By Vaishnav, For Vaishnav

Sunday, 31 March 2024

व्रज - चैत्र कृष्ण सप्तमी

व्रज - चैत्र कृष्ण सप्तमी 
Monday, 01 April 2024

समस्त वैष्णव सृष्टि को प्रधान गृह युवराज श्री विशाल बावाश्री के गो. चि. श्री लाल गोविन्दजी (लालबावा साहब) के जन्मदिन की ख़ूबख़ूब बधाई

श्री वल्लभ कल्पद्रुम फल्यो, फल लाग्यो विट्ठलेश ।
शाखा सब बालक भये, ताको पार ना पावत शेष ।।
श्री वल्लभ को कल्पद्रुम, छाय रह्यो जग मांहि।
पुरुषोत्तम फल देत हैं, नेक जो बैठों छांह ॥ 

गो. चि. श्री लाल गोविन्दजी (लालबावा साहब) का जन्मदिन

सेवाक्रम - श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. 

आज प्रभु को नियम के लाल सलीदार चाकदार वागा धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लाल रंग के दुमाला के ऊपर हीरा का सिरपैंच, सुनहरी भीमसेनी कतरा  धराया जाता हैं.

आज प्रभु को चेती गुलाब की छड़ी गेंद बसंत वत विशेष धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में चेती गुलाब की छड़ी धरायी जाती हैं. 

आज राजभोग में चैत्री-गुलाब की छज्जे वाली बड़ी फूल मंडली आती हैं.

पूरे दिन प्रभु के सम्मुख खिड़क (काष्ट की गौमाता का समूह) बिरजायी जाती है.

सभी समां में 'गोविन्द' शब्द प्रयुक्त होवे ऐसे सुन्दर कीर्तन गाये जाते हैं.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनमनोहर (केशर बूंदी) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी और चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में बड़े टुक पाटिया व छह-भात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात व नारंगी भात) अरोगाये जाते हैं. 
भोग में फीका की जगह चालनी अरोगायी जाती हैं.

राजभोग दर्शन -     

कीर्तन (राग : सारंग)

वृन्दावन सघनकुंज माधुरी लतान तर, जमुना पुलिनमे मधुर बाजे बांसुरी l
जबते धुनि सुनि कान मानो लागे मदनबान, प्रानहुकी कहा कहू पीर होत पांसुरी ll 1 ll
लाल काछनी कटि किंकिणी पग नूपुर झंझनन, सिर टिपारो अति खरोई सुरंग ll 2 ll
उरप तिरप मंद चाल मुरलिका मृदंग ताल, संग मुदित गोपग्वाल आवत तान तरंग l
व्रजजन सब हरखनिरख जै जै कहि कुसुम बरखि, 'गोविंदप्रभु' पर वारौ कोटि अनंग ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में गौचारण के भाव की सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई धरायी जाएगी.
गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल सलीदार ज़री के सुनहरी एवं रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली के चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघस्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - आज प्रभु को मध्य का (घुटनों तक) उत्सववत भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा व पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लाल रंग के दुमाला के ऊपर हीरा का सिरपैंच, सुनहरी भीमसेनी कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
आज चोटीजी नहीं धराई जाती हैं.
कंठला एवं उत्सव की पन्ना की मालाये धरायी जाती है.
हास की जगह पन्ना को कंठा एवं हीरा का त्रवल धराया जाता हैं.
एक कली का हार एवं कमल माला धरायी जाती हैं.
 श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
हीरा की मुठ के  वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल का एवं गोटी सोना की बाघ बकरी की आती हैं.
आरसी बावा साहब वाली काँच के टुकड़ों की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर दुमाला रहे लूम-तुर्रा नहीं आवे.

Saturday, 30 March 2024

व्रज - चैत्र कृष्ण षष्ठी

व्रज - चैत्र कृष्ण षष्ठी 
Sunday, 31 March 2024

फ़िरोज़ी खिनख़ाब के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर गोल चंद्रिका के शृंगार

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

बैठे हरि राधासंग कुंजभवन अपने रंग
कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई ll
मोहन अतिही सुजान परम चतुर गुननिधान
जान बुझ एक तान चूक के बजाई ll 1 ll
प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुनप्रवीन
अति नवीन रूपसहित वही तान सुनाई ll
वल्लभ गिरिधरनलाल रिझ दई अंकमाल
कहत भलें भलें लाल सुन्दर सुखदाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में फ़िरोज़ी ज़री की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को फ़िरोज़ी खिनख़ाब का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. ठाडे वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को हल्का श्रृंगार धराया जाता है. माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर फ़िरोज़ी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, गोल चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
 गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट फ़िरोज़ी एवं गोटी चाँदी की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराया जाता है.

Friday, 29 March 2024

व्रज - चैत्र कृष्ण पंचमी

व्रज - चैत्र कृष्ण पंचमी 
Saturday, 30 March 2024

रंग पंचमी

विशेष – आज की पंचमी को रंग-पंचमी कहा जाता है. उत्तर भारत में विशेषकर मध्य-प्रदेश, राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में आज के दिन सूखे और गीले रंगों से होली खेली जाती है.
पुष्टिसंप्रदाय के अलावा अन्य मर्यादामार्गीय मंदिरों में आज रंगपंचमी को प्रभु स्वरूपों को होली खेलायी जाती है और आगामी चैत्र कृष्ण एकादशी को डोल झुलाये जाते है.

श्री गुसांईजी के चतुर्थ पुत्र श्री गोकुलनाथजी माला-तिलक रक्षण हेतु कश्मीर पधारे थे. श्री गोवर्धनधरण प्रभु ने आपको वसंत खेलाने और डोल झुलाने की आज्ञा की. 
आपश्री डोल पश्चात पधारे और लौटने में विलम्ब होने से प्रभु ने पुनः अपनी इच्छा दोहराई अतः आपने उस वर्ष श्रीजी को आज के दिन पुनः वसंत खेलाये और आगामी एकादशी को डोल झुलाये.

श्री गोवर्धनधरण प्रभु जतीपुरा से राजस्थान पधारे उपरांत राजस्थान की रंग-बिरंगी संस्कृति से प्रेरित श्री दामोदरलालजी महाराज ने अपनी कुमारावस्था में फाग की सवारी का प्रारंभ किया.

इस सवारी के चित्रांकन वाली पिछवाई आज श्रीजी में साजी जाती है. यह पिछवाई इसके अतिरिक्त कुंज-एकादशी के दिन शयन समय भी साजी जाती है.

आज नियम का मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. इस श्रृंगार के विषय में मैं पहले भी कई बार बता चुका हूँ कि प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है.

अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी का पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता.

जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है.

जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं.

जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

कुंजभवन तें निकसे माधो राधापे चले मेलि गले बांह l
जब प्यारी अरसाय पियासो मंदमंद त्यों स्वेदकन वदन निहारत करत मुकुटकी छांह ll 1 ll
श्रमित जान पटपीत छोरसों पवन ढुरावे व्रजवधु वनमांह l
‘जगन्नाथ कविराय’ प्रभुको प्यारी देखत नयन सिराह ll 2 ll

साज - आज श्रीजी में हाथी के ऊपर सवारी, पृष्ठभूमि में महल, व्रजभक्तों के साथ होली खेल आदि के चित्रांकन वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सफ़ेद ज़री की दोनों काछनी सुथन, रास-पटका एवं मेघश्याम दरियाई वस्त्र की चोली धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद लट्ठा के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर मीना की मुकुट टोपी के ऊपर मीना का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मोती की शिखा (चोटी) धरायी जाती है.
श्रीकंठ में कली, कस्तूरी व कमल माला धरायी जाती है. 
श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, झीने लहरिया के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी नाचते मोर की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण, मुकुट, टोपी, पीताम्बर, चोली व दोनों काछनी बड़े किये जाते हैं.

शयन दर्शन में मेघश्याम चाकदार वागा व लाल तनी ऐव लाल गोल पाग धरायी जाती है. पुष्प के आभरण एव श्रीमस्तक के ऊपर पुष्प के लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.

Thursday, 28 March 2024

व्रज - चैत्र कृष्ण चतुर्थी

व्रज - चैत्र कृष्ण चतुर्थी 
Friday, 29 March 2024

मेघस्याम ज़री के घेरदार वागा, श्रीमस्तक पर छज्जेदार चीरा (पाग) पर दोहरा क़तरा के शृंगार

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

बैठे हरि राधासंग कुंजभवन अपने रंग
कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई ll
मोहन अतिही सुजान परम चतुर गुननिधान
जान बुझ एक तान चूक के बजाई ll 1 ll
प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुनप्रवीन
अति नवीन रूपसहित वही तान सुनाई ll
वल्लभ गिरिधरनलाल रिझ दई अंकमाल
कहत भलें भलें लाल सुन्दर सुखदाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में मेघस्याम ज़री की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को मेघस्याम रंग की ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पीले रंग के ठाडे वस्त्र धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर मेघस्याम रंग के छज्जेदार चीरा (पाग) के ऊपर सिरपैंच, दोहरा क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में एक दुलड़ा एक सतलड़ा धराये जाते हैं.
 गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, गुलाबी मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट मेघस्याम एवं गोटी चाँदी की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराया जाता है.

Wednesday, 27 March 2024

व्रज - चैत्र कृष्ण तृतीया

व्रज - चैत्र कृष्ण तृतीया 
Thursday, 28 March 2024

लाल ज़री के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर जमाव का क़तरा के शृंगार

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

बैठे हरि राधासंग कुंजभवन अपने रंग
कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई ll
मोहन अतिही सुजान परम चतुर गुननिधान
जान बुझ एक तान चूक के बजाई ll 1 ll
प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुनप्रवीन
अति नवीन रूपसहित वही तान सुनाई ll
वल्लभ गिरिधरनलाल रिझ दई अंकमाल
कहत भलें भलें लाल सुन्दर सुखदाई ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज लाल ज़री की हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल ज़री का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल ज़री की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, नागफणी (जमाव) का कतरा व तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में कमल माला एवं गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में हरे मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी मीना की आती है.

Tuesday, 26 March 2024

व्रज - चैत्र कृष्ण द्वितीया

व्रज - चैत्र कृष्ण द्वितीया 
Wednesday, 27 March 2024

हरी ज़री के घेरदार वागा, श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका के शृंगार

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

बैठे हरि राधासंग कुंजभवन अपने रंग
कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई ll
मोहन अतिही सुजान परम चतुर गुननिधान
जान बुझ एक तान चूक के बजाई ll 1 ll
प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुनप्रवीन
अति नवीन रूपसहित वही तान सुनाई ll
वल्लभ गिरिधरनलाल रिझ दई अंकमाल
कहत भलें भलें लाल सुन्दर सुखदाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में हरी ज़री की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को हरे रंग की ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. ठाडे वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हरे रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, चमकनी गोल-चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में दो दुलड़ा धराये जाते हैं.
 गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, गुलाबी मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट हरा एवं गोटी चाँदी की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराया जाता है.

