By Vaishnav, For Vaishnav

Monday, 31 May 2021

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण सप्तमी

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण सप्तमी
Tuesday, 01 June 2021

ऊष्णकाल का द्वितीय शीतल जल स्नान 

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को मोतीया मलमल का आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर चिनमा पगा और तुर्रा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

साज – (राग : सारंग)

आवत ही यमुना भर पानी l
श्याम रूप काहुको ढोटा वाकी चितवन मेरी गैल भुलानी ll 1 ll
मोहन कह्यो तुमको या व्रजमें हमे नहीं पहचानी l
ठगी सी रही चेटकसो लाग्यो तब व्याकुल मुख फूरत न बानी ll 2 ll
जा दिनतें चितये री मो तन तादिनतें हरि हाथ बिकानी l
'नंददास' प्रभु यों मन मिलियो ज्यों सागरमें सरित समानी ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में मोतियों की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को मोतीया मलमल का आड़बंद धराया जाता है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर मोतीया मलमल के चिनमा(नर्म सल दार) पगा के ऊपर सिरपैंच, तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, सुवा वाले वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी छोटी हकीक की आती है.

ऊष्णकाल का द्वितीय शीतल जल स्नान 

आज श्रीजी में संध्या-आरती के उपरांत ऊष्णकाल का द्वितीय शीतल जल स्नान होगा. ऊष्णकाल के ज्येष्ठ और आषाढ़ मास में श्रीजी में नियम के चार अभ्यंग स्नान और तीन शीतल जल स्नान होते हैं. यह सातो स्नान ऊष्ण से श्रमित प्रभु के सुखार्थ होते हैं. 

अभ्यंग स्नान प्रातः मंगला उपरांत और शीतल जल स्नान संध्या-आरती के उपरांत होते हैं. 

अभ्यंग स्नान में प्रभु को चंदन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है जबकि शीतल स्नान में प्रभु को बरास और गुलाब जल मिश्रित सुगन्धित शीतल जल से स्नान कराया जाता है.

जिस दिन अभ्यंग और शीतल स्नान हो उस दिन शयनभोग की सखड़ी में विशेष रूप से विविध प्रकार के मीठा-रोटी, दहीभात, घुला हुआ सतुवा आदि अरोगाये जाते हैं.

Sunday, 30 May 2021

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी
Monday, 31 May 2021

ज्येष्ठ मास तपत घाम एसेमें कहां सीधारे श्याम एसी कोन चतुर नार जाको बीरा लीनो हे।।
नेकधों कृपा कीजे हमहूको सुज दीजे जैये फेरि वाके धाम जाको नेह नवीनो हे।।1।।
बाँह पकरि भवन लाई सैया पर दिये बैठाई अरगजा अंग लगाई हियो सीतल कीनो है।।
रसिक प्रीतम कंठ लगाय रसमें रस सो मिलाय अरसपरस केल करत प्रीतम बस कीनो है।।2।।

राजभोग में चंदन की गोली का मनोरथ

विशेष- विगत कल वैशाख शुक्ल चतुर्दशी प्रातः 09.03 (25 मई 2021) से आगामी ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी प्रातः 06.57 (8 जून 2021) तक सूर्य रोहिणी नक्षत्र में है.
इस अवधि में प्रभु को चंदन धराया जाना प्रशस्त (उत्तम) माना गया है अतः इस दिन से आगामी पंद्रह दिन श्रीजी को श्रीअंग में चंदन धराया जा सकता है. 

वैष्णव अपने सेव्य स्वरूपों को भी प्रेमपूर्वक अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार चंदन धरा सकते हैं.

आज प्रभु के श्रीअंगों (वक्षस्थल, दोनों श्रीहस्त और दोनों चरणकमल) में कुल पांच केशर बरास मिश्रित चंदन की गोलियां धरायी जाती है.
श्रीजी में प्रतिदिन अथवा नियम से चंदन नहीं धराया जाता अपितु मनोरथियों द्वारा आयोजित चंदन धराने के मनोरथ होते हैं और मनोरथ के रूप में ऋतु के अनुरूप विविध सामग्रियां भी अरोगायी जाती हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को  केसरी मलमल का पिछोड़ा, श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग और श्रीअंगों पर केशर बरास मिश्रित चंदन की गोलियां  धरायी जाएगी. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

सखी सुगंध जल घोरके चंदन हरि अंग लगावत l
वदन कमल अलके मधुपनसी टेढ़ी पाग मनभावन ll 1 ll
कोऊ बिंजना कुसुमन के ढोरत कुसुम भूषन ले ले पहेरावत l
मृदुवेली सायंतर क्रीड़त ‘व्रजाधीश’ गुन गावत ll 2 ll

साज - आज श्रीजी में केसरी मलमल की, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के पतले हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. 
गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी मलमल का बिना किनारी का पिछोड़ा धराया जाता है. 

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर केसरी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच,क़तरा, चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ दो अन्य मालाजी हमेल की भांति धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गौटी ऊष्णकाल के आते है.
श्रीअंग (वक्षस्थल पर, दोनों श्रीहस्त में और दोनों चरणारविन्द) में चंदन की गोलियां धरायी जाती हैं.

Saturday, 29 May 2021

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण पंचमी

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण पंचमी (चतुर्थी क्षय)
Sunday, 30 May 2021

शरबती मलमल की परधनी एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और तुर्रा के शृंगार

उत्थापन दर्शन पश्चात मोगरे की कली का प्रथम श्रृंगार एवं संध्या-आरती के उपरांत ऊष्णकाल का प्रथम शीतल जल स्नान 

शरबती मलमल की परधनी एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और तुर्रा के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को शरबती मलमल की परधनी एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और तुर्रा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

सोहत श्याम मनोहर गात l
श्वेत परदनी अति रसभीनी केसर पगिया माथ ll 1 ll
कर्णफूल प्रतिबिंब कपोलन अंग अंग मन्मथ ही लजात l
‘परमानंद’ दास को ठाकुर निरख वदन मुसकात ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में शरबती रंग की मलमल की बिना किनारी की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को शरबती मलमल की गोल छोर वाली बिना किनारी की परधनी धरायी जाती है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर शरबती रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
आज मोती का चोलड़ा धराया जाता हैं.
श्रीकर्ण में मोती के एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ एक श्वेत एवं एक कमल के पुष्पों की माला हमेल की भांति धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चांदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी छोटी हकीक की आती है.

श्रीजी को कल ज्येष्ठ कृष्ण तृतीया से आषाढ़ शुक्ल एकादशी तक प्रभु को मोगरे की कली के श्रृंगार धराये जाते हैं. इसमें प्रातः जैसे वस्त्र आभरण धराये जावें, संध्या-आरती में उसी प्रकार के मोगरे की कली से निर्मित अद्भुत वस्त्र और आभरण धराये जाते हैं. 
इनमें कुछ श्रृंगार नियत (Fixed) हैं यद्यपि कुछ मनोरथी के द्वारा आयोजित होते हैं. इसके अतिरिक्त उसी दिन से खस के बंगला और मोगरे की कली और पुष्पों के बंगला के मनोरथ भी प्रारंभ हो जाते हैं. 
उत्थापन दर्शन पश्चात प्रभु को कली के श्रृंगार धराये जाते हैं और शृंगार धराते ही भोग के दर्शन खोल दिए जाते और कली के शृंगार की भोग सामग्री  संध्या-आरती में ली जाती हे.
संध्या-आरती के पश्चात ये सर्व श्रृंगार बड़े (हटा) कर शैया जी के पास पधराये जाते हैं. चार युथाधिपतियों के भाव से चार श्रृंगार – परधनी, आड़बंद, धोती एवं पिछोड़ा के धराये जाते हैं. 
कली के श्रृंगार व्रजललनाओं के भाव से किये जाते हैं और इसमें ऐसा भाव है कि वन में व्रजललनाएं प्रभु को प्रेम से कली के श्रृंगार धराती हैं और प्रभु ये श्रृंगार धारण कर नंदालय में पधारते हैं. 
इसमें प्रभु श्रमित होवें इस भाव से अधिक ग्रीष्म हों तब कली के श्रृंगार के अगले दिन प्रभु को अभ्यंग कराया जाता है. 
ऊष्णकाल में नियम के चार अभ्यंग होते हैं.

आज  संध्या-आरती में श्रीजी को कली का श्रृंगार धराया जायेगा

ऊष्णकाल का प्रथम शीतल जल स्नान 

आज श्रीजी में संध्या-आरती के उपरांत ऊष्णकाल का प्रथम शीतल जल स्नान होगा. ऊष्णकाल के ज्येष्ठ और आषाढ़ मास में श्रीजी में नियम के चार अभ्यंग स्नान और तीन शीतल जल स्नान होते हैं. यह सातो स्नान ऊष्ण से श्रमित प्रभु के सुखार्थ होते हैं. 

अभ्यंग स्नान प्रातः मंगला उपरांत और शीतल जल स्नान संध्या-आरती के उपरांत होते हैं. 

अभ्यंग स्नान में प्रभु को चंदन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है जबकि शीतल स्नान में प्रभु को बरास और गुलाब जल मिश्रित सुगन्धित शीतल जल से स्नान कराया जाता है.

जिस दिन अभ्यंग और शीतल स्नान हो उस दिन शयनभोग की सखड़ी में विशेष रूप से विविध प्रकार के मीठा-रोटी, दहीभात, घुला हुआ सतुवा आदि अरोगाये जाते हैं.

Friday, 28 May 2021

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण तृतीया

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण तृतीया
Saturday, 29 May 2021

गुलाबी धोती पटका के श्रृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को गुलाबी धोती-पटका एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और तुर्रा का श्रृंगार धराया जायेगा

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

भलेई मेरे आये हो पिय 
भलेई मेरे आये हो पिय ठीक दुपहरी की बिरियाँ l
शुभदिन शुभ नक्षत्र शुभ महूरत शुभपल छिन शुभ घरियाँ ll 1 ll
भयो है आनंद कंद मिट्यो विरह दुःख द्वंद चंदन घस अंगलेपन और पायन परियां l
'तानसेन' के प्रभु मया कीनी मों पर सुखी वेल करी हरियां ll 2 ll

साज - आज श्रीजी में गुलाबी रंग की मलमल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को गुलाबी रंग की मलमल धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता हैं. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं एवं हमेल की भांति दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, झिने लहरियाँ के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल के राग-रंग का एवं गोटी हक़ीक की आती हैं.

