By Vaishnav, For Vaishnav

Sunday, 30 April 2023

व्रज - वैशाख शुक्ल एकादशी

व्रज - वैशाख शुक्ल एकादशी
Monday, 01 May 2023

मोहिनी एकादशी

केसरी (चंदनिया) रंग का पिछोड़ा और दुमाला पर मोती के सेहरा के श्रृंगार

विशेष – आज मोहिनी एकादशी है.
आज श्रीजी को नियम का केसरी (चंदनिया) रंग का पिछोड़ा और दुमाला पर मोती के सेहरा का श्रृंगार धराया जाता है और सेहरा के भाव के कीर्तन गाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – (राग : सारंग)

आज बने गिरिधारी दुल्हे चंदनको तनलेप कीये l
सकल श्रृंगार बने मोतिन के विविध कुसुम की माल हिये ll 1 ll
खासाको कटि बन्यो है पिछोरा मोतिन सहरो सीस धरे l
रातै नैन बंक अनियारे चंचल अंजन मान हरे ll 2 ll
ठाडे कमल फिरावत गावत कुंडल श्रमकन बिंद परे l
‘सूरदास’ प्रभु मदन मोहन मिल राधासों रति केल करे ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में सेहरा का श्रृंगार धराये श्री स्वामिनीजी, श्री यमुनाजी एवं मंगलगान करती व्रजगोपियों के सुन्दर चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी (चंदनिया) रंग की मलमल का पिछोड़ा एवं अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं यद्यपि पिछोड़ा में किनारी को भीतर की ओर इस प्रकार मोड़ दिया जाता है कि बाहर दृश्य ना हों. 

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर केसरी (चंदनिया) रंग के दुमाला के ऊपर मोती का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. दायीं ओर सेहरे की मोती की चोटी धरायी जाती है. 
श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
कली आदि की माला श्रीकंठ में धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी भी धरायी जाती हैं एवं इसी प्रकार श्वेत पुष्पों की एक मोटी मालाजी पीठिका के ऊपर भी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, सुवा वाले वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सुवा वाला व एक चांदी की) धराये जाते हैं.
पट गोटी ऊष्णकाल के राग-रंग के आते हैं.

Friday, 28 April 2023

व्रज - वैशाख शुक्ल नवमी

व्रज - वैशाख शुक्ल नवमी
Saturday, 29 April 2023

श्वेत मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर जमाव का क़तरा के श्रृंगार 

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को श्वेत मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर जमाव का क़तरा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

साज – (राग : सारंग)

आवत ही यमुना भर पानी l
श्याम रूप काहुको ढोटा वाकी चितवन मेरी गैल भुलानी ll 1 ll
मोहन कह्यो तुमको या व्रजमें हमे नहीं पहचानी l
ठगी सी रही चेटकसो लाग्यो तब व्याकुल मुख फूरत न बानी ll 2 ll
जा दिनतें चितये री मो तन तादिनतें हरि हाथ बिकानी l
'नंददास' प्रभु यों मन मिलियो ज्यों सागरमें सरित समानी ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में श्वेत जाली (Net) की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की गयी है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत रंग की मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है. पिछोड़ा रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होता है परन्तु किनारी बाहर आंशिक ही दृश्य होती है अर्थात भीतर की ओर मोड़ दी जाती है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का छेड़ान का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर श्वेत छज्जेदार पाग  के ऊपर सिरपैंच, लूम, जमाव का क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं एवं इसी प्रकार की एक व एक कमल माला हमेल की भांति धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का एवं गोटी हक़ीक की आते हैं.

Thursday, 27 April 2023

व्रज - वैशाख शुक्ल अष्टमी

व्रज - वैशाख शुक्ल अष्टमी
Friday, 28 April 2023

गुलाबी मलमल की धोती, पटका एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर तुर्रा के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को गुलाबी मलमल की धोती, पटका एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर तुर्रा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

भलेई मेरे आये हो पिय 
भलेई मेरे आये हो पिय ठीक दुपहरी की बिरियाँ l
शुभदिन शुभ नक्षत्र शुभ महूरत शुभपल छिन शुभ घरियाँ ll 1 ll
भयो है आनंद कंद मिट्यो विरह दुःख द्वंद चंदन घस अंगलेपन और पायन परियां l
'तानसेन' के प्रभु मया कीनी मों पर सुखी वेल करी हरियां ll 2 ll

साज - आज श्रीजी में गुलाबी रंग की मलमल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को गुलाबी रंग की मलमल धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता हैं. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं एवं हमेल की भांति दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, झिने लहरियाँ के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल के राग-रंग का एवं गोटी हक़ीक की आती हैं.

Wednesday, 26 April 2023

व्रज - वैशाख शुक्ल सप्तमी

व्रज - वैशाख शुक्ल सप्तमी
Thursday, 27 April 2023

नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री लालगिरधरजी महाराज का उत्सव, श्रीजी सेवा में फव्वारे आरम्भ

विशेष – आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री लालगिरधरजी महाराज का उत्सव है. आप तिलकायत होने के साथ उत्कृष्ट कवि थे. आपने ‘श्री लालगिरिधर’ के नाम से कई कीर्तन रचित किये हैं जो कि श्रीजी सेवा में गाये जाते हैं.

सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. 

आज सभी समय यमुनाजल की झारीजी आती है. दो समय थाली में आरती की जाती है.

डोलोत्सव से धीरे धीरे ऊष्णकाल क्रमानुसार आरम्भ हो जाता है और इसमें उत्तरोत्तर वृद्धि होने के साथ ही प्रभु के सुख में भी उसी क्रम में वृद्धि होती रहती है जिससे श्री ठाकुरजी को ऊष्णता का अनुभव न हो.
प्रभु सुखार्थ इतनी सूक्ष्मता से सेवाक्रम का निर्धारण निस्संदेह अद्भुत है. 
इसी क्रम में आज से ऊष्णकाल का एक और सौपान बढ़ जाता है जिसमें प्रभु सुखार्थ सेवाक्रम में कुछ परिवर्तन होंगे. 

आज से मंगला में श्रीजी को उपरना के स्थान पर आड़बंद धराया जाता है. 
आज से श्रीजी को ठाड़े (कन्दराजी के) वस्त्र नहीं धराये जायेंगे और प्रभु की पीठिका के दर्शन होंगे.
आज से प्रभु के श्रीहस्त में पुष्पछड़ी के स्थान पर कमलछड़ी धरायी जाती है.

इत्र – प्रभु सुखार्थ आज विशेष रूप से चैत्री गुलाब, रूह गुलाब, सोंधा, मोगरा, जूही अथवा रूह खस का इत्र समर्पित किया जाता है.

प्रभु को नियम का केसरी रंग के डोरिया का पिछोड़ा धराया जाता है, उत्सव के हीरा मोती के आभरण धराये जाते हैं व श्रीमस्तक पर लूम की रूपहरी किलंगी धरायी जाती है.

उत्सव होने के कारण श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त जलेबी के टूक एवं दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में श्रीखण्ड-भात अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन-

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीवल्लभ नंदन रूप अनूप स्वरुप कह्यो न जाई l
प्रकट परमानंद गोकुल बसत है सब जगत के सुखदाई ll 1 ll
भक्ति मुक्ति देत सबनको निजजनको कृपा प्रेम बरखत अधिकाई l
सुखद एक रसना कहां लो वरनो ‘गोविंद’ बलबल जाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की मलमल की, उत्सव के कमल के काम और रुपहली तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी डोरिया का स्याम झाई का पिछोड़ा धराया जाता है. आज से ठाड़े वस्त्र नहीं धराये जाते अतः पीठिका के दर्शन होते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. उत्सव के हीरा व मोती के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर श्याम झांई की केसरी छज्जेदार पाग के ऊपर संक्रान्ति वाले सिरपैंच, रुपहली लूम की किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में हीरा के झुमका वाले कर्णफूल एक जोड़ी धराये जाते हैं.
 श्रीकंठ में त्रवल नहीं आवे यद्यपि कंठी धरायी जाती है.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं एवं इसी प्रकार दो मालाजी हमेल की भांति धरायी जाती हैं. 
आज पीठिका के ऊपर श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की एक मोटी सुन्दर मालाजी भी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, ऊष्णकाल सुवा  वाले वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. पट ऊष्णकाल का व गोटी बड़ी हकीक की आती है.

आज से भोग दर्शन में प्रभु सुखार्थ श्रीजी के सम्मुख शीतल जल के चांदी के फव्वारे चलाये जायेंगे एवं राजभोग उपरान्त हर घन्टे भीतर व संध्या आरती दर्शन उपरान्त डोल-तिबारी में भी शीतल जल का छिड़काव प्रारंभ हो जायेगा.
भोग समय अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर बीज-चालनी के सूखे मेवा अरोगाये जाते हैं.

