By Vaishnav, For Vaishnav

Monday, 31 August 2020

व्रज – भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी

व्रज – भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी
Tuesday, 01 September 2020

विशेष - आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, मौसम की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है.

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को मल्लकाछ टिपारा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) के मेल से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

ग्वालिनी मीठी तेरी छाछि l
कहा दूध में मेलि जमायो साँची कहै किन वांछि ll 1 ll
और भांति चितैवो तेरौ भ्रौह चलत है आछि l
ऐसो टक झक कबहु न दैख्यो तू जो रही कछि काछि ll 2 ll
रहसि कान्ह कर कुचगति परसत तु जो परति है पाछि l
‘परमानंद’ गोपाल आलिंगी गोप वधू हरिनाछि ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में श्री गोवर्धन शिखर, सांकरी खोर, गौरस बेचने जाती गोपियों एवं श्री ठाकुरजी एवं बलरामजी मल्लकाछ-टिपारा धराये भुजदंड से मटकी फोड़ने के लिए श्रीहस्त की छड़ी ऊंची कर रहे हैं एवं मटकी में से गौरस छलक रहा है ऐसे सुन्दर चित्रांकन वाली दानलीला की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज फ़िरोज़ी (चित्र में भिन्न) मलमल  का रुपहली ज़री की तुईलैस किनारी से सुसज्जित मल्लकाछ एवं पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पिले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज श्रीकंठ के शृंगार छेड़ान(हल्के) के बाक़ी सब भारी श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर टिपारा का साज धराया जाता है जिसमें टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में लाल वस्त्र पर मोतियों से सुसज्जित मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.चोटीजी नहीं धराई जाती हैं.
श्रीकंठ में कुंडल धराये जाते हैं.
कमल माला धराई जाती हैं.
 श्वेत पुष्पों की कलात्मक, रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी(एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.पट फ़िरोज़ी एवं गोटी चाँदी की बाघ-बकरी की आती हैं.

चार दिवसोमां श्री पोढे त्यारे श्रृंगार सहित पोढे छे

संप्रदायमां चार दिवसोमां श्री पोढे त्यारे श्रृंगार सहित पोढे छे.
आ चारे रात्रीने महानिशा कहेवामां आवे छे.

१. जन्माष्टमी ने दिवसे , रातना जन्मनो अने महाभोग नो प्रकार छे, बीजा दिवसे नंदमहोत्सव अने पलनानो प्रकार छे , आ महामहोत्सव नो प्रकार होवा थी श्रीठाकोरजी श्रृंगार साथे पोढे छे.

२.शरदपूर्णिमा, रासोत्सवनो प्रकार आखी रातनो होवा थी श्रीठाकोरजी श्रृंगार साथे पोढे छे.{ घणी जग्या ए पोढावती वखते श्रृंगार अने वस्त्र वड़ा करी बाजुमां मूंढा के चौकी पर तासक के थाळ मां धराय छे.}

३.दिवाळी ना दिवसे , रातना श्रीठाकोरजी श्रृंगार साथे पोढे छे ,केमके १. निकुंजमां आखी रात स्वामिनीजी साथे चौपट खेले छे माटे अने २.दीपदान लीला अने हटड़ी लीला पछी गोपबाळको साथे श्रीगिरीराजजीनी परिक्रमा करवा पधारे छे माटे.

४.क्षप्रबोधनी नी राते श्रीठाकोरजी श्रृंगार साथे पोढे छे, विवाहखेल नो प्रकार छे माटे.
मारी जाणकारी मुजब आ कारणों छे, ज्यारे श्रीठाकोरजी श्रृंगार साथे पोढे छे.

Sunday, 30 August 2020

सांझी

सांझी
भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से सांझी उत्सव प्रारंभ होता है जो कि भाद्रपद कृष्ण अमावस्या तक चलता है ।

हमारे गृहसेवा में इन दिनों सांझी सजाई जाती है ।हम बालिकायें की भावना से सांझी का खेल खेलतें हैं । इसमें अनेक रंग बिरंगे पुष्पों के द्वारा सांझी की रचना की जाती है एवं एकादशी से रंगों की सांझी बनाई जाती है ।

सांझी कई प्रकार की होती है जैसे - फूलों की सांझी, रंगों की सांझी, गाय के गोबर की सांझी, पानी पर तैरती सांझी।

यह उत्सव श्री प्रिया जू से सम्बंधित है इसलिए रसिकों का इस उत्सव पर अधिक ममत्व है ।

राधारानी अपने पिता वृषभानु जी के आंगन में सांझी सजाती थी ।सांझी के रूप में श्री राधेरानी संध्या देवी का पूजन करती हैं। सांझी की शुरूआत राधारानी द्वारा की गई थी। 
सर्वप्रथम भगवान कृष्ण के साथ वनों में उन्होंने ही अपनी सहचरियों के साथ सांझी बनायी। वन में आराध्य देव कृष्ण के साथ सांझी बनाना राधारानी को सर्वप्रिय था। 
तभी से यह परंपरा ब्रजवासियों ने अपना ली और राधाकृष्ण को रिझाने के लिए अपने घरों के आंगन में सांझी बनाने लगे।
 
फूलन बीनन हौं गई जहाँ जमुना कूल द्रुमन की भीड़,
अरुझी गयो अरुनी की डरिया तेहि छिन मेरो अंचल चीर .
तब कोऊ निकसि अचानक आयो मालती सघन लता निरवार,
बिनही कहे मेरो पट सुरझायो इक टक मो तन रह्यो निहार.
हौं सकुचन झुकी दबी जात इत उत वो नैनन हा हा खात,
मन अरुझाये बसन सुरझायो कहा कहो अरु लाज की बात.
नाम न जानो श्याम रंग हौं , पियरे रंग वाको हुतो री दुकूल,
अब वही वन ले चल नागरी सखी फिर सांझी बीनन को फूल

भावार्थ
ये है की श्री राधिका जी कहती हैं की मैं सांझी बनाने के लिए यमुना के तट पर फूल बीनने के लिए गयी और वहाँ पर मेरी साड़ी एक पेड में उलझ गयी तभी कोई अचानक वहाँ आ गया और उसने मेरी साड़ी सुलझा दी और वो मुझे लगातार निहारने लगा और मैं शरमा गयी लेकिन वो देखता रहा और उसने मेरे पैर पर अपना सिर रख दिया ।
ये बात कहने में मुझको लाज आ रही है लेकिन वो मेरे वस्त्र सुलझा कर मेरा मन उलझा गया। मैं उसका नाम नहीं जानती पर वो पीला पीताम्बर पहने था और श्याम रंग का था ।
हे सखी अब मुझे वो याद आ रहा है इसलिये मुझकों उस वन में ही सांझी पूजन के लिए फूल बीनने को फिर से ले चलो . 
इस पद में ठाकुर जी और राधा जी के प्रथम मिलन को समझाया गया है इसलिये इसको सांझी के समय गाते हैं।

सांझी की सूचि

१..पूनम - मधुवन- कूमुदवन
२.एकम-शांतनकुण्ड -बहूलावन
३... बीज-राधाकुंड -दानघाटी
४... त्रीज-चाँद सरोवर -आन्यौर
५.. चोथ- जतीपुरा -गुलाबकुंड
६...पाचम- कामवन -श्रीकुंड
७... छठ- बरसाना -गहेवरवन
८... सातम-नंदगाव -संकेतवन
९... आठम-कोटवन -शेषसाइ
१०... नोम-चिरघाट -बच्छवन
११... दसम-वृन्दावन -बंसीबट
१२... एकादशी- महावन -ब्रम्हांड घाट
१३.. द्वादशी - गोकुल -रमणरेती
१४... तेरस-मथुरा -विश्रामघाट
१५... चौदस-कल्पवृक्ष -कामधेनु
१६... अमावस-कोट की आरती

४- प्रकार की साँझी सजाइ जाती है ।
१- पुष्प फूल
पुष्प की साँजी कमल बेल फूल रंगबे रंगी साँजी सजा के श्री प्रभु बिराजते है ।
फूल की साँजी स्वामिनी जी के भाव से सजाई जाती है
२- केले के पत्ते से
इसमे व्रज चोरियासी कोस की ब्रजयात्रा की सुन्दर लीला कलात्मक ढंग से सजाई जाती है।
यह चन्द्रावली जी से भाव से सजाई जाती है
३-सफ़ेद वस्त्र
सफ़ेद वस्त्र के कपडे़ पर रंगबिरंगी रंगो से छापा के द्वारा वृजलीला एवम् व्रज के स्थल छापते है ।
यह कुमारी के भाव से धरई जाती है।

४- जल की साँजी
जल के ऊपर जल के अंदर रंगबिरंगी रंगोली पुरते है. यह  श्रीयमुनाजी के भाव से धराई जाती है ।

व्रज – भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी

व्रज – भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी
Monday, 31 August  2020

विशेष – आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, मौसम की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है.

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को श्याम चुंदडी के पिछोड़ा और श्रीमस्तक पर गोल पाग धराये जाएगे.

राजभोग दर्शन -

कीर्तन – (राग : सारंग)

यहाँ अब काहे को दान देख्यो न सुन्यो कहुं कान l
ऐसे ओट पाऊ उठि आओ मोहनजु दूध दही लीयो चाहे मेरे जान ll 1 ll
खिरक दुहाय गोरस लिए जात अपने भवन तापर ईन ऐसी ठानी आनकी आन l
‘गोविंद’ प्रभु सो कहेत व्रजसुंदरी, चलो रानी जसोदा आगे नातर सुधै देहो जान ll 2 ll

साज - श्रीजी में आज नाहरशाही लहरियाँ श्याम पिला  की रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी में आज नाहरशाही लहरियाँ श्याम पिला के पिछोड़ा और श्रीमस्तक पर छ्ज्जेदार पाग धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान (कमर तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना तथा सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर श्याम पिला लहरियाँ की छ्ज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, क़तरा चंद्रिका तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की विविध रंगों की थागवाली चार मालाजी धरायी जाती है. 

श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरियाँ के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट श्याम व गोटी चाँदी की आती हैं.

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Saturday, 29 August 2020

શ્રી અષ્ટાક્ષરમંત્રનું મહાત્મ્ય

વિરકત વૈષ્ણવ - શ્રી અષ્ટાક્ષરમંત્રનું મહાત્મ્ય                          
શ્રી ગુસાંઈજીના ના સેવક એક વિરકત વૈષ્ણવની વાર્તા. આ વૈષ્ણવ ગુજરાતથી શ્રીજી દ્વાર જઈને શ્રી ગુંસાઈજી ના સેવક થયા હતા તે ભગવદીય અને શ્રી ગુસાંઈજીના સ્વરૂપમાં ભિન્નતા જોતા નહોતા. વ્રજમાં ફરતાં એક દિવસ રસ્તામાં એક ડોશીને તેમણે રડતી જોઈ. તે ડોશીના પુત્રને સર્પ કરડયો હતો અને મરી ગયો હતો. આથી તેમને ઘણીજ દયા આવી. આ વૈષ્ણવે ભગવદનામના પ્રતાપથી તે પુત્રને સજીવન કર્યો. આ ચમત્કાર જોઈને સર્વ માણસ તેમની પાછળ ફરવા લાગ્યા અને કહેવા લાગ્યા કે એ મંત્ર અમને શીખવાડો. તેથી તેમણે લોકોને શ્રીઅષ્ટાક્ષર મંત્ર સંભળાવ્યો લોકોએ કહ્યું "અમને આ મંત્ર આવડે છે." વૈષ્ણવે કહ્યું જો તમને આવડતો હોય તો તમે તેમાં શ્રદ્ધા રાખીને તેનું સ્મરણ કરો છતાં પણ તેમને વિશ્વાસ આવ્યો નહિ, આ વૈષ્ણવ તો પછી ત્યાંથી ચાલી નીકળ્યા.
        
અષ્ટાક્ષરમંત્રમાં આ વૈષ્ણવ ને ઘણો વિશ્વાસ હતો તેનાથી અધિક કંઈ પણ નથી એમ તે માનતા. જે કાંઈ કાર્ય સિદ્ધ કરતાં તે આ નામ ના પ્રતાપથી કરતાં એ એવા કૃપાપાત્ર હતા.
સાર : (1) વૈષ્ણવો હંમેશા દયાળુ હોય છે. અન્ય જીવ ને દુઃખી જોઈ ને તેમના હૃદય આર્ત બને છે (2) શ્રી અષ્ટાક્ષર મહામંત્ર છે માટે હંમેશા એક ચિત્તે તેનું ચિંતન કરવું એનાથી સર્વ સિદ્ધિ  સુલભ છે.                       
🙏જયશ્રી કૃષ્ણ🙏

व्रज - भाद्रपद शुक्ल द्वादशी

आप सभी को वामन जयंती की अनेकानेक बधाई

व्रज - भाद्रपद शुक्ल द्वादशी

रविवार, 30.8.2020

वामन जयंती

विशेष - आज वामन जयंती है.

पुष्टिमार्ग में भगवान विष्णु के सभी अवतारों में से चार (श्री कृष्ण, श्री राम, श्री नृसिंह एवं श्री वामन) को मान्यता दी है इस कारण इन चारों अवतारों के जन्म दिवस को जयंती के रूप में मनाया जाता है.

भगवान विष्णु के दस अवतारों में ये चारों अवतार प्रभु ने निरूसाधन भक्तों पर कृपा हेतु लिए थे अतः इनकी लीला पुष्टिलीला हैं. पुष्टि का सामान्य अर्थ कृपा भी है.

