Thursday, 31 December 2020
व्रज – पौष कृष्ण द्वितीया
Wednesday, 30 December 2020
व्रज – पौष कृष्ण प्रतिपदा
व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा
व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा
Wednesday, 30 December 2020
आज गोपाल पाहुने आये निरखे नयन न अघाय री ।
सुंदर बदनकमल की शोभा मो मन रह्यो है लुभाय री ।।१।।
के निरखूं के टहेल करूं ऐको नहि बनत
ऊपाय री ।
जैसे लता पवनवश द्रुमसों छूटत फिर
लपटाय री ।।२।।
मधु मेवा पकवान मिठाई व्यंजन बहुत बनाय री ।
राग रंग में चतुर सुर प्रभु कैसे सुख उपजाय री ।।३।।
नियम (घर) का छप्पन भोग, बलदेवजी (दाऊजी) का उत्सव
आज श्रीजी में नियम (घर) का छप्पनभोग है. छप्पनभोग के विषय में कई भावनाएं प्रचलित हैं.
🌺 श्रीमदभागवत के अनुसार, व्रज की गोप-कन्याओं ने श्रीकृष्ण को पति के रूप में पाने की मनोकामना लिये एक मास तक व्रत कर, प्रातः भोर में यमुना स्नान कर श्री कात्यायनी देवी का पूजा-अर्चना की. श्रीकृष्ण ने कृपा कर उन गोप-कन्याओं की मनोकामना पूर्ति हेतु सहमति प्रदान की.
ऐसा कहा जाता है कि किसी भी व्रत के समापन के पश्चात यदि व्रत का उद्यापन नहीं किया जाये तो व्रत की फलसिद्धि नहीं होती अतः इन गोपिकाओं ने विधिपूर्वक व्रतचर्या की समाप्ति और मनोकामना पूर्ण होने के उपलक्ष्य में उद्यापन स्वरूप प्रभु को छप्पनभोग अरोगाया.
🌼 मैंने कहीं यह भी पढ़ा था एवं सुन्दर लगा अतः बता रह हूँ कि गौलोक में प्रभु श्रीकृष्ण व श्री राधिकाजी एक दिव्य कमल पर विराजित हैं.
उस कमल की तीन परतें होती हैं जिनमें प्रथम परत में आठ, दूसरी में सौलह और तीसरी परत में बत्तीस पंखुडियां होती हैं. प्रत्येक पंखुड़ी पर प्रभु भक्त एक सखी और मध्य में भगवान विराजते हैं.
इस प्रकार कुल पंखुड़ियों संख्या छप्पन होती है और इन पंखुड़ियों पर विराजित प्रभु भक्त सखियाँ भक्तिपूर्वक प्रभु को एक-एक व्यंजन का भोग अर्पित करती हैं जिससे छप्पनभोग बनता है.
🌺 छप्पनभोग की मुख्य पुष्टिमार्गीय भावना यह है कि वृषभानजी के निमंत्रण पर प्रभु नन्दकुमार श्रीकृष्ण अपने ससुराल भोजन हेतु सकुटुम्ब पधारे हैं.
वृषभानजी सबका स्वागत करते हैं एवं विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का भोग अरोगाया जाता है. वहीँ व्रजललनाएं मधुर स्वरों में गीत गाती हैं. इसी स्वामिनी भाव से आज कई गौस्वामी बालकों के यहाँ आज प्रभु पधार कर छप्पनभोग अरोगते हैं.
छप्पनभोग के भोग रखे जाएँ तब गदाधरदासजी का पद आसावरी राग में गाया जाता है.
श्रीवृषभान सदन भोजनको नंदादिक सब आये हो l
जिनके चरणकमल धरिवेको पट पावड़े बिछाये हो ll....
इस उपरांत भोजन के एवं बधाई के पद भी गाये जाते हैं.
एक अन्य मान्यता अनुसार श्री वल्लभाचार्य जी और श्री विट्ठलनाथजी,के वक्त सातो स्वरूप गोकुल में ही विराजते थे. अन्नकूट जति पूरा(गिरिराजजी)में होता था सातो स्वरूप पाधारते और साथ में आरोगते थे. एक बार श्रीनाथजी ने श्री गुसाईंजी सु कीनी के बावा में तो भुको रह जात हु ये सातो आरोग जात है तब आप श्री ने गुप्त रूप सु बिना अन्य स्वरूपण कु जताऐ सातो स्वरूप के भाव की विविध सामग्री(या छप्पन भोग में अनेकानेक प्रकार की सामगी,सखड़ी और अनसखड़ी में आरोगे)सिद्ध कराय आरोगायी यादिन श्रीजी में नगाड़े गोवर्धन पूजा चोक में नीचे बजे याको तात्पर्य है कि नगार खाने में ऊपर बजे तो सब स्वरूपण को खबर पड़ जाय जासु नीचे बजे ये प्रमाण है और प्रभु आप अकेले पुरो छप्पन भोग आरोगे और श्री गुसाईंजी पर ऐसे कृपा किये
🌼 पुष्टिमार्ग में प्रचलित एक अन्य प्रमुख मान्यता के अनुसार विक्रम संवत 1632 में आज के दिन नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोकुलनाथजी ने व्रज में गोकुल के समीप दाऊजी नामक गाँव में श्री बलदेवजी के मंदिर के जीर्णोद्धार पश्चात श्री बलदेव जी के स्वरुप को वेदविधि पूर्वक पुनःस्थापना की.