Tuesday, 25 April 2023

व्रज - वैशाख शुक्ल षष्ठी

व्रज - वैशाख शुक्ल षष्ठी 
Wednesday, 26 April 2023

छैल जो छबीला, सब रंग में रंगीला
बड़ा चित्त का अड़ीला, कहूं देवतों से न्यारा है।
माल गले सोहै, नाक-मोती सेत जो है कान,
कुण्डल मन मोहै, लाल मुकुट सिर धारा है।
दुष्टजन मारे, सब संत जो उबारे ताज,
चित्त में निहारे प्रन, प्रीति करन वारा है।
नन्दजू का प्यारा, जिन कंस को पछारा,
वह वृन्दावन वारा, कृष्ण साहेब हमारा है।।

ताज़बीबी के अन्नय भाव के सूथन, फेंटा और पटका के श्रृंगार

विशेष – आज प्रभु को सूथन, फेंटा और पटका का श्रृंगार धराया जाता है. यद्यपि आज का दिन इस श्रृंगार के लिए नियत नहीं परन्तु सामान्यतया आज के दिन ही धराया जाता है.

श्रीजी ने अपने सभी भक्तों को आश्रय दिया है, मान दिया है चाहे वो किसी भी धर्म से हो. 

इसी भाव से आज ठाकुरजी अपनी अनन्य मुस्लिम भक्त ताज़बीबी की भावना से सूथन-पटका का श्रृंगार धराते हैं. यह श्रृंगार ताज़बीबी की विनती पर सर्वप्रथम भक्तकामना पूरक श्री गुसांईजी ने धराया था. 

ताज़बीबी की ओर से यह श्रृंगार वर्ष में छह बार धराया जाता है. भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी (गणेश चतुर्थी) के दिन यह श्रृंगार नियम से धराया जाता है यद्यपि इस श्रृंगार को धराने के अन्य पांच दिन निश्चित नहीं हैं. 

ताज़बीबी बादशाह अकबर की बेग़म, प्रभु की भक्त और श्री गुसांई जी की परम-भगवदीय सेवक थी. उन्होंने कई कीर्तनों की रचना भी की है और उनके सेव्य स्वरुप श्री ललितत्रिभंगी जी वर्तमान में गुजरात के पोरबंदर में श्री रणछोड़जी की हवेली में विराजित हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

बन्यो वागौ वामना चंदनको l
चंपकली की पाग बनाई भाल तिलक बन्यो वंदन को ll 1 ll
चोली की छबि कहत न आवे काछोटा मनफंदनको l
‘परमानंद’ आनंद तहाँ नित मुख निरखत नंद नंदनको ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में फिरोज़ी धोरा के रंग की मलमल की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को फिरोज़ी धोरा के रंग की मलमल का धोरे (थोड़े-थोड़े अंतर से किनारी के धोरे) वाला सूथन और राजशाही पटका धराया जाता है. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य (घुटने तक) का उष्णकालीन छेड़ान का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर फिरोज़ी धोरा के रंग के फेंटा के ऊपर सिरपैंच, चंद्रिका, कतरा तथा बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
 श्रीकर्ण में लोलकबिन्दी लड़ वाले कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, गंगा जमुनी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उष्णकाल का व गोटी बाघ-बकरी की आती है.

Monday, 24 April 2023

व्रज - वैशाख शुक्ल पंचमी

व्रज - वैशाख शुक्ल पंचमी
Tuesday, 25 April 2023

मल्लकाछ टिपारा का श्रृंगार

मल्लकाछ (मल्ल एवं कच्छ) दो शब्दों से बना है और ये एक विशेष पहनावा है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. 
सामान्यतया वीर-रस का यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु की चंचलता प्रदर्शित करने की भावना से धराया जाता है.

कीर्तन – (राग : सारंग)

अक्षय तृतीया गिरिधर बैठे चंदन को 
तन लेप किए ।
प्रफुल्लित वदन सुधाकर निरखत गोपी नयन चकोर पियें ।।१।।
कनक वरन शिर बनयो हे टीपारो ठाडे है कर कमल लिए ।
गोविंद प्रभु की बानिक निरखत वार फेर तन मनजु दिये ।।२।।

  साज – आज श्रीजी में माखनचोरी लीला के सुन्दर चित्रांकन से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है जिसमें कृष्ण-बलराम अपने मित्रों के साथ मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार धराये माखन चोरी कर रहे हैं. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज अंगूरी मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी वाला मल्लकाछ एवं पटका धराया जाता है. इसी प्रकार अंगूरी रंग का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी वाला पटका भी धराया जाता है. इस श्रृंगार को मल्लकाछ-टिपारा एवं दोहरा पटका का श्रृंगार कहा जाता है. ठाड़े वस्त्र केसरी डोरिया के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को श्रीकंठ का शृंगार छेड़ान (हल्का) बाक़ी मध्य का (घुटने तक) ऊष्णक़ालीन श्रृंगार धराया जाता है. मोतियों के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर टिपारा का साज (अंगूरी मलमल की टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में फ़ीरोज़ी रंग की मोरशिखा और दोनों ओर दोहरा कतरा) तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
हांस, त्रवल, पायल कड़ा हस्तसाखलाआदि धराये जाते हैं. श्रीकंठ में श्वेत माला धरायी जाती है. श्वेत पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमल के फूल की छड़ी, सुवा के वेणुजी तथा दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उष्णकाल का व गोटी हक़ीक की आती है. 

Saturday, 22 April 2023

व्रज - वैशाख शुक्ल तृतीया Sunday, 23 April 2023अक्षय तृतीया

व्रज - वैशाख शुक्ल तृतीया
Sunday, 23 April 2023

अक्षय तृतीया

श्याम अंग सखी हेम चंदनको नीको सोहे वागो ।
चंदन ईजार चंदन को पटुका बन्यो सीस चंदन को पागो ।।१।।
अति छबि देत चंदन ऊपरना बीच बन्यो चंदन को तागो ।
सब अंग छींट बनी चंदन की निरखत सूर सुभागो ।।२।।

श्रृंगार समां का कीर्तन –

आज मेरे आएंगे हरि मेहमान l
चंदन भवन लिपाय स्वच्छ करि धर्यो है अरगजा सान ll 1 ll
पलकन के पावड़े बिछाऊँ अंचल पवन दुराऊँ l
सुधे बसन सगमंगे किने मुक्ता ले पहराऊँ ll 2 ll
करके मनोरथ अपने मन को रही न कछु अभिलाष l
पहले बोल सुनत तू आली ‘कृष्णदास’ हित साख ll 3 ll

प्रभु को नियम का श्वेत मलमल का केसर की किनार वाला पिछोड़ा व चंदनिया रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की कुल्हे के ऊपर तीन मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ धरायी जाती है.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से कूर (घी में सेके गये कसार) के चाशनी चढ़े गुंजा व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

अक्षय तृतीया अक्षयलीला नवरंग गिरिधर पहेरत चंदन l
वामभाग वृषभान नंदिनी बिचबिच चित्र नव वंदन ll 1 ll
तनसुख छींट ईजार बनी है पीत उपरना विरह-निकंदन l
उर उदार बनमाल मल्लिका सुखद पाग युवतीन मनफंदन ll 2 ll
नखसिख रत्न अलंकृत भूषन श्रीवल्लभ मारग मनरंजन l
‘कृष्णदास’ प्रभु रसिक सिरोमनि लोचन चपल लजावत खंजन ll 3 ll

साज – आज प्रभु में श्वेत चिकन बूटी की पिछवाई धरायी जाती है जिसमें केसर की किनार की जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को श्वेत मलमल का केसर की किनार वाला पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र चंदनिया (चंदन के) डोरिया के धराये जाते हैं.

#पोस्ट में प्रस्तुत चित्र में सभी वस्त्र एवं पिछवाई आदि पर चंदन के छापा द्रश्य हैं परन्तु वास्तव में ऐसा नही होता. वस्त्रादि साज पर केसर की किनार ही की जाती है.

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) उष्णकालीन मध्यम श्रृंगार धराया जाता है. विशेष मोती, हीरा एवं स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
नीचे उष्ण काल के मोती के पदक ऊपर मोती की माला धरायी जाती हैं.
कली एवं सात बालकन की माला धरायीं जाती हैं.
श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, तीन मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरे के कुंडल धराये जाते हैं.
पीठिका के ऊपर मोती का चौखटा धराया जाता है.
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, मोती के वेणुजी तथा दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का, गोटी मोती की व आरसी शृंगार में हरे मख़मल की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

आज ग्वाल के दर्शन नहीं खोले जाते और दो राजभोग दर्शन खुलते हैं.

पहले राजभोग में नित्य-नियम के भोग के साथ अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में घोला हुआ सतुवा, दहीभात आदि अरोगाये जाते हैं.
भोग सरे उपरान्त हस्तनिर्मित खस के पंखा, श्वेत माटी के करवा, कुंजा व चन्दन बरनी का अधिवासन होता है और दर्शन खोले जाते हैं.