इन चारों जयंतियों को उपवास व फलाहार किया जाता है. जयंती उपवास की यह भावना है कि जब प्रभु जन्म लें अथवा हम प्रभु के समक्ष जाएँ तब तन, मन, वचन एवं कर्म से शुद्ध हों. प्राचीन हिन्दू वेदों में भी कहा गया है कि उपवास से तन, मन, वचन एवं कर्म की शुद्धि होती है.

श्रीजी का सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

सभी समय यमुनाजल की झारीजी आती है. चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) आरती थाली में की जाती है.
गेंद, चैगान, दीवाला आदि सभी सोने के आते हैं.

मंगला दर्शन के पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

भाद्रपद कृष्ण पंचमी को केसर से रंगे गये वस्त्र जन्माष्टमी, राधाष्टमी और वामन द्वादशी के उत्सवों धराये जाते हैं.

आज श्रीजी को नियम का केसरी धोती-पटका का श्रृंगार धराया जाता है. जन्माष्टमी वाली लाल बड़े लप्पा की पिछवाई धरायी जाती है.

बहुत अद्भुत बात है कि आज यह श्रृंगार धराया प्रभु का स्वरुप अन्य दिनों की तुलना में कुछ छोटा प्रतीत होता है अर्थात दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि श्रीजी आज वामन रूप में अपने भक्तों को दर्शन देते हैं.

प्रभु को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में कूर (कसार) के चाशनी वाले बड़े गुंजा व दूधघर में सिद्ध केशरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.

वामन जयंती के कारण आज श्रीजी में दो राजभोग दर्शन होते हैं.
प्रथम राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में दहीभात आरोगाये जाते हैं.

प्रथम राजभोग के भोग सरे उपरांत श्रीजी के संग विराजित श्री सालिग्रामजी को पंचामृत स्नान कराया जाता है. दर्शन के पश्चात उनको अभ्यंग, तिलक-अक्षत किये जाते हैं, तुलसी समर्पित की जाती है और श्रीजी के समक्ष उत्सव भोग रखे जाते हैं.

दूसरे राजभोग में उत्सव भोग में दूधघर में सिद्ध पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी, केशरयुक्त बासोंदी, जीरा युक्त, दही, शीतल, विविध फल, तले हुए बीज-चालनी के सूखे मेवे और विविध प्रकार के संदाना (आचार) अरोगाये जाते हैं.
सखड़ी में केसरी पेठा व मीठी सेव अरोगें.

सायं भोग समय अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर बीज-चालनी के सूखे मेवे अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन -

कीर्तन - (राग: सारंग)

प्रगटे श्रीवामन अवतार ।
निरख अदित मुख करत प्रशंसा जगजीवन आधार ।।1।।
तनघनश्याम पीतपट राजत शोभित है भुज चार ।
कुंडल मुकुट कंठ कौस्तुभ मणि उर भृगुरेखा सार ।।2।।
देखि वदन आनंदित सुर मुनि जय जय करे निगम उच्चार ।
‘गोविंद’प्रभु बलिवामन व्है कैं ठाड़े बलि के द्वार ।।3।।

साज - श्रीजी में आज जन्माष्टमी वाली उत्सव की कमल के काम वाली लाल सुनहरी बड़े लप्पा वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचैकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - श्रीजी को आज केसरी मलमल पर रुपहली जरी की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित धोती एवं गाती का उपरना धराया जाता है. प्रभु के यश विस्तार भाव से ठाड़े वस्त्र सफेद धराये जाते हैं.

श्रृंगार - आज प्रभु को मध्य का (घुटनों तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा - हीरे, मोती, माणक, पन्ना तथा जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं.

 श्रीमस्तक पर केसरी कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, तीन मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 

श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. रंग-बिरंगी पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 

श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

प्रात: समये उठी करिये श्री लक्ष्मणसुत गुणगान

प्रात: समये उठी करिये श्री लक्ष्मणसुत गुणगान
प्रगट भये श्रीवल्लभ प्रभु देत भक्ति दान...१
श्रीविट्ठलेश महाप्रभु के रूप के निधान,
श्रीगिरिधर श्रीगिरिधर उदय भयो भान...२
श्रीगोविंद आनंदकंद कहा बरनों गुनगान,
श्रीबालकृष्ण बालकेलि रूप ही सुहान...३
श्रीगोकुलनाथ प्रकट कियो मारग बखान,
श्रीरघुनाथलाल देखि मन्मथ ही लजान...४
श्रीयदुनाथ महाप्रभु पूरन भगवान,
श्रीघनश्याम पूरनकाम पोथीमें ध्यान...५
पांडुरंग श्रीविट्ठलेश करत वेदगान,
'परमानंद' निरख लीला थके सुर विमान...६

अब अनेक बाजे को भाव कहत है :-

अब अनेक बाजे को भाव कहत है :-
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१. बीन :- श्री स्वामिनीजी के संयोग समें कुंज में 
२. मुरली :- श्री स्वामिनीजी के वियोग समें 
३. अमृत कुंडली :- श्रुतिरूपान के वियोग समें
४. जल तरंग :- श्रुतिरूपान के वियोग समें
५. मदनभेरि :- श्रुतिरूपा राजसी 
६. धोंसा :- श्रुतिरूपान तामसी 
७. दुंदुभी :- श्रुतिरूपा सात्वकी 
८. निसांन :- कुमारिका सात्वकी 
९. घंटा :- कुमारिका सात्वकी 
१०. संख :- कुमारिका सात्वकी 
११. घंटा :- कुमारिका सात्वकी 
१२. मुखचंग :- कुमारिका सात्वकी 
१३. श्रृंगभेरि :- कुमारिका राजस 
१४. खंजरी :- कुमारिका राजस सात्वक 
१५. राय गिरगिरी :- कुमारिका राजस तामस सात्वक 
१६. ताल :- कुमारिका राजस तामस 
१७. कठताल :- कुमारिका राजस 
१८. मजीरा :- कुमारिका तामस सात्वक 
१९. महूसरि :- कुमारिका राजस  तामस जो कुमारिका में तामस तामस नाहीं हें 
२०. थारी :- श्रुतिरूपासात्वक राजस
२१. झालरि :- श्रुतिरूपा सात्वक सात्वक 
२२. ढोल :- श्रुतिरूपा सात्वक तामस 
२३. डफ :- श्रुतिरूपा सात्वक 
२४. डिमडिमी :- श्रुतिरूपा राजस सात्वक
२५. झांझि :- श्रुतिरूपा राजस 
२६. राय गिरीगिरी :- श्रुतिरूपा तामस सात्वक
२७. पित्रक :- श्रुतिरूपा तामस राजस 
२८. रबाब :- श्रुतिरूपा तामस राजस सात्वक
२९. जंत्र :- श्रुतिरूपा तामस राजस सात्वक
३०. मृदंग :- श्री ललिताजी रास में 
३१. सहनाई :- श्री यमुनाजी मधुरेसुर 
३२. श्रीमंडल :- विसखाजी सुर देत हें 
३३. दुधारा :- स्यामलाजी सखी 
३४. करताल :- श्री भामाजी 
३५. सारंगी :- चंपकलता सखी 
३६. तुरही :- काम सखी
३७. किंनरी :- सहचरि आदि।

या प्रकार अनेक बाजे लीला संबंधी हे। होरी में सर्व वस्तु भावात्मक हें, महारास रूप अलोकिक जो कोउ सखी नंदरायजी के बसंत को साज करि आवत हें। कोउ सखी वृषभानजी किरतिजी को जाचत है, तहाँ किरतिजी के पास जाइ ललिता विसाखा आदि अत्यन्त मधुर वचन सों कहत हें, जो हे श्री किरतिजी आज वसंत को दिन प्रथम खेल को हैं, अपने अपने घरते तुमारे पास विनती करन आई हे, तातें अपनी बेटी को हमारे संग भेज देहु तो हम सखीन में परस्पर होरी खेलें तब श्री किरतीजी हु प्रसन्न होइकें श्री स्वामिनीजी को अभ्यंग स्नान कराय नव नौतन बसन आभूषन पहराइ पाछे नाना प्रकार के भोजन सखीन संग कराई खेलन की साज गुलाल अबीर केसरि को रंग आदि पिचकारी आदि सबन सों दैके पाछें ललितादिक अष्टसखीन सों कही, जो देखियो मेरी बेटी परम सुकुमार अत्यंत भोरी है, खेल में कहूँ अकेली मत छोडियों। तब सब ने कह्यो जो हे श्री किरति जी यह तुम्हारी बेटी है, सो हमको प्रानप्रिय हें, तातें तुम रंचक हू बेटी की चिंता मति करो, हम अपने प्रान की नांई आछी भांतिसों राखेंगी।

या भाँति अष्टसखीयाँ श्री किरतिजी को भलीभाँति समाधान करिके पाछें श्री स्वामिनीजी को ले चली, सो बसन्त को साज सिद्धि करिकें श्री नंदरायजी के घरकों समाज सहित चली हें। एक कंचन को कलस जामे जल कुंज रूप तापर खजूरि की डार सो हस्त रूप। तामें बोर सो आभूषण रूप, तापर सरस्यों के फूल मुखारविंद रसमें फूल आदि तथा भारी भक्तरूप ओर ऊपर लाल वस्त्र वेष्टित सारी रूप और ऊपर गुलाबी अबीर छिरकें हें, ऊपर पीरो वस्त्र अपने अंचल सों कुच रूप ढापे हे, जो केवल प्रभु अंगीकार करिवे योग्य हें, यह बसन्त की सामग्री प्रभु को दिखाई अपने हृदय के अभिप्राय जनायो।

या प्रकार गोपीजन श्री स्वामिनीजी कों आगें पधराय श्री नंदरायजी के घर को चले हें....

Friday, 28 August 2020

એકાદશી પરિવર્તિની એકાદશી, દાન એકાદશી, જલઝીલણી એકાદશી અને વામન એકાદશી

ભાદરવા સુદ દાન અને વામન એકાદશી:- ભગવાન વિષ્ણુ દેવશયની એકાદશીએ પોઢે છે અને દેવપ્રબોધિની એકાદશીએ જાગે છે. પરંતુ ભાદ્ર સુદ એકાદશીએ પ્રભુ પડખું ફરે છે તેથી આ એકાદશીને ભગવાન વિષ્ણુને માનતા વૈષ્ણવો પરિવર્તીની એકાદશી તરીકે ઓળખે છે. પરંતુ આ દિવસે વ્રજમાં નંદ યશોદાને ત્યાં બિરાજી રહેલા ભગવાન શ્રી કૃષ્ણએ ચોમાસાના શુદ્ધ જળને ઝીલ્યું હોવાથી ભગવાન કૃષ્ણને માનનારા વૈષ્ણવો જળઝીલણી એકાદશી તરીકે ઓળખે છે. આ દિવસે વ્રજભક્તો વર્ષાઋતુમાં યમુનાનદીમાં આવેલું નવું નીર શુધ્ધ થઈ જાય તેવા આશયથી શ્રી ઠાકોરજીને નાવમાં બેસાડી નૌકા વિહાર કરાવે છે. આ દિવસે શ્રી કૃષ્ણે ગોપીઓના માનનું મર્દન કરી સાંકડીખોર અને દાનઘાટીમાં મહી ગોરસનાં માટલાં ફોડી નાખ્યાં હતાં તેથી આજે પણ આ દિવસે વ્રજ પરિક્રમા સમયે ગોસ્વામી બાલકો વૈષ્ણવો પાસેથી દાન લે છે. પુષ્ટિમાર્ગમાં દાનલીલાની શરૂઆત ભાદરવા સુદી ૧૧થી થાય છે જે ભાદરવા વદી અમાસ સુધી ચાલે છે. આ એકાદશી એ વામન જયંતિ તરીકે પણ ઓળખાય છે. કારણ કે આ દિવસે ભગવાન વિષ્ણુનો પંચમ અવતાર એ વામન ભગવાનનો પ્રાદુર્ભાવ થયો હતો. બટુક વેશમાં પધારેલા પ્રભુ વામન ભગવાને બલિરાજા પાસેથી ત્રણ પગલાંની ભૂમિ માંગી. તે ત્રણ પગલાંમાંથી બે પગલાં દ્વારા તેમણે બલિરાજાનું આખું સામ્રાજ્ય લઈ લીધું છે, અને ત્રીજા પગલાની ભૂમિ વખતે બલિરાજાની વિનંતી મુજબ ભગવાને બલિરાજાનાં મસ્તક પર પોતાનો પગ મૂક્યો છે અને તે સાથે બલિરાજાને પાતાલ પ્રદેશનું રાજ્ય સોંપ્યું છે. આજ કથાને બીજા સંદર્ભમાં જોઈએ તો ત્રીજા પગલાં વખતે બલિરાજાએ સંપૂર્ણ રીતે વામન ભગવાનની શરણાર્ગતિ સ્વીકારી છે, આમ પ્રભુ ભક્ત ઉદ્ધારક બન્યા છે. વામન જયંતિએ પુષ્ટિમાર્ગીય હવેલીઓમાં રાજભોગ સમયે શાલીગ્રામજીને પંચામૃત સ્નાન કરવામાં આવે છે. એજ રીતે જોવા જઈએ તો આ એક જ એકાદશી પરિવર્તિની એકાદશી, દાન એકાદશી, જલઝીલણી એકાદશી અને વામન એકાદશી એમ વિવિધ નામે ઓળખાય છે.

