By Vaishnav, For Vaishnav

Thursday, 31 December 2020

व्रज – पौष कृष्ण द्वितीया

व्रज – पौष कृष्ण द्वितीया
Friday, 01 January 2021

आप सभी को व्यवहारिक नववर्ष की शुभकामनाएँ 

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 
मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को गुलाबी साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

गायनसो रति गोकुलसो रति गोवर्धनसों प्रीति निवाही ।
श्रीगोपाल चरण सेवारति गोप सखासब अमित अथाई ।।१।।
गोवाणी जो वेदकी कहियत श्रीभागवत भले अवगाही ।
छीतस्वामी गिरिधरन श्रीविट्ठल नंदनंदनकी सब परछांई ।।२।।

साज – श्रीजी में आज गुलाबी रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज गुलाबीसाटन पर  सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पतंगी रंग के दरियाई के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर गोल पाग के ऊपर सिरपैंच और जमाव का क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल की एक जोड़ी  धरायी जाती हैं. श्रीकंठ में चार माला एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गुलाबी व गोटी चाँदी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Wednesday, 30 December 2020

व्रज – पौष कृष्ण प्रतिपदा

व्रज – पौष कृष्ण प्रतिपदा
Thursday, 31 December 2020

नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री राजीवजी (श्री दाऊबावा) का प्राकट्योत्सव

आज पौष कृष्ण प्रतिपदा है और आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री राजीवजी (श्री दाऊबावा) का प्राकट्योत्सव है.

श्रीजी का सेवाक्रम – उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. 
आज दिनभर सभी समय श्री गुसांईजी की बधाई के कीर्तन गाये जाते हैं. चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है.  

श्रीजी को नियम के लाल साटन के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर किरीट मुकुट धराया जाता है.  

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

पौष निर्दोष सुख कोस सुंदरमास कृष्णनौमी सुभग नव धरी दिन आज l
श्रीवल्लभ सदन प्रकट गिरिवरधरन चारू बिधु बदन छबि श्रीविट्ठलराज ll 1 ll
भीर मागध भई पढ़त मुनिजन वेद ग्वाल गावत नवल बसन भूषणसाज l
हरद केसर दहीं कीचको पार नहीं मानो सरिता वही निर्झर बाज ll 2 ll
घोष आनंद त्रियवृंद मंगल गावें बजत निर्दोष रसपुंज कल मृदुगाज l
‘विष्णुदास’ श्रीहरि प्रकट द्विजरूप धर निगम पथ दृढथाप भक्त पोषण काज ll 3 ll

श्रृंगार दर्शन – 

साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की साटन की सुनहरी ज़री के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. पिछवाई में एक ओर आरती करते श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री एवं दूसरी ओर हाथ जोड़ कर प्रभु के दर्शन करते श्री दाऊबावा का कलाबत्तू का चित्रांकन किया हुआ है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की साटन का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा व लाल मलमल का पटका धराये जाते हैं. टंकमा हीरा के मोजाजी व ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं जिसके चारों ओर पुष्प-लताओं का चित्रांकन किया हुआ है. इस प्रकार के ठाड़े वस्त्र वर्षभर में केवल आज के दिन ही धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. सब हार के श्रृंगार धराये जाते हैं. तीन हार पाटन वाले धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर छिलमां हीरा का किरीट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर हीरा की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. पीठिका के ऊपर स्वर्ण का चौखटा धराया जाता है. 
कली, कस्तूरी व नीलकमल की माला धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी तथा दो वेत्रजी (हीरा व स्वर्ण के) धराये जाते हैं.
पट गोटी उत्सव की आती हैं.
आरसी शृंगार में लाल मख़मल की और राजभोग में सोना की डांडी की दीखाई जाती हैं.
 
श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केशर-युक्त चंद्रकला, दूधघर में सिद्ध केसर-युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में छःभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात और नारंगी भात) आरोगाये जाते हैं.

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा
Wednesday, 30 December 2020

आज गोपाल पाहुने आये निरखे नयन न अघाय री ।
सुंदर बदनकमल की शोभा मो मन रह्यो है लुभाय री ।।१।।
के निरखूं के टहेल करूं ऐको नहि बनत
ऊपाय री ।
जैसे लता पवनवश द्रुमसों छूटत फिर
लपटाय री ।।२।।
मधु मेवा पकवान मिठाई व्यंजन बहुत बनाय री ।
राग रंग में चतुर सुर प्रभु कैसे सुख उपजाय री ।।३।।

नियम (घर) का छप्पन भोग, बलदेवजी (दाऊजी) का उत्सव

आज श्रीजी में नियम (घर) का छप्पनभोग है. छप्पनभोग के विषय में कई भावनाएं प्रचलित हैं.

🌺 श्रीमदभागवत के अनुसार, व्रज की गोप-कन्याओं ने श्रीकृष्ण को पति के रूप में पाने की मनोकामना लिये एक मास तक व्रत कर, प्रातः भोर में यमुना स्नान कर श्री कात्यायनी देवी का पूजा-अर्चना की. श्रीकृष्ण ने कृपा कर उन गोप-कन्याओं की मनोकामना पूर्ति हेतु सहमति प्रदान की.
ऐसा कहा जाता है कि किसी भी व्रत के समापन के पश्चात यदि व्रत का उद्यापन नहीं किया जाये तो व्रत की फलसिद्धि नहीं होती अतः इन गोपिकाओं ने विधिपूर्वक व्रतचर्या की समाप्ति और मनोकामना पूर्ण होने के उपलक्ष्य में उद्यापन स्वरूप प्रभु को छप्पनभोग अरोगाया.

🌼 मैंने कहीं यह भी पढ़ा था एवं सुन्दर लगा अतः बता रह हूँ कि गौलोक में प्रभु श्रीकृष्ण व श्री राधिकाजी एक दिव्य कमल पर विराजित हैं.
उस कमल की तीन परतें होती हैं जिनमें प्रथम परत में आठ, दूसरी में सौलह और तीसरी परत में बत्तीस पंखुडियां होती हैं. प्रत्येक पंखुड़ी पर प्रभु भक्त एक सखी और मध्य में भगवान विराजते हैं.
इस प्रकार कुल पंखुड़ियों संख्या छप्पन होती है और इन पंखुड़ियों पर विराजित प्रभु भक्त सखियाँ भक्तिपूर्वक प्रभु को एक-एक व्यंजन का भोग अर्पित करती हैं जिससे छप्पनभोग बनता है.

🌺 छप्पनभोग की मुख्य पुष्टिमार्गीय भावना यह है कि वृषभानजी के निमंत्रण पर प्रभु नन्दकुमार श्रीकृष्ण अपने ससुराल भोजन हेतु सकुटुम्ब पधारे हैं.
वृषभानजी सबका स्वागत करते हैं एवं विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का भोग अरोगाया जाता है. वहीँ व्रजललनाएं मधुर स्वरों में गीत गाती हैं. इसी स्वामिनी भाव से आज कई गौस्वामी बालकों के यहाँ आज प्रभु पधार कर छप्पनभोग अरोगते हैं.
छप्पनभोग के भोग रखे जाएँ तब गदाधरदासजी का पद आसावरी राग में गाया जाता है.

श्रीवृषभान सदन भोजनको नंदादिक सब आये हो l
जिनके चरणकमल धरिवेको पट पावड़े बिछाये हो ll....

इस उपरांत भोजन के एवं बधाई के पद भी गाये जाते हैं.

एक अन्य मान्यता अनुसार श्री वल्लभाचार्य जी और श्री विट्ठलनाथजी,के वक्त सातो स्वरूप गोकुल में ही विराजते थे. अन्नकूट जति पूरा(गिरिराजजी)में होता था सातो स्वरूप पाधारते और साथ में आरोगते थे. एक बार श्रीनाथजी ने श्री गुसाईंजी सु कीनी के बावा में तो भुको रह जात हु ये सातो आरोग जात है तब आप श्री ने गुप्त रूप सु बिना अन्य स्वरूपण कु जताऐ सातो स्वरूप के भाव की विविध सामग्री(या छप्पन भोग में अनेकानेक प्रकार की सामगी,सखड़ी और अनसखड़ी में आरोगे)सिद्ध कराय आरोगायी यादिन श्रीजी में नगाड़े गोवर्धन पूजा चोक में नीचे बजे याको तात्पर्य है कि नगार खाने में ऊपर बजे तो सब स्वरूपण को खबर पड़ जाय जासु नीचे बजे ये प्रमाण है और प्रभु आप अकेले पुरो छप्पन भोग आरोगे और श्री गुसाईंजी पर ऐसे कृपा किये

🌼 पुष्टिमार्ग में प्रचलित एक अन्य प्रमुख मान्यता के अनुसार विक्रम संवत 1632 में आज के दिन नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोकुलनाथजी ने व्रज में गोकुल के समीप दाऊजी नामक गाँव में श्री बलदेवजी के मंदिर के जीर्णोद्धार पश्चात श्री बलदेव जी के स्वरुप को वेदविधि पूर्वक पुनःस्थापना की.
श्री बलदेवजी को हांडा अरोगाया था. तब गौस्वामी श्री गोकुलनाथजी ने विचार किया कि बड़े भाई (श्री बलदेवजी) के यहाँ ठाठ-बाट से मनोरथ हों और छोटे भाई (श्रीजी) के यहाँ कुछ ना हों यह तो युक्तिसंगत नहीं है अतः आपने श्रीजी को मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को छप्पनभोग अरोगाया एवं छप्पनभोग प्रतिवर्ष होवे प्रणालिका में ऐसा नियम बनाया.

तब से श्रीजी प्रभु को प्रतिवर्ष नियम का छप्पनभोग अंगीकृत किया जाता है वहीँ श्री बलदेवजी में भी आज के दिन भव्य मनोरथ होते हैं, स्वर्ण जड़ाव के हल-मूसल धराये जाते हैं एवं गाँव में मेले का आयोजन किया जाता है.

श्रीजी में विभिन्न ऋतुओं में श्री तिलकायत की आज्ञानुसार मनोरथियों द्वारा भी छप्पनभोग के मनोरथ भी कराये जाते हैं. घर के छप्पनभोग और मनोरथी के छप्पनभोग में कुछ अंतर होते हैं –

🌸 नियम (घर) के छप्पनभोग की सामग्रियां उत्सव से पंद्रह दिवस पूर्व अर्थात मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा से सिद्ध होना प्रारंभ हो जाती है परन्तु अदकी के छप्पनभोग की सामग्रियां मनोरथ से सात दिवस पूर्व ही सिद्ध होना प्रारंभ होती है.

🌸 नियम (घर) के छप्पनभोग ही वास्तविक छप्पनभोग होता है क्योंकि अदकी का छप्पनभोग वास्तव में छप्पनभोग ना होकर एक बड़ा मनोरथ ही है जिसमें विविध प्रकार की सामग्रियां अधिक मात्रा में अरोगायी जाती है.

🌸 नियम (घर) का छप्पनभोग गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में अरोगाया जाता है अतः इसके दर्शन प्रातः लगभग 11 बजे खुल जाते हैं जबकि अदकी का छप्पनभोग मनोरथ राजभोग में अरोगाया जाता है अतः इसके दर्शन दोपहर लगभग 1 बजे खुलते हैं.

🌸 नियम (घर) के छप्पनभोग में श्रीजी के अतिरिक्त किसी स्वरुप को आमंत्रित नहीं किया जाता जबकि अदकी के छप्पनभोग मनोरथ में श्री तिलकायत की आज्ञानुसार श्री नवनीतप्रियाजी व अन्य सप्तनिधि स्वरुप पधराये जा सकते हैं एवं ऐसा पूर्व में कई बार हो भी चुका है. 

🌸 नियम (घर) का छप्पनभोग उत्सव विविधता प्रधान है अर्थात इसमें कई अद्भुत सामग्रियां ऐसी होती है जो कि वर्ष में केवल इसी दिन अरोगायी जाती हैं परन्तु अदकी के छप्पनभोग मनोरथ संख्या प्रधान है अर्थात इसमें सामान्य मनोरथों में अरोगायी जाने वाली सामग्रियां अधिक मात्रा में अरोगायी जाती हैं.

श्रीजी का सेवाक्रम - श्रीजी में आज के दिन प्रातः 4.00 बजे शंखनाद होते हैं.
उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
सभी समय यमुनाजल की झारीजी भरी जाती है. चारों दर्शनों (मंगला, राजभोग संध्या-आरती व शयन) में आरती थाली में होती है.
गादी तकिया आदि पर सफेदी नहीं आती. तकिया पर मेघश्याम मखमल के व गदल रजाई पीले खीनखाब के आते हैं. गेंद, चौगान और दिवाला सोने के आते हैं.

मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

आज श्रीजी को नियम के तमामी (सुनहरी) ज़री के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर टिपारा के ऊपर रुपहली ज़री के गौकर्ण एवं सुनहरी ज़री का त्रिखुना घेरा धराया जाता है.

श्रृंगार व ग्वाल के दर्शन नहीं खोले जाते हैं.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.

गोपीवल्लभ भोग में ही छप्पनभोग के सखड़ी भोग निजमंदिर व आधे मणिकोठा में धरे जाते हैं. अनसखड़ी भोग मणिकोठा, डोल-तिबारी व रतनचौक में साजे जाते हैं.

धुप, दीप, शंखोदक होते हैं व तुलसी समर्पित की जाती है. भोग सरे उपरांत राजभोग धरे जाते हैं, नित्य का सेवाक्रम होता है और छप्पनभोग के दर्शन लगभग 11 बजे खुल जाते हैं.
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में पांचभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात और वड़ी-भात) आरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन में प्रभु के सम्मुख 25 बीड़ा की सिकोरी अदकी (स्वर्ण का जालीदार पात्र) धरी जाती है.

आज नियम का छप्पनभोग प्रभु अकेले ही अरोगते हैं अर्थात श्री नवनीतप्रियाजी अथवा कोई अन्य स्वरुप आज श्रीजी में आमंत्रित नहीं होते. यहाँ तक कि अन्य स्वरूपों को पता ना चले इस भाव से आज नक्कार खाने में नगाड़े भी नीचे गौवर्धन पूजा के चौक में बजाये जाते हैं.

श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु डला (विविध प्रकार के 56 सामग्रियों का एक छाब) भेजा जाता है.

भोग समय अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर घी में तले बीज-चालनी के सूखे मेवे अरोगाये जाते हैं.

छप्पनभोग सरे –

कीर्तन – (राग : आशावरी)

श्रीवृषभानसदन भोजन को नंदादिक मिलि आये हो l
तिनके चरनकमल धरिवे को पट पावड़े बिछाये हो ll 1 ll
रामकृष्ण दोऊ वीर बिराजत गौर श्याम दोऊ चंदा हो l
तिनके रूप कहत नहीं आवे मुनिजन के मनफंदा हो ll 2 ll
चंदन घसि मृगमद मिलाय के भोजन भवन लिपाये है l
विविध सुगंध कपूर आदि दे रचना चौक पुराये हो ll 3 ll
मंडप छायो कमल कोमल दल सीतल छांहु सुहाई हो l
आसपास परदा फूलनके माला जाल गुहाई हो ll 4 ll
सीतल जल कुंमकुम के जलसो सबके चरन पखारे हो ।
कर विनंती कर ज़ोर सबन सो कनकपटा बैठारे हो ।।५।।
राजत राज गोप भुवपति संग विमल वेश अहीरा हो ।
मनहु समाज राजहंसनको ज़ुरे सरोवर तीरा हो ।।६।।.....(अपूर्ण)

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

जयति रुक्मणी नाथ पद्मावती प्राणपति व्रिप्रकुल छत्र आनंदकारी l
दीप वल्लभ वंश जगत निस्तम करन, कोटि ऊडुराज सम तापहारी ll 1 ll
जयति भक्तजन पति पतित पावन करन कामीजन कामना पूरनचारी l
मुक्तिकांक्षीय जन भक्तिदायक प्रभु सकल सामर्थ्य गुन गनन भारी ll 2 ll
जयति सकल तीरथ फलित नाम स्मरण मात्र वास व्रज नित्य गोकुल बिहारी l
‘नंददास’नी नाथ पिता गिरिधर आदि प्रकट अवतार गिरिराजधारी ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में श्याम रंग की मखमल के ऊपर रुपहली ज़री से गायों के भरतकाम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को सुनहरी (तमामी) ज़री का सूथन, चोली, चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका व मोजाजी रुपहली ज़री के व ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) उत्सववत भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर सुनहरी ज़री की टिपारा की टोपी के ऊपर हीरा का किलंगी वाला सिरपैंच, रुपहली ज़री के गौकर्ण, सुनहरी ज़री का त्रिखुना घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. उत्सव की हीरा की चोटीजी बायीं ओर धरायी जाती है.
हीरा का प्राचीन जड़ाव का चौखटा पीठिका के ऊपर धराया जाता है.
कस्तूरी, कली आदि सभी माला धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उत्सव का व गोटी सोने की कूदती हुए बाघ बकरी की आती है. आरसी ग्वाल में चार झाड़ की व राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

Monday, 28 December 2020

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्दशी(द्वितीय)

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्दशी(द्वितीय)
Tuesday, 29 December 2020

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को लाल साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

कल मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को श्रीजी में घर (नियम) का छप्पनभोग होगा.

राजभोग दर्शन – 
कीर्तन – (राग : धनाश्री)

रानी तेरो चिरजीयो गोपाल ।
बेगिबडो बढि होय विरध लट, महरि मनोहर बाल॥१॥
उपजि पर्यो यह कूंखि भाग्य बल, समुद्र सीप जैसे लाल।
सब गोकुल के प्राण जीवन धन, बैरिन के उरसाल॥२॥
सूर कितो जिय सुख पावत हैं, निरखत श्याम तमाल।
रज आरज लागो मेरी अंखियन, रोग दोष जंजाल॥३।

साज – श्रीजी में आज लाल रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग के साटन पर  सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका लाल मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच और क़तरा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल की एक जोड़ी धरायी जाती हैं. श्रीकंठ में चार माला एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी चाँदी की एवं आरसी नित्य की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्दशी(द्वितीय)
Tuesday, 29 December 2020

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को लाल साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

कल मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को श्रीजी में घर (नियम) का छप्पनभोग होगा.

राजभोग दर्शन – 
कीर्तन – (राग : धनाश्री)

रानी तेरो चिरजीयो गोपाल ।
बेगिबडो बढि होय विरध लट, महरि मनोहर बाल॥१॥
उपजि पर्यो यह कूंखि भाग्य बल, समुद्र सीप जैसे लाल।
सब गोकुल के प्राण जीवन धन, बैरिन के उरसाल॥२॥
सूर कितो जिय सुख पावत हैं, निरखत श्याम तमाल।
रज आरज लागो मेरी अंखियन, रोग दोष जंजाल॥३।

साज – श्रीजी में आज लाल रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग के साटन पर  सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका लाल मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच और क़तरा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल की एक जोड़ी धरायी जाती हैं. श्रीकंठ में चार माला एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी चाँदी की एवं आरसी नित्य की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Sunday, 27 December 2020

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्दशी(प्रथम)

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्दशी(प्रथम)
Monday, 28 December 2020

श्रीजी में चतुर्थ (अमरसी) घटा

विशेष – आज श्रीजी में चतुर्थ (अमरसी) घटा होगी. आज की घटा नियम से मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को होने वाले घर के छप्पनभोग से एक दिन पहले होती है.

मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी से मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा तक पूर्णिमा को होने वाले घर (नियम) के छप्पनभोग उत्सव के लिए विशेष सामग्रियां सिद्ध की जाती हैं. ये विशेष रूप से सिद्ध हो रही सामग्रियां प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को अरोगायी जाती हैं. इसी श्रृंखला में श्रीजी को आज उड़द (અડદિયા) के मगद के लड्डू अरोगाये जाते हैं. 

यह सामग्री कल होने वाले छप्पनभोग के दिन भी अरोगायी जाएगी. 
सभी घटाओं में राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में काफ़ी जल्दी हो जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : खट)

सुनोरी आज नवल वधायो है l
श्रीवल्लभगृह प्रकट भये पुरुषोत्तम जायो है ll 1 ll
नयननको फल लेउ सखी भयो मन को भायो है l
गिरिधरलाल फेर प्रगटे है भाग्य ते पायो है ll 2 ll
मणिमाला वंदन माला द्वारद्वार बंधायो है l
श्रीगोकुल में घरघरन प्रति आनंद छायो है ll 3 ll
द्विजकुल उदित चंद सब विश्वको तिमिर नसायो है l
भक्त चकोर मगन आनंदित हियो सिरायो है ll 4 ll
महाराज श्रीवल्लभजी दान देत मन भायो है l
जो जाके मन हुती कामना सो तिन पायो है ll 5 ll
जाके भाग्य फले या कलिमें तिन दरशन पायो है l
करि करुणा श्रीगोकुल प्रगटे सुखदान दिवायो है ll 6 ll
मर्यादा पुष्टिपथ थापनको आपते आयो है l
अब आनंद वधायो हैरी दुःख दूर बहायो है ll 7 ll
रानी धन्य धन्य भाग सुहागभरी जिन गोद खिलायो है l
‘रसिक’ भाग्यते प्रकट भये आनंद दरसायो है ll 8 ll   

साज – श्रीजी में आज अमरसी दरियाई वस्त्र की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर अमरसी बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को अमरसी दरियाई वस्त्र का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी अमरसी रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर अमरसी गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, अमरसी रेशम का दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
तिलक बेसर हीरा के धराये जाते हैं.

रंग-बिरंगे पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में स्वर्ण के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट अमरसी, गोटी सोने की व आरसी शृंगार में सोने की एवं राजभोग में बटदार आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरान्त प्रभु के श्रीमस्तक और श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं. श्रीमस्तक पर सुनहरी लूम तुर्रा धराये जाते हैं और शयन दर्शन का क्रम भीतर ही होता है. 

Saturday, 26 December 2020

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी
Sunday, 27 December 2020

श्रीजी में सखड़ी का तृतीय (प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर का पहला) सखड़ी मंगलभोग

विशेष – श्रीजी में आज तृतीय मंगलभोग है. मैंने पूर्व में बताया था कि वैसे तो श्रीजी को नित्य ही मंगलभोग अरोगाया जाता है परन्तु गोपमास व धनुर्मास में सखड़ी के चार मंगलभोग विशेष रूप से अरोगाये जाते हैं. 

मंगलभोग का भाव यह है कि शीतकाल में बालकों को पौष्टिक खाद्य खिलाये जावें तो बालक स्वस्थ व पुष्ट रहते हैं इसी भाव से ठाकुरजी को अरोगाये जाते हैं.  
इनकी यह विशेषता है कि इन चारों मंगलभोग में सखड़ी की सामग्री भी अरोगायी जाती है. 
एक और विशेषता है कि ये सामग्रियां श्रीजी में सिद्ध नहीं होती. दो मंगलभोग श्री नवनीतप्रियाजी के घर के एवं अन्य दो द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर के होते हैं. अर्थात इन चारों दिवस सम्बंधित घर से श्रीजी के भोग हेतु सामग्री मंगलभोग में आती है.

आज द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर का पहला सखड़ी का मंगलभोग है. मंगलभोग में अरोगायी जाने वाली सखड़ी की सामग्री सिद्ध हो कर नहीं आती क्योंकि दोनों मंदिरों के मध्य आम रास्ता पड़ता है और खुले मार्ग में सखड़ी सामग्री का परिवहन नहीं किया जाता अतः श्री विट्ठलनाथजी के घर से कच्ची सामग्री आती है और सेवक श्रीजी के सखड़ी रसोईघर में विविध सामग्रियां सिद्ध कर प्रभु को अरोगते हैं. 
आज प्रभु को खिरबड़ा एवं अन्य सखड़ी की सामग्री तृतीय सखड़ी के मंगलभोग में आरोगायी जायेगी.

श्रृंगार से राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिवसों की तुलना में थोड़ा जल्दी होता है.

आज द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के मंदिर में नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गिरधरलालजी का उत्सव है अतः प्राचीन परंपरानुसार श्रीजी प्रभु को धराये जाने वाले वस्त्र द्वितीय गृह से सिद्ध हो कर आते हैं.
वस्त्रों के साथ वहाँ से विशेष रूप से अनसखड़ी में सिद्ध बूंदी के लड्डुओं की छाब श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु आती है.

वर्षभर में लगभग सौलह बार द्वितीय पीठाधीश्वर प्रभु के घर से वस्त्र सिद्ध होकर श्रीजी में पधारते हैं.

आज श्रीजी में नियम के केसरी चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर केसरी छज्जेदार पाग के ऊपर नागफणी का कतरा धराया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

प्रीत बंधी श्रीवल्लभ पदसों और न मन में आवे हो ।
पढ़ पुरान षट दरशन नीके जो कछु कोउ बतावे हो ।।१।।
जबते अंगीकार कियोहे तबते न अन्य सुहावे हो ।
पाय महारस कोन मूढ़मति जित तित चित भटकावे हो ।।२।।
जाके भाग्य फल या कलिमे शरण सोई जन आवेहो ।
नन्द नंदन को निज सेवक व्हे द्रढ़कर बांह गहावे हो ।।३।।
जिन कोउ करो भूलमन शंका निश्चय करी श्रुति गावे हो ।
"रसिक" सदा फलरूप जानके ले उछंग हुलरावे हो ।।४।।

साज – श्रीजी में आज केसरी रंग की साटन (Satin) की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग की साटन (Satin) का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.फ़िरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर केसरी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, नागफणी (जमाव) का कतरा व लूम तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में कमल माला एवं श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में लाल मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी(एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट केसरी व गोटी मीना की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.