Monday, 25 March 2024

व्रज - चैत्र कृष्ण प्रतिपदा

व्रज - चैत्र कृष्ण प्रतिपदा 
Tuesday, 26 March 2024

लाल नेक भवन हमारे आवो ।
जो मांगो सो देहो मोहन ले मुरली कल गावो ।।१।।
मंगलचार करो गृह मेरे संगके सखा बुलावो ।
करो विनोद सुंदर युवतीनसों प्रेम पीयूष पीवावो ।।२।।
बलबल जाऊं मुखारविंदकी ललित त्रिभंग दीखावो ।
परमानंद सहचरी रसभर ले चली करत उपावो ।।३।।

द्वितीया पाट

आज प्रभु को नियम के सुनहरी ज़री के चाकदार वस्त्र और श्रीमस्तक पर हीरा की कुल्हे पर सुनहरी घेरा धराये जाते हैं.

उत्सव के कारण गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में चाशनी लगे पक्के गुंजा अरोगाये जाते हैं. इसके अतिरिक्त प्रभु को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग भी अरोगाया जाता है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

श्रृंगार दर्शन 

साज – आज श्रीजी में फूलक शाही ज़री की हरे हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर से सफेदी बड़ी कर (हटा) दी जाती है. उत्सव के दिवसों में मलमल के गादी-तकियों में सफ़ेद बिछावट नहीं की जाती इसलिए ऐसा कहा जाता है.

वस्त्र – आज श्रीजी को सुनहरी ज़री के बिना किनारी के सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका रूपहरी ज़री का धराया जाता हैं. ठाडे वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – हीरा की प्रधानता के मोती, माणक, पन्ना एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर जड़ाव स्वर्ण की कुल्हे के ऊपर सुनहरी जड़ाव का घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर हीरा की चोटीजी धरायी जाती है.
नीचे सात पदक ऊपर हीरा, पन्ना, माणक, मोती के हार व माला धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी आदि माला धरायी जाती हैं.
 चैत्री गुलाब के पुष्प की सुन्दर थागवाली वनमाला धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट उत्सव का एवं गोटी जड़ाऊ की आती है. 
आरसी चार झाड़ की दिखाई जाती है. 

Sunday, 24 March 2024

व्रज - फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा

व्रज - फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा 
Monday, 25 March 2024

मनमोहन अद्भुत डोल बनी ।
तुम झुलो हों हरख झुलाऊं वृन्दावन चंद धनी ।।१।।
परम विचित्र रच्यो विश्वकर्मा हीरा लाल मनी ।
चतुर्भुज प्रभु गिरिधरन लाल छबि कापे जात गनी ।।२।।

होली का उत्सव / होलिका प्रदीपन / दोलोत्सव ( डोल का उत्सव) 

सामान्यतया होलिकोत्सव तिथी प्रधान होने से फ़ाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा के दिन और डोलोत्सव नक्षत्र प्रधान होने के कारण जिस दिन सूर्योदय के समय उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र होवे उस दिन मनाया जाता है. इस वर्ष आज के दिन होलिकोत्सव तथा डोलोत्सव दोनों का संयोग बना है.

ये दोनों उत्सव प्रभु के आनन्द के हैं, नियम के हैं अतः श्रीजी में होलिकोत्सव के राग, भोग व श्रृंगार का सम्पूर्ण सेवाक्रम डोलोत्सव के एक दिन पूर्व अर्थात कल फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी को लिया गया. 

आज डोलोत्सव अर्थात काम पर प्रभु की विजय का उत्सव मनाया जाएगा.

परम्परानुसार मंदिर दोलोत्सव के पश्चात ख़ासा (साफ़) किया जायेगा.

पुष्टिमार्ग में दोलोत्सव को काम-विजय उत्सव भी कहा जाता है. 
बसंत-पंचमी (जिसे मदन-पंचमी भी कहा जाता है) पर कामदेव का प्रादुर्भाव हुआ और उन्होंने हमारे योगेश्वर प्रभु श्रीकृष्ण को अपने अर्थात काम के वश में करने की ठानी. 
गुलाल, अबीर, चोवा, चन्दन, अरगजा आदि सुगन्धित साधन एवं रंग कामोद्दीपक माने जाते हैं और प्रतिदिन इनके प्रयोग से प्रभु काम के वश में होंगे ये कामदेव का भ्रम था. 
इसके अलावा स्त्री वेश (विविध भांति की चोलियाँ) आदि पहना कर भी कामदेव ने प्रभु को काम के वश में करने की कुचेष्टा की परन्तु श्री कृष्ण को योगेश्वर ऐसे ही नहीं कहा जाता. 
कुछ वाद्य यंत्रों की ध्वनि भी कामोद्दीपक मानी जाती है अतः ढप, ढ़ोल बजा कर, रसिया (बैठे और ठाडे), धमार और अमर्यादित गालियाँ गाकर प्रभु को भोगी सिद्ध करने का निरर्थक प्रयास किया. 
अंततोगत्वा चालीस दिन के निरर्थक प्रयास के पश्चात कामदेव ने प्रभु से क्षमा मांगी. तब योगेश्वर प्रभु श्रीकृष्ण ने दोलोत्सव के रूप में काम-विजय उत्सव मनाया. आज सबसे अधिक गुलाल काम पर विजय के भाव से उड़ायी जाती है.

सभी वैष्णवों को दोलोत्सव की ख़ूबख़ूब बधाईयाँ

आज श्रीजी को सफ़ेद जामदानी का सूथन, चोली तथा घेरदार वागा धराये जाते हैं. मोठड़ा का पटका, श्रीमस्तक पर चिल्ला की छज्जेदार पाग पर मोर चन्द्रिका धरायी जाती है.

प्रभु को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केसरी चन्द्रकला, केशर-युक्त बासोंदी की हांडी व विविध फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.
राजभोग की अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में मीठी सेव व केसरी पेठा अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

डोल झुलावत लाल बिहारी,नाम लेले बोले लालन
प्यारी ।
हे दुल्हा दुलहनी दुलारी सुंदर सरस कुमारी ।।
नखसिख सुंदर सिंगारी केसु कुसुम सुहस्त सम्हारी ।
श्याम कंचुकी सुरंग सारी चाल चले छबि न्यारी।।१।।
वारंवार बदन निहारी अलक तिलक झलमलारी ।
रीझ रीझ लाल ले बलिहारी पुलकित भरत अंकवारी ।।
कोककला निपुन नारी कंठ सरस सुरहि भारी ।
सुयश गावत लाल बिहारी बिहारिन की बलिहारी ।।२।।

राजभोग दर्शन –

साज - आज श्रीजी में राजभोग में सफ़ेद मलमल की चार तह की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल व अबीर से भारी खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. गुलाल खेल इतना अधिक होता है कि पिछवाई और साज का मूल रंग दिखायी ही नहीं पड़ता.

वस्त्र – आज श्रीजी को सफ़ेद जामदानी के सूथन, चोली तथा घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मोठड़ा का धराया जाता है जिसके दोनों छोर आगे की ओर रहते हैं. सभी वस्त्रों पर गुलाल अबीर, एवं चोवा आदि से भारी खेल किया जाता है. ठाडे वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं जिनपर गुलाल, अबीर आदि से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल और दाढ़ी भी रंगे जाते हैं.  

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल, हरे, सफ़ेद व मेघश्याम मीना एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर सफ़ेद चिल्ला की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में जड़ाऊ के चार कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में नीचे दस पदक ऊपर ग्यारह माला सोने एवं मोती की धरायी जाती हैं.
श्रीकंठ में चंद्रहार एवं हमेल आदि धराये जाते हैं.
 गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर थागवाली बड़ी मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, स्वर्ण के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (स्वर्ण के बटदार व एक नाहरमुखी) धराये जाते हैं. पीठिका के ऊपर भी गुलाब के पुष्पों की एक मोटी मालाजी धरायी जाती है. 
पट चीड़ का व गोटी चांदी की आती है. आरसी दोनों समय बड़ी डांडी की आती है.
 भारी खेल के कारण सर्व श्रृंगार रंगों से सरोबार हो जाते हैं और प्रभु की छटा अद्भुत प्रतीत होती है. 

दोलोत्सव

दोलोत्सव महामहोत्सव कहलाता है. श्री चन्द्रावली जी की सेवा का यह मुख्य उत्सव है. श्री हरिराय महाप्रभु की दोलोत्सव भावना के अनुसार यह अत्यंत गोपनीय लीला है. 

श्री वृषभानजी एवं श्री कीर्तिजी प्रभु श्री कृष्ण को अपने यहाँ आमंत्रित करते हैं. अपने जंवाई को आमंत्रित कर विविध प्रकार की सामग्रियां अरोगाते हैं एवं तत्पश्चात गुलाल, अबीर छांटकर होली खेलाते हैं. 
इस भाव से श्री नवनीतप्रियाजी आज प्रथम राजभोग में श्रीजी की गोदी में विराजते हैं. बाद में प्रभु नंदालय में पधारते हैं जहाँ नंदरायजी एवं यशोदाजी उन्हें अपने वात्सल्यरस से खेलाते हैं और विविध सामग्रियां अरोगाते हैं. तत्पश्चात निकुंज में, वृन्दावन में, श्री गोवर्धन की तलहटी में (जहाँ सुन्दर झरने बह रहे हैं, सदा बसंत खिला रहता है, वातावरण में शीतल सुगन्धित पवन बह रही है, अनेक प्रकार की माधुरी लताएँ, द्रुम बेलें, पुष्प एवं फलों से युक्त खिल रहे हैं) सुन्दर डोल (पुष्प पत्तियों से निर्मित झूले) की रचना व्रजभक्त करते हैं. श्री ठाकुरजी को डोल में पधराकर व्रजभक्त झुलाते हैं. प्रभु भक्तों के मनोरथ-पूरक हैं और अपने भक्तों के मनोरथ पूर्ण करने के लिए सर्व स्थानों पर डोल झूलते हैं. डोल के चार दर्शन होते हैं.