आज से प्रभु को चन्दन धराया जाता है. चन्दन को घिस के मलमल के वस्त्र में लेकर जल निचो लिया जाता है एवं इसमें केशर, बरास, इत्र (खस अथवा गुलाब), गुलाबजल आदि मिलाकर इसकी गोलियां बनायी जाती है.

खुले दर्शन के मध्य प्रभु को चंदन समर्पित किया जाता है. पहली गोली प्रभु के वक्षस्थल पर, दूसरी गोली, दायें श्रीहस्त में, तीसरी बायें श्रीहस्त पर, चौथी दायें श्रीचरण पर और पांचवी गोली बायें श्रीचरण पर धरी जाती है.

इसके पश्चात दो नये हस्तनिर्मित ख़स के हाथ-पंखा को जल छिड़ककर प्रभु को कुछ देर पंखा झलकर गादी के पीछे तकिया की दोनों ओर रखे जाते हैं.

पहले राजभोग दर्शन खुलते हैं परन्तु इस दर्शन में आरती नहीं की जाती.
दर्शन उपरांत दूसरे राजभोग में उत्सव भोग रखे जाते हैं जिनमें प्रभु को खरबूजा (शक्कर टेंटी) के छिले हुए बीज के लड्डू, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी, बासोंदी, जीरा मिश्रित दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, बीज-चालनी का सूखा मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार), विविध प्रकार के फल, उत्तमोत्तम रत्नागिरी आम की डबरिया, शीतल आदि अरोगाये जाते हैं.

सखड़ी में बड़े टूक, पाटिया, दहीभात, घोला हुआ सतुवा आदि अरोगाये जाती हैं.

दुसरे राजभोग दर्शन में आरती होती है. राजभोग दर्शन में प्रभु के सम्मुख सिकोरी (स्वर्ण का जालीदार पात्र) में पान के बीड़ा धरे जाते हैं.

आज प्रभु के मुंडन का दिन भी है और इस कारण आज के उत्सव में ठाकुरजी के ननिहाल के सदस्य भी आमंत्रित किये जाते हैं और इसीलिए आज श्री यशोदाजी के पीहर की लकड़ी की विशिष्ट चौकी का प्रयोग भोग धरने में किया जाता है.

आज से रथयात्रा तक प्रतिदिन संध्या-आरती में प्रभु को क्रमशः जल में भीगी (अजवायन युक्त) चने की दाल, भीगी मूँग दाल व तीसरे दिन अंकुरित मूँग (अंकूरी) अरोगाये जाते हैं. यद्यपि यह सामग्री रथयात्रा के पश्चात भी जन्माष्टमी तक अरोगायी जाती है परन्तु इसके स्वरुप में कुछ परिवर्तन होता है जिसका वर्णन मैं तभी दूंगा.

आज से जन्माष्टमी तक प्रतिदिन संध्या-आरती में प्रभु को शीतल (जल में बूरा, गुलाबजल, इलायची, बरास आदि मिलाकर सिद्ध किया गया पेय) अरोगाया जाता है.

चंदन की गोलियां संध्या-आरती पश्चात श्रृंगार बड़ा हो तब बड़ी की (हटाई) जाती है.

शयन समय शैयाजी के ऊपर छींट की गादी एवं उसके ऊपर श्वेत मलमल की चादर रखी जाती है. शैयाजी का यह क्रम आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा तक रहता है.

आप सभी को अक्षय-तृतीया के उत्सव की ख़ूबख़ूब बधाई

Friday, 21 April 2023

व्रज - वैशाख शुक्ल द्वितीया

व्रज - वैशाख शुक्ल द्वितीया
Saturday, 22 April 2023

आगम का श्रृंगार

विशेष – आज के दिन भगवान परशुरामजी का जन्म भी हुआ था जो कि भगवान विष्णु के क्रोधवंत अंशावतार हैं. यध्यपि भगवान परशुरामजी को पुष्टिमार्ग में मान्यता नहीं दी गयी है
 
कल अक्षय-तृतीया है और आज श्रीजी को उत्सव के एक दिन पूर्व धराया जाने वाला हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 

अधिकांश बड़े उत्सवों के एक दिन पूर्व लाल-पीले वस्त्र एवं पाग-चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है. इसे आगम का श्रृंगार कहा जाता है और यह श्रृंगार अनुराग के भाव से धराया जाता है. 

इस श्रृंगार के लाल वस्त्र विविध ऋतुओं के उत्सवों के अनुरूप होते हैं अर्थात गत वैशाख कृष्ण नवमी को श्री महाप्रभुजी के उत्सव के पूर्व के इस श्रृंगार में तत्कालीन ऋतु के अनुरूप घेरदार वागा धराये गए थे और वैशाख कृष्ण द्वादशी से सामान्यतया शीतकालीन वस्त्र अर्थात घेरदार, चाकदार एवं खुलेबंद के वागा नहीं धराये जाते अतः आज प्रभु को लाल मलमल का पिछोड़ा धराया जायेगा. 

कल अक्षय तृतीया है और चन्दन यात्रा का आरम्भ होगा. श्रीजी में सेवाक्रम में भी कई परिवर्तन होंगे. सिंहासन, चरणचौकी, पड़घा, झारीजी, बंटाजी, वेणुजी, वेत्रजी आदि स्वर्ण के प्रभु के सम्मुख इस ऋतु में आज अंतिम बार धरे जाते हैं अर्थात कल से सर्व-साज चांदी के साजे जायेंगे. 

आज से श्रीजी के श्रीहस्त में पुष्पछड़ी के स्थान पर कमल छड़ी धरायी जाएगी.

विगत कल प्रतिपदा को शयन समय चंदुआ एवं टेरा सफ़ेद बांधे जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज की बानिक कही न जाय, बैठे निकस कुंजद्वार l
लटपटी पाग सिर सिथिल चिहुर चारू खसित बरुहा चंदरस भरें ब्रजराजकुमार ll 1 ll
श्रमजल बिंदु कपोल बिराजत मानों ओस कन नीलकमल पर l
‘गोविंद’ प्रभु लाडिलो ललन बलि कहा कहों अंग अंग सुंदर वर ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में लाल सुनहरी लप्पा की, सुनहरी ज़री की तुईलैस के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को लाल मलमल का पिछोड़ा धराया जाता हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल मलमल की गोल
 पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में एक जोड़ी पन्ना के कर्णफूल धराये जाते हैं. श्रीकंठ में  पन्ना की चार माला धरायी जाती है. श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट लाल, गोटी सोने की छोटी व आरसी श्रृंगार में सोना की एवं राजभोग में बटदार आती है.

Thursday, 20 April 2023

व्रज - वैशाख शुक्ल प्रतिपदा

व्रज - वैशाख शुक्ल प्रतिपदा 
Friday, 21 April 2023

ग्रीष्म ऋतु का अंतिम मुकुट काछनी का श्रृंगार

विशेष - श्रीजी को आज इस ऋतु का अंतिम मुकुट का श्रृंगार धराया जायेगा. आज के पश्चात मुकुट-काछनी का श्रृंगार लगभग दो माह दस दिन पश्चात (आषाढ़ शुक्ल एकादशी को) धराया जायेगा.
आज के वस्त्र कांकरौली श्री द्वारिकाधीश मंदिर की तरफ़ से आते हैं.

प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है. 

अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी का पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता. 

जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है. 

जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं. 

जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है. 

आज संभवतया श्रीजी के श्रीहस्त में पुष्पछड़ी अंतिम बार धरायी जाती है. कल से प्रभु के श्रीहस्त में कमल-छड़ी धरायी जायेगी.

कीर्तन – (राग : सारंग)

कुंजभवन तें निकसे माधो-राधा ये चले मेलि गले बांह l
तब प्यारी अरसाय पियसो मंद मंद ज्यों स्वेदकन वदन निहारत करत मुकुट की छांह ll 1 ll
श्रमित जान पट पीत छोरसो पवन ढुरावे हो व्रजवधु वनमांह l
‘जगन्नाथ’ कविराय की प्यारी देखत नयन सिराह ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में लाल रंग की मलमल की, सुनहरी लप्पा की तुईलैस के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल का सूथन, काछनी एवं रास-पटका धराये जाते हैं. चोली नहीं धरायी जाती. 
सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (चिकन) के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर स्वर्ण का डांख का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर उत्सव की मीना की शिखा (चोटी) धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में कली, कस्तूरी व कमल माला धरायी जाती है.
 श्वेत पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर कलात्मक वनमाला धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी शतरंज की आती है.

