By Vaishnav, For Vaishnav

Monday, 30 November 2020

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण प्रतिपदा

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण प्रतिपदा
Tuesday, 01 December 2020

व्रतचर्या/गोपमास आरम्भ

विशेष – व्रज में कार्तिक, मार्गशीर्ष एवं पौष मास श्री ललिताजी की सेवा के मास हैं. माघ, फाल्गुन एवं चैत्र मास श्री चन्द्रावलीजी की सेवा के मास हैं. 
वैशाख, ज्येष्ठ एवं आषाढ़ मास श्री यमुनाजी के सेवा मास हैं. 
इसी प्रकार श्रावण, भाद्रपद एवं आश्विन मास श्री राधिकाजी (श्री स्वामिनीजी) की सेवा के मास हैं.

भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद भागवत गीता में इस मास की श्रेष्ठता के सन्दर्भ में कहा है- “मासानां मार्गशीर्षोहं”. 

आज से इस मार्गशीर्ष मास का प्रारंभ होता है. श्री ललिताजी की सेवा का यह दूसरा मास है. इस सन्दर्भ में कार्तिक मास में अन्नकूट महोत्सव हुआ था. इस मास में ‘गोपमास’ के भाव से विविध सेवा, सामग्रियां एवं उत्सव होते हैं. 

इस मास में कई गौस्वामी बालकों का प्राकट्योत्सव एवं भाग्वद्स्वरूपात्मक होने से यह मास वैष्णव सम्प्रदाय में भी उत्तम मास माना गया है. 

मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा पर श्रीजी में नियम (घर) का छप्पनभोग महोत्सव होता है. मार्गशीर्ष एवं पौष मास में हेमंत ऋतु होने से शीतकालीन सेवा में प्रभु सुखार्थ विविध नूतन पौष्टिक सामग्रियाँ अरोगायी जाती है एवं जडाऊ श्रृंगार धराये जाते हैं. 
कीर्तन भी खंडिता, हिलग, मिषांतर, मान, व्रतचर्या, शीतकालीन चित्रसारी, रंगमहल आदि के गाये जाते हैं. 
वस्त्रों में रुई वाले दग्गल, फतवी, बंधेबंध के वागा आदि धराये जाते हैं. 

मार्गशीर्ष अर्थात ‘गोपमास’ एवं पौष अर्थात ‘धनुर्मास’ अत्यधिक सर्दी वाले मास हैं, अतः देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन से बसंत पंचमी तक पुष्टि स्वरुप निज मंदिर से बाहर नहीं पधारते. 
श्री नवनीतप्रियाजी आदि जो स्वरुप पलना झूलते हैं उनके पलना के दर्शन भी निज मंदिर में ही होते हैं.

आज श्रीजी को नियम के पतंगी (गहरे लाल) रंग के साटन के वस्त्र एवं मोरचन्द्रिका धरायी जाती है. 
लाल रंग अनुराग का रंग है. श्री ललिताजी का स्वरुप अनुराग के रंग का है. 

आज से श्रीजी सम्मुख व्रतचर्या के पद गाये जाते हैं.

गोपिकाओं के अनुराग का प्रारंभ भी आज से होने से आज लाल रंग के वस्त्र धराये जाते हैं. 
गोप-कन्याएँ व्रजराज की निष्काम भक्त हैं एवं उनके प्रतीक के रूप में आज के वस्त्रों में सुनहरी पुष्प हैं. 
ये व्रजभक्त बालाएं श्री स्वामिनीजी की कृपा से प्रभुसेवा में अंगीकृत हुई अतः उनके यशस्वरुप ठाड़े वस्त्र श्वेत रंग के धराये जाते हैं. 
आज सारे दिन की सेवा श्री ललिताजी की है जिससे आपके स्वरुप एवं श्रृंगारवत प्रभु के श्रृंगार होते हैं.

गोपमास के आरंभ पर श्रीजी को आज विशेष रूप से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग की सखड़ी में मूंग की द्वादसी व खाडवे को अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : टोडी)

आये अलसाने लाल जोयें हम सरसाने अनत जगे हो भोर रंग राग के l
रीझे काहू त्रियासो रीझको सवाद जान्यो रसके रखैया भवर काहू बाग़ के ll 1 ll
तिहारो हु दोस नाहि दोष वा त्रिया को जाके रससो रस पागे जाग के l
‘तानसेन’ के प्रभु तुम बहु नायक आते जिन बनाय सांवरो पेच पाग के ll 2 ll 

साज – श्रीजी में आज लाल साटन की सुनहरी ज़री के ज़रदोज़ी के जायफल की बेल वाली एवं हरे रंग के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है. चरणचौकी, पडघा, झारीजी, बंटाजी आदि जड़ाव स्वर्ण के धरे जाते हैं.

वस्त्र – श्रीजी को आज पतंगी (गहरे लाल) रंग की साटन का सुनहरी ज़री की बूटी के काम (Work) वाले व रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. लाल एवं सफेद रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद लट्ठा के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना एवं सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर पतंगी (गहरे लाल) साटन की सुनहरी ज़री की बूटी वाले चीरा के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. एक रंग-बिरंगे पुष्पों की एवं दूसरी पीले पुष्पों की कलात्मक मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट लाल, गोटी छोटी सोना की व आरसी शृंगार में सोना की एवं राजभोग में बटदार आती है.
चोरसा स्याम सुरु का आता हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर दिए जाते हैं. त्रवल बड़े नहीं किये जाते और श्रीमस्तक पर सुनहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.

Sunday, 29 November 2020

व्रज - कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा

व्रज - कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा
Monday, 30 November 2020

कार्तिक पूर्णिमा, गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री कृत चार स्वरूपोत्सव

विशेष – आज कार्तिक पूर्णिमा है. आज कार्तिक मास (व्रज अनुसार) का अंतिम दिन है. 
कल से गोपमास प्रारंभ हो जायेगा. ललित, पंचम आदि शीतकाल के राग व खंडिता, हिलग आदि कीर्तन गाये जाते हैं. 
कार्तिक, मार्गशीर्ष एवं पौष, ये तीनों मास ललिताजी की सेवा के मास हैं. इनमें से एक मास आज पूर्ण होता है. 

आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री कृत चार स्वरूपोत्सव का दिन है.
आज के दिन नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गोविंदलालजी कृत चार स्वरुप के उत्सव में श्री विठ्ठलेशरायजी, श्रीद्वारकाधीशजी एवं श्री बालकृष्णलालजी (सूरत) से पधारे और श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के संग छप्पनभोग का भव्य मनोरथ हुआ था।

श्रीजी का सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

आज नियम से श्रीजी को किरीट धराया जाता है. किरीट को ‘खूप’ या ‘पान’ भी कहा जाता है. 
मैं पूर्व में भी कई बार बता चुका हूँ कि अधिक गर्मी व अधिक शीत के दिनों में श्रीजी को मुकुट नहीं धराया जाता अतः उसके स्थान पर इन दिनों किरीट धराया जा सकता है. किरीट दिखने में मुकुट जैसा ही होता है परन्तु मुकुट एवं किरीट में कुछ अंतर होते हैं :

- मुकुट अकार में किरीट की तुलना में बड़ा होता है.

- मुकुट अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में नहीं धराया जाता अतः इस कारण देव-प्रबोधिनी से डोलोत्सव तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक नहीं धराया जाता परन्तु इन दिनों में किरीट धराया जा सकता है.

- मुकुट धराया जावे तब वस्त्र में काछनी ही धरायी जाती है परन्तु किरीट के साथ चाकदार, घेरदार वागा, धोती-पटका अथवा पिछोड़ा धराये जा सकते हैं.

- मुकुट धराया जावे तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत जामदानी (चिकन) के धराये जाते है परन्तु किरीट धराया जावे तब किसी भी अनुकूल रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जा सकते हैं.

- मुकुट सदैव मुकुट की टोपी पर धराया जाता है परन्तु किरीट को कुल्हे एवं अन्य श्रीमस्तक के श्रृंगारों के साथ धराया जा सकता है.

चार स्वरुप के उत्सव के कारण आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

गोवर्धन गिरी पर ठाड़े लसत l
चंहु दिस धेनु धरनी धावत तब नवमुरली मुख लसत ll 1 ll
मौर मुकुट मरगजी कछुक फूल सिर खसत l
नव उपहार लिये वल्लभप्रिय निरख दंगचल हसत ll 2 ll
‘छीतस्वामी’ वस कियो चाहत है संग सखा गुन ग्रसत l
झूठे मिस कर इत उत चाहत श्रीविट्ठल मन वसत ll 3 ll 

साज – आज श्रीजी को मेघश्याम मखमल के आधारवस्त्र पर सलमा-सितारा के सूर्य, चन्द्र व तारों के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं सुनहरी ज़री की किनारी के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को रुपहली ज़री के रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका श्वेत मलमल का धराया जाता है. मोजाजी गुलाबी रंग के एवं ठाड़े वस्त्र पतंगी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. मोजाजी के ऊपर हीरे के तोड़ा-पायल धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर जड़ाव का किरीट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर हीरे की चोटी धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में कस्तूरी, कली आदि व कमल माला धरायी जाती है. सफेद एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में चांदी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. पट ज़री का व गोटी मोर की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर दिए जाते हैं और छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर गोलपाग व रुपहली लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.

Saturday, 28 November 2020

व्रज - कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी

व्रज - कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी
Sunday, 29 November 2020

नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गोविन्दजी का प्राकट्योत्सव 

विशेष – आज नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गोविन्दजी (१८७६) का उत्सव है.

श्रीजी का सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. दो समय की आरती थाली में की जाती है.
आज से गादी, तकिया पर पुनः सफेदी चढ़ जाती है. साज में पिछवाई पीले खीनखाब की आती है.

श्रीजी को नियम के पीले खीनखाब के चाकदार वागा और श्रीमस्तक पर लाल माणक की कुल्हे के ऊपर सुनहरी चमक का घेरा धराया जाता है. 

माणक की कुल्हे के ऊपर सुनहरी चमक का घेरा वर्षभर में केवल आज के दिन धराया जाता है.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केशरयुक्त जलेबी के टूक और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में बूंदी प्रकार अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीवल्लभ नंदन रूप अनूप स्वरुप कह्यो न जाई l
प्रकट परमानंद गोकुल बसत है सब जगत के सुखदाई ll 1 ll
भक्ति मुक्ति देत सबनको निजजनको कृपा प्रेम बर्षन अधिकाई l
सुखद रसना एक कहां लो वरनो ‘गोविंद’ बलबल जाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में पीले रंग की खीनख़ाब की लाल रंग के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर आज से पुनः सफेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज पीले खीनखाब के रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. मोजाजी लाल खीनखाब के धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. माणक एवं सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल रंग की माणक की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, माणक का दुलड़ा, सुनहरी चमक का घेरा तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
 कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है. श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में लाल मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (लाल मीना व स्वर्ण का) धराये जाते हैं.
पट लाल, गोटी श्याम मीना की व आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर दिए जाते हैं और छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर केसरी गोलपाग सिरपेच टीका एवं एक पंख की (सादी) मोर चन्द्रिका व मानक का झोरा धराये जाते हैं. आज लूम तुर्रा नहीं धराये जाते.

