँच-भात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात) अरोगाये जाते हैं. 

छप्पनभोग दर्शन में प्रभु सम्मुख 25 बीड़ा सिकोरी (सोने का जालीदार पात्र) में रखे जाते है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

मदन गोपाल गोवर्धन पूजत l
बाजत ताल मृदंग शंखध्वनि मधुर मधुर मुरली कल कूजत ll 1 ll
कुंकुम तिलक लिलाट दिये नव वसन साज आई गोपीजन l
आसपास सुन्दरी कनक तन मध्य गोपाल बने मरकत मन ll 2 ll
आनंद मगन ग्वाल सब डोलत ही ही घुमरि धौरी बुलावत l
राते पीरे बने टिपारे मोहन अपनी धेनु खिलावत ll 3 ll
छिरकत हरद दूध दधि अक्षत देत असीस सकल लागत पग l
‘कुंभनदास’ प्रभु गोवर्धनधर गोकुल करो पिय राज अखिल युग ll 4 ll

साज – आज श्रीजी में श्याम रंग की धरती (आधार वस्त्र) पर श्वेत ज़री से  गायों, बछड़ों के चित्रांकन वाली एवं श्वेत ज़री की लैस के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल बड़े बूटा के ज़री की तुईलैस से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघस्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फिरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लाल बड़े बूटा के टिपारा के ऊपर पीला गौकर्ण, रूपहरी ज़री का घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
चोटीजी मीना की बायीं ओर धरायी जाती है.
कमल माला धरायी जाती हैं. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
लहरिया के वेणुजी और दो वेत्रजी(एक सोना का) धराये जाते हैं. पट लाल व गोटी सोना की बाघ-बकरी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं और छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं.
टिपारा बड़ा नहीं किया जाता व लूम-तुर्रा नहीं धराये जाते है.

Wednesday, 27 November 2024

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण त्रयोदशी (प्रथम)

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण त्रयोदशी (प्रथम)
Thursday, 28 November 2024

श्री गुसांईजी के सप्तम लालजी श्री घनश्यामजी का प्राकट्योत्सव

विशेष – आज श्री गुसांईजी के सप्तम लालजी श्री घनश्यामजी का प्राकट्योत्सव है. श्री गुसांईजी ने आपको श्री मदनमोहनजी का स्वरुप सेवा हेतु प्रदान किया था. 

आज श्री घनश्यामजी की ओर से श्रीजी को कुल्हे जोड़ का श्रृंगार धराया जाता है. 
श्री घनश्यामजी षडऐश्वर्य में वैराग्य के स्वरुप थे अतः प्रभु को मयूरपंख की जोड़, प्रभु में आपका अनुराग था अतः अनुराग के भाव के लाल वस्त्र एवं उभय स्वामिनी जी के भाव से पीले ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. 

आज गोपमास के भाव से श्री नवनीतप्रियाजी और कई अन्य कई पुष्टिमार्गीय वैष्णव मंदिरों में विशेष रूप से उड़द दाल की कचौरी अरोगायी जाती है.

आज श्रीजी को नियम के लाल साटन के चाकदार वागा धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर पन्ना की जडाऊ कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चन्द्रिका धरायी जाती है.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
इसके अतिरिक्त आज गोपीवल्लभ भोग में ही श्री नवनीतप्रियाजी में से उड़द दाल की कचौरी व छुकमां दही श्रीजी के भोग हेतु आते हैं.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

श्री गुसांईजी के सभी पुत्रों के उत्सव सातों गृहों में मनाये जाते हैं अतः आज द्वितीय पीठाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी एवं तृतीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री द्वारिकाधीशजी (कांकरोली) के घर से भी श्रीजी के भोग हेतु सामग्री आती है. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

जयति रुक्मणी नाथ पद्मावती प्राणपति व्रिप्रकुल छत्र आनंदकारी l
दीप वल्लभ वंश जगत निस्तम करन, कोटि ऊडुराज सम तापहारी ll 1 ll
जयति भक्तजन पति पतित पावन करन कामीजन कामना पूरनचारी l
मुक्तिकांक्षीय जन भक्तिदायक प्रभु सकल सामर्थ्य गुन गनन भारी ll 2 ll
जयति सकल तीरथ फलित नाम स्मरण मात्र वास व्रज नित्य गोकुल बिहारी l
‘नंददास’नी नाथ पिता गिरिधर आदि प्रकट अवतार गिरिराजधारी ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में लाल साटन की सुनहरी ज़री की किनारी के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल साटन के सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं इसी प्रकार के टंकमां हीरा के काम वाले मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर पन्ना की जड़ाऊ कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
बायीं ओर मीना की चोटी धरायी जाती है. 
कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है.
 श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में पन्ना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (सोने व पन्ना के) धराये जाते हैं. 
पट लाल एवं गोटी स्याम मीना की आती हैं.
आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोना की डांडी की आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ व श्रीमस्तक के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लाल कुल्हे धरायी जाती है परन्तु लूम तुर्रा नहीं धराये जाते हैं.

Tuesday, 26 November 2024

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण द्वादशी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण द्वादशी
Wednesday, 27 November 2024

प्रथम द्वादशी (चोकी) के शृंगार

आज प्रभु को बैंगनी घेरदार वस्त्र पर सुनहरी ज़री की फतवी (आधुनिक जैकेट जैसी पौशाक) धरायी जाती है. प्रभु की कटि (कमर) पर एक विशेष हीरे का चपड़ास (गुंडी-नाका) श्रीमस्तक पर सुनहरी चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर लूम की सुनहरी किलंगी धरायी जाती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आशावरी)

व्रज के खरिक वन आछे बड्डे बगर l
नवतरुनि नवरुलित मंडित अगनित सुरभी हूँक डगर ll 1 ll
जहा तहां दधिमंथन घरमके प्रमुदित माखनचोर लंगर l
मागधसुत वदत बंदीजन जस राजत सुरपुर नगरी नगर ll 2 ll
दिन मंगल दीनि बंदनमाला भवन सुवासित धूप अगर l
कौन गिने ‘हरिदास’ कुंवर गुन मसि सागर अरु अवनी कगर ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में बेंगनी रंग की सुनहरी ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को बैंगनी रंग का बिना  किनारी का सुसज्जित सूथन, घेरदार वागा, चोली एवं सुनहरी ज़री की फतवी (Jacket) धरायी जाती है. सुनहरी एवं बैंगनी रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र श्वेत रंग के लट्ठा के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर सुनहरी रंग के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर सिरपैंच, लूम की सुनहरी किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.आज फ़तवी धराए जाने से कटिपेच बाजु एवं पोची नहीं धरायी जाती हैं. आज प्रभु को श्रीकंठ में हीरा की कंठी धराई जाती हैं.
 श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्तं में हीरा की मुठ के एक वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट बैंगनी एवं गोटी सोना की छोटी आती हैं.
आरसी श्रृंगार में सोना की एवं राजभोग में बटदार आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. अनोसर में श्रीमस्तक पर चीरा रहता हैं एवं आड़ी एवं ठाड़ी लड़ धरायी जाती हैं.लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.

Sunday, 24 November 2024

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी
Monday, 25 November 2024

प्रथम घटा (हरी)

विशेष – श्रीजी में शीतकाल में विविध रंगों की घटाओं के दर्शन होते हैं. 
घटा के दिन सर्व वस्त्र, साज आदि एक ही रंग के होते हैं. आकाश में वर्षाऋतु में विविध रंगों के बादलों के गहराने से जिस प्रकार घटा बनती है उसी भाव से श्रीजी में मार्गशीर्ष व पौष मास में विविध रंगों की द्वादश घटाएँ द्वादश कुंज के भाव से होती हैं. 

कई वर्षों पहले चारों यूथाधिपतिओं के भाव से चार घटाएँ होती थी परन्तु गौस्वामी वंश परंपरा के सभी तिलकायतों ने अपने-अपने समय में प्रभु के सुख एवं वैभव वृद्धि हेतु विभिन्न मनोरथ किये. इसी परंपरा को कायम रखते हुए नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज ने निकुंजनायक प्रभु के सुख और आनंद हेतु सभी द्वादश कुंजों के भाव से आठ घटाएँ बढ़ाकर कुल बारह (द्वादश) घटाएँ कर दी जो कि आज भी चल रही हैं. 
इनमें कुछ घटाएँ नियत दिनों पर एवं अन्य कुछ ऐच्छिक है जो खाली दिनों में ली जाती हैं. 

ये द्वादश कुंज इस प्रकार है –
अरुण कुंज, हरित कुंज, हेम कुंज, पूर्णेन्दु कुंज, श्याम कुंज, कदम्ब कुंज, सिताम्बु कुंज, वसंत कुंज, माधवी कुंज, कमल कुंज, चंपा कुंज और नीलकमल कुंज.