Wednesday, 19 April 2023

व्रज - वैशाख कृष्ण अमावस्या

व्रज - वैशाख कृष्ण अमावस्या
Thursday, 20 April 2023

गुलाबी मलमल की धोती, पटका एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर क़तरा के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को गुलाबी मलमल की धोती, पटका एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर क़तरा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन : (राग – सारंग)

आंगन खेलिये झनक मनक ।
लरिका यूथ संग मनमोहन बालक ननक ननक ।।१।।
पैया लागो पर घर जावो छांडो खनक खनक ।
परमानंद कहत नंदरानीबानिक तनक तनक ।।२।।

साज – आज श्रीजी में गुलाबी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज गुलाबी मलमल की धोती एवं पटका धराया जाता है. दोनों वस्त्र रूपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र स्याम रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व-आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
 श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, स्याम मीना के वेणुजी एवं वेत्र धराये जाते हैं.
पट गुलाबी एवं गोटी चाँदी की आती हैं.

Tuesday, 18 April 2023

व्रज - वैशाख कृष्ण चतुर्दशी

व्रज - वैशाख कृष्ण चतुर्दशी
Wednesday, 19 April 2023

मल्लकाछ टिपारा का श्रृंगार

विशेष – आज का श्रृंगार नियम का नहीं है परन्तु सामान्यतया आज के दिन धराया जाता है. 

श्री महाप्रभुजी के उत्सव पश्चात बाललीला के चार श्रृंगार धराये जाते हैं और इन चार दिन सभी समां में बाल-लीला के कीर्तन ही गाये जाते हैं. 

आज यह श्रृंगार बाललीला के भाव से धराया जा रहा है. 
मल्लकाछ (मल्ल एवं कच्छ) दो शब्दों से बना है और ये एक विशेष पहनावा है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. 
सामान्यतया वीर-रस का यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु की चंचलता प्रदर्शित करने की भावना से धराया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

गोविंद लाडिलो लडबोरा l
अपने रंग फिरत गोकुलमें श्यामवरण जैसे भोंरा ll 1 ll
किंकणी कणित चारू चल कुंडल तन चंदन की खोरा l
नृत्यत गावत वसन फिरावत हाथ फूलन के झोरा ll 2 ll
माथे कनक वरण को टिपारो ओढ़े पिछोरा l
‘परमानंद’ दास को जीवन संग दिठो नागोरा ll 3 ll 

साज – आज श्रीजी में माखनचोरी लीला के सुन्दर चित्रांकन से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है जिसमें कृष्ण-बलराम अपने मित्रों के साथ मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार धराये माखन चोरी कर रहे हैं. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल पीली चौफ़ुली चुंदड़ी का मल्लकाछ एवं दो पटका धराये जाते हैं. दोनों वस्त्र रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) मध्यम श्रृंगार धराया जाता है. स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर टिपारा का साज (लाल पीली चौफ़ुली चुंदड़ी की टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में मोरशिखा और दोनों ओर दोहरा कतरा) तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
हांस, त्रवल, पायल आदि धराये जाते हैं. श्रीकंठ में कमल माला धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, सोना के वेणुजी तथा दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी बाघ-बकरी की आती है. 

व्रज - वैशाख कृष्ण चतुर्दशी

व्रज - वैशाख कृष्ण चतुर्दशी
Wednesday, 19 April 2023

मल्लकाछ टिपारा का श्रृंगार

विशेष – आज का श्रृंगार नियम का नहीं है परन्तु सामान्यतया आज के दिन धराया जाता है. 

श्री महाप्रभुजी के उत्सव पश्चात बाललीला के चार श्रृंगार धराये जाते हैं और इन चार दिन सभी समां में बाल-लीला के कीर्तन ही गाये जाते हैं. 

आज यह श्रृंगार बाललीला के भाव से धराया जा रहा है. 
मल्लकाछ (मल्ल एवं कच्छ) दो शब्दों से बना है और ये एक विशेष पहनावा है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. 
सामान्यतया वीर-रस का यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु की चंचलता प्रदर्शित करने की भावना से धराया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

गोविंद लाडिलो लडबोरा l
अपने रंग फिरत गोकुलमें श्यामवरण जैसे भोंरा ll 1 ll
किंकणी कणित चारू चल कुंडल तन चंदन की खोरा l
नृत्यत गावत वसन फिरावत हाथ फूलन के झोरा ll 2 ll
माथे कनक वरण को टिपारो ओढ़े पिछोरा l
‘परमानंद’ दास को जीवन संग दिठो नागोरा ll 3 ll 

साज – आज श्रीजी में माखनचोरी लीला के सुन्दर चित्रांकन से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है जिसमें कृष्ण-बलराम अपने मित्रों के साथ मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार धराये माखन चोरी कर रहे हैं. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल पीली चौफ़ुली चुंदड़ी का मल्लकाछ एवं दो पटका धराये जाते हैं. दोनों वस्त्र रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) मध्यम श्रृंगार धराया जाता है. स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर टिपारा का साज (लाल पीली चौफ़ुली चुंदड़ी की टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में मोरशिखा और दोनों ओर दोहरा कतरा) तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
हांस, त्रवल, पायल आदि धराये जाते हैं. श्रीकंठ में कमल माला धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, सोना के वेणुजी तथा दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी बाघ-बकरी की आती है. 

Monday, 17 April 2023

व्रज - वैशाख कृष्ण त्रयोदशी

व्रज - वैशाख कृष्ण त्रयोदशी
Tuesday, 18 April 2023

श्री महाप्रभुजी के उत्सव उपरान्त बालभाव के श्रृंगार

विशेष – श्री महाप्रभुजी के उत्सव उपरान्त कुछ बालभाव के श्रृंगार धराये जाते हैं. आज श्रीजी को बाल-लीला के भाव से धोती-पटका का श्रृंगार धराया जाता है. सभी समां में बाल-लीला के कीर्तन ही गाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन : (राग – सारंग)

जब मेरो मोहन चलेगो घटुरुवन तब हौं री करौंगी वधाई l
सर्वसु वारी देहुँगी तिहि छिनु मैया कहि तुतुराई ll 1 ll
यशोदा के वचन सुनत ‘केशो प्रभु’ जननी प्रीति जानी अधिकाई l
नंदसुवन सुख दियो मात कों अतिकृपाल मेरो नंद ललाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में श्री ठाकुरजी को पलना झुलाते नंद-यशोदा जी, नंदोत्सव एवं छठी पूजन के सुन्दर कलात्मक चित्रांकन की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल मलमल की धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता है. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल मलमल की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, सुनहरी चमक की गोल-चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
 मोती एवं माणक की हमेल धरायी जाती है.
 श्रीकंठ में हालरा व बघनखा धराये जाते हैं.
 श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी तथा एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी चांदी की आती है. 

Sunday, 16 April 2023

व्रज - वैशाख कृष्ण द्वादशी

व्रज - वैशाख कृष्ण द्वादशी
Monday, 17 April 2023

श्री महाप्रभुजी के उत्सव का परचारगी श्रृंगार

विशेष – आज प्रातः मंगला से श्रृंगार तक श्री द्वारकेशजी महाराज कृत ‘मूल पुरुष’ गायी जाती है एवं सारे दिन प्रत्येक समां में बधाई एवं श्रीवल्लभ की बाल-लीला के कीर्तन गाये जाते हैं.

आज से श्रीजी के सेवाक्रम में भी कुछ परिवर्तन होते हैं. 
मंगला दर्शन में पीठिका के ऊपर धरायी जाने वाली दत्तु आज से नहीं धरायी जाती है. 
इसके अतिरिक्त घेरदार, चाकदार और खुलेबंद के वागा भी आज से नहीं धराये जायेंगे. 
आज से प्रभु को मलमल के उष्णकाल के वस्त्र (पिछोड़ा, परदनी, धोती-पटका, मल्लकाछ आदि) ही धराये जायेंगे.

आज दो समय की आरती थाली में की जाती है. झारीजी सभी समय यमुनाजल की आती है.

आज पिछवाई के अलावा सभी वस्त्र एवं श्रृंगार पिछली कल की भांति ही होते हैं. केवल कल के खुलेबन्द के वागा के स्थान पर पिछोड़ा धराया जाता है (यदि ऋतु में ठंडक हो तो आज खुलेबन्द भी धराये जा सकते हैं).