श्रीगुसांईजी की सेवक पाथो गूजरी की वार्ता

श्रीगुसांईजी की सेवक पाथो गूजरी की वार्ता   

पाथो गूजरी आन्योर में रहती थी, एक दिन बेटा के लिए भोजन (छाक) ले जा रही थी, रास्ते में श्रीनाथजी ने उससे कहा -" ये दही - भात हम को दो । " उसने उसमें से दही - भात श्रीनाथजी को दिया, उन्होंने इसे आरोगा और इतने में ही शंखनाद हो गया । श्रीनाथजी बिना हाथ धोये ही मन्दिर में पधारे ।

श्री गुसांईजी ने उनके श्रीहस्त देखकर पूछा - "आज कहाँ आरोगे हैं ?"
श्री नाथजी ने कहा- "पाथो गूजरी से दही - भात लिया था ।" 

उसी दिन श्रीगुसांईजी ने पोरिया से कहा - "पाथो गूजरी जब भी यहाँ आए, किवाड़ खोल दिया करो ।" जब श्रीनाथजी की आज्ञा होती, उसी दिन पाथो गूजरी आकर दही - भात आरोगा कर चली जाती थी ।

उसी दिन से श्रीगुसांईजी ने कुनवारा में मुख्य सामग्री दही भात की निर्धारित की । 
पाथो गूजरी ऐसी कृपा पात्र थी ।।

Friday, 27 November 2020

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व्रज - कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी

व्रज - कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी
Saturday, 28 November 2020

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 
मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को फ़िरोज़ी रंग की ज़री पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

बैठे हरि राधासंग कुंजभवन अपने रंग
कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई ll
मोहन अतिही सुजान परम चतुर गुननिधान
जान बुझ एक तान चूक के बजाई ll 1 ll
प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुनप्रवीन
अति नवीन रूपसहित वही तान सुनाई ll
वल्लभ गिरिधरनलाल रिझ दई अंकमाल
कहत भलें भलें लाल सुन्दर सुखदाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में फ़िरोज़ी रंग की ज़री की रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को फ़िरोज़ी रंग की ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. स्याम रंग के ठाडे वस्त्र धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना एवं स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हरे रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, घुमावदार गोल-चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्वेत एवं पीले पुष्पों की गुलाबी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट फ़िरोज़ी व गोटी चाँदी की आती हैं.
संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराया जाता है.

Thursday, 26 November 2020

व्रज - कार्तिक शुक्ल द्वादशी

व्रज - कार्तिक शुक्ल द्वादशी (द्वितीय)
Friday, 27 November 2020

मोर के चंदन मोर बन्यौ है
        दिन दूल्हे हैं अलि नंद को नंदन।
श्री वृषभानु सुता दुलही
         दिन जोड़ी बनी विधना सुखकंदन।।
आवै कह्यौ न कछु रसखानि हो
         दोऊ बंधे छवि प्रेम के फंदन ।
जाहि विलोकें सबै सुख पावत
           ये ब्रजजीवन हैं दुखदंदन ।।

गुसांई जी के प्रथम पुत्र श्री गिरधरजी एवं पंचम पुत्र श्री रघुनाथजी (कामवन) के प्राकट्योत्सव के शृंगार, लालाजी का अन्नकूट,
घेरदार वागा एवं चीरा के साथ सेहरा का श्रृंगार 

विशेष – कार्तिक शुक्ल एकादशी को श्रीजी के अलावा अन्य सभी निधि स्वरूपों एवं हवेलियों में शयन भोग अरोगे पश्चात अनोसर नहीं होते व रात्रि जागरण होता है एवं द्वादशी का मंगला से राजभोग तक का सेवाक्रम लगभग साढ़े चार बजे तक पूर्ण कर लिया जाता है. 
सायं उत्थापन से सेवाक्रम पुनः नियमित हो जाता है.

नंदालय की भावना से कई मंदिरों में चार जागरण भोग भी रखे जाते हैं परन्तु श्रीजी मंदिर में गौलोक लीला होने से जागरण भी नहीं होते व चार भोग भी नहीं रखे जाते.

श्रीजी के अलावा अन्य सभी पुष्टि स्वरूपों को आज से बैंगन अरोगाये जाने प्रारंभ हो जायेंगे.

मैं पूर्व में बता चुका हूँ कि विगत देवशयनी (आषाढ़ शुक्ल) एकादशी से चार माह तक श्रीजी के अलावा अन्य सभी पुष्टि स्वरुपों को बैंगन नहीं अरोगाये जाते. यद्यपि श्रीजी को वर्षभर बैंगन अरोगाये जाते हैं.

आज सायंकाल श्री नवनीतप्रियाजी के प्रसादी भंडार के समीप विराजित प्रभु श्री लालाजी का अन्नकूट मनोरथ होता है.

कल श्री गुसांईजी के प्रथम पुत्र श्री गिरधरजी एवं पंचम पुत्र श्री रघुनाथजी का उत्सव था लेकिन कल देव दिवाली होने के कारण उत्सव के शृंगार आज धराये जायेगे.

श्रीजी का सेवाक्रम - पर्व होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी की मेढ़ से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
गादीजी, खंड आदि मखमल के आते हैं. गेंद, दिवाला चौगान सभी सोने के आते हैं.

चारों दर्शनों (मंगला, राजभोग, संध्या-आरती व शयन) में आरती थाली में की जाती है. 
प्रभु की झारीजी सारे दिन यमुना जल से भरी जाती हैं.

सेवाक्रम - अक्षय नवमी की भांति आज भी श्रीजी की दिन भर की सेवा द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर की होती है अर्थात यदि द्वितीय पीठ के गौस्वामी परिवार के सदस्य नाथद्वारा में हों तो आज मंगला से शयन तक श्रीजी की सेवा के अधिकारी होते हैं अतः मंगला से शयन तक सभी समां में सेवा हेतु श्री विट्ठलनाथजी के मंदिर में खबर भेजी जाती है एवं द्वितीय गृहाधीश श्री कल्याणरायजी व उनके परिवारजन सभी समां में श्रृंगार धरने प्रभु को भोग धरने व आरती करने पधारते हैं.

आज प्रभु को धराये जाने वाले वस्त्र भी द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से सिद्ध हो कर आते हैं. वस्त्र के साथ जलेबी घेरा की एक छाब भी श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु वहाँ से आती हैं.

आज श्रीजी में विवाह के भाव से मोरछल करती एवं चँवर डुलाती गोपियों की पिछवाई एवं संकेत वन में विवाह के भाव से विवाह का श्रृंगार एवं सेहरा धराये जाते हैं. 

श्रृंगार समय विवाह के कीर्तन गाये जाते हैं.

आज के श्रृंगार की विशेषता यह है कि वर्षभर में केवल आज ही श्रीजी को घेरदार वागा के साथ सेहरा का श्रृंगार धराया जाता है. इसका कारण यह है कि कल के उत्सवनायक श्री गिरधरजी जिस दिन अपने सेव्य स्वरुप श्री मथुराधीश जी के मुखारविंद में सदेह प्रवेश कर नित्यलीला में पधारे उस दिन श्री मथुराधीशजी ने घेरदार वागा के साथ सेहरा का श्रृंगार धराया था. 

आज उन्हीं श्री गिरधरजी का उत्सव का श्रृंगार होने से वही श्रृंगार श्रीजी को धराया जाता है.

कल के उत्सव के भोगक्रम के रूप में आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केशरयुक्त जलेबी के टूक पाटिया और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का अरोगायी जाएगी. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में मीठी सेव स्यामखटाई अरोगाये जायेंगे

विवाह के पश्चात श्री ठाकुरजी सपरिवार वृषभानजी के घर भोजन को पधारते हैं इस भाव से राजभोग आवे तब आसावरी राग में यह कीर्तन गाया जाता है.

श्रीवृषभानसदन भोजन को नंदादिक मिलि आये हो l
तिनके चरनकमल धरिवे को पट पावड़े बिछाये हो ll 1 ll
रामकृष्ण दोऊ वीर बिराजत गौर श्याम दोऊ चंदा हो l
तिनके रूप कहत नहीं आवे मुनिजन के मनफंदा हो ll 2 ll
चंदन घसि मृगमद मिलाय के भोजन भवन लिपाये है l
विविध सुगंध कपूर आदि दे रचना चौक पुराये हो ll 3 ll
मंडप छायो कमल कोमल दल सीतल छांहु सुहाई हो l
आसपास परदा फूलनके माला जाल गुहाई हो ll 4 ll....अपूर्ण

इसके अतिरिक्त शयन तक विवाह के ही कीर्तन गाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

दिन दुल्है मेरो कुंवर कन्हैया l 
नित उठ सखा सिंगार बनावत नितही आरती उतारत मैया ll 1 ll
नित उठ आँगन चंदन लिपावे नित ही मोतिन चौक पुरैया l
नित ही मंगल कलश धरावे नित ही बंधनवार बंधैया ll 2 ll
नित उठ व्याह गीत मंगलध्वनि नित सुरनरमुनि वेद पढ़ैया l
नित नित होत आनंद वारनिधि नित ही ‘गदाधर’ लेत बलैया ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज लाल रंग के आधारवस्त्र (Base Fabric) पर मोरछल करती एवं चँवर डुलाती गोपियों की ज़री के ज़रदोज़ी के काम (Work) से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया पर लाल रंग की एवं चरणचौकी पर हरे रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज सुनहरी लाल ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं एवं केसरी मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. सुनहरी ज़री के मोजाजी भी धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – प्रधानतया हीरा, माणक, पन्ना तथा जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर सुनहरी लाल ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर हीरा को सेहरा, दो तुर्री, मोती की लूम एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. सेहरा पर हीरा की चोटी दायीं ओर धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में हीरा, पन्ना, माणक और मोती के हार, दुलड़ा आदि उत्सववत धराये जाते हैं. गुलाबी एवं पीले पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं. 
पट काशी का गोटी राग रंग के आते हैं.
आरसी चार झाड़ की दिखाई जाती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के शृंगार सेहरा एवं श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं और शयन दर्शन हेतु छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर टिका एवं सिरपेच एवं लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Wednesday, 25 November 2020

व्रज - कार्तिक शुक्ल द्वादशी(प्रथम) देव प्रबोधनी,एकादशी व्रत

व्रज - कार्तिक शुक्ल द्वादशी(प्रथम) देव प्रबोधनी,एकादशी व्रत
Thursday, 26 November 2020

"देव दिवारी शुभ एकादशी" की खूब खूब बधाई

देव दिवारी शुभ एकादशी,
हरी प्रबोध कीजे हो आज।।
निंद्रा तजो उठो हो गोविंद,
सकल विश्र्व हित काज।।१।।
घर घर मंगल होत सबनके,
ठौर ठौर गावत ब्रिजनारी।।
"परमानंद दास" को ठाकुर,
भक्त हेत लीला अवतारी।।२।।

देव प्रबोधिनी एकादशी (देव-दीवाली)

विशेष – देवशयनी एकादशी के चार माह पश्चात आज देव प्रबोधिनी एकादशी है. आज से शीतकालीन सेवा प्रारंभ होगी जिससे सेवाक्रम में कई परिवर्तन होते हैं.

आज से बाघम्बर, मुकुट वस्त्र व झारीजी के ढकना नियम से आते हैं. 
शीत के कारण अब से प्रभु को पुष्प छड़ी व पुष्प के छोगा नहीं धराये जाते.

आज से प्रतिदिन प्रभु को वस्त्रों के भीतर रुई के आत्मसुख का वागा धराये जाते हैं.
मैंने विजयदशमी के दिन भी बताया था कि विजयदशमी से प्रतिदिन प्रभु को सामान्य वस्त्रों के भीतर आत्मसुख के वागा धराये जाते हैं. 
आत्मसुख के वागा विजयदशमी से विगत कल तक (मलमल के) व आज देवप्रबोधिनी एकादशी से माह शुक्ल चतुर्थी तक (शीत वृद्धि के अनुसार रुई के) धराये जायेंगे.

आज से ही प्रभु के श्रीचरणों में मोजाजी धराने प्रारंभ हो जाते हैं जो कि श्रीजी के पाटोत्सव के दिन तक धराये जायेंगे.

इसी प्रकार राजभोग सरे पश्चात उत्थापन तक प्रभु सुखार्थ सम्मुख में निज मंदिर की धरती पर लाल रंग की रुईवाली पतली रजाई बिछाई जाती है. इसे ‘तेह’ कहा जाता है.

एक अंगीठी (सिगड़ी) निज मंदिर में प्रभु के सम्मुख मंगला से राजभोग तक व उत्थापन से शयन तक रखी जाती है.

श्रीजी का सेवाक्रम - पर्व होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी की मेढ़ से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
गादीजी, खंड आदि मखमल के आते हैं. गेंद, दिवाला चौगान सभी सोने के आते हैं.
चारों दर्शनों (मंगला, राजभोग, संध्या-आरती व शयन) में आरती थाली में की जाती है. 
प्रभु की झारीजी सारे दिन यमुना जल से भरी जाती हैं.

शीत प्रारंभ हो गयी है अतः आज से डोलोत्सव तक मंगला में श्रीजी को प्रतिदिन दूधघर में सिद्ध बादाम का सीरा (हलवा) का डबरा अरोगाया जाता है. आज से प्रभु को प्रतिदिन गुड का कटोरा भी अरोगाया जाता है. 