जिस रंग की घटा हो उसी रंग के कुंज की भावना होती है. इसी श्रृंखला में हरित कुंज के भाव से आज श्रीजी में हरी घटा होगी. 

इसका एक भाव और है कि प्रभु श्री श्यामसुंदर नीलवर्ण हैं और श्री स्वामिनी पीत वर्ण. दोनों वर्णों के मिलने से हरा रंग बनता हैं अतः आज सर्वप्रथम हरी घटा होती है. 

साज, वस्त्र, श्रृंगार, मालाजी आदि सभी हरे रंग के होते हैं. 
कीर्तन भी हरी घटा की भावना के गाये जाते हैं. 

सभी घटाओं में राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में काफ़ी जल्दी हो जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

मेरो माई हरि नागर सो नेह l
एक बैर कैसे छूटत है पूरब बढ्यो सनेह ll 1 ll
अंग अंग निपुन बन्यो जदुनंदन श्याम बरन सब देह l
जबते दृष्टि परे नंद नंदन विसर्यो गेह ll 2 ll
कोऊ निंदो कोऊ वंदौ मो मन गयो संदेह l
सरिता सिंधु मिलि ‘परमानंद’ भयो एक रस नेह ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज हरे रंग के दरियाई वस्त्र की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर हरी बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को हरे रंग के दरियाई वस्त्र का रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, घेरदार, एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी हरे रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हरे रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, हरा रेशम का दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 

श्रीकर्ण में पन्ना के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
हरे रंग के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट हरा व गोटी हरे मीना की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Saturday, 23 November 2024

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण नवमी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण नवमी
Sunday, 24 November 2024

शीतकाल का प्रथम सखड़ी मंगलभोग

आज की सेवा श्री कृष्णावतीजी की ओर से होती है. आज विशेष रूप से मोती के काम वाले वस्त्र, गोल-पाग एवं श्रृंगार आदि नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दामोदरलालजी महाराजश्री की आज्ञा से धराये जाते हैं. 
कीर्तन भी मोती की भावना वाले गाये जाते हैं.

कल मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी को श्रीजी में प्रथम (हरी) घटा होगी.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

मोती तेहू ठोर सबरारे l
जबहि तेरे गई चितवत उत जब नंदलाल पधारे ll 1 ll
अर्ध प्रोवत म श्याम मनोहर निकसे आय सवारे l
आधी लट कर लेव चली है जित व्रजनाथ सिधारे ll 2 ll
‘दास चतुर्भुज’ प्रभु चित्त चोर्यो गेह के काज बिसारे l
गिरिधरलाल भेंट बनमें तृन तौर सबै व्रत डारे ll 3 ll

साज – श्रीजी को आज श्याम रंग की साटन की, रुपहले मोतियों की बूटियों वाली तथा रुपहली ज़री की किनारी के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को श्याम रंग की साटन के ऊपर ‘बसरा’ के मोतियों के सुन्दर काम वाला सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र गहरे लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर श्याम रंग की मोती के काम वाली गोल-पाग, सिरपैंच, दोहरा मोतियों का कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत एवं पीले पुष्पों की गुलाबी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में मोती के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट श्याम व गोटी चांदी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Friday, 22 November 2024

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी
Saturday, 23 November 2024

श्रीविठ्ठलनाथजुके आज बधाई ।
मार्गशिर कृष्ण अष्टमीको शशी उदयो पूरण माई ।।१।।
पूरे चोक धाम मोतिनके बंदनवार बंधाई ।
ध्वजा पताका दीप कलश सज धूप सुगंध महाई ।।२।।
बाजत ढोल निशान नगारे झांझ झमक सहनाई ।
गगन विमानन छाय रह्यो है देव कुसुम बरखाई ।।३।।
श्रुति मुख बोलत जय जय बोलत डोलत चहुर्दिश धाई ।
रसिकदास मतिहीन दीन अति गोविंद नाम कहाई ।।४।।

श्री गुसांईजी के द्वितीय पुत्र नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोविन्दरायजी का प्राकट्योत्सव

विशेष – आज श्री गुसांईजी के द्वितीय पुत्र नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोविन्दरायजी का प्राकट्योत्सव है. (विस्तुत विवरण अन्य पोस्ट में)

श्री गुसांईजी के सभी सात लालजी के प्राकट्योत्सव सभी सात गृहों में उत्सववत मनाये जाते हैं.

नियम के वस्त्र पीले साटन के सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर पीले कुल्हे पर सुनहरी चमक का घेरा धराया जाता है.

आज श्रीजी को धराये जाने वाले वस्त्र द्वितीय पीठाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से सिद्ध हो कर आते हैं. 

वस्त्र के साथ जलेबी घेरा की एक छाब भी श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु वहाँ से आती हैं.
साथ ही आज प्रभु श्री द्वारिकाधीशजी (कांकरोली) के घर से भी श्रीजी के भोग हेतु जलेबी के टूक की सामग्री आती है.

आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

गोवल्लभ गोवर्धन वल्लभ श्रीवल्लभ गुन गिने न जाई l
भुवकी रेनु तरैया नभकी घनकी बूँदें परति लखाई ll 1 ll
जिनके चरन कमल रज वन्दित संतन होत सदा चितचाई l
‘छीतस्वामी गिरिधरन श्रीविट्ठल’ नंदनंदन की सब परछाई ll 2 ll  

साज – श्रीजी में आज पीली साटन के वस्त्र पर कत्थइ(मैरून) हांशिया वाली एवं रुपहली ज़री की चौकड़ी की सज्जा वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को पिले साटन का सुनहरी तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं जडाऊ मोजाजी (गोकुलनाथजी के) धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर जड़ाव की कुल्हे (गोकुलनाथजी की) के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी चमक का घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकंठ में कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है. मीना की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी(एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट पीला, गोटी श्याम मीना की व आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.  

संध्या-आरती दर्शन उपरान्त श्रीजी के श्रीकंठ व श्रीमस्तक के श्रृंगार बड़े किये जाते हैं और श्रीकंठ में छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं वहीँ श्रीमस्तक पर जड़ाव की कुल्हे के स्थान पर केसरी कुल्हे व जड़ाव मोजाजी के स्थान पर केसरी मोजाजी धराये जाते हैं. लूम-तुर्रा नहीं धराये जाते हैं. 

Thursday, 21 November 2024

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण सप्तमी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण सप्तमी
Friday, 22 November 2024

नाथद्वारा के युगपुरुष नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री का प्राकट्योत्सव

विशेष – आज वर्तमान पूज्य तिलकायत गौस्वामी श्री राकेशजी महाराजश्री के पितृचरण एवं नाथद्वारा के इतिहास के युगपुरुष कहलाने वाले नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराज श्री का प्राकट्योत्सव है.(विस्तुत विवरण अन्य पोस्ट में)

आज की सेवा श्री रसालिकाजी एवं श्री ललिताजी के भाव से होती है.

श्रीजी को नियम के पतंगी साटन के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर केसरी रंग की छोरवाली गोल पाग के ऊपर गोल-चंद्रिका धरायी जाती है. उत्सव की बधाई के रूप में बाललीला के पद गाये जाते हैं.

सामान्यतया सभी बड़े उत्सवों पर प्रभु को भारी श्रृंगार धराया जाता है परन्तु आपश्री का भाव था कि भारी आभरण से प्रभु को श्रम होगा अतः आपश्री ने आपके जन्मदिवस पर प्रभु को हल्का श्रृंगार धरा कर लाड़ लडाये.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में प्रभु को केशरयुक्त जलेबी के टूक, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व चार फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में केसरयुक्त पेठा, मीठी सेव व छःभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात और नारंगी भात) आरोगाये जाते हैं. 

सामान्यतया उत्सवों पर पांचभात ही अरोगाये जाते हैं. छठे भात के रूप में (नारंगी भात) शीतकाल में कुछेक विशेष दिनों में ही अरोगाये जाते हैं. 

श्रृंगार से राजभोग के भोग आवे तब तक पलना के भरतकाम वाली पिछवाई धरायी जाती है.