दानलीला प्रकथन

दानलीला प्रकथन

दानलीला मानलीला और रसलीला -यह सब लीलाएँ करनेका श्रीपुष्टि पुरुशोत्तम का एक ही तात्पर्य है कि ईस लीला द्वारा,जीवोकी अपनेमें आसक्ति करानी। 

भजते तादशीः क्रीडा याः श्रुत्वा तत्परो भवते ! आप ऐसी लीलाएँ करते हो,कि जिसको सुनने से जीव भगवदासक्त वने। 

श्री महाप्रभुजी ईसको निरोध कहते है। लीलाओकी भावना  करके तनुवित्तजा सेवा करें,तो चित्त सहज रीते भगवान में निरुध्ध हो जाय। 

सहस्त्रावधि ग्रंथो के प्रणेता, महानुंभाव श्रीहरिरायजी- रसिक
छापसे असंख्य पद की व्रजभाषा में रचनाएँ की है ।
दानलीला आपश्रीकी बहुत प्रसिध्ध कृति है।
श्री गुसाईजी कृत शृंगाररसमंडन में- दानलीला नामक-संस्कृत काव्यग्रंथ पर से,श्री हरिरायजी ए बडी दान लीला ग्रंथ की रचना की है। राजनगरके श्री व्रजराज महाराजश्री ए भी,श्री हरिरायजी कृत दानलीला उपर संस्कृत में टीका लिखि है आपश्री ए " दान " का लक्षण बताया की" दानं नाम विक्रेयः पदार्थे षु नितिमार्गे ण  ग्राह्यो राजभागः"। गुजराती में  दाण,वेरो के जकात से पहचाने जाते है।

व्रजमें श्रीनंदरायजी का राज है ईसलिये श्रीनंदराजकुमार माल पर दान मांग सकते है।
विद्वान नि. ली. पूज्यपाद गो. श्रीदिक्षितजी महाराजश्री अपने वचनामृत में आज्ञा करते है कीः-

जलयात्रासे "सुधर नेह भर आई पदोक्त भक्तिगान से निरोधबीज स्थापित होता है।
रथयात्रासे, वो बीज अंकुरित होता है और जन्माष्टमी से" वृध्धि " होता है। दानलीला से "पुष्पित'" होता है। होरी-धमार में फलित होता है।

भक्त और भगवन्निरोध की साधना... ये ही दानलीलाश्री महाप्रभुजी भी आज्ञा करते हे की  कृष्णाधीना तु मर्यादाः स्वाधीना पुष्टिरूच्चते दानलीला-पुष्टिलीला है और व्रजभक्तन के आधीन है।
रसो वै सः-यह उपनिशद्  वाक्यमें निरुपण किया अनुसार,  रसात्मक आलंबन विभाव श्रीराधाजी है और उद्दीपन विभाव " श्री चंन्द्रावलीजी है। जिसको अवलंबि जो रसोत्पत्ति हो, वो आलंबन-विभाव और जे रसका उद्दीपन-उत्तेजित करें,उनको उद्दीपन विभाव कहते है वन-उपवन-पशु-पंखी चंद्रप्रकाश-आदि ऊद्दीपन है

श्री राधिकाजी ठाकोरजी के वाम बाजु और श्रीचंद्रावलीजी, श्रीठाकोरजी के दक्षिण बाजु,बिराजते है।
श्री चंद्रावलीजी,युगलस्वरुप के प्रेमकी मूर्ति और लीलामें,विषेश रसपोषकताके,अर्थात, परकियात्व सुखका कारण है। 

दानलीला का प्रारभ , भाद्रपद -शुकलपक्ष ११ से होता है और अमास पर्यंत चले है।

दूध ,श्रीस्वामीनीजी का अधरामृत है और दहीं, श्रीचंद्रावलीजी का अधरामृत है।   ईसलिये दानएकादशी के दिन, राजभोग-दानमें-दहीं घराते है 
दानलीला में श्रीचंद्रावलीजी की मुख्यता है

श्रीहरिरायजी-कृत दानलीला में ग्वालिनी के वचन मोहन जान दे यह सम पर नागरी दान दे यह सम पर अटकते है
गोरस शब्द में श्र्लेष है। गोरस - दूघ -दहीं तो सही है, लेकिन गो-ईन्द्रीयां उनका रस श्रीठाकोरजी मांगते है।
यह लीला साव निर्दोषलीला समजनेकी है। क्यांकि यह लीला करने वाले में देह-देही विभाग - देह अलग और आत्मा अलग-ऐसा नह़ी लेकिन सब एक ही है

भादों के शुक्लपक्ष की एकादशी ‘पद्मा’ के नाम से विख्यात है

युधिष्ठिर ने पूछा: केशव ! कृपया यह बताइये कि भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है, उसके देवता कौन हैं और कैसी विधि है?
भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन् ! इस विषय में मैं तुम्हें आश्चर्यजनक कथा सुनाता हूँ, जिसे ब्रह्माजी ने महात्मा नारद से कहा था ।

नारदजी ने पूछा: चतुर्मुख ! आपको नमस्कार है ! मैं भगवान विष्णु की आराधना के लिए आपके मुख से यह सुनना चाहता हूँ कि भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष में कौन सी एकादशी होती है?

ब्रह्माजी ने कहा: मुनिश्रेष्ठ ! तुमने बहुत उत्तम बात पूछी है । क्यों न हो, वैष्णव जो ठहरे ! भादों के शुक्लपक्ष की एकादशी ‘पद्मा’ के नाम से विख्यात है । उस दिन भगवान ह्रषीकेश की पूजा होती है । यह उत्तम व्रत अवश्य करने योग्य है । सूर्यवंश में मान्धाता नामक एक चक्रवर्ती, सत्यप्रतिज्ञ और प्रतापी राजर्षि हो गये हैं । वे अपने औरस पुत्रों की भाँति धर्मपूर्वक प्रजा का पालन किया करते थे । उनके राज्य में अकाल नहीं पड़ता था, मानसिक चिन्ताएँ नहीं सताती थीं और व्याधियों का प्रकोप भी नहीं होता था । उनकी प्रजा निर्भय तथा धन धान्य से समृद्ध थी । महाराज के कोष में केवल न्यायोपार्जित धन का ही संग्रह था । उनके राज्य में समस्त वर्णों और आश्रमों के लोग अपने अपने धर्म में लगे रहते थे । मान्धाता के राज्य की भूमि कामधेनु के समान फल देनेवाली थी । उनके राज्यकाल में प्रजा को बहुत सुख प्राप्त होता था ।

एक समय किसी कर्म का फलभोग प्राप्त होने पर राजा के राज्य में तीन वर्षों तक वर्षा नहीं हुई । इससे उनकी प्रजा भूख से पीड़ित हो नष्ट होने लगी । तब सम्पूर्ण प्रजा ने महाराज के पास आकर इस प्रकार कहा :

प्रजा बोली: नृपश्रेष्ठ ! आपको प्रजा की बात सुननी चाहिए । पुराणों में मनीषी पुरुषों ने जल को ‘नार’ कहा है । वह ‘नार’ ही भगवान का ‘अयन’ (निवास स्थान) है, इसलिए वे ‘नारायण’ कहलाते हैं । नारायणस्वरुप भगवान विष्णु सर्वत्र व्यापकरुप में विराजमान हैं । वे ही मेघस्वरुप होकर वर्षा करते हैं, वर्षा से अन्न पैदा होता है और अन्न से प्रजा जीवन धारण करती है । नृपश्रेष्ठ ! इस समय अन्न के बिना प्रजा का नाश हो रहा है, अत: ऐसा कोई उपाय कीजिये, जिससे हमारे योगक्षेम का निर्वाह हो ।

राजा ने कहा: आप लोगों का कथन सत्य है, क्योंकि अन्न को ब्रह्म कहा गया है । अन्न से प्राणी उत्पन्न होते हैं और अन्न से ही जगत जीवन धारण करता है । लोक में बहुधा ऐसा सुना जाता है तथा पुराण में भी बहुत विस्तार के साथ ऐसा वर्णन है कि राजाओं के अत्याचार से प्रजा को पीड़ा होती है, किन्तु जब मैं बुद्धि से विचार करता हूँ तो मुझे अपना किया हुआ कोई अपराध नहीं दिखायी देता । फिर भी मैं प्रजा का हित करने के लिए पूर्ण प्रयत्न करुँगा ।

ऐसा निश्चय करके राजा मान्धाता इने गिने व्यक्तियों को साथ ले, विधाता को प्रणाम करके सघन वन की ओर चल दिये । वहाँ जाकर मुख्य मुख्य मुनियों और तपस्वियों के आश्रमों पर घूमते फिरे । एक दिन उन्हें ब्रह्मपुत्र अंगिरा ॠषि के दर्शन हुए । उन पर दृष्टि पड़ते ही राजा हर्ष में भरकर अपने वाहन से उतर पड़े और इन्द्रियों को वश में रखते हुए दोनों हाथ जोड़कर उन्होंने मुनि के चरणों में प्रणाम किया । मुनि ने भी ‘स्वस्ति’ कहकर राजा का अभिनन्दन किया और उनके राज्य के सातों अंगों की कुशलता पूछी । राजा ने अपनी कुशलता बताकर मुनि के स्वास्थय का समाचार पूछा । मुनि ने राजा को आसन और अर्ध्य दिया । उन्हें ग्रहण करके जब वे मुनि के समीप बैठे तो मुनि ने राजा से आगमन का कारण पूछा ।

राजा ने कहा: भगवन् ! मैं धर्मानुकूल प्रणाली से पृथ्वी का पालन कर रहा था । फिर भी मेरे राज्य में वर्षा का अभाव हो गया । इसका क्या कारण है इस बात को मैं नहीं जानता ।

ॠषि बोले : राजन् ! सब युगों में उत्तम यह सत्ययुग है । इसमें सब लोग परमात्मा के चिन्तन में लगे रहते हैं तथा इस समय धर्म अपने चारों चरणों से युक्त होता है । इस युग में केवल ब्राह्मण ही तपस्वी होते हैं, दूसरे लोग नहीं । किन्तु महाराज ! तुम्हारे राज्य में एक शूद्र तपस्या करता है, इसी कारण मेघ पानी नहीं बरसाते । तुम इसके प्रतिकार का यत्न करो, जिससे यह अनावृष्टि का दोष शांत हो जाय ।

 राजा ने कहा: मुनिवर ! एक तो वह तपस्या में लगा है और दूसरे, वह निरपराध है । अत: मैं उसका अनिष्ट नहीं करुँगा । आप उक्त दोष को शांत करनेवाले किसी धर्म का उपदेश कीजिये ।

ॠषि बोले: राजन् ! यदि ऐसी बात है तो एकादशी का व्रत करो । भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष में जो ‘पद्मा’ नाम से विख्यात एकादशी होती है, उसके व्रत के प्रभाव से निश्चय ही उत्तम वृष्टि होगी । नरेश ! तुम अपनी प्रजा और परिजनों के साथ इसका व्रत करो ।

ॠषि के ये वचन सुनकर राजा अपने घर लौट आये । उन्होंने चारों वर्णों की समस्त प्रजा के साथ भादों के शुक्लपक्ष की ‘पद्मा एकादशी’ का व्रत किया । इस प्रकार व्रत करने पर मेघ पानी बरसाने लगे । पृथ्वी जल से आप्लावित हो गयी और हरी भरी खेती से सुशोभित होने लगी । उस व्रत के प्रभाव से सब लोग सुखी हो गये ।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: राजन् ! इस कारण इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान अवश्य करना चाहिए । ‘पद्मा एकादशी’ के दिन जल से भरे हुए घड़े को वस्त्र से ढकँकर दही और चावल के साथ ब्राह्मण को दान देना चाहिए, साथ ही छाता और जूता भी देना चाहिए । दान करते समय निम्नांकित मंत्र का उच्चारण करना चाहिए :

नमो नमस्ते गोविन्द बुधश्रवणसंज्ञक ॥

अघौघसंक्षयं कृत्वा सर्वसौख्यप्रदो भव ।

भुक्तिमुक्तिप्रदश्चैव लोकानां सुखदायकः ॥

‘बुधवार और श्रवण नक्षत्र के योग से युक्त द्वादशी के दिन बुद्धश्रवण नाम धारण करनेवाले भगवान गोविन्द ! आपको नमस्कार है… नमस्कार है ! मेरी पापराशि का नाश करके आप मुझे सब प्रकार के सुख प्रकार के सुख प्रदान करें । आप पुण्यात्माजनों को भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले तथा सुखदायक हैं |’

राजन् ! इसके पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है ।

ऐसौ दान माँगियै नहिं जो, हमपै दियौ न जाइ।

राग काफी 
ऐसौ दान माँगियै नहिं जो, हमपै दियौ न जाइ। 
बन मैं पाइ अकेली जुवतिनि, मारग रोकत धाइ।। 
घाट बाट औघट जमुना-तट, बातैं कहत बनाइ। 
कोऊ ऐसौ दान लेत है, कौनें पठए सिखाइ।। 
हम जानतिं तुम यौं नहिं रैहौ, रहिहौ गारी खाइ। 
जो रस चाहौ सो रस नाहीं, गोरस पियौ अघाइ।। 
औरनि सौं लै लीजै मोहन, तब हम देहिं बुलाइ। 
सूर स्‍याम कत करत अचगरी, हम सौं कुंवर कन्‍हाइ।।

व्रज – भाद्रपद शुक्ल एकादशी

व्रज – भाद्रपद शुक्ल एकादशी
Saturday, 29  August  2020

दान मांगत ही में आनि कछु  कीयो।
धाय लई मटुकिया आय कर सीसतें रसिकवर नंदसुत रंच दधि पीयो॥१॥

छूटि गयो झगरो हँसे मंद मुसिक्यानि में तबही कर कमलसों परसि मेरो हियो।
चतुर्भुजदास नयननसो नयना मिले तबही गिरिराजधर चोरि चित्त लियो॥२॥

दान (परिवर्तिनी) एकादशी, दान आरंभ, दश-दिंगत विजयी नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री पुरुषोत्तमजी का उत्सव, वामन जयंती

विशेष – आज पुष्टिमार्ग में कई उत्सव साथ आ गए हैं. 