सूरदास जी को किसीने पूछा रासलीला का क्या मतलब है

सूरदास जी को किसीने पूछा रासलीला का क्या मतलब है

प्रभु को पति के रूपमे पाने के लिए गोपी ने जो कात्यायनी का व्रत किया और उसके फल स्वरूप उसका मनोरथ पूरा करने के लिए ठाकुरजी ने उसके साथ किया हुए अलौकिक विवाह मतलब रासलीला
किसीने प्रश्न किया

विवाह में तो आमंत्रण पत्र देना पड़ता है तो इसमें आमंत्रण पत्र कौनसा -- ठाकुरजी ने गोपी को बुलाने के लिए जो वेणुनाद किया वहीं आमंत्रण पत्रिका है।

लग्न में पहले कुलदेवता का पूजन होता है-- गोपी ने कात्यायनी का पूजन किया वहीं कुलदेवता का पूजन है

लग्न में फेरे भी होते है,इस रास में फेरे कौनसे --  प्रभुजी ने जो रास किया दो दो गोपी बीच में माधव वो दूसरा कुछ नहीं सप्तपदी के फेरे है

लग्न में अग्नि की साक्षी होती है यहां अग्नि कहा थी -- रास लीला के समय भगवान ने और गोपी ओ ने जो हीरे के जवेरात पहने थे वहीं

लग्न में पहले गठबंधन करना पड़ता हैं -- ठाकुरजी ने जब वेणु नाद किया गोपी को बुलाने के लिए और वो वेणुनाद जब  गोपी के कान में पड़ा और गोपी को लगा ठाकुरजी उसको बुला रहे है तब घर सांसारिक आसक्ति छोड़ के  प्रभु में अपना मन जोड़ के जब रास लीला के लिए तभी।।
सांसारिक बंधन छोड़ के मन में प्रभु को बांधा वहीं है गठबंधन

लग्न में छेड़ाछेड़ी छोड़ने वाला भी होना चाहिए -- रास संपन्न होने पर देवता ने जो पुष्पवर्शा की वहीं मानो गठबंधन को छोड़ रहे हो

विवाह में साक्षी भी तो होने चाहिए -- पास में वहीं रहेला यमुना महारानी जी इस अलौकिक विवाह के साक्षी है.

Friday, 25 December 2020

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी
Saturday, 26 December 2020

शीतकाल की द्वितीय चौकी

विशेष –मार्गशीर्ष एवं पौष मास में जिस प्रकार सखड़ी के चार मंगलभोग होते हैं उसी प्रकार पांच द्वादशियों को पांच चौकी (दो द्वादशी मार्गशीर्ष की, दो द्वादशी पौष की एवं माघ शुक्ल चतुर्थी सहित) श्रीजी को अरोगायी जाती है. 

इन पाँचों चौकी में श्रीजी को प्रत्येक द्वादशी के दिन मंगला समय क्रमशः तवापूड़ी, खीरवड़ा, खरमंडा, मांडा एवं गुड़कल अरोगायी जाती है. 

यह सामग्री प्रभु श्रीकृष्ण के ननिहाल से अर्थात यशोदाजी के पीहर से आती है. श्रीजी में इस भाव से चौकी की सामग्री श्री नवनीतप्रियाजी के घर से सिद्ध हो कर आती है, अनसखड़ी में अरोगायी जाती है परन्तु सखड़ी में वितरित की जाती है. 

इन सामग्रियों को चौकी की सामग्री इसलिए कहा जाता है क्योंकि श्री ठाकुरजी को यह सामग्री एक विशिष्ट लकड़ी की चौकी पर रख कर अरोगायी जाती है. 

उस चौकी का उपयोग श्रीजी में वर्ष में उन किया जाता है जब-जब श्री ठाकुरजी के ननिहाल के सदस्य आमंत्रित किये जायें. इन चौकी के अलावा यह चौकी श्री ठाकुरजी के मुंडन के दिवस अर्थात अक्षय-तृतीया को भी धरी जाती है.

देश के बड़े शहर प्राचीन परम्पराओं से दूर हो चले हैं पर आज भी हमारे देश के छोटे कस्बों और ग्रामीण इलाकों में ऐसी मान्यता है कि अगर बालक को पहले ऊपर के दांत आये तो उसके मामा पर भार होता है. इस हेतु बालक के ननिहाल से काले (श्याम) वस्त्र एवं खाद्य सामग्री बालक के लिए आती है. 

यहाँ चौकी की सामग्रियों का एक यह भाव भी है. बालक श्रीकृष्ण को भी पहले ऊपर के दांत आये थे. अतः यशोदाजी के पीहर से श्री ठाकुरजी के लिए विशिष्ट सामग्रियां विभिन्न दिवसों पर आयी थी. 

खैर....यह तो हुई भावना की बात....बालक श्रीकृष्ण तो पृथ्वी से अपने मामा कंस के अत्याचारों का भार कम करने को ही अवतरित हुए थे जो कि उन्होंने किया भी. ऊपर के दांत आना तो एक लौकिक संकेत था कि प्रभु पृथ्वी को अत्याचारियों से मुक्ति दिलाने आ चुके हैं.

आज द्वितीय चौकी है जिसमें श्रीजी को मंगलभोग में खीरवड़ा अरोगाये जाते हैं. प्रभु को खीरवड़ा वर्षभर में केवल आज के दिन ही अरोगाये जाते हैं. 

चौकी के भोग धरने और सराने में लगने वाले समय के कारण पंद्रह मिनिट का अतिरिक्त समय लिया जाता है. 

श्रृंगार से राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में कुछ जल्दी होता है.

आज का श्रृंगार भी ऐच्छिक है और संभवतया निम्न वर्णित श्रृंगार लिया जा सकता है.

मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी से मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा तक पूर्णिमा को होने वाले घर (नियम) के छप्पनभोग उत्सव के लिए विशेष सामग्रियां सिद्ध की जाती हैं जिन्हें प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को अरोगाया जाता है. 
इसी श्रृंखला में श्रीजी को आज तवापूड़ी (इलायची, मावे व तुअर की दाल के मीठे मसाले से भरी पूरनपोली जैसी सामग्री जिसमें आंशिक रूप में कस्तूरी भी मिलायी जाती है) का भोग अरोगाया जाता है. यह सामग्री छप्पनभोग के दिवस भी अरोगायी जाएगी.

उत्थापन में फलफूल के साथ अरोगाये जाने वाले फीके के स्थान पर आज छप्पनभोग के लिए सिद्ध की जा रही उड़द की दाल की कचौरी अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन – कीर्तन – (राग : खट)

सुनोरी आज नवल वधायो है l
श्रीवल्लभगृह प्रकट भये पुरुषोत्तम जायो है ll 1 ll
नयननको फल लेउ सखी भयो मन को भायो है l
गिरिधरलाल फेर प्रगटे है भाग्य ते पायो है ll 2 ll
मणिमाला वंदन माला द्वारद्वार बंधायो है l
श्रीगोकुल में घरघरन प्रति आनंद छायो है ll 3 ll
द्विजकुल उदित चंद सब विश्वको तिमिर नसायो है l
भक्त चकोर मगन आनंदित हियो सिरायो है ll 4 ll
महाराज श्रीवल्लभजी दान देत मन भायो है l
जो जाके मन हुती कामना सो तिन पायो है ll 5 ll
जाके भाग्य फले या कलिमें तिन दरशन पायो है l
करि करुणा श्रीगोकुल प्रगटे सुखदान दिवायो है ll 6 ll
मर्यादा पुष्टिपथ थापनको आपते आयो है l
अब आनंद वधायो हैरी दुःख दूर बहायो है ll 7 ll
रानी धन्य धन्य भाग सुहागभरी जिन गोद खिलायो है l
‘रसिक’ भाग्यते प्रकट भये आनंद दरसायो है ll 8 ll   

साज – श्रीजी में आज हरे रंग की साटन (Satin) की गुलाबी रंग के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. हांशिया के दोनों ओर रुपहली ज़री की किनारी लगी होती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज हरे रंग की साटन (Satin) का लाल गॉट वाला सूथन, चोली, घेरदार वागा तथा मोजाजी धराये जाते हैं. घेरदार वागा, गुलाबी किनारी से सुसज्जित होते हैं. मोजाजी भी गुलाबी फून्दों से सुसज्जित होते हैं. लाल दरियाई वस्त्र के बन्ध धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद रंग के लट्ठा के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) चार माल का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल रंग की गोलपाग के ऊपर सिरपैंच, दोहरा मोर कतरा सुनहरी दोहरी फोदना को एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज त्रवल की जगह कंठी धराई जाती हैं.श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में सुआ के वेणुजी एवं वेत्रजी धरायी जाती हैं.   
पट हरा एवं गोटी सोना की आती है.

Thursday, 24 December 2020

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी
Friday, 25 December 2020

मोक्षदा एकादशी

आज मोक्षदा एकादशी है 

ब्रह्म पुराण के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का बहुत बड़ा महत्व है. द्वापर युग में प्रभु श्रीकृष्ण ने आज के ही दिन अर्जुन को भगवद् गीता का उपदेश दिया था, इसीलिए आज का दिन गीता जयंती के नाम से भी प्रसिद्ध है.

आज की  एकादशी मोह का क्षय करनेवाली है, इस कारण इसका नाम मोक्षदा रखा गया है, इसीलिए प्रभु श्रीकृष्ण मार्गशीर्ष में आने वाली इस मोक्षदा एकादशी के कारण ही कहते हैं "मैं महीनों में मार्गशीर्ष का महीना हूं" इसके पीछे मूल भाव यह है कि मोक्षदा एकादशी के दिन मानवता को नई दिशा देने वाली गीता का उपदेश हुआ था.

मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी से मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा तक पूर्णिमा को होने वाले घर (नियम) के छप्पनभोग उत्सव के लिए विशेष सामग्रियां सिद्ध की जाती हैं जिन्हें प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को अरोगाया जाता है. 
इसी श्रृंखला में श्रीजी को आज तवापूड़ी (इलायची, मावे व तुअर की दाल के मीठे मसाले से भरी पूरनपोली जैसी सामग्री जिसमें आंशिक रूप में कस्तूरी भी मिलायी जाती है) का भोग अरोगाया जाता है. यह सामग्री छप्पनभोग के दिवस भी अरोगायी जाएगी.

आज का श्रृंगार ऐच्छिक है परन्तु किरीट, खोंप, सेहरा अथवा टिपारा धराया जाता है. रुमाल एवं गाती का पटका भी धराया जाता है. श्रृंगार जड़ाऊ का धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को कत्थाई साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर लसनिया का जड़ाऊ कूल्हे पगा का साज धराया जाएगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

देखो अद्भुत अविगतकी गति कैसो रूप धर्यो है हो ।
तीन लोक जाके उदर बसत है सो सुप के कोने पर्यो है ।।१।।
नारदादिक ब्रह्मादिक जाको सकल विश्व सर साधें हो ।
ताको नार छेदत व्रजयुवती वांटि तगासो बाँधे ।।२।।
जा मुख को सनकादिक लोचत सकल चातुरी ठाने ।
सोई मुख निरखत महरि यशोदा दूध लार लपटाने ।।३।।
जिन श्रवनन सुनी गजकी आपदा गरुडासन विसराये ।
तिन श्रवननके निकट जसोदा गाये और हुलरावे ।।४।।
जिन भूजान प्रहलाद उबार्यो हरनाकुस ऊर फारे ।
तेई भुज पकरि कहत व्रजगोपी नाचो नैक पियारे ।।५।।
अखिल लोक जाकी आस करत है सो  माखनदेखि अरे है ।
सोई अद्भुत गिरिवरहु ते भारे पलना मांझ परे है ।।६।।
सुर नर मुनि जाकौ ध्यान धरत है शंभु समाधि न टारी ।
सोई प्रभु सूरदास को ठाकुर गोकुल गोप बिहारी ।।७।।

साज – श्रीजी में आज कत्थाई रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज कत्थाई रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं एवं फ़िरोज़ी छापा का गाती का रुमाल (पटका) धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पिले रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लसनिया का जड़ाऊ कूल्हे पर पगा का पान के ऊपर टीपारा का साज़ (मध्य में चन्द्रिका, दोनों ओर दोहरा कतरा) एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
आज चोटीजी नहीं आती हैं.
श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला माला धरायी जाती है. गुलाब के पुष्पों की एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी और दो वेत्रजीधराये जाते हैं.
पट कत्थाई  व गोटी चाँदी की बाघ-बकरी की आती है.

