व्रज - आषाढ़ शुक्ल षष्ठी
Tuesday, 05 July 2022
देखो माई ये बड़भागी मोर ।
जिनके पंखको मुकुट बनत है सिर धरे नंदकिशोर।।१।।
ये बड़भागी नंद यशोदा पुण्य कीये भर झोर ।
वृंदावन हम क्यों न भई है लागत पग की ओर ।।२।।
कसूंभा (छठ) षष्ठी
विशेष – आज का दिन पुष्टिमार्ग में विशेषकर पुष्टिमार्ग की प्रधानपीठ नाथद्वारा में अतिविशिष्ट है.
सर्वप्रथम आज श्री वल्लभाचार्यजी के लौकिक पितृचरण श्री लक्ष्मणभट्टजी का प्राकट्योत्सव है.
आज वर्तमान गौस्वामी तिलकायत श्री 108 श्री इन्द्रदमनजी (श्री राकेशजी) महाराजश्री का गादी उत्सव हैं. आज के दिन विक्रम संवत 2057 में आप गादी बिराजे थे.
आज भक्त ईच्छापूरक प्रभु श्रीनाथजी ने श्री गुसाईजी को विप्रयोगानुभव से मुक्त कर, दर्शन दे कर उनकी सेवा को पुनः अंगीकार किया था अतः अनुराग स्वरुप लाल (कसुम्भल) रंग के वस्त्र धराये जाते हैं और प्रभु के यशप्रसार के भाव से ठाड़े वस्त्र श्वेत धराये जाते हैं. आज के दिन ही चन्द्र-सरोवर के विप्र-योग अनुभव के पश्चात् श्री गुंसाईजी का सेवा में पुनः प्रवेश हुआ था.
अष्टसखा कीर्तनकार कृष्णदासजी ने आज के दिन ही निम्नलिखित प्रसिद्द कीर्तन गाया एवं श्री गुंसाईजी ने कृष्णदासजी को प्रभु से साक्षात् कराया.
“परम कृपाल श्री वल्लभ नंदन करत कृपा निज हाथ दे माथे l
जे जन शरण आय अनुसरही गहे सोंपत श्री गोवर्धननाथ ll 1 ll
परम उदार चतुर चिंतामणि राखत भवधारा बह्यो जाते l
भजि ‘कृष्णदास’ काज सब सरही जो जाने श्री विट्ठलनाथे ll 2 ll”
इसके अतिरिक्त आज धरायी जाने वाली पिछवाई के सन्दर्भ में एक सुंदर प्रसंग है.
श्रीजी में आज अपनी गर्दन ऊँची कर कूकते, वर्षाऋतु के आगमन की बधाई देते मयूरों के क़सीदा वाली प्राचीन पिछवाई धरायी जाती है. बहुत कम लोग जानते हैं कि यह दो भागों में बनी हुई है.
कई वर्षों पूर्व एक वैष्णव ने इस पिछवाई का आधा भाग जो कि जापान के एक काफी विशिष्ट कपड़े पर निर्मित था जिसमें गर्दन उठा कर कूकते मयूरों का सुन्दर चित्रांकन था.
तत्कालीन गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी को ये वस्त्र बहुत पसंद आया और वे इसे प्रभु की पिछवाई के रूप में प्रयोग करना चाहते थे पर प्रभु सेवा में आवश्यक माप से कम होने के कारण यह अनुपयोगी था.
तब आपने घोषणा की कि जो भी व्यक्ति बिल्कुल ऐसा ही जापानी वस्त्र लायेगा उसे मुँहमाँगा पुरस्कार दिया जायेगा. तब एक गुजराती शिक्षक दम्पति बिलकुल ऐसा ही जापानी वस्त्र लाये और प्रभु में भेंट किया जिसे इस पिछवाई में जोड़कर नाथद्वारा के एक ख्यातनाम चित्रकार ने दुसरे भाग में भी ऐसा ही सुन्दर चित्रांकन किया.
तबसे यह पिछवाई प्रतिवर्ष इस दिन प्रभु में नियम से धरायी जाती है. यद्यपि अत्यंत प्राचीन होने के कारण यह काफ़ी जर्जर हो चुकी है परन्तु इसकी अद्भुत चित्रकारी का आज भी कोई सानी नहीं है.
सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
सभी समय झारीजी में यमुना जल भरा जाता है. दिन में दो समय की आरती थाली में की जाती है.
मंगला में प्रभु को कसुम्भल (लाल) मलमल का उपरना धराया जाता है.
श्रृंगार समय प्रभु को नियम से पठानी किनारी से सुसज्जित कसुम्भल (लाल) मलमल का पिछोड़ा व श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर सादी मोरपंख की चन्द्रिका धरायी जाती है.
श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशर-युक्त जलेबी के टूक, मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू और दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखडी में मीठी सेव, केसर युक्त पेठा अरोगाये जाते हैं.
श्रीनवनीत प्रियाजी में भी विशेष रूप से सायंकाल शयन भोग में वर्तमान तिलकायत के गादी बिराजने के अवसर पर मनोरथ भोग अरोगाया जाता है जिसमें जलेबी टूक, मनोर के लड्डू, पतली पूड़ी, खीर, गुंजा-कचौरी, चना-दाल, बीज-चालनी के सूखे मेवे, दहीवड़ा, बूंदी का रायता, आमरस, आम का बिलसारू (मुरब्बा) आदि आरोगाये जाते हैं.
आज श्री नवनीतप्रियाजी शयन समय बाहर चबूतरा पर बिराजित हो आनन्द वर्षा करते हैं.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)
श्रीवल्लभ नंदन रूप अनूप स्वरुप कह्यो न जाई l
प्रकट परमानंद गोकुल बसत है सब जगत के सुखदाई ll 1 ll
भक्ति मुक्ति देत सबनको निजजनको कृपा प्रेम बरखत अधिकाई l
सुखमें सुखद एक रसना कहां लो वरनौ ‘गोविंद’ बलि जाई ll 2 ll
साज - श्रीजी में आज अपनी गर्दन ऊँची कर कूकते, वर्षाऋतु के आगमन की बधाई देते मयूरों के सुन्दर क़सीदा वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र - श्रीजी को आज पठानी किनारी से सुसज्जित कसुम्भल (लाल) मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद भांतवार होते हैं.
श्रृंगार - प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
सर्व आभरण मोती के धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर कसुमल(लाल) मलमल की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में मोती के दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
कली, वल्लभी आदि सभी माला आती हैं.
आज हांस, त्रवल आदि नहीं धराये जाते, वहीं जड़ाऊ थेगड़ा की बघ्घी धरायी जाती है.
श्वेत पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. पीठिका के ऊपर श्वेत पुष्पों की थागवाली मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, मोती के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट श्वेत (सुनहरी किनारी का), गोटी मोती की व आरसी श्रृंगार में लाल मखमल की एवं राजभोग में सोना की डांडी की आती है.
सभी पुष्टि वैष्णवों को विविध दिव्य प्रसंगों की बधाई