Thursday, 27 May 2021

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण द्वितीया

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण द्वितीया
Friday, 28 May 2021

नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दाऊजी महाराज कृत चार स्वरूपोत्सव

विशेष – विक्रमाब्द 1878 में आज के दिन नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दाऊजी महाराज ने चार स्वरुप - श्रीमथुरेशजी (कोटा), श्रीविट्ठलनाथजी (नाथद्वारा), श्रीगोकुलनाथजी (गोकुल) एवं श्री नवनीतप्रियाजी को पधराकर दोहरा मनोरथ किया था अतः आज का दिन श्रीजी में चार स्वरुप के उत्सव के दिन के रूप में मनाया जाता है.

सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
दो समय आरती थाली में की जाती है. सभी समय झारीजी मे यमुनाजल भरा जाता है.

श्रीजी को नियम के केसरी साज व केसरी रंग का पिछोड़ा धराया जाता है. 

आज के श्रृंगार में विशेष यह है कि प्रभु को श्रीमस्तक पर केसरी श्याम झाईं वाले फेंटा के साथ श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
सामान्यतया फेंटा के संग कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोर (इलायची युक्त जलेबी) के लड्डू व दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीविट्ठलेश चरण चारू पंकज मकरंद लुब्ध गोकुलमें सकल संत करत है नित केली l
पावन चरणोदक जहा संतन हित सलिल बहत त्रिविध ताप दूर करत बदन इंदु मेली ll 1 ll
भूतल कृष्णावतार प्रगट ब्रह्म निराकार सिंचत हरि भक्ति सुधा धरणी धर्म वेली l
‘छीतस्वामी’ गिरिवरधर लीला सब फेर करत धेनु दुहत ग्वालन संग हाथ पाट सेली ll 2 ll

साज - आज श्रीजी में केसरी रंग की मलमल की, उत्सव के कमल के काम वाली एवं रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी रंग की मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है. पिछोड़ा रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होता है परन्तु किनारी बाहर आंशिक ही दृश्य होती है अर्थात भीतर की ओर मोड़ दी जाती है.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) ऊष्णकालीन मध्यम श्रृंगार धराया जाता है. 
हीरा-मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. मोती की बद्दी के नीचे चंदन की मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीमस्तक पर केसरी श्याम झाईं वाले फेंटा का साज – फेंटा के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चंद्रिका, मोरपंख का कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
कली आदि सब माला धरायी जाती हैं.
श्वेत पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, मोती के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक मोती व एक सुवा वाला) धराये जाते हैं.
पट उष्णकाल का एवं गोटी बाघ बकरी का व आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

Tuesday, 25 May 2021

व्रज - वैशाख शुक्ल पूर्णिमा

व्रज - वैशाख शुक्ल पूर्णिमा
Wednesday, 26 May 2021

ऋतु का पहला परधनी का श्रृंगार

विशेष – आज से प्रभु को वस्त्र में परधनी धरायी जानी प्रारंभ हो जाती है और आज ऊष्णकाल का सबसे छोटा (हल्का) श्रृंगार धराया जाता है.
आज प्रथम दिन और परधनी धरने के अंतिम दिन अर्थात आषाढ़ शुक्ल चतुर्दशी को यही वस्त्र श्रृंगार धराये जाते हैं.

आज और उस दिन अंतर केवल यही होगा कि अतिरिक्त में उस दिन प्रभु को तत्कालीन नवीन (वर्षा) ऋतु के आगमन पर व्रज के सभी द्वादश (बारह) वनों एवं चौबीस उपवनों में नवपल्लवित विभिन्न पुष्पों, पत्रों और वनौषधियों से निर्मित वनमाला अपने श्री अंग पर एवं इन्हीं पुष्पों-वनौषधियों से निर्मित गोवर्धन माला पीठिका के ऊपर धारण करते हैं.

श्रीजी को ज्येष्ठ कृष्ण तृतीया से कली के श्रृंगार धराये जाने प्रारंभ हो जायेंगे जो कि आगामी आषाढ़ शुक्ल एकादशी तक धराये जाते हैं. इसमें सामान्यतया प्रातः जैसे वस्त्र आभरण धराये जावें, संध्या-आरती में उसी प्रकार के मोगरे की कली से निर्मित अद्भुत वस्त्र और आभरण धराये जाते हैं. इनमें कुछ श्रृंगार नियत (Fixed) हैं यद्यपि कुछ मनोरथी के द्वारा आयोजित होते हैं.

इसके अतिरिक्त इसी दिन से खस के बंगला और मोगरे की कली और पुष्पों के बंगला के मनोरथ भी प्रारंभ हो जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

सोहत लाल परधनी अति झीनी l
तापर एक अधिक छबि उपजत ll 1 ll
जलसुत पांति बनी कटि छीनी l
उज्जवल पाग श्याम शिर शोभित अलकावली मधुप मधुपीनी l
‘चतुर्भुजदास’ गिरिधर पिय चपल नयन युवती बसकीनी ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में श्वेत रंग की मलमल की बिना किनारी की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत रंग की मलमल गोल छोर वाली बिना किनारी की परधनी धरायी जाती है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की छोर वाली पाग के ऊपर सिरपैंच, श्वेत खंडेला (श्वेत मोरपंख के दोहरे कतरा) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ एक श्वेत एवं एक कमल के पुष्पों की माला हमेल की भांति धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चांदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी छोटी हकीक की आती है.

Monday, 24 May 2021

व्रज - वैशाख शुक्ल चतुर्दशी

व्रज - वैशाख शुक्ल चतुर्दशी
Tuesday, 25 May 2021

अपनो जन प्रह्लाद उबार्यो ।
कमला हरिजू के निकट न आवत ऐसो रूप हरि कबहूँ न धार्यो ।।१।।
प्रह्लादै चुंबत अरु चाटत भक्त जानि कै क्रोध निवार्यो ।
सूरदास' बलि जाय दरस की भक्त विरोधी दैत्य निस्तार्यो ।।२।।

नृसिंह जयंती

विशेष – आज नृसिंह भगवान की जयंती है. पुष्टिमार्ग में भगवान विष्णु के सभी अवतारों में से चार (श्रीकृष्ण, श्रीराम, श्रीनृसिंह एवं श्री वामन) को मान्यता दी है इस कारण इन चारों अवतारों के जन्म दिवस को जयंती के रूप में मनाया जाता है एवं इन चारों जयंतियों को उपवास किया जाता है. 
जयंती उपवास की यह भावना है कि जब प्रभु हमारे मध्य पधारें अथवा हम प्रभु के समक्ष जाएँ तब तन, मन, वचन एवं कर्म से शुद्ध हों. प्राचीन वेदों में भी कहा गया है कि उपवास से तन, मन, वचन एवं कर्म की शुद्धि होती है.

भगवान विष्णु के दशावतारों में से श्री महाप्रभुजी ने केवल चार अवतारों को ही मान्यता दी है. 
भगवान विष्णु के दस अवतारों में ये चारों अवतार प्रभु ने नि:साधन भक्तों पर कृपा हेतु लिए थे अतः इनकी लीला  पुष्टिलीला हैं. पुष्टि का सामान्य अर्थ कृपा भी है.

सेवाक्रम - जयंती का उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. 

आज सभी समय झारीजी यमुनाजल की भरी जाती है. चारों समां (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की थाली में की जाती है.
गेंद, चौगान, दिवला सभी चांदी के आते हैं.

मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चंदन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है. 

नियम का केसरी मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर केसरी मलमल की कुल्हे के ऊपर तीन मोरपंख की मोर-चंद्रिका की जोड़ धरायी जाती है. 
आज प्रभु को आभरण में विशेष रूप से बघनखा धराया जाता है. इसके अतिरिक्त प्रभु के श्रीहस्त में सिंहमुखी कड़े और एक छड़ीजी (वेत्रजी) भी सिंहमुखी धराये जाते हैं (चित्र में दृश्य नहीं परन्तु धराये जाते हैं).

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में केसरी पेठा व मीठी सेव अरोगाये जाते हैं. आज भोग के फीका के स्थान पर बीज चालनी का घी में तला सूखा मेवा आरोगाया जाता है.
संध्याआरती के ठोड़ के स्थान पर सतुवा के बड़े गोद के लड्डू अरोगाये जाते हैं.

श्रीजी में ऊष्णता की वृद्धि के साथ ही शीतोपचार में भी वृद्धि होती है. 
अक्षय तृतीया से आज तक केवल भीतर मणिकोठा, डोलतिबारी और रतनचौक में ही जल का छिडकाव होता है. 

आज से प्रतिदिन राजभोग पश्चात और संध्या-आरती पश्चात रतन चौक और गोवर्धन-पूजा के चौक में भी शीतल जल का छिडकाव किया जाता है और खस के पर्दों पर भी अधिक छिडकाव किया जाता है. आज से शयन पश्चात कमल चौक में भी शीतल जल का छिडकाव किया जाता है. 
आज से प्रतिदिन गुलाबजल का भी छिड़काव किया जाता है.