પરમાનંદ

શ્રીગુંસાઈજીના ૨પર સેવક વૈષ્ણવોમાં ૩૨ મા સેવક વૈષ્ણવ એક કુંભાર સેવક ગુજરાતનો જે સાત્વીક ભકત છે લીલામાં એનુ નામ 'પરમાનંદ' છે એક વખત શ્રીગુંસાઈજી ગુજરાત પધાર્યા તે વખતે પહેલી વખત શ્રીગુંસાઈજીના દર્શન આ કુંભારને થયા એ સાથે જ સાષ્ટાંગ દંડવત કરી હાથ જોડી શ્રીગુંસાઈજીને વીનંતી કરીને કહે આપ કૃપા કરી મને નામ સંભળાવો (નામ દીક્ષા આપો) ત્યારે શ્રીગુંસાઈજી કરૂણા નીધાનને દયા આવી ગઈ તેથી એ કુંભારને કહ્યું જો તુ ન્હાઈને નવી ધોતી અને નવો ઉપરણો ઓઢીને આવે તો હુ નામ સંભળાવીશ ત્યારે એ કુંભાર ગયો ન્હાઈને નવી ધોતી પહેરીને નવો ઉપરણો ઓઢીને આવી પ્રભુની સન્મુખ ઉભો રહ્યો ત્યારે શ્રીગુંસાઈજી આપે કૃપા કરી એને નામ સંભળાવ્યું પછી શ્રીગુંસાઈજી દ્વારીકા જઈ શ્રી રણછોડજીના દર્શન કરીને શ્રીગોકુલ પધાર્યા અને શ્રી નવનીતપ્રીયજીના રાજભોગ આર્તીના દર્શન કર્યા તે પછી થોડા દીવસ બાદ ચાચા હરિવંશજી દ્વારકા પ્રવાસે ગયા ત્યારે ગુજરાતમાં  એ કુંભારના ઘેર ચાચાહરિવંશજી ગયા ત્યારે કુંભારના ઘરમા સામગ્રી સિધ્ધ કરવા જેટલુ સીધુ નહોતુ તેથી તે બજારમાં ગયો ત્યારે એક જમીનદારે આ કુંભારને મજૂરી માટે નક્કી કરવા બોલાવી કહ્યુ કે તુ અડધો કુવો ખોદેલો છે તે પુરો ખોદવાનો છે તો તુ તે કુવો ખોદી આપીશ ? ત્યારે કુંભાર કહે હા હા કુવો ખોદી આપીશ પણ આજે નહી પણ ચાર દીવસ પછી ખોદીશ પણ અત્યારે રૂપીયા આપો કહી રૂપીયા લઈ કાચુ સીધુ સામગ્રી બજારથી લઈને ઘેર આવી ચાર દીવસ સુધી વીનંતી કરી કરીને ચાચાહરિવંશજીને પોતાને ઘેર રાખ્યા પછી શ્રીહરિવંશજી ધ્વારીકા જવા માટે ચાલ્યા અને પાંચમે દિવસે એ કુંભાર જમીનદાર નો કુવો ખોદવા લાગ્યો તે વખતે કુવામા ખુબજ ઉંડો ખાડો કરતા કરતા એમની ઉપર હજારો મણ માટી પડી અને એ દટાઈ ગયો ત્યારે બોલવા લાગ્યો 'શ્રીવલ્લભ' 'શ્રીવીઠલ' પણ એની આસપાસ પોલાણ રહી ગયું તેથી સતત એ જ જાપ કરવા લાગ્યો આ કુંભારના ઘરમા રોકકળ થવા લાગી એક જણ દોડતો જઈ રસ્તામાં જઈ રહેલા ચાચા હરિવંશજીને પાછા લઈ આવ્યા અને ચાચાજીએ કુવાની માટી કઢાવી જીવતા જ કુંભાર નીકળ્યા પછી ચાચાજી ત્યાંથી દ્વારીકા ગયા ભાવ પ્રકાશમાં શ્રીહરિરાયજી સમજાવે છે કે ભગવદીય વૈષ્ણવ ઘેર આવે તેનુ સ્વાગત સારી રીતે અને સ્નેહ પૂર્વક કરવુ દ્રવ્યના હોય તો ઉધાર લાવીને પણ સમાધાન કરવુ કારણકે ભગવદીય ન કૃપાથી સદા સર્વદા કલ્યાણ જ થાય છે કુંભાર નો જીવ બચી ગયો. ભગવદીયની સેવાનો આવો મહીમા છે. 

એક દીવસ કુંભાર વૈષ્ણવની પત્ની કુંભારણનો ભાઈ ઘરે આવ્યો ત્યારે કુંભારણીએ એના ભાઈને ખવડાવવા મેવા મીશ્રી નાખીને લાડવા કર્યા અને પીવાનુ પાણી ન હતું તો કુંભારણી ભરવા ગઈ એનુ મન તો લાડવામાં હતુ એટલી જ વારમાં બે કુંભાર વૈષ્ણવ આવ્યા એ બંને વૈષ્ણવ કુંભારને આ વૈષ્ણવ કુંભારે લાડવા ખવડાવી દીધા અને જ્યાં પાણી ભરીને પાછી આવી તે જુએ કે મારા ભાઈને માટે બનાવેલા લાડવા આ બે વૈષ્ણવ કુંભારને ખવડાવી દીધા એ જોઈને ખુબજ રોષે ભરાઈ ગઈ પછી પોતાના ભાઈને માટે રોટલી કરીને ખવડાવી અને આ કુંભારવૈષ્ણવની એવી ઇચ્છા રહેતી કે કંઈ પણ સારી વસ્તુ હોય તે વૈષ્ણવને આપી દે જેમાં વાસણ કપડા હોય તે પણ આપી દે ત્યારે તેની પત્નીએ બીજા કુંભાર સાથે નાત્રુ કર્યુ (ઘર માંડ્યુ, ) ત્યારે આ કુંભાર વૈષ્ણવ ખુબજ પ્રસન્ન થયો પછી દુકાળ પડ્યો ત્યારે કુંભાર અને એનો બીજવર ભુખે મરવા લાગ્યા અને હવે તો કુંભાર વૈષ્ણવને ત્યાં તો નીત્ય વૈષ્ણવો ભેગા થાય અને મંડલી કરે ત્યારે પેલી કુંભારણ આવીને પગે પડીને કહે કે મને તમારા ઘરમાં રાખો ત્યારે આ કુંભાર વૈષ્ણવે કહ્યુ કે હવે તો ઘરમાં નથી જ આવવાનું પણ ભલે ઘરની બહાર (આંગણામાં) રહેજે અને રોજે પ્રસાદ ખાજે (ભાવ પ્રકાશમાં સમજાવે છે કે કુંભારણ ધર્મની વીરોધી છે તેથી એના સંગથી મન બગડે તો બહીર્મુખ થઈ જવાય તેથી એને ઘરમાં પ્રવેશ ના આપ્યો સાથે સાથે વૈષ્ણવનો એ ધર્મ છે કે જીવ માત્ર પર દયા રાખવી એમાંય આતો સ્ત્રી છે તેથી જીવે ત્યાં સુધી પ્રસાદ લેવાનું કહ્યુ.

Wednesday, 23 December 2020

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी 
Thursday, 24 December 2020

अंखियन ऐसी टेव परी ।
कहा करों वारिज मुख उपर लागत ज्यों भ्रमरी ।।१।।
हरख हरख प्रीतम मुख निरखत रहत न एक घरी ।
ज्यों ज्यों राखत यतनन करकर त्यों त्यों होत खरी ।।२।।
गडकर रही रूप जलनिधि में प्रेम पियुष भरी ।
"सुरदास" गिरिधर नग परसत लूटत निधि सघरी ।।३।

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को फ़िरोज़ी रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आसावरी)

चलरी सखी नंदगाम जाय बसिये ।खिरक खेलत व्रजचन्दसो हसिये ।।१।।
बसे पैठन सबे सुखमाई ।
ऐक कठिन दुःख दूर कन्हाई ।।२।।
माखनचोरे दूरदूर देखु ।
जीवन जन्म सुफल करी लेखु ।।३।।
जलचर लोचन छिन छिन प्यासा ।
कठिन प्रीति परमानंद दासा ।।४।।

साज – श्रीजी में आज फ़िरोज़ी रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज फ़िरोज़ी साटन पर  सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं  घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर फ़िरोज़ी रंग की  छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच क़तरा, चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में कर्णफूल की एक जोड़ी  धरायी जाती हैं. 
 श्रीकंठ में कमल माला एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, गुलाबी मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट फ़िरोज़ी व गोटी मीना की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Tuesday, 22 December 2020

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल नवमी

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल नवमी 
Wednesday, 23 December 2020
          
लाल घटा

श्रीमद वल्लभ रूप सुरंगे l
अंग अंग प्रति भावन भूषण वृन्दावन संपति अंगे अंगे ll 1 ll
दरस परस गिरिधर जू की नाई एन मेन व्रज राज ऊछंगे l
पद्मनाभ देखे बनि आवे सुधि रही रास रसाल भ्रू भंगे ll 2 ll

आज नंद के लाल की लाल घटा के अद्भुत दर्शन का आनंद ले

तृतीय घटा (लाल), प्रभुचरण श्री गुसांईजी के उत्सव की झांझ की बधाई बैठे
प्रभुचरण श्री गुसांईजी के उत्सव की झांझ की बधाई बैठवे की बधाई 

विशेष – आज प्रभुचरण श्री गुसांईजी के उत्सव की झांझ की बधाई पंद्रह दिवस की बैठती है.

आज से आगामी पंद्रह दिवस तक प्रतिदिन सभी दर्शनों में झांझ बजायी जाती है. श्री महाप्रभुजी की, जन्माष्टमी की एवं श्री गुसांईजी की बधाईयाँ गायी जातीं हैं.
आज से पौष कृष्ण नवमी तक श्री ठाकुरजी को श्याम, नीले, बादली आदि अमंगल रंगों के वस्त्र नहीं धराये जाते हैं एवं अशुभ में गये सेवक की दंडवत (सेवा में पुनः प्रवेश) भी वर्जित है. 

बधाई बैठवे के भाव से आज श्रीजी में लाल घटा के दर्शन होंगे. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

धन्य जशोदा भाग्य तिहारो जिन ऐसो सुत जायो l
जाके दरस परस सुख उपजत कुलको तिमिर नसायो ll 1 ll
विप्र सुजान चारन बंदीजन सबै नंदगृह आये l
नौतन सुभग हरद दूब दधि हरखित सीस बंधाये ll 2 ll
गर्ग निरुप किये सुभ लच्छन अविगत हैं अविनासी l
‘सूरदास’ प्रभुको जस सुनिकें आनंदे व्रजवासी ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज लाल रंग के दरियाई वस्त्र की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर लाल बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल रंग के दरियाई वस्त्र का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी लाल रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लाल रेशम का दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में माणक के कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत एवं गुलाबी रंग के पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट लाल व गोटी चांदी की आती है.

Monday, 21 December 2020

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल अष्टमी

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल अष्टमी
Tuesday, 22 December 2020

नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनेशजी महाराज कृत सात स्वरुप का उत्सव,

सभी वैष्णवों को नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनेशजी महाराज कृत सात स्वरुप के उत्सव की बधाई

विशेष – आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनेशजी महाराज कृत सात स्वरुप के उत्सव का दिवस है. श्री गोवर्धनेशजी महाराज श्री ने मेवाड़ में सर्वप्रथम वि.सं.1796 में आज के दिन सप्तस्वरूपोत्सव किया था.
 
श्रीजी का सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. गेंद, चौगान, दिवाला आदि सोने के आते हैं.

सभी समय यमुनाजल की झारीजी आती है. दिन में दो समय की आरती थाली में की जाती है. 

श्रीजी को नियम के लाल खीनखाब के चाकदार वागा व श्रीमस्तक पर हीरा की कुल्हे धरायी जाती है. 

मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी से मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा तक पूर्णिमा को होने वाले घर (नियम) के छप्पनभोग उत्सव के लिए विशेष सामग्रियां सिद्ध की जाती हैं. 
ये विशेष रूप से सिद्ध हो रही सामग्रियां प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को अरोगायी जाती हैं. 
इसी श्रृंखला में श्रीजी को आज दहीथड़ा (दही के मोयन युक्त खस्ता ठोड़) का भोग अरोगाया जाता है. यह सामग्री छप्पनभोग के दिवस भी अरोगायी जाएगी. 

इसके अतिरिक्त उत्सव भाव से श्रीजी को आज विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में केसरी पेठा व मीठी सेव अरोगायी जाती है.