प्रभु को मंगला दर्शन पश्चात चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

नियम के सुनहरी ज़री के चाकदार वागा व श्रीमस्तक पर जड़ाव की कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ धरायी जाती है.  

उत्सव होने के कारण आज प्रभु को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मेवाबाटी और दूधघर में सिद्ध केशरयुक्त बासोंदी की हांडी का अरोगायी जाती है. राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता आरोगाया जाता है. 
सखड़ी में मीठी सेव व श्याम-खटाई अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

जाको वेद रटत ब्रह्मा रटत शम्भु रटत शेष रटत,
नारद शुक व्यास रटत पावत नहीं पाररी l
ध्रुवजन प्रह्लाद रटत कुंती के कुंवर रटत,
द्रुपद सुता रटत नाथ अनाथन प्रति पालरी ll 1 ll
गणिका गज गीध रटत गौतम की नार रटत,
राजन की रमणी रटत सुतन दे दे प्याररी l
‘नंददास’ श्रीगोपाल गिरिवरधर रूपजाल,
यशोदा को कुंवर प्यारी राधा उर हार री ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज श्याम मखमल के आधार वस्त्र पर विद्रुम के पुष्पों के जाल के सुन्दर भारी ज़रदोज़ी काम (Work) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी के ऊपर लाल रंग की, तकिया के ऊपर मेघश्याम रंग की ज़री के कामवाली एवं चरणचौकी के ऊपर हरे मखमल की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज सुनहरी ज़री का सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से ही सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका रुपहली ज़री का श्रीमस्तक पर कुल्हे व चरणारविन्द में लाल रंग के जड़ाऊ मोजाजी (गोकुलनाथजी के) धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) उत्सव वत भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा की प्रधानता के स्वर्ण आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर सुनहरी ज़री की जडाऊ कुल्हे (गोकुलनाथजी के) के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. उत्सव की हीरा की चोटी (शिखा) बायीं ओर धरायी जाती है. 
स्वर्ण का जड़ाव का चौखटा पीठिका पर धराया जाता है. 
श्रीकंठ में हीरा, पन्ना, माणक व नीलम के हार, माला आदि धराये जाते हैं. कस्तूरी, कली की माला धरायी जाती है.  
श्वेत पुष्पों की लाल एवं हरे पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उत्सव का एवं गोटी जड़ाऊ की आती हैं.

श्रीजी को उत्थापन समय फलफूल के साथ अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर तले हुए बीज-चालनी के सूखे मेवा अरोगाये जाते हैं. 

आज से डोलोत्सव तक प्रतिदिन संध्या-आरती समय श्रीजी को रतालू की नींबू, नमक व काली मिर्च युक्त चटनी व पिण्डखजूर (बीज निकाल कर उसके स्थान पर घी भरकर) की डबरिया अरोगायी जाती है. 

आरती दर्शन के उपरांत श्रृंगार बड़े किये जाते हैं. जडाव की कुल्हे व मोजाजी बड़े कर श्रीमस्तक पर सुनहरी ज़री की कुल्हे व मोजाजी धराये जाते हैं. श्रीकंठ के श्रृंगार छेड़ान के (छोटे) धराये जाते हैं और श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा नहीं धराये जाते.

Tuesday, 24 November 2020

व्रज - कार्तिक शुक्ल एकादशी

व्रज - कार्तिक शुक्ल एकादशी 
Wednesday,25 November 2020

आगम के शृंगार

श्रीजी में देवोत्थापन शुभ भद्रारहित समय के अनुसार प्रातः मंगला पश्चात अथवा सायंकाल उत्थापन पश्चात किया जाता है. 
 भद्रावास 25 नवम्बर दोपहर 3.54 से 26 नवम्बर सुबह  5 बजकर 10 मिनिट तक होने से देवोत्थापन इसके पश्चात होगा अतः एकादशी का व्रत कल कार्तिक शुक्ल द्वादशी (गुरुवार, 26 नवम्बर 2020) को एवं देवोत्थापन शृंगार के दर्शन में होगा इस लिये आज श्रीजी को  उत्सव के एक दिन पूर्व धराये जाने वाले आगम के लाल-पीले वस्त्र व मोर चंद्रिका का हल्का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग :सारंग)

अनत न जैये पिय रहिये मेरे ही महल l
जोई जोई कहोगे पिय सोई सोई करूँगी टहल ll१ll
शैय्या सामग्री बसन आभूषण सब विध कर राखूँगी पहल l
चतुरबिहारी गिरिधारी पिया की रावरी यही सहल ll२ll

साज – आज श्रीजी में श्याम आधारवस्त्र पर खण्डों में रूपहरि कूदती गायों के कशीदा वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल एवं चरणचौकी के ऊपर हरी बिछावट की जाती है.चौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की ज़री पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा एवं पटका धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पिले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान के (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.पन्ना एवं सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल ज़री चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर सिरपैंच, उसके ऊपर-नीचे मोती की लड़, नवरत्न की किलंगी, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में पन्ना के कर्णफूल की एक जोड़ी धराये जाते हैं. 
पन्ना की चार मालाजी धरायी जाती है.
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हारे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी सोना की छोटी आती है.
आरसी शृंगार में छोटी सोना की एवं राजभोग में बटदार दिखाई जाती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं और शयन दर्शन हेतु छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.
अनोसर में चीरा बड़ा करके छज्जेदार पाग धरायी जाती हैं.

मोर पंख

मोर पंख

सारे देवताओं में सबसे ज्यादा श्रृंगार प्रिय हैं भगवान कृष्ण। उनके भक्त हमेशा उन्हें कपड़ों और आभूषणों से लादे रखते हैं। कृष्ण गृहस्थी और संसार के देवता हैं। कई बार मन में सवाल उठता है, कि तरह-तरह के आभूषण पहनने वाले कृष्ण मोर-मुकुट क्यों धारण करते हैं ?

उनके मुकुट में हमेशा मोर का ही पंख क्यों लगाया जाता है ? इसका पहला कारण तो यह है, कि मोर ही अकेला एक ऐसा प्राणी है, जो ब्रह्मचर्य को धारण करता है, जब मोर प्रसन्न होता है तो वह अपने पंखो को फैला कर नाचता है, और जब नाचते-नाचते मस्त हो जाता है, तो उसकी आँखों से आँसू गिरते हैं और मोरनी इन आँसूओं को पीती है और इससे ही गर्भ धारण करती है, मोर में कही भी वासना का लेश भी नही है।

जिसके जीवन में वासना नहीं, भगवान उसे अपने शीश पर धारण कर लेते हैं। वास्तव में श्री कृष्ण का मोर मुकुट कई बातों का प्रतिनिधित्व करता है, यह कई तरह के संकेत हमारे जीवन में लाता है। अगर इसे ठीक से समझा जाए तो कृष्ण का मोर-मुकुट ही हमें जीवन की कई सच्चाइयों से अवगत कराता है। 

मोर का पंख अपनी सुंदरता के कारण प्रसिद्ध है। मोर मुकुट के जरिए श्रीकृष्ण यह संदेश देते हैं कि जीवन में भी वैसे ही रंग है जैसे मोर के पंख में हैं। कभी बहुत गहरे रंग होते हैं यानी दु:ख और मुसीबत होती है तो कभी एकदम हल्के रंग यानी सुख और समृद्धि भी होती है। जीवन से जो मिले उसे सिर से लगा लें, सहर्ष स्वीकार कर लें।

तीसरा कारण भी है, दरअसल इस मोर-मुकुट से श्रीकृष्ण शत्रु और मित्र के प्रति सम भाव का संदेश भी देते हैं. बलराम जो शेषनाग के अवतार माने जाते हैं, वे श्रीकृष्ण के बड़े भाई हैं। वहीं मोर जो नागों का शत्रु है वह भी श्रीकृष्ण के सिर पर विराजित है। यही विरोधाभास ही श्रीकृष्ण के भगवान होने का प्रमाण भी है कि वे शत्रु और मित्र के प्रति सम भाव रखते हैं।

ऐसा भी कहते है कि राधा रानी के महलों में मोर थे और वे उन्हें नचाया करती थीं। जव वे ताल ठोकती तो मोर भी मस्त होकर राधा रानी जी के इशारों पर नाचने लग जाते थे। एक बार मोर मस्त होकर नाच रहे थे कृष्ण भी वहाँ आ गए और नाचने लगे तभी मोर का एक पंख गिरा तो श्यामसुन्दर ने झट उसे उठाया और राधा रानी जी का कृपा प्रसाद समझकर अपने शीश पर धारण कर लिया

Sunday, 22 November 2020

व्रज - कार्तिक शुक्ल नवमी

व्रज - कार्तिक शुक्ल नवमी
Monday, 23 November 2020

अक्षय नवमी

विशेष – आज के दिन त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था.
इस तिथी का कभी क्षय नहीं होता और आज के दिन किये गये पुण्य व कर्म का क्षय नहीं होता अतः आज की तिथी अक्षय नवमी कहलाती है. 
आज के दिन को आंवला नवमी भी कहा जाता है. आज आंवला व कुष्मांड अर्थात सफ़ेद पेठा (सफ़ेद कोला) का दान किया जाता है. 

पुष्टिमार्ग में आंवला भोग की वर्जना है अतः सभी पुष्टिमार्गीय मंदिरों में पेठा की सामग्रियां सिद्ध कर श्री ठाकुरजी को अरोगायी जाती है. 

श्रीजी का सेवाक्रम - श्रीजी में आज पूरे दिन की सेवा द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर की होती है अतः मंगला से शयन तक सभी समां में सेवा हेतु श्री विट्ठलनाथजी के मंदिर में खबर जाती है.
श्रीजी में आज के श्रृंगारी भी द्वितीय गृहाधीश श्री कल्याणरायजी व उनके परिवारजन होते हैं.

आज के दिन से जुड़ा हुआ एक प्रसंग आपसे साझा करना चाहूँगा जो की 
नित्यलीलास्थ श्री कृष्णरायजी से जुड़ा हुआ हैं.
प्रभु श्री विट्ठलनाथजी की कृपा से द्वितीय गृह अत्यन्त वैभवपूर्ण स्वरुप में था और तत्समय श्रीजी में अत्यधिक ऋण हो गया. 
जब आपको यह ज्ञात हुआ तब आपने अपना अहोभाग्य मान कर प्रभु सुखार्थ अपना द्रव्य समर्पित किया और प्रधान पीठ को ऋणमुक्त कराया.

आप द्वारा की गयी इस अद्भुत सेवा के बदले में श्रीजी कृपा से आपको कार्तिक शुक्ल नवमी (अक्षय नवमी) की श्रीजी की की पूरे दिन की सेवा और श्रृंगार का अधिकार प्राप्त हुआ था. 
आज भी प्रभु श्री गोवर्धनधरण द्वितीय गृह के बालकों के हस्त से अक्षय नवमी के दिन की सेवा अंगीकार करते हैं.

आज श्रीजी प्रभु को अन्नकूट के दिन धराये वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं एवं गायों के चित्रांकन वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. हम ऐसा कह सकते हैं कि आज अन्नकूट का प्रतिनिधि का श्रृंगार धराया जाता है.

आज के पश्चात इस ऋतु में जल रंग से चित्रांकित पिछवाई नहीं आएगी.
आज प्रभु को पूरे दिन तुलसी की माला धरायी जाती है.

अक्षयनवमी का पर्व होने के कारण श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में दही की सेव (पाटिया) के लड्डू अरोगाये जाते हैं.

प्रभु को केशर, कस्तूरी व बूरे से युक्त पेठे के टूक अरोगाये जाते हैं.

राजभोग की सखड़ी में केसरयुक्त पेठा अरोगाया जाता है. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

सोहत लाल लकुटी कर राती l
सूथन कटि चोलना अरुन रंग पीताम्बरकी गाती ll 1 ll
ऐसे गोप सब बन आये जो सब श्याम संगाती l
प्रथम गुपाल चले जु वच्छ ले असीस पढ़ात द्विज जाती ll 2 ll
निकट निहारत रोहिनी जसोदा आनंद उपज्यो छाती l
‘परमानंद’ नंद आनंदित दान देत बहु भांति ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में बड़ी गायों के अद्भुत चित्रांकन से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल रंग की एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सलीदार ज़री का सूथन, रुपहली फुलकशाही ज़री की चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका सुनहरी ज़री का धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र अमरसी (चंपाई) रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) दो जोड़ी (माणक व पन्ना) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – हीरा, माणक, पन्ना तथा जड़ाव सोने के अन्नकूट की भांति आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर रुपहली फुलकशाही ज़री की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, लाल ज़री का गौ-कर्ण, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. चोटीजी बायीं ओर धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में टोडर व त्रवल दोनों धराये जाते हैं. कस्तूरी, कली आदि सभी माला धरायी जाती हैं.
गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (हीरा व स्वर्ण के) धराये जाते हैं.
पट नित्य का, गोटी जडाऊ व आरसी (दर्पण) सोने की व अन्य दर्शनों में पीले खंड की होती है.