इसे परचारगी श्रृंगार कहते हैं. श्रीजी में अधिकांश बड़े उत्सवों के एक दिन बाद उस उत्सव का परचारगी श्रृंगार होता है. परचारगी श्रृंगार के श्रृंगारी श्रीजी के परचारक महाराज (चिरंजीवी श्री विशालबावा) होते हैं. यदि वो उपस्थित हों तो वही श्रृंगारी होते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

दान देत श्री लक्ष्मण प्रमुदित मणिमाणिक कंचन पट गाय l
श्री व्रजराज कुंवर यशोदासुत करुणाकर प्रगटे हरि आय ll 1 ll
रही न मन अभिलाष कछू अब याचक ना महतो कोऊ l
‘विष्णुदास’ उमगे अंतर तें दे असीस तुमसे नहि कोय ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में एक ओर अग्नि-कुंड में से श्री महाप्रभुजी के प्राकट्य और दूसरी ओर श्री गिरिराजजी की कन्दरा में से श्रीजी के प्राकट्य के सुन्दर चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी
 मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है. वस्त्र रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं परन्तु किनारी बाहर दृश्य नहीं होती अर्थात भीतर की ओर मोड़ दी जाती है. ठाड़े वस्त्र श्वेत मलमल के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर केसरी की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की मोर-चंद्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर उत्सव की मोती की चोटी (शिखा) भी धरायी जाती है.
आज बाजु पोची माणक की धरायी जाती हैं.
 चैत्री गुलाबों एवं अन्य पुष्पों से निर्मित जाली वाला अत्यंत सुन्दर वन-चौखटा पीठिका के ऊपर धराया जाता है.
 श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर थागवाली कलात्मक वनमाला धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट एवं गोटी जड़ाऊ की व आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की आती है.

Saturday, 15 April 2023

व्रज - वैशाख कृष्ण एकादशी

व्रज - वैशाख कृष्ण एकादशी
Sunday, 16 April 2023

दृढ़ इन चरनन केरो,
भरोसो दृढ़ इन चरनन केरो।
श्रीवल्लभनख चन्द्र छटा बिनु,
सब जग माँझ अन्धेरो।।
साधन और नहीं या कलि में,
जासों होत निबेरो।
सूर कहा कहे द्विविध आँधरो,
बिना मोल को चेरो।।
भरोसो दृढ़ इन चरनन केरो।

सभी वैष्णवों को पुष्टिमार्ग के प्रथम प्रणेता परमपूज्य जगद्गुरु श्रीमद्वल्लभाचार्य जी के ५४६ वे  प्राकट्योत्सव की ख़ूबख़ूब बधाई

जगद्गुरु श्रीमद्वल्लभाचार्यजी (श्री महाप्रभुजी) का प्राकट्योत्सव (जगद्गुरु श्रीमद्वल्लभाचार्यजी के बारे में विस्तृत जानकारी अन्य पोस्ट में )

आज वैशाख कृष्ण (वरूथिनी) एकादशी है और जगद्गुरु श्रीमद्वल्लाभाचार्यजी (श्रीमहाप्रभुजी) का प्राकट्योत्सव है. 

आज श्रीजी को नियम के केसरी (अमरसी) मलमल के खुलेबन्ध के चाकदार वागा व श्वेत ठाडे वस्त्र धराये जाते हैं. वनमाला का दो जोड़ी का श्रृंगार धराया जाता है. हांस, हमेल, कठुला, त्रबल आदि धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चन्द्रिका धरायी जाती है.
श्याम वस्त्र के ऊपर मोतियों की सज्जा वाला सुन्दर चौखटा प्रभु की पीठिका पर धराया जाता है. 

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त जलेबी के टूक, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा का अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में केसरी पेठा, मीठी सेव, पांचभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात एवं वड़ी-भात) व घोला हुआ सतुवा अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग समय उत्सव भोग रखे जाते हैं जिनमें प्रभु को केशरयुक्त जलेबी टूक के टोकरा, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी (मलाई पूड़ी), बासोंदी, जीरा मिश्रित दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, श्रीखंड-वड़ी, घी में तला हुआ बीज-चालनी का सूखा मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, विविध प्रकार के फलफूल, शीतल आदि अरोगाये जाते हैं.

इसी प्रकार श्रीजी के निज मंदिर में विराजित श्री महाप्रभुजी की गादी को भी एक थाल में यही सब सामग्रियां भोग अरोगायी जाती हैं.

राजभोग सरे उपरान्त श्रीजी को उस्ताजी की बड़ी आरसी दिखायी जाती हैं फिर राजभोग दर्शन खुलते है और श्रीजी को तिलक, अक्षत किये जाते है, बीड़ा पधराये जाते हैं और मुठिया वार के चून की आरती की जाती है.
इस उपरान्त श्री महाप्रभुजी के पादुकाजी को भी मुठिया वार के चून की आरती की जाती है.

आज श्रीजी को नियम के केसरी मलमल के खुले बन्ध (तनी बाँध के धरावे) चाकदार वागा व श्वेत ठाडे वस्त्र धराये जाते हैं. वनमाला का दो जोड़ी का श्रृंगार धराया जाता है. हांस, हमेल, कठुला, त्रबल आदि धराये जाते हैं.

राजभोग दर्शन -

कीर्तन – (राग : सारंग)

घरघर ग्वाल देत हे हेरी l
बाजत ताल मृदंग बांसुरी ढ़ोल दमामा भेरी ll 1 ll
लूटत झपटत खात मिठाई कहि न सकत कोऊ फेरी l
उनमद ग्वाल करत कोलाहल व्रजवनिता सब घेरी ll 2 ll
ध्वजा पताका तोरनमाला सबै सिंगारी सेरी l
जय जय कृष्ण कहत ‘परमानंद’ प्रकट्यो कंस को वैरी ll 3 ll 

कीर्तन – (राग : सारंग)

केसरकी धोती पहेरे केसरी उपरना ओढ़े तिलक मुद्रा धर बैठे श्री लक्ष्मण भट्ट धाम l
जन्म धोस जान जान अद्भुत रूचि मान मान नखशिखकी शोभा ऊपर वारों कोटि काम ll 1 ll
सुन्दरताई निकाई तेज प्रताप अतुल ताई आसपास युवतीजन करत है गुणगान l
‘पद्मनाभ’ प्रभु विलोक गिरिवरधर वागधीस यह अवसर जे हुते ते महा भाग्यवान ll 2 ll

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज वधाई को दिन नीको l
नंदघरनी जसुमति जायौ है लाल भामतो जीकौ ll 1 ll
पांच शब्द बाजे बाजत घरघरतें आयो टीको l
मंगल कलश लीये व्रज सुंदरी ग्वाल बनावत छीको ll 2 ll
देत असीस सकल गोपीजन चिरजीयो कोटि वरीसो l
‘परमानंददास’को ठाकुर गोप भेष जगदीशो ll 3 ll

साज - आज श्रीजी में केसरी रंग की मलमल की, उत्सव के कमल के काम (Work) वाली एवं रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी मलमल के खुले बन्ध (तनी बाँध के धरावे) का चाकदार वागा सूथन, पटका चोली फूल वाले किनारी के धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र श्वेत मलमल के धराये जाते हैं. श्वेत ठाड़े वस्त्र श्रीवल्लभ के यश के भाव से धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक की प्रधानता एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
नीचे पदक, ऊपर माला, दुलड़ा व हार उत्सववत धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर केसरी कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की मोर-चंद्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर उत्सव की मोती की चोटी (शिखा) भी धरायी जाती है. 

श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.आज श्रीजी को बघनखा धराया जाता हैं. 
उत्सव का मोती का चौखटा पीठिका के ऊपर धराया जाता है.
 श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर थागवाली कलात्मक वनमाला धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उत्सव का गोटी जड़ाऊ की व आरसी जड़ाऊ की आती है.

विशेष- श्री आचार्य जी , श्री प्रभु चरण श्री गुसाईं जी एवम् समस्त तिलकायत गृह आचार्यों ने सेवा प्रणालिका में सदैव तत्सुख को ही सर्वोपरि रखा है। सेवा रीति का जब सूक्ष्मता से विचार करें तो बारंबार इस प्रेम की पराकाष्ठा के दर्शन होते हैं। ऐसा ही एक क्रम श्री आचार्य जी के उत्सव के सेवा प्रकार में आता है *" आधी सफेदी उतरे"*
श्री आचार्य जी का उत्सव उष्णकाल में आता है, इसलिए पुरी सफेदी विजय करने पर श्री प्रभु को गर्मी से श्रम ना होवे इसलिए उत्सवान्तर्गत केवल तकियों की सफेदी उतारी जाती है बाकी सर्वत्र सफेदी यथावत रहती है और तकियों में भी तकिया पट्टी के मध्य सफेदी रखी जाती है । ये सेवा रीतियां केवल और केवल प्रेम की पराकाष्ठा को परिलक्षित करती हैं। आप सभी वाल्लभीय सृष्टि भी यथाशक्ति अनुसरण कर श्री प्रभु को इस महोत्सव पर प्रेम पूर्वक उत्तमोत्तम लाड़ लड़ाए।

इति शुभम् 

Friday, 14 April 2023

व्रज - वैशाख कृष्ण दशमी

व्रज - वैशाख कृष्ण दशमी
Saturday, 15 April 2023

नित्यलीलास्थ १००८ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज कृत पांच स्वरूपोत्सव

पांच स्वरूपोत्सव के दिन विराजित सभी स्वरूपों ने मोती का मुकुट, लाल रंग की काछनी के वस्त्र एवं वनमाला का श्रृंगार धराया था अतः श्रीजी को आज नियम का मुकुट काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.