आज से राजभोग से संध्या-आरती तक प्रभु के सम्मुख जल का थाल भी रखा जाता है जिसमें छतरी, बतख, कछुआ, नाव आदि चांदी के इक्कीस खिलौने और कमल आदि पुष्प रखे जाते हैं. प्रभु ऊष्णकाल में नित्य श्री यमुनाजी में जलविहार करने पधारते हैं इस भाव से यह थाल प्रभु के सम्मुख रखा जाता है. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

जाको वेद रटत ब्रह्मा रटत शम्भु रटत शेष रटत
नारद शुकव्यास रटत पावत नही पारही l
ध्रुवजन प्रह्लाद रटत कुंती के कुंवर रटत 
द्रुपद सुता रटत नाथ अनाथन प्रति पालरी ll 1 ll
गणिका गज गीध रटत गौतम की नार रटत 
राजन की रमणी रटत सुतन दे दे प्याररी l
‘नंददास’ श्रीगोपाल गिरिवरधर रूपजाल
यशोदा को कुंवर प्यारी राधा उर हार री ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की मलमल की, उत्सव के कमल के काम (Work) वाली एवं रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को केसरी मलमल का पिछोड़ा धराया जाता हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) ऊष्णकालीन श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती की प्रधानता के हीरा मोती के मिलवा आभरण धराये जाते हैं. आभरण में नीचे पदक व ऊपर हीरा, मोती के माला एवं हार आते हैं.
आज हांस, पायल व चोटीजी नहीं धराये जाते.
श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, तीन मोरपंख की मोर-चंद्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
श्वेत पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो कलात्मक वनमाला धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में चार कमल की कमलछड़ी, मोती के वेणुजी एवं दो  वेत्रजी (एक मोती व एक नृसिंहजी के) धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का, गोटी सोने की कूदते बाघ-बकरी की व आरसी श्रृंगार में हरे मख़मल की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

 श्री नृसिंह भगवान का जन्म सूर्यास्त पश्चात एवं रात्रि से पूर्व हुआ था अतः इस भाव से संध्या-आरती दर्शन पश्चात नृसिंह भगवान के जन्म के दर्शन होते हैं और जन्म के दर्शन में प्रभु के सम्मुख शालिग्रामजी को झांझ, घंटा, झालर और शंख की मधुर ध्वनियों के मध्य पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और बूरा) स्नान कराया जाता है. स्नान के पश्चात शालिग्रामजी को तिलक कर तुलसी समर्पित की जाती है व पुष्प-माला धरायी जाती है. 

प्रभु को जन्म के उपरांत जयंती फलाहार के रूप में दूधघर में सिद्ध खोवा (मिश्री-मावे का चूरा) एवं मलाई (रबड़ी) का भोग अरोगाया जाता है.

आज के दिन श्रीजी मथुरा सतघरा से गोपालपुर (जतीपुरा) श्री गिरिराजजी के ऊपर पधारे थे. 
वहां पधारकर शयन समय राजभोग भी संग अरोगें इस भाव से आज प्रभु को शयनभोग में आधे राजभोग जितनी सखड़ी की सामग्रियां अरोगायी जाती है. 

श्री नृसिंह भगवान उग्र अवतार हैं और उनके क्रोध का शमन करने के भाव से शयन की सखड़ी में आज विशेष रूप से शीतल सामग्रियां - खरबूजा का पना, आम का बिलसारू, घोला हुआ सतुवा, शीतल, दही-भात, श्रीखण्ड-भात आदि अरोगाये जाते हैं.

सभी वैष्णवजन को नृसिंह जयंती की बधाई 

Sunday, 23 May 2021

व्रज - वैशाख शुक्ल त्रयोदशी

व्रज - वैशाख शुक्ल त्रयोदशी (द्वादशी क्षय)
Monday, 24 May 2021

आगम का श्रृंगार

विशेष –द्वादशी क्षय से आज त्रयोदशी हैं एवं कल चतुर्दशी भगवान नृसिंहजी की जयंती है अतः आज उत्सव के एक दिन पूर्व धराया जाने वाला हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
 
सामान्य तौर पर प्रत्येक बड़े उत्सव के एक दिन पूर्व लाल वस्त्र एवं पाग-चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है. 
यह श्रृंगार अनुराग के भाव से धराया जाता है. 
इस श्रृंगार के लाल वस्त्र विविध ऋतुओं के उत्सवों के अनुरूप होते हैं.
इसी श्रृंखला में आज प्रभु को गुलाबी रंग की धोती व राजशाही पटका धराया जायेंगा.

अभी ऊष्णकाल है और अभी लाल रंग निषिद्ध है अतः आज लाल के स्थान पर गुलाबी वस्त्र धराये जायेंगे. सामान्यतया इस श्रृंगार में वस्त्र और पिछवाई लाल और ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं परन्तु ऊष्णकाल में ठाड़े वस्त्र नहीं धराये जाते अतः आज प्रभु को गुलाबी वस्त्र धराये जायेंगे.

कल नृसिंह चतुर्दशी है. पुष्टिमार्ग में भगवान विष्णु के सभी दशावतारों में से चार (श्रीकृष्ण, श्रीराम, श्रीनृसिंह एवं श्रीवामन) को मान्यता दी है इस कारण इन चारों अवतारों के जन्म दिवस को जयंती के रूप में मनाया जाता है एवं इन चारों जयंतियों को उपवास किया जाता है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग/बिलावल)

कमलमुख देखत कौन अघाय l
सुनरी सखी लोचन अलि मेरे मुदित रहे अरुझाय ll 1 ll
मुक्तामाल लाल ऊर ऊपर मानों फूली वनराय l
गोवर्धनधरके अंग अंग पर ‘कृष्णदास’ बलजाय ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में गुलाबी रंग की मलमल की, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को गुलाबी रंग की मलमल धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता हैं. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोर चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं एवं हमेल की भांति दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चांदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गोटी ऊष्णकाल के राग-रंग के आते हैं.

Saturday, 22 May 2021

व्रज - वैशाख शुक्ल एकादशी

व्रज - वैशाख शुक्ल एकादशी
Sunday, 23 May 2021

केसरी (चंदनिया) रंग का पिछोड़ा और दुमाला पर मोती के सेहरा के श्रृंगार

मोहिनी एकादशी

विशेष – आज मोहिनी एकादशी है.
आज श्रीजी को नियम का केसरी (चंदनिया) रंग का पिछोड़ा और दुमाला पर मोती के सेहरा का श्रृंगार धराया जाता है और सेहरा के भाव के कीर्तन गाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – (राग : सारंग)

आज बने गिरिधारी दुल्हे चंदनको तनलेप कीये l
सकल श्रृंगार बने मोतिन के विविध कुसुम की माल हिये ll 1 ll
खासाको कटि बन्यो है पिछोरा मोतिन सहरो सीस धरे l
रातै नैन बंक अनियारे चंचल अंजन मान हरे ll 2 ll
ठाडे कमल फिरावत गावत कुंडल श्रमकन बिंद परे l
‘सूरदास’ प्रभु मदन मोहन मिल राधासों रति केल करे ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में सेहरा का श्रृंगार धराये श्री स्वामिनीजी, श्री यमुनाजी एवं मंगलगान करती व्रजगोपियों के सुन्दर चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी (चंदनिया) रंग की मलमल का पिछोड़ा एवं अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं यद्यपि पिछोड़ा में किनारी को भीतर की ओर इस प्रकार मोड़ दिया जाता है कि बाहर दृश्य ना हों. 

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर केसरी (चंदनिया) रंग के दुमाला के ऊपर मोती का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. दायीं ओर सेहरे की मोती की चोटी धरायी जाती है. 
श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
कली आदि की माला श्रीकंठ में धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी भी धरायी जाती हैं एवं इसी प्रकार श्वेत पुष्पों की एक मोटी मालाजी पीठिका के ऊपर भी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, सुवा वाले वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सुवा वाला व एक चांदी की) धराये जाते हैं.
पट गोटी ऊष्णकाल के राग-रंग के आते हैं.

Friday, 21 May 2021

व्रज - वैशाख शुक्ल दशमी

व्रज - वैशाख शुक्ल दशमी
Saturday, 22 May 2021

 शरबती धोती पटका के श्रृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को शरबती धोती-पटका एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और तुर्रा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज धरी गिरधर पिय धोती
अति झीनी अरगजा भीनी पीतांबर घन दामिनी जोती ll 1 ll
टेढ़ी पाग भृकुटी छबि राजत श्याम अंग अद्भुत छबि छाई l
मुक्तामाल फूली वनराई, 'परमानंद' प्रभु सब सुखदाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में शरबती रंग की मलमल की, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. 
गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को शरबती रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता है.

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) ऊष्णकालीन मध्यम श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर शरबती रंग की गोल पाग के ऊपर मोती की लड़, तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, झिने लहरियाँ के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. पट ऊष्णकाल का व गोटी हकीक की छोटी आती है.

Thursday, 20 May 2021

व्रज - वैशाख शुक्ल नवमी

व्रज - वैशाख शुक्ल नवमी
Friday, 21 May 2021

गुलाबी रंग का पिछोड़ा एवं ग्वाल पगा के श्रृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को गुलाबी रंग का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर ग्वाल पगा और पगा चंद्रिका (मोरशिखा) का शृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

सखी सुगंध जल घोर के चंदन हरि अंग लगावन l
वदनकमल अलके मधुपनसी टेठी पाग मन भावन ll 1 ll
कर विंजना कुसुम के ढोरत कुसुम भूखन ले ले पहिरावन l
'तानसेन' के प्रभु मया कीनी मोपर सुकी वेल भई हरियन ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में गुलाबी रंग की मलमल की रुपहली तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को गुलाबी मलमल का पिछोड़ा धराया जाता हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग के ग्वाल पगा पर मोती की लड़, पगा चंद्रिका (मोरशिखा) एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धराये जाते हैं.
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, गंगा-जमुनी (सोने-चांदी) के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
 पट ऊष्णकाल का व गोटी हक़ीक की आती है.

Wednesday, 19 May 2021

व्रज - वैशाख शुक्ल अष्टमी

व्रज - वैशाख शुक्ल अष्टमी
Thursday, 20 May 2021

श्वेत धोती पटका के श्रृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को को श्वेत धोती-पटका एवं गोल पाग का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज धरी गिरधर पिय धोती
अति झीनी अरगजा भीनी पीतांबर घन दामिनी जोती ll 1 ll
टेढ़ी पाग भृकुटी छबि राजत श्याम अंग अद्भुत छबि छाई l
मुक्तामाल फूली वनराई, 'परमानंद' प्रभु सब सुखदाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में श्वेत रंग की मलमल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत रंग की मलमल के धोती एवं पटका धराये जाते है. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी छोटी हकीक की आती है.