श्री नवनीतप्रियाजी आज अपने मंदिर में गुलाल नहीं खेलते हैं. वहां कल रात्रि को ही गुलाल साफ़ कर ली गयी है. आज श्री नवनीतप्रियाजी पलना नहीं होता और लाड़ले लाल प्रभु अपने घर राजभोग अरोग कर श्रीजी में पधारते हैं और श्रीजी की गोदी में विराजित होते हैं. 

प्रथम नियम के राजभोग सरे उपरान्त डोल का अधिवासन किया जाता है.
पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री अथवा मुखियाजी आरती करते हैं, सूक्ष्म खेल होता है. यह दर्शन सामान्य वैष्णवों के लिये बाहर नहीं खोले जाते. 

डोलतिबारी के पीछे के दो खण्डों (जहाँ श्रावण मास में हिंडोलना बंधता है) में डोल (एक पुष्प-पत्तियों से निर्मित झूला) बाँधा जाता है जिसमें श्री नवनीतप्रियाजी विराजित हो डोल झूलते हैं और आगे के एक खंड में वैष्णव दर्शनों का लाभ लेते हैं. दर्शनों के दौरान दोनों ओर से अनवरत अबीर, गुलाल उड़ाए जाते हैं और अत्यधिक मात्रा में उड़ाए जाते हैं जिससे डोल तिबारी में अँधेरा सा छा जाता है.

उसके बाद अन्य तीन भोग में प्रभु उत्सव भोग अरोगते हैं और भोग सरे पश्चात बाहर दर्शन भी देते हैं.
शंखोदक, धूप, दीप होते हैं. दूसरे भोग सरते हैं, दर्शन खुलते हैं, पहली पान की बीड़ी अरोगायी जाती है. पिछवाई, चंदुवा छांटे जाते हैं और भारी खेल होता है.

फिर दूसरी पान की बीड़ी अरोगायी जाती हैं, उसी क्रम से खेल होता है, गुलाल, अबीर उड़ाए जाते हैं. पुष्प उड़ाए जाते हैं और धूप, दीप, शंखोदक होते हैं.
इसके उपरांत तीसरे भोग आते हैं जिसमें दूसरे भोग से दोगुने भोग आते हैं.

उत्सव भोग में श्रीजी को कड़क मठड़ी, सेव गोली (छोटे लड्डू), कूर के पकागुंजा, कड़क शक्करपारा, मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू, मेवाबाटी, केशरी चन्द्रकला, रसखोरा, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी, बासोंदी, जीरा मिश्रित दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, घी में तला हुआ चालनी का सूखा मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, श्रीखंडवड़ी, छाछवड़ा, कांजीवड़ा, विविध प्रकार के फलफूल, शीतल आदि अरोगाये जाते हैं.

भोग सरते हैं, नयी मालाजी धरायी जाती है, ऊपर के क्रम में दो-दो पान की बीड़ी अरोगायी जाती हैं. गुलाल खेल होता है, आरती होती है.

चौथे भोग आते हैं, वही क्रम से खेल व दर्शन होते हैं.

उसके बाद श्री नवनीतप्रियाजी श्रीजी की गोदी में बिराजते हैं, आरती होती है, भारी खेल होता है और लालन अपने घर पधार जाते हैं.

मंगला के पश्चात श्रृंगार, ग्वाल व प्रथम भोग भीतर होते हैं. दूसरे, तीसरे और चौथे भोग के दर्शन बाहर खुलते हैं.

Saturday, 23 March 2024

व्रज - फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी 
Sunday, 24 March 2024

होली का उत्सव

सामान्यतया होलिकोत्सव व होलिका प्रदीपन तिथी प्रधान होने से फ़ाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा के दिन और डोलोत्सव नक्षत्र प्रधान होने के कारण जिस दिन उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र होवे उस दिन मनाया जाता है.
इस वर्ष तिथी वृद्धि के कारण होलिकोत्सव फ़ाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी (द्वितीय) रविवार, 24 मार्च 2024 के दिन व होलिका प्रदीपन (दहन) फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा सोमवार, 25 मार्च 2024 को सूर्योदय पूर्व होगा.
सूर्योदय समय के उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में डोलोत्सव सोमवार, 25 मार्च 2024 को ही होगा.

आज प्रभु को नियम से पाग-चन्द्रिका, सूथन व घेरदार वागा धराये जाते हैं

फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से श्रीजी में डोलोत्सव की सामग्रियां सिद्ध होना प्रारंभ हो जाती है. इनमें से कुछ सामग्रियां फाल्गुन शुक्ल नवमी से प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को अरोगायी जाती हैं और डोलोत्सव के दिन भी प्रभु को अरोगायी जायेंगी. 
इस श्रृंखला में आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मीठे कटपूवा अरोगाये जाते हैं. 
इसके अतिरिक्त आज उत्सव के कारण प्रभु को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग भी अरोगाया जाता है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में मीठी सेव व केशरयुक्त पेठा अरोगाये जाते हैं.

राजभोग खेल में पिछवाई को गुलाल से पूरा रंगा जाता है और उस पर अबीर से चिड़िया मांडी जाती है. चंदवा पर चंदन छांटा जाता है.

श्रीजी की दाढ़ी पर तीन बिंदी लगायी जाती है. प्रभु के सम्मुख चार पान के बीड़ा सिकोरी (स्वर्ण के जालीदार पात्र) में रखे जाते हैं.

आज गुलाल, अबीर का खेल अन्य दिनों की तुलना में अत्यन्त भारी होता है. वैष्णवजनों पर भी गुलाल पोटली भर कर उड़ाई जाती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

डोल झूलत है प्यारो लाल बिहारी पहोपवृष्टि होती l
सुरपुर गंधर्व तिनकी नारी देखके वारत है लर मोती ll 1 ll
घेरा करत परस्पर सबमिल नहीं देखीयत युवती ऐसी जोती l
‘हरिदास’ के स्वामी श्यामा कुंजबिहारी सादाचूरी खुभी पोती ll 2 ll

साज - आज श्रीजी में राजभोग में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल व अबीर से भारी खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. गुलाल खेल इतना अधिक होता है कि पिछवाई और साज का मूल रंग दिखायी ही नहीं पड़ता.  

वस्त्र – आज श्रीजी को सफ़ेद लट्ठा का सूथन, चोली तथा घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मोठड़ा का धराया जाता है जिसके दोनों छोर आगे की ओर रहते हैं. 
सभी वस्त्रों पर गुलाल अबीर, एवं चोवा आदि से भारी खेल किया जाता है. ठाडे वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं जिनपर गुलाल, अबीर आदि से खेल किया जाता है. 

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (छेड़ान से दो आंगुल नीचे तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल, हरे, सफ़ेद व मेघश्याम मीना एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर सफ़ेद छज्जेदार श्याम झाईं वाली पाग के ऊपर हरा पट्टीदार सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में सात पदक, नौ माला धरायी जाती है. दो माला अक्काजी की धरायी जाती है. गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, स्वर्ण के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (स्वर्ण के बटदार व एक नाहरमुखी) धराये जाते हैं. पीठिका के ऊपर भी गुलाब के पुष्पों की एक मोटी मालाजी धरायी जाती है. 
पट चीड़ का व गोटी चांदी की आती है. आरसी दोनों समय बड़ी डांडी की आती है.
भारी खेल के कारण सर्व श्रृंगार रंगों से सरोबार हो जाते हैं और प्रभु की छटा अद्भुत प्रतीत होती है. 

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ व श्रीमस्तक के आभरण बड़े किये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं. गठेली की हमेल धरायी जाती है.

श्रीजी की एक अद्भुत परंपरा

....श्रीजी में होली के त्यौहार के दिन शयन के दर्शन में परम्परागत रूप से परमपूज्य श्रीतिलकायत प्रभु श्री गोवर्धनधरण की दाढ़ी रंगेंगे अर्थात प्रेम से प्रभु की दाढ़ी पर गुलाल लगाकर डोलोत्सव की परंपरागत शुरुआत करेंगे.

आज के दिन शयन में भी गुलाल खेल होता है और खूब गुलाल उड़ायी जाती है. आज शयन दर्शन में प्रभु को एक वेत्र श्रीहस्त में धरायी जाती है जिससे प्रभु व्रजभक्तों को घेर सके.

आज होली का त्यौहार है परन्तु शुभ मुहुर्तानुसार होलिका दहन कल अर्थात सोमवार, 25 मार्च 2024 प्रातःकाल 6.36  बजे के पूर्व होगा. 
कल प्रातः श्रीजी के मुख्य पंड्याजी, खर्च-भंडारी, घी-घरिया, मशाल-वाला, श्रीनाथ गार्ड्स, श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के किर्तनिया आदि कीर्तन गाते हुए सूर्यास्त के समय श्रीजी मंदिर से होली-मगरा जाकर मंत्रोच्चार और कीर्तन की मधुर ध्वनि के बीच पूजन कर व भोग धरकर प्रदीपन करेंगे. होलिका प्रदीपन के पश्चात उपस्थित श्रीनाथ गार्ड होली-मगरा से हवा में गोली चलाकर सलामी देंगे. 

Friday, 22 March 2024

व्रज - फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी (द्वितीय)

व्रज - फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी (द्वितीय)
Saturday, 23 March 2024

आपश्री के चौदस के श्रृंगार, छप्पनभोग (बड़ा) मनोरथ

जन्माष्टमी, दीपावली और डोलोत्सव आदि बड़े उत्सवों के पूर्व श्रीजी को नियम के श्रृंगार धराये जाते हैं जिन्हें आपश्री के या घर के श्रृंगार भी कहा जाता है और इन पर श्रीजी के तिलकायत महाराज का विशेष अधिकार होता है.

डोलोत्सव पर सामान्यतया फाल्गुन शुक्ल नवमी से द्वितीया पाट के दिन तक प्रभु को ये विशिष्ट श्रृंगार धराये जाते हैं परंतु तिथियों में परिवर्तन के कारण इस वर्ष फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी के दिन का श्रृंगार आज धराया जायेगा.

सभी समय की झारीजी यमुनाजल से भरी जाएगी. दो समय आरती थाली में की जाएगी.

यह चतुर्दशी का नियम का श्रृंगार है जिसमें श्वेत चंदन की बूटी वाले घेरदार वागा और श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग एवं मच्छी घाट का सुनहरी कतरा धराया जाता हैं. 

फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से श्रीजी में डोलोत्सव की सामग्रियां सिद्ध होना प्रारंभ हो जाती है. इनमें से कुछ सामग्रियां फाल्गुन शुक्ल नवमी से प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को अरोगायी जाती हैं और डोलोत्सव के दिन भी प्रभु को अरोगायी जायेंगी. 