 
उत्सव के कारण गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में रस-बूंदी (आमरस व मेवा मिश्रित बूंदी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं. 
इसके अतिरिक्त प्रभु को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग भी अरोगाया जाता है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है वहीँ सखड़ी में आमरस-भात अरोगाये जाते हैं. 

कल वैशाख कृष्ण एकादशी को श्रीमद वल्लभाचार्यजी का उत्सव और वरूथिनी एकादशी का व्रत हैं. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

ऐसी बंसी बाजी बन घनमें व्यापी रही घ्वनि महामुनिनकी समाधि लागी l
भयो ब्रह्मनाद ऊठत आह्लाद जहाँ तहाँ व्रज घोष रत्न वृंद भये सबत्यागी ll 1 ll
रास आदि अनेक लीला रसभाव पूरित मूरति मुखारविंद छबि धरे विरह अनंग जागी l
तब वेणुनाद द्वार अब श्रीलक्ष्मणभट भूपकुमार ‘पद्मनाभ’ दैवोद्धार अर्थ त्यागी ll 2 ll 

साज – आज श्रीजी में गायों, पांच-स्वरूपोत्सव में विराजित प्रभु स्वरूपों एवं गौस्वामी बालकों के चित्रांकन की सुन्दर प्राचीन पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल का सूथन, काछनी एवं रास-पटका धराये जाते हैं. चोली श्याम सुतरु धरायी जाती है. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र श्वेत भातवार मलमल के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – हीरा, मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर जड़ाव स्वर्ण का झीने मोतियों का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
 श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर उत्सव की हीरा की शिखा (चोटी) धरायी जाती है.
श्रीकंठ में कली, कस्तूरी व नील-कमल की माला धरायी जाती है. 
श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर वनमाला धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल, गोटी नाचते मोर की व आरसी चार झाड़ की आती है.

Thursday, 13 April 2023

व्रज - वैशाख कृष्ण नवमी

व्रज - वैशाख कृष्ण नवमी
Friday, 14 April 2023

महाप्रभुजी के उत्सव के आगम के  श्रृंगार

विशेष – आज श्रीजी को उत्सव के एक दिन पूर्व धराया जाने वाला हल्का आगम का श्रृंगार धराया जाता है. 

अधिकतर बड़े उत्सवों के एक दिन पूर्व लाल वस्त्र एवं पाग-चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है. यह श्रृंगार अनुराग के भाव से धराया जाता है.

यद्यपि श्री महाप्रभुजी का प्राकट्योत्सव परसों अर्थात एकादशी को है, कल नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज कृत पांच स्वरूपोत्सव का दिन है और कल प्रभु को नियम का मुकुट व लाल काछनी का श्रृंगार धराया जाता है अतः इस उत्सव का लाल-पीले घेरदार वागा का आगम का श्रृंगार आज नियम से धराया जाता है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : देवगंधार)

व्रज भयो महरिके पुत, जब यह बात सुनी, सुनि आनंदे सब लोग, गोकुल गणित गुनी l
व्रज पूरव पूरे पुन्य रुपी कुल, सुथिर थुनी, ग्रह लग्न नक्षत्र बलि सोधि, कीनी वेद ध्वनी ll 1 ll  
सुनि धाई सबे व्रजनारी, सहज सिंगार कियें, तन पहेरे नौतन चीर, काजर नैन दिये l
कसि कंचुकी तिलक लिलाट, शोभित हार हिये, कर कंकण कंचन थार, मंगल साज लिये ll 2 ll 

साज – आज श्रीजी में लाल रंग की मलमल की, सुनहरी लप्पा की तुईलैस के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को लाल रंग की मलमल का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. उर्ध्व भुजा की ओर कटि-पटका धराया जाता है. सभी वस्त्र सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लाल रंग की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में पन्ना के एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत एवं गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल, गोटी छोटी सोने की व आरसी श्रृंगार में सोना की और राजभोग में बटदार आती है.

Wednesday, 12 April 2023

व्रज - वैशाख कृष्ण अष्टमी

व्रज - वैशाख कृष्ण अष्टमी
Thursday, 13 April 2023

लाल सफ़ेद राजशाही लहरियाँ के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर जमाव का क़तरा के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को लाल सफ़ेद राजशाही लहरियाँ के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर जमाव का क़तरा का शृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीलक्ष्मणगृह महामंगल भयो प्रगटे श्री वल्लभ पूरणकाम l
माधवमास कृष्णपक्ष शुभलग्न उदित एकादशी दूसरोयाम ll 1 ll
मंगल कलश चौक मोतिन के विविध विचित्र चित्र बने धाम l
मंगल गावत मुदित मानिनी नखसिख रूप कामसी वाम ll 2 ll
मिट्यो तिमिर दुःख द्वंद जगतको भोर भयो मानो मिट गई याम l
'माणिकचंद' प्रभु सदा बिराजो आय बसो श्री गोकुल गाम ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज लाल सफ़ेद राजशाही लहरियाँ की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सफ़ेद राजशाही लहरियाँ का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र अमरसी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फ़िरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल सफ़ेद लहरियाँ की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, नागफणी (जमाव) का कतरा व तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में कमल माला एवं श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में हरे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी मीना की आती है.

Tuesday, 11 April 2023

व्रज - वैशाख कृष्ण सप्तमी (षष्ठी क्षय)

व्रज - वैशाख कृष्ण सप्तमी (षष्ठी क्षय)
Wednesday, 12 April 2023

लाल पीली एकदानी चुंदड़ी के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को लाल पीली एकदानी चुंदड़ी का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : नट)

नातर लीला होती जूनी।
जो पै श्रीवल्लभ प्रकट न होते वसुधा रहती सूनी।।१।।
दिनप्रति नईनई छबि लागत ज्यों कंचन बिच चूनी।
सगुनदास यह घरको सेवक जस गावत जाको मुनी।।२।।

साज – आज श्रीजी में लाल पीली चुंदड़ी की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल पीली एकदानी चुंदड़ी का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. ठाडे वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर चुंदड़ी की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, गोल चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
 गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी चाँदी की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराया जाता है.

नमामि विठ्ठलेश्वरं सदात्युदार मानसं,
स्वभक्त रक्षणंक्षमं व्रजेश भक्तिभावदं.

 द्वितिय गृह निधि प्रभु: श्रीविठ्ठलनाथजीके पाटोत्सव की ख़ूबख़ूब बधाई

श्री विट्ठलनाथजी (नाथद्वारा) का पाटोत्सव

स्तुति – 
सर्वात्माना प्रपन्नानां गोपीनां पोषयन् मनः l
तं वंदे विट्ठलाधीशं गौरश्यामं प्रियान्वितम् ll

भावार्थ –
पूर्ण भावपूर्वक शरण में आये गोपीजनों के मन का पोषण करने वाले श्रीस्वामिनीजी सहित विराजित गौरश्याम स्वरुप श्री विट्ठलनाथजी प्रभु, मैं आपका वंदन करता हूँ.

इतिहास –
चरणाट में महाप्रभु जी के यहाँ जिस दिन उनके द्वितीय पुत्र श्री गुसांईजी का प्राकट्य हुआ उसी दिन एक ब्राह्मण आये जिन्होंने श्री महाप्रभुजी को प्रभु श्री विट्ठलनाथजी का यह स्वरुप दिया. 
श्री महाप्रभुजी ने प्रसन्न हो कहा – “आज प्रभु एवं पुत्र दोनों पधारे हैं इस कारण इसका नाम हम श्री विट्ठलनाथ रखेंगे. विट्ठल का अर्थ अज्ञानियों को ज्ञानरुपी प्रकाश बताने वाला होता है अतः यह बालक पुष्टिमार्ग का पूर्ण विकास करेगा.”

प्रभु के इस स्वरुप की सेवा श्री महाप्रभुजी के साथ श्री गुसांईजी करते थे एवं कालांतर में श्री गुसांईजी ने यह स्वरुप अपने द्वितीय पुत्र श्री गोविंदरायजी को सेवा हेतु प्रदान किया.

श्री गोविंदरायजी ने प्रभु के स्वरुप को गोकुल के यशोदाघाट स्थित मंदिर में पधराकर वर्षों सेवा की. आपके पुत्र श्री कल्याणरायजी एवं उनके पुत्र श्री हरिरायजी ने भी यहीं प्रभु की खूब सेवा की. यह स्थान आज श्री हरिरायजी की बैठक के रूप में जाना जाता है.