सर्व प्रथम आज आज परिवर्तिनी एकादशी है. आज दान देने और प्रभु को दान की सामग्री अरोगाने से देह की दशा में परिवर्तन होता है. 

अपने पांडित्य से दसों-दिशाओं में पुष्टिमार्ग की यश पताका फहराने वाले ‘दश-दिंगत विजयी’, नवलक्ष ग्रन्थकर्ता नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री पुरुषोत्तमजी लेखवाला(1714) का भी आज उत्सव है . आप के सेव्य स्वरुप सूरत (गुजरात) में विराजित प्रभु श्री बालकृष्णलालजी हैं.
( विस्तुत विवरण अन्य पोस्ट में)

पुष्टिमार्ग में आज के दिन को दान-एकादशी कहा जाता है. 
नंदकुमार रसराज प्रभु ने व्रज की गोपियों से इन बीस दिनों तक दान लिया है. प्रभु ने तीन रीतियों (सात्विक, राजस एवं तामस) से दान लिए हैं. दीनतायुक्त स्नेहपूर्वक, विनम्रता से दान मांगे वह सात्विक दान, वाद-विवाद व श्रीमंततापूर्वक दान ले वह राजस एवं हठपूर्वक, झगड़ा कर के अनिच्छा होते भी जोर-जबरदस्ती कर दान ले वह तामस दान है. 
दान के दिनों में गाये जाने वाले कीर्तनों में इन तीनों प्रकार से लिये दान का बहुत सुन्दर वर्णन है.

प्रभु ने व्रजवितान में, दानघाटी सांकरी-खोर में, गहवर वन में, वृन्दावन में, गोवर्धन के मार्ग पर, कदम्बखंडी में, पनघट के ऊपर, यमुना घाट पर आदि विविध स्थलों पर व्रजभक्तों से दान लिया है और उन्हें अपने प्रेमरस का दान किया है.

भाद्रपद शुक्ल द्वादशी को प्रभु का वामन रूप में प्रादुर्भाव हुआ. प्रभु ने ब्राह्मण रूप में राजा बलि से दान लिया. 

इस प्रकार दान-लीला के विविध भाव हैं.

दान की सामग्री में दूध श्री स्वामिनीजी के भाव से, दही श्री चन्द्रावलीजी के भाव से, छाछ श्री यमुनाजी के भाव से, और माखन श्री कुमारिकाजी के भाव से अरोगाया जाता है. 

दान के बीस दिनों में पांच-पांच दिन चारों युथाधिपतियों के माने गए हैं.

कल तक बाल-लीला के पद गाये जाते थे. अब आज से प्रतिदिन दान के पद गाये जायेंगे.

आज सूर्योदय तो एकादशी तिथि में हैं किंतु सुबह 8 बज कर 18 मिनिट से द्वादशी लग जाने के कारण आज वामन जयंती भी मानी गयी है. 

पुष्टिमार्ग में भगवान विष्णु के सभी अवतारों में से चार (श्री कृष्ण, श्री राम, श्री नृसिंह एवं श्री वामन) को मान्यता दी है इस कारण इन चारों अवतारों के जन्म दिवस को जयंती के रूप में मनाया जाता है. 

भगवान विष्णु के दस अवतारों में ये चारों अवतार प्रभु ने नि:साधन भक्तों पर कृपा हेतु लिए थे अतः इनकी लीला  पुष्टिलीला हैं. पुष्टि का सामान्य अर्थ कृपा भी है.

इन चारों जयंतियों को उपवास व फलाहार किया जाता है. जयंती उपवास की यह भावना है कि जब प्रभु जन्म लें अथवा हम प्रभु के समक्ष जाएँ तब तन, मन, वचन एवं कर्म से शुद्ध हों. प्राचीन हिन्दू वेदों में भी कहा गया है कि उपवास से तन, मन, वचन एवं कर्म की शुद्धि होती है.

दोनों उत्सव आज होने से वामन द्वादशी का अभ्यंग स्नान, उत्सव भोग, सालिग्रामजी का पंचामृत व दो राजभोग खुलने का क्रम आज श्रीजी प्रभु में कर लिए जायेंगे. 
यद्यपि आज दान एकादशी के कारण मुकुट काछनी का श्रृंगार नियम से धराया जाता है अतः वामन द्वादशी का धोती उपरना का श्रृंगार आगामी कल अर्थात भाद्रपद शुक्ल द्वादशी (रविवार, 30 अगस्त 2020) को धराया जायेगा.

दान एकादशी व वामन जयंती कई बार एक ही दिन होती है और ऐसी स्थिति में सदैव दान के श्रृंगार (मुकुट-काछनी) को प्राथमिकता दी जाती है इसका कारण यह है कि वामन भगवान ने ‘आंशिक’ पुष्टि लीला की थी इसीलिए श्री महाप्रभुजी ने आपकी जयंती को पुष्टिमार्ग में मान्यता दी थी जबकि दानलीला पूर्णतः पुष्टि लीला है अतः वामन जयंती का श्रृंगार अगले दिन लिया जाता है.

चिरंजीवी गौस्वामी श्री विशाल बावा से यह सेवा सम्बन्धी जानकारी प्राप्त हुई इसके लिए आपश्री का हृदय से आभार. 

श्रीजी का सेवाक्रम – विविध उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

सभी समय यमुनाजल की झारीजी आती है. दो समय की आरती थाली में की जाती है.
गेंद, चौगान, दीवाला आदि सभी सोने के आते हैं.

श्रृंगार समय दान के पद गाये जाते हैं. आज विशेष रूप से श्रृंगार दर्शन में बड़ा कमल धराया जाता है.

दान एकादशी के दिन अभ्यंग स्नान नहीं होता परन्तु वामन जयंती आज होने के कारण मंगला दर्शन के पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

श्रृंगार समय दान के पद गाये जाते हैं.

आज श्रीजी को नियम से मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जायेगा. प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है.

जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है. 

जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं. 

जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है. 

दान और रास के भाव के मुकुट-काछनी के श्रृंगार में पीताम्बर (जिसे रास-पटका भी कहा जाता है) धराया जाता है जबकि गौ-चारण के भाव में गाती का पटका (जिसे उपरना भी कहा जाता है) धराया जाता है. 

दान के दिनों के मुकुट काछनी के श्रृंगार की कुछ और विशेषताएँ भी है. 

इन दिनों में जब भी मुकुट धराया जावे तब मुकुट को एक वस्त्र से बांधा जाता है जिससे जब प्रभु मटकी फोड़ने कूदें तब मुकुट गिरे नहीं. इसके अतिरिक्त दान के दिनों में मुकुट काछनी के श्रृंगार में स्वरुप के बायीं ओर चोटी (शिखा) नहीं धरायी जाती. इसके पीछे यह भाव है कि यदि चोटी (शिखा) रही तो प्रभु जब मटकी फोड़कर भाग रहे हों तब गोपियाँ उनकी चोटी (शिखा) पकड़ सकती हैं और प्रभु भाग नहीं पाएंगे.

ऐसे अद्भुत भाव-भावना के नियमों से ओतप्रोत पुष्टिमार्ग को कोटि-कोटि प्रणाम

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में बूंदी के लड्डू अरोगाये जाते हैं. इसके अतिरिक्त दोनों उत्सवों के भाव से दूधघर में सिद्ध की गयी केशरयुक्त दो बासोंदी की हांडियां प्रभु को अरोगायी जाएगी. 

आज से 20 दिन तक प्रतिदिन ग्वाल भोग में श्री ठाकुरजी को दान की सामग्रियां अरोगायी जाती है. इन सामग्रियों में प्रभु को शाकघर और दूधघर में विशेष रूप से सिद्ध किये गये दूध, दही, केशरिया दही, श्रीखंड, केशरी बासोंदी, मलाई बासोंदी, गुलाब-जामुन, छाछ की हांडियां एवं खट्टा-मीठा दही के बटेरा आदि अरोगाये जाते हैं.

वामन जयंती के कारण आज श्रीजी में दो राजभोग दर्शन होते हैं. 
प्रथम राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में जयंती के भाव के पांचभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात और वड़ी-भात) आरोगाये जाते हैं. 

प्रथम राजभोग दर्शन में लगभग बारह बजे के आसपास अभिजित नक्षत्र में श्रीजी के साथ विराजित श्री सालिग्रामजी को पंचामृत स्नान कराया जाता है एवं दर्शन के उपरांत उनको अभ्यंग, तिलक-अक्षत किया जाता है और श्रीजी के समक्ष उत्सव भोग रखे जाते हैं. 

दूसरे राजभोग में उत्सव भोग में कूर (कसार) के चाशनी वाले बड़े गुंजा, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बर्फी, दूधपूड़ी (मलाई पूड़ी), केशरयुक्त बासोंदी, जीरा युक्त दही, घी में तले बीज-चालनी के सूखे मेवे, विविध प्रकार के संदाना (आचार) और फल आदि अरोगाये जाते हैं.

संध्या-आरती दर्शन में प्रभु के श्रीहस्त में हीरा का वैत्र ठाड़ा धराया जाता है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

कहि धो मोल या दधिको री ग्वालिन श्यामसुंदर हसिहसि बूझत है l
बैचेगी तो ठाडी रहि देखो धो कैसो जमायो, काहेको भागी जाति नयन विशालन ll 1 ll
वृषभान नंदिनी कौ निर्मोलक दह्यौ ताको मौल श्याम हीरा तुमपै न दीयो जाय,
सुनि व्रजराज लाडिले ललन हसि हसि कहत चलत गज चालन l
‘गोविंद’प्रभु पिय प्यारी नेह जान्यो तब मुसिकाय ठाडी भई ऐना बेनी कर सबै आलिन ll 2 ll  

साज – आज प्रातः श्रीजी में दानघाटी में दूध-दही बेचने जाती गोपियों के पास से दान मांगते एवं दूध-दही लूटते श्री ठाकुरजी एवं सखा जनों के सुन्दर चित्रांकन वाली दानलीला की प्राचीन पिछवाई धरायी जाती है.
राजभोग में पिछवाई बदल के जन्माष्टमी के दिन धराई जाने वाली लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है.
गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रुपहली किनारी से सुसज्जित सूथन धराये जाते हैं. छोटी काछनी केसरी रुपहली किनारी की एवं बड़ी काछनी लाल सुनहरी किनारी की होती है. 
लाल रुपहली ज़री की तुईलैस वाला रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र श्वेत जामदानी का धराया जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का उत्सव का भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक की प्रधानता के सर्व आभरण धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाति हैं. आज प्रभु को बघनखा धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर माणक के टोपी व मुकुट( गोकुलनाथजी वाले) एवं मुकुट पर मुकुट पिताम्बर एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं. चित्र में द्रश्य है परन्तु चोटी नहीं धरायी जाती है. 
पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, वेणु, वेत्र माणक के व एक वेत्र हीरा के धराये जाते हैं.
पट उत्सव का एवं गोटी दान की आती हैं.
 आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.

શ્રી વલ્લભાચાર્યજી / શ્રી મહાપ્રભુજી" ના જીવન વિશે થોડું જાણીશું...

અહીં આપણે સૌ આપના અતિ પ્રિય એવાં "શ્રી વલ્લભાચાર્યજી / શ્રી મહાપ્રભુજી" ના જીવન વિશે થોડું જાણીશું...

●●● જન્મ : ●●●

વિક્રમ સવંત ૧૫૩૫ ના ચૈત્ર વદ અગિયારસ ના દિવસે ચંપારણ માં જન્મ થયો હતો. આંધ્રના તેલુગુ બ્રાહ્મણ શ્રી લક્ષમણ ભટ્ટજી ના પત્ની ઈલ્લમાગારુજી ગર્ભવતી થયાં.

શ્રી વલ્લભનાં જન્મ વિશે અનેક કથાઓ છે. જેમાની એક કથા આ પ્રમાણે છે.

ઈલ્લમાગારુજીને આઠ મહિનાનો ગર્ભ હતો. લક્ષ્મણ ભટ્ટજી અને તેમના પત્ની ઈલ્લમાગારુજી વર્તમાન મધ્ય પ્રદેશના રાયપુર જીલ્લાના ચંપારણના એક વનમાંથી જઈ રહ્યાં હતાં. પ્રસવપીડા ઉપડતા રાત્રીના સમયે ઈલ્લમાગારુજીએ એક બાળકને જન્મ આપ્યો. પણ જન્મ પછી બાળકમાં કોઈ હલનચલન ન જણાતા, બાળક અચેત જણાતા પતિ પત્નીએ તેને મૃત સમજયું. આ ઘટના ને પ્રભુની ઈચ્છા સમજી, પરિસ્થિતિનો શાંતિ પૂર્વક સ્વીકાર કરી તેઓએ બાળકને શમીવૃક્ષ નીચે એક ખાડામાં રાખી તેના ઉપર ઝાડ ના પાંદડાઓ થી ઢાંકી દઈ પરિસ્થિતિ ને આધીન થઈ અને આગળની યાત્રા માટે રવાના થઈ ગયા.
આગળ જઈ જ્યારે તેઓ વિશ્રામ કરી રહ્યા હતા ત્યારે ઈલ્લામાંગારૂંજી ને સ્વપન માં શ્રીનાથજી એ સ્વયં દર્શન દીધા અને કહ્યું, "જે બાળક ને તમે મૃત જાણ્યો છે એ સ્વયં હું જ છું." સ્વપ્ન  પછી બંને પતિ પત્ની તે સ્થાન પર પહોંચ્યા જ્યાં તેમણે એ બાળક ને મૃત સમજી ને રાખી દીધું હતું, તેમણે જોયું કે શમી વૃક્ષ નીચે બાળક સુરક્ષિત અવસ્થામાં છે. એ બાળકની ચારે બાજુ અગ્નિનો ઘેરાવો થઈ ગયો હતો, તેમણે અગ્નિના ઘેરાવામાંથી બાળકને કાઢ્યું અને છાતી સરસું ચાંપ્યું. તે બાળકનું નામ તેમણે વલ્લભ રાખ્યું , કારણકે તે વૈષ્ણવાનર અવતાર એટલે કે અગ્નિનો અવતાર હતા. મોટા થઈ ને આ બાળક શ્રી વલ્લભાચાર્યજીના નામે પ્રખ્યાત થયા અને ચંપારણને પુષ્ટિમાર્ગ ની સાધનાનું સ્થળ માનવામાં આવ્યું. 