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीवल्लभनंदन रूप अनुप स्वरूप कह्यो न जाई । 
प्रगट परमानंद गोकुल बसत है सब जगत को जो सुखदाई ।।१।।
भक्ति-मुक्ति देत सबको निजजन को कृपा प्रेम बरखत अधिकाई ।
सुखमय सुखद एक रसना कहांलो वरनौ गोविंद बलि जाई ।।२।।

श्रृंगार दर्शन –

साज – आज श्रीजी में केसरी साटन की सलमा-सितारा के भरतकाम वाली पिछवाई साजी जाती है जिसमें नन्द-यशोदा प्रभु को पलना झुला रहे हैं और पलने के ऊपर मोती का तोरण शोभित है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज पतंगी रंग की साटन का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी वाला सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पीला मलमल का रुपहली ज़री की किनारी वाला कटि-पटका धराया जाता है. मोजाजी भी पीले मलमल के एवं मेघश्याम रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर पीले मलमल की छोरवाली (ऊपर-नीचे छोर) गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच की जगह हीरा का शीशफूल पर हीरा की दो तुर्री, घुंडी की लूम एवं चमक की गोल-चन्द्रिका धरायी जाती हैं. अलख धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में हीरा की बद्दी व एक पाटन वाला हार धराया जाता है.
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी सुन्दर थागवाली एक मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में द्वादशी वाले वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट उत्सव का, गोटी कांच की व आरसी शृंगार में लाल मख़मल की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है

Wednesday, 20 November 2024

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण षष्ठी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण षष्ठी
Thursday, 21 November 2024

मेघश्याम साटन के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर मेघश्याम छज्जेदार पाग पर सीधी चन्द्रिका के शृंगार

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आसावरी)

जाको मन लाग्यो गोपाल सों ताहि ओर कैसें भावे हो ।
 लेकर मीन दूधमे राखो जल बिन सचु नहीं पावे हो ।।१।।
ज्यो सुरा रण घूमि चलत है पीर न काहू जनावे हो ।
ज्यो गूंगो गुर खाय रहत है सुख स्वाद नहि बतावे हो ।।२।।
जैसे सरिता मिली सिंधुमे ऊलट प्रवाह न आवे हो । 
तैसे सूर  कमलमुख निरखत चित्त ईत ऊत न डुलावे हो ।।३।।

साज – आज श्रीजी में मेघश्याम रंग की शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज मेघश्याम साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं.ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया है. गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर मेघश्याम छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, सीधी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
पीले एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में झीने लहरियाँ के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट मेघस्याम एवं गोटी चाँदी की बाघबकरी धरायी जाती हैं.

Tuesday, 19 November 2024

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण पंचमी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण पंचमी
Wednesday, 20 November 2024

पाछली रात के श्रृंगार

विशेष – आज श्रीजी को नियम का ‘पाछली रात का श्रृंगार’ धराया जाएगा. 
इस श्रृंगार को धराये जाने का दिन नियत नहीं परंतु इन दिनों में अवश्य धराया जाता है. इस शृंगार में चीरा एवं मोजाजी सुनहरी धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर मोर चन्द्रिका एवं पिछवाई नियम के धराये जाते हैं. घेरदार वागा एवं ठाड़े वस्त्र इच्छा अनुसार धराये जासकते हैं.

ये व्रतचर्या के दिन हैं. व्रतचर्या के दिनों में गोप-कुमारियाँ प्रातः अँधेरे यमुना स्नान करने जाती हैं. प्रभु भी उनके पीछे पधारते हैं इस भावना के एक कीर्तन के आधार पर आज प्रातः श्रृंगार के दर्शन सामान्य दिनों की अपेक्षा कुछ जल्दी खोले जाते हैं.

इसी अद्भुत कीर्तन के आधार पर तत्कालीन परचारक महाराज श्री दामोदरलालजी की प्रार्थना पर तत्कालीन तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराजश्री ने आज का श्रृंगार अंगीकार कराया और तब से यह सेवाक्रम परंपरागत रूप से प्रतिवर्ष किया जाता है. 

आज सभी दर्शनों में इसी भाव के कीर्तन गाये जाते हैं.
कई वर्ष पूर्व आज के दिन श्रीजी के राजभोग लगभग सात बजे के पूर्व हो चुकते थे परन्तु अब प्रभु वैभव वृद्धि के कारण राजभोग तक का सेवाक्रम नियमित दिनों की तुलना में कुछ ही जल्दी होता है.
इसके अलावा पिछले कुछ वर्षों से पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञानुसार राजभोग अन्य दिनों की तुलना में कुछ ही जल्दी होते हैं जिससे बाहर से आने वाले वैष्णव प्रभु दर्शनों से वंचित न रहें.

कीर्तन – राजभोग (राग : तोड़ी)

कछु अब कहीं ना जय तेरी ऊनकी एक बिकट बात।
 आन आन प्रकृति कैसै बनि आवे जो तू डार तो हैंरी वै पात पात ।।१।।
 अब कहा कहत सोई जोई कहौ प्रीतमसो छाड़ि देरी ईत ऊतकी पांच सात।
अब ऎते पर गोविंद प्रभु पिय सुमुखि मनाई लैहै बातनि बातनि भयो प्रात।।२।।

राजभोग दर्शन –

साज – श्रीजी में आज लाल रंग के आधारवस्त्र (Base) पर केले के पत्तों, गायों, मयूर तथा पुष्प-लताओं के सुन्दर ज़रदोज़ी के काम की पिछवाई धरायी जाती है. हांशिया श्याम रंग का होता है जिसमें पुष्प-लताओं का सुन्दर ज़रदोज़ी का काम किया हुआ है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल साटन का रूपहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, घेरदार वागा धराये जाते हैं. सुनहरी ज़री के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 पन्ना की एक मालाजी हमेल की भांति धरायी जाती है. श्रीमस्तक पर सुनहरी चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. पीले एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी मीना की आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.

Monday, 18 November 2024

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्थी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्थी
Tuesday, 19 November 2024

नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दाऊजी कृत छह स्वरुप का उत्सव

आज के दिन छः स्वरुप पधारे थे अतः श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में चन्द्रावलीजी के भाव से यशस्वरुप चन्द्रमा की भांति स्वच्छ सफेद चाशनी वाली चन्द्रकला और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है वहीँ सखड़ी में मीठी सेव व केशरयुक्त पेठा अरोगाये जाते हैं.  

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीवल्लभ श्रीवल्लभ श्रीवल्लभ मुख जाके l
सुन्दर नवनीत के प्रिय आवत हरि ताही के हिय 
जन्म जन्म जप तप करि कहा भयो श्रम थाके ll 1 ll
मन वच अध तूल रास दाहन को प्रकट अनल पटतरको 
सुरनर मुनि नाहिन उपमा के l
‘छीतस्वामी’ गोवर्धनधारी कुंवर आये सदन प्रकट भये 
श्रीविट्ठलेश भजन को फल ताके ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज लाल आधारवस्त्र (Base) पर सुनहरी ज़री के बूटों के ज़रदोज़ी के काम (Work) वाली तथा श्याम आधारवस्त्र के ऊपर सुनहरी ज़री की पुष्प-लता की सुन्दर सज्जा वाले हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी में आज सुनहरी ज़री का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा एवं ऊर्ध्वभुजा की ओर रुपहली ज़री का अंतवर्ती पटका धराया जाता है. श्वेत एवं सुनहरी ज़री के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. उत्सववत हीरा की प्रधानता के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर रुपहली ज़री के बीच के दुमाला के ऊपर पन्ना का सिरपैंच (रूप-चौदस को आवे वह), सुनहरी जमाव की बीच की चन्द्रिका (काशी की), एक कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
आज चोटीजी नहीं धराई जाती हैं.
कली, कस्तूरी आदि सब माला धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
हीरा के वेणुजी एवं हीरा व पन्ना के वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट काशी का एवं गोटी कूदती हुई गायों की आती हैं.
आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में आरसी सोना के डांडी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर दिए जाते हैं. श्रीकंठ में छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. दुमाला बड़ा नहीं किया जाता और लूम-तुर्रा भी नहीं धराये जाते. 

Sunday, 17 November 2024

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण तृतीया

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण तृतीया
Monday, 18 November 2024

केसरी साटन के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर दुरंगी पाग पर क़तरा के शृंगार

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आसावरी)

सुनि मेरो वचन छबीली राधा, ते पायो रससिन्धु अगाधा।।१।।
जे रस निगम नेति नेति भाख्यो, ताकौ तै अधरामृत चाख्यो।।२।।
सिवविरंचि के ध्यान न आवै, ताको कुंजनि कुसुम बिनावे।।३।।
तु वृषभान गोपकी बेटी, मोहन लालको भावते भेटी।।४।।
तेरो भाग्य मोहि क़हत न आवे, कछुक रस परमानंद गावै ॥॥५॥॥

साज – श्रीजी में आज केसरी रंग की रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग की साटन (Satin) का सूथन, चोली, घेरदार वागा तथा मोजाजी धराये जाते हैं. घेरदार वागा, रूपहरी किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग  के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) चार माल का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फिरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर केसरी व सफेद रंग की दुरंगी पाग के ऊपर सिरपैंच, क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में फ़िरोज़ा के वेणुजी एवं वेत्रजी धरायी जाते हैं.   
पट केसरी एवं गोटी चाँदी की आती है.