कल मार्गशीर्ष शुक्ल नवमी को श्री गुसाईजी के उत्सव की बधाई बैठेगी. श्रीजी में तृतीय (लाल) घटा होगी.

राजभोग दर्शन – 

साज – आज श्रीजी में गहरे लाल रंग के मखमल के वस्त्र के ऊपर कांच के टुकड़ों के भरतकाम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर लाल खीनख़ाब की बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल रंग का सुनहरी ज़री के बूटों वाला खीनख़ाब का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं टंकमा हीरा के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं. पटका केसरी धराया जाता है.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) उत्सववत भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा एवं जड़ाव सोने के सर्वआभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर हीरा की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. हीरा की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
कली, कस्तूरी आदि सबकी माला धरायी जाती है. श्वेत पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वैत्रजी (हीरा व पन्ना के) धराये जाते हैं.
पट उत्सव का, गोटी जड़ाऊ व आरसी चार झाड की आती है.

સનાઢ્ય બ્રાહ્મણ

શ્રીગુંસાઈજીના ૨પર વૈષ્ણવોમાં ૨૯ મા વૈષ્ણવ શ્રીગુંસાઈજીના સેવક એક સનાઢ્ય બ્રાહ્મણ(જેમને શ્રીયમુનાજી ની સેવામાં વીશેષ આસક્તી હતી તેથી સેવામાં શ્રીયમુનાજી ની સેવા પધરાવવા વીનંતી કરી તે પ્રસંગ અને યમુનાજીમાં ક્યારેય પોતાના પગ નહી રાખવા એવી ટેકને છોડાવવા શ્રીગુંસાઈજીના લાલનશ્રીઓએ જે પરીક્ષા લીધી તે પસંગ) જે સાત્વીક ભક્ત છે લીલામાં નામ પ્રમદા છે જે મથુરામાં રહેતો હતો જે શ્રીયમુનાજી નાયુથ માં છે તેથી એની સ્વભાવીક પ્રીતી યમુનાજીમાં છે એ મથુરામાં એક સનાઢય બ્રાહ્મણના ઘેર જન્મ્યો અને જ્યાં વીસ વર્ષનો થયો તે વખતે શ્રીગુંસાઈજી આપ અડેલથી વિજય કરી (યાત્રા કરી) મથુરામાં આવી બીરાજ્યા ત્યારે શ્રીગુંસાઈજી આપ દરરોજ વીશ્રામ ઘાટ સંધ્યા કરવા માટે પધારતા ત્યાંથી કેશવરાયજીના દર્શને પધારતા ત્યારે એક દીવસ આ સનાઢ્ય બ્રાહ્મણ કેશવ રાયજી ના દર્શને ગયો હતો તે સમયે શ્રીગુંસાઈજી આપ કેશવરાયજી ના મંદીરમાં મથુરાના ચોબાઓને શ્રીયમુનાજીનું મહાત્મ્ય કહી રહ્યા હતા તે જ વખતે આ સનાઢ્ય બ્રાહ્મણે પણ આ વાત સાંભળી ત્યારે આ બ્રાહ્મણે મનમા વીચાર કર્યો કે આ મહારાજના શરણે જઈ આમનો સેવક થઈ જઉ તો સારુ ત્યાંથી શ્રીગુંસાઈજી કેશવરાય ના દર્શન કરી પોતાના ઘેર પધાર્યા ત્યારે આ બ્રાહ્મણ પણ શ્રીગુંસાઈજીની પાછળ પાછળ ઘેર સુધી આવી ગયો પછી શ્રીગુંસાઈજી આપશ્રીએ શ્રી નવનીતપ્રિયજીની રાજભોગ આર્તી કરી એ પછી આપ બેઠકમાં આવી બીરાજ્યા ત્યારે આ સનાઢ્ય બ્રાહ્મણે બે હાથ જોડી વીનંતી કરી કે મહારાજ કૃપા કરી મને સેવક કરો ત્યારે એનો શુદ્ધ ભાવ જોઈ પ્રથમ એને નામ સંભળાવ્યું પછી પછી એક વ્રત(ઉપવાસ) કરાવી બીજા દીવસે નીવેદન ( શ્રીઠાકોરજીની સન્મુખ માં બ્રહ્મસંબંધ મંત્ર દીક્ષા) કરાવ્યુ પછી ફરીવાર વીનંતી કરીને કહે કે મહારાજ કૃપા કરી મને શ્રી યમુનાજી નુ સ્વરૂપ સમજાવો ત્યારે શ્રીગુંસાઈજી એની દીનતા જોઈએ જ વખતે 'યમુનાષ્ટપદી'ની રચના કરી એને આપી પછી શ્રીગુસાઈજી આપશ્રીએ આ બ્રાહ્મણને આજ્ઞા કરી કે તુ રોજે આનો પાઠ કરજે ત્યારે આ બ્રાહ્મણ વીનંતી કરવા લાગ્યો કે મહારાજ હુ અજ્ઞાની જીવ છુ તેથી કૃપા કરી આનો ભાવ સમજાવો તો સારુ ત્યારે શ્રીગુંસાઈજી આપશ્રીએ 'યમુનાષ્ટપદી' તો ભાવ વિસ્તારથી કહ્યો ત્યારે જ આ બ્રાહ્મણ શ્રીયમુનાજી ના સ્વરૂપમાં મગન થઈ ગયો પછી એ બ્રાહ્મણે શ્રીગુંસાઈજીને વીનંતી કરી કે મહારાજ કૃપા કરીને મને શ્રી યમુનાજીની સેવા પધરાવી દો તો હુ એમની સેવા કરુ ત્યારે શ્રીગુંસાઈજીઆપ શ્રી એ બ્રાહ્મણને શ્રીયમુનાજી ની રેણુકા(૨જ) એક થેલીમાં આપીને કહે તુ આની સારી રીતે સેવા કરજે તને શ્રીયમુનાજી કૃપા કરી બધો અનુભવ જતાવશે(કરાવશે) પછી આ બ્રાહ્મણ શ્રીગુંસાઈજીને દંડવત કરી ઘેર આવ્યો તે દીવસથી આ બ્રાહ્મણ શ્રી યમુનાજીને સ્વરપાત્મક માની જાણવા લાગ્યો ત્યારથી એ બ્રાહ્મણ શ્રીગુંસાઈજીએ આપેલ શ્રીયમુનાજી ની ૨જની  સેવા માટે પધરાવેલી થેલીને રોજે સવારે અપરશ કરી પછી સ્પર્શ કરે અને શ્રીયમુનાજીમા પગ કદી ન ઘરે (પલાળે) કુવાના જળથી જ બધી સેવા કરે પ્રભુને ઝારીજી અપરશમાં યમુનાજળ લાવી ભરે ત્યારે મથુરાના વૈષ્ણવોએ એક દીવસ શ્રીગુંસાઈજીના બાળકોને આ વાત કરી કે આ બ્રાહ્મણ વૈષ્ણવ શ્રીયમુનાજી માં ચરણ પણ રાખતો નથી તો એની પરીક્ષા લો ત્યારે જ્યેષ્ટ લાલન શ્રીગિરિધરજી એ ના પાડી અને સમજાવ્યુ કે વૈષ્ણવની પરીક્ષા ન લેવી કારણ એ અપરાધ છે પાછળથી શ્રીગુંસાઈજીના અન્ય બાળકો મળીને ટીખળ સાથે પરીક્ષા કરવાના ભાવથી એક નાવમાં એ બ્રાહ્મણને પણ સાથે આવવા કહ્યુ ત્યારે લાલનશ્રીની આજ્ઞા અને કૃપાથી રાજી થઇને નાવમાં બેસી ગયો પછી વચ્ચે બેટ ( યમુનાજી ના જળની મધ્યમાં થોડી ભુમી જ્યાની ચારે બાજુ જળ હોય)પર ઉતર્યા અને નાવ વાળાને કહ્યુ કે તુ કીનારે પાછો જા જયારે ફરી બોલાવીયે ત્યારે આવજે પછી એક પ્રહર જેટલો (૪કલાક) સમય વીતી ગયો ત્યારે આ બ્રાહ્મણે લાલનશ્રીઓને વીનંતી કરતા કહ્યુ કે મહારાજ મારા ન્હાવાનો સમય થઈ ગયો નાવ મંગાવો ત્યારે નાવ વાળાને બોલાવ્યો નાવમાં સર્વે લાલનશ્રી નાવમાં પ્રથમ ચઢ્યા ત્યારે એ બ્રાહ્મણ હવે જેવો શ્રીયમુનાજળને સ્પર્શના થઈ જાય એવી સાવચેતી રાખી જ્યા નાવમાં બેસવાની ઇચ્છા કરે ત્યાં જ લાલનશ્રીઓએ આજ્ઞા કરી દીધી કે તુ હજુ અહીયા જ બેસી રહે અમે જ્યારે કહીયે ત્યારે જ તુ નાવમા ચઢજે ત્યારે મહારાજની આજ્ઞા શીરોધાર્ય કરીએ બેઠો રહ્યો અને આપ તો એને એ બેટ પર મુકીને નાવ ચલાવી પાર આવી પણ ગયા ત્યારે આ બ્રાહ્મણ વૈષ્ણવના મનમા મોટી ચીંતા અને અતી દુખી મને દીન થઈ શ્રીયમુનાજી ને આર્ત ભાવથી પ્રાર્થના કરવા લાગ્યો કે હે યમુનાજી આપ તો સર્વ વાત જાણો જ છો કે હુ કદી પણ મારા પગ આપના જળમાં નહી મુકી શકુ ભલે પ્રાણ કંઠે કેમ ન આવી જાય ત્યાંજ યમુના જળમા વીશાળ કમળો પ્રગટ થઈ ગયા અને શ્રીયમુનાજી પ્રગટ રૂપે દર્શન આપતા બોલ્યા તુ આ કમળની ઉપર પગ રાખી સામે પાર ચાલ્યો જા અને આ કૃપા અને લીલાને સામે પાર બાળસહજ સ્વભાવ વશ  શ્રીગુંસાઈજીના લાલનશ્રીઓએ (શ્રીબાલકૃષ્ણજી, શ્રીગોકુલનાથજી, શ્રીરઘુનાથજી વગેરે લાલનશ્રીઓએ પણ) પ્રત્યક્ષ દર્શન કર્યા તેથી એ બ્રાહ્મણ વૈષ્ણવના વખાણ કરવા લાગ્યા ત્યાર પછી બધાય લાલનશ્રીઓ જ્યેષ્ઠ ભ્રાતાશ્રીગિરિધરજીને . આ બધી જ વાત કરી ત્યા શ્રીગિરિધરજી કહે 'યમુનાષ્ટપદી 'આ વૈષ્ણવને ફલીત થઈ છે.

Sunday, 20 December 2020

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी
Monday, 21 December 2020

श्री गुसांईजी के चतुर्थ पुत्र श्री गोकुलनाथजी का प्राकट्योत्सव

विशेष – आज श्री गुसांईजी के चतुर्थ पुत्र श्री गोकुलनाथजी का उत्सव है.
पुष्टिसम्प्रदाय के हितों के रक्षणकर्ता, श्री वल्लभ के सिद्धांतों को वार्ता आदि के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने वाले श्री गोकुलनाथजी का यह पुष्टिमार्ग सदा ऋणी रहेगा.

ऐसे पुष्टि के यश स्वरुप वैष्णव प्रिय श्री गोकुलनाथजी के प्राकट्योत्सव की बधाई
( गोकुलनाथजी का विस्तुत विवरण अन्य पोस्ट में )

श्रीजी का सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल वंदनमाल बाँधी जाती हैं. गेंद, चौगान, दिवाला आदि सोने के आते हैं. 

सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है. 

दिनभर के सभी कीर्तनों में झांझ बजायी जाती है. सभी समय के कीर्तनों में गोकुल शब्द वाले बधाई के कीर्तन गाये जाते हैं.

विगत रात्रि से पौष कृष्ण अष्टमी तक श्रीजी को प्रतिदिन शयन के अनोसर में व राजभोग पश्चात अनोसर में दूधघर में विशेष रूप से सिद्ध की गयी सौभाग्य-सूंठ अरोगायी जाती है.
केशर, कस्तूरी, सौंठ, अम्बर, बरास, जाविन्त्री, जायफल, विभिन्न सूखे मेवों, घी व मावा सहित 29 मसालों से निर्मित सौभाग्य-सूंठ के बारे में कहा जाता है कि इसे खाने वाला व्यक्ति सौभाग्यशाली होता है. 
पौष कृष्ण नवमी को श्री गुसांईजी के उत्सव के दिवस से शाकघर की सौभाग्य-सूंठ अरोगायी जाएगी.