શ્રી વલ્લભાચાયૅજીના ત્રણ ભાઈઓ હતાં. શ્રી કૃષ્ણ ભટ્ટ, શ્રી રામચંદ્ર ભટ્ટ અને શ્રી વિશ્ર્વનાથ ભટ્ટ તેમની બે બહેનો હતી સરસ્વતીજી અને સુભદ્રાજી. 

●●● અભ્યાસ : ●●●

વિક્રમ સંવત ૧૫૪૦ માં શ્રી વલ્લભ ને ૫ વર્ષ થયાં હતા, રામનવમીના દિવસે તેમનો કાશીમાં યજ્ઞોપવિત સંસ્કાર કરવામાં આવ્યો. ૫ વર્ષ ની નાની ઉંમરમાં તેમણે ૪ વેદ, ઉપનિષદો અને ૬ દશૅનનો અભ્યાસ કર્યો. ૧૦ વર્ષની ઉંમરમાં તેમણે સંપૂર્ણ જ્ઞાન મેળવી લીધું. 

શ્રી વલ્લભાચાર્યજી એ અષ્ટાક્ષર ગોપાલ મંત્ર ની દીક્ષા શ્રી વિલ્વમંગલાચાર્યજી પાસેથી પ્રાપ્ત કરી અને ત્રિદંડ સંન્યાસ દીક્ષા સ્વામીનારાયણ તીર્થ પાસેથી મેળવી. શ્રી વલ્લભાચાર્યજી બાળપણ થી જ કુશાગ્ર બુદ્ધિના હતા. તેમને વૈષ્ણવ સંપ્રદાય ઉપરાંત જૈન, શૈવ, બૌદ્ધ, શાંકર આદિ ધર્મ સંપ્રદાય ના પણ વિદ્વાન હતા.

●●● સ્વરૂપ વર્ણન : ●●●

શ્રી વલ્લભ નો દેહ મધ્યમ કદ નો, ઘેરા ઘઉં વર્ણ નો, ઘાટીલો અને મજબૂત બાંધાનો હતો. લલાટ વિશાળ હતું, નેત્રો કમળ જેવા હતા, મુખારવિંદ દિવ્ય તેજસ્વી હતું. તેમની વાણી કોમળ અને મધુર હતી. તેઓ કાયમ ધોતી - ઉપરણો, જનોઈ અને તુલસી ની કંઠી ધારણ કરતા તે સિવાય કંઈ પણ ધારણ કરતા નહીં. તેઓ અડેલ અને ચરણાટ જેવા એકાંત, શાંત સ્થળો માં નાની ઝૂંપડીઓમાં રહેતા. તેમનું જીવન સ્વાવલંબી, સત્યપરાયણ, સરળ, સાદું, પરોપકારી અને પ્રભુપરાયણ હતું.

●●● કાર્યો : ●●●

શ્રી વલ્લભાચાર્યજી ભારત ના મહાન વૈષ્ણવચાર્ય હતા તેમણે ભક્તિ માર્ગ માં શુરૂદિષ્ટિ ભક્તિ ની સ્થાપના કરી અને જગત ને બ્રહ્મવાદ નું જ્ઞાન કરાવ્યું. સેવા, સ્નેહ અને સમર્પણ નો સંદેશ આપી ભક્તિ માર્ગ પુષ્ટ બનાવ્યો. સેવા માર્ગ પ્રગટ કરી જીવો ને પ્રભુ સન્મુખ કર્યા. શ્રી વલ્લભે તેમના જીવનકાળ દરમિયાન ૫ સોમયજ્ઞ કર્યા હતા. તેમણે ૩ વાર ભારત યાત્રા કરી હતી અને આ સંપુર્ણ ભારતયાત્રા ઠંડી, ગરમી કે વરસાદ ની ચિંતા કર્યા વગર પૂર્ણ કરી હતી. 

તેમણે અનેક ભાષ્યો, ગ્રંથો, નામાવલીઓ, અને સ્તોત્રોની પણ રચનાઓ કરી છે.
તેઓ દ્વારા રચાયેલા નિમ્નલિખિત પ્રમુખ ૧૬ ગ્રંથો છે જેમને ષોડશગ્રંથ પણ કહેવામાં આવે છે.
યમુનાષ્ટકમ, બાલબોધ, સિદ્ધાંતમુક્તવલી, પુષ્ટિપ્રવાહ, મર્યાદાભેદ, સિદ્ધાંતરહસ્ય, નવરત્ન સ્ત્રોત, અંતઃકરણ પ્રબોધ, વિવેક ધૈર્યાશ્રય, શ્રીકૃષ્ણાશ્રય, ચતુ: શ્લોકી, ભક્તિ વર્ધનમ, જલ ભેદ, પંચઅધ્યાયી, સંન્યાસ નિર્ણય, નિરોધ લક્ષણ અને સેવાફળ.

●●● બ્રહ્મસંબંધ : ●●●

શ્રી વલ્લભાચાર્યજી ને ચિંતા થઈ કે ભક્તો ને કેવી રીતે પુષ્ટિ માર્ગ તરફ વાળવા ત્યારે શ્રીજીબાવા એ સ્વપ્નમાં  આવી તેમને આજ્ઞા કરી, "ચિંતા ન કર વલ્લભ, જે જીવ ને તમે બ્રહ્મસંબંધ અપાવશો તેને હું મારી શરણ માં જરૂર લઈશ અને મારી શરણ માં આવેલ એ વ્યક્તિ કોઈ પણ જાતી નો હોય એકવાર મારી શરણ માં આવશે તેને હું કદી નહીં છોડું અને મારી શરણો માં જ રાખી લઈશ." શ્રી વલ્લભ, શ્રી વિઠ્ઠલ અને શ્રી જમુનાજી આ ત્રણે સ્વરૂપ એક જ છે. તેઓ દામોદર દાસ ને દમણાં કહીં ને બોલાવતા અને તેઓએ બધા જીવો ને શરણે લીધા અને શ્રીજીબાવા ને સોંપ્યા. પુષ્ટિમાર્ગમાં બ્રહ્મસંબંધ લઈ ને કંઠી-તિલક વગર ન ફરાય, કંઠી અને તિલક આપણું રક્ષણ કરે છે. અને ભોજન બન્યા પછી સૌ પ્રથમ ભગવાન ને ભોગ લગાવી તેમને સમર્પિત કરી પછી જ તેને પ્રસાદ તરીકે બધા એ ગ્રહણ કરવું જોઈએ એવા વચનો કહ્યા.

●●● લગ્ન - પરિવાર : ●●●

૨૩ વર્ષ ની વલ્લભ ની ઉંમર હતી જ્યારે તેમના લગ્ન અત્રિમ્મા અને દેવન ભટ્ટ ની સુપુત્રી મહાલક્ષ્મી સાથે થયા. વિક્રમ સંવત ૧૫૫૮ ના અષાઢ સુદ પાંચમ ના કાશીમાં ખૂબ ધામધૂમ થી કરવામાં આવ્યા.
વિક્રમ સંવત ૧૫૬૭ ના ભાદરવા વદ ૧૨ ના શુભ દિને અડેલ ખાતે શ્રી વલ્લભ ને ત્યાં પ્રથમ પુત્ર શ્રી ગોપીનાથજી નું પ્રાગટ્ય થયું.
ત્યારબાદ ૫ વર્ષ પછી વિક્રમ સંવત ૧૫૭૨ માં માગશર વદ ૯ ના શુભદીને ચરણાંટ ખાતે બીજા પુત્ર શ્રી વિઠ્ઠલનાથજી નું પ્રાગટ્ય થયું.
આમ શ્રી વલ્લભાચાર્યજી ને ત્યાં બે પુત્રો થયાં.

●●● પ્રાગટ્ય - પ્રથમ મિલન : ●●●

જે દિવસે ચંપારણ માં શ્રી મહાપ્રભુજી નું પ્રાગટ્ય થયું હતું તે જ દિવસે ગિરિરાજ ઉપર શ્રીનાથજી નું પ્રાગટ્ય થયું હતું.
શ્રીનાથજી ગિરિરાજ ઉપર થી બે ડગલાં નીચે પધાર્યા અને શ્રીવલ્લભ બે ડગલાં ઉપર ચડ્યા ત્યાં શ્રીવલ્લભ એ ગાયું "મધુરાષ્ટકમ" જેના બોલ છે "અધુરમ... મધુરમ..." અને બંને એકબીજાને ભેટી પડ્યા અને તે દિવસે પવિત્રા એકાદશી હતી અને સુતર નું પવિત્ર શ્રીવલ્લભે શ્રીનાથજી ને ધરાવી અને મિસરી નો ભોગ પણ ધરાવ્યો.

●●● સેવક-બેઠક : ●●●

શ્રી વલ્લભાચાર્યજી ના કેટલાક સેવકો હતાં. તેમાંના એક હતાં નારાયણદાસ બ્રહ્મચારી. તેઓ વ્રજમાં આવેલ મહાવનમાં રહેતા હતા. બીજા હતા પદ્મા રાવલ. તેઓ ઉજ્જૈનમાં રહેતા હતા. શ્રી વલ્લભને ત્યાં સુંદર ગાય હતી તેનું નામ થયોદા હતું, તે શ્રીવલ્લભ ને અત્યંત પ્રિય હતી.

શ્રીમદ વલ્લભાચાર્યજી ની બેઠકો ભારતમાં સ્થિર છે. આજે પણ ત્યાં શ્રીવલ્લભ સાક્ષાત બિરાજે છે. જ્યાં જ્યાં શ્રીવલ્લભાચાર્યજી ની બેઠકો છે ત્યાં તેમણે ભાગવત પારાયણ કર્યું છે અને અનેક જીવોનો ઉધ્ધાર કર્યો છે. અને દરેક બેઠકજીનું સ્થાન પણ ખૂબ રળિયામણું છે.

●●● ગૌલોકગમન : ●●●

શ્રીવલ્લભ શ્રીભાગવત ઉપર શ્રીસુબોધિની નામની ટીકા લખતાં હતાં. પહેલાં ત્રણ સ્કંધ લખાયા હતા ત્યારે ભગવાનની આજ્ઞા થઈ કે, "તમે લેખન છોડી ગૌલોકમાં પધારો." શ્રીવલ્લભે દસમાં સ્કંધ પર ટીકા લખવાની ચાલુ કરી કે ફરી ભગવાને આજ્ઞા કરી કે,"તમે જલ્દી ગૌલોકમાં પધારો." અગિયારમાં સ્કંધની ચોથા અધ્યાય પર ટીકા લખાઈ કે ત્રીજી વખત ગૌલોકમાં પધારવાની આજ્ઞા થઈ. પહેલી આજ્ઞા ગંગાસાગર સંગમ પાસે થઈ, બીજી આજ્ઞા મધુવનમાં થઈ ને ત્રીજી આજ્ઞા અડેલમાં થઈ.

શ્રીવલ્લભે ગૌલોકમાં પધારવાની તૈયારી કરી. તેમણે સંન્યાસ લેવાનો નિર્ણય કર્યો. તેમણે ભક્તિમાર્ગ માં સંન્યાસ સમજાવવા 'સંન્યાસ નિર્ણય' નામનો ગ્રંથ લખ્યો. વિક્રમ સંવત ૧૫૮૭ ના જેઠ વદ બીજ ના દિવસે કાશીમાં હનુમાન ઘાટ ઉપર ભક્તિ માર્ગની દીક્ષા લીધી. પૂર્ણાનંદ નામ ધારણ કર્યું. અન્ન, જળ, વાણીનો ત્યાગ કર્યો. પંદર દિવસ સુધી ભગવદ્ ધ્યાનમાં રહ્યા.

તેમના બંને પુત્રો તથા ઘણા સેવકો કાશી આવ્યા. સૌ એ શ્રીવલ્લભને છેલ્લો ઉપદેશ આપવા વિનંતી કરી. મૌન વ્રત હોવાથી શ્રીવલ્લભે કિનારાની રેતીમાં જમણા હાથની આંગળીથી સાડા ત્રણ શ્ર્લોક લખ્યાં તેને શિક્ષાશ્લોકી કહેવામાં આવે છે.

●●● જળ સમાધિ : ●●●

તે દિવસ વિક્રમ સંવત ૧૫૮૭ ના અષાઢ સુદ બીજ ના રવિવાર હતો. બરાબર મધ્યાહન સમયે શ્રીવલ્લભ ગંગાજીની મધ્ય ધારામાં પ્રવેશ્યા. પ્રભુનું ચિંતન કરતાં જેવા જળમાં નીચા નમ્યા કે તરત જ ગંગાજીમાંથી દિવ્ય તેજનો એક મોટો સ્તંભ પ્રગટ થયો. તે આકાશ સુધી છવાઈ ગયો. તે દ્વારા શ્રીવલ્લભ સદેહે ગૌલોકમાં પધાર્યા. આકાશમાં દુંદુભિઓ નો અવાજ થયો અને પુષ્પવૃષ્ટિ થઈ. સૌ કાશીવાસીઓએ આ દિવ્ય તેજપુંજ લગભગ ત્રણ કલાક સુધી જોયો. સૌ આશ્ર્ચર્ય પામી શોકમગ્ન બન્યાં. આમ અલૌકિક અગ્નિમાંથી પ્રગટ થયેલા શ્રીવલ્લભ અલૌકિક અગ્નિ સ્તંભથી ગૌલોક પધાર્યા. તેઓ પૃથ્વી પર બાવન વર્ષ, બે માસ અને સાત દિવસ સુધી બિરાજયા.