Saturday, 16 November 2024

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण द्वितीया

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण द्वितीया
Sunday, 17 November 2024

हरे साटन के चागदार वागा एवं श्रीमस्तक पर फ़ीरोज़ा का जड़ाऊ ग्वालपगा पर पगा चंद्रिका (मोरशिखा) के शृंगार

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग :आसावरी)

चल री सखी नंदगाव जई बसिये,खिरक खेलत व्रजचंद सो हसिये ।।१।।
बसत बठेन सब सुखमाई,कठिन ईहै दुःख दूरि कन्हाई ।।२।।
माखन चोरत दूरि दूरि देख्यों,सजनी जनम सूफल करि लेखों ।।३।।
जलचर लोचन छिन छिन प्यासा, कठिन प्रीति परमानंददासा ।।४।।

साज – श्रीजी में आज सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली (शीतकाल की) एवं हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज हरे रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका हरे रंग का मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान के (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर फ़ीरोज़ा के जड़ाऊ ग्वालपगा के ऊपर सिरपैंच तथा पगा चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी एवं कमल माला धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट हरा व गोटी चाँदी की बाघ बकरी के आते है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण एवं फ़ीरोज़ा के जड़ाऊ ग्वालपगा  को बड़ा कर के छज्जेदार पाग धराई जाती हैं एवं शयन दर्शन हेतु छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Friday, 15 November 2024

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण प्रतिपदा

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण प्रतिपदा
Saturday, 16 November 2024

व्रतचर्या/गोपमास आरम्भ

मार्गशीर्ष अर्थात ‘गोपमास’ एवं पौष अर्थात ‘धनुर्मास’ अत्यधिक सर्दी वाले मास हैं, अतः देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन से बसंत पंचमी तक पुष्टि स्वरुप निज मंदिर से बाहर नहीं पधारते. 
श्री नवनीतप्रियाजी आदि जो स्वरुप पलना झूलते हैं उनके पलना के दर्शन भी निज मंदिर में ही होते हैं.

आज श्रीजी को नियम के पतंगी (गहरे लाल) रंग के साटन के वस्त्र एवं मोरचन्द्रिका धरायी जाती है. 
लाल रंग अनुराग का रंग है. श्री ललिताजी का स्वरुप अनुराग के रंग का है. 

आज से श्रीजी सम्मुख व्रतचर्या के पद गाये जाते हैं.

गोपिकाओं के अनुराग का प्रारंभ भी आज से होने से आज लाल रंग के वस्त्र धराये जाते हैं. 
गोप-कन्याएँ व्रजराज की निष्काम भक्त हैं एवं उनके प्रतीक के रूप में आज के वस्त्रों में सुनहरी पुष्प हैं. 
ये व्रजभक्त बालाएं श्री स्वामिनीजी की कृपा से प्रभुसेवा में अंगीकृत हुई अतः उनके यशस्वरुप ठाड़े वस्त्र श्वेत रंग के धराये जाते हैं. 
आज सारे दिन की सेवा श्री ललिताजी की है जिससे आपके स्वरुप एवं श्रृंगारवत प्रभु के श्रृंगार होते हैं.

गोपमास के आरंभ पर श्रीजी को आज विशेष रूप से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग की सखड़ी में मूंग की द्वादसी व खाडवे को अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : टोडी)

आये अलसाने लाल जोयें हम सरसाने अनत जगे हो भोर रंग राग के l
रीझे काहू त्रियासो रीझको सवाद जान्यो रसके रखैया भवर काहू बाग़ के ll 1 ll
तिहारो हु दोस नाहि दोष वा त्रिया को जाके रससो रस पागे जाग के l
‘तानसेन’ के प्रभु तुम बहु नायक आते जिन बनाय सांवरो पेच पाग के ll 2 ll 

साज – श्रीजी में आज लाल साटन की सुनहरी ज़री के ज़रदोज़ी के जायफल की बेल वाली एवं हरे रंग के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है. चरणचौकी, पडघा, झारीजी, बंटाजी आदि जड़ाव स्वर्ण के धरे जाते हैं.

वस्त्र – श्रीजी को आज पतंगी (गहरे लाल) रंग की साटन का सुनहरी ज़री की बूटी के काम (Work) वाले व रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. लाल एवं सफेद रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद लट्ठा के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना एवं सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर पतंगी (गहरे लाल) साटन की सुनहरी ज़री की बूटी वाले चीरा के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. एक रंग-बिरंगे पुष्पों की एवं दूसरी पीले पुष्पों की कलात्मक मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट लाल, गोटी छोटी सोना की व आरसी शृंगार में सोना की एवं राजभोग में बटदार आती है.
चोरसा स्याम सुतरु का आता हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर दिए जाते हैं. त्रवल बड़े नहीं किये जाते और श्रीमस्तक पर सुनहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.

Thursday, 14 November 2024

व्रज - कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा (चतुर्दशी क्षय)

व्रज - कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा (चतुर्दशी क्षय)
Friday, 15 November 2024
    
कार्तिक पूर्णिमा, गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री कृत चार स्वरूपोत्सव

विशेष – आज कार्तिक पूर्णिमा है. आज कार्तिक मास (व्रज अनुसार) का अंतिम दिन है. 
कल से गोपमास प्रारंभ हो जायेगा. ललित, पंचम आदि शीतकाल के राग व खंडिता, हिलग आदि कीर्तन गाये जाते हैं. 
कार्तिक, मार्गशीर्ष एवं पौष, ये तीनों मास ललिताजी की सेवा के मास हैं. इनमें से एक मास आज पूर्ण होता है. 

आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री कृत चार स्वरूपोत्सव का दिन है.
आज के दिन नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गोविंदलालजी कृत चार स्वरुप के उत्सव में श्री विठ्ठलेशरायजी, श्रीद्वारकाधीशजी एवं श्री बालकृष्णलालजी (सूरत) से पधारे और श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के संग छप्पनभोग का भव्य मनोरथ हुआ था।

श्रीजी का सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

आज नियम से श्रीजी को किरीट धराया जाता है. किरीट को ‘खूप’ या ‘पान’ भी कहा जाता है. 
मैं पूर्व में भी कई बार बता चुका हूँ कि अधिक गर्मी व अधिक शीत के दिनों में श्रीजी को मुकुट नहीं धराया जाता अतः उसके स्थान पर इन दिनों किरीट धराया जा सकता है. किरीट दिखने में मुकुट जैसा ही होता है परन्तु मुकुट एवं किरीट में कुछ अंतर होते हैं :

चार स्वरुप के उत्सव के कारण आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

गोवर्धन गिरी पर ठाड़े लसत l
चंहु दिस धेनु धरनी धावत तब नवमुरली मुख लसत ll 1 ll
मौर मुकुट मरगजी कछुक फूल सिर खसत l
नव उपहार लिये वल्लभप्रिय निरख दंगचल हसत ll 2 ll
‘छीतस्वामी’ वस कियो चाहत है संग सखा गुन ग्रसत l
झूठे मिस कर इत उत चाहत श्रीविट्ठल मन वसत ll 3 ll 

साज – आज श्रीजी को मेघश्याम मखमल के आधारवस्त्र पर सलमा-सितारा के सूर्य, चन्द्र व तारों के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं सुनहरी ज़री की किनारी के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को रुपहली ज़री के रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका श्वेत मलमल का धराया जाता है. मोजाजी गुलाबी रंग के एवं ठाड़े वस्त्र पतंगी या मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. मोजाजी के ऊपर हीरे के तोड़ा-पायल धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर जड़ाव का किरीट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर हीरे की चोटी धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में कस्तूरी, कली आदि व कमल माला धरायी जाती है. सफेद एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में चांदी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. पट ज़री का व गोटी मोर की आती है.

Wednesday, 13 November 2024

व्रज - कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी

व्रज - कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी
Thursday, 14 November 2024

नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गोविन्दजी का प्राकट्योत्सव (विशेष आलेख अन्य पोस्ट में)

विशेष – आज नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गोविन्दजी (१८७६) का उत्सव है.

श्रीजी का सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. दो समय की आरती थाली में की जाती है.

श्रीजी को नियम के पीले खीनखाब के चाकदार वागा और श्रीमस्तक पर लाल माणक की कुल्हे के ऊपर सुनहरी चमक का घेरा धराया जाता है. 