श्री गोकुलनाथजी ने श्रीजी को मुकुट, कुल्हे, मोजाजी एवं तोड़ा आदि जड़ाव स्वर्ण के भेंट किये थे उसमें से आज जड़ाव की कुल्हे एवं मोजाजी प्रभु को धराये जाते हैं.

उत्सव के कारण गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी प्रभु को केशरयुक्त जलेबी के टूक और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग अरोगाया जाता है. 

अनसखड़ी में राजभोग में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में मीठी सेव व केशरयुक्त पेठा अरोगाये जाते हैं. 
राजभोग दर्शन में प्रभु के सम्मुख चार बीड़ा की सिकोरी (स्वर्ण का जालीदार पात्र) धरी जाती है.

राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीविट्ठलेश चरणकमल पावन त्रैलोक करण दरस परस सुंदर वर वार वार वंदे ।
समरथ गिरिराज धरण लीला निज प्रकट करण संतन हित मानुषतनु वृंदावन चंदे ।।१।।
चरणोदक लेत प्रेत ततक्षण ते मुक्त भये करूणामय नाथ सदा आनंद निधि कंदे ।
वारते भगवानदास विहरत सदा रसिकरास जय जय यश बोल बोल गावते श्रुति छंदे ।।२।।

साज – श्रीजी में आज लाल मखमल के आधारवस्त्र के ऊपर सुरमा सितारा की, कशीदे की पुष्प-लताओं के ज़रदोज़ी के भरतकाम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल साटन के छापा के सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं जड़ाऊ मोजाजी धराये जाते हैं. सभी वस्त्र सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. जड़ाऊ मोजाजी के ऊपर लाल रंग के फूंदे शोभित होते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक की प्रधानता के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है. त्रवल नहीं धराये जाते परन्तु टोडर धराया जाता है. आज श्रीकंठ में बघनखा भी धराया जाता है.
श्रीमस्तक पर जड़ाव स्वर्ण की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर माणक की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. 
श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में माणक के वेणुजी एवं दो वैत्रजी (माणक व हीरा) धराये जाते हैं.
आरसी चार झाड की, पट उत्सव का व गोटी सोने की जाली की आती है.  

संध्या-आरती दर्शन उपरान्त प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार, जड़ाऊ मोजाजी व कुल्हे बड़े किये जाते हैं. आभरण छेड़ान के धराये जाते हैं व श्रीमस्तक पर लाल छापा की कुल्हे व मोजाजी भी लाल छापा के ही धराये जाते हैं. 

आज से बसंत पंचमी तक श्रीजी में शयन दर्शन बाहर नहीं खोले जाते. 
कई लोगों में यह भ्रांति है कि इन दिनों श्रीजी शयन समय व्रज पधारते हैं इसलिए नाथद्वारा में शयन के दर्शन नहीं होते. 

इस विषय में मैं स्पष्ट कर दूं कि नाथद्वारा में शयन पूरे वर्ष होते हैं, केवल प्रभु सुखार्थ कुछ विशिष्ट कारणों से आज से बसंत पंचमी व रामनवमी से आश्विन शुक्ल नवमी (मातृनवमी) तक शयन के दर्शन बाहर नहीं खोले जाते.

दर्शन के अतिरिक्त शयन का सभी सेवाक्रम (शयनभोग, शयन-आरती व अनोसर का क्रम) पूर्ववत ही रहता है.

शीतकाल में शयन के दर्शन बाहर नहीं खोलने का मुख्य कारण यह है कि शीत से बचाव के लिए संध्या-आरती दर्शन के पश्चात भीतर की सोहनी कर सभी द्वार बंद कर दिए जाते हैं. डोल-तिबारी, मणिकोठा आदि विभिन्न स्थानों पर अंगीठी रखी जाती है. 

यदि शयन के दर्शन खोले जाएँ तो इस क्रम (सोहनी करने, द्वार बंद करने व अंगीठी रखने का) में देरी हो जाएगी और भीतर शीत भी प्रवेश कर जाएगी.

સત્સંગ

સત્સંગ

એકભાઇ નિયમિત રીતે સત્સંગમાં જતા.

રોજ ૩૦ મિનિટ સત્સંગ માટે કાઢે. સત્સંગમાં થતી જુદી-જુદી વાતો એકાગ્ર ચિતે સાંભળે.
એમના મિત્રને આ પસંદ નહોતું. મિત્ર એવુ માનતો હતો કે આ બધુ સમયની બરબાદી છે. ઘણીવખત એ આ બાબતે પોતાની નારાજગી પણ દર્શાવતો.
એકદિવસ બંને મિત્રો ફરવા માટે નીકળ્યા. રસ્તામાં આ સત્સંગની વાત નીકળી.
જે મિત્રને આ બધુ બકવાસ લાગતુ હતું એમણે પોતાના મિત્રને પુછ્યુ, " જ્યાં સુધી હું જાણું છું ત્યાં સુધી તું છેલ્લા ૧૦ વર્ષથી નિયમિત સત્સંગ / ભાગવત સપ્તાહ માં જાય છે અને ૩૦૦૦ થી વધુ સત્સંગ માં ગયો છે
આ બધા સત્સંગ જે વાતો થતી તેમાંથી તને કેટલી યાદ છે ? 
" મિત્રએ તો તુંરત જવાબ આપ્યો, " મને એમાનું કંઇ જ યાદ નથી.
" જવાબ સાંભળીને પ્રશ્ન પુછનાર મિત્ર ખુબ હસ્યો અને કહ્યુ , " તને કંઇ જ યાદ નથી તો પછી આ સત્સંગમાં જઇને તે કર્યુ શું? "
સત્સંગી મિત્રએ પોતાના મિત્રને કહ્યુ, "ભાઇ હું તને તારા પ્રશ્નનો જવાબ આપુ એ પહેલા મને એક પ્રશ્નનો જવાબ આપ જેથી તેના આધારે હું તને જવાબ આપી શકુ.

"મિત્રએ સંમતિ આપતા જ પ્રશ્ન પુછ્યો , "તારા લગ્નને કેટલો સમય થયો ? "
પેલાએ કહ્યુ, " મારા લગ્નને પણ ૧૦ વર્ષ જ થયા છે."
સત્સંગી મિત્રએ વાતને આગળ વધારતા કહ્યુ , " હવે મને એ કહે કે આ ૧૦ વર્ષમાં ભાભીએ તને ભાત-ભાતની અને જાત-જાતની રસોઇ કરીને જમાડી છે એમાથી કેટલી યાદ છે ? 
"પેલાએ જવાબ આપ્યો , "તું પણ ગાંડા જેવો છે એલા રસોઇ થોડી યાદ રહે એ તો ખાઇએ એટલે શરિરને પોષણ મળે. શારિરિક તંદુરસ્તી માટે જમવાનું હોય એ યાદ રહે કે ન રહે તેનાથી શું ફેર પડે?"
સત્સંગી મિત્રએ કહ્યુ , " દોસ્ત તારા લગ્ન પછી ભાભીએ બનાવેલી રસોઇ અને તારા લગ્ન પહેલા તારી મમ્મીએ બનાવેલી રસોઇથી જેમ તારા શરિરને પોષણ મળે છે 
તેમ સત્સંગમાં થતી વાતો મારા આત્મા ને પોષણ આપે છે અને એ વિચારોથી મારુ મન મજબુત બને છે. વાતો યાદ રહી કે ન રહી તે મહત્વનું નથી."
મિત્રો, શરિરના પોષણ માટે નિયમિત ખોરાક લેવો જરૂરી છે તેવી જ રીતે આત્માના પોષણ માટે નિયમિત સારી વ્યક્તિ કે વિચારોનો સંગ પણ જરૂરી છે. આપણને ભલે એ વિચારો યાદ ન રહે પણ એ વિચારો મનને કેળવવાનું કામ ચોક્કસ કરે છે.

Saturday, 19 December 2020

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल षष्ठी

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल षष्ठी
Sunday, 20 December 2020

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को बादामी रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

इस ऋतु में आज शयन के अन्तिम दर्शन खुलेंगे. कल से बसंत पंचमी से एक दिन पहिले तक श्रीजी में शयन दर्शन बाहर नहीं खोले जाते. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आसावरी)

चलरी सखी नंदगाम जाय बसिये ।खिरक खेलत व्रजचन्दसो हसिये ।।१।।
बसे पैठन सबे सुखमाई ।
ऐक कठिन दुःख दूर कन्हाई ।।२।।
माखनचोरे दूरदूर देखु ।
जीवन जन्म सुफल करी लेखु ।।३।।
जलचर लोचन छिन छिन प्यासा ।
कठिन प्रीति परमानंद दासा ।।४।।

साज – श्रीजी में आज बादामी रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज बादामी रंग के साटन पर  सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं  घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र स्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर दुरंगी पाग के ऊपर सिरपैंच,जमाव का क़तरा एवं चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल की एक जोड़ी धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट बादामी व गोटी मीना की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Friday, 18 December 2020

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी
Saturday, 19 December 2020

श्रीजी में द्वितीय मंगलभोग, श्री मदनमोहनजी (कामवन) का पाटोत्सव

विशेष – श्रीजी में आज द्वितीय मंगलभोग है. वैसे तो श्रीजी को नित्य ही मंगलभोग अरोगाया जाता है परन्तु गोपमास में चार मंगलभोग विशेष रूप से अरोगाये जाते हैं.

मंगलभोग का मुख्य भाव यह है कि शीतकाल में रात्रि बड़ी व दिन छोटे होते हैं.
शयन उपरांत जब अंतराल अधिक होता तब यशोदाजी को यह आभास होता कि लाला को भूख लग आयी होगी अतः तड़के ही सखड़ी की सामग्रियां सिद्ध कर बालक श्रीकृष्ण को अरोगाते थे. इस भाव से शीतकाल में मंगलभोग श्री ठाकुरजी को अरोगाये जाते हैं.

एक और भाव यह भी है कि शीतकाल में बालकों को पौष्टिक खाद्य खिलाये जावें तो बालक स्वस्थ व पुष्ट रहते हैं इसी भाव से ठाकुरजी को अरोगाये जाते हैं.

इनकी यह विशेषता है कि इन चारों मंगलभोग में सखड़ी की सामग्री भी अरोगायी जाती है.

एक और विशेषता है कि ये सामग्रियां श्रीजी में सिद्ध नहीं होती. दो मंगलभोग श्री नवनीतप्रियाजी के घर के एवं अन्य दो द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर के होते हैं. अर्थात इन चारों दिवस सम्बंधित घर से श्रीजी के भोग हेतु सामग्री मंगलभोग में आती है.

आज श्री नवनीतप्रियाजी के घर का दूसरा एवं अंतिम मंगलभोग है जिसमें विशेष रूप से आखे (साबुत) बैंगन के पकौड़े, बैंगन भात, लपसी व कुछ अन्य सामग्रियां श्रीजी के भोग हेतु आती है.

श्रृंगार से राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिवसों की तुलना में थोड़ा जल्दी होता है.

आज श्रीजी को पतंगी रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की किनारी के फूलों से सुसज्जित सूथन, चोली घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

सुन मेरो वचन छबीली राधा, तै पायो रससिन्धु अगाधा ।।१।।
जे रस निगम नेति नेति भाख्यो ताकौ ते अधरामृत चाख्यो ।।२।।
शिव विरंचि के ध्यान न आवे,ताकौ कुंजनि कुसुम बिनावे ।।३।।
तू वृषभानु गोपकी बेटी मोहनलाल को भावते भेटी ।।४।।
तेरो भाग्य नहि कहत आवे कछुक रस परमानंद पावे ।।५।।

साज – आज श्रीजी में गहरे गुलाबी रंग की हरे रंग के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को पतंगी रंग का सुनहरी ज़री के पुष्पकाम के वस्त्र का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते है.

श्रीमस्तक पर हीरा की जड़ाऊ गोलपाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, चमकनी गोल-चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.श्रीमस्तक पर अलख धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में झुमका के कर्णफूल धराये जाते हैं.
 लाल रंग एवं श्वेत रंग के पुष्पों की दो अत्यंत सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

 श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं वेत्रजी ( भाभीजी वाले) धराये जाते हैं.
पट गुलाबी एवं गोटी चाँदी की आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर हल्के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर हीरा की पाग बड़ी कर के गुलाबी गोल पाग धरा कर रुपहली लूम तुर्रा धराये जाते हैं.