श्री बलदेवजी को हांडा अरोगाया था. तब गौस्वामी श्री गोकुलनाथजी ने विचार किया कि बड़े भाई (श्री बलदेवजी) के यहाँ ठाठ-बाट से मनोरथ हों और छोटे भाई (श्रीजी) के यहाँ कुछ ना हों यह तो युक्तिसंगत नहीं है अतः आपने श्रीजी को मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को छप्पनभोग अरोगाया एवं छप्पनभोग प्रतिवर्ष होवे प्रणालिका में ऐसा नियम बनाया.
तब से श्रीजी प्रभु को प्रतिवर्ष नियम का छप्पनभोग अंगीकृत किया जाता है वहीँ श्री बलदेवजी में भी आज के दिन भव्य मनोरथ होते हैं, स्वर्ण जड़ाव के हल-मूसल धराये जाते हैं एवं गाँव में मेले का आयोजन किया जाता है.
श्रीजी में विभिन्न ऋतुओं में श्री तिलकायत की आज्ञानुसार मनोरथियों द्वारा भी छप्पनभोग के मनोरथ भी कराये जाते हैं. घर के छप्पनभोग और मनोरथी के छप्पनभोग में कुछ अंतर होते हैं –
🌸 नियम (घर) के छप्पनभोग की सामग्रियां उत्सव से पंद्रह दिवस पूर्व अर्थात मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा से सिद्ध होना प्रारंभ हो जाती है परन्तु अदकी के छप्पनभोग की सामग्रियां मनोरथ से सात दिवस पूर्व ही सिद्ध होना प्रारंभ होती है.
🌸 नियम (घर) के छप्पनभोग ही वास्तविक छप्पनभोग होता है क्योंकि अदकी का छप्पनभोग वास्तव में छप्पनभोग ना होकर एक बड़ा मनोरथ ही है जिसमें विविध प्रकार की सामग्रियां अधिक मात्रा में अरोगायी जाती है.
🌸 नियम (घर) का छप्पनभोग गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में अरोगाया जाता है अतः इसके दर्शन प्रातः लगभग 11 बजे खुल जाते हैं जबकि अदकी का छप्पनभोग मनोरथ राजभोग में अरोगाया जाता है अतः इसके दर्शन दोपहर लगभग 1 बजे खुलते हैं.
🌸 नियम (घर) के छप्पनभोग में श्रीजी के अतिरिक्त किसी स्वरुप को आमंत्रित नहीं किया जाता जबकि अदकी के छप्पनभोग मनोरथ में श्री तिलकायत की आज्ञानुसार श्री नवनीतप्रियाजी व अन्य सप्तनिधि स्वरुप पधराये जा सकते हैं एवं ऐसा पूर्व में कई बार हो भी चुका है.
🌸 नियम (घर) का छप्पनभोग उत्सव विविधता प्रधान है अर्थात इसमें कई अद्भुत सामग्रियां ऐसी होती है जो कि वर्ष में केवल इसी दिन अरोगायी जाती हैं परन्तु अदकी के छप्पनभोग मनोरथ संख्या प्रधान है अर्थात इसमें सामान्य मनोरथों में अरोगायी जाने वाली सामग्रियां अधिक मात्रा में अरोगायी जाती हैं.
श्रीजी का सेवाक्रम - श्रीजी में आज के दिन प्रातः 4.00 बजे शंखनाद होते हैं.
उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
सभी समय यमुनाजल की झारीजी भरी जाती है. चारों दर्शनों (मंगला, राजभोग संध्या-आरती व शयन) में आरती थाली में होती है.
गादी तकिया आदि पर सफेदी नहीं आती. तकिया पर मेघश्याम मखमल के व गदल रजाई पीले खीनखाब के आते हैं. गेंद, चौगान और दिवाला सोने के आते हैं.
मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.
आज श्रीजी को नियम के तमामी (सुनहरी) ज़री के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर टिपारा के ऊपर रुपहली ज़री के गौकर्ण एवं सुनहरी ज़री का त्रिखुना घेरा धराया जाता है.
श्रृंगार व ग्वाल के दर्शन नहीं खोले जाते हैं.
श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.
गोपीवल्लभ भोग में ही छप्पनभोग के सखड़ी भोग निजमंदिर व आधे मणिकोठा में धरे जाते हैं. अनसखड़ी भोग मणिकोठा, डोल-तिबारी व रतनचौक में साजे जाते हैं.
धुप, दीप, शंखोदक होते हैं व तुलसी समर्पित की जाती है. भोग सरे उपरांत राजभोग धरे जाते हैं, नित्य का सेवाक्रम होता है और छप्पनभोग के दर्शन लगभग 11 बजे खुल जाते हैं.
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में पांचभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात और वड़ी-भात) आरोगाये जाते हैं.
