Monday, 31 May 2021
व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण सप्तमी
Sunday, 30 May 2021
व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी
Saturday, 29 May 2021
व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण पंचमी
Friday, 28 May 2021
व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण तृतीया
Thursday, 27 May 2021
व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण द्वितीया
Tuesday, 25 May 2021
व्रज - वैशाख शुक्ल पूर्णिमा
Monday, 24 May 2021
व्रज - वैशाख शुक्ल चतुर्दशी
Sunday, 23 May 2021
व्रज - वैशाख शुक्ल त्रयोदशी
Saturday, 22 May 2021
व्रज - वैशाख शुक्ल एकादशी
Friday, 21 May 2021
व्रज - वैशाख शुक्ल दशमी
Thursday, 20 May 2021
व्रज - वैशाख शुक्ल नवमी
Wednesday, 19 May 2021
व्रज - वैशाख शुक्ल अष्टमी
Tuesday, 18 May 2021
व्रज - वैशाख शुक्ल सप्तमी
Monday, 17 May 2021
व्रज - वैशाख शुक्ल षष्ठी
Sunday, 16 May 2021
व्रज - वैशाख शुक्ल पंचमी
Saturday, 15 May 2021
व्रज - वैशाख शुक्ल चतुर्थी
Friday, 14 May 2021
व्रज - वैशाख शुक्ल तृतीया (द्वितीय)
Thursday, 13 May 2021
व्रज - वैशाख शुक्ल तृतीया (प्रथम)
व्रज - वैशाख शुक्ल तृतीया (प्रथम)
Friday, 14 May 2021
श्याम अंग सखी हेम चंदनको नीको सोहे वागो ।
चंदन ईजार चंदन को पटुका बन्यो सीस चंदन को पागो ।।१।।
अति छबि देत चंदन ऊपरना बीच बन्यो चंदन को तागो ।
सब अंग छींट बनी चंदन की निरखत सूर सुभागो ।।२।।
आज की पोस्ट काफी लंबी परंतु अक्षय तृतीया से प्रभु के सुखार्थ होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनो की जानकारी से ओतप्रोत है.
अक्षय तृतीया (आखातीज)
विशेष – आज का दिन अति विशिष्ट है. आज अक्षय तृतीया है और श्रीमद्भागवत के अनुसार आज से त्रेतायुग का आरम्भ हुआ था.
अक्षय-तृतीया ऐसी तिथी है जिसका क्षय नहीं होता इसीलिए इसे अक्षय-तृतीया कहा जाता है.
इसी कारण ऐसी मान्यता है कि आज के दिन किये पुण्य का क्षय नहीं होता अतः आज के दिन शीतल वस्तुओं (हाथ का पंखा, खरबूजा, सतुवा का लड्डू) सहित जल-कुम्भ (जल की छोटी मटकी) का दान अत्यंत फलदायी है.
उड़ीसा के पुरी में भगवान् श्री जगन्नाथजी में आज से चन्दन यात्रा प्रारंभ होती है. आज से कई दिन प्रभु को प्रतिदिन चन्दन का लेप किया जाता है जिससे प्रभु को शीतलता मिले.
पुष्टिमार्ग विशेष – आज के दिन बालक श्रीकृष्ण का मुंडन संस्कार भी हुआ था
आज के दिन ही विक्रमाब्द 1556 में गिरिराज पर्वत पर पूरणमल क्षत्रिय के द्वारा श्रीजी हेतु नए मंदिर का निर्माण प्रारंभ हुआ.
विक्रमाब्द 1576 में उक्त मंदिर का निर्माण पूर्ण होने पर भी आज के दिन ही श्री महाप्रभुजी ने श्रीजी को पाट पर विराजित किया था.
इसके अतिरिक्त आज के ही दिन प्रभुचरण श्रीगुसाईंजी का दूसरा विवाह हुआ था.
सेवाक्रम - प्रातः शंखनाद कर श्वेत केसर की किनारी के चंदवा आदि बांधे जाते हैं. सिंहासन, चरणचौकी, पडघा आदि सर्व-साज स्वर्ण के बड़े कर चांदी के साजे जाते हैं. गेंद, चौगान, दिवला आदि चांदी के आते हैं.
आज विशिष्ट उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
सभी समय यमुनाजल की झारीजी आती है. आज से प्रतिदिन आरती चार बत्ती की आती है जिसमें आज सभी समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है.
मंगला पश्चात प्रभु को चंदन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है. आज से झारीजी, बंटाजी, वेणुजी, वेत्रजी आदि सभी चांदी के धरे जाते हैं.
श्रृंगार समां का कीर्तन –
आज मेरे आएंगे हरि मेहमान l
चंदन भवन लिपाय स्वच्छ करि धर्यो है अरगजा सान ll 1 ll
पलकन के पावड़े बिछाऊँ अंचल पवन दुराऊँ l
सुधे बसन सगमंगे किने मुक्ता ले पहराऊँ ll 2 ll
करके मनोरथ अपने मन को रही न कछु अभिलाष l
पहले बोल सुनत तू आली ‘कृष्णदास’ हित साख ll 3 ll
प्रभु को नियम का श्वेत मलमल का केसर की किनार वाला पिछोड़ा व चंदनिया रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की कुल्हे के ऊपर तीन मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ धरायी जाती है.