શ્રીવલ્લભનાં એક સેવક અચ્યુતદાસ બિહારમાં પટણા પાસે આવેલા હાજીપુર ગામમાં રહેતા હતા. તેમને ત્યાં શ્રીવલ્લભનાં પાદુકાજી સેવામાં બિરાજતાં હતાં. જ્યારે શ્રીવલ્લભે કાશીમાં પૃથ્વીનો ત્યાગ કર્યો ત્યારે તે ઘટનાથી શોકમય થયેલા એક વૈશ્ર્ણવ કાશી છોડી શ્રી અચ્યુતદાસજી પાસે આવ્યા અને સમગ્ર ઘટના ના સમાચાર કહ્યાં. બપોરનો સમય હતો. શ્રી અચ્યુતદાસજીએ કહ્યું, "શ્રીવલ્લભ તો સૌ વૈષ્ણવવોનાં ઘરે ઘરે બિરાજે છે. હમણાં સાંજે હું તમને દર્શન કરાવીશ. ઉત્થાપનના સમયે શ્રી અચ્યુતદાસજી એ મંદિર ખોલ્યું ત્યારે ત્યાં સાક્ષાત શ્રીવલ્લભ ગાદી તકિયા પર બિરાજમાન થઇને શ્રી ભાગવત વાંચતા હતા. પેલા વૈષ્ણવને ઘણું આશ્ર્ચર્ય થયું. શ્રીવલ્લભે કહ્યું, "હું હંમેશા વૈષ્ણવોને ત્યાં જ બિરાજું છું માટે તમે શોક ન કરશો."
પુષ્ટિ પ્રવર્તક -શ્રીમદ ભાગવત રત્ન - વૈષ્ણવોના પ્રાણ પ્યારા - ચંપારણ ધામ અધિષ્ઠાતા - અખંડ ભૂમંડલાચાર્ય આચાર્ય ચરણ મહાપ્રભુ શ્રીવલ્લભના પાટોત્સવની સર્વે વૈષ્ણવજનોને વધાઈ વધાઈ વધાઈ હો.

●●●●●●●●● "શ્રી વલ્લભાધીશ ની જય" ●●●●●●●●●

Thursday, 27 August 2020

प्रभु बोले मैया मुझे आप से कुछ चाहिए

एक बार प्रभु यसोदा जी की गोदी मै बैठ के खेल रहे थे खेलते खेलते प्रभु बोले मैया मुझे आप से कुछ चाहिए मोहे ऐसी दुल्हन भावे की गोदी मै बैठ सिंगार करे गोदी मै उठा के बहार ले जाए मुझे ऎसी दुल्हन ला दीजिये....
मैया तो सोच मै पड़ गई की ऐसी दुल्हन क्हा मिले?
मैया का ये मनोरथ साढ़े चार हजार वरस बाद श्री वल्लभ ने पुरो कियो कैसे?
सब जिव को ब्रह्मसम्बध् करवा दिये सब ठाकुरजीकी दुल्हन बन गये प्रत्येक जीव् को विवाह करवा दियो आज हम सब प्रभुको गोदी मै लेके सिंगार करते हे झांपी जी मै पधराय के बाहर लेजाते हे....कितनीकृपा करि श्री वललभ ने हमजीव् पर ब्रह्मसमन्ध करवा  कर.........

व्रज – भाद्रपद शुक्ल दशमी

व्रज – भाद्रपद शुक्ल दशमी
Friday, 28 August  2020

विशेष - कल दान-एकादशी है. साथ ही कल अपने पांडित्य से दसों-दिशाओं में पुष्टिमार्ग की यश पताका फहराने वाले दश-दिंगत विजयी नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री पुरुषोत्तमजी का उत्सव भी है अतः आज श्रीजी को उत्सव के एक दिन पूर्व धराया जाने वाला हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
सामान्य तौर पर प्रत्येक बड़े उत्सव के एक दिन पूर्व लाल वस्त्र, पीले ठाड़े वस्त्र एवं पाग पर सादी चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है. यह श्रृंगार अनुराग के भाव से धराया जाता है.

श्री राधिकाजी एवं श्री ठाकुरजी के बाल-लीला के पद आज तक ही गाये जाते हैं. कल से श्रीजी में दानलीला के कीर्तन गाये जायेंगे.  

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : गौड़सारंग)

परम धन राधा नाम आधार l
जाहि पिया मुरली में टेरत सुमरत वारंवार ll 1 ll
वेद मंत्र अरु जंत्र तंत्रमें येही कियो निरधार l
श्रीशुक प्रगट कियो नहीं ताते जान सार को सार ll 2 ll
कोटिन रूप धरे नंदनंदन तोऊ ना पायो पार l
‘व्यासदास’ अब प्रगट बखानत डार भार में भार ll 3 ll

राजभोग दर्शन - 

साज – आज श्रीजी में लाल रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के होते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्री मस्तक पर लाल रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में चार कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.इसी प्रकार पिले पुष्पों की दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती हैं. 
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी और एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी सोना की छोटी आती हैं.आरसी शृंगार में स्वर्ण की दिखाई जाती हैं

प्रभु के श्रृंगार

प्रभु के श्रृंगार

प्रभु के दर्शन करो तब एक एक शृंगार की झांकी सावधानी पूर्वक करनी।

प्रत्येक कोई भाव से बिराजते है। इस प्रकार शृंगार के दर्शन करने से उनमे रहे हुए भावो का दान प्रभु जीव को करते है। 

इन शृंगार का नित्य स्मरण करने से जीव का लौकिक समाप्त हो जाता है।

शृंगार के स्मरण के अनेक विध भाव जागृत होते है।

श्री हरिरायजी शृंगार का अर्थ बताते है - 'शृंग' अर्थात गूढ़ भाव और 'र' अर्थात उसमे रहे हुए रस। 
हृदय मे रहे हुए भगवद् रस ही शृंगार है।

शृंगार करने के बाद हाथ मे अत्तर ले कर समर्पण किया जाता है। अत्तर यानि जो अपने तथा प्रभु के बिच का अंतर दूर करता है। दोनो की एक ही गंध कर दे वही अत्तर । या उसे सुगंधि कही जाय । श्रीजी की और उनके सेवक की एक गंध कर दे । जब हम अत्तर समर्पण करे और वह प्रसादी सुगंध अपने भीतर जाये तब अपने भीतर रहे हुए दोष रुपी दुर्गंध दूर हो जाय ।

श्रृंगार धराकर वेणुजी धराते हैं । जिससे हमारे कर्ण में से कामनाओं का कोलाहल, घमंड की घोंघाट, अहम् की आवाज दूर हो, और प्रभु के वेणुनाद का श्रवण कर कर्ण पवित्र हो।

फिर दर्पण दिखाते हैं, यह स्वामिनीजी के हृदय का भाव है, जिससे हमारे हृदय की मलिनता दूर हो और हमारे हृदय में नित्य प्रभु बिराजें ।

जय श्री वल्लभ

Wednesday, 26 August 2020

व्रज – भाद्रपद शुक्ल नवमी

व्रज – भाद्रपद शुक्ल नवमी
Thursday, 27 August  2020

व्रज में रतन राधिका गोरी ।
हर लीनी वृषभान भवनतें नंद सुवन की जोरी ।।१।।
ग्रथित कुसुम अलकावली की छवि अरु सुदेश करडोरी ।
पिय भुज कन्ध धरें यों राजत ज्यों दामिनी घनसोंरी ।।२।।
कालिंदी तट कोलाहल सघन कुंजवन खोरी ।
कृष्णदास प्रभु गिरिधर नागर नागरी नवल किशोरी ।।३।।

राधाष्टमी का परचारगी श्रृंगार

विशेष – आज श्रीजी को राधाष्टमी का परचारगी श्रृंगार धराया जायेगा. परचारगी श्रृंगार में श्रीजी में सभी साज, वस्त्र एवं श्रृंगार पिछली कल की भांति ही होते हैं, केवल पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे-मोती के जड़ाव का चौखटा नहीं धराया जाता है और आभरण कुछ कम होते हैं. 
गेंद, चौगान, दीवाला आदि सभी सोने के आते हैं.आज तकिया के खोल एवं साज जड़ाऊ स्वर्ण  काम के आते हैं.

दिन में सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) आरती थाली में की जाती है.

श्रीजी में सभी बड़े उत्सवों के एक दिन बाद परचारगी श्रृंगार होता है.

परचारगी श्रृंगार के श्रृंगारी चिरंजीवी श्री विशाल बावा होते हैं. यदि वे उपस्थित हों तो श्रीजी के श्रृंगारी वही होते हैं. 

जन्माष्टमी के चार श्रृंगार चार यूथाधिपति स्वामिनीजी के भाव से होते हैं परन्तु श्री राधिकाजी प्रभु की अर्धांगिनी हैं अतः इस भाव से राधाष्टमी के श्रृंगार दो बार ही होते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

मैं देखी सुता वृषभान की l
जननी संग आई व्रज रावरी शोभा रूप निधान की ll 1 ll
नेंक सुभायते भृकुटी टेढ़ी बेनी सरस कमानकी l
नैन कटाक्ष रहत चितवतही चितवनि निपट अयानकी ll 2 ll
पग जेहरी कंचन रोचनसी तनकसी पोहोंची पानकी l
खगवारी गले द्वै लर मोती तनक तरुवनी कानकी ll 3 ll
लै बैठी हंसि गोद जसोदा मनमें ऐसी बानकी l
‘सूरदास’ प्रभु मदनमोहन हित जोरी सहज समान की ll 4 ll    

साज - श्रीजी में आज लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली (जन्माष्टमी वाली) पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर सफेद मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग की जामदानी की रुपहली रुपहली फूल वाली किनारी से सुसज्जित चाकदार एवं चोली धरायी जाती है. सूथन रेशम का लाल रंग का सुनहरी छापा का होता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का हीरा एवं माणक भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा- हीरे, मोती, माणक तथा स्वर्ण जड़ाव के आभरण धराये जाते हैं. 

श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर उत्सव की हीरा की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. मुखारविंद पर चंदन से कपोलपत्र किये जाते हैं.
नीचे आठ पदक ऊपर हीरा, पन्ना, माणक, मोती के हार एवं माला धराए जाते हैं.
श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि मालाजी धरायी जाती है. 
पीले एवं श्वेत पुष्पों की विविध रंगों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते है.
पट एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आते हैं.
आरसी शृंगार में चार झाड़ की व राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.

પુષ્ટિમાર્ગમાં ૧૧ ભાવની મિસરી હોય છે.

પુષ્ટિમાર્ગમાં ૧૧ ભાવની મિસરી હોય છે.

(૧) પવિત્રા અગિયારસ:
પવિત્રા અગિયારસ ના દિવસે શ્રી ઠાકોરજીને પવિત્રું ધરતી વખતે જે મિસરી ધરાવવામાં આવે છે તે શ્રેષ્ટ મિસરી ગણાય છે. તે સમયે શ્રીઠાકોરજી અને શ્રીમહાપ્રભુજીનું મિલન થયું.
બંનેના આલિંગનથી જે અધરામૃત ઝર્યું તે. આ મિસરીનો ભાવ છે. તે સમયે શ્રીઠાકોરજી શ્રીયમુનાજી અને શ્રીમહાપ્રભુજીનો ત્રિવેણી સંગમનો ગૂઢ ભાવ રહેલો છે.

(૨) પવિત્રા બારસની મિસરી:
જે મિસરીનો ભોગ કટોરીમાં અગિયારસના દિવસે શ્રીઠાકોરજીને પવિત્રું ધરતી વેળા એ તેમની સમક્ષ મૂકી રાખીયે છીએ તેમ તે રાત્રે મિસરી વ્રજભક્તો શ્રીઠાકોરજી ને પવિત્રાની સાથે લેવડાવે  છે. તેવો ભાવ તેમાં રહેલો છે. ત્યારબાદ પવિત્રા બારસના દિવસે ગુરુને પવિત્રુ ધરાવીને મિસરી લેવડાવવામાં આવે છે. ત્યારબાદ વૈષ્ણવોને પવિત્રુ ધરાવી મિસરી વૈષ્ણવોને લેવડાવવામાં આવે છે. તે રસાત્મક હોવાથી પ્રેમ- રસ ઉત્પન્ન કરે છે. તેથી મિસરી એક બીજા વૈષ્ણવને લેવાડાવવાથી તેમના હ્યદયમાં પ્રેમ-ભાવ પ્રગટ થાય છે. ઉપરાંત ભક્તિ માર્ગનું જ્ઞાન થાય છે.

(૩) નંદ મહોત્સવ મિસરી:
નંદ મહોત્સવને દિવસે પલનામાં જે મિસરી ઉછાળવામાં આવે છે, તે યમુનાજીએ મિસરીના ભાવથી શ્રી ઠાકોરજીના રસાત્મક સ્વરૂપને ગોપીજનોને રસ તરબોળ થાય માટે પોતાનાં રસ રૂપી બિંદુઓ આપ્યા છે. તેઓ આનંદમાં આવી ને ઉછાળી બધાને રસ-રૂપ બનાવે છે. આમ લૌકિકમાં ભાવ એવો છે કે પારણામાં બધાને નંદ મહોત્સવનો આનંદ લેવા (નંદ ઘેર આનંદ ભયો) મિસરી ના રસાત્મક સરૂપને ઉછાળવામાં આવે છે.