माणक की कुल्हे के ऊपर सुनहरी चमक का घेरा वर्षभर में केवल आज के दिन धराया जाता है.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केशरयुक्त जलेबी के टूक और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में बूंदी प्रकार अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीवल्लभ नंदन रूप अनूप स्वरुप कह्यो न जाई l
प्रकट परमानंद गोकुल बसत है सब जगत के सुखदाई ll 1 ll
भक्ति मुक्ति देत सबनको निजजनको कृपा प्रेम बर्षन अधिकाई l
सुखद रसना एक कहां लो वरनो ‘गोविंद’ बलबल जाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में पीले रंग की खीनख़ाब की लाल रंग के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर आज से पुनः सफेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज पीले खीनखाब के रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. मोजाजी लाल खीनखाब के धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. माणक एवं सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल रंग की माणक की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, माणक का दुलड़ा, सुनहरी चमक का घेरा तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
 कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है. श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में लाल मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (लाल मीना व स्वर्ण का) धराये जाते हैं.
पट लाल, गोटी श्याम मीना की व आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर दिए जाते हैं और छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर केसरी गोलपाग सिरपेच टीका एवं एक पंख की (सादी) मोर चन्द्रिका व मानक का झोरा धराये जाते हैं. आज लूम तुर्रा नहीं धराये जाते.

Tuesday, 12 November 2024

व्रज - कार्तिक शुक्ल द्वादशी

व्रज - कार्तिक शुक्ल द्वादशी 
Tuesday, 13 November 2024

मोर के चंदन मोर बन्यौ है
        दिन दूल्हे हैं अलि नंद को नंदन।
श्री वृषभानु सुता दुलही
         दिन जोड़ी बनी विधना सुखकंदन।।
आवै कह्यौ न कछु रसखानि हो
         दोऊ बंधे छवि प्रेम के फंदन ।
जाहि विलोकें सबै सुख पावत
           ये ब्रजजीवन हैं दुखदंदन ।।

गुसांई जी के प्रथम पुत्र श्री गिरधरजी एवं पंचम पुत्र श्री रघुनाथजी (कामवन) के प्राकट्योत्सव के शृंगार, लालाजी का अन्नकूट,
घेरदार वागा एवं चीरा के साथ सेहरा का श्रृंगार 

आज सायंकाल श्री नवनीतप्रियाजी के प्रसादी भंडार के समीप विराजित प्रभु श्री लालाजी का अन्नकूट मनोरथ होता है.

श्रीजी का सेवाक्रम - पर्व होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी की मेढ़ से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
गादीजी, खंड आदि मखमल के आते हैं. गेंद, दिवाला चौगान सभी सोने के आते हैं.

चारों दर्शनों (मंगला, राजभोग, संध्या-आरती व शयन) में आरती थाली में की जाती है. 
प्रभु की झारीजी सारे दिन यमुना जल से भरी जाती हैं.

सेवाक्रम - अक्षय नवमी की भांति आज भी श्रीजी की दिन भर की सेवा द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर की होती है अर्थात यदि द्वितीय पीठ के गौस्वामी परिवार के सदस्य नाथद्वारा में हों तो आज मंगला से शयन तक श्रीजी की सेवा के अधिकारी होते हैं अतः मंगला से शयन तक सभी समां में सेवा हेतु श्री विट्ठलनाथजी के मंदिर में खबर भेजी जाती है एवं द्वितीय गृहाधीश श्री कल्याणरायजी व उनके परिवारजन सभी समां में श्रृंगार धरने प्रभु को भोग धरने व आरती करने पधारते हैं.

आज प्रभु को धराये जाने वाले वस्त्र भी द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से सिद्ध हो कर आते हैं. वस्त्र के साथ जलेबी घेरा की एक छाब भी श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु वहाँ से आती हैं.

आज श्रीजी में विवाह के भाव से मोरछल करती एवं चँवर डुलाती गोपियों की पिछवाई एवं संकेत वन में विवाह के भाव से विवाह का श्रृंगार एवं सेहरा धराये जाते हैं. 

श्रृंगार समय विवाह के कीर्तन गाये जाते हैं.

आज के श्रृंगार की विशेषता यह है कि वर्षभर में केवल आज ही श्रीजी को घेरदार वागा के साथ सेहरा का श्रृंगार धराया जाता है. इसका कारण यह है कि कल के उत्सवनायक श्री गिरधरजी जिस दिन अपने सेव्य स्वरुप श्री मथुराधीश जी के मुखारविंद में सदेह प्रवेश कर नित्यलीला में पधारे उस दिन श्री मथुराधीशजी ने घेरदार वागा के साथ सेहरा का श्रृंगार धराया था. 

आज उन्हीं श्री गिरधरजी का उत्सव का श्रृंगार होने से वही श्रृंगार श्रीजी को धराया जाता है.

कल के उत्सव के भोगक्रम के रूप में आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केशरयुक्त जलेबी के टूक पाटिया और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का अरोगायी जाएगी. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में मीठी सेव स्यामखटाई अरोगाये जायेंगे

विवाह के पश्चात श्री ठाकुरजी सपरिवार वृषभानजी के घर भोजन को पधारते हैं इस भाव से राजभोग आवे तब आसावरी राग में यह कीर्तन गाया जाता है.

श्रीवृषभानसदन भोजन को नंदादिक मिलि आये हो l
तिनके चरनकमल धरिवे को पट पावड़े बिछाये हो ll 1 ll
रामकृष्ण दोऊ वीर बिराजत गौर श्याम दोऊ चंदा हो l
तिनके रूप कहत नहीं आवे मुनिजन के मनफंदा हो ll 2 ll
चंदन घसि मृगमद मिलाय के भोजन भवन लिपाये है l
विविध सुगंध कपूर आदि दे रचना चौक पुराये हो ll 3 ll
मंडप छायो कमल कोमल दल सीतल छांहु सुहाई हो l
आसपास परदा फूलनके माला जाल गुहाई हो ll 4 ll....अपूर्ण

इसके अतिरिक्त शयन तक विवाह के ही कीर्तन गाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

दिन दुल्है मेरो कुंवर कन्हैया l 
नित उठ सखा सिंगार बनावत नितही आरती उतारत मैया ll 1 ll
नित उठ आँगन चंदन लिपावे नित ही मोतिन चौक पुरैया l
नित ही मंगल कलश धरावे नित ही बंधनवार बंधैया ll 2 ll
नित उठ व्याह गीत मंगलध्वनि नित सुरनरमुनि वेद पढ़ैया l
नित नित होत आनंद वारनिधि नित ही ‘गदाधर’ लेत बलैया ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज लाल रंग के आधारवस्त्र (Base Fabric) पर मोरछल करती एवं चँवर डुलाती गोपियों की ज़री के ज़रदोज़ी के काम (Work) से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया पर लाल रंग की एवं चरणचौकी पर हरे रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज सुनहरी लाल ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं एवं केसरी मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. सुनहरी ज़री के मोजाजी भी धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – प्रधानतया हीरा, माणक, पन्ना तथा जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर सुनहरी लाल ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर हीरा को सेहरा, दो तुर्री, मोती की लूम एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. सेहरा पर हीरा की चोटी दायीं ओर धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में हीरा, पन्ना, माणक और मोती के हार, दुलड़ा आदि उत्सववत धराये जाते हैं. गुलाबी एवं पीले पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं. 
पट काशी का गोटी राग रंग के आते हैं.
आरसी चार झाड़ की दिखाई जाती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के शृंगार सेहरा एवं श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं और शयन दर्शन हेतु छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर टिका एवं सिरपेच एवं लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Monday, 11 November 2024

व्रज - कार्तिक शुक्ल एकादशी

व्रज - कार्तिक शुक्ल एकादशी
Tuesday, 12 November 2024

देव प्रबोधिनी एकादशी व्रत (देव-दीवाली)

"देव दिवारी शुभ एकादशी" की खूब खूब बधाई

देव दिवारी शुभ एकादशी,
हरी प्रबोध कीजे हो आज।।
निंद्रा तजो उठो हो गोविंद,
सकल विश्र्व हित काज।।१।।
घर घर मंगल होत सबनके,
ठौर ठौर गावत ब्रिजनारी।।
"परमानंद दास" को ठाकुर,
भक्त हेत लीला अवतारी।।२।।

देव प्रबोधिनी एकादशी (देव-दीवाली)

आज प्रभु को नियम के सुनहरी ज़री के चाकदार वागा व श्रीमस्तक पर जड़ाव की कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ धरायी जाती है.  