इस श्रृंखला में आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केसरिया घेवर अरोगाया जाता हैं.

राजभोग में इन दिनों भारी खेल होता है. पिछवाई पूरी गुलाल से भरी जाती है और उस पर अबीर से चिड़िया मांडी जाती है.
 
प्रभु की कटि (कमर) पर एक पोटली गुलाल की बांधी जाती है. प्रभु की चिबुक पर तीन बिंदी बनायी जाती है.

*छप्पनभोग (बड़ा) मनोरथ*

आज श्रीजी में श्रीजी में किन्हीं वैष्णव द्वारा आयोजित छप्पनभोग का मनोरथ होगा.
नियम (घर) का छप्पनभोग वर्ष में केवल एक बार मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को ही होता है. इसके अतिरिक्त विभिन्न खाली दिनों में वैष्णवों के अनुरोध पर श्री तिलकायत की आज्ञानुसार मनोरथी द्वारा छप्पनभोग मनोरथ आयोजित होते हैं. 
इस प्रकार के मनोरथ सभी वैष्णव मंदिरों एवं हवेलियों में होते हैं जिन्हें सामान्यतया ‘बड़ा मनोरथ’ कहा जाता है.

बड़ा मनोरथ के भाव से श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

आज दो समय की आरती थाली की आती हैं.

मणिकोठा, डोल-तिबारी, रतनचौक आदि में छप्पनभोग के भोग साजे जाते हैं अतः श्रीजी में मंगला के पश्चात सीधे राजभोग अथवा छप्पनभोग (भोग सरे पश्चात) के दर्शन ही खुलते हैं.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.
राजभोग की अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में मीठी सेव, केसरयुक्त पेठा व पाँच-भात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात) अरोगाये जाते हैं. 

छप्पनभोग दर्शन में प्रभु सम्मुख 25 बीड़ा सिकोरी (सोने का जालीदार पात्र) में रखे जाते है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : जेतश्री / हिंडोल)

झुलत युग कमनीय किशोर सखी चहुँ ओर झुलावत डोल l
ऊंची ध्वनि सुन चकृत होत मन सब मिल गावत राग हिंडोल ll 1 ll
एक वेष एक वयस एक सम नव तरुनि हरनी दग लोल l
भांत भांत कंचुकी कसे तन वरन वरन पहेरे वलिचोल ll 2 ll
वन उपवन द्रुमवेळी प्रफुल्लित अंबमोर पिकन कर कलोल l 
तैसेही स्वर गावत व्रज वनिता झुमक देत लेत मन मोल ll 3 ll
सकल सुगंध सवार अरगजा आई अपने अपने टोल l
तक तकजु पिचकाईन छिरकत एक भरे भर कनक कचोल ll 4 ll.....अपूर्ण

साज - आज श्रीजी में राजभोग में श्वेत मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल से भारी खेल कर अबीर से चिड़िया बनायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत चंदन की बूटी का सूथन, चोली, घेरदार वागा धराये जाते हैं. कटि-पटका धराया जाता है जिसका एक छोर आगे व एक बगल में होता है. ठाडे वस्त्र गहरे श्याम रंग के धराये जाते हैं. 
सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फ़िरोज़ा एवं स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं जिसमें चार माला धरायी जाती है.
श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर मच्छी घाट का सुनहरी कतरा  एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में आज त्रवल नहीं धराये जाते परन्तु कंठी धरायी जाती है.
पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, फ़ीरोज़ा के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट चीड़ का, गोटी चांदी की आती है. 
आरसी श्रृंगार में बड़ी डांडी की एवं राजभोग में छोटी डांडी की आती है. 
भारी खेल के कारण सर्व श्रृंगार रंगों से सरोबार हो जाते हैं और प्रभु की छटा अद्भुत प्रतीत होती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराया जाता है.

Wednesday, 20 March 2024

व्रज - फाल्गुन शुक्ल द्वादशी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल द्वादशी
Thursday, 21 March 2024

आवत लाल गुपाल लिये सूने,
 मग मिली इक नार नवीनी।
त्यौं 'रसखानि' लगाई हिय भट् ,
मौज कियौ मनमांहि अधीनी।।
सारी फटी सुकुमारी हटी अंगिया ,
दरकी सरकी रंगभीनी।
गाल गुलाल लगाइ कै अंक ,
रिझाई बिदा कर दीनी।।

आप (तिलकायत श्री) के द्वादशी के श्रृंगार

Tuesday, 19 March 2024

व्रज - फाल्गुन शुक्ल एकादशी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल एकादशी 
Wednesday, 20 March 2024

फागुन लाग्यौ सखि जब तें,
 तब तें ब्रजमण्डल में धूम मच्यौ है।
नारि नवेली बचै नाहिं एक,
 बिसेख मरै सब प्रेम अच्यौ है।।
सांझ सकारे वही 'रसखानि' 
सुरंग गुलालन खेल मच्यौ है।
को सजनी निलजी न भई अरु ,
कौन भटु जिहिं मान बच्यौ है।।

कुंज एकादशी 

श्रृंगार दर्शन में कुंज के भाव की पिछवाई आती है जिसे ग्वाल समय बड़ा कर दिया जाता है. 

आज नियम का मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.

वर्ष में केवल आज श्रीजी को एक दिन में तीन विविध प्रकार के मुकुट धराये जाते हैं. 
प्रातः श्रृंगार में स्वर्ण का मीनाकारी वाला मुकुट, राजभोग में पुष्प का मुकुट एवं संध्या-आरती में विविध पुष्पों का ही अन्य मुकुट प्रभु को धराया जाता है.

फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से श्रीजी में डोलोत्सव की सामग्रियां सिद्ध होना प्रारंभ हो जाती है.

फाल्गुन शुक्ल दशमी से इनमें से कुछ सामग्रियां प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को अरोगायी जाती हैं और डोलोत्सव के दिन भी प्रभु को अरोगायी जायेंगी. 
इस श्रृंखला में आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मेवाबाटी अरोगायी जाती हैं. 

इसके अतिरिक्त आज उत्सव के कारण प्रभु को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी भी अरोगायी जाती है.

साज – आज प्रभु को होली के सुन्दर चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है जिसमें व्रजभक्त प्रभु को होली खिला रहे हैं और ढप वादन के संग होली के पदों का गान कर रहे हैं.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी चौखाना वस्त्र का सूथन एवं छोटी काछनी वहीँ चोवा की बड़ी काछनी एवं चोली धराये जाते हैं. केसरी चौखाना का गाती का पटका भी धराया जाता है. 
सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (लट्ठा) के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना, मोती तथा जड़ाव सोने के मिलवा सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर मीना का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर उत्सव की मीना की शिखा (चोटी) धरायी जाती है.
श्रीकंठ में दो माला अक्काजी की, एक चन्द्रहार, डोरा, हमेल आदि धराये जाते हैं. 
लाल गुलाब एवं श्वेत पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, सोने के बटदार वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का, गोटी चांदी की व आरसी बड़ी डांडी की आती है.

Monday, 18 March 2024

व्रज - फाल्गुन शुक्ल दशमी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल दशमी
Tuesday, 19 March 2024

सुन्दर स्याम सुजान सिरोमनि देहु कहा कहि गारी जू।।बड़े लोग के औगुन ब्ररनत सकुच होत जिय भारी।।1।।
को करि सके पिता को निर्णय जाति पांति को जानें।। जिनके जिय जेसी बनि आवे तेसी भांति बखानें।।2।।
माया कुटिल नटी तन चितयो कोन बड़ाई पाई।।उन चंचल सब जगत विगोयो जहाँ तहाँ भई हँसाई।।3।।
तुम पुनि प्रगट होई बारेते कोन भलाई कीनी।।मुक्ति वधू उत्तम जन लायक ले अधमन कों दीनी।।4।।
बसि दस मास गर्भ माता के उन आशा करी जाये।।सो घर छांडि जीभ के लालच व्हे गाये पूत पराये।।5।।
बारेही ते गोकुल गोपिन के सूने ग्रह तुम डाटे।।व्हे निशंक तहाँ पेठि रंकलो दधि के भाजन चाटे।।6।।
आपु कहाय बड़े के ढोटा बात कृपन लों मांग्यो।।मनभंग पर दूजें याचत नेंक संकोच न लाग्यो।।7।।
लरिकाई तें गोपन के तुम सूने भवन ढढोरे।। यमुना न्हात गोपकन्या के निपट निलज पट चोरे।।8।।
वेन बजाय विलास कियो बन बोलि पराई नारी।।वे बतें मुनि राजसभा में व्हे निसंक विस्तारी।।9।।
सब कोउ कहत नंद बाबा को घर भर्यो रतन अमोले।। गिरे गंजा सिर मोर पखौवा गायन के संग डोले।।10।।
राजसभा को बेठनहारो कोन त्रियन संग नाचे।। अग्रज सहित राजमारग में कुबजा देखत राचे।।11।।
अपनी सहोदरा आपुही छल करि अर्जुन संग भजाई।।भोजन करि दासी सुत के घर जादों जाति लजाई।।12।।
ले ले भजे राजन की कन्या यहधों कोन भलाई।।सत्यभामा जु गोत में ब्याही उलटी चाल चलाई।।13।।
बहनि पिता की सास कहाई नेंक हू लाज न आई।। एते पर दीनी जु बिधाता अखिल लोक ठकुराई।।14।।
मोहन वशीकरन चट चेटक यंत्र मंत्र सब जाने।।ताते भलें भलें करी जाने भलें भलें जग माने।।15।।
वरनों कहा यथामती मेरी वेद हू पार न पावे।।दास गदाधर प्रभु की महिमा गावत ही उर आवे।।16।।

डोलोत्सव के आपके (तिलकायत श्री) के श्रृंगार आरम्भ 

आज से प्रतिदिन झारीजी सभी समय यमुनाजल से भरी जाएगी. प्रतिदिन दो समय (राजभोग व संध्या) की आरती थाली में की जाएगी और डोलोत्सव की नौबत की बड़ी बधाई बैठेगी.

आज से द्वितीया पाट के दिन तक प्रभु को विशिष्ट श्रृंगार धराये जाने प्रारंभ हो जाते हैं. इन्हें ‘आपके श्रृंगार’ अथवा ‘तिलकायत श्री के श्रृंगार’ कहा जाता है. ‘आपके श्रृंगार’ डोलोत्सव के अलावा जन्माष्टमी एवं दीपावली के पूर्व भी धराये जाते हैं.

इन श्रृंगार के अधिकृत श्रृंगारी स्वयं पूज्य श्री तिलकायतजी होते हैं.