Thursday, 17 December 2020

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्थी

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्थी
Friday, 18 December 2020

शीतकाल के सेहरा को प्रथम शृंगार

मंगल भीनी प्यारी रात। 
नवल रंग देखो, देखो कुंज सुहात ।।ध्रु।। 
दुल्हनि प्यारी राधिका दुल्हे नंद सुजान । 
ब्याह रच्यो संकेत सदन ललिता रचित बितान ।। 
चहल पहल आनंद महेलमें जों न रूप दरसात । 
दुलहनिको मुख निरखके पिय ईकटक रही जात।। 
अंस भुजा कर दोऊ चलत हंसगती चाल । 
गावत मंगल रीत सों चलेहें भावते भवन ।। 
कुसुम सेज विहरत दोऊ जहां न कोऊ पांस । 
यह जोरी छबी देख कें बल बल "नागरीदास"।। 
मंगल भीनी प्यारी रात ।।

शीतकाल में श्रीजी को चार बार सेहरा धराया जाता है. इनको धराये जाने का दिन निश्चित नहीं है परन्तु शीतकाल में जब भी सेहरा धराया जाता है तो प्रभु को मीठी द्वादशी आरोगाई जाती हैं. आज प्रभु को साठा के रस की लापसी (द्वादशी) आरोगाई जाती हैं.

आज श्रीजी को केसरी रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली चाकदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

दिन दुल्है मेरो कुंवर कन्हैया l 
नित उठ सखा सिंगार बनावत नितही आरती उतारत मैया ll 1 ll
नित उठ आँगन चंदन लिपावे नित ही मोतिन चौक पुरैया l
नित ही मंगल कलश धरावे नित ही बंधनवार बंधैया ll 2 ll
नित उठ व्याह गीत मंगलध्वनि नित सुरनरमुनि वेद पढ़ैया l
नित नित होत आनंद वारनिधि नित ही ‘गदाधर’ लेत बलैया ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज लाल रंग के आधारवस्त्र (Base Fabric) पर विवाह के मंडप की ज़री के ज़रदोज़ी के काम (Work) से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है जिसके हाशिया में फूलपत्ती का क़सीदे का काम एवं जिसके एक तरफ़ श्रीस्वामिनीजी एवं दूसरी तरफ़ श्रीयमुनाजी विवाह के सेहरा के शृंगार में विराजमान हैं. गादी, तकिया पर लाल रंग की एवं चरणचौकी पर सफ़ेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग का साटन का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं एवं केसरी मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. केसरी ज़री के मोजाजी भी धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. फिरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर केसरी रंग के दुमाला के ऊपर फिरोज़ा का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. सेहरा पर मीना की चोटी दायीं ओर धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला माला धरायी जाती है. 
लाल एवं पीले पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट केसरी एवं गोटी उत्सव की आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के शृंगार सेहरा एवं श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं पर दुमाला बड़ा नहीं किया जाता हैं और शयन दर्शन हेतु छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर  दुमाला पर टिका एवं सिरपेच धराये जाते हैं. लूम-तुर्रा नहीं धराये जाते हैं.
अनोसर में दुमाला बड़ा करके छज्जेदार पाग धरायी जाती हैं.

Wednesday, 16 December 2020

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया
Thursday, 17 December 2020

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को हल्के हरे रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आसावरी)

चलरी सखी नंदगाम जाय बसिये ।खिरक खेलत व्रजचन्दसो हसिये ।।१।।
बसे पैठन सबे सुखमाई ।
ऐक कठिन दुःख दूर कन्हाई ।।२।।
माखनचोरे दूरदूर देखु ।
जीवन जन्म सुफल करी लेखु ।।३।।
जलचर लोचन छिन छिन प्यासा ।
कठिन प्रीति परमानंद दासा ।।४।।

साज – श्रीजी में आज हरे रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज हल्के हरे रंग के साटन पर  सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं  घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हरी गोल पाग के ऊपर सिरपैंच,जमाव का क़तरा एवं चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में पन्ना के कर्णफूल के एक जोड़ी धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट हरा व गोटी चाँदी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

શ્રીમહાપ્રભુજી વૈષ્ણવો માટે કરુણાસાગર કે કૃપાસાગર છે

શ્રીમહાપ્રભુજી વૈષ્ણવો માટે કરુણાસાગર કે કૃપાસાગર છે

- પ્રભુએ વેણુવાદન દ્વારા સર્વદૈવી જીવોને અધરામૃત આપ્યું હતું
ભારતમાં ત્રણ વૈષ્ણવ આચાર્યોને તેમના સેવકો ‘મહાપ્રભુજી’ ની સંજ્ઞાથી સંબોધે છે. જેમાં પુષ્ટિમાર્ગના આચાર્ય શ્રીવલ્લભાચાર્યજી અને તેમની પાંચમી પેઢીએ થયેલ શ્રીહરિરાયજી ને પુષ્ટિમાર્ગીય ‘શ્રીમહાપ્રભુજી’ ના નામે જાણે છે. તે જ પ્રમાણે ગૌડીય સંપ્રદાયમાં શ્રીકૃષ્ણ ચૈતન્યને તેમના સેવકો ‘શ્રીચૈતન્યમહાપ્રભુ’ તરીકે સંબોધે છે. સામાન્ય રીતે ભક્તોના મનમાં એક મીઠી મૂંઝવણ હોય છે. ભગવાનને બતાવનાર ગુરુ ભગવાનનું જ અવર સ્વરૂપ છે એવો ભક્તોને પોતાના ગુરુ સ્વરૂપમાં દૃઢ વિશ્વાસ હોય છે. તેથી જ્યારે ગુરુ અને ગોવિંદ બન્ને સાથે ભક્તની સામે પધારે ત્યારે ભક્તને મીઠી મૂંઝવણ થાય છે કે પહેલા પ્રણામ કોને કરવા ? ભક્તની ભક્તિનો પાયો દીનતા છે. તેથી ભક્તને શ્રદ્ધા છે કે શ્રીગુરુકૃપાથી જ મને ગોવિંદની પ્રાપ્તિ થઈ છે. શ્રીગુરુ વિના ગોવિંદની પ્રાપ્તિ સુલભ નથી. જ્યારે ગુરુમાં ગોવિંદ જ બિરાજે છે. તેથી ભક્ત સૌ પ્રથમ પોતાના ગુરુને પ્રણામ કરે છે અને પછી ગોવિંદને પ્રણામ કરે છે. આથી પુષ્ટિમાર્ગીય વૈષ્ણવોને મન શ્રીનાથજી અને શ્રીમહાપ્રભુજી એક જ સ્વરૂપ હોવા છતાં શ્રીનાથજીને આપનારા શ્રીમહાપ્રભુજીને આપણે પ્રથમ વંદન કરીએ છીએ. પ્રભુને આપનારા શ્રીવલ્લભ આપણા માટે પ્રભુથી પણ મોટા છે, વધુ કરુણાસાગર અને કૃપાસાગર છે અને તેથી આપણે તેમને શ્રીમહાપ્રભુજી કહીએ છીએ.
શ્રીમહાપ્રભુજીથી પાંચમી પેઢીએ શ્રીહરિરાયજીનું પ્રાગટ્ય થયું. શ્રીમહાપ્રભુજીનાં દ્વિતીય કુમાર શ્રીવિઠ્ઠલનાથજી(શ્રીગુંસાઈજી) થયા. તેમના દ્વિતીય કુમાર શ્રીગોવિંદરાયજીના પુત્ર શ્રીકલ્યાણરાયજી થયા. શ્રીકલ્યાણરાયજીના જ્યેષ્ઠ પુત્ર શ્રીહરિરાયજી થયા. ભાદરવા વદ પાંચમને શુભ દિવસે શ્રી હરિરાયજીનું પ્રાક્ટ્ય ગોકુલમાં થયું હતું. તેમના પ્રાગટ્યની પણ એક અદ્‌ભૂત વિલક્ષણતા છે. શ્રીકલ્યાણરાયજીને પુત્ર ના હોવાથી તેમને મૂંઝવણ હતી કે તેમના પછી તેમના સેવ્યસ્વરૂપ શ્રી વિઠ્ઠલનાથજીની સેવા કોણ કરશે ? શ્રીકલ્યાણરાયજીએ પોતાનું આ અલૌકિક દુઃખ તેમના કાકા ચતુર્થ કુમાર શ્રીગોકુલનાથજી સમક્ષ પ્રગટ કર્યું. શ્રીગોકુલનાથજીએ પોતાના પિતૃચરણ શ્રીગુંસાઈજી પાસે શ્રીકલ્યાણરાયજી વિનંતી પહોંચાડી. 

શ્રીગુંસાઈજી શ્રીસર્વોત્તમ સ્ત્રોતમાં આજ્ઞા કરે છે કે તેના પાઠથી કૃષ્ણાધરામૃતની સિદ્ધિ પ્રાપ્ત થાય છે. જેમના નામ માત્રના કીર્તનથી કૃષ્ણાધરામૃત પ્રાપ્ત થાય, તે સાક્ષાત કૃપા કરીને પોતાનું અધરામૃત આપે છે ત્યારે એ અલૌકિક અધરામૃતથી ભગવદ્ ભોગ્યસુધાની પ્રાપ્તિ થાય. તેમાં કોઈ આશ્ચ્રર્ય નથી. સારસ્વત કલ્પમાં પણ પ્રભુએ પોતાના વેણુવાદન દ્વારા સર્વદૈવી જીવોને અધરામૃત આપ્યું હતું અને ભગવદ્ભોગ્ય સુધા પ્રાપ્ત કરાઈ હતી.
શ્રીકલ્યાણરાયજીને પ્રાપ્ત થયેલી આ ભાગવદ ભોગ્યસુધા શ્રીહરિરાયજી સ્વરૂપે પ્રગટ થઈ. શ્રીહરિરાયજીમાં શ્રીમહાપ્રભુજીનું સ્વરૂપજ પ્રગટ વિલસતું હતું. સાથે સાથે શ્રીગુંસાઈજીનાં દર્શન પણ તે સ્વરૂપમાં સૌને થતાં હતા. તેથી, વૈષ્ણવો શ્રીહરિરાયજીને ‘શ્રી હરિરાયપ્રભુચરણ’ અને ‘શ્રીહરિરાયમહાપ્રભુ’ એમ બન્ને નામે સ્મરે છે.
બાળપણથી જ શ્રીહરિરાયજીનું વ્યક્તિત્વ વિલક્ષણ હતું આચાર્યપદે બિરાજમાન હોવા છતાં તેમણે વૈષ્ણવતા વિશેષ રૂપે પ્રગટ કરી હતી તેથી બાલ્યાવસ્થાથી જ વૈષ્ણવોની મંડળી વચ્ચે સમાન આસને બિરાજી,  વૈષ્ણવોની સાથે રાત-દિવસ સત્સંગ કરવો એ તેમનું વ્યસન બની ગયું હતું. તેમના પિતૃચરણે આચાર્યપદની ગરિમા જાળવવા શ્રીહરિરાયજીને આજ્ઞા કરી તો પણ તેમણે ભગવદ્વાર્તા વખતે તો વૈષ્ણવી ભાવ જ પ્રગટ રાખવાનો આગ્રહ સેવ્યો. પરિણામે પિતૃચરણની આજ્ઞાથી ત્રણ રાત-દિવસ એકાંતવાસ કર્યો. તે દરમિયાન શ્રીસર્વોત્તમ સ્તોત્રના વિરહતાપૂર્વક સતત જપ કર્યા. તેના ફળ સ્વરૂપે શ્રીમહાપ્રભુજી અને શ્રીગુંસાઈજીના સાક્ષાત્ દર્શન થયા. શ્રીહરિરાયજી ત્યારથી વૈષ્ણવો પ્રત્યે વૈષ્ણવી ભાવ વધારતાં જ રહ્યાં.

Tuesday, 15 December 2020

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल द्वितीया

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल द्वितीया
Wednesday, 16 December 2020

बनठन कहां चले अैसी को मन भायी सांवरेसे कुंवर कन्हाई ।
मुख तो सोहे जैसे दूजको चंदा छिप छिप देत दिखाई ।।१।।
चले ही जाओ नेक ठाड़े रहो किन अैसी शिख शिखाई ।
नंददास प्रभु अबन बनेगी निकस जाय ठकुराई ।।२।।
( आज शयन समय प्रभु के सनमुख गाये जाने वाला अद्भुत कीर्तन )

दूज को चंदा (चंदा उगे को शृंगार)

विशेष – नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज ने तत्कालीन परचारक श्री दामोदरलालजी की भावना के आधार पर चन्द्रमा के पदों पर आधारित यह ‘पांच चन्द्र (पिछवाई पर, कतरा में, शीशफूल में, वक्षस्थल पर और स्वयं श्रीप्रभु का मुखचंद्र)’ (दूज को चंदा) चंदा उगे को शृंगार विक्रम संवत १९७४ में आज के दिन किया था. 
तब से प्रतिवर्ष यह श्रृंगार आज के दिन धराया जाता है. 

इस श्रृंगार के पीछे यह भावना है कि बालक श्रीकृष्ण ने मैया यशोदाजी से चन्द्रमा को लेने की जिद की तब यशोदाजी ने उन्हें ये पांच चंद्रमा बताये.