(૪) નાથદ્વારામાં બંટામાં આઠ ગોટીના મિસરી:
એક દિવસ શ્રુંગાર સમયે શ્રીગોવિંદસ્વામી શ્રીઠાકોરજી સમક્ષ કીર્તન કરતાં હતાં. ત્યારે તેમના મનમાં થોડો અહં ભાવ થયો કે હું કેટલું સુંદર કીર્તન કરું છુ. મારા જેવું કીર્તન કોઈ જ કરતુ નથી. ત્યારે શ્રી ઠાકોરજીને.મનમાં થયું કે જો શ્રીગોવિંદસ્વામીને મનમાં ગર્વ થશે તો તે ભોંય પટકાશે માટે શ્રી ઠાકોરજીએ બંટામાથી સાત મિસરીની કાંકરી ગોવિંદસ્વામી પર મારી. ત્યારે ગોવિંદસ્વામીને જ્ઞાન થયું અને તેમનો અહંભાવ છૂટી ગયો. પછી ગોવિંદસ્વામીએ સામી શ્રી ઠાકોરજીને એક કાંકરી મારી અને કહ્યું કે ભગવાન્ તમારે તો મારા સિવાય બીજા સાત કીર્તનકાર હશે પણ મારે તો તમે એક જ છો. આ.ભાવથી આજે પણ શ્રીનાથજીમાં બંટામાં આઠ કાંકરી મિસરીની ધરવામાં આવે છે. જેમ અષ્ટ સખાઓએ શ્રી ઠાકોરજીની સેવામાં તરબોળ થઈ પોતાનાં આત્માને ઘસી ઘસીને સુંદર બનાવ્યો છે તેમ મિસરીના કાંકરાને ઘસી ઘસીને સુંદર બનાવવામાં આવે છે. આજે પણ જેનો રાજભોગ હોય તેમને તે મિસરી આપવામાં આવે છે.

(૫) માખણ મિસરી: 
માખણ-મિસરી એ પુષ્ટિમાર્ગમાં શ્રીઠાકોરજીને ધરાવામાં છપ્પનભોગ સમાન છે. તે દરરોજ શ્રીઠાકોરજી ને મંગલામાં ધરાવવું જોઈએ. માખણ રૂપી હ્યદયમાં મિસરી રૂપી રસાત્મકતાનું મિલન થાય છે તે દર્શાવે છે કે શ્રી ઠાકોરજી અને
યમુનાજીના રસ-રૂપી મિલનનો ભાવ છે.

(૬) સુકા મેવા-મિસરી:
સુકા મેવામાં કાજુ, દ્રાક્ષ, ખારેક અને કોપરા સાથે મિસરી ધરાવવામાં આવે છે. કાજુ એ ચંદ્રાવલીજીના ભાવથી ધરાય છે. ખારેક કુમારિકાના ભાવથી અને દ્રાક્ષ ગોપીજનોના ભાવથી છે. કોપરું એ વ્રજભક્તોના ભાવથી છે. આમ તેમાં પાંચમી વસ્તુ મિસરી પધરાવીએ છે તે શ્રીયમુનાજીનાં ભાવની છે. શ્રીયમુનાજી નિર્ગુણ અને રસાત્મક સ્વરૂપ છે તે સ્વામીનીજી ઓનો શ્રી ઠાકોરજી સાથે મિલન કરાવી આપે છે. સુકા મેવાની મિસરી એ ઝારીજીના ભાવ સ્વરૂપ પણ છે. જેની સુક્ષ્મ સેવા હોય તેઓ ઝારીજી ન ભરતા હોય તો આ મિસરી એ ઝારીજીનો ભાવ દર્શાવે છે.

(૭) કોઈક સમયે ઝારીજીમાં જળની જગ્યાએ મિસરી ભરવામાં આવે છે: 
વૈષ્ણવ બહારગામ જતા હોય ત્યારે ઝારીજી માં જળની જગ્યાએ મિસરી ભરવામાં આવે છે. તે સાક્ષાત યમુનાજી નો ભાવ છે અને ઝારીજીના સંબંધથી તેમાં જળ સ્વરૂપનો ભાવ આવે છે. તે શ્રીયમુનાજીનું આધિદૈવિક સ્વરૂપ છે.

(૮) પનાની મિસરી: 
શ્રીઠાકોરજીને અખાત્રીજ થી રથ-યાત્રા સુધી પનો ધરાવવામાં આવે છે. આ પનામાં સાકર, એલચી અને સહેજ બરાસ અને તેની સાથે મિસરી પધરાવવામાં આવે છે. ઘરની સેવામાં ઠાકોરજીને રાજભોગમાં પનો ધરાવાય છે અને જેને આખા દિવસની (છ પોરની) સેવા હોય તો તેણે ઉત્થાપનમાં પનો આવે. પાનાની મિસરીમાં શીતળતા નો ગુણ રહેલો છે. જે યમુનાજીનો ભાવ છે. હૃદયની વિરહાત્મક ભાવને તે શીતળતા આપે છે.

(૯) લીમડાની કૂપળ સાથેની મિસરી:
આ મિસરી સંવત્સરને દિવસે ધરાવવામાં આવે છે. સંસારરૂપી કડવાસમાં યમુનાજીરૂપી મિસરીનો રસ મેળવાય છે. જેથી સંસારની કડવાસમાં પણ ભગવદ્દ નામ લઈ શકાય છે. આ મિસરી એટલે કે શ્રીયમુનાજી આપણને શ્રીઠાકોરજીની સન્મુખ લઈ જાય છે. આમશ્રી યમુનાજીના ભાવની મિસરી દર્શાવે છે કે કડવાસમાં પણ મીઠાશ રહેલી છે.

(૧૦) શ્રીયમુનાજીને મિસરી ભોગ:
વૈષ્ણેવો વ્રજભૂમિમાં ઠકુરાણી ઘાટ પર યમુનાજીને મિસરીનો ભોગ ધરાવે છે. તેનો ભાવ છે કે શ્રીવસુદેવજી જ્યારે મથુરાથી શ્રીઠાકોરજી ને લઈને શ્રીયમુનાજીમાંથી પસાર થઈ ગોકુલ
પધરાવવા જતા હતાં ત્યારે શ્રીયમુનાજીએ તરંગો રૂપી હસ્ત-કમલ દ્વારા શ્રી ઠાકોરજીના ચરણ-કમળમાંથી જે રસાત્મક સ્વરૂપ લઈ પોતાની નિકુંજમાં પધરાવ્યું હતું. તે ભાવથી શ્રીઠકરાણી ઘાટ પર આજે પણ વૈષ્ણવો મિસરીનો ભોગ ધારે છે.

(૧૧) જ્યારે ગ્રહણ હોય ત્યારે:
ઘરના (પોતાનાં સેવ્ય-સ્વરૂપ) શ્રી ઠાકોરજીને ધરવા માટે ઝારીજીમાં મિસરી પધરાવવામાં આવે છે. તે સાક્ષાત શ્રી યમુનાજીનું આધિદૈવિક સ્વરૂપ છે. માટે ગ્રહણ સમયે ઝારીજીમાં મિસરી પધરાવવામાં આવે છે.

Tuesday, 25 August 2020

આજ બરસાને બજત બધાઈ,

આજ બરસાને બજત બધાઈ,
            આજ બરસાને બજત બધાઈ !!
પ્રકટ ભઈ વૃષભાન ગોપકે,
                            સબ હિનકે સુખદાઈ !! 1 !!
આનંદ મગન કહત યુવતિ જન,
                         મહરિ બઘાવન આઈ !!
બંદિજન માગઘ યાચક ગુની,
                            ગાવત ગીત સુહાઈ !! 2 !!
જય જયકાર ભયો ત્રિભુવન મેં,
                              પ્રેમ બેલી પ્રકટાઈ !!
"સૂરદાસ" પ્રભુકી યહ જીવન,
                            જોરી સુભગ બનાઈ !! 3 !!

व्रज – भाद्रपद शुक्ल अष्टमी

व्रज – भाद्रपद शुक्ल अष्टमी
Wednesday, 26 August 2020

आज वधाई है बरसाने ।
पंच शब्द बाजे सुनि सुर मुनि देखन मन तरसाने ।।१।।
कीरति कूखि चंद्रमा प्रगटी श्रीराधाजु पग दरसाने ।
ललित निकुंज बिहारीन के ऊर रहे रूप सरसाने ।।२।।

सभी वैष्णवजन को स्वामिनीजी के आगमन की ख़ूब ख़ूब बधाई

जय श्री कृष्ण 

राधाष्टमी

विशेष – आज राधाष्टमी है. प्रभु श्रीकृष्ण की अर्धांगिनी श्रीराधारानी का आज जन्मदिवस है.

पुष्टिमार्ग में आज का उत्सव भी जन्माष्टमी की भांति ही मनाया जाता है. 
विगत भाद्रपद कृष्ण पंचमी के दिन केसर से रंगे गये वस्त्र जन्माष्टमी एवं राधाष्टमी दोनों उत्सवों पर श्रीजी को धराये जाते हैं. 
आगामी वामन द्वादशी को धराये जाने वाले वस्त्र भी उसी दिन रंगे जाते हैं.

श्रीप्रभु की स्वामिनीजी श्री राधिकाजी का प्राकट्य आज के दिवस व्रज के बरसाना गाँव में वृषभान नामक गोप के यहाँ माता कीर्तिरानी के गर्भ से हुआ था.

प्रभु श्रीकृष्ण से लगभग एक वर्ष पूर्व आपका जन्म हुआ परन्तु आपने नैत्र नहीं खोले. 11 माह और 15 दिवस पश्चात जब गोकुल में नंदरायजी के यहाँ प्रभु श्रीकृष्ण का प्राकट्य हुआ और उसकी बधाई में जब थाली-मांदल बजाये गये तब आपने अपने नैत्र खोले.

श्री राधिकाजी के प्राकट्य के समय अलौकिक बालिका के दर्शन करने नारद मुनि, गर्गाचार्य जी, शांडिल्य मुनि आदि पधारे थे.

श्री राधिकाजी प्रभु की आनंदमयी शक्ति का प्राकट्य है.

श्रीप्रभु के साथ आपने मधुरभाव से दानलीला, मानलीला, चीर-हरण लीला, रासलीला आदि कई अद्भुत लीलाएँ की है.

अत्यंत उत्साह एवं उमंग से आज का उत्सव मनाया जाता है.

श्रीजी का सेवाक्रम – उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. 
गेंद, चौगान, दीवाला आदि सभी सोने के आते हैं.आज तकिया के खोल एवं साज जड़ाऊ स्वर्ण  काम के आते हैं.

अत्यंत उत्साह एवं उमंग से आज का उत्सव मनाया जाता है.

दिन में सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) आरती थाली में की जाती है.
शंखनाद प्रातः 4.15 बजे और मंगला दर्शन प्रातः 5.00 खुलते हैं.

मंगला दर्शन उपरांत प्रभु को चन्दन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

आज  ग्वाल के दर्शन बाहर नहीं खुलते गोपी वल्लभ (ग्वाल) के भोग सरे पश्चात स्वामिनीजी के शृंगार धराए जाते हैं.
मालाजी नवीन धरायी जाती हैं.
प्रभु के मुखारविंद पर (ऊबटना) चंदन से कपोलपत्र मांड़े जाते हैं. गुलाल,अबीर,चंदन,चोवा से सूक्ष्म खेल होवे फिर जड़ाऊ आरसी दिखा कर प्रभु श्री गोवर्धनधरण को कुंकुम-अक्षत से तिलक करके आरती करी जाती हैं.
शंख, झालर, घंटानाद के द्वारा स्वामिनीजी के आगमन का स्वागत किया जाता हैं.
तदुपरांत उत्सव भोग धरे जाते हैं जिसमें विशेष रूप से पंजीरी के लड्डू, छुट्टीबूंदी, खस्ता शक्करपारा, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी (मलाई-पूड़ी), सफ़ेद-केसरी मावा की गुंजिया, केशरयुक्त बासोंदी, जीरा युक्त दही, रवा की खीर, घी में तले बीज-चालनी के सूखे मेवे, और विविध प्रकार के संदाना अरोगाये जाते हैं.
साथ ही श्रीजी को श्री नवनीतप्रियाजी, द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी एवं तृतीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री द्वारकाधीशजी के घर से सिद्ध होकर आये पंजीरी के लड्डू भी अरोगाये जाते हैं.

आज श्रीजी को नियम से केसरी जामदानी के वस्त्र एवं श्रीमस्तक पर कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ धराये जाते हैं.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोरर (इलायची-जलेबी) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केशरयुक्त बासोंदी की हांडी एवं शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में पांचभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात और वड़ी-भात) आरोगाये जाते हैं. 

उत्थापन समय फलफूल के साथ अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर घी में तला हुआ बीज-चालनी का सूखा मेवा अरोगाया जाता है.

भोग-आरती के दर्शन में ढाढ़ी-ढाढन (नाच-गा कर बधाई देने वाले) आते हैं एवं मणिकोठा में हो रहे कीर्तन के दौरान दोनों नृत्य करते हैं. 
ढाढ़ीलीला होती है, ढाढ़ीलीला के पद गाये जाते हैं. इसके पश्चात दोनों को बधाई स्वरुप दान दिया जाता है.

ढाढ़ी-ढाढन दोनों पुरुष ही होते हैं. पिछले कई वर्षों से ढाढ़न के रूप में बुरहानपुर (महाराष्ट्र) के परम वैष्णव श्री बलदेवभाई सुन्दर स्त्रीवेश धर कर श्रीजी के समक्ष नृत्य करते हैं.