Tuesday, 18 May 2021

व्रज - वैशाख शुक्ल सप्तमी

व्रज - वैशाख शुक्ल सप्तमी
Wednesday, 19 May 2021

नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री लालगिरधरजी महाराज का उत्सव, श्रीजी सेवा में फव्वारे आरम्भ

विशेष – आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री लालगिरधरजी महाराज का उत्सव है. आप तिलकायत होने के साथ उत्कृष्ट कवि थे. आपने ‘श्री लालगिरिधर’ के नाम से कई कीर्तन रचित किये हैं जो कि श्रीजी सेवा में गाये जाते हैं.

सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. 

आज सभी समय यमुनाजल की झारीजी आती है. दो समय थाली में आरती की जाती है.

डोलोत्सव से धीरे धीरे ऊष्णकाल क्रमानुसार आरम्भ हो जाता है और इसमें उत्तरोत्तर वृद्धि होने के साथ ही प्रभु के सुख में भी उसी क्रम में वृद्धि होती रहती है जिससे श्री ठाकुरजी को ऊष्णता का अनुभव न हो.
प्रभु सुखार्थ इतनी सूक्ष्मता से सेवाक्रम का निर्धारण निस्संदेह अद्भुत है. 
इसी क्रम में आज से ऊष्णकाल का एक और सौपान बढ़ जाता है जिसमें प्रभु सुखार्थ सेवाक्रम में कुछ परिवर्तन होंगे. 

आज से मंगला में श्रीजी को उपरना के स्थान पर आड़बंद धराया जाता है. 
आज से श्रीजी को ठाड़े (कन्दराजी के) वस्त्र नहीं धराये जायेंगे और प्रभु की पीठिका के दर्शन होंगे.
आज से प्रभु के श्रीहस्त में पुष्पछड़ी के स्थान पर कमलछड़ी धरायी जाती है.

इत्र – प्रभु सुखार्थ आज विशेष रूप से चैत्री गुलाब, रूह गुलाब, सोंधा, मोगरा, जूही अथवा रूह खस का इत्र समर्पित किया जाता है.

प्रभु को नियम का केसरी रंग के डोरिया का पिछोड़ा धराया जाता है, उत्सव के हीरा मोती के आभरण धराये जाते हैं व श्रीमस्तक पर लूम की रूपहरी किलंगी धरायी जाती है.

उत्सव होने के कारण श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त जलेबी के टूक एवं दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में श्रीखण्ड-भात अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन-

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीवल्लभ नंदन रूप अनूप स्वरुप कह्यो न जाई l
प्रकट परमानंद गोकुल बसत है सब जगत के सुखदाई ll 1 ll
भक्ति मुक्ति देत सबनको निजजनको कृपा प्रेम बरखत अधिकाई l
सुखद एक रसना कहां लो वरनो ‘गोविंद’ बलबल जाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की मलमल की, उत्सव के कमल के काम और रुपहली तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी डोरिया का स्याम झाई का पिछोड़ा धराया जाता है. आज से ठाड़े वस्त्र नहीं धराये जाते अतः पीठिका के दर्शन होते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. उत्सव के हीरा व मोती के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर श्याम झांई की केसरी छज्जेदार पाग के ऊपर संक्रान्ति वाले सिरपैंच, रुपहली लूम की किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में हीरा के झुमका वाले कर्णफूल एक जोड़ी धराये जाते हैं.
 श्रीकंठ में त्रवल नहीं आवे यद्यपि कंठी धरायी जाती है.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं एवं इसी प्रकार दो मालाजी हमेल की भांति धरायी जाती हैं. 
आज पीठिका के ऊपर श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की एक मोटी सुन्दर मालाजी भी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, ऊष्णकाल सुवा  वाले वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. पट ऊष्णकाल का व गोटी बड़ी हकीक की आती है.

आज से भोग दर्शन में प्रभु सुखार्थ श्रीजी के सम्मुख शीतल जल के चांदी के फव्वारे चलाये जायेंगे एवं राजभोग उपरान्त हर घन्टे भीतर व संध्या आरती दर्शन उपरान्त डोल-तिबारी में भी शीतल जल का छिड़काव प्रारंभ हो जायेगा.
भोग समय अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर बीज-चालनी के सूखे मेवा अरोगाये जाते हैं.

Monday, 17 May 2021

व्रज - वैशाख शुक्ल षष्ठी

व्रज - वैशाख शुक्ल षष्ठी 
Tuesday, 18 May 2021

छैल जो छबीला, सब रंग में रंगीला
बड़ा चित्त का अड़ीला, कहूं देवतों से न्यारा है।
माल गले सोहै, नाक-मोती सेत जो है कान,
कुण्डल मन मोहै, लाल मुकुट सिर धारा है।
दुष्टजन मारे, सब संत जो उबारे ताज,
चित्त में निहारे प्रन, प्रीति करन वारा है।
नन्दजू का प्यारा, जिन कंस को पछारा,
वह वृन्दावन वारा, कृष्ण साहेब हमारा है।।

आज ताज़बीबी के अन्नय भाव के सूथन, फेंटा और पटका के श्रृंगार

विशेष – आज प्रभु को सूथन, फेंटा और पटका का श्रृंगार धराया जाता है. यद्यपि आज का दिन इस श्रृंगार के लिए नियत नहीं परन्तु सामान्यतया आज के दिन ही धराया जाता है.

श्रीजी ने अपने सभी भक्तों को आश्रय दिया है, मान दिया है चाहे वो किसी भी धर्म से हो. 

इसी भाव से आज ठाकुरजी अपनी अनन्य मुस्लिम भक्त ताज़बीबी की भावना से सूथन-पटका का श्रृंगार धराते हैं. यह श्रृंगार ताज़बीबी की विनती पर सर्वप्रथम भक्तकामना पूरक श्री गुसांईजी ने धराया था. 

ताज़बीबी की ओर से यह श्रृंगार वर्ष में छह बार धराया जाता है. भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी (गणेश चतुर्थी) के दिन यह श्रृंगार नियम से धराया जाता है यद्यपि इस श्रृंगार को धराने के अन्य पांच दिन निश्चित नहीं हैं. 

ताज़बीबी बादशाह अकबर की बेग़म, प्रभु की भक्त और श्री गुसांई जी की परम-भगवदीय सेवक थी. उन्होंने कई कीर्तनों की रचना भी की है और उनके सेव्य स्वरुप श्री ललितत्रिभंगी जी वर्तमान में गुजरात के पोरबंदर में श्री रणछोड़जी की हवेली में विराजित हैं.

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को फिरोज़ी धोरा के वस्त्र, पाग धराये गए हैं व ठाडे वस्त्र गुलाबी हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

बन्यो वागौ वामना चंदनको l
चंपकली की पाग बनाई भाल तिलक बन्यो वंदन को ll 1 ll
चोली की छबि कहत न आवे काछोटा मनफंदनको l
‘परमानंद’ आनंद तहाँ नित मुख निरखत नंद नंदनको ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में फिरोज़ी धोरा के रंग की मलमल की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को फिरोज़ी धोरा के रंग की मलमल का धोरे (थोड़े-थोड़े अंतर से किनारी के धोरे) वाला सूथन और राजशाही पटका धराया जाता है. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य (घुटने तक) का उष्णकालीन छेड़ान का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर फिरोज़ी धोरा के रंग के फेंटा के ऊपर सिरपैंच, चंद्रिका, कतरा तथा बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
 श्रीकर्ण में लोलकबिन्दी लड़ वाले कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, गंगा जमुनी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उष्णकाल का व गोटी बाघ-बकरी की आती है.

Sunday, 16 May 2021

व्रज - वैशाख शुक्ल पंचमी

व्रज - वैशाख शुक्ल पंचमी
Monday, 17 May 2021

मल्लकाछ टिपारा का श्रृंगार

मल्लकाछ (मल्ल एवं कच्छ) दो शब्दों से बना है और ये एक विशेष पहनावा है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. 
सामान्यतया वीर-रस का यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु की चंचलता प्रदर्शित करने की भावना से धराया जाता है.

कीर्तन – (राग : सारंग)

अक्षय तृतीया गिरिधर बैठे चंदन को 
तन लेप किए ।
प्रफुल्लित वदन सुधाकर निरखत गोपी नयन चकोर पियें ।।१।।
कनक वरन शिर बनयो हे टीपारो ठाडे है कर कमल लिए ।
गोविंद प्रभु की बानिक निरखत वार फेर तन मनजु दिये ।।२।।

  साज -आज सुवापंखी मलमल की तुईलेस की रूपेरी किनारी वाली पिछवाइ धरीं जाती है. गादी,तकिया चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट आती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज सुवापंखी मलमल रंग का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी वाला मल्लकाछ एवं पटका धराया जाता है. इसी प्रकार सुवापंखी रंग का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी वाला पटका भी धराया जाता है. इस श्रृंगार को मल्लकाछ-टिपारा एवं दोहरा पटका का श्रृंगार कहा जाता है. ठाड़े वस्त्र केसरी डोरिया के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को श्रीकंठ का शृंगार छेड़ान (हल्का) बाक़ी मध्य का (घुटने तक) ऊष्णक़ालीन श्रृंगार धराया जाता है. मोतियों के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर टिपारा का साज (सुवापंखी मलमल की टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में फ़ीरोज़ी रंग की मोरशिखा और दोनों ओर दोहरा कतरा) तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
हांस, त्रवल, पायल कड़ा हस्तसाखलाआदि धराये जाते हैं. श्रीकंठ में श्वेत माला धरायी जाती है. श्वेत पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमल के फूल की छड़ी, सुवा  के वेणुजी तथा दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उष्णकाल का व गोटी बाघ-बकरी की आती है. 