आज नियम का श्रृंगार है जिसमें दोहरी किनारी वाले श्वेत चौखाना वस्त्र के घेरदार वागा और श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर लूम की किलंगी धराये जाते हैं. 

विगत कुछ दिनों से श्रीजी में डोलोत्सव की सामग्रियां सिद्ध होना प्रारंभ हो गयी है. इनमें से कुछ सामग्रियां आज से प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में प्रभु को अरोगायी जाती हैं. 

इस श्रृंखला में सर्वप्रथम आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डु अरोगाये जाते हैं.  

आज से राजभोग के खेल में टिपकियाँ नहीं की जाती और भारी खेल होता है और अबीर की टिपकियां की जाती है. आज प्रभु की दाढ़ी रंगी जाती है और खेल के समय गुलाल भी फेंट (पोटली) में भर कर वैष्णवों पर उड़ाई जाती है.
प्रभु की चोली पर खेल नहीं होता.  

कीर्तनों में कल (दशमी) तक अष्टपदी गायी जाती है और परसों से डोल के भाव के कीर्तन आरंभ होंगे.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : काफी) 

गोपकुमार लिये संग हो हो होरी खेले व्रजनायक l ईत व्रजयुवति यूथ मधिनायक श्रीवृषभान किशोरी ll 1 ll
मोहन संग डफ दुंदुभी सहनाई सरस धुनि राजे l बीचबीच युवती मनमोहन महुवर मुरली बाजे ll 2 ll
श्याम संग मृदंग झांझ आवज आन भांत बजावे l किन्नरी बीन आदि बाजे साजे गिनत न आवे ll 3 ll
ईत व्रजकुंवर करनी कर राजत रत्न खचित पिचकाई l उत करकमल कुसुम नवलासी गावत गारि सुहाई ll 4 ll.....अपूर्ण

साज - आज श्रीजी में राजभोग में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल व अबीर से कलात्मक खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत चौखाना वस्त्र का सूथन, चोली, घेरदार वागा धराये जाते हैं. श्वेत रंग का कटि-पटका धराया जाता है जिसका एक छोर आगे व एक बगल में होता है. ठाडे वस्त्र गहरे लाल रंग के धराये जाते हैं. 
सभी वस्त्र दोहरी रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं और सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं व दाढ़ी भी रंगी जाती है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल मीना व स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर सफ़ेद रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर पट्टीदार सिरपैंच, लाल गोटी, लूम की सुनहरी किलंगी तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट चीड़ का, गोटी चांदी की व आरसी शृंगार में बड़ी डांडी की एवं राजभोग में बटदार आती है. 

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ व श्रीमस्तक के आभरण बड़े किये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.

Sunday, 17 March 2024

व्रज - फाल्गुन शुक्ल नवमी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल नवमी
Monday, 18 March 2024

 पीले लट्ठा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर जमाव के क़तरा के शृंगार

आज राजभोग में श्रीजी की कटि में एक गुलाल की पोटली बांधी जाती हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : वसंत)

आई ऋतु चहूँदिस फूले द्रुम कानन कोकिला समूह मिलि गावत वसंतहि।
मधुप गुंजारत मिलत सप्तसुर भयो है हुलास तन मन सब जंतहि॥
मुदित रसिक जन उमगि भरे हैं नहिं पावत मन्मथ सुख अंतहि।
कुंभनदास स्वामिनी बेगि चलि यह समें मिलि गिरिधर नव कंतहि॥

साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को पीले लट्ठा का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र श्याम रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को फ़ागण का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का क़तरा लूम तुर्रा रूपहरी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल  धराये जाते हैं.
आज श्रीकंठ में अक्काजी की एक माला धरायी जाती हैं.
 गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, स्याम मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का एवं गोटी फागुन की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं.
 लूम तुर्रा रूपहरी धराये रहे.

Saturday, 16 March 2024

व्रज - फाल्गुन शुक्ल अष्टमी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल अष्टमी 
Sunday, 17 March 2024

होलकाष्टकारंभ

विशेष –आज से होलकाष्टक प्रारंभ हो जाता है. होली के आठ दिन पूर्व शुरू होने वाले होलकाष्टक के दिनों में कोई लौकिक शुभ कार्य नहीं किये जाते.

व्रज में इस अष्टमी, नवमी व दशमी से होली तक नंदगांव व बरसाना में विश्वप्रसिद्द लट्ठमार होली खेली जाती है. इसे होरंगा भी कहा जाता है और इसे देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक व्रज में जाते हैं.

आज श्री नवनीतप्रियाजी में बगीचा उत्सव है. आज के दिन प्रभु श्री नवनीतप्रियाजी मंदिर में श्री महाप्रभुजी की बैठक वाले बगीचे में फाग खेलने को पधारते हैं. 

व्रज में नन्दगाँव के पास नंदरायजी का बगीचा है जहाँ नंदकुमार खेलने के लिए पधारते थे इस भाव से आज बैठक के बगीचे को नंदरायजी का बगीचा मानकर श्री नवनीतप्रियाजी वहां राजभोग व उत्सव भोग अरोग कर फाग खेलने पधारते हैं.

लाड़ले लाल बगीचे में पधारते हैं अतः श्रीजी को भी आज नियम का मुकुट काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. 

श्रीजी में आज से गोविंदस्वामी के गारी के पद गाये जाते हैं.

आज प्रभु को चोवा की चोली, हरे मलमल के सूथन, काछनी व पीताम्बर धराये जाते हैं. 
श्रृंगार दर्शन में कमल के भाव की चित्रांकन वाली पिछवाई आती है जिसे ग्वाल दर्शन में बड़ा कर दिया जाता है.

साज – आज श्रीजी में फ़िरोज़ी रंग के आधार-वस्त्र पर कमल के फूलों के चित्रांकन वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. यह पिछवाई केवल श्रृंगार दर्शन में ही धरायी जाती है क्योंकि उसके बाद सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल अबीर से खेल किया जाता है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज हरे मलमल  का सूथन, काछनी, रास-पटका एवं चोवा की चोली धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (लट्ठा) के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल, हरे एवं मेघश्याम मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर मीना का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मीना के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की शिखा (चोटी) धरायी जाती है. 
दो माला अक्काजी की धरायी जाती है. पीले एवं लाल पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लहरिया के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

Friday, 15 March 2024

व्रज - फाल्गुन शुक्ल सप्तमी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल सप्तमी
Saturday, 16 March 2024

प्रभु मथुराधीशजी (कोटा) का पाटोत्सव, पुष्टिमार्गीय प्रधान गृहाधीश परमपूज्य गौस्वामी तिलकायत श्री इन्द्रदमनजी (श्री राकेशजी) महाराजश्री का जन्मदिवस

विशेष - आज कोटा में विराजित निधि स्वरुप श्री मथुराधीशजी का पाटोत्सव है. 
इसके अतिरिक्त आज श्रीजी में पुष्टिमार्गीय प्रधान गृहाधीश परमपूज्य गौस्वामी तिलकायत श्री इन्द्रदमनजी (श्री राकेशजी) का जन्मदिवस है.

दोनों शुभ प्रसंगों की श्रीमान तिलकायत, चिरंजीवी विशाल बावा व समस्त पुष्टि-सृष्टि को बधाई

श्रीजी का सेवाक्रम - तिलकायत का जन्मदिन होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

आज प्रभु को विशेष रूप से पतंगी चाकदार वागा और श्रीमस्तक पर दुमाला के ऊपर सेहरे का श्रृंगार धराया जाता है. 
श्रृंगार दर्शन में सेहरे के भाव की चित्रांकन की पिछवाई आती है जिसे ग्वाल दर्शन में बड़ा कर लिया जाता है.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.

शृंगार दर्शन 

साज – श्रीजी में आज संकेत वन में विवाह लीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को पतंगी रंग का, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं राजशाही पटका धराये जाते हैं. 
ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल, हरे, मेघश्याम एवं सफ़ेद मीना व स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर पतंगी रंग के दुमाला के ऊपर स्वर्ण का मीनाकारी का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. दुमाला के दायीं ओर सेहरे की मीना की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
एक चन्द्रहार व दो माला अक्काजी की धरायी जाती है. श्वेत एवं पीले पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, स्वर्ण के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट चीड़ का व गोटी चाँदी की आती है.

Thursday, 14 March 2024

व्रज - फाल्गुन शुक्ल षष्ठी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल षष्ठी
Friday, 15 March 2024
                   
फागुन में रसिया घर बारी फागुन में ।
हो हो बोले गलियन डोले गारी दे दे मत वारी ।।१।।
लाजधरी छपरन के ऊपर आप भये हैं अधिकारी ।
"पुरुषोत्तम" प्रभु की छबि निरखत ग्वाल करे सब किलकारी ।।२।।

गुलाबी लट्ठा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर फेटा का साज के शृंगार

राजभोग खेल में प्रभु की कटि में गुलाल व की पोटली बांधी जाती है. आज प्रभु के कपोल पर गुलाल अबीर लगाये जाते  जाते है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन (राग : बिलावल) 

बरसाने की गोपी मागन फगुवा आई l कियो हे जुहार नंदजुको भीतर भवन बुलाई ll 1 ll
एक नाचत एक गावत एक बजावत तारी l काहे मोहन राय दूरि रहे मैयाय दिवावत गारी ll 2 ll
आदर देत व्रजरानी अब निज भागि हमारे l प्रीतम सजन कुलवधू पाये दरस तुम्हारे ll 3 ll
सुने कुंवरि मेरी राधे अबही जिन मुख मांडो l जेंवत श्याम सखन संग जिन पिचकाई छांडो ll 4 ll
केसरि बहोत अरगजा कित मोहन पर डारो l सीत लगे कोमल तन तुमही चित्त विचारो ll 5 ll.....अपूर्ण

साज - आज श्रीजी में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, अबीर व चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी लट्ठा के सुथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग के फेंटा के ऊपर सिरपैंच, मोरशिखा, दोहरा कतरा एवं बायीं और शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में लोलकबंदी-लड़ वाले कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में अक्काजी की एक माला धरायी जाती है.
 पीले एवं लाल पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं. फेटा बड़ा नहीं किया जाता व लूम तुर्रा भी नहीं धराये जाते हैं.