शयन समय डोल-तिबारी में ध्रुव-बारी के पास में प्रिया-प्रीतम के भाव से बिछायत होती है, कांच का बंगला धरा जाता है एवं विविध सज्जा की जाती है जो कि अनोसर में भी रहती है और अगले दिन शंखनाद पश्चात हटा ली जाती है.

कीर्तन – (राग : सारंग)

प्रगट भई रावल श्री राधा।।
सुनि धाई व्रजपुरकी वनिता निरखत सुंदर रूप अगाधा।।1।।
तब वृषभान दान बहु दीने जाचककी सब पूजी साधा। 
द्वारिकेस स्वामिनी महिमा मुनिमन ध्यान लगाय समाधा।।2।।

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज वृषभान के आनंद l
वृंदाविपिन विहारिनि प्रगटी श्रीराधाजु आनंद कंद ll 1 ll
गोपी ग्वाल गाय गो सुत लै चले यशोदा नंद l
नंदी सुरर तें नाचत गावत आनंद करत सुछंद ll 2 ll
लेत विमल यश देत वसन पशु धरत दूब शिरवृंद l
लोचन कुमुद प्रफुल्लित देखियत ज्यों गोरी मुखचंद ll 3 ll
जाचक भये परमधन कहियत गोधन सुधा अमंद l
भये मनोरथ ‘व्यास’ दासके दूरि गए दुःख द्वंद ll 4 ll

साज - श्रीजी में आज लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली (जन्माष्टमी वाली) पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर सफेद मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग की जामदानी की रुपहली रुपहली फूल वाली किनारी से सुसज्जित चाकदार एवं चोली धरायी जाती है. सूथन रेशम का लाल रंग का सुनहरी छापा का होता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का दो जोड़ का हीरा एवं माणक भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा- हीरे, मोती, माणक तथा स्वर्ण जड़ाव के आभरण धराये जाते हैं. 

श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर उत्सव की हीरा की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे-मोती के जड़ाव का चौखटा धराया जाता है. मुखारविंद पर चंदन से कपोलपत्र किये जाते हैं.

श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि मालाजी धरायी जाती है. 
पीले एवं श्वेत पुष्पों की विविध रंगों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
आज मोती का कमल धराया जाता हैं.
हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते है.
पट एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आते हैं.
 आरसी शृंगार में जड़ाऊ स्वर्ण की व राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.

Monday, 24 August 2020

व्रज – भाद्रपद शुक्ल सप्तमी

व्रज – भाद्रपद शुक्ल सप्तमी
Tuesday, 25  August 2020

 राधाष्टमी के आगम का श्रृंगार 

विशेष - कल राधाष्टमी का उत्सव है अतः आज श्रीजी को उत्सव के एक दिन पूर्व धराया जाने वाला हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 

सामान्य तौर पर प्रत्येक बड़े उत्सव के एक दिन पूर्व लाल वस्त्र, पीले ठाड़े वस्त्र एवं पाग पर सादा मोरपंख की चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है. 

प्रभु को यह श्रृंगार अनुराग के भाव से धराया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

धनि धनि प्रभावती जिन जाई ऐसी बेटी धनि धनि हो वृषभान पिता l
गिरिधर नीकी मानी सो तो तीन लोक जानी उरझ परी मानों कनकलता ll 1 ll
चरन गंगा ढारों मुख पर ससि वारों ऐसी त्रिभुवनमें नाहिन वनिता l
‘नंददास’ प्रभु श्याम बस करनको श्यामाजु के तोले नावे सिन्धु सुता ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में लाल रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल का सुनहरी किनारी से सुसज्जित पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना तथा जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच तथा मोरपंख की सादी चन्द्रिका तथा बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली चार सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
पीठिका के ऊपर भी श्वेत पुष्पों की मोटी मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी और एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल, गोटी स्वर्ण की छोटी व शृंगार में आरसी सोने की आती है.

Sunday, 23 August 2020

Chofuli Bandhani cotton Saaj

One of our Special creation

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Size: Hight of Mandir saaj 3ft Width 2ft.

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व्रज – भाद्रपद शुक्ल षष्ठी

व्रज – भाद्रपद शुक्ल षष्ठी
Monday, 24  August 2020

आज की पोस्ट श्रीस्वामनिजी(राधाजी) की अति प्रिय सखी श्री ललिताजी के प्राकट्योत्सव एवं ललिताजी के भाव से श्रीजी को लाड लड़ाने वाले नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री विट्ठलेशरायजी के सुंदर प्रसंग से ओत-प्रोत हैं

सभी वैष्णवजन को श्रीललिताजी के उत्सव, नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री विट्ठलेशरायजी (१७४४) का प्राकट्योत्सव की ख़ूब ख़ूब बधाई
 
बलदेव छठ, श्रीललिताजी का उत्सव, नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री विट्ठलेशरायजी (१७४४) का प्राकट्योत्सव

विशेष – आज राधिकाजी की प्रिय सखी ललिताजी का प्राकट्योत्सव है. इसी प्रकार आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री विट्ठलेशराय जी (१७४४) का भी प्राकट्योत्सव है.

आपका जन्म श्रीजी के नाथद्वारा पधारने के पश्चात तत्कालीन तिलकायत श्री दामोदरजी (दाऊजी) महाराज के यहाँ हुआ था. आप अनुपम सुन्दर, प्रसन्नवदन एवं सर्वांग सौष्टव युक्त थे. 
आज के दिन जन्म होने से आप सदैव ललिताजी के भाव से बिराजते थे. आपने सदैव स्वामिनी भाव से श्रीजी को विविध भोग, राग एवं श्रृंगार धरकर लाड़ लड़ाये. 
एक वैष्णव ने आपसे प्रश्न किया कि आप सदैव स्त्री वेश में क्यों रहते हैं तब आपने ललिताजी के स्वरुप में उनको दर्शन देकर संशय दूर किया. 
सामान्यतया कोई वल्लभकुल बालक का प्राकट्योत्सव हो तो श्रीजी में महाप्रभुजी की बधाई के पद गाये जाते हैं पर आज के उत्सव में आपकी अथवा श्री महाप्रभुजी की बधाई नहीं गाई जाती परन्तु ललिताजी की बधाई के पद गाये जाते हैं.

ललिताजी के भाव से ही आज श्रीजी को पंचरंगी लहरिया के वस्त्र धराये जाते हैं.

उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

श्रीजी प्रभु को नियम के पंचरंगी लहरिया के वस्त्र व श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर मोरपंख की सादी चंद्रिका का श्रृंगार धराया जाता है.  

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से श्रीजी को केशरयुक्त जलेबी के टूक एवं दूधघर में सिद्ध की गयी केशरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

भोग समय अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर घी में तला बीज चालनी का सूखा मेवा अरोगाया जाता है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज सखी शारदा कन्या जाई l
भादों सुदि षष्ठी है शुभ नक्षत्र वर आई ll 1 ll
भेरि मृदंग दुंदुभी बाजत नंदकुंवर सुखदाई l
गोपीजन प्रफुल्लित भई गावत मंगल गीत बधाई ll 2 ll
नामकरनको गर्ग पराशर गौतम वेद पढ़ाई l
दीने दान पिता विशोकजु नारद बीन बजाई ll 3 ll
आभूषण पाटंबर बहुविध गो भू दान कराई l
नंदराय वृषभानराय मीली विशोक ही देत बधाई ll 4 ll
सकल सुवासिनी धरत साथिये कीरति पंजरी धाई l
'व्रजपति' की स्वामिनी यह प्रगटी ललिता नाम धराई ll 5 ll

साज – आज श्रीजी में श्री गिरिराजजी की कन्दरा तथा श्री स्वामिनीजी के सुन्दर चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज पंचरंगी लहरिया का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र श्वेत डोरिया के होते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
नीचे चार पान घाट की जुगावली, ऊपर मोतियों की माला आती है. त्रवल नहीं धराया जाता वहीं हीरा की बग्घी धरायी जाती है.
श्रीमस्तक पर पंचरंगी लहरिया की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में चार कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, विट्ठलेशरायजी के वेणु, वेत्र (व एक सोने के) धराये जाते हैं.
पट लाल, गोटी स्याम मीना की आती हैं.
आरसी शृंगार में पिले खंड की व राजभोग में सोना की डाँडी की आती  है.

Chofuli Bandhni Hindola Saaj

One of our Special creation

Chofuli Bandhni Hindola Saaj

Used in Sravan and Aadhik maas manorath 

Saturday, 22 August 2020

One of our Special creationFull Mandir Saaj

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वैष्णव इसलिये गले में तुलसी की कण्ठी धारण करते हैं ?

वैष्णव इसलिये गले में तुलसी की कण्ठी धारण करते हैं ?

ये शरीर भोग के लिये नहीं है, यह शरीर भगवान् को अर्पण हो गया। जिस वस्तु में आप तुलसी-पत्र रखते हो, वह कृष्णार्पण हो जाती है।
तुलसी-पत्र के बिना भगवान् स्वीकार नहीं करते। गले में तुलसी की माला धारण करने का अर्थ यह है कि यह शरीर अब भगवान् को अर्पण हुआ है।  शरीर भगवान् का है, शरीर भगवान् के लिये। शरीर अब भोग के लिये नहीं है।

इसलिये बहुत-से लोग गले में तुलसी की कंठी धारण करते हैं

जय श्री कृष्णा

व्रज – भाद्रपद शुक्ल पंचमी

व्रज – भाद्रपद शुक्ल पंचमी
Sunday, 23  August 2020

श्री चन्द्रावलीजी का उत्सव, नील-पीत के पगा, पिछोड़ा का श्रृंगार

विशेष – आज राधिकाजी की परमसखी श्री चन्द्रावलीजी का उत्सव है. आज से राधाष्टमी की चार दिवस की झांझ (एक प्रकार का वाध्य) की बधाई बैठती है.

श्री विट्ठलनाथजी (गुसांईजी) श्री चन्द्रावलीजी का प्राकट्य स्वरुप है. श्री चन्द्रावलीजी का उत्सव स्वामिनीजी के उत्सव की भांति मनाया जाता है. 

आपका स्वरुप गौरवर्ण है अतः आज हाथीदांत के खिलौने और श्वेत वस्तुएं श्रीजी के सम्मुख श्री चन्द्रावलीजी के भाव से धरी जाती है. ( विस्तुत जानकारी अन्य आलेख में)

इसी भाव से श्रीजी को आज विशेष रूप से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं.

आज श्रीजी को नील-पीत के वस्त्र एवं ग्वाल-पगा का श्रृंगार धराया जाता है. वर्षभर में यह श्रृंगार आज ही धराया जाता है जिसमें नीले (मेघश्याम) रंग के हांशिया वाले पीले रंग के पगा, वस्त्र और पिछवाई धरायी जाती है. पगा पर नीले रंग की बिंदी होती है.

निम्नलिखित कीर्तन के आधार पर आज का यह श्रृंगार धराया जाता है.

किशोरीदास छाप का यह कीर्तन आज श्रीजी में गाया जाता है.

हो व्रज बासन को मगा l
वल्लभराज गोप कुल मंडन ईन दे घर को जगा ll 1 ll
नंदराय ऐक दियो पिछोरा तामे कनक तगा l
श्री वृषभान दिये कर टोडर हीरा जरत नगा ll 2 ll
किरत दई कुंवरि की झगुली जसुमत सुत को जगा l
‘किशोरीदास’ को पहरायो नील पीत को पगा ll 3 ll

कल भाद्रपद शुक्ल षष्ठी (सोमवार, 24 अगस्त 2020) को राधिकाजी की सखी ललिताजी एवं नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री विट्ठलेशरायजी (1743) का उत्सव है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज सखी सुखमा कन्या जाई l
भादो सुदि पांचे शुभ लग्न चंद्रभान गृह आई ll 1 ll
नामकरनको गर्ग पराशर नारदादि सब आये l
चंद्रावली नाम सुख सागर कोटिक चंद लजाये ll 2 ll
सुनि वृषभान नंद मिलि आये कीरति जसोदा आई l
मंगल कलश सुवासिन सिर धारी मोतिन चौक पुराई ll 3 ll
देत दान और धरत साथिये गोपी सब हरखानी l
निगम सार जोरी गिरिधरकी व्रजपति के मनमानी ll 4 ll

साज – आज श्रीजी में पीले रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस और आसमानी हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज पीली मलमल का आसमानी हांशिये वाला पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक के आभरण धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी व वैजयन्ती माला धरायी जाती है.

श्रीमस्तक पर पीले रंग का आसमानी किनारी और टिपकियों वाला ग्वालपाग (पगा) धराया जाता है जिसके ऊपर चमकना टिपारा का साज - मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में जड़ाव के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में टोडर धराया जाता हैं.
 श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी और वेत्रजी (एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.
पट पीला व गोटी बाघ बकरी की आती है.

शयन में कीर्तन - (राग : कान्हरो)

प्रकट भई शोभा त्रिभुवन की श्री वृषभान गोपके आई l
अद्भुत रूप देखि व्रजवनिता रीझी रीझी के लेत बलाई ll 1 ll
नहीं कमला नहीं शची रति रंभा उपमा उर न समाई l
जातें प्रकट भये व्रजभूषन धन्य पिता धनि माई ll 2 ll 
युग युग राज करौ दोऊ जन इत तुम उत नंदराई l
उनके मदनमोहन इत राधा ‘सूरदास’ बलिजाई ll 3 ll

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया  Saturday, 01 February 2025 इस वर्ष माघ शुक्ल पंचमी के क्षय के कारण कल माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन बसंत पंचमी का पर्व ह...