Saturday, 15 May 2021

व्रज - वैशाख शुक्ल चतुर्थी

व्रज - वैशाख शुक्ल चतुर्थी
Sunday, 16 May 2021

 केसरी मलमल के पिछोड़ा एवं छज्जेदार पाग के श्रृंगार 

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र,श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को केसरी मलमल के पिछोड़ा व श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग और गोल-चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन : (राग – सारंग)

आंगन खेलिये झनक मनक ।
लरिका यूथ संग मनमोहन बालक ननक ननक ।।१।।
पैया लागो पर घर जावो छांडो खनक खनक ।
परमानंद कहत नंदरानीबानिक तनक तनक ।।२।।

साज – आज श्रीजी में केसरी मलमल की, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.
गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती हे.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी मलमल का सुनहरी  किनारी से सुसज्जित पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के होते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. उष्णकाल के मोती के सर्वआभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर केसरी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, रूपहरी, लूम गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. .
 गुलाबी एवं सफ़ेद पुष्पों की सुन्दर दो मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं वैत्रजी धराये जाते हैं.
पट उष्णकाल का व गोटी हक़ीक की आती है.

Friday, 14 May 2021

व्रज - वैशाख शुक्ल तृतीया (द्वितीय)

व्रज - वैशाख शुक्ल तृतीया (द्वितीय)
Saturday, 15 May 2021

 गुलाबी धोती पटका के शृंगार

नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को गुलाबी धोती-पटका एवं गोल पाग का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज बने नंदनंदनरी नव चंदनको तन लेप किये l
तामे चित्र बने केसर के राजत हैं सखी सुभग हिये ll 1 ll
तन सुखको कटि बन्यो हे पिछोरा ठाड़े है कर कमल लिये l
रूचि वनमाल पीत उपरेना नयन मेन सरसे देखिये ll 2 ll
करन फूल प्रतिबिंब कपौलन मृगमद तिलक लिलाट दिये l
‘चतुर्भुज’ प्रभु गिरिधरन लाल छबि टेढ़ी पाग रही भृकुटी छिये ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में गुलाबी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी-तकिया एवं चरण चौकी के ऊपर सफेद बिछावट होती है. 

वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र श्वेत रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को उष्णकाल का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, गोल चंद्रिका तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में मोती के एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, उष्णकाल के झिने लहरियाँ के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उष्णकाल का एवं गोटी छोटी हक़ीक की आती हैं.

Thursday, 13 May 2021

व्रज - वैशाख शुक्ल तृतीया (प्रथम)

व्रज - वैशाख शुक्ल तृतीया (प्रथम)

Friday, 14 May 2021

 

श्याम अंग सखी हेम चंदनको नीको सोहे वागो ।

चंदन ईजार चंदन को पटुका बन्यो सीस चंदन को पागो ।।१।।

अति छबि देत चंदन ऊपरना बीच बन्यो चंदन को तागो ।

सब अंग छींट बनी चंदन की निरखत सूर सुभागो ।।२।।


आज की पोस्ट काफी लंबी परंतु अक्षय तृतीया से प्रभु के सुखार्थ होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनो की  जानकारी से ओतप्रोत है.


अक्षय तृतीया (आखातीज)


विशेष – आज का दिन अति विशिष्ट है. आज अक्षय तृतीया है और श्रीमद्भागवत के अनुसार आज से त्रेतायुग का आरम्भ हुआ था. 


अक्षय-तृतीया ऐसी तिथी है जिसका क्षय नहीं होता इसीलिए इसे अक्षय-तृतीया कहा जाता है. 

इसी कारण ऐसी मान्यता है कि आज के दिन किये पुण्य का क्षय नहीं होता अतः आज के दिन शीतल वस्तुओं (हाथ का पंखा, खरबूजा, सतुवा का लड्डू) सहित जल-कुम्भ (जल की छोटी मटकी) का दान अत्यंत फलदायी है.


उड़ीसा के पुरी में भगवान् श्री जगन्नाथजी में आज से चन्दन यात्रा प्रारंभ होती है. आज से कई दिन प्रभु को प्रतिदिन चन्दन का लेप किया जाता है जिससे प्रभु को शीतलता मिले.


पुष्टिमार्ग विशेष – आज के दिन बालक श्रीकृष्ण का मुंडन संस्कार भी हुआ था

आज के दिन ही विक्रमाब्द 1556 में गिरिराज पर्वत पर पूरणमल क्षत्रिय के द्वारा श्रीजी हेतु नए मंदिर का निर्माण प्रारंभ हुआ. 

विक्रमाब्द 1576 में उक्त मंदिर का निर्माण पूर्ण होने पर भी आज के दिन ही श्री महाप्रभुजी ने श्रीजी को पाट पर विराजित किया था.


इसके अतिरिक्त आज के ही दिन प्रभुचरण श्रीगुसाईंजी का दूसरा विवाह हुआ था.


सेवाक्रम - प्रातः शंखनाद कर श्वेत केसर की किनारी के चंदवा आदि बांधे जाते हैं. सिंहासन, चरणचौकी, पडघा आदि सर्व-साज स्वर्ण के बड़े कर चांदी के साजे जाते हैं. गेंद, चौगान, दिवला आदि चांदी के आते हैं. 


आज विशिष्ट उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. 


सभी समय यमुनाजल की झारीजी आती है. आज से प्रतिदिन आरती चार बत्ती की आती है जिसमें आज सभी समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है. 


मंगला पश्चात प्रभु को चंदन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है. आज से झारीजी, बंटाजी, वेणुजी, वेत्रजी आदि सभी चांदी के धरे जाते हैं. 


श्रृंगार समां का कीर्तन –


आज मेरे आएंगे हरि मेहमान l

चंदन भवन लिपाय स्वच्छ करि धर्यो है अरगजा सान ll 1 ll 

पलकन के पावड़े बिछाऊँ अंचल पवन दुराऊँ l

सुधे बसन सगमंगे किने मुक्ता ले पहराऊँ ll 2 ll

करके मनोरथ अपने मन को रही न कछु अभिलाष l

पहले बोल सुनत तू आली ‘कृष्णदास’ हित साख ll 3 ll


प्रभु को नियम का श्वेत मलमल का केसर की किनार वाला पिछोड़ा व चंदनिया रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की कुल्हे के ऊपर तीन मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ धरायी जाती है.


श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से कूर (घी में सेके गये कसार) के चाशनी चढ़े गुंजा व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


अक्षय तृतीया अक्षयलीला नवरंग गिरिधर पहेरत चंदन l

वामभाग वृषभान नंदिनी बिचबिच चित्र नव वंदन ll 1 ll

तनसुख छींट ईजार बनी है पीत उपरना विरह-निकंदन l

उर उदार बनमाल मल्लिका सुखद पाग युवतीन मनफंदन ll 2 ll

नखसिख रत्न अलंकृत भूषन श्रीवल्लभ मारग मनरंजन l

‘कृष्णदास’ प्रभु रसिक सिरोमनि लोचन चपल लजावत खंजन ll 3 ll


साज – आज प्रभु में श्वेत चिकन बूटी की पिछवाई धरायी जाती है जिसमें केसर की किनार की जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज प्रभु को श्वेत मलमल का केसर की किनार वाला पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र चंदनिया (चंदन के) डोरिया के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) उष्णकालीन मध्यम श्रृंगार धराया जाता है. विशेष मोती, हीरा एवं स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

नीचे उष्ण काल के मोती के पदक ऊपर मोती की माला धरायी जाती हैं.

कली एवं सात बालकन की माला धरायीं जाती हैं.

 श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, तीन मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरे के कुंडल धराये जाते हैं. 

पीठिका के ऊपर मोती का चौखटा धराया जाता है. 

श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 

श्रीहस्त में कमलछड़ी, मोती के वेणुजी तथा दो वेत्रजी धराये जाते हैं. 

पट ऊष्णकाल का, गोटी मोती की व आरसी शृंगार में हरे मख़मल की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है. 


आज ग्वाल के दर्शन नहीं खोले जाते और दो राजभोग दर्शन खुलते हैं.


पहले राजभोग में नित्य-नियम के भोग के साथ अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में घोला हुआ सतुवा, दहीभात आदि अरोगाये जाते हैं. 

भोग सरे उपरान्त हस्तनिर्मित खस के पंखा, श्वेत माटी के करवा, कुंजा व चन्दन बरनी का अधिवासन होता है और दर्शन खोले जाते हैं.


आज से प्रभु को चन्दन धराया जाता है. चन्दन को घिस के मलमल के वस्त्र में लेकर जल निचो लिया जाता है एवं इसमें केशर, बरास, इत्र (खस अथवा गुलाब), गुलाबजल आदि मिलाकर इसकी गोलियां बनायी जाती है.


खुले दर्शन के मध्य प्रभु को चंदन समर्पित किया जाता है. पहली गोली प्रभु के वक्षस्थल पर, दूसरी गोली, दायें श्रीहस्त में, तीसरी बायें श्रीहस्त पर, चौथी दायें श्रीचरण पर और पांचवी गोली बायें श्रीचरण पर धरी जाती है. 


इसके पश्चात दो नये हस्तनिर्मित ख़स के हाथ-पंखा को जल छिड़ककर प्रभु को कुछ देर पंखा झलकर गादी के पीछे तकिया की दोनों ओर रखे जाते हैं.


पहले राजभोग दर्शन खुलते हैं परन्तु इस दर्शन में आरती नहीं की जाती.

दर्शन उपरांत दूसरे राजभोग में उत्सव भोग रखे जाते हैं जिनमें प्रभु को खरबूजा (शक्कर टेंटी) के छिले हुए बीज के लड्डू, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी, बासोंदी, जीरा मिश्रित दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, बीज-चालनी का सूखा मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार), विविध प्रकार के फल, उत्तमोत्तम रत्नागिरी आम की डबरिया, शीतल आदि अरोगाये जाते हैं.


सखड़ी में बड़े टूक, पाटिया, दहीभात, घोला हुआ सतुवा आदि अरोगाये जाती हैं. 


दुसरे राजभोग दर्शन में आरती होती है. राजभोग दर्शन में प्रभु के सम्मुख सिकोरी (स्वर्ण का जालीदार पात्र) में पान के बीड़ा धरे जाते हैं.