संध्या-आरती दर्शन में तुलसी की गोवर्धन-माला (कन्दरा पर) धरायी जाती है.
प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृगार संध्या-आरती उपरांत बड़े (हटा) कर शयन समय छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर कुल्हे होती है अतः लूम, तुर्रा नहीं धराये जाते हैं. 
प्रातः की पिछवाई बड़ी कर फुलकशाही ज़री की पिछवाई आती है. 

शयनभोग की सखड़ी में पेठा-वड़ी का शाक एवं केसर युक्त पेठा अरोगाया जाता है.

गोपाष्टमी

गोपाष्टमी

नंदराजकुमार प्रभु प्रथम वार बन में गौचारण को पधारे सो उत्सव गोपाष्टमी है। गौचारण लीला नित्य लीला है। अष्टछाप महानुभावो ने अपनी रचनाओं में यह लीला का सविस्तृत वर्णन किया है।

"दिनपरिक्षये नीलकुन्तलै-
र्वनरूहाननं बिभ्रदावृतम्।
धनरजस्वलं दर्शयन् मुहु-
र्मनसि नः स्मरं वीर यच्छसि।।"

श्रीगोपीगीत" के बारहवें श्लोक में वर्णित इस लीला को महानुभाव चतर्भुजदास जी ने अपने इस आवनी के पद में प्रकट किया हैं :--

लटकत चलत जुवतीन सुखदानी।
संध्या समे सखामंडल में सोभित तन गौरज लपटानी।।
मोरमुकुट गुंजा पीयरो पट मुख मुरली कूजत मृदु बानी।
'चतुर्भुजप्रभु' गिरिधारी आये बनतें, लै आरती वारत नंदरानी।।

प्रस्तुत चित्र में श्रीचतुर्भुजदासजी कृत इसी आवनीके पद अंतर्गत लीला के तादृश दर्शन हो रहे हैं...!!!

શ્રીયમુનાજી

શ્રીયમુનાજી

હે સૂર્યસૂતા યમુને મૈયા! અમારું ધ્યાન તમારાં ચરણોમાં લાગેલું રહો. આપના પતિ પ્રભુ સ્વયં છે. આપના માતા સંજ્ઞાદેવી છે, આપના પિતા આધિદૈવિક સૂર્યદેવ છે, અને આપના વીરા ધર્મરાજ શ્રીયમદેવ છે. પરંતુ આપ શ્રી પાષાણોમાંથી ઊછળતાં-કૂદતાં, સાત-સાત સમુદ્રોને ભેદીને ભૂતલ પર અવતરીત થયા છો અને  ભૂતલ પર પાલક પિતા પર્વતરાય હિમાલયના કલિંદ શિખર પર જન્મીને કાલિંદી બન્યાં છો. ઊછળતી કૂદતી કન્યા જેમ વિલાસપૂર્ણ આનંદિત ગતિએ પતિનાં ઘર તરફ જાય તેમ આપે પણ કાલિંદી બન્યાં બાદ હીમવાન પિતા કલિંદની ગોદ છોડીને વ્રજ તરફ પ્રયાણ કર્યું છે. પરમપિતા બ્રહ્માજી આપનું ધ્યાન ધરે છે. વેદ-પુરાણ ભણતા પંડિતો, યોગી, જતિ, જોગીઓ, અને સંન્યાસી સૌ આપના ગુણગાનમાં ગાતા કહે છે કે જેમ ધરતી પર રેવાલ અર્થાત અશ્વ ચાલે, તેમ આપ વ્રજની ભૂમિ તરફ પધારી રહ્યાં છો. જેની લહેરોમાં મધુસૂદન (ભ્રમરો અને અહીં ભ્રમર રૂપી શ્રી બાલકૃષ્ણ પોતે પણ) ગુંજારવ કરે છે, એવાં શ્રીયમુનાજી…. આપનો જય થાઓ શ્રી શ્યામસુંદર પણ જેને આધીન છે તેવા હે શ્રીયમુને મૈયા આપ સૌનું કલ્યાણ કરો. શ્રી સૂરદાસજી આ પદ દ્વારા કહે છે કે સદાયે ભક્તોનું કલ્યાણ કરનારી એવી શ્યામસ્વરૂપા શ્રીયમુનાજીનું શરણ મે ગ્રહણ કર્યું છે.

Saturday, 21 November 2020

व्रज - कार्तिक शुक्ल अष्टमी

व्रज - कार्तिक शुक्ल अष्टमी
Sunday, 22 November 2020

आज प्रभु के प्रथम गौचारण के मनमोहने रूप को निहार कर ह्रदय में आत्मसात करते हुए गोपाष्टमी के दर्शन का आनंद ले

गोपाष्टमी

विशेष – आज के दिन बालक नन्दकुमार पहली बार गौ-चारण हेतु वन में पधारे थे. आज से ही प्रभु श्रीकृष्ण को गोप (ग्वाल) का दर्ज़ा मिला था. इस भाव से आज का उत्सव गोपाष्टमी कहलाता है. गोपगण गायों की अष्टांग योग से सेवा करते हैं जिससे अष्टमी की तिथी को गौ-पूजन कर प्रभु गौ-चारण करने पधारे थे.
पुष्टिमार्ग ही ऐसा मार्ग अथवा संप्रदाय है जिसमें गौ-पालन, गौ-क्रीड़न, गौ-संवर्धन आदि होते हैं और गौ-सेवा प्रभु की सेवा की भांति की जाती है. 
व्रज में प्रभु श्रीकृष्ण की समस्त जीवन क्रिया गौ-चारण में ही हुई तभी प्रभु को गोपाल कृष्ण भी कहा जाता है.

श्री महाप्रभुजी भी गौ-सेवा के प्रति पूर्णतः समर्पित थे. श्रीजी ने जब गाय मांगी तब आपश्री अपने आभूषण बेच कर प्रभु के लिए गाय लाये. आज भी श्रीजी की गौशाला में लगभग 2,500 से अधिक गौधन का लालन-पालन होता है. 

प्रभु गायों के बिना एक क्षण भी नहीं रहते. आज वैष्णव विशेष रूप से गौशाला जाकर गायों को चारा, घांस, लड्डू आदि खिलाते हैं. 

आज के दिन उत्थापन उपरांत गौशाला में पाडों (भैंसों) की भिड़ंत करायी जाती है जिसमें हजारों की संख्या में नगरवासी गौशाला में एकत्र हो कर पाडों (भैंसों) की भिड़ंत का आनंद लेते हैं. आज की भिड़ंत के लिए ग्वालबाल कई माह पूर्व से पाडों (भैंसों) को अच्छी खुराक खिला कर तैयार करते हैं. 

आज श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी में नहीं परन्तु अन्य निधि स्वरूपों व वैष्णव मंदिरों में कुंडवारा का मनोरथ होता है. प्रभु गौ-चारण को पधारें तब सभी ग्वाल-बालों के साथ भोग अरोग कर पधारते हैं इस भाव से कुंडवारा का भोग अरोगाया जाता है. 

श्रीजी का सेवाक्रम – गोपाष्टमी का पर्व होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
आज सभी समय यमुना जल की झारीजी भरी जाती हैं. दो समां (राजभोग एवं संध्या आरती) की आरती थाली में की जाती है.

मंगला दर्शन उपरांत प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

पिछवाई श्याम आधारवस्त्र पर खण्डों में कशीदे की श्वेत गायों की आती है.  
गौचारण के भाव से आज प्रभु को नियम का मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.

मुकुट के इस श्रृंगार के विषय में मैं पहले भी कई बार बता चुका हूँ कि प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है. 

इस उपरांत निकुँज लीला में भी मुकुट धराया जाता है. मुकुट उद्बोधक है एवं भक्ति का उद्बोधन कराता है.

अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी का पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता.

जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है. 

जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं.

जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है. 

आज इस ऋतु में मुकुट-काछनी का श्रृंगार अंतिम बार धराया जायेगा. 
शीतकाल में मान आदि की लीलाएँ होती है परन्तु रासलीला नहीं होती अतः मुकुट नहीं धराया जाता. 

आज से तीन दिन तक आठों समय में गौ-चारण लीला के कीर्तन गाये जाते हैं.
वस्त्र में काछनी लाल व हरी छापा की धरायी जाती है.

गोपाष्टमी के कारण आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (जलेबी-इलायची) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता भोग लगाया जाता है. सखड़ी में केशरयुक्त पेठा, मीठी सेव व दहीभात अरोगाये जाते हैं व संजाब (गेहूं के रवा) की खीर अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

गोपाल माई कानन चले सवारे l
छीके कांध बाँध दधि ओदन गोधन के रखवारे ll 1 ll
प्रातसमय गोरंभन सुन के गोपन पूरे श्रृंग l
बजावत पत्र कमलदल लोचन मानो उड़ चले भृंग ll 2 ll
करतल वेणु लकुटिया लीने मोरपंख शिर सोहे l
नटवर भेष बन्यो नंदनंदन देखत सुरनर मोहे ll 3 ll
खगमृग तरुपंछी सचुपायो गोपवधू विलखानी l
विछुरत कृष्ण प्रेम की वेदन कछु ‘परमानंद’ जानी ll 4 ll

साज – आज श्रीजी में श्याम आधारवस्त्र पर खण्डों में गायों के कशीदा वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल एवं चरणचौकी के ऊपर हरी बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग का रेशमी सूथन, मेघश्याम दरियाई वस्त्र की चोली एवं हरे छापा की बड़ी काछनी  व लाल छापा की छोटी काछनी धरायी जाती है. लाल दरियाई वस्त्र का रास-पटका (पीताम्बर) धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (चिकने लट्ठा) के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे की प्रधानता सहित पन्ना, माणक एवं जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हीरा की टोपी पर सोने का जड़ाव का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. आज (चोटी) नहीं धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में माला, दुलड़ा हार आदि धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी की माला धरायी जाती है.
पीले एवं लाल पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट काशी का व गोटी सोना की कूदते हुए बाघ बकरी की आती है.
आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की डांडी की दिखाई जाती हैं.

आज गोपाष्टमी से फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा (होलिका दहन) तक संध्या-आरती में प्रतिदिन श्रीजी को शाकघर में विशेष रूप से सिद्ध गन्ने के रस की एक डबरिया (छोटा बर्तन) अरोगायी जाती है. इस अवधि में कुछ बड़े उत्सवों पर इस रस में कस्तूरी भी मिश्रित होती है.

आज संध्या-आरती दर्शन में छोटा वैत्र श्रीहस्त में धराया जाता है.

दशहरा के दिन से प्रभु के सम्मुख काष्ट (लकड़ी) की गौमाता आती है जो आज संध्या-आरती दर्शन उपरांत विदा होती है.  

प्रातः धराये मुकुट, टोपी और दोनों काछनी संध्या-आरती दर्शन उपरांत बड़े कर दिए जाते हैं और शयन दर्शन में मेघश्याम चाकदार वागा धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लाल कुल्हे व तनी धराये जाते हैं. आभरण छेड़ान के (छोटे) धराये जाते हैं.