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

जाको वेद रटत ब्रह्मा रटत शम्भु रटत शेष रटत,
नारद शुक व्यास रटत पावत नहीं पाररी l
ध्रुवजन प्रह्लाद रटत कुंती के कुंवर रटत,
द्रुपद सुता रटत नाथ अनाथन प्रति पालरी ll 1 ll
गणिका गज गीध रटत गौतम की नार रटत,
राजन की रमणी रटत सुतन दे दे प्याररी l
‘नंददास’ श्रीगोपाल गिरिवरधर रूपजाल,
यशोदा को कुंवर प्यारी राधा उर हार री ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज श्याम मखमल के आधार वस्त्र पर विद्रुम के पुष्पों के जाल के सुन्दर भारी ज़रदोज़ी काम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी के ऊपर लाल रंग की, तकिया के ऊपर श्याम रंग की ज़री के कामवाली एवं चरणचौकी के ऊपर हरे मखमल की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज सुनहरी ज़री का सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से ही सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका रुपहली ज़री का व चरणारविन्द में लाल रंग के जड़ाऊ मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) उत्सव वत भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा की प्रधानता के स्वर्ण आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर सुनहरी ज़री की जडाऊ कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. उत्सव की हीरा की चोटी (शिखा) बायीं ओर धरायी जाती है. 
स्वर्ण का जड़ाव का चौखटा पीठिका पर धराया जाता है. 
श्रीकंठ में हीरा, पन्ना, माणक व नीलम के हार, माला आदि धराये जाते हैं. कस्तूरी, कली की माला धरायी जाती है.  
श्वेत पुष्पों की लाल एवं हरे पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

Sunday, 10 November 2024

व्रज - कार्तिक शुक्ल दशमी

व्रज - कार्तिक शुक्ल दशमी 
Monday, 11 November 2024

आगम के शृंगार

कल कल देव प्रबोधिनी का उत्सव है . अतः आज उत्सव के एक दिन पूर्व धराया जाने वाला आगम के लाल-पीले वस्त्र व मोर चंद्रिका का हल्का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग :सारंग)

अनत न जैये पिय रहिये मेरे ही महल l
जोई जोई कहोगे पिय सोई सोई करूँगी टहल ll१ll
शैय्या सामग्री बसन आभूषण सब विध कर राखूँगी पहल l
चतुरबिहारी गिरिधारी पिया की रावरी यही सहल ll२ll

साज – आज श्रीजी में श्याम आधारवस्त्र पर खण्डों में रूपहरी कूदती गायों के कशीदा वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की ज़री पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा एवं पटका धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पिले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान के (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.पन्ना एवं सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल ज़री चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर सिरपैंच, उसके ऊपर-नीचे मोती की लड़, नवरत्न की किलंगी, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में पन्ना के कर्णफूल की एक जोड़ी धराये जाते हैं. 
पन्ना की चार मालाजी धरायी जाती है.
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हारे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी सोना की छोटी आती है.
आरसी शृंगार में छोटी सोना की एवं राजभोग में बटदार दिखाई जाती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं और शयन दर्शन हेतु छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.
अनोसर में चीरा बड़ा करके छज्जेदार पाग धरायी जाती हैं.

Saturday, 9 November 2024

व्रज - कार्तिक शुक्ल नवमी

व्रज - कार्तिक शुक्ल नवमी 
Sunday, 10 November 2024

अक्षय नवमी

इस तिथी का कभी क्षय नहीं होता और आज के दिन किये गये पुण्य व कर्म का क्षय नहीं होता अतः आज की तिथी अक्षय नवमी कहलाती है. 

आज के दिन से जुड़ा हुआ एक प्रसंग आपसे साझा करना चाहूँगा जो की 
नित्यलीलास्थ श्री कृष्णरायजी से जुड़ा हुआ हैं.
प्रभु श्री विट्ठलनाथजी की कृपा से द्वितीय गृह अत्यन्त वैभवपूर्ण स्वरुप में था और तत्समय श्रीजी में अत्यधिक ऋण हो गया. 
जब आपको यह ज्ञात हुआ तब आपने अपना अहोभाग्य मान कर प्रभु सुखार्थ अपना द्रव्य समर्पित किया और प्रधान पीठ को ऋणमुक्त कराया.

आप द्वारा की गयी इस अद्भुत सेवा के बदले में श्रीजी कृपा से आपको कार्तिक शुक्ल नवमी (अक्षय नवमी) की श्रीजी की की पूरे दिन की सेवा और श्रृंगार का अधिकार प्राप्त हुआ था. 
आज भी प्रभु श्री गोवर्धनधरण द्वितीय गृह के बालकों के हस्त से अक्षय नवमी के दिन की सेवा अंगीकार करते हैं.

आज श्रीजी प्रभु को अन्नकूट के दिन धराये वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं एवं गायों के चित्रांकन वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. हम ऐसा कह सकते हैं कि आज अन्नकूट का प्रतिनिधि का श्रृंगार धराया जाता है.

आज के पश्चात इस ऋतु में जल रंग से चित्रांकित पिछवाई नहीं आएगी.
आज प्रभु को पूरे दिन तुलसी की माला धरायी जाती है.

अक्षयनवमी का पर्व होने के कारण श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में दही की सेव (पाटिया) के लड्डू अरोगाये जाते हैं.

प्रभु को केशर, कस्तूरी व बूरे से युक्त पेठे के टूक अरोगाये जाते हैं.

राजभोग की सखड़ी में केसरयुक्त पेठा अरोगाया जाता है. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

सोहत लाल लकुटी कर राती l
सूथन कटि चोलना अरुन रंग पीताम्बरकी गाती ll 1 ll
ऐसे गोप सब बन आये जो सब श्याम संगाती l
प्रथम गुपाल चले जु वच्छ ले असीस पढ़ात द्विज जाती ll 2 ll
निकट निहारत रोहिनी जसोदा आनंद उपज्यो छाती l
‘परमानंद’ नंद आनंदित दान देत बहु भांति ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में बड़ी गायों के अद्भुत चित्रांकन से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल रंग की एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सलीदार ज़री का सूथन, रुपहली फुलकशाही ज़री की चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका सुनहरी ज़री का धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र अमरसी (चंपाई) रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) दो जोड़ी (माणक व पन्ना) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – हीरा, माणक, पन्ना तथा जड़ाव सोने के अन्नकूट की भांति आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर रुपहली फुलकशाही ज़री की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, लाल ज़री का गौ-कर्ण, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. चोटीजी बायीं ओर धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में टोडर व त्रवल दोनों धराये जाते हैं. कस्तूरी, कली आदि सभी माला धरायी जाती हैं.
गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (हीरा व स्वर्ण के) धराये जाते हैं.
पट नित्य का, गोटी जडाऊ व आरसी (दर्पण) सोने की व अन्य दर्शनों में पीले खंड की होती है.

संध्या-आरती दर्शन में तुलसी की गोवर्धन-माला (कन्दरा पर) धरायी जाती है.
प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृगार संध्या-आरती उपरांत बड़े (हटा) कर शयन समय छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर कुल्हे होती है अतः लूम, तुर्रा नहीं धराये जाते हैं. 
प्रातः की पिछवाई बड़ी कर फुलकशाही ज़री की पिछवाई आती है. 

शयनभोग की सखड़ी में पेठा-वड़ी का शाक एवं केसर युक्त पेठा अरोगाया जाता है.

Friday, 8 November 2024

व्रज - कार्तिक शुक्ल अष्टमी

व्रज - कार्तिक शुक्ल अष्टमी 
Saturday, 09 November 2024

गोपाष्टमी

मंगला दर्शन उपरांत प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

पिछवाई श्याम आधारवस्त्र पर खण्डों में कशीदे की श्वेत गायों की आती है.  
गौचारण के भाव से आज प्रभु को नियम का मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.

मुकुट के इस श्रृंगार के विषय में मैं पहले भी कई बार बता चुका हूँ कि प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है. 

इस उपरांत निकुँज लीला में भी मुकुट धराया जाता है. मुकुट उद्बोधक है एवं भक्ति का उद्बोधन कराता है.

आज इस ऋतु में मुकुट-काछनी का श्रृंगार अंतिम बार धराया जायेगा. 
शीतकाल में मान आदि की लीलाएँ होती है परन्तु रासलीला नहीं होती अतः मुकुट नहीं धराया जाता. 

आज से तीन दिन तक आठों समय में गौ-चारण लीला के कीर्तन गाये जाते हैं.
वस्त्र में काछनी लाल व हरी छापा की धरायी जाती है.