Wednesday, 13 March 2024

व्रज - फाल्गुन शुक्ल चतुर्थी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल चतुर्थी
Thursday, 14 March 2024

मोहन होहो होहो होरी।।
काल्ह हमारे आंगन गारी देआयो सो कोरी।।1।।
अब क्योंदूर बैठे जसोदा ढिंग निकसो कुंज बिहारी।।
उमगउमग आईं गोकुल की वे सब वाई दिन बारी।।2।।
तबही लाल ललकार निकारे रूप सुधाकी प्यासी।।
लपट गई घनश्याम लालसों चमक चमक चपलासी।।3।।
काजर दे भजिभार भरुवाकें हँसहँस ब्रजकीनारी।।
कहें रसखान एक गारीपर सो आदर बलिहार।।4।।

केसरी लट्ठा के घेरदार वागा, श्रीमस्तक पर गोल पाग पर मोर चंद्रिका के शृंगार

कीर्तनों में अष्टपदी गाई जाती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन खेलो होरी फाग सबे मिल झुमक गावो झुमक गावो ll ध्रु ll
संग सखा खेलन चले वृषभान गोप की पौरी l श्रवन सुनत सब गोपिका गई है कुंवरि पे दोरी ll 1 ll
मोहन राधा कारने गहि लीनो नौसर हार l हार हेत दरसन भयो सब ग्वालन कियो जुहार ll 2 ll
राधा ललितासो कह्यो नेंक हार हाथ ते लेहूं l चंद्रभागा सो यों कह्यो नेंक इनही बैठन देहु ll 3 ll
बहोत भांति बीरा दीये कीनों बहोत सन्मान l राधा मुख निरखत हरि मानो मधुप करत मधुपान ll 4 ll
मोहन कर पिचकाई लीये बंसी लिये व्रजनारी l जीती राधा गोपिका सब ग्वालन मानी हार ll 5 ll
फगुआ को पट खेंचते मुरली आई हाथ l फगुआ दीये ही बने तुम सुनो गोकुल के नाथ ll 6 ll
मधु मंगल तब टेरियो लीनो सुबल बुलाय l मुरली तो हम देयगी प्यारी, राधा को सिर नाय ll 7 ll
ढोल मुरंज डफ बाजही और मुरलीकी घोर l किलकत कौतुहल करे मानो आनंद निर्तत मोर ll 8 ll
राधा मोहन विहरही सुन्दर सुघर स्वरुप l पोहोप वृष्टि सुरपति करें तुम धनि धनि व्रज के भूप ll 9 ll
होरी खेलत रंग रह्यो चले यमुना जल न्हान l सिंधपोरी ठाड़े हरी गोपी वारि वारि दे दान ll 10 ll
नरनारी आनंद भयो तनमन मोद बढाय l श्रीगोकुलनाथ प्रताप तें जन ‘श्यामदास’ बलिजाय ll 11 ll

साज – आज श्रीजी में आज सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया गया है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी लट्ठा का रंगों की छांट वाला एवं सफ़ेद ज़री की तुईलैस की दोहरी किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं कटि-पटका धराये जाते हैं. 
लाल ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. 

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फाल्गुन के लाल, सफ़ेद मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर केसरी रंग की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. पाग एवं कपोल पर अबीर गुलाल से खेल खिलाया जाता है. लाल एवं सफ़ेद पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, फ़ीरोज़ा के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं. शयन समय श्रीमस्तक पर सुनहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.

Tuesday, 12 March 2024

व्रज - फाल्गुन शुक्ल चतुर्थी (तृतीया क्षय)

व्रज - फाल्गुन शुक्ल चतुर्थी (तृतीया क्षय)
Wednesday, 13 March 2024

नेंक मोहोंड़ो मांड़न देहो होरी के खिलैया ।
जो तुम चतुर खिलार कहावत अंगुरीन को रस लेहौ ।।1।।
उमड़े घुमड़े फिरत रावरे सकुचत काहे हो ।
सूरदास प्रभु होरी खेलों फगुवा हमारो देहो ।।2।।

गौस्वामी तिलकायत श्री राकेशजी महाराजश्री के जन्मदिवस की बधाई बैठवे का श्रृंगार 

विशेष – आज गौस्वामी तिलकायत श्री राकेशजी महाराजश्री के जन्मदिवस की नौबत की बधाई बैठती है. 

आज प्रभु को लल लट्ठा के चाकदार वस्त्र व श्रीमस्तक पर टिपारा का श्रृंगार धराया जाता है 

कीर्तनों में बधाई के कीर्तन गाये जाते हैं. 

राजभोग खेल में एक गुलाल व एक अबीर की पोटली प्रभु की कटि पर बांधी जाती है. प्रभु के कपोल भी मांडे जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : गोरी) 

श्रीवल्लभकुल मंडन प्रकटे श्री विट्ठलनाथ l 
जे जन चरन न सेवत तिनके जन्म अकाथ ll 1 ll
भक्ति भागवत सेवा निसदिन करत आनंद l
मोहन लीला-सागर नागर आनंद कंद ll 2 ll
सदा समीप विराजे श्री गिरिधर गोविंद l 
मानिनी मोद बढ़ावे निजजन के रवि चंद ll 3 ll
श्रीबालकृष्ण मनरंजन खंजन अंबुज नयन l 
मानिनी मान छुड़ावे बंक कटाच्छन सेन ll 4 ll
श्रीवल्लभ जगवल्लभ करूणानिधि रघुनाथ l
और कहां लगि बरनो जगवंदन यदुनाथ ll 5 ll
श्रीघनश्याम लाल बल अविचल केलि कलोल l
कुंचित केस कमल मुख जानो मधुपन के टोल ll 6 ll
जो यह चरित्र बखाने श्रवन सुने मन लाय l
तिनके भक्ति जू बाढ़े आनंद घोस विहाय ll 7 ll
श्रवन सुनत सुख उपजत गावत परम हुलास l
चरण कमलरज पावन बलिहारी ‘कृष्णदास’ ll 8 ll

साज - आज श्रीजी में आज सफ़ेद रंग की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, अबीर व चन्दन से कलात्मक खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल लट्ठा का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाडे वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. श्वेत मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल रंग की टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मीना के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
बायीं और मीना की चोटी धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में अक्काजी की दो मालाजी धरायी जाती है. लाल एवं श्वेत पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, स्याम मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं. टिपारा बड़ा नहीं किया जाता व लूम तुर्रा भी नहीं धराये जाते हैं.

Monday, 11 March 2024

व्रज - फाल्गुन शुक्ल द्वितीया

व्रज - फाल्गुन शुक्ल द्वितीया
Tuesday, 12 March 2024

नवरंगी लाल बिहारी हो तेरे,द्वै बाप,द्वै महतारी ।।
नवरंगीले नवल बिहारी हम, दैंहि कहा कही गारी ।।१।।
द्वै बाप सबै जग जाने, सोतो वेद पुरान बखाने।।
वसुदेव देवकी जाये, सो तो नंदमहर के आये ।।२।।
हम बरसानेकी नारी, तुम्हें दें दें हँसि गारी ।।
तेरी भूआ कुंति रानी, सो तो सूरज देखी लुभानी।।३।।
तेरी बहन सुभद्रा क्वारी, सो तो अर्जुन संग सिधारी।।
तेरी द्रुपदसुता सी भाभी, सो तो पांच पुरुष मिलि लाभी।।४।।
हम जाने जू हम जानै, तुम उखल हाथ बँधाने।।
हम जानी बात पहिचानी, तुम कब ते दधि दानी।।५।।
तेरी माया ने सब जग ढूंढ्यो,कोई छोड्यो न बारो बूढ्यो।।
"जन कृष्णा" गारी गावे, तब हाथ थार कों लावे।।६।।

चंदन की चोली

विशेष - माघ और फाल्गुन मास में होली की धमार एवं विविध रसभरी गालियाँ भी गायी जाती हैं. 
विविध वाद्यों की ताल के साथ रंगों से भरे गोप-गोपियाँ झूमते हैं. कई बार गोपियाँ प्रभु को अपने झुण्ड में ले जाती हैं और सखी वेश पहनाकर नाच नचाती हैं और फगुआ लेकर ही छोडती हैं. 

इसी भाव से आज श्रीजी को नियम से चन्दन की चोली धरायी जाती है. फाल्गुन मास में श्रीजी चोवा, गुलाल, चन्दन एवं अबीर की चोली धराकर सखीवेश में गोपियों को रिझाते हैं.

कीर्तनों में राजभोग समय अष्टपदी गाई जाती है. 
राजभोग के खेल में प्रभु के कपोल मांडे जाते हैं वहीँ चोली पर कोई भी सामग्री से खेल नहीं होता. 

वैष्णवों पर फेंट भर कर गुलाल उड़ाई जाती है.

राजभोग दर्शन -

कीर्तन (राग : सारंग)

अहो पिय लाल लड़ेंती को झुमका, सरस सुर गावत मिल व्रजबाल, अहो कल कोकिल कंठ रसाल ll
लाल बलि झुमका हो ll ध्रु ll
नवजोबनी शरद शशि वदनी युवती यूथ जुर आई l नवसत साज श्रृंगार सुभग तन करन कनक पिचकाई ll 
एकन सुवन यूथ नवलासी दमिनीसी दरसाई l एक सुगंध संभार अरगजी भरन नवलको आई ll 1 ll
पहेरे वसन विविध रंगरंगन अंग महारस भीनी l अतरोंटा अंगिया अमोल तन सुख सारी अति झीनी ll 
गजगति मंद मराल चाल झलकत किंकिणी कटि झीनी l चोकी चमक उरोज युगल पर आन अधिक छबि दीनी ll 2 ll
मृगमद आड़ ललाट श्रवण ताटक तरणि धुति हारी l खंजन मान हरन अखियां अंजन रंजित अनियारी ll 
यह बानिक बन संग सखी लीनी वृषभान दुलारी l एक टक दृष्टि चकोर चंद ज्यों चितये लाल विहारी ll 3 ll
रुरकत हार सुढ़ार जलजमनि पोत पुंज अति सोहे l कंठसरी दुलरी दमकनि चोका चमकनि मन मोहे ll 
बेसर थरहरात गजमोती रति भूली गति जो हे l सीस फूल सीमान्त जटित नग बरन करन कवि को हे ll 4 ll
नवलनिकुंज महल रसपुंज भरे प्यारी पिय खेले l केसर और गुलाल कुसुमजल घोर परस्पर मेले ll
मधुकर यूथ निकट आवत झुक अति सुगंध की रेले l प्रीतम श्रमित जान प्यारी तब लाल भूजा भर झेले ll 5 ll
बहुविध भोग विलास रासरस रसिक विहारन रानी l नागर नृपति निकुंज विहारी संग सुरति रति मानी ll 
युगलकिशोर भोर नही जानत यह सुख रैन विहानी l प्रीतम प्राण पिया दोऊ विलसत ललितादिक गुनगानी ll 6 ll

साज - आज श्रीजी में आज सफ़ेद रंग की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, अबीर व चन्दन से कलात्मक खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को सफ़ेद लट्ठा के सूथन, घेरदार वागा एवं चोली धराये जाते हैं. चोली के ऊपर आधी बाँहों वाली चन्दन की चंदनिया रंग की चोली धरायी जाती है. चंदनिया रंग का ही कटि-पटका ऊर्ध्वभुजा की ओर धराया जाता है. गहरे हरे रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. 
चोली को छोड़कर अन्य सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. 
प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं. 