श्री हरिरायजी भविष्यदृष्टा थे और उन्हें आभास हो गया कि श्रीजी भविष्य में व्रज छोड़कर मेवाड़ पधारेंगे अतः आप पहले ही प्रभु के स्वरुप सहित मेवाड़ पधारे एवं नाथद्वारा के निकट खमनोर गाँव में विराजित हो सेवा करने लगे. जब श्रीजी मेवाड़ पधारे तब अपने श्रीजी मंदिर के निकट ही श्री विट्ठलनाथजी का भव्य मंदिर बनवाकर आज के दिन प्रभु को वहां पधराया. तब से अब तक प्रभु श्री विट्ठलनाथजी अपने स्वामिनीजी सहित वहीँ विराजित हो भक्तों पर आनंद की वर्षा कर रहे हैं.

वर्तमान में द्वितीय पीठाधीश गौस्वामी श्री कल्याणरायजी अपने पुत्रों श्री हरिरायजी एवं श्री वागीशजी सहित प्रभु की सेवा का लाभ ले रहे हैं. 

स्वरुप भावना –

श्री ठाकुरजी का स्वरुप श्याम है परन्तु श्री स्वामिनीजी का स्वरुप गौरवर्ण है. श्री स्वामिनीजी के प्रेमविवश हो प्रभु भी आधे गौरवर्ण बन गए अतः श्री मस्तक से कमर तक श्याम एवं कमर से चरणारविन्द तक गौरवर्ण हैं. 
दोनों श्रीहस्त कमर पर टिके हैं, बायें श्रीहस्त में शंख एवं दायें श्रीहस्त में कमल है. 
श्रीमस्तक किरीट मुकुट से सुसज्जित है. दोनों चरण सीधे हैं, एक चरण में नुपुर आभूषण है जबकि अन्य चरण में आभूषण नहीं. साथ में श्री यमुनाजी विराजित हैं जो कि ठाकुरजी के चौथे स्वामिनीजी हैं. 
उनके दोनों श्रीहस्त में कमल हैं.

देख्यो अद्भुत रूप सखीरी सुर सुता के साथ l
बिबस भये देखि हरि, सुन्दर कटि पर रहि गए दोऊ हाथ ll 1 ll
तातें गौर चित्र श्यामल तन, उपमा कहै तन आवे गाथ l
‘द्वारकेश’ प्रभु यह बिधि देखि, कर लियो जनम सनाथ ll 2 ll

ऐसे द्वितीय पीठाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी को मैं कोटि-कोटि वंदन करता हूँ.

Monday, 10 April 2023

व्रज - वैशाख कृष्ण पंचमी

व्रज - वैशाख कृष्ण पंचमी
Tuesday, 11 April 2023

श्री वल्लभाचार्यजी के उत्सव का प्रतिनिधि का श्रृंगार

आज से श्रीमद् वल्लभाचार्यजी के प्राकट्योत्सव की नौबत की बधाई बैठती है एवं उत्सव का प्रतिनिधि का श्रृंगार धराया जाता है. 

अधिकांश बड़े उत्सवों के पहले उस श्रृंगार का प्रतिनिधि का श्रृंगार धराया जाता है.
प्रतिनिधि के श्रृंगार और वस्त्र मूल उत्सव के दिन के प्रतिरूप जैसे ही होते हैं.

जन्माष्टमी के उत्सव के चार श्रृंगार धराये जाते हैं परन्तु श्री महाप्रभुजी एवं श्री गुसांईजी के उत्सव के तीन श्रृंगार (एक प्रतिनिधि का, दूसरा उत्सव के दिन एवं तीसरा उत्सव के अगले दिन का परचारगी श्रृंगार) ही धराये जाते हैं.
 
इसका कारण यह है कि जन्माष्टमी के चार श्रृंगार चार यूथाधिपतियों (स्वामिनी जी) के भाव से धराये जाते हैं परन्तु श्री महाप्रभुजी स्वयं स्वामिनीजी के एवं श्री गुसांईजी स्वयं चन्द्रावलीजी के स्वरुप हैं अतः आप स्वयं श्रृंगारकर्ता हों और स्वयं की ओर का श्रृंगार कैसे करें इस भाव से इन दोनों उत्सवों का एक-एक श्रृंगार कम हो जाता है.

सेवाक्रम- आज दो समय आरती थाली में की जाती है.
राजभोग में पीठका पर पुष्पों का चौखटा आता हैं.

आज ही के दिन श्री महाप्रभुजी के उत्सव, आगामी नृसिंह जयंती व वामन द्वादशी के दिन धराये जाने वाले वस्त्र केसर से रंगे जाते हैं. 

आज राजभोग आरती पश्चात श्रीजी के मुखियाजी, निज सेवक व दर्जीखाना के प्रभु सेवकों के सानिध्य में श्रीठाकुरजी के वस्त्र रंगे जायेंगे.

पंचमी के दिन वस्त्र रंगने का भाव ये हे कि इसमें श्री गोवर्धनधरण प्रभु से विनती का भाव है कि जिस प्रकार यह श्वेत वस्त्र आज केसर के रंग में रंग गए हैं, आज पंचमी के दिन मेरी पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ भी प्रभु रंग में रंग जाएँ. 

कीर्तन – (राग : सारंग)

शुभ वैशाख कृष्ण एकादशी श्री वल्लभ प्रभु प्रकट भये l
दैवी जीवन के भाग्य विस्तरे निरखत ताप तन के गये ll 1 ll
पुष्टि भक्तिरस निजदासनको अति उदार मन दान दिये l
‘माणिकचंद’ हिये बसो निरंतर श्रीवल्लभ आनंद मये ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में केसरी मलमल की, उत्सव के कमल के काम (Work) वाली एवं रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी मलमल का सूथन, चोली एवं खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र श्वेत मलमल के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को उत्सववत वनमाला का (चरणारविन्द तक) दो जोड़ी का भारी श्रृंगार धराया जाता है. एक हीरा का एवं एक हीरा तथा माणक के आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर तीन जोड़ी श्रृंगार धराए जाते हैं
 कुल्हे पर सिरपैंच, पांच मोरपंख की मोर-चंद्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर उत्सव की मीना की चोटी (शिखा) भी धरायी जाती है.
श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.
त्रवल, टोडर दोनों धराये जाते हैं.

 चैत्री गुलाबों एवं अन्य पुष्पों से निर्मित वन-चौखटा पीठिका के ऊपर धराया जाता है.
 श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर थागवाली वनमाला धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक स्वर्ण का) धराये जाते है.
पट उत्सव का एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आती हैं.

Friday, 7 April 2023

व्रज - वैशाख कृष्ण द्वितीया

व्रज - वैशाख कृष्ण द्वितीया
Saturday, 08 April 2023

पचरंगी लहरियाँ के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर जमाव का क़तरा के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को पचरंगी लहरियाँ के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर जमाव का क़तरा का शृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

देखो अद्भुत अविगतकी गति कैसो रूप धर्यो है हो ।
तीन लोक जाके उदर बसत है सो सुप के कोने पर्यो है ।।१।।
नारदादिक ब्रह्मादिक जाको सकल विश्व सर साधें हो ।
ताको नार छेदत व्रजयुवती वांटि तगासो बाँधे ।।२।।
जा मुख को सनकादिक लोचत सकल चातुरी ठाने ।
सोई मुख निरखत महरि यशोदा दूध लार लपटाने ।।३।।
जिन श्रवनन सुनी गजकी आपदा गरुडासन विसराये ।
तिन श्रवननके निकट जसोदा गाये और हुलरावे ।।४।।
जिन भूजान प्रहलाद उबार्यो हरनाकुस ऊर फारे ।
तेई भुज पकरि कहत व्रजगोपी नाचो नैक पियारे ।।५।।
अखिल लोक जाकी आस करत है सो  माखनदेखि अरे है ।
सोई अद्भुत गिरिवरहु ते भारे पलना मांझ परे है ।।६।।
सुर नर मुनि जाकौ ध्यान धरत है शंभु समाधि न टारी ।
सोई प्रभु सूरदास को ठाकुर गोकुल गोप बिहारी ।।७।।

साज – श्रीजी में आज पचरंगी लहरियाँ की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज पचरंगी लहरियाँ का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फ़िरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर पचरंगी लहरियाँ की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, नागफणी (जमाव) का कतरा व तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में कमल माला एवं श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में हरे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी मीना की आती है.

Thursday, 6 April 2023

व्रज - वैशाख कृष्ण प्रतिपदा

व्रज - वैशाख कृष्ण प्रतिपदा
Friday, 07 April 2023

हरे लहरियाँ के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर क़तरा के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को हरे लहरियाँ का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर क़तरा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : नट)

नातर लीला होती जूनी।
जो पै श्रीवल्लभ प्रकट न होते वसुधा रहती सूनी।।१।।
दिनप्रति नईनई छबि लागत ज्यों कंचन बिच चूनी।
सगुनदास यह घरको सेवक जस गावत जाको मुनी।।२।।

साज – श्रीजी में आज हरे सफ़ेद लहरियाँ की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को हरे सफ़ेद लहरियाँ का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र अमरसी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर हरे सफ़ेद लहरियाँ की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 

चैत्री गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट हरा व गोटी चाँदी की आती है.