गोपाष्टमी के कारण आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (जलेबी-इलायची) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता भोग लगाया जाता है. सखड़ी में केशरयुक्त पेठा, मीठी सेव व दहीभात अरोगाये जाते हैं व संजाब (गेहूं के रवा) की खीर अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

गोपाल माई कानन चले सवारे l
छीके कांध बाँध दधि ओदन गोधन के रखवारे ll 1 ll
प्रातसमय गोरंभन सुन के गोपन पूरे श्रृंग l
बजावत पत्र कमलदल लोचन मानो उड़ चले भृंग ll 2 ll
करतल वेणु लकुटिया लीने मोरपंख शिर सोहे l
नटवर भेष बन्यो नंदनंदन देखत सुरनर मोहे ll 3 ll
खगमृग तरुपंछी सचुपायो गोपवधू विलखानी l
विछुरत कृष्ण प्रेम की वेदन कछु ‘परमानंद’ जानी ll 4 ll

साज – आज श्रीजी में श्याम आधारवस्त्र पर खण्डों में गायों के कशीदा वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल एवं चरणचौकी के ऊपर हरी बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग का रेशमी सूथन, मेघश्याम दरियाई वस्त्र की चोली एवं हरे छापा की बड़ी काछनी  व लाल छापा की छोटी काछनी धरायी जाती है. लाल दरियाई वस्त्र का रास-पटका (पीताम्बर) धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (चिकने लट्ठा) के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे की प्रधानता सहित पन्ना, माणक एवं जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हीरा की टोपी पर सोने का जड़ाव का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. आज (चोटी) नहीं धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में माला, दुलड़ा हार आदि धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी की माला धरायी जाती है.
पीले एवं लाल पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट काशी का व गोटी सोना की कूदते हुए बाघ बकरी की आती है.
आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की डांडी की दिखाई जाती हैं.


आज गोपाष्टमी से फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा (होलिका दहन) तक संध्या-आरती में प्रतिदिन श्रीजी को शाकघर में विशेष रूप से सिद्ध गन्ने के रस की एक डबरिया (छोटा बर्तन) अरोगायी जाती है. इस अवधि में कुछ बड़े उत्सवों पर इस रस में कस्तूरी भी मिश्रित होती है.

आज संध्या-आरती दर्शन में छोटा वैत्र श्रीहस्त में धराया जाता है.

दशहरा के दिन से प्रभु के सम्मुख काष्ट (लकड़ी) की गौमाता आती है जो आज संध्या-आरती दर्शन उपरांत विदा होती है.  

प्रातः धराये मुकुट, टोपी और दोनों काछनी संध्या-आरती दर्शन उपरांत बड़े कर दिए जाते हैं और शयन दर्शन में मेघश्याम चाकदार वागा धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लाल कुल्हे व तनी धराये जाते हैं. आभरण छेड़ान के (छोटे) धराये जाते हैं.

Thursday, 7 November 2024

व्रज - कार्तिक शुक्ल सप्तमी

व्रज - कार्तिक शुक्ल सप्तमी
Friday, 08 November 2024

स्याम ख़िनख़ाब के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर ग्वाल पगा पर पगा चंद्रिका के शृंगार

ये इन्द्रमान भंग के दिन है अतः कार्तिक शुक्ल तृतीया से अक्षय नवमी तक इन्द्रमान भंग के कीर्तन गाये जाते हैं. 

विशेष- विक्रम संवत २०६३ (वर्ष 2006) में आज सप्तमी के दिन पूज्य गोस्वामी तिलकायत श्री राकेशजी ने प्रभु श्री नवनीतप्रियाजी को व्रज पधराये थे. 
व्रज में लगभग एक माह आनंद वृष्टि कर कर प्रभु मार्गशीर्ष कृष्ण द्वादशी के दिन पुनः नाथद्वारा पधारे थे.

इस भाव से आज संध्या आरती समय मनोरथ व विशेष सामग्रियाँ अरोगायी जाती हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : धनाश्री)

माधोजु राखो अपनी ओट ।
वे देखो गोवर्धन ऊपर उठे है मेघ के कोट  ।।१।।
तुम जो शक्रकी पूजा मेटी वेर कियो उन मोट  l
नाहिन नाथ महातम जान्यो भयो है खरे टे खोट ।।२।।
सात घौस जल वर्ष सिरानो अचयो एक ही घोट  l
लियो उठाय गरुवो गिरी करपर कीनो निपट निघोट  ।।३।।
गिरिधार्यो तृणावर्त मार्यो जियो नंदको ढोट  l
‘परमानन्द’ प्रभु इंद्र खिस्यानो मुकुट चरणतर लोट ।।४।।

साज – श्रीजी में आज स्याम ख़िनख़ाब की हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज स्याम ख़िनख़ाब की सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान के (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर स्याम रंग के ग्वाल पगा पर सिरपैंच, पगा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धरायी जाती हैं. 
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
आज कमल माला धराई जाती हैं.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट स्याम व गोटी बाघ-बकरी के आते है.

प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृगार संध्या-आरती दर्शन उपरांत बड़े कर शयन समय छोटे (छेड़ान के) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर पगा बड़ा नहीं होता है अतः लूम, तुर्रा नहीं धराये जाते हैं.

Wednesday, 6 November 2024

व्रज - कार्तिक शुक्ल षष्ठी

व्रज - कार्तिक शुक्ल षष्ठी
Thursday, 07 November 2024

सुनहरी ज़री के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर चीरा (गोल पाग) पर पर गोल चन्द्रिका के शृंगार

ये इन्द्रमान भंग के दिन है अतः कार्तिक शुक्ल तृतीया से अक्षय नवमी तक इन्द्रमान भंग के कीर्तन गाये जाते हैं. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : धनाश्री)

कान्हकुंवर के कर पल्लव पर मानो गोवर्धन नृत्य करे ।
ज्यों ज्यों तान उठत मुरली में त्यों त्यों लालन अधर धरे ।।१।।
मेघ मृदंगी मृदंग बजावत दामिनी दमक मानो दीप जरे ।
ग्वाल ताल दे नीके गावे गायन के संग स्वरजु भरे ।।२।।
देत असीस सकल गोपीजन बरषाको जल अमीत झरे ।
यह अद्भुत अवसर गिरिधरको नंददास के दुःख हरे ।।३।।

साज – आज श्रीजी में सुनहरी ज़री की रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. तकिया के ऊपर श्वेत रंग की एवं गादी एवं चरणचौकी के ऊपर हरे मखमल की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज सुनहरी ज़री पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र स्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर सुनहरी रंग के चीरा (गोल पाग) के ऊपर सिरपैंच, गोल चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट सुनहरी व गोटी चाँदी की आती है.


प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृगार संध्या-आरती उपरांत बड़े (हटा) कर शयन समय छोटे (छेड़ान के) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर पाग पर लूम तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.

Tuesday, 5 November 2024

व्रज - कार्तिक शुक्ल पंचमी

व्रज - कार्तिक शुक्ल पंचमी 
Wednesday, 06 November 2024

लाभ पंचमी के शृंगार

विशेष – लाभपंचमी को लौकिक पर्व माना गया है अतः आज के दिन श्रीजी में इस निमित कुछ विशेष नहीं होता.

ये दिन गोवर्धन धारण व इन्द्रमान भंग के हैं अतः प्रातः से ही गोवर्धनलीला व इन्द्रमान भंग के कीर्तन गाये जाते हैं. 
पिछवाई भी गोवर्धनधारण की होती है.
श्रीजी को लाल सलीदार ज़री के चाकदार वागा, चोली, सूथन, टिपारा व लाल मलमल का पटका धराया जाता है. 
आभरण वनमाला के परन्तु चरणारविन्द से चार अंगुल ऊपर धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर मोर-चन्द्रिका व दोहरे कतरा धराये जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : धनाश्री)

महाबल कीनो हो व्रजनाथ l
ईत मुरली ऊत गोपिन सो रति ईत गोवर्धन हाथ ll 1 ll
उत बालक पय पान करावत ईत सुरभि तृणखात l
ऊतहि चरत वछरा अपने रस ग्वाल बजावत पाट ll 2 ll
कोप्यो इंद्र महाप्रलय को झर लायो दिन सात l
‘परमानन्द’ प्रभु राख लियो व्रज मेट इंद्र की घात ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में गोवर्धनधारण लीला के चित्रांकन वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. पिछवाई में मल्लकाछ टिपारा के श्रृंगार में कृष्ण-बलराम, नन्द-यशोदा, गोपीजन तथा श्री गिरिराजजी के ऊपर बरसते मेघों का अत्यंत सुन्दर चित्रांकन किया गया है. तकिया के ऊपर मेघश्याम रंग की एवं गादी के ऊपर लाल एवं चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सलीदार ज़री के रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द से चार अंगुल ऊपर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना एवं सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल ज़री की टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में मोर-चन्द्रिका, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला माला धरायी जाती है. गुलाब के पुष्पों की एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरियाँ के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी चाँदी की बाघ-बकरी की आती है.