राजभोग दर्शन में प्रभु के सम्मुख 25 बीड़ा की सिकोरी अदकी (स्वर्ण का जालीदार पात्र) धरी जाती है.
आज नियम का छप्पनभोग प्रभु अकेले ही अरोगते हैं अर्थात श्री नवनीतप्रियाजी अथवा कोई अन्य स्वरुप आज श्रीजी में आमंत्रित नहीं होते. यहाँ तक कि अन्य स्वरूपों को पता ना चले इस भाव से आज नक्कार खाने में नगाड़े भी नीचे गौवर्धन पूजा के चौक में बजाये जाते हैं.
श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु डला (विविध प्रकार के 56 सामग्रियों का एक छाब) भेजा जाता है.
भोग समय अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर घी में तले बीज-चालनी के सूखे मेवे अरोगाये जाते हैं.
छप्पनभोग सरे –
कीर्तन – (राग : आशावरी)
श्रीवृषभानसदन भोजन को नंदादिक मिलि आये हो l
तिनके चरनकमल धरिवे को पट पावड़े बिछाये हो ll 1 ll
रामकृष्ण दोऊ वीर बिराजत गौर श्याम दोऊ चंदा हो l
तिनके रूप कहत नहीं आवे मुनिजन के मनफंदा हो ll 2 ll
चंदन घसि मृगमद मिलाय के भोजन भवन लिपाये है l
विविध सुगंध कपूर आदि दे रचना चौक पुराये हो ll 3 ll
मंडप छायो कमल कोमल दल सीतल छांहु सुहाई हो l
आसपास परदा फूलनके माला जाल गुहाई हो ll 4 ll
सीतल जल कुंमकुम के जलसो सबके चरन पखारे हो ।
कर विनंती कर ज़ोर सबन सो कनकपटा बैठारे हो ।।५।।
राजत राज गोप भुवपति संग विमल वेश अहीरा हो ।
मनहु समाज राजहंसनको ज़ुरे सरोवर तीरा हो ।।६।।.....(अपूर्ण)
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)
जयति रुक्मणी नाथ पद्मावती प्राणपति व्रिप्रकुल छत्र आनंदकारी l
दीप वल्लभ वंश जगत निस्तम करन, कोटि ऊडुराज सम तापहारी ll 1 ll
जयति भक्तजन पति पतित पावन करन कामीजन कामना पूरनचारी l
मुक्तिकांक्षीय जन भक्तिदायक प्रभु सकल सामर्थ्य गुन गनन भारी ll 2 ll
जयति सकल तीरथ फलित नाम स्मरण मात्र वास व्रज नित्य गोकुल बिहारी l
‘नंददास’नी नाथ पिता गिरिधर आदि प्रकट अवतार गिरिराजधारी ll 3 ll
साज – आज श्रीजी में श्याम रंग की मखमल के ऊपर रुपहली ज़री से गायों के भरतकाम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.
वस्त्र – आज प्रभु को सुनहरी (तमामी) ज़री का सूथन, चोली, चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका व मोजाजी रुपहली ज़री के व ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) उत्सववत भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर सुनहरी ज़री की टिपारा की टोपी के ऊपर हीरा का किलंगी वाला सिरपैंच, रुपहली ज़री के गौकर्ण, सुनहरी ज़री का त्रिखुना घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. उत्सव की हीरा की चोटीजी बायीं ओर धरायी जाती है.
हीरा का प्राचीन जड़ाव का चौखटा पीठिका के ऊपर धराया जाता है.
कस्तूरी, कली आदि सभी माला धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उत्सव का व गोटी सोने की कूदती हुए बाघ बकरी की आती है. आरसी ग्वाल में चार झाड़ की व राजभोग में सोने की डांडी की आती है.
Monday, 28 December 2020
व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्दशी(द्वितीय)
Sunday, 27 December 2020
व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्दशी(प्रथम)
Saturday, 26 December 2020
व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी
सूरदास जी को किसीने पूछा रासलीला का क्या मतलब है
Friday, 25 December 2020
व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी
Thursday, 24 December 2020
व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी
પરમાનંદ
Wednesday, 23 December 2020
व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी
Tuesday, 22 December 2020
व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल नवमी
Monday, 21 December 2020
व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल अष्टमी
સનાઢ્ય બ્રાહ્મણ
Sunday, 20 December 2020
व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी
સત્સંગ
Saturday, 19 December 2020
व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल षष्ठी
Friday, 18 December 2020
व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी
Thursday, 17 December 2020
व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्थी
Wednesday, 16 December 2020
व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया
શ્રીમહાપ્રભુજી વૈષ્ણવો માટે કરુણાસાગર કે કૃપાસાગર છે
Tuesday, 15 December 2020
व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल द्वितीया
Monday, 14 December 2020
व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा
शरणमार्गका मूल
Sunday, 13 December 2020
व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण अमावस्या
व्रज – माघ शुक्ल तृतीया
व्रज – माघ शुक्ल तृतीया Saturday, 01 February 2025 इस वर्ष माघ शुक्ल पंचमी के क्षय के कारण कल माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन बसंत पंचमी का पर्व ह...
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