श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से कूर (घी में सेके गये कसार) के चाशनी चढ़े गुंजा व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)
अक्षय तृतीया अक्षयलीला नवरंग गिरिधर पहेरत चंदन l
वामभाग वृषभान नंदिनी बिचबिच चित्र नव वंदन ll 1 ll
तनसुख छींट ईजार बनी है पीत उपरना विरह-निकंदन l
उर उदार बनमाल मल्लिका सुखद पाग युवतीन मनफंदन ll 2 ll
नखसिख रत्न अलंकृत भूषन श्रीवल्लभ मारग मनरंजन l
‘कृष्णदास’ प्रभु रसिक सिरोमनि लोचन चपल लजावत खंजन ll 3 ll
साज – आज प्रभु में श्वेत चिकन बूटी की पिछवाई धरायी जाती है जिसमें केसर की किनार की जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – आज प्रभु को श्वेत मलमल का केसर की किनार वाला पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र चंदनिया (चंदन के) डोरिया के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) उष्णकालीन मध्यम श्रृंगार धराया जाता है. विशेष मोती, हीरा एवं स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
नीचे उष्ण काल के मोती के पदक ऊपर मोती की माला धरायी जाती हैं.
कली एवं सात बालकन की माला धरायीं जाती हैं.
श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, तीन मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरे के कुंडल धराये जाते हैं.
पीठिका के ऊपर मोती का चौखटा धराया जाता है.
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, मोती के वेणुजी तथा दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का, गोटी मोती की व आरसी शृंगार में हरे मख़मल की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.
आज ग्वाल के दर्शन नहीं खोले जाते और दो राजभोग दर्शन खुलते हैं.
पहले राजभोग में नित्य-नियम के भोग के साथ अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में घोला हुआ सतुवा, दहीभात आदि अरोगाये जाते हैं.
भोग सरे उपरान्त हस्तनिर्मित खस के पंखा, श्वेत माटी के करवा, कुंजा व चन्दन बरनी का अधिवासन होता है और दर्शन खोले जाते हैं.
आज से प्रभु को चन्दन धराया जाता है. चन्दन को घिस के मलमल के वस्त्र में लेकर जल निचो लिया जाता है एवं इसमें केशर, बरास, इत्र (खस अथवा गुलाब), गुलाबजल आदि मिलाकर इसकी गोलियां बनायी जाती है.
खुले दर्शन के मध्य प्रभु को चंदन समर्पित किया जाता है. पहली गोली प्रभु के वक्षस्थल पर, दूसरी गोली, दायें श्रीहस्त में, तीसरी बायें श्रीहस्त पर, चौथी दायें श्रीचरण पर और पांचवी गोली बायें श्रीचरण पर धरी जाती है.
इसके पश्चात दो नये हस्तनिर्मित ख़स के हाथ-पंखा को जल छिड़ककर प्रभु को कुछ देर पंखा झलकर गादी के पीछे तकिया की दोनों ओर रखे जाते हैं.
पहले राजभोग दर्शन खुलते हैं परन्तु इस दर्शन में आरती नहीं की जाती.
दर्शन उपरांत दूसरे राजभोग में उत्सव भोग रखे जाते हैं जिनमें प्रभु को खरबूजा (शक्कर टेंटी) के छिले हुए बीज के लड्डू, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी, बासोंदी, जीरा मिश्रित दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, बीज-चालनी का सूखा मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार), विविध प्रकार के फल, उत्तमोत्तम रत्नागिरी आम की डबरिया, शीतल आदि अरोगाये जाते हैं.
सखड़ी में बड़े टूक, पाटिया, दहीभात, घोला हुआ सतुवा आदि अरोगाये जाती हैं.
दुसरे राजभोग दर्शन में आरती होती है. राजभोग दर्शन में प्रभु के सम्मुख सिकोरी (स्वर्ण का जालीदार पात्र) में पान के बीड़ा धरे जाते हैं.
आज प्रभु के मुंडन का दिन भी है और इस कारण आज के उत्सव में ठाकुरजी के ननिहाल के सदस्य भी आमंत्रित किये जाते हैं और इसीलिए आज श्री यशोदाजी के पीहर की लकड़ी की विशिष्ट चौकी का प्रयोग भोग धरने में किया जाता है.
आज से रथयात्रा तक प्रतिदिन संध्या-आरती में प्रभु को क्रमशः जल में भीगी (अजवायन युक्त) चने की दाल, भीगी मूँग दाल व तीसरे दिन अंकुरित मूँग (अंकूरी) अरोगाये जाते हैं. यद्यपि यह सामग्री रथयात्रा के पश्चात भी जन्माष्टमी तक अरोगायी जाती है परन्तु इसके स्वरुप में कुछ परिवर्तन होता है जिसका वर्णन मैं तभी दूंगा.
आज से जन्माष्टमी तक प्रतिदिन संध्या