Tulsi vivah mandap

Tulsi vivah mandap

Thursday, 19 November 2020

व्रज - कार्तिक शुक्ल षष्ठी

व्रज - कार्तिक शुक्ल षष्ठी 
Friday, 20 November 2020

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को फ़िरोज़ी रंग की  ज़री पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

ये इन्द्रमान भंग के दिन है अतः कार्तिक शुक्ल तृतीया से अक्षय नवमी तक इन्द्रमान भंग के कीर्तन गाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : धनाश्री)

कान्हकुंवर के कर पल्लव पर मानो गोवर्धन नृत्य करे ।
ज्यों ज्यों तान उठत मुरली में त्यों त्यों लालन अधर धरे ।।१।।
मेघ मृदंगी मृदंग बजावत दामिनी दमक मानो दीप जरे ।
ग्वाल ताल दे नीके गावे गायन के संग स्वरजु भरे ।।२।।
देत असीस सकल गोपीजन बरषाको जल अमीत झरे ।
यह अद्भुत अवसर गिरिधरको नंददास के दुःख हरे ।।३।।

साज – श्रीजी में आज फ़िरोज़ी रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज फ़िरोज़ी रंग की  ज़री पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. माणक एवं सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर फ़िरोज़ी रंग की ज़री की  गोल पाग के ऊपर सिरपैंच और क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 

श्रीकर्ण में कर्णफूल की एक जोड़ी धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट फ़िरोज़ी व गोटी चाँदी की आती है.

प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृगार संध्या-आरती उपरांत बड़े (हटा) कर शयन समय छोटे (छेड़ान के) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर चीरा पर लूम तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं

हटरी का रसात्मक भाव

हटरी का रसात्मक भाव

श्री गोकुलनाथजी एवं श्री हरिरायचरण कृत भावभावना में 'हटरी' का रसात्मक भाव स्पष्ट किया गया है....तदनुसार हटरी रसोद्दीपन का भाव है...

हटरी लीला में जब व्रजभक्तिन सौदा लेने को आती हैं...तो वहाँ अनेक प्रकार से हास्यादिक, कटाक्षादिक आश्लेशादिक करके भाव उद्दीपन किया जाता है....इस उद्दीपनलीला का संकेत श्रीहरिरायचरण भी स्वरचित पद के माध्यम से देते हैं----

गृह-गृह ते गोपी सब आई, भीर भई तहाँ ठठरी।

तोल-तोल के देत सबनको भाव अटल कर राख्यो अटरी।।

'रसिक' प्रीतम के नयनन लागी,श्रीवृषभान कुँवरि की।।

'हटरी' शब्द का अर्थ बताते हुए श्रीहरीरायचरण आज्ञा करे है की....

"हटरी" =  हट + री

अर्थात एक सखी दूसरी सखी को कह रही है कि....

तू हट री अब मोंकू प्रभु के लावण्यामृत को पान रसास्वादन करिबे दे

दीपदान दे हटरी बैठे 

नन्द बाबा के साथ ।।

नाना विध के मेवा मिठाई 

बाटत अपुने हाथ ।।

विविध सिंगार पहर पट 

भूषण और चन्दन दिये माथ ।

नन्द दास संग जाके 

आगे गिरि गोवर्धननाथ ।।

सादर प्रणाम।जय श्रीकृष्णा।।

Wednesday, 18 November 2020

U તિલકનો ભાવ U

U  તિલકનો ભાવ  U

કદાચ ભારત સિવાય બીજે ક્યાં પણ મસ્તક તિલક કે ચાંદલો કરવાની પ્રથા નથી, આ પ્રથા અત્યંત પ્રાચીન  છે. આ તિલક કે ચાંદલાનું અલૌકિક, મનોવૈજ્ઞાનિક અને વૈજ્ઞાનિક તથ્યોની દ્રષ્ટિએ ઘણું મહત્વ છે.  એવી માન્યતા છે કે મસ્તકના મધ્યમાં વિષ્ણુભગવાનનો વાસ હોય છે આથી તિલક એ સ્થાન પર કરવામાં આવે છે. તિલક કે ચાંલ્લો કરવાથી ઉત્તેજના, ક્રોધ પર અંકુશ રહે છે.

વૈષ્ણવના કપાળ પર 'તિલક' અથવા 'કુમકુમ' પ્રતિક કે સંકેત છે. તેને ધારણ કરનાર જીવે પોતાની જાતને પ્રભુના ચરણકમલમાં સમર્પિત કરી દીધી છે. 'તિલક' નું U નિશાન ખરેખર શ્રીકૃષ્ણના ચરણકમળની રુપરેખા સમાન છે. મસ્તકએ શરીરનો સૌથી વધુ ઉંચ્ચો ભાગ છે. તેથી શ્રીકૃષ્ણ ભકતના જીવનમાં સર્વોચ્ચ સ્થાન ધરાવે છે.

શ્રીઆચાર્યચરણે તત્ત્વાર્થદીપ નિબંધ ગ્રંથના સર્વનિર્ણય પ્રકરણમાં તિલક અંગે આજ્ઞા કરેલ છે. શ્રીઆચાર્યચરણ U આકાર વાળું  ઉર્ધ્વપુષ્ડ્ર તિલક ધારણ કરતા.

તિલક ધારણ કરવાનો ભાવ
(૧) પ્રભુના ચરણકમલમાં જયારે ભકતોને રતિ અને વ્યસન થાય ત્યારે તે જીવને તિલક કરવાની ઇચ્છા જાગૃત થાય છે.
(૨) તિલક કરવાથી આપણું અલૌકિક વ્યક્તિત્વ પ્રભાવશાળી બને છે. આ ઉપરાંત તિલક કરવાથી મનોવૈજ્ઞાનિક અસર થાય છે.
(૩) કપાળ પર  નિયમિતરુપે તિલક  કરવાથી મગજમાં શાંતિનો અહેસાસ થાય છે.
(૪) જે જીવ તિલક કરે છે તે પ્રભુનો કૃપાપાત્ર જીવ છે તેવું પ્રતિત થાય છે.
(૫) તિલક કરવાથી આપણે પ્રભુના શરણે ગયા છે તેવું સતત યાદ આવે છે.
(૬) કુંકમ શુકનવંતુ છે, તેથી તિલક કરનારને સદાય શુભ મૂહૂર્ત અને શુભ ચોઘડિયું રહે, તેને કોઇ અમંગળ આવતું જ નથી.

વૈષ્ણવી તિલકનો ઉલ્લેખ અને મહત્વ અનેક શાસ્ત્રો તેમજ ગ્રંથોમાં જોવા મળે છે. ગર્ગ સંહિતા અનુસાર જો જીવ પ્રતિદિન ગોપી ચંદનનું તિલિક ધારણ કરે છે તેને એક હજાર અશ્વમેઘ યજ્ઞો તથા રાજ્સૂય યજ્ઞનું ફલ મળે છે.

Tuesday, 17 November 2020

व्रज - कार्तिक शुक्ल चतुर्थी

व्रज - कार्तिक शुक्ल चतुर्थी 
Wednesday, 18 November 2020

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को पीली ज़री पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. ठाड़े वस्त्र स्याम रंग के धराये जाते हैं.
आज से प्रभु सम्मुख के गादी, चरणचौकी खंडपाट आदि की खोल पर से लाल मख़मल  के खोल उतार कर सफ़ेदी के खोल आते हैं.

ये इन्द्रमान भंग के दिन है अतः कार्तिक शुक्ल तृतीया से अक्षय नवमी तक इन्द्रमान भंग के कीर्तन गाये जाते हैं. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

ब्रजजन लोचन ही को तारो ।
सुन यशोमति तेरो पूत सपुतो कुल दीपक उजियारो ।।१।।
धेनु चरावत जात दूर तब होत भवन अति भारो ।
घोष सजीवन मुर हमारो छिन इत ऊत जिन टारो ।।२।।
सात द्योस गिरिराज धर्यो कर सात बरसको बारो ।
गोविंद प्रभु चिरजियो रानी तेरो सुत गोप वंश रखवारो ।।३।।

साज – आज श्रीजी में पिले रंग की ज़री की रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सलीदार ज़री पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र हारे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर पीली ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर सिरपैंच, क़तरा तथा गोल चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, स्याम मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट पिला व गोटी मीना की आती है.

प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृगार संध्या-आरती उपरांत बड़े (हटा) कर शयन समय छोटे (छेड़ान के) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर चीरा पर लूम तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

यम द्वितीया

आज का दिन यम द्वितीया कहलाता है. ऐसा कहा जाता है कि आज के दिन श्री यमुनाजी ने अपने भाई यम को तिलक कर भोजन कराया था.
सुभद्रा बहन भी आज प्रभु श्रीकृष्ण व बलदाऊजी को तिलक करती है.
भारतीय संस्कृति में आज के दिन भाई बहन के घर जाते हैं और बहन उन्हें तिलक कर भोजन कराती है. इस प्रकार रीती करने से भाई सुख-समृद्धिशाली बनता है व बहन को भी मनवांछित फल की प्राप्ति होती है.

आज दूज भैया की कहियत, कर लिये कंचन थाल के l
करो तिलक तुम बहन सुभद्रा, बल अरु श्रीगोपाल के ll १ ll
आरती करत देत न्यौछावर, वारत मुक्ता माल के l
‘आशकरण’ प्रभु मोहन नागर, प्रेम पुंज ब्रजबाल के ll २

Monday, 16 November 2020

व्रज - कार्तिक शुक्ल तृतीया (द्वितीया क्षय)

व्रज - कार्तिक शुक्ल तृतीया (द्वितीया क्षय) 
Tuesday, 17 November 2020

विशेष – आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, मौसम की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है.

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को बैगनी रंग की ज़री पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. पटका मलमल का धराया जायेगा.

ये इन्द्रमान भंग के दिन है अतः कार्तिक शुक्ल तृतीया से अक्षय नवमी तक इन्द्रमान भंग के कीर्तन गाये जाते हैं. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : धनाश्री)

माधोजु राखो अपनी ओट ।
वे देखो गोवर्धन ऊपर उठे है मेघ के कोट  ।।१।।
तुम जो शक्रकी पूजा मेटी वेर कियो उन मोट  l
नाहिन नाथ महातम जान्यो भयो है खरे टे खोट ।।२।।
सात घौस जल वर्ष सिरानो अचयो एक ही घोट  l
लियो उठाय गरुवो गिरी करपर कीनो निपट निघोट  ।।३।।
गिरिधार्यो तृणावर्त मार्यो जियो नंदको ढोट  l
‘परमानन्द’ प्रभु इंद्र खिस्यानो मुकुट चरणतर लोट ।।४।।

साज – श्रीजी में आज बैगनी रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को बैगनी ज़री का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाडे वस्त्र पिले) रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर बैगनी ज़री की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
 पीले एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट बैगनी एवं गोटी मीना की आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ व श्रीमस्तक पर धराये श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Sanji સાંજી सांझी

Sanji
સાંજી
सांझी

Sunday, 15 November 2020

व्रज - कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा भाईदूज

व्रज - कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा भाईदूज
Monday, 16 November 2020

आज दूज भैया की कहियत, कर लिये कंचन थाल के l
करो तिलक तुम बहन सुभद्रा, बल अरु श्रीगोपाल के ll १ ll
आरती करत देत न्यौछावर, वारत मुक्ता माल के l
‘आशकरण’ प्रभु मोहन नागर, प्रेम पुंज ब्रजबाल के ll २ ll

भाईदूज, यम द्वितीया

विशेष – आज का दिन यम द्वितीया कहलाता है. ऐसा कहा जाता है कि आज के दिन श्री यमुनाजी ने अपने भाई यम को तिलक कर भोजन कराया था.
सुभद्रा बहन भी आज प्रभु श्रीकृष्ण व बलदाऊजी को तिलक करती है.
भारतीय संस्कृति में आज के दिन भाई बहन के घर जाते हैं और बहन उन्हें तिलक कर भोजन कराती है. इस प्रकार रीती करने से भाई सुख-समृद्धिशाली बनता है व बहन को भी मनवांछित फल की प्राप्ति होती है. 

उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
दिनभर सभी समय आरती थाली में की जाती है. बंटा, कुंजा, तकिया सब जडाऊ आते हैं.  

श्रीजी को आज नियम के लाल खीनखाब के चोली, सूथन, घेरदार वस्त्र धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर फुलक शाही ज़री का चीरा (ज़री की पाग) व पटका रुपहली ज़री का धराया जाता है.  

उत्सव भोग के रूप में गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से प्रभु को चाशनी वाले कसार के गुंजा व दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है. सखड़ी में मूंग की द्वादशी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में आगे के भोग धरकर श्रीजी को राजभोग की माला धरायी जाती है. झालर, घंटा, नौबत व शंख की ध्वनि के मध्य दण्डवत कर प्रभु को तिलक किया जाता है. 
प्रभु को बीड़ा व तुलसी समर्पित की जाती है. तदुपरांत विराजित सभी स्वरूपों को तिलक किया जाता है.
आटे की चार मुठियाँ वार के चून (आटे) की आरती की जाती है और न्यौछावर की जाती है. 
तदुपरांत पहले श्रीजी के मुखियाजी श्री तिलकायतजी को तिलक करते हैं और फिर श्री तिलकायतजी सभी उपस्थित सेवकों को तिलक करते हैं. 