आज प्रभु के मुंडन का दिन भी है और इस कारण आज के उत्सव में ठाकुरजी के ननिहाल के सदस्य भी आमंत्रित किये जाते हैं और इसीलिए आज श्री यशोदाजी के पीहर की लकड़ी की विशिष्ट चौकी का प्रयोग भोग धरने में किया जाता है.


आज से रथयात्रा तक प्रतिदिन संध्या-आरती में प्रभु को क्रमशः जल में भीगी (अजवायन युक्त) चने की दाल, भीगी मूँग दाल व तीसरे दिन अंकुरित मूँग (अंकूरी) अरोगाये जाते हैं. यद्यपि यह सामग्री रथयात्रा के पश्चात भी जन्माष्टमी तक अरोगायी जाती है परन्तु इसके स्वरुप में कुछ परिवर्तन होता है जिसका वर्णन मैं तभी दूंगा.


आज से जन्माष्टमी तक प्रतिदिन संध्या-आरती में प्रभु को शीतल (जल में बूरा, गुलाबजल, इलायची, बरास आदि मिलाकर सिद्ध किया गया पेय) अरोगाया जाता है.


चंदन की गोलियां संध्या-आरती पश्चात श्रृंगार बड़ा हो तब बड़ी की (हटाई) जाती है.


शयन समय शैयाजी के ऊपर छींट की गादी एवं उसके ऊपर श्वेत मलमल की चादर रखी जाती है. शैयाजी का यह क्रम आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा तक रहता है.


आप सभी को अक्षय-तृतीया के उत्सव की ख़ूबख़ूब बधाई

Wednesday, 12 May 2021

व्रज - वैशाख शुक्ल द्वितीया

व्रज - वैशाख शुक्ल द्वितीया
Thursday, 13 May 2021

आगम का श्रृंगार

विशेष – आज के दिन भगवान परशुरामजी का जन्म भी हुआ था जो कि भगवान विष्णु के क्रोधवंत अंशावतार हैं. यध्यपि भगवान परशुरामजी को पुष्टिमार्ग में मान्यता नहीं दी गयी है
 
कल अक्षय-तृतीया है और आज श्रीजी को उत्सव के एक दिन पूर्व धराया जाने वाला हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 

अधिकांश बड़े उत्सवों के एक दिन पूर्व लाल-पीले वस्त्र एवं पाग-चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है. इसे आगम का श्रृंगार कहा जाता है और यह श्रृंगार अनुराग के भाव से धराया जाता है. 

इस श्रृंगार के लाल वस्त्र विविध ऋतुओं के उत्सवों के अनुरूप होते हैं अर्थात गत वैशाख कृष्ण नवमी को श्री महाप्रभुजी के उत्सव के पूर्व के इस श्रृंगार में तत्कालीन ऋतु के अनुरूप घेरदार वागा धराये गए थे और वैशाख कृष्ण द्वादशी से सामान्यतया शीतकालीन वस्त्र अर्थात घेरदार, चाकदार एवं खुलेबंद के वागा नहीं धराये जाते अतः आज प्रभु को लाल मलमल का पिछोड़ा धराया जायेगा. 

कल अक्षय तृतीया है और चन्दन यात्रा का आरम्भ होगा. श्रीजी में सेवाक्रम में भी कई परिवर्तन होंगे. सिंहासन, चरणचौकी, पड़घा, झारीजी, बंटाजी, वेणुजी, वेत्रजी आदि स्वर्ण के प्रभु के सम्मुख इस ऋतु में आज अंतिम बार धरे जाते हैं अर्थात कल से सर्व-साज चांदी के साजे जायेंगे. 

आज से श्रीजी के श्रीहस्त में पुष्पछड़ी के स्थान पर कमल छड़ी धरायी जाएगी.

विगत कल प्रतिपदा को शयन समय चंदुआ एवं टेरा सफ़ेद बांधे जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्Shreenathjinitydarsh की बानिक कही न जाय, बैठे निकस कुंजद्वार l
लटपटी पाग सिर सिथिल चिहुर चारू खसित बरुहा चंदरस भरें ब्रजराजकुमार ll 1 ll
श्रमजल बिंदु कपोल बिराजत मानों ओस कन नीलकमल पर l
‘गोविंद’ प्रभु लाडिलो ललन बलि कहा कहों अंग अंग सुंदर वर ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में लाल सुनहरी लप्पा की, सुनहरी ज़री की तुईलैस के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को लाल मलमल का पिछोड़ा धराया जाता हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल मलमल की छज्जेदार
 पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में एक जोड़ी पन्ना के कर्णफूल धराये जाते हैं. श्रीकंठ में  पन्ना की चार माला धरायी जाती है. श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट लाल, गोटी सोने की छोटी व आरसी श्रृंगार में सोना की एवं राजभोग में बटदार आती है.

Tuesday, 11 May 2021

व्रज - वैशाख शुक्ल प्रतिपदा

व्रज - वैशाख शुक्ल प्रतिपदा 
Wednesday, 12 May 2021

ग्रीष्म ऋतु का अंतिम मुकुट काछनी का श्रृंगार

विशेष - श्रीजी को आज इस ऋतु का अंतिम मुकुट का श्रृंगार धराया जायेगा. आज के पश्चात मुकुट-काछनी का श्रृंगार लगभग दो माह दस दिन पश्चात (आषाढ़ शुक्ल एकादशी को) धराया जायेगा.
आज के वस्त्र कांकरौली श्री द्वारिकाधीश मंदिर की तरफ़ से आते हैं.

प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है. 

अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी का पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता. 

जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है. 

जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं. 

जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है. 

आज संभवतया श्रीजी के श्रीहस्त में पुष्पछड़ी अंतिम बार धरायी जाती है. कल से प्रभु के श्रीहस्त में कमल-छड़ी धरायी जायेगी.

कीर्तन – (राग : सारंग)

कुंजभवन तें निकसे माधो-राधा ये चले मेलि गले बांह l
तब प्यारी अरसाय पियसो मंद मंद ज्यों स्वेदकन वदन निहारत करत मुकुट की छांह ll 1 ll
श्रमित जान पट पीत छोरसो पवन ढुरावे हो व्रजवधु वनमांह l
‘जगन्नाथ’ कविराय की प्यारी देखत नयन सिराह ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में लाल रंग की मलमल की, सुनहरी लप्पा की तुईलैस के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल का सूथन, काछनी एवं रास-पटका धराये जाते हैं. चोली नहीं धरायी जाती. 
सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (चिकन) के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना   के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर स्वर्ण का डांख का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर उत्सव की मोती मीना की शिखा (चोटी) धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में कली, कस्तूरी व कमल माला धरायी जाती है.
 श्वेत पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर कलात्मक वनमाला धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, सोने के लहरिया के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी शतरंज की आती है.

Monday, 10 May 2021

व्रज - वैशाख कृष्ण अमावस्या

व्रज - वैशाख कृष्ण अमावस्या
Tuesday, 11 May 2021

 नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को केसरी धोती-पटका एवं छज्जेदार पाग का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन : (राग – सारंग)

आंगन खेलिये झनक मनक ।
लरिका यूथ संग मनमोहन बालक ननक ननक ।।१।।
पैया लागो पर घर जावो छांडो खनक खनक ।
परमानंद कहत नंदरानीबानिक तनक तनक ।।२।।

साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की मलमल की, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.
गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती हे.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी मलमल की धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता है. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र हारे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर केसरी मलमल की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी तथा एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट केसरी व गोटी मीना की आती है. 

Sunday, 9 May 2021

व्रज - वैशाख कृष्ण चतुर्दशी

व्रज - वैशाख कृष्ण चतुर्दशी
Monday, 10 May 2021

मल्लकाछ टिपारा का श्रृंगार

विशेष – आज का श्रृंगार नियम का नहीं है परन्तु सामान्यतया आज के दिन धराया जाता है. 

श्री महाप्रभुजी के उत्सव पश्चात बाललीला के चार श्रृंगार धराये जाते हैं और इन चार दिन सभी समां में बाल-लीला के कीर्तन ही गाये जाते हैं. 

आज यह श्रृंगार बाललीला के भाव से धराया जा रहा है. 
मल्लकाछ (मल्ल एवं कच्छ) दो शब्दों से बना है और ये एक विशेष पहनावा है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. 
सामान्यतया वीर-रस का यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु की चंचलता प्रदर्शित करने की भावना से धराया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

गोविंद लाडिलो लडबोरा l
अपने रंग फिरत गोकुलमें श्यामवरण जैसे भोंरा ll 1 ll
किंकणी कणित चारू चल कुंडल तन चंदन की खोरा l
नृत्यत गावत वसन फिरावत हाथ फूलन के झोरा ll 2 ll
माथे कनक वरण को टिपारो ओढ़े पिछोरा l
‘परमानंद’ दास को जीवन संग दिठो नागोरा ll 3 ll 

साज – आज श्रीजी में माखनचोरी लीला के सुन्दर चित्रांकन से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है जिसमें कृष्ण-बलराम अपने मित्रों के साथ मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार धराये माखन चोरी कर रहे हैं. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को हल्के गुलाबी मलमल का मल्लकाछ एवं दो पटका धराये जाते हैं. दोनों वस्त्र रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र श्याम मलमल के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) मध्यम श्रृंगार धराया जाता है. छेड़ान के हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर टिपारा का साज (गुलाबी रंग की मलमल की टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में मोरशिखा और दोनों ओर दोहरा कतरा) तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
हांस, त्रवल, पायल आदि धराये जाते हैं. श्रीकंठ में कमल माला धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, झिने लहरियाँ के वेणुजी तथा दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गुलाबी व गोटी बाघ-बकरी की आती है. 