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर सफ़ेद रंग की खिड़की की छज्जेदार-पाग के ऊपर सिरपैंच, दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में गोल कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में आज त्रवल नहीं धराये जाते वहीँ कंठी धरायी जाती है. श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं. शयन समय श्रीमस्तक पर रुपहली लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.

Sunday, 10 March 2024

व्रज - फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा

व्रज - फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा
Monday, 11 March 2024
                    
फ़िरोज़ी लट्ठा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर ग्वालपगा के ऊपर पगा चंद्रिका के शृंगार

आज राजभोग में श्रीजी की कटि में एक गुलाल की पोटली बांधी जाती हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : बिलावल)

गोपी हो नंदराय घर मांगन फगुआ आई l प्रमुदित कर ही कुलाहल गावत गारि सुहाई ll 1 ll
अबला एक अगमनि आगे दई है पठाई l जसुमति अति आदरसो भीतर भवन बुलाई ll 2 ll
तिनमें मुख्य राधिका लागत परम सुहाई l खेलो हसो निशंक शंक मानो जिन कोई ll 3 ll
बहुमोली मनिमाला सबन देहु पहराई l मनिमाला ले कहा करे मोहन देहु दिखाई ll 4 ll
बिनु देखे सुन्दर मुख नाहिन परत रहाई l मात पिता पति सुत ग्रह लागतरी विषमाई ll 5 ll....अपूर्ण

साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को फ़िरोज़ी लट्ठा का सूथन, चोली, चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को फ़ागण का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर फ़िरोज़ी रंग के ग्वालपगा के ऊपर सिरपैंच, बीच की  चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धरायी जाती हैं.
आज एक माला अक्काजी की धरायी जाती हैं.
 गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, गुलाबी मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी(एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट चीड़ का एवं गोटी फागुन की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर पगा रहे  लूम तुर्रा नहीं आवे.

Saturday, 9 March 2024

व्रज - फाल्गुन कृष्ण अमावस्या

व्रज - फाल्गुन कृष्ण अमावस्या
Sunday, 10 March 2024

अरि हों श्याम रंग रंगी ।
रिझवे काई रही सुरत पर सुरत मांझ पगी ।।१।।
देख सखी अेक मेरे नयनमें बैठ रह्यो करी भौन ।
घेनु चरावन जात वृंदावन सौंधो कनैया कोन ।।२।।
कौन सुने कासौ कहे सखी कौन करे बकवाद ।
तापे गदाधर कहा कही आवे गूंगो गुड़को स्वाद ।।३।।

चोवा से रंगे स्याम घेरदार वागा, श्रीमस्तक पर गोल पाग और क़तरा के शृंगार

विशेष – आज फाल्गुन की अमावस्या के दिन श्रीजी को नियम के चोवा से रंगे दोहरी सुनहरी किनारी के स्याम घेरदार वस्त्र एवं श्रीमस्तक पर गोल-पाग के ऊपर सुनहरी चमक का क़तरा धराया जाता है.

श्याम वस्त्रों में श्यामसुंदर प्रभु की अद्भुत छटा का शब्दों में वर्णन करना किसी के लिए संभव नहीं है. 

राजभोग में फेंट में भर कर गुलाल खिलायी जाती हैं. चोवा के वस्त्र को गुलाल, अबीर, चंदन, चोवा सबसे खिलाया जाता हैं.

राजभोग दर्शन 

कीर्तन – (राग : सारंग)

मोहन खेलत होरी ll ध्रु ll
बंसीबट जमुनातट कुंजन तर ठाड़े बनवारी l उतही सखिन को मंडल जोर श्रीवृषभान दुलारी ll
होड़ा होड़ी करत परस्पर गावत आनंद गारी l अबीर गुलाल फेंट भर भामिनी करकंचन पिचकारी ll 1 ll
बाजत बीन बांसुरी किन्नरी महुवर अरु मुख चंगा l आवाज अमृत कुंडली अघवट तातें सरस उपंगा ll
ताल मृदंग झांझ डफ बाजत सूरके उठत तरंगा l गावत नाचत करत कुतूहल छिरकत केसर अंगा ll 2 ll
तबहि श्याम सब सखा बुलाये सबहिन मतो सुनाये l भैया तुम चोक्कस रहीयो मति कोऊ उपाय गहायो ll
जो काहू को पकर पाये है करि है मन को भायो l तातें सावधान व्है रहियो में तुमको समझायो ll 3 ll
तबही किसोरी राधा गोरी मनमें मतोजुकीनो l एक सखी ता बोल आपनी भेख सुबल को दीनो ll
ताके मिलन चले उठ मोहन सखा न कोई चीन्हो l नैंसिक बात लगाय लालको पाछे ते गहिलीनो ll 4 ll....अपूर्ण

साज – आज श्रीजी में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, अबीर व चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को चोवा से रंगा श्याम रंग का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. उर्ध्वभुजा की ओर चोवा से रंगा श्याम रंग का ही कटि-पटका भी धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्र दोहरे सुनहरी किनारी से सुसज्जित होते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सफ़ेद मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर श्याम रंग की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच सुनहरी चमक का क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
 सफ़ेद पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.

Friday, 8 March 2024

व्रज - फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी

व्रज - फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी
Saturday, 09 March 2024

 गुलाबी लट्ठा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर जमाव के क़तरा के शृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को गुलाबी लट्ठा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर जमाव के क़तरा का शृंगार धराया जायेगा.

आज राजभोग में श्रीजी की कटि में एक गुलाल की पोटली बांधी जाती हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : वसंत)

आई ऋतु चहूँदिस फूले द्रुम कानन कोकिला समूह मिलि गावत वसंतहि।
मधुप गुंजारत मिलत सप्तसुर भयो है हुलास तन मन सब जंतहि॥
मुदित रसिक जन उमगि भरे हैं नहिं पावत मन्मथ सुख अंतहि।
कुंभनदास स्वामिनी बेगि चलि यह समें मिलि गिरिधर नव कंतहि॥

साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी लट्ठा का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघस्याम रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को फ़ागण का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर गुलाबी छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का क़तरा लूम तुर्रा रूपहरी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल  धराये जाते हैं.
आज श्रीकंठ में अक्काजी की एक माला धरायी जाती हैं.
 गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, स्याम मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का एवं गोटी फागुन की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं.
 लूम तुर्रा रूपहरी धराये रहे.

Thursday, 7 March 2024

व्रज - फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी

व्रज - फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी
Friday, 08 March 2024

भोरही आयो मेरे द्वार जोगिया अलख कहे कहे जाग ।
मोहन मूरति एनमेनसी नैन भरे अनुराग ।।
अंग विभूतिगरें बिचसेली देखीयत विरह बिराग ।
तनमन वारुं धीरज के प्रभु पर राखूंगी बांध सुहाग ।।
तुम कोनकेवस खेले हो रंगीले हो हो होरियां ।
अंजन अधरन पीक महावरि नेनरंगे रंगरोरियां ।।
वारंवार जृंभात परस्पर निकसिआई सब चोरियां ।
'नंददास' प्रभु उहांई वसोकिन जहां वसेवेगोरियां ।।

महा शिवरात्रि

विशेष – आज महाशिवरात्रि है. भगवान शंकर प्रथम वैष्णव हैं और श्रीजी के प्रिय भक्त हैं अतः आज नियम का मुकुट और गोल-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. 

गोल-काछनी को मोर-काछनी भी कहा जाता है क्योंकि यह यह देखने में नृत्यरत मयूर जैसी प्रतीत होती है. ऐसा प्रतीत होता है जैसे प्रभु गोपियों संग रास रचाते आनंद से मयूर की भांति नृत्य कर रहें हों. 
आज चोवा की चोली धरायी जाती है. आज प्रभु को अंगूरी (हल्के हरे) रंग की गोल-काछनी व रास पटका धराया जाता है जिस पर बसंत के छांटा होते हैं.

कई शिव-भक्त अंगूरी (हल्के हरे) रंग को शिव के प्रिय पेय भंग के रंग से जोड़कर भी देखते हैं यद्यपि यहाँ इस रंग का प्रयोग केवल प्रभु सुखार्थ किया जाता है.

श्रृंगार समय कमल के भाव की पिछवाई आती है जो कि श्रृंगार दर्शन उपरांत बड़ी कर श्वेत मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसपर राजभोग समय खेल होता है.

कीर्तन – (राग : सारंग)

कर तारी देदे नाचेही बोले सब होरी हो ll ध्रु ll
संगलिये बहु सहचरि वृषभान दुलारी हो l गावत आवत साजसो उतते गिरिधारी हो ll 1 ll
दोऊ प्रेम आनंदसो उमगे अतिभारी l चितवन भर अनुरागसो छुटी पिचकारी ll 2 ll
मृदुंग ताल डफ बाजही उपजे गति न्यारी l झुमक चेतव गावही यह मीठी गारी ll 3 ll
लाल गुलाल उड़ावही सोंधे सुखकारी l प्यारी मुखही लगावही प्यारो ललनविहारी ll 4 ll
हरे हरे आई दूर करी अबीर अंधियारी l घेर ले गयी कुंवरको भर के अंकवारि ll 5 ll
काहु गहिवेनी गुही रचि मांग संवारी l काहु अंजनसो आज अरु अंखिया अनियारी ll 6 ll
कोई सोंधेसो सानके पहरावत सारी l करते मुरली हरि लई वृषभान दुलारी ll 7 ll
तब ललिता मिलके कछु एक बात विचारी l पियावसन पियको दैहे पिय के दिये प्यारी ll 8 ll
मृगमद केसर घोंरके नखशिख तें ढारी l सखियन गढ़ जोरो कियो हस मुसकाय निहारी ll 9 ll
याही रस निवहो सदा यह केलि तिहारी l निरख ‘माधुरी’ सहचरी छबि पर बलिहारी ll 10 ll