बहन सुभद्रा के घर भोजन अरोगें इस भाव से प्रभु आज राजभोग अरोगते हैं.
भीतर तिलक व आरती होवें तब आशकरणदासजी द्वारा रचित निम्न कीर्तन गाया जाता है -

आज दूज भैया की कहियत, कर लिये कंचन थाल के l
करो तिलक तुम बहन सुभद्रा, बल अरु श्रीगोपाल के ll 1 ll
आरती करत देत न्यौछावर, वारत मुक्ता माल के l
‘आशकरण’ प्रभु मोहन नागर, प्रेम पुंज ब्रजबाल के ll 2 ll

भोग समय फीका के स्थान पर बीज-चालनी (घी में तले नमकीन सूखे मेवे व बीज) अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : धनाश्री)

अब न छांडो चरन कमल महिमा मैं जानी ।
सुरपति मेरो नाम धर्यो लोक अभिमानी ।।१।।
अबलों में नहि जानत ठाकर है कोई ।
गोपी ग्वाल राख लिये मेरी पत खोई ।।२।।
ऐरावत कामधेनुं गंगाजल आनी ।
हरि को अभिषेक कियो जयजय सुर बानी ।।३।।

राजभोग दर्शन –

साज – श्रीजी में आज लाल मखमल की सुरमा-सितारा की ज़री मोती के काम की, वृक्षावली के ज़रदोज़ी के काम वाली नित्य लीलास्थ श्री गोवर्धनलाल जी महाराज वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. तकिया के ऊपर मेघश्याम रंग की एवं गादी एवं चरणचौकी के ऊपर लाल मखमल की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की खीनख़ाब का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. बायीं ओर कटि (कमर) पर रुपहली ज़री की किनारी वाला लाल कटि-पटका (जिसका एक छोर आगे और एक बग़ल में) धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद रंग के चिकने लट्ठा के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती, विशेषकर पन्ना व सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. आज के दिन सदैव ऐसा छोटा श्रृंगार ही धराया जाता है. 
श्रीमस्तक पर सुनहरी फुलक शाही ज़री की पाग (चीरा) के ऊपर सिरपैंच के स्थान पर पन्ना, जिसके ऊपर नीचे मोती की लड़, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में पन्ना के कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगे पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी हीरा के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं. पट, गोटी जडाऊ व आरसी चार झाड की आती है.

प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृगार संध्या-आरती उपरांत बड़े (हटा) कर शयन समय छोटे (छेड़ान के) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर चीरा पर लूम तुर्रा धराये जाते हैं.

Saturday, 14 November 2020

આશ્રય નું પદ

આશ્રય નું પદ

યહ માંગો ગોપીજન વલ્લભ ||
માનુષ જન્મ ઔર હરિ સેવા વ્રજવસવો દીજે મોહી સુલભ(1)

શ્રીવલ્લભ કુલકો હો હું ચેરો વૈષ્ણેવ જન કો દાસ કહાવુ ||
શ્રીયમુનાજલ નિત પ્રતિ ન્હાવું મનકર્મ વચન કૃષ્ણ ગુણ ગાઉ (2)

શ્રીભાગવત શ્રવણ સૂનું નિત ઇન તજ ચિત કહું અનત ન જાઉં ||
પરમાનંદદાસ યહ માંગત નિત નિરખો કબ હું ન અઘાઉ (3)

ભાવાર્થ
પ્રભુ તેના ભક્તો ની ક્યારેય લૌકિક ગતિ થવા દેતા નથી. પ્રભુ તેના ભક્તો ના અલૌકિક મનોરથો પૂર્ણ કરે છે. આપણાં પ્રભુ સર્વજ્ઞ, સર્વ સામર્થ્યવાન છે. તેના ભક્ત ને શુ જોઈએ છે તે બધું જાણે છે. તેના ભક્તો તેની લૌકિક કામના પૂર્ણ કરવા પ્રભુ પાસે કાઈ માંગતા નથી.
પરમાનંદદાસજી સમજાવે છે કે આપણુ વૈષ્ણેવો નુ જીવન કેવું હોવું જોઈ એ તે સમજાવે છે. હે ગોપીજનવલ્લભ(ગોપીઓના વ્હાલા એવા શ્રીકૃષ્ણ )મને મનુષ્ય જન્મ આપજો તેજ સર્વ શ્રેષ્ઠ છે. વળી શ્રીવલ્લભપ્રભુ એ આપણાં ઉપર કૃપા કરી વૈષ્ણેવ બનાવ્યા નામ દીક્ષા અને બ્રહ્મસંબંધ આપ્યું. શરણાગતિ પૂર્વક સંપૂર્ણ સમર્પણ જીવન કેમ જીવવું તે માટે શ્રી વલ્લભે આપણી ઉપરપોતાનું સર્વસ્વ પ્રભુ પધરાવી આપ્યા. પ્રભુ ની સેવા-કથા જ મુખ્ય છે તે જ આપણો ધર્મ છે.
 
(ભગવદ્-રૂપ-સેવાર્થં તત્સૃષ્ટિ : નાન્યથા ભવેત્) ઠાકોરજી ની લીલા સ્થલી વ્રજ માં હું નિવાસ કરું. હું સદાય શ્રીવલ્લભ નો આશ્રય કરું, તેનો દાસ થઈ રહું, હું દાસ નો પણ દાસ બનું.દાસાનું દાસ બનું. જેથી મારા માં દીનતા પ્રકટ થાય.(વૃત્રા સુર પણ ભગવાન પાસે એજ માંગે છે, દાસ નો દાસ બનું) 
હું વ્રજ માં નિવાસ કરું. નિત્ય પ્રતિ યમુના મહારાણીજી ના સ્નાન, પાન કરું, અને મન,વચન અને કર્મ 
(કાયિક:- પાદ્સેવન,અર્ચન અને વંદન ભક્તિ. વાચિક:-શ્રવણ, કિર્તન અને સ્મરણ ભક્તિ. માનસિક:- દાસ્ય, સખ્ય અને આત્મનિવેદન ભક્તિ) થી શ્રીઠાકોરજી ની પ્રેમ પૂર્વક સેવા અને ગુણ ગાન કરું.
(શાસ્ત્રમ્ અવગત્ય મનો-વાગ-દેહૈ: કૃષ્ણ: સેવ્ય)એ મહાપ્રભુજી નો પૂર્ણ વિચાર છે.શ્રીમદ ભાગવદ્દ નું નિત્ય શ્રવણ કરું.શ્રીમદ્ ભાગવત ભગવાન નું નામાત્મક સ્વરૂપ છે. તેમાં ભગવાન ની દશવિધ લીલા ભરેલી છે. તેનું નિત્ય ભગવદીયો ના સંગ માં રહી શ્રવણ કરું.(નિવેદનન્તુ સ્મર્તવ્યં સર્વેથા તાદશૈર્ જનૈ) હે શ્રી વલ્લભ આપના અનુગ્રહ થી આવો અલૌકિક સત્સંગ પ્રાપ્ત થતો હોય તો મારે બીજે ક્યાંય જવું જ નથી. મારુ ચિત્ત સત્સંગ માં જ લાગેલું રહે.પરમાનંદદાસ કહે છે, હું આ માંગુ છું. હું મારા ઠાકુરજી ની સેવા કરું તેના દર્શન કરું, તેનાથી હું ક્યારેય તૃપ્ત ન થાઉં. (પુષ્ટિ માં તૃષ્ટિ નું શુ કામ છે. જો કૃષ્ણ ના કમલ મુખ ના દર્શન કરી સંતોષ માની લઉ તો તે પુષ્ટિ ભક્ત નથી. (અપૂર્ણ ક્ષુધા--કામ પુરુષાર્થ)વૃત્રાસુર પણ એજ માંગે છે. મને પ્રભુ ની સેવા અને સત્સંગ મલે અને જે ઘર માં બધા સાથે મળી સેવા-સત્સંગ કરતા હોય તેવા ભગવદીયો નુ સખ્ય મલે.પરમાનંદદાસજી એ આ કિર્તન માં આપણ ને પુષ્ટિમાર્ગીય કામપુરુષાર્થ સમજાવ્યો.

Friday, 13 November 2020

कान जगाई

कान जगाई

अन्नकूट महोत्सव के लिए चावल पधराना,  श्रीनवनीतप्रियाजी को शिरारहित पान की बीड़ी अरोगाना, गायों का पूजन, कानजगाई इत्यादि महोत्सव की सम्पूर्ण सेवा का निर्वाहन पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री व चि श्री विशाल बावाश्री करते हैं परंतु इस वर्ष महामारी प्रकोप के चलते महाराजश्री मुम्बई में ही विराजित हैं अतः महोत्सव की सम्पूर्ण सेवा सम्भवतया श्री मुखियाजी के द्वारा ही सम्पन्न होगी. यद्यपि आलेख में हुज़ूरश्री एवं बावाश्री का  ही उल्लेख है क्योंकि भले ही इस विकट परिस्तिथि में वे शशरीर उपस्तिथ ना हो लेकिन वे मानसिक रूप से यही हैं.)

श्री नवनीतप्रियाजी में सायं कानजगाई के व शयन समय रतनचौक में हटड़ी के दर्शन होते हैं. 

कानजगाई - संध्या समय गौशाला से इतनी गायें लायी जाती है कि गोवर्धन पूजा का चौक भर जाए. गायें मोरपंख, गले में घंटियों और पैरों में घुंघरूओं से सुशोभित व श्रृंगारित होती हैं. उनके पीठ पर मेहंदी कुंकुम के छापे व सुन्दर आकृतियाँ बनी होती है. 

ग्वाल-बाल भी सुन्दर वस्त्रों में गायों को रिझाते, खेलाते हैं. गायें उनके पीछे दौड़ती हैं जिससे प्रभुभक्त, नगरवासी और वैष्णव आनन्द लेते हैं.

गौधूली वेला में शयन समय कानजगाई होती है. श्री नवनीतप्रियाजी के मंदिर से लेकर सूरजपोल की सभी सीढियों तक विभिन्न रंगों की चलनियों से रंगोली छांटी जाती है. 

श्री नवनीतप्रियाजी शयन भोग आरोग कर चांदी की खुली सुखपाल में विराजित हो कीर्तन की मधुर स्वरलहरियों के मध्य गोवर्धन पूजा के चौक में सूरजपोल की सीढ़ियों पर एक चौकी पर बिराजते हैं. 

प्रभु को विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध केशर मिश्रित दूध की चपटिया (मटकी) का अरोगायी जाती है. 

चिरंजीव श्री विशालबावा कानजगाई के दौरान प्रभु को शिरारहित पान की बीड़ी अरोगाते हैं. 
श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के कीर्तनिया कीर्तन करते हैं व झालर, घंटा बजाये जाते हैं. 
पूज्य श्री तिलकायत महाराज गायों का पूजन कर, तिलक-अक्षत कर लड्डू का प्रशाद खिलाते हैं. गौशाला के बड़े ग्वाल को भी प्रशाद दिया जाता है. 

तत्पश्चात पूज्य श्री तिलकायत नंदवंश की मुख्य गाय को आमंत्रण देते हुए कान में कहते हैं – “कल प्रातः गोवर्धन पूजन के समय गोवर्धन को गूंदने को जल्दी पधारना.” गायों के कान में आमंत्रण देने की इस रीती को कानजगाई कहा जाता है.
प्रभु स्वयं गायों को आमंत्रण देते हैं ऐसा भाव है. इसके अलावा कानजगाई का 
एक और विशिष्ट भाव है कि गाय के कान में इंद्र का वास होता है और प्रभु कानजगाई के द्वारा उनको कहते हैं कि – “हम श्री गिरिराजजी को कल अन्नकूट अरोगायेंगे, तुम जो चाहे कर लेना.” सभी पुष्टिमार्गीय मंदिरों में अन्नकूट के एक दिन पूर्व गायों की कानजगाई की जाती है.