Saturday, 8 May 2021

व्रज - वैशाख कृष्ण त्रयोदशी

व्रज - वैशाख कृष्ण त्रयोदशी
Sunday, 09 May 2021

श्री महाप्रभुजी के उत्सव उपरान्त बालभाव के श्रृंगार

विशेष – श्री महाप्रभुजी के उत्सव उपरान्त कुछ बालभाव के श्रृंगार धराये जाते हैं. आज श्रीजी को बाल-लीला के भाव से धोती-पटका का श्रृंगार धराया जाता है. सभी समां में बाल-लीला के कीर्तन ही गाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन : (राग – सारंग)

जब मेरो मोहन चलेगो घटुरुवन तब हौं री करौंगी वधाई l
सर्वसु वारी देहुँगी तिहि छिनु मैया कहि तुतुराई ll 1 ll
यशोदा के वचन सुनत ‘केशो प्रभु’ जननी प्रीति जानी अधिकाई l
नंदसुवन सुख दियो मात कों अतिकृपाल मेरो नंद ललाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में श्री ठाकुरजी को पलना झुलाते नंद-यशोदा जी, नंदोत्सव एवं छठी पूजन के सुन्दर कलात्मक चित्रांकन की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल मलमल की धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता है. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र अमरसी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल मलमल की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, सुनहरी चमक की गोल-चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में जड़ाव कर्णफूल धराये जाते हैं.
 मोती एवं माणक की हमेल धरायी जाती है.
 श्रीकंठ में हालरा व बघनखा धराये जाते हैं.
 श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी तथा एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी चांदी की आती है.

Friday, 7 May 2021

व्रज - वैशाख कृष्ण द्वादशी

व्रज - वैशाख कृष्ण द्वादशी
Saturday, 08 May 2021

श्री महाप्रभुजी के उत्सव का परचारगी श्रृंगार

विशेष – आज प्रातः मंगला से श्रृंगार तक श्री द्वारकेशजी महाराज कृत ‘मूल पुरुष’ गायी जाती है एवं सारे दिन प्रत्येक समां में बधाई एवं श्रीवल्लभ की बाल-लीला के कीर्तन गाये जाते हैं.

🌸 आज से श्रीजी के सेवाक्रम में भी कुछ परिवर्तन होते हैं.
मंगला दर्शन में पीठिका के ऊपर धरायी जाने वाली दत्तु आज से नहीं धरायी जाती है.
इसके अतिरिक्त घेरदार, चाकदार और खुलेबंद के वागा भी आज से नहीं धराये जायेंगे.
आज से प्रभु को मलमल के उष्णकाल के वस्त्र (पिछोड़ा, परदनी, धोती-पटका, मल्लकाछ आदि) ही धराये जायेंगे.

आज दो समय की आरती थाली में की जाती है. झारीजी सभी समय यमुनाजल की आती है.

आज पिछवाई के अलावा सभी वस्त्र एवं श्रृंगार पिछली कल की भांति ही होते हैं. केवल कल के खुलेबन्द के वागा के स्थान पर पिछोड़ा धराया जाता है (यदि ऋतु में ठंडक हो तो आज खुलेबन्द भी धराये जा सकते हैं).

इसे परचारगी श्रृंगार कहते हैं. श्रीजी में अधिकांश बड़े उत्सवों के एक दिन बाद उस उत्सव का परचारगी श्रृंगार होता है. परचारगी श्रृंगार के श्रृंगारी श्रीजी के परचारक महाराज (चिरंजीवी श्री विशालबावा) होते हैं. यदि वो उपस्थित हों तो वही श्रृंगारी होते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

दान देत श्री लक्ष्मण प्रमुदित मणिमाणिक कंचन पट गाय l
श्री व्रजराज कुंवर यशोदासुत करुणाकर प्रगटे हरि आय ll 1 ll
रही न मन अभिलाष कछू अब याचक ना महतो कोऊ l
‘विष्णुदास’ उमगे अंतर तें दे असीस तुमसे नहि कोय ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में एक ओर अग्नि-कुंड में से श्री महाप्रभुजी के प्राकट्य और दूसरी ओर श्री गिरिराजजी की कन्दरा में से श्रीजी के प्राकट्य के सुन्दर चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी
मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है. वस्त्र रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं परन्तु किनारी बाहर दृश्य नहीं होती अर्थात भीतर की ओर मोड़ दी जाती है. ठाड़े वस्त्र श्वेत मलमल के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर केसरी की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की मोर-चंद्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर उत्सव की मोती की चोटी (शिखा) भी धरायी जाती है.
आज बाजु पोची माणक की धरायी जाती हैं.
चैत्री गुलाबों एवं अन्य पुष्पों से निर्मित जाली वाला अत्यंत सुन्दर वन-चौखटा पीठिका के ऊपर धराया जाता है.
श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर थागवाली कलात्मक वनमाला धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट एवं गोटी जड़ाऊ की व आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की आती है.

व्रज - वैशाख कृष्ण एकादशी

व्रज - वैशाख कृष्ण एकादशी
Friday, 07 May 2021

दृढ़ इन चरनन केरो,
भरोसो दृढ़ इन चरनन केरो।
श्रीवल्लभनख चन्द्र छटा बिनु,
सब जग माँझ अन्धेरो।।
साधन और नहीं या कलि में,
जासों होत निबेरो।
सूर कहा कहे द्विविध आँधरो,
बिना मोल को चेरो।।
भरोसो दृढ़ इन चरनन केरो।

सभी वैष्णवों को पुष्टिमार्ग के प्रथम प्रणेता परमपूज्य जगद्गुरु श्रीमद्वल्लभाचार्य जी के ५४४ वे प्राकट्योत्सव की ख़ूबख़ूब बधाई

जगद्गुरु श्रीमद्वल्लभाचार्यजी (श्री महाप्रभुजी) का प्राकट्योत्सव (जगद्गुरु श्रीमद्वल्लभाचार्यजी के बारे में विस्तृत जानकारी अन्य पोस्ट में )

आज वैशाख कृष्ण (वरूथिनी) एकादशी है और जगद्गुरु श्रीमद्वल्लाभाचार्यजी (श्रीमहाप्रभुजी) का प्राकट्योत्सव है. 

उत्सव विशेष – आज पुष्टिमार्ग के प्रथम प्रणेता जगद्गुरु श्रीमद्वल्लभाचार्यजी का प्राकट्योत्सव है अतः श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. 

आज प्रत्येक द्वार के ऊपर रंगोली भी मांडी जाती है. हल्दी को गला कर द्वार के ऊपर लीपी जाती है एवं सूखने के पश्चात उसके ऊपर गुलाल, अबीर एवं कुंकुम आदि से कलात्मक रूप से कमल, पुष्प-लता, स्वास्तिक, चरण-चिन्ह आदि का चित्रांकन किया जाता है और अक्षत छांटते हैं. इसे बड़ी देहरी मांडना कहते हैं. 

सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या-आरती व शयन) में आरती थाली में की जाती है. 

चरणचौकी, पड़घा, कुंजा, बंटा आदि सर्व साज जड़ाव स्वर्ण के धरे जाते हैं. तकिया आदि भी जड़ाऊ आते हैं. कमल के कामवाली पिछवाई धरायी जाती है. गेंद, चौगन, दीवला आदि सभी सोने के आते हैं.  
टेरा (पर्दा) केसरी जन्माष्टमी वाले आते हैं.

आज मंगला से सायं तक ठोड़ के वारा में जलेबी टूक के टोकरा अरोगाये जाते हैं.

मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है. 
अभ्यंग के मध्य कीर्तन के छह पद नियम के गाये जाते  हैं.

आज के दिन श्रीजी के निज मंदिर में विराजित श्री महाप्रभुजी के पादुकाजी को भी अभ्यंग कराया जाता है.

आज श्रीजी को नियम के केसरी (अमरसी) मलमल के खुलेबन्ध के चाकदार वागा व श्वेत ठाडे वस्त्र धराये जाते हैं. वनमाला का दो जोड़ी का श्रृंगार धराया जाता है. हांस, हमेल, कठुला, त्रबल आदि धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चन्द्रिका धरायी जाती है.
श्याम वस्त्र के ऊपर मोतियों की सज्जा वाला सुन्दर चौखटा प्रभु की पीठिका पर धराया जाता है. 

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त जलेबी के टूक, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा का अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में केसरी पेठा, मीठी सेव, पांचभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात एवं वड़ी-भात) व घोला हुआ सतुवा अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग समय उत्सव भोग रखे जाते हैं जिनमें प्रभु को केशरयुक्त जलेबी टूक के टोकरा, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी (मलाई पूड़ी), बासोंदी, जीरा मिश्रित दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, श्रीखंड-वड़ी, घी में तला हुआ बीज-चालनी का सूखा मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, विविध प्रकार के फलफूल, शीतल आदि अरोगाये जाते हैं.

इसी प्रकार श्रीजी के निज मंदिर में विराजित श्री महाप्रभुजी की गादी को भी एक थाल में यही सब सामग्रियां भोग अरोगायी जाती हैं.

राजभोग सरे उपरान्त श्रीजी को उस्ताजी की बड़ी आरसी दिखायी जाती हैं फिर राजभोग दर्शन खुलते है और श्रीजी को तिलक, अक्षत किये जाते है, बीड़ा पधराये जाते हैं और मुठिया वार के चून की आरती की जाती है.
इस उपरान्त श्री महाप्रभुजी के पादुकाजी को भी मुठिया वार के चून की आरती की जाती है.

आज श्रीजी को नियम के केसरी मलमल के खुले बन्ध (तनी बाँध के धरावे) चाकदार वागा व श्वेत ठाडे वस्त्र धराये जाते हैं. वनमाला का दो जोड़ी का श्रृंगार धराया जाता है. हांस, हमेल, कठुला, त्रबल आदि धराये जाते हैं.