साज - आज श्रीजी में आज कमल के भाव के चित्रांकन की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज अंगूरी (हल्के हरे) रंग का छाँट का सूथन, गोल-काछनी (मोर-काछनी), रास-पटका एवं चोवा की चोली धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (लट्ठा) के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर सोने की मुकुट की टोपी पर मीनाकारी का स्वर्ण का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. आज शिखा (चोटी) नहीं धरायी जाती है.
श्रीकंठ में अक्काजी की दो माला धरायी जाती है. पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, सोने के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

Wednesday, 6 March 2024

व्रज - फाल्गुन कृष्ण द्वादशी (एकादशी व्रत)

व्रज - फाल्गुन कृष्ण द्वादशी (एकादशी व्रत)
Thursday, 07 March 2024

ताजबीबी की भावपूर्ण अंतिम धमार

बहोरि डफ बाजन लागे, हेली।। ध्रुव.।। 
खेलत मोहन साँवरो,हो, केहिं मिस देंखन जाय।। 
सास ननद बैरिन भइ अब,  कीजे कोन उपाय।। १।। 
ओजत गागर ढारीये, यमुना जल के काज,।। 
यह मिस बाहिर निकसकें हम, जायें मिलें तजि लाज।।२।।
आओ बछरा मेलियें, बनकों देहिं विडार।। 
वे दे हें, हम ही पठे हम, रहेंगी घरी द्वे चार।। ३।। 
हा हा री हों जातहों मोपें, नाहिन परत रह्यो।। 
तू तो सोचत हीं रही तें, मान्यों न मेरो कह्यो।। ४।। 
राग रंग गहगड मच्यो, नंदराय दरबार।। 
गाय खेल हंस लिजिये, फाग बडो त्योहार।। ५।। 
तिनमें मोहन अति बने, नाचत सबे ग्वाल।। 
बाजे बहुविध बाजहि रंज, मुरज डफ ताल।। ६।। 
मुरली मुकुट बिराजही, कटिपट बाँधे पीत।। 

इस पंक्ति को गाते गाते अकबर बादशाह की बेगम ताजबीबी को अत्यंत विरह हुआ और अपना देह त्याग श्रीजी की लीला में प्रविष्ट हुई, उनके ये पद की अंतिम पंक्ति श्रीनाथजी ने पूर्ण की

नृत्यत आवत *ताज* के प्रभु गावत होरी गीत।।७।।

अबीर की चोली

विशेष - माघ और फाल्गुन मास में होली की धमार एवं विविध रसभरी गालियाँ भी गायी जाती हैं. विविध वाद्यों की ताल के साथ रंगों से भरे गोप-गोपियाँ झूमते हैं. 

कई बार गोपियाँ प्रभु को अपने झुण्ड में ले जाती हैं और सखी वेश पहनाकर नाच नचाती हैं और फगुआ लेकर ही छोडती हैं. 

इसी भाव से आज श्रीजी को नियम से अबीर की चोली धरायी जाती है. फाल्गुन मास में श्रीजी चोवा, गुलाल, चन्दन एवं अबीर की चोली धराकर सखीवेश में गोपियों को रिझाते हैं. 

राजभोग समय अष्टपदी गाई जाती है. अबीर की चोली पर कोई रंग (गुलाल आदि) नहीं लगाए जाते.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

ग्वालिनी सोंधे भीनी अंगिया सोहे केसरभीनी सारी l
लहेंगा छापेदार छबीलो छीन लंक छबि न्यारी ll 1 ll
अधिक वार रिझवार खिलवार चलत भुज डारी l
अत्तर लगाए चतुर नारी तब गावत होरी की गारी ll 2 ll
बड़ी बड़ी वरूणी तरुणी करुणी रूप जोबन मतवारी l 
छबि फुलेल अलके झलके ललके लख छेल विहारी ll 3 ll
हावभाव के भवन केंधो भूखन की उपमा भारी l
वशीकरण केंधो जंत्रमंत्र मोहन मन की फंदवारी ll 4 ll
अंचल में न समात बड़ी अखिया चंचल अनियारी l
जानो गांसी गजवेल कामकी श्रुति बरसा न संवारी ll 5 ll
वेसरके मोतिन की लटकन मटकन की बलिहारी l
मानो मदनमोहन जुको मन अचवत अधर सुधारी ll 6 ll
बीरी मुख मुसकान दसन, चमकत चंचल चाकोरी l
कोंधि जात मानो घन में दामिनी छबिके पुंज छटारी ll 7 ll
श्यामबिंदु गोरी ढोडीमें उपमा चतुर विचारी l
जानो अरविंद चूम्यो न चले मचल्यो अलिको चिकुलारी ll 8 ll
पोति जोति दुलरी तिलरी तरकुली श्रवण खुटि लारी l
खयन बने कंचन विजायके करन चूरी गजरारी ll 9 ll
चंपकली चोकी गुंजा गजमोतिन की मालारी l
करे चतुर चितकी चोरी डोरीके जुगल झवारी ll 10 ll....अपूर्ण

साज - आज श्रीजी में आज सफ़ेद रंग की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, अबीर व चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को बिना किनारी का पतंगी (रानी) रंग का सूथन, घेरदार वागा एवं चोली धराये जाते हैं. चोली के ऊपर अबीर की सफ़ेद चोली धरायी जाती है. 
रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित केसरी कटि-पटका ऊर्ध्वभुजा की ओर धराया जाता है. गहरे हरे रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. 
सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. केवल चोली पर रंगों से खेल नहीं किया जाता.
प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं. 

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर पतंगी रंग की बाहर की खिड़की की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, मच्छी घाट को दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में आज त्रवल नहीं धराये जाते, कंठी व पदक धराये जाते हैं.
सफ़ेद एवं पीले पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं परन्तु अबीर की चोली नहीं खोली जाती है. 
शयन समय श्रीमस्तक पर रुपहली लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.

Tuesday, 5 March 2024

व्रज – फाल्गुन कृष्ण एकादशी(दशमी क्षय)

व्रज –  फाल्गुन कृष्ण एकादशी(दशमी क्षय)
Wednesday, 06 March 2024

आज एकादशी तिथि है परन्तु विजया एकादशी व्रत कल गुरुवार, 07 मार्च 2024 (फाल्गुन कृष्ण द्वादशी) के दिन होगा.

कान्हा धर्यो रे मुकुट खेले होरी कान्हा धर्यो रे ।। 

ईतते आये कुंवर कन्हाई, 
उतते आई राधा गोरी............... कान्हा 

कहां तेरो हार कहां नकवेसर, 
कहां मोतीयनकी लर तोरी........ कान्हा 

गोकुल मेरो हार मथुरा नकवेसर, 
बृदावन में लर तोरी.................. कान्हा 

चोवा चंदन अगर अरगजा, 
अबिर उडावो भर भर झोरी....... कान्हा 

पुरुषोत्तम प्रभु की छबी निरखत, 
फगुवा लियो भर भर झोरी........ कान्हा 

मुकुट-काछनी के श्रृंगार

विजया एकादशी

विशेष – आज विजया एकादशी है. विश्व के सभी धर्माचार्यों ने कई वस्तुओं को निषेध कहा है उन सभी वस्तुओं को श्री वल्लभाचार्यजी ने प्रभु की सेवा में जोड़ कर उनका सदुपयोग किया है. 

उदाहरणार्थ काम, क्रोध, मोह एवं लोभ मानव के शत्रु हैं एवं इनका त्याग करने को सर्व धर्माचार्य कहते हैं परन्तु श्रीमद वल्लभाचार्यजी ने इन चारों वस्तुओं को प्रभु सेवा से जोड़ने की आज्ञा की जिससे ये सभी भी भगवदीय बनें. इस अमूल्य आज्ञा के अनुसरण करने वाले कई प्रभु के कृपापात्र वैष्णवों ने काम, क्रोध, लोभ एवं मोह को प्रभु सेवा में विनियोग कर इन पर विजय प्राप्त की अतः आज की एकादशी को विजया एकादशी कहा जाता है.

शीत कम हो गयी है अतः आज से श्रीजी में मुकुट काछनी का श्रृंगार प्रारंभ हो जायेगा. गोपाष्टमी के बाद आज ही श्रीजी में मुकुट धराया जा रहा है. 

प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है. 

अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी का पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता.

जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है. 

जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं.

जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है.

आज प्रभु को पीले बसंत के छांटा की काछनी व पीताम्बर, चोवा की चोली व सफ़ेद लट्ठा के ठाडे वस्त्र धराये जाते हैं. 

आज की विशेषता यह है कि आज श्रीजी को धराये जाने वाले वस्त्र द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से सिद्ध हो कर आते हैं. वस्त्रों के साथ श्रीजी के भोग हेतु सामग्री की एक छाब भी वहां से आती है.

श्रृंगार दर्शन 

कीर्तन – (राग : काफी)

पीताम्बर काजर कहाँ लग्यो हो ललना
कोन के पोंछे हें नयन ll ध्रु ll
कोनके गेह नेह रस पागे वे गोरी कछु ओर l 
देहु बताय कान राखति हों ऐसे भये चितचोर ll 1 ll
अधरन अंजन लिलाट महावर राजत पिक कपोल l
घुमि रहे रजनी जागेसे दुरत न काम कलोल ll 2 ll
नखनिशान राजत छतियन पर निरखो नयन निहार l
झुम रहीं अलके अलबेली पागके पेंच संवार ll 3 ll
हम डरपे जसुदाजुके त्रासन नागर नंदकिशोर l
पाय परे फगुवा प्रभु देहो मुरली देहो अकोर ll 4 ll
धन्य धन्य गोकुलकी गोपी, जीन हरी लीने हराय l
‘नंददास’ प्रभु कीये कनोड़े छोड़े नाच नचाय ll 5 ll 

साज – आज श्रीजी में फ़िरोज़ी रंग के आधार-वस्त्र पर कमल के फूलों के चित्रांकन वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. यह पिछवाई केवल श्रृंगार दर्शन में ही धरायी जाती है क्योंकि उसके बाद सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल अबीर से खेल किया जाता है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज चंपाई (पीले) रंग का सूथन, काछनी, रास-पटका एवं चोवा श्याम रंग की चोली धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (लट्ठा) के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल, हरे, मेघश्याम एवं सफ़ेद मीना तथा जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर मीना की मुकुट टोपी, मीना का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में जड़ाव मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की शिखा (चोटी) धरायी जाती है. 
दो माला अक्काजी की धरायी जाती है.
श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्प की छड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का व गोटी फागुन की आती है.

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया  Saturday, 01 February 2025 इस वर्ष माघ शुक्ल पंचमी के क्षय के कारण कल माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन बसंत पंचमी का पर्व ह...