इसकी अन्य भावना यह है कि स्वामिनीजी नंदालय में आधा नीलाम्बर ओढ़कर अपने चन्द्र स्वरुप प्राण प्रिय प्रभु के दर्शन कर रहीं हैं. 
प्रभु के चन्द्र समान मुखारविंद के भाव से यह श्रृंगार धराया जाता है (इस भाव का कीर्तन नीचे देखें). 

सभी घटाओं की भांति आज भी श्रृंगार से राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में कुछ जल्दी हो जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : तोड़ी)

आधो मुख नीलाम्बरसो ढांक्यो बिथुरी अलके सोहे l
एक दिसा मानो मकर चांदनी घन विजुरी मन मोहे ll 1 ll
कबहु करपल्लवसो केश निवारत निकसत ज्यों शशि जोहे l
‘सूरदास’ मदनमोहन ठाड़े निहारत त्रिभुवन में उपमा को है ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज धरायी जाने वाली श्याम मखमल की पिछवाई में चन्द्रमा एवं तारों का सलमा-सितारा का रुपहली ज़रदोज़ी का काम किया हुआ है. श्री स्वामिनीजी एवं श्री चन्द्रावलीजी दोनों प्रभु के दोनों ओर फ़िरोज़ी रंग का नीलाम्बर ओढ़ कर खड़े हैं ऐसा सुन्दर चित्रांकन पिछवाई में किया गया है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज बिना किनारी का रुपहली ज़री का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का परन्तु कलात्मक श्रृंगार धराया जाता है. मोती के आभरण धराये जाते हैं. 

श्रीमस्तक पर आज विशिष्ट श्रृंगार किया जाता है. रुपहली ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर सिरपैंच, चन्द्र घाट का कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल के ऊपर भी चन्द्रमा धराया जाता है. 
श्रीमस्तक पर अलख धराये जाते हैं. 
दूज के चंद्रमा के आकार का जड़ाव स्वर्ण का हांस (जुगावाली) धराया जाता है एवं वक्षस्थल पर चन्द्रहार धराया जाता है.
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 

सभी समय सफेद मनका की माला आती है. श्वेत एवं रंगबिरंगे पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में चांदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट रुपहली ज़री का व गोटी चांदी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर हल्के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर रुपहली लूम तुर्रा धराये जाते हैं.

आज दिनभर सभी समय में चन्द्रमा के भाव के कीर्तन गाये जाते हैं.
शयन समय एक अद्भुत कीर्तन प्रभु सम्मुख गाया जाता है -
बन ठन कहाजु चले लाल ऐसी को मन भायी
सांवरे हो कुंवर कनहाई...

आज के दिन भी संध्या-आरती व शयन की आरती सभी बत्तियां बुझा कर की जाती है. आरती की लौ की रौशनी में हीरे के आभरण व प्रभु के अद्भुत स्वरुप की अलौकिक छटा वास्तव में अद्वितीय होती है.

Monday, 14 December 2020

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा
Tuesday, 15 December 2020

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को गुलाबी रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : तोड़ी)

अबही डार देरे ईडुरिया मेरी पचरंगी पाटकी ।
हाहाखात तेरे पैया परत हो इतनो लालच मोहि मथुरा नगरके हाटकी ।।१।।
जो न पत्याऊ जाय किन देखो मनमोहन हैज़ु नाटकी ।
मदन मोहन पिय झगरो कौन वध्यो सो देखेंगी लुगाई वाटकी ।।२।।

साज – श्रीजी में आज गुलाबी रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज गुलाबी रंग के साटन पर  सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका गुलाबी मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.हरे मीना एवं सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर पचरंगी छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच और जमाव का क़तरा व रूपहरी तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल की दो जोड़ी  धरायी जाती हैं. श्रीकंठ में कमल माला एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. रेशम की लूम धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.
पट हरा व गोटी मीना की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

शरणमार्गका मूल

शरणमार्गका मूल 

पांडवो और कौरवों के बीच युद्ध होना निश्चित हुवा, तब अर्जुन पांडवोंकी ओरसे और दुर्योधन कौरवोंकी ओरसे भगवान् के पास सहायता लेने गये। भगवद् भक्त अर्जुनने तो साक्षात् भगवान् को ही अपने पक्षमें मांग लिया; जबकि दुर्योधन तो भगवान् की सेनाको लेकर प्रसन्न हो गया। युद्धकी घड़ी आयी तब भी अर्जुनने अपने मार्गदर्शकके रूपमें भगवान् को ही रथ का चालक (सारथि) बनाया।

युद्धकी शुरुआत करनेके लिये दोनों पक्ष जब रणभेरी फूंकने लगे तब भगवान् ने अर्जुनके रथको युद्धके मैदानमें दोनों सेनाओंके बीच ला कर खड़ा कर दिया। सामनेके पक्षमें नजर डालनेपर अर्जुनको उसके काका, भाई, भतीजा, मामा इत्यादि सगे-संबंधी और गुरुजन वहां लड़नेके लिये खड़े दिखलायी दिये। अर्जुन बहादुर और शस्त्रविद्यामें निपुण था, सकल शास्त्रोंका जानकार था, फिरभी अपने स्वजनोंके साथ युद्ध करना पड़ेगा यह सोचकर उस समय उसके मनमें खलबली मच गयी। उसके पूरे शरीरमें झन्नाहट होने लगी। ऐसी विकट परिस्थितिमें उसे सच्चा मार्ग दिखा सके, ऐसा यदि कोई था तो वे थे एकमात्र भगवान् श्रीकृष्ण। अर्जुनने भगवान् के शरणमें जाकर बिनती की : 

हे श्रीकृष्ण! ऐसी विकट परिस्थितिमें मेरा मन स्थिर नहीं हो पाता है। धर्म-अधर्मका विवेक भी मैं कर नहीं पाता हूँ। मेरी समस्याका समाधान कर सके ऐसा आपके अलावा और कोई मुझे दिखलायी भी नहीं पड़ता। इसलिये में आपसे पूछ रहा हूँ। मेरेलिये जो कल्याणकारी हो वह मुझे कहो। में आपकी शरणमें हुं। मुझे उपदेश दो।

अर्जुनके इन वचनोंका विचार करनेपर अर्जुनमें शरणागतिके योग्य नि:साधनता, अनन्यता, विश्वास, अन्य उपाय करनेमें निरुत्साह और पूर्ण दीनता रूपी गुण आ गये थे यह स्पष्ट हो जाता है। अर्जुनने भगवान् की शरणागति स्वीकार कर ली तब उसकी प्रत्येक शंकाओंका भगवान् ने समाधान किया और अंतमें जीवमात्रके लिये कल्याणकारी ऐसे शरणमार्गका महान् उपदेश दिया :-

सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच।।

अर्थ : (मेरे शरण आनेमें प्रतिबंध करनेवाले) सभी धर्मोंका त्याग करके मेरे अकेलेकी शरणमें तू आजा! मैं तुम्हे हर पापोंसे (अर्थात् मेरे शरणमें आते समय जितने भी विघ्न आयेंगे उनसे में तुम्हे) मुक्त कराउंगा; तू चिंता मत कर।

श्रीमहाप्रभुजी के द्वारा प्रवर्तित शरणमार्गका आधार भगवान् का यही उपदेश हैं।

छोटा बालक जैसे अकेला पड़ जानेपर घबरा कर दौड़ता हुवा अपनी माताके पास चला जाता है और ऐसे भयभीत बालकको माता अपनी गोदमें ले लेती है, वैसे ही हम भी यदि प्रभुपर अतूट विश्वास, नि:साधनता, दीनता और अनन्यता के साथ प्रभुकी शरणागति स्वीकार कर लें तो प्रभु हमें अवश्य स्वीकार लेेते हैं।

Sunday, 13 December 2020

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण अमावस्या

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण अमावस्या(सोमवती अमावस्या)
Monday, 14 December 2020

विशेष - सोमवार को जो अमावस्या आती है उसे सोमवती अमावस्या कहते हैं.

हों श्याम रंग रंगी ।
रिझवे काई रही सुरत पर सुरत मांझ पगी ।।१।।
देख सखी अेक मेरे नयनमें बैठ रह्यो करी भौन ।
घेनु चरावन जात वृंदावन सौंधो कनैया कोन ।।२।।
कौन सुने कासौ कहे सखी कौन करे बकवाद ।
तापे गदाधर कहा कही आवे गूंगो गुड़को स्वाद ।।३।।

द्वितीय (श्याम) घटा

विशेष – श्रीजी में शीतकाल में विविध रंगों की घटाओं के दर्शन होते हैं. 
घटा के दिन सर्व वस्त्र, साज आदि एक ही रंग के होते हैं. आकाश में वर्षाऋतु में विविध रंगों के बादलों के गहराने से जिस प्रकार घटा बनती है उसी भाव से श्रीजी में मार्गशीर्ष व पौष मास में विविध रंगों की द्वादश घटाएँ द्वादश कुंज के भाव से होती हैं.

कई वर्षों पहले चारों यूथाधिपतिओं के भाव से चार घटाएँ होती थी परन्तु गौस्वामी वंश परंपरा के सभी तिलकायतों ने अपने-अपने समय में प्रभु के सुख एवं वैभव वृद्धि हेतु विभिन्न मनोरथ किये. 
इसी परंपरा को कायम रखते हुए नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज ने निकुंजनायक प्रभु के सुख और आनंद हेतु सभी द्वादश कुंजों के भाव से आठ घटाएँ बढ़ाकर कुल बारह (द्वादश) घटाएँ (दूज का चंदा सहित) कर दी जो कि आज भी चल रही हैं.

इनमें कुछ घटाएँ (हरी, श्याम, लाल, अमरसी, रुपहली व बैंगनी) नियत दिनों पर एवं अन्य कुछ (गुलाबी, पतंगी, फ़िरोज़ी, पीली और सुनहरी घटा) ऐच्छिक है जो बसंत-पंचमी से पूर्व खाली दिनों में ली जाती हैं. 

ये द्वादश कुंज इस प्रकार है –

अरुण कुंज, हरित कुंज, हेम कुंज, पूर्णेन्दु कुंज, श्याम कुंज, कदम्ब कुंज, सिताम्बु कुंज, वसंत कुंज, माधवी कुंज, कमल कुंज, चंपा कुंज और नीलकमल कुंज.

जिस रंग की घटा हो उसी रंग के कुंज की भावना होती है. इसी श्रृंखला में श्याम कुंज के भाव से आज श्रीजी में श्याम घटा होगी. 

आज सभी साज, वस्त्र, श्रृंगार आदि श्याम रंग के होते हैं. कीर्तन भी श्याम घटा की भावना के ऐसे गाये जाते हैं जिनमें ‘श्याम’ शब्द आवे अथवा ‘श्याम’ का नाम आवे. 

सभी घटाओं में राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में काफ़ी जल्दी हो जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

माई मेरो श्याम लग्यो संग डोले l
जहीं जहीं जाऊं तहीं सुनी सजनी बिनाहि बुलाये बोले ll 1 ll
कहा करो ये लोभी नैना बस कीने बिन मोले l
‘हित हरिवंश’ जानि हितकी गति हसि घुंघटपट खोले ll 2 ll 

स्यामा स्याम आवत कुंज महल ते रंगमगे-रंगमगे ।
मरगजी वनमाल सिथिल कटि किंकिन, अरुन नैन मानौं चारौ जाम जगे ।।१।।
सब सखी सुघराई गावत बीन बजावत, सब सुख मिली संगीत पगे ।
श्रीहरिदास के स्वामी स्याम कुंजबिहारी  की कटाक्ष सों कोटि काम दगे ।।२।।

साज – श्रीजी में आज श्याम रंग की साटन (दरियाई) की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर श्याम बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्याम रंग की साटन (दरियाई) का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी श्याम रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण हीरा के धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर श्याम रंग की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, रुपहली दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. एक हार एवं पंचलड़ा धराया जाता है.
श्वेत रंग के पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. सभी समाँ में तुलसी की माला धरायी जाती है. हीरा की हमेल भी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में चांदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
 पट श्याम व गोटी चांदी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर हल्के हीरा के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर रुपहली लूम तुर्रा धराये जाते हैं.

आज के दिन विशेष रूप से संध्या-आरती व शयन की आरती सभी बत्तियां (Lights) बुझा कर की जाती है. आरती की लौ की रौशनी में हीरे के आभरण व प्रभु के अद्भुत स्वरुप की अलौकिक छटा वास्तव में अद्वितीय होती है.

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया  Saturday, 01 February 2025 इस वर्ष माघ शुक्ल पंचमी के क्षय के कारण कल माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन बसंत पंचमी का पर्व ह...