प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृगार संध्या-आरती दर्शन उपरांत बड़े कर शयन समय छोटे (छेड़ान के) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर टिपारा बड़ा नहीं होता है अतः लूम, तुर्रा नहीं धराये जाते हैं.

Monday, 4 November 2024

व्रज - कार्तिक शुक्ल चतुर्थी

व्रज - कार्तिक शुक्ल चतुर्थी
Tuesday, 05 November 2024

हरी सलीदार ज़री के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर पर गोल चन्द्रिका के शृंगार

ये इन्द्रमान भंग के दिन है अतः कार्तिक शुक्ल तृतीया से अक्षय नवमी तक इन्द्रमान भंग के कीर्तन गाये जाते हैं. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : धनाश्री)

कान्हकुंवर के कर पल्लव पर मानो गोवर्धन नृत्य करे ।
ज्यों ज्यों तान उठत मुरली में त्यों त्यों लालन अधर धरे ।।१।।
मेघ मृदंगी मृदंग बजावत दामिनी दमक मानो दीप जरे ।
ग्वाल ताल दे नीके गावे गायन के संग स्वरजु भरे ।।२।।
देत असीस सकल गोपीजन बरषाको जल अमीत झरे ।
यह अद्भुत अवसर गिरिधरको नंददास के दुःख हरे ।।३।।

साज – आज श्रीजी में हरी सलीदार ज़री की रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. तकिया के ऊपर श्वेत रंग की एवं गादी एवं चरणचौकी के ऊपर हरे मखमल की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज हरी सलीदार ज़री पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हरे रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, गोल चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, गुलाबी मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट हरा व गोटी चाँदी की आती है.

प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृगार संध्या-आरती उपरांत बड़े (हटा) कर शयन समय छोटे (छेड़ान के) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर पाग पर लूम तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Sunday, 3 November 2024

व्रज - कार्तिक शुक्ल तृतीया

व्रज - कार्तिक शुक्ल तृतीया
Monday, 04 November 2024

फ़िरोज़ी ज़री के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर फ़िरोज़ी छज्जेदार पाग पर जमाव का क़तरा के शृंगार

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : धनाश्री)

माधोजु राखो अपनी ओट ।
वे देखो गोवर्धन ऊपर उठे है मेघ के कोट  ।।१।।
तुम जो शक्रकी पूजा मेटी वेर कियो उन मोट  l
नाहिन नाथ महातम जान्यो भयो है खरे टे खोट ।।२।।
सात घौस जल वर्ष सिरानो अचयो एक ही घोट  l
लियो उठाय गरुवो गिरी करपर कीनो निपट निघोट  ।।३।।
गिरिधार्यो तृणावर्त मार्यो जियो नंदको ढोट  l
‘परमानन्द’ प्रभु इंद्र खिस्यानो मुकुट चरणतर लोट ।।४।।

साज – आज श्रीजी में फ़िरोज़ी रंग की पिछवाई धरायी जाती है गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है

वस्त्र – श्रीजी को आज फ़िरोज़ी ज़री पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छेड़ान का (हल्का) श्रृंगार धराया है. गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर फ़िरोज़ी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
पीले एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट फ़िरोज़ी एवं गोटी मीना की धरायी जाती हैं.

Saturday, 2 November 2024

व्रज - कार्तिक शुक्ल द्वितीया

व्रज - कार्तिक शुक्ल द्वितीया
Sunday, 03 November 2024

आज दूज भैया की कहियत, कर लिये कंचन थाल के l
करो तिलक तुम बहन सुभद्रा, बल अरु श्रीगोपाल के ll १ ll
आरती करत देत न्यौछावर, वारत मुक्ता माल के l
‘आशकरण’ प्रभु मोहन नागर, प्रेम पुंज ब्रजबाल के ll २ ll

भाईदूज, यम द्वितीया

श्रीजी को आज नियम के लाल खीनखाब के चोली, सूथन, घेरदार वस्त्र धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर फुलक शाही ज़री का चीरा (ज़री की पाग) व पटका रुपहली ज़री का धराया जाता है.  

उत्सव भोग के रूप में गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से प्रभु को चाशनी वाले कसार के गुंजा व दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है. सखड़ी में मूंग की द्वादशी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में आगे के भोग धरकर श्रीजी को राजभोग की माला धरायी जाती है. झालर, घंटा, नौबत व शंख की ध्वनि के मध्य दण्डवत कर प्रभु को तिलक किया जाता है. 
प्रभु को बीड़ा व तुलसी समर्पित की जाती है. तदुपरांत विराजित सभी स्वरूपों को तिलक किया जाता है.
आटे की चार मुठियाँ वार के चून (आटे) की आरती की जाती है और न्यौछावर की जाती है. 
तदुपरांत पहले श्रीजी के मुखियाजी श्री तिलकायतजी को तिलक करते हैं और फिर श्री तिलकायतजी सभी उपस्थित सेवकों को तिलक करते हैं. 

बहन सुभद्रा के घर भोजन अरोगें इस भाव से प्रभु आज राजभोग अरोगते हैं.
भीतर तिलक व आरती होवें तब आशकरणदासजी द्वारा रचित निम्न कीर्तन गाया जाता है -

आज दूज भैया की कहियत, कर लिये कंचन थाल के l
करो तिलक तुम बहन सुभद्रा, बल अरु श्रीगोपाल के ll 1 ll
आरती करत देत न्यौछावर, वारत मुक्ता माल के l
‘आशकरण’ प्रभु मोहन नागर, प्रेम पुंज ब्रजबाल के ll 2 ll

भोग समय फीका के स्थान पर बीज-चालनी (घी में तले नमकीन सूखे मेवे व बीज) अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : धनाश्री)

अब न छांडो चरन कमल महिमा मैं जानी ।
सुरपति मेरो नाम धर्यो लोक अभिमानी ।।१।।
अबलों में नहि जानत ठाकर है कोई ।
गोपी ग्वाल राख लिये मेरी पत खोई ।।२।।
ऐरावत कामधेनुं गंगाजल आनी ।
हरि को अभिषेक कियो जयजय सुर बानी ।।३।।

राजभोग दर्शन –

साज – श्रीजी में आज लाल मखमल की सुरमा-सितारा की ज़री मोती के काम की, वृक्षावली के ज़रदोज़ी के काम वाली नित्य लीलास्थ श्री गोवर्धनलाल जी महाराज वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. तकिया के ऊपर मेघश्याम रंग की एवं गादी एवं चरणचौकी के ऊपर लाल मखमल की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की खीनख़ाब का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. बायीं ओर कटि (कमर) पर रुपहली ज़री की किनारी वाला लाल कटि-पटका (जिसका एक छोर आगे और एक बग़ल में) धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद रंग के चिकने लट्ठा के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती, विशेषकर पन्ना व सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. आज के दिन सदैव ऐसा छोटा श्रृंगार ही धराया जाता है. 
श्रीमस्तक पर सुनहरी फुलक शाही ज़री की पाग (चीरा) के ऊपर सिरपैंच के स्थान पर पन्ना, जिसके ऊपर नीचे मोती की लड़, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में पन्ना के कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगे पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी हीरा के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं. पट, गोटी जडाऊ व आरसी चार झाड की आती है.

प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृगार संध्या-आरती उपरांत बड़े (हटा) कर शयन समय छोटे (छेड़ान के) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर चीरा पर लूम तुर्रा धराये जाते हैं.

Friday, 1 November 2024

व्रज - कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा

व्रज - कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा
Saturday, 02 November 2024

मेघश्याम सलीदार ज़री के घेरदार वागा, श्रीमस्तक पर चीरा (गोल पाग) पर गोल चंद्रिका के शृंगार

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

ब्रजजन लोचन ही को तारो ।
सुन यशोमति तेरो पूत सपुतो कुल दीपक उजियारो ।।१।।
धेनु चरावत जात दूर तब होत भवन अति भारो ।
घोष सजीवन मुर हमारो छिन इत ऊत जिन टारो ।।२।।
सात द्योस गिरिराज धर्यो कर सात बरसको बारो ।
गोविंद प्रभु चिरजियो रानी तेरो सुत गोप वंश रखवारो ।।३।।

साज – आज श्रीजी में मेघश्याम ज़री की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को मेघश्याम सलीदार ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पीले रंग के ठाडे वस्त्र धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर मेघश्याम ज़री के चीरा (गोल पाग)के ऊपर सिरपैंच, गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं.
 गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट मेघश्याम एवं गोटी चाँदी की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराया जाता है.

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया  Saturday, 01 February 2025 इस वर्ष माघ शुक्ल पंचमी के क्षय के कारण कल माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन बसंत पंचमी का पर्व ह...