Wednesday, 5 April 2023

व्रज - चैत्र शुक्ल पूर्णिमा

व्रज - चैत्र शुक्ल पूर्णिमा
Thursday, 06 April 2023

पूरी पूरी पूरनमासी पूर्यो पूर्यो शरदको चन्दा।
पूर्यो है मुरली स्वर केदारो, कृष्ण कला संपूरन भामिनी रास रच्यो सुखकंदा।।१।।
तान मान गति मोहन सोहे कहियत औरहि मन मोहंदा।
नृत्य करत श्रीराधा प्यारी नचवत आप बिहारी ऊदघत थेई थेई थुंगन छंदा।।२।।
मन आकर्षि लियो व्रजसुंदरी जय जय रुचिर गति मन्दा।
सखी आसीस देत हरिवंश तैसेई विहरत श्रीवृंदावन कुंवरि कुंवर नंदनंदा।।३।।

विशेष – आश्विन शुक्ल पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) से चैत्र शुक्ल पूर्णिमा की रास की छः मास की रात्रि आज पूर्ण होने से आज रासोत्सव मनाया जाता है. 
कुछ पुष्टिमार्गीय वैष्णव मंदिरों में आज शरद उत्सव मनाया जाता है और शरद पूर्णिमा को अरोगायी जाने वाली सामग्रियां  अरोगायी जाती है यद्यपि श्रीजी में ऐसा सेवाक्रम नहीं होता है.

श्रीजी में आज रास की चार सखी के भाव के चित्रांकन की पिछवाई आती है. नियम का रास के भाव का मुकुट और गुलाबी काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

ऐसी बंसी बाजी बनघनमें व्यापी रही घ्वनि महामुनिनकी समाधी लागी l
भयो ब्रह्मनाद ऊठत आह्लाद जहाँ तहाँ व्रज घोष रत्न वृंद भये सब त्यागी ll 1 ll
रास आदि अनेक लीला रसभाव पूरित मूरति मुखारविंद छबि धरे विरह अनंग जागी l
तब वेणुनाद द्वार अब श्रीलक्ष्मणभट भूपकुमार ‘पद्मनाभ’ दैवोद्धार अर्थ त्यागी ll 2 ll 

साज – आज श्रीजी में रास रमती चार गोपियों के चित्रांकन की सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज गुलाबी मलमल का सूथन, काछनी, रास-पटका एवं श्याम मलमल की चोली धरायी जाती हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (चिकन) के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर हीरा का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
बायीं ओर हीरा की शिखा (चोटी) धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में कली, कस्तूरी व कमल माला धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लहरिया के हीराजड़ित वेणुजी एवं दो वेत्रजी (लहरिया व सोने के) धराये जाते हैं.
पट गुलाबी व गोटी नाचते मोर की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण, मुकुट व टोपी बड़े किये जाते हैं व श्रीमस्तक पर गुलाबी गोल-पाग धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं.

Tuesday, 4 April 2023

व्रज - चैत्र शुक्ल चतुर्दशी

व्रज - चैत्र शुक्ल चतुर्दशी
Wednesday, 05 April 2023

चौफ़ुली चुंदड़ी के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर ग़्वाल पगा पर पगा चंद्रिका के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को चौफ़ुली चुंदड़ी के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर ग्वाल पगा पर पगा चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन (राग : घनाश्री)

यशोदा रानी जायो है सुत नीको l
आनंद भयो सकल गोकुलमें गोप वधु लाई टीको ll 1 ll
अक्षत दूब रोचन वंदन नंदे तिलक दहीं को l
अंचल वारि वारि मुख निरखत कमल नैन प्यारो जीकों ll 2 ll
अपने अपने भवन से निकसी पहेरे चीर कसुम्भी को l
'यादवेन्द्र' व्रजकुल प्रति पालक कंस काल भय भीको ll 3 ll 

साज – श्रीजी में आज लाल रंग की चौफूली चूंदड़ी की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को लाल रंग की चौफूली चूंदड़ी का सूथन, चोली के चाकदार वागा धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघस्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल रंग के ग्वाल पगा पर सिरपैंच, पगा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धराये जाते हैं.
 कमल माला धरायी जाती हैं.
गुलाबी गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, फ़िरोज़ा के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी चाँदी की धरायी जाती हैं.

Monday, 3 April 2023

व्रज - चैत्र शुक्ल त्रयोदशी (द्वितीय)

व्रज - चैत्र शुक्ल त्रयोदशी (द्वितीय)
Tuesday, 04 April 2023

पहर री माल गुलाब सुगंधकी ले राधे मोहन तोहे दीनी ।
अबही उर ते उतार लइ है अपने अंगराग रस भीनी ।।१।।
मान निहोरी निहारी नयन भर हंस गही हाथ सखीपे लीनी ।
सूर कहे जिन गहरु कर भामिनि गिरिधर छेल तोपे बस कीनी ।।२।।

गुलाबी मलमल के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर क़तरा या चंद्रिका के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को गुलाबी मलमल का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर क़तरा या चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : नट)

नातर लीला होती जूनी।
जो पै श्रीवल्लभ प्रकट न होते वसुधा रहती सूनी।।१।।
दिनप्रति नईनई छबि लागत ज्यों कंचन बिच चूनी।
सगुनदास यह घरको सेवक जस गावत जाको मुनी।।२।।

साज – श्रीजी में आज गुलाबी मलमल की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को गुलाबी मलमल का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, क़तरा या चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
चैत्री गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गुलाबी व गोटी चाँदी की आती है.

Sunday, 2 April 2023

व्रज - चैत्र शुक्ल त्रयोदशी (प्रथम)

व्रज - चैत्र शुक्ल त्रयोदशी (प्रथम)
Monday, 03 April 2023

मल्लकाछ टीपारा पे खुलेबंध एवं माखन चोरी की पिछवाई का विशिष्ट श्रृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को मल्लकाछ टीपारा पे खुलेबंध एवं माखन चोरी की पिछवाई का विशिष्ट श्रृंगार धराया जायेगा.

मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) के मेल से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

तेरे लाल मेरो माखन खायो l
भर दुपहरी देखि घर सूनो ढोरि ढंढोरि अबहि घरु आयो ll 1 ll
खोल किंवार पैठी मंदिरमे सब दधि अपने सखनि खवायो l
छीके हौ ते चढ़ी ऊखल पर अनभावत धरनी ढरकायो ll 2 ll
नित्यप्रति हानि कहां लो सहिये ऐ ढोटा जु भले ढंग लायो l
‘नंददास’ प्रभु तुम बरजो हो पूत अनोखो तैं हि जायो ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में माखन-चोरी लीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर श्वेत मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज हरे सफ़ेद लहरियाँ  के, सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित मल्लकाछ एवं लाल सफ़ेद लहरियाँ का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित चोली एवं चड़ी आस्तीन का खुलेबंध का चाकदार वागा धराया जाता है. आज पटका एक ही धराया जाता हैं.ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. फ़िरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर टिपारा का साज धराया जाता है जिसमें हरे सफ़ेद लहरियाँ की टिपारा की टोपी के ऊपर सिरपैंच, मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के कुंडल धराये जाते हैं. हास, कड़ा, हस्थसाखला धराये जाते हैं.
कमल माला धरायी जाती हैं.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, फ़ीरोज़ा के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी बाघ-बकरी की आती है. 

Saturday, 1 April 2023

व्रज - चैत्र शुक्ल द्वादशी

व्रज - चैत्र शुक्ल द्वादशी
Sunday, 02 April 2023

पीले मलमल के चाकदार वागा, श्रीमस्तक पर फेटा पर फेटा का साज के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को पीले मलमल का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर फेटा के उपर फेटा के साज का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

कहा कहों लाल सुधर रंग राख्यो मुरलीमें l
तानबंधान स्वरभेद लेत अतिजत बिचबिच मिलवत विकट अवधर ll 1 ll
चोख माखन की रेख तामें गायन मिलवत लांबे लांबे स्वर l
बिच बिच लेत तिहारो नाम सुनरी सयानी 'गोविंदप्रभु' व्रजरानी के कुंवर ll 2 ll  

साज – आज श्रीजी में पीले रंग की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – आज श्रीजी को पीले मलमल  के, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया है. माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर फेंटा का साज धराया जाता है. पीले रंग के फेंटा के ऊपर सिरपैंच, मोरशिखा, दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में लोलकबिंदी (लड़वाले कर्णफूल) धराये जाते हैं.
 गुलाबी गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट पीला व गोटी चाँदी की बाघ बकरी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर फेंटा रहे लूम-तुर्रा नहीं आवे.

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया  Saturday, 01 February 2025 इस वर्ष माघ शुक्ल पंचमी के क्षय के कारण कल माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन बसंत पंचमी का पर्व ह...