राजभोग दर्शन -

कीर्तन – (राग : सारंग)

घरघर ग्वाल देत हे हेरी l
बाजत ताल मृदंग बांसुरी ढ़ोल दमामा भेरी ll 1 ll
लूटत झपटत खात मिठाई कहि न सकत कोऊ फेरी l
उनमद ग्वाल करत कोलाहल व्रजवनिता सब घेरी ll 2 ll
ध्वजा पताका तोरनमाला सबै सिंगारी सेरी l
जय जय कृष्ण कहत ‘परमानंद’ प्रकट्यो कंस को वैरी ll 3 ll 

कीर्तन – (राग : सारंग)

केसरकी धोती पहेरे केसरी उपरना ओढ़े तिलक मुद्रा धर बैठे श्री लक्ष्मण भट्ट धाम l
जन्म धोस जान जान अद्भुत रूचि मान मान नखशिखकी शोभा ऊपर वारों कोटि काम ll 1 ll
सुन्दरताई निकाई तेज प्रताप अतुल ताई आसपास युवतीजन करत है गुणगान l
‘पद्मनाभ’ प्रभु विलोक गिरिवरधर वागधीस यह अवसर जे हुते ते महा भाग्यवान ll 2 ll

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज वधाई को दिन नीको l
नंदघरनी जसुमति जायौ है लाल भामतो जीकौ ll 1 ll
पांच शब्द बाजे बाजत घरघरतें आयो टीको l
मंगल कलश लीये व्रज सुंदरी ग्वाल बनावत छीको ll 2 ll
देत असीस सकल गोपीजन चिरजीयो कोटि वरीसो l
‘परमानंददास’को ठाकुर गोप भेष जगदीशो ll 3 ll

साज - आज श्रीजी में केसरी रंग की मलमल की, उत्सव के कमल के काम (Work) वाली एवं रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी मलमल के खुले बन्ध (तनी बाँध के धरावे) का चाकदार वागा सूथन, पटका चोली फूल वाले किनारी के धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र श्वेत मलमल के धराये जाते हैं. श्वेत ठाड़े वस्त्र श्रीवल्लभ के यश के भाव से धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक की प्रधानता एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
नीचे पदक, ऊपर माला, दुलड़ा व हार उत्सववत धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर केसरी कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की मोर-चंद्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर उत्सव की मोती की चोटी (शिखा) भी धरायी जाती है. 

श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.आज श्रीजी को बघनखा धराया जाता हैं. 
उत्सव का मोती का चौखटा पीठिका के ऊपर धराया जाता है.
 श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर थागवाली कलात्मक वनमाला धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उत्सव का गोटी जड़ाऊ की व आरसी जड़ाऊ की आती है.

विशेष- श्री आचार्य जी , श्री प्रभु चरण श्री गुसाईं जी एवम् समस्त तिलकायत गृह आचार्यों ने सेवा प्रणालिका में सदैव तत्सुख को ही सर्वोपरि रखा है। सेवा रीति का जब सूक्ष्मता से विचार करें तो बारंबार इस प्रेम की पराकाष्ठा के दर्शन होते हैं। ऐसा ही एक क्रम श्री आचार्य जी के उत्सव के सेवा प्रकार में आता है *" आधी सफेदी उतरे"*
श्री आचार्य जी का उत्सव उष्णकाल में आता है, इसलिए पुरी सफेदी विजय करने पर श्री प्रभु को गर्मी से श्रम ना होवे इसलिए उत्सवान्तर्गत केवल तकियों की सफेदी उतारी जाती है बाकी सर्वत्र सफेदी यथावत रहती है और तकियों में भी तकिया पट्टी के मध्य सफेदी रखी जाती है । ये सेवा रीतियां केवल और केवल प्रेम की पराकाष्ठा को परिलक्षित करती हैं। आप सभी वाल्लभीय सृष्टि भी यथाशक्ति अनुसरण कर श्री प्रभु को इस महोत्सव पर प्रेम पूर्वक उत्तमोत्तम लाड़ लड़ाए।

इति शुभम् 

Wednesday, 5 May 2021

व्रज - वैशाख कृष्ण दशमी

व्रज - वैशाख कृष्ण दशमी
Thursday, 06 May 2021

नित्यलीलास्थ १००८ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज कृत पांच स्वरूपोत्सव

विशेष – विक्रमाब्द 1966 में आज के दिन नाथद्वारा में नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज ने श्रीजी के साथ श्री नवनीतप्रियाजी, श्री विट्ठलनाथजी, श्री द्वारिकाधीशजी एवं श्री मथुराधीशजी को पधराकर छप्पनभोग अरोगाया था अतः आज के दिन को पांच स्वरूपोत्सव कहा जाता है.

सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

आज सभी समां में झारीजी यमुनाजल से भरी जाती है. दो समय आरती थाली में की जाती है.

पांच स्वरूपोत्सव के दिन विराजित सभी स्वरूपों ने मोती का मुकुट, लाल रंग की काछनी के वस्त्र एवं वनमाला का श्रृंगार धराया था अतः श्रीजी को आज नियम का मुकुट काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.

 
उत्सव के कारण गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में रस-बूंदी (आमरस व मेवा मिश्रित बूंदी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं. 
इसके अतिरिक्त प्रभु को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग भी अरोगाया जाता है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है वहीँ सखड़ी में आमरस-भात अरोगाये जाते हैं. 

कल वैशाख कृष्ण एकादशी को श्रीमद वल्लभाचार्यजी का उत्सव और वरूथिनी एकादशी का व्रत हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

ऐसी बंसी बाजी बन घनमें व्यापी रही घ्वनि महामुनिनकी समाधि लागी l
भयो ब्रह्मनाद ऊठत आह्लाद जहाँ तहाँ व्रज घोष रत्न वृंद भये सबत्यागी ll 1 ll
रास आदि अनेक लीला रसभाव पूरित मूरति मुखारविंद छबि धरे विरह अनंग जागी l
तब वेणुनाद द्वार अब श्रीलक्ष्मणभट भूपकुमार ‘पद्मनाभ’ दैवोद्धार अर्थ त्यागी ll 2 ll 

साज – आज श्रीजी में गायों, पांच-स्वरूपोत्सव में विराजित प्रभु स्वरूपों एवं गौस्वामी बालकों के चित्रांकन की सुन्दर प्राचीन पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल का सूथन, काछनी एवं रास-पटका धराये जाते हैं. चोली श्याम सुतरु धरायी जाती है. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र श्वेत भातवार मलमल के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – हीरा, मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर जड़ाव स्वर्ण का झीने मोतियों का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
 श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर उत्सव की हीरा की शिखा (चोटी) धरायी जाती है.
श्रीकंठ में कली, कस्तूरी व नील-कमल की माला धरायी जाती है. 
श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर वनमाला धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल, गोटी नाचते मोर की व आरसी चार झाड़ की आती है.

Tuesday, 4 May 2021

व्रज - वैशाख कृष्ण नवमी

व्रज - वैशाख कृष्ण नवमी
Wednesday, 05 May 2021

महाप्रभुजी के उत्सव के आगम के  श्रृंगार

विशेष – आज श्रीजी को उत्सव के एक दिन पूर्व धराया जाने वाला हल्का आगम का श्रृंगार धराया जाता है. 

अधिकतर बड़े उत्सवों के एक दिन पूर्व लाल वस्त्र एवं पाग-चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है. यह श्रृंगार अनुराग के भाव से धराया जाता है.

यद्यपि श्री महाप्रभुजी का प्राकट्योत्सव परसों अर्थात एकादशी को है, कल नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज कृत पांच स्वरूपोत्सव का दिन है और कल प्रभु को नियम का मुकुट व लाल काछनी का श्रृंगार धराया जाता है अतः इस उत्सव का लाल-पीले घेरदार वागा का आगम का श्रृंगार आज नियम से धराया जाता है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : देवगंधार)

व्रज भयो महरिके पुत, जब यह बात सुनी, सुनि आनंदे सब लोग, गोकुल गणित गुनी l
व्रज पूरव पूरे पुन्य रुपी कुल, सुथिर थुनी, ग्रह लग्न नक्षत्र बलि सोधि, कीनी वेद ध्वनी ll 1 ll  
सुनि धाई सबे व्रजनारी, सहज सिंगार कियें, तन पहेरे नौतन चीर, काजर नैन दिये l
कसि कंचुकी तिलक लिलाट, शोभित हार हिये, कर कंकण कंचन थार, मंगल साज लिये ll 2 ll 

साज – आज श्रीजी में लाल रंग की मलमल की, सुनहरी लप्पा की तुईलैस के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को लाल रंग की मलमल का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. उर्ध्व भुजा की ओर कटि-पटका धराया जाता है. सभी वस्त्र सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लाल रंग की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में पन्ना के एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत एवं गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल, गोटी छोटी सोने की व आरसी श्रृंगार में सोना की और राजभोग में बटदार आती है.

Monday, 3 May 2021

व्रज - वैशाख कृष्ण अष्टमी

व्रज - वैशाख कृष्ण अष्टमी
Tuesday, 04 May 2021

नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को लाल रंग की चौफूली चूंदड़ी के चाकदार वागा पर रूपहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं ग्वालपगा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीलक्ष्मणगृह महामंगल भयो प्रगटे श्री वल्लभ पूरणकाम l
माधवमास कृष्णपक्ष शुभलग्न उदित एकादशी दूसरोयाम ll 1 ll
मंगल कलश चौक मोतिन के विविध विचित्र चित्र बने धाम l
मंगल गावत मुदित मानिनी नखसिख रूप कामसी वाम ll 2 ll
मिट्यो तिमिर दुःख द्वंद जगतको भोर भयो मानो मिट गई याम l
'माणिकचंद' प्रभु सदा बिराजो आय बसो श्री गोकुल गाम ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज लाल रंग की चौफूली चूंदड़ी की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को लाल रंग की चौफूली चूंदड़ी का सूथन, चोली के चाकदार वागा धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सूवापंखी (तोते के पंख जैसे हल्के हरे रंग) रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल रंग के ग्वाल पगा पर सिरपैंच, पगा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धराये जाते हैं.
 कमल माला धरायी जाती हैं.
गुलाबी गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी बाघ-बकरी की धरायी जाती हैं.

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया  Saturday, 01 February 2025 इस वर्ष माघ शुक्ल पंचमी के क्षय के कारण कल माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन बसंत पंचमी का पर्व ह...