सारस्वतकल्प में श्री ठाकुरजी ने जब श्री गिरिराजजी को अन्नकूट अरोगाया तब भी इसी प्रकार कानजगाई की थी. 
श्री ठाकुरजी, नंदरायजी एवं सभी ग्वाल-बाल अपनी गायों को श्रृंगारित कर श्री गिरिराजजी के सम्मुख ले आये. श्रीनंदनंदन की आज्ञानुसार श्री गिरिराजजी को दूध की चपटिया (मटकी) का भोग रखा गया और बीड़ा अरोगाये गये. 

श्री गर्गाचार्यजी ने नंदबाबा से गायों का पूजन कराया था. तब श्री ठाकुरजी और नंदबाबा ने एक-एक गाय के कान में अगले दिन गोवर्धन पूजन हेतु पधारने को आमंत्रण दिया. 

इस प्रसंग पर अष्टसखाओं ने कई सुन्दर कीर्तन गाये हैं परन्तु समयाभाव के चलते उन सबका वर्णन यहाँ संभव नहीं है.

श्रीजी के शयन के दर्शन बाहर नहीं खुलते.

शयन समय श्री नवनीतप्रियाजी रतनचौक में हटड़ी में विराजित हो दर्शन देते हैं. 
हटड़ी में विराजने का भाव कुछ इस प्रकार है कि नंदनंदन प्रभु बालक रूप में अपने पिता श्री नंदरायजी के संग हटड़ी (हाट अथवा वस्तु विक्रय की दुकान) में बिराजते हैं और तेजाना, विविध सूखे मेवा व मिठाई के खिलौना आदि विक्रय कर उससे एकत्र धनराशी से अगले दिन श्री गिरिराजजी को अन्नकूट का भोग अरोगाते हैं.

रात्रि लगभग 9.00 बजे तक दर्शन खुले रहते हैं और दर्शन उपरांत श्री नवनीतप्रियाजी श्रीजी में पधारकर संग विराजते हैं.

श्री गुसांईजी, उनके सभी सात लालजी, व तत्कालीन परचारक महाराज काका वल्लभजी के भाव से 9 आरती होती है.
श्री गुसांईजी व श्री गिरधरजी की आरती स्वयं श्री तिलकायत महाराज करते हैं. 
अन्य गृहों के बालक यदि उपस्थित हों तो वे श्री तिलकायत से आज्ञा लेकर सम्बंधित गृह की आरती करते हैं और अन्य की उपस्थिति न होने पर स्वयं तिलकायत महाराज आरती करते हैं. 

काका वल्लभजी की आरती श्रीजी के वर्तमान परचारक महाराज गौस्वामी चिरंजीवी श्री विशालबावा करते हैं.   

आज श्रीजी में शयन पश्चात पोढावे के व मान के पद नहीं गाये जाते.
दिवाली की रात्रि शयन उपरांत श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी प्रभु लीलात्मक भाव से गोपसखाओं, श्री स्वामिनीजी, सखीजनों सहित अरस-परस बैठ चौपड़ खेलते हैं. 
अखण्ड दीप जलते हैं, चौपड़ खेलने की अति आकर्षक, सुन्दर भावात्मक साज-सज्जा की जाती है. 

दीप इस प्रकार जलाये जाते हैं कि प्रभु के श्रीमुख पर उनकी चकाचौंध नहीं पड़े. इस भावात्मक साज-सज्जा को मंगला के पूर्व बड़ाकर (हटा) लिया जाता है. 

इसी भाव से दिवाली की रात्रि प्रभु के श्रृंगार बड़े नहीं किये जाते और रात्रि अनोसर भी हल्के श्रृंगार सहित ही होते हैं. 

व्रज - कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी (दीपावली पर्व)

व्रज - कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी (दीपावली पर्व)
Saturday, 14 November 2020

यह दिवारी वरस दिवारी, तुमको नित्य नित्य आवो ।
नंदराय और जसोदारानी, अति सुख पूजही पावो ।।१।।  
पहले न्हाय तिलक गोरोचन,देव पितर पूजवो ।
 श्रीविट्ठलगिरिधरन संग ले गोधन पूजन आवो ।।२।।

दीपोत्सव, कानजगाई, हटड़ी

आज श्रीजी के आलोकिक मनमोहने रूप को निहार कर ह्रदय में आत्मसात करते हुए दीपावली के दर्शन का आनंद ले पोस्ट को पूरा पड़े

सभी वैष्णवजन को दीपावली एवं अन्नकूट उत्सव की ख़ूबख़ूब बधाई

विशेष – आज हमारे सर्वाधिक आनंद का दिन है. प्रभु प्रातः जल्दी उठकर सुगन्धित पदार्थों से अभ्यंग कर, श्रृंगार धारण कर खिड़क में पधारते हैं, गायों का श्रृंगार करते हैं, उनको खूब खेलाते हैं.

श्रीजी का सेवाक्रम - महोत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

शंखनाद प्रातः 4.15 बजे व मंगला दर्शन प्रातः लगभग 5.00 बजे खोले जाते हैं.
मंगला दर्शन उपरांत प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

श्रीजी को नियम के लाल सलीदार ज़री की सूथन, फूलक शाही श्वेत ज़री की चोली, चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर ज़री की कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ धरायी जाती है.

कार्तिक कृष्ण दशमी से कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (अन्नकूट उत्सव) तक सात दिवस श्रीजी को अन्नकूट के लिए सिद्ध की जा रही विशेष सामग्रियां गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में अरोगायी जाती हैं.

ये सामग्रियां कल अन्नकूट उत्सव पर भी अरोगायी जाएँगी. इस श्रृंखला में आज विशेष रूप से श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में दीवला व दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में केसरयुक्त पेठा, मीठी सेव आदि अरोगाये जाते हैं. 

भोग समय फीका के स्थान पर बीज-चालनी के सूखे मेवे अरोगाये जाते हैं.
आरती समय अरोगाये जाने वाले ठोड के स्थान पर गेहूँ के पाटिया के बड़े लड्डू अरोगाये जाते हैं. 

आज राजभोग आरती के पश्चात पूज्य श्री तिलकायत अन्नकूट महोत्सव के लिए चांवल पधराने जाते हैं. 
उनके साथ चिरंजीवी श्री विशालबावा, श्रीजी के मुखियाजी व अन्य सेवक श्रीजी के ख़ासा भण्डार में जा कर टोकरियों में भर कर चांवल भीतर की परिक्रमा में स्थित अन्नकूट की रसोई में जाकर पधराते हैं. 
तदुपरांत नगरवासी व अन्य वैष्णव भी अपने चांवल अन्नकूट की रसोई में अर्पित करते हैं. आज सायं से अन्नकूट की चांवल की सेवा प्रारंभ होती है.

आज श्रीजी में राजभोग दर्शन पश्चात कोई दर्शन बाहर नहीं खोले जाते. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

गुड़ के गुंजा पुआ सुहारी, गोधन पूजत व्रज की नारी ll 1 ll
घर घर गोमय प्रतिमा धारी, बाजत रुचिर पखावज थारी ll 2 ll
गोद लीयें मंगल गुन गावत, कमल नयन कों पाय लगावत ll 3 ll
हरद दधि रोचनके टीके, यह व्रज सुरपुर लागत फीके ll 4 ll
राती पीरी गाय श्रृंगारी, बोलत ग्वाल दे दे करतारी ll 5 ll
‘हरिदास’ प्रभु कुंजबिहारी मानत सुख त्यौहार दीवारी ll 6 ll

साज – आज श्रीजी में नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दाऊजी महाराज (द्वितीय) कृत जड़ाव की, श्याम आधारवस्त्र पर कूंडों में वृक्षावली एवं पुष्प लताओं के मोती के सुन्दर ज़रदोज़ी के काम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया जडाऊ एवं चरणचौकी पर लाल रंग की मखमल की बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सलीदार ज़री का सूथन, फूलक शाही श्वेत ज़री के रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र अमरसी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) तीन जोड़ी (माणक, हीरा-माणक व पन्ना) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – हीरे, मोती, माणक, पन्ना तथा जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर फूलकशाही श्वेत ज़री की जडाव की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, तथा पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर माणक की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. 
पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे का जड़ाव का चौखटा धराया जाता है. 
श्रीकंठ में बघनखा धराया जाता है. गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर थागवाली मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
आरसी जड़ाऊ की आती हैं.

કોનો સંગ કરવો

કોનો સંગ કરવો

શ્રવણ-કીર્તન માં સાવધાન બની રહેવું અને જવું. તો કોનો સંગ કરવો? શ્રી હરિરાયચરણે શિક્ષાપત્ર માં સંગ કરવા લાયક ભગવદીયો ના લક્ષણો બતાવ્યા. 

નિરપેક્ષા: જેને ધન, પ્રતિષ્ઠા, માન કે મોટાઈ ની કોઈ અપેક્ષા ન હોય, કેવળ નિષ્કામ ભાવે પોતાના હૃદય માં બિરાજતા પ્રભુ ની પ્રસન્નતા કાજે જ ભગવદ્દ ગુણાનુવાદ ગાય છે, એવા નિરપેક્ષ ભગવદીયો પાસે થી સત્સંગ નું શ્રવણ કરવું. 

કૃષ્ણજના: જે કૃષ્ણ ના બની ગયા છે, એટલે કે જે સેવા અને સ્મરણ બન્ને કરે છે, એમના મુખ થી ભગવદ્દવાર્તા સાંભળવી. 

નિજાચાર્યપદાશ્રીતા: શ્રીમહાપ્રભુજી ના દ્રઢ આશ્રય વાળા હોય, સિદ્ધાંતનિષ્ઠ હોય, શ્રીમહાપ્રભુજી ના સિદ્ધાંત પ્રમાણે ચાલનારા હોય તેમની પાસે બેસી ને સત્સંગ કરવો.

ભાગવતત્ત્વજ્ઞા:શ્રી ભાગવત ના અલૌકિક તત્વ ને જાણનાર હોય એમનો સત્સંગ કરવો.

આવા ભગવદીયો ને શોધવા ક્યાં ? ભૂતલ ઉપર આવા ભગવદીયો મળવા દુર્લભ છે. તો ત્યારે શું કરવું ?ત્યારે શ્રીહરિરાય ચરણ સમજાવે છે,  શ્રીમહાપ્રભુજી ના ગ્રંથો નો સ્વાધ્યાય, સત્સંગ કરવો, અષ્ટાક્ષર મંત્ર "શ્રીકૃષ્ણ શરણં મમ " નું રટણ કરવું, પરંતુ જ્યાં ત્યાં સમજ્યા વિના શ્રીમહાપ્રભુજી ના નામે ચાલતા સત્સંગ માં દોડ્યા ન જવું, દુસંગ માં ફસાઈ ન જઈએ એટલે જોઈ વિચારી ને સંગ કરવો. આમ કરવાથી શ્રીકૃષ્ણ માં રુચિ જાગશે, કૃષ્ણ નામ અને રૂપ માં રસ જાગશે, કૃષ્ણ પ્રત્યે પ્રેમ જન્મશે અને એમાથી કૃષ્ણ ને પામવા ની ઉત્કટ આર્તિ ( ઈચ્છા ઉત્કટતમ બને ત્યારે એનુ નામ આર્તિ. કોઈ પણ વસ્તુ મેળવવા ની ઉત્કટતમ ઈચ્છા એટલે આર્તિ) તાપ કલેશ થતા ભગવદ્દભાવ ની વૃદ્ધિ થશે. ભગવદ્દ- આર્તિ થી ભગવદ્દભાવ વધે છે. આવી ભગવદ્દ આર્તિ 84-252 ભગવદીયો એ સેવી છે. 
"જો લો હરિ આપુનપે ન જનાવે તો લો માર્ગ કો સિદ્ધાંત પઢે સુને નહિ આવે"

Thursday, 12 November 2020

व्रज - कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी

व्रज - कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी (रूप चौदस के आपके शृंगार)   
Friday, 13 November 2020

न्हात बलकुंवर कुंवर गिरिधारी ।
जसुमति तिलक करत मुख चुंबत, आरती  नवल उतारी ॥ १ ॥
आनंद राय सहित गोप सब, नंदरानी  व्रजनारी ।
जलसों घोर केसर कस्तुरी, सुभग  सीसतें   ढारी ॥ २ ॥
बहोर करत शृंगार सबे मिल, सब मिल रहत निहारी ।
चंद्रावलि  व्रजमंगल रस भर, श्रीवृषभान दुलारी ॥ ३ ॥
मनभाये पकवान जिमावत, जात सबें  बलहारी ।
श्रीविठ्ठलगिरिधरन सकल व्रज, सुख मानत छोटी दिवारी ॥ ४ ॥

 नरक चतुर्दशी, रूप चौदस

आज श्रीजी के मनमोहने रूप को निहार कर  ह्रदय में आत्मसात करते हुए रूपचौदस के दर्शन का आनंद ले 

विशेष – आज रूपचौदस है. इसे नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है. 
कई पुष्टिमार्गीय मंदिरों में दशहरा के दिन तैयार कर सुखाकर रखे 10 गोबर के कंडों को जलाकर उन पर प्रभु स्वरूपों के आज के अभ्यंग स्नान के लिए जल गर्म किया जाता है.

विशेषकर सूर्योदय से पूर्व हल्दी से चौक लीप कर उसके ऊपर लकड़ी की चौकी बिछाकर, चारों ओर दीप जलाकर, श्री ठाकुरजी को चौकी के ऊपर पधराकर, तिलक, अक्षत एवं आरती कर अभ्यंग स्नान कराया जाता है. 
स्नान पश्चात प्रभु को सुन्दर वस्त्राभूषण धराये जाते हैं जिससे श्री ठाकुरजी का स्वरुप खिल उठता है इस भाव से आज के उत्सव को रूप चतुर्दशी कहा जाता है. 

अपने बालकों को भी इसी शास्त्रोक्त विधि से स्नान कराने से बालकों का स्वास्थ्य उत्तम होता है और रोगादि से मुक्ति मिलती है.
ऐसी भी मान्यता है कि इस प्रकार शास्त्रोक्त विधि के अनुसार स्नान करने से नर्क-यातना एवं रोगादि से मुक्ति मिलती है. इसी कारण आज के दिवस को नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है.

सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

दिन भर सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है.  
आज प्रभु के चरणचौकी, तकिया, शैयाजी, कुंजा, बंटा आदि सभी साज जड़ाव के होते हैं. दोनों खण्ड चांदी के साजे जाते हैं.
गेंद, दिवाला, चौगान सभी सोने के आते हैं.

मंगला दर्शन उपरांत प्रभु को फुलेल समर्पित कर तिलक किया जाता है. तत्पश्चात बीड़ा पधराकर चन्दन, आवंला एवं उपटना से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

आज सुनहरी ज़री के आधारवस्त्र पर भीम पक्षी के पंख के भरतकाम से सुसज्जित पिछवाई आती है. आज श्रीजी को सुनहरी फुलकशाही ज़री के वस्त्र एवं मोरपंख की चंद्रिका का वनमाला का श्रृंगार धराया जाता है.

कार्तिक कृष्ण दशमी से कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (अन्नकूट उत्सव) तक सात दिवस श्रीजी को अन्नकूट के लिए सिद्ध की जा रही विशेष सामग्रियां गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में अरोगायी जाती हैं. 
ये सामग्रियां अन्नकूट उत्सव पर भी अरोगायी जाएँगी. 
इस श्रृंखला में आज विशेष रूप से श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में कटपूवा अरोगाये जाते हैं. 
उत्सव होने के कारण विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है. सखड़ी में केसरयुक्त पेठा, मीठी सेव, आधे नेग की श्याम-खटाई आदि अरोगाये जाते हैं. 
अदकी में संजाब (गेहूं के रवा) की खीर अरोगायी जाती है.
प्रभु के सम्मुख चार बीड़ा की सिकोरी (स्वर्ण का जालीदार पात्र) धरी जाती है. 

भोग समय फीका के स्थान पर बीज-चालनी (घी में तले नमकयुक्त सूखे मेवे व बीज) अरोगाये जाते हैं. आरती समय अरोगाये जाने वाले ठोड के स्थान पर गेहूं के पाटिया के बड़े लड्डू अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

बड़ड़ेन को आगें दे गिरिधर श्री गोवर्धन पूजन आवत l
मानसी गंगा जल न्हवायके पाछें दूध धोरी को नावत ll 1 ll
बहोरि पखार अरगजा चरचित धुप दीप बहु भोग धरावत l
दे बीरा आरती करत है ब्रज भामिन मिल मंगल गावत ll 2 ll
टेर ग्वाल भाजन भर दे के पीठ थापे शिरपेच बंधावत l
‘चत्रभुज’ प्रभु गिरिधर अब यह व्रज युग युग राज करो मनभावत ll 3 ll

साज - श्रीजी में आज सुनहरी ज़री के आधारवस्त्र (Base fabric) पर भीम पक्षी के पंख के काम (work) वाली एवं लाल रंग के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर लाल रंग की मखमल की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल एवं सुनहरी फुलक शाही ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका सुनहरी ज़री का व ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे की प्रधानता सहित, मोती, माणक, पन्ना एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर सुनहरी ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर पन्ना के थेगडा वाला सिरपैंच, केरी घाट की लटकन वाला लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. श्रीकंठ में हीरा, पन्ना, मोती के हार, दुलड़ा माला, कस्तूरी, कली आदि की माला धरायी जाती हैं. 
गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उत्सव का गोटी जडाऊ, आरसी शृंगार में चार झाड की एवं राजभोग में सोन की डांडी की आती है.

प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृगार संध्या-आरती उपरांत बड़े (हटा) कर शयन समय छोटे (छेड़ान के) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर चीरा पर हीरा की किलंगी व मोती की लूम धरायी जाती है. आज श्रीमस्तक पर लूम तुर्रा नहीं धराये जाते.

शयन समय निज मन्दिर के बाहर दीपमाला सजायी जाती है. मणिकोठा में रंगोली का पाट व दीपक सजाये जाते हैं.

Wednesday, 11 November 2020

व्रज - कार्तिक कृष्ण द्वादशी

व्रज - कार्तिक कृष्ण द्वादशी(धनतेरस के आपके शृंगार) 
Thursday, 12 November 2020

आज माई धन धोवत नंदरानी ।
कार्तिक वदि तेरस दिन उत्तम गावत मधुरी बानी ।।१।।
नवसत साज श्रृंगार अनुपम करत आप मन मानी । 
कुम्भनदास लालगिरिधर को देखत हियो सिरानी ।।२।।

धनतेरस, धन्वन्तरी जयंती

आज मनमोहन रूपी धन को अपने ह्रदय  में आत्मसात करते हुए धनतेरस के श्रृंगार के दर्शन का आनंद ले 

विशेष – आज धनवन्तरी जयन्ती है. श्री धनवन्तरी, भगवान विष्णु के 17वें अवतार, देवों के वैध व प्राचीन उपचार पद्दति आयुर्वेद के जनक हैं.

आज के दिन को धनतेरस भी कहा जाता है. व्रज में गौवंश ही धन का स्वरुप है अतः श्री ठाकुरजी एवं व्रजवासी गायों का श्रृंगार करते हैं, उनका पूजन करते हैं एवं उनको थूली खिलाते हैं. आज से चार दिवस दीपदान का विशेष महत्व है अतः व्रज में सर्वत्र दीपदान और रौशनी की जाती है.

आज नन्दरानी यशोदाजी भौतिक लक्ष्मीजी की प्रतिमा को स्नान करा, श्रृंगार कर प्रभु के सम्मुख रखती हैं एवं बालक के पहनने के आभूषण को धोती हैं जिससे श्रीजी में मंगला दर्शन उपरांत ‘धन धोवत व्रजरानी’ जैसे पद गाये जाते हैं.

श्रीस्वामिनीजी ने श्रीठाकुरजी को अपना सर्वस्व मान कर धन के रूप में प्राप्त किया है ऐसा भाव भी है जिसे प्रदर्शित करते पद भी प्रभु के सम्मुख गाये जाते हैं – ‘राधा मन अति मोद बढ्यो है, मनमोहन धन पाई.’

आज की सेवा ललिताजी के भाव की है.

विगत दशमी से कार्तिक शुक्ल द्वितीया (भाईदूज) तक प्रभु पूरे दिन झारीजी में यमुनाजल अरोगते हैं.
चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है.
गेंद, चौगान, दिवाला सभी सोने के आते हैं. आज दिनभर प्रभु को भोग स्वर्ण पात्रों में धरे जाते हैं.

उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

श्रीजी को आज नियम के हरी सलीदार ज़री के चाकदार वागा एवं मोरपंख की चंद्रिका का वनमाला का श्रृंगार धराया जाता है. कत्थई आधारवस्त्र पर कला बत्तू के सुन्दर काम से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया पर मखमल की खोल आती है.

 कार्तिक कृष्ण दशमी से कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (अन्नकूट उत्सव) तक सात दिवस श्रीजी को अन्नकूट के लिए सिद्ध की जा रही विशेष सामग्रियां गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में अरोगायी जाती हैं. 

ये सामग्रियां अन्नकूट उत्सव पर भी अरोगायी जाएँगी. 
इस श्रृंखला में आज विशेष रूप से श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केशरयुक्त चन्द्रकला अरोगायी जाती है. 
उत्सव होने के कारण विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है. 
सखड़ी में केसरयुक्त पेठा, मीठी सेव आदि अरोगाये जाते हैं. अदकी में गेहूं के रवा की खीर अरोगायी जाती है.
भोग समय फीका के स्थान पर बीज-चालनी (घी में तले नमकयुक्त सूखे मेवे व बीज) अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

गोधन पूजा करके गोविंद सब ग्वालन पहेरावत l
आवो सुबाहु सुबल श्रीदामा ऊंचे लेले नाम बुलावत ll 1 ll
अपने हाथ तिलक दे माथे चंदन और बंदन लपटावत l
वसन विचित्र सबन के माथें विधिसों पाग बंधावत ll 2 ll
भाजन भर भर ले कुनवारो ताको ताहि गहावत l
‘चत्रभुज’प्रभु गिरिधर ता पाछे धोरी धेनु खिलावत ll 3 ll

साज - श्रीजी में आज लाल रंग की मखमल के ऊपर सुनहरी सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर लाल रंग की मखमल की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज हरे रंग सलीदार ज़री की सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं पटका धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा - हीरा, मोती, प्रमुखतया माणक, पन्ना एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 

श्रीमस्तक पर हरे रंग की सलीदार ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर अनारदाना को पट्टीदार सिरपैंच (दोनों ओर मोती की माला से सुसज्जित), पन्ना की लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में माणक के चार कर्णफूल धराये जाते हैं. श्रीकंठ में टोडर धराया जाता है. हांस, कड़ा, हस्त सांखला आदि सर्व श्रृंगार धराये जाते हैं.

श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. पीठिका के ऊपर स्वर्ण का हीरा जड़ित चौखटा धराया जाता है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, पन्ना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (माणक व पन्ना के) धराये जाते हैं.
पट हरा, गोटी शतरंज की सोने की व आरसी लाल मखमल की आती है.

शयन समय मणिकोठा में हांडी में रौशनी की जाती है, दीपक का पाट साजा जाता है और रंगोली मांडी जाती है. निज मन्दिर में रौशनी का झाड़ आता है. 
डोलतिबारी में आज से रौशनी नहीं की जाती.

आज से श्रीजी को प्रतिदिन उत्थापन के फल भोग में गन्ना के टूक (छीले हुए गन्ना के टुकड़े) अरोगाये जाने प्रारंभ हो जाते हैं. ये सामग्री प्रतिदिन आगामी डोलोत्सव तक अरोगायी जाती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़ेकर छोटे (छेडान के) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम, तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं. 

शयन समय प्रभु बंगले (हटड़ी) में बिराजते हैं. मनोरथ के रूप में विविध सामग्रियां अरोगायी जाती हैं.

आज शयन उपरांत नाथद्वारा के आसपास के विभिन्न गावों से ग्रामीण लोग अपने खेतों से और श्रीजी के बगीचों से ठाकुरजी को अन्नकूट पर अरोगाने के लिए आज बैलगाड़ियों में भरकर पालक की भाजी लाते हैं. चतुर्दशी के पूरे दिन भाजी की सेवा चलती है.

दशमी से प्रतिदिन शयन के अनोसर में प्रभु को सूखे मेवे और मिश्री से निर्मित मिठाई, खिलौने आदि का थाल आरोगाया जाता है.

इसके अतिरिक्त दशमी से ही अनोसर में प्रभु के सम्मुख इत्रदान व चोपड़ा (इलायची, जायफल, जावित्री, सुपारी और लौंग आदि) भी रखे जाते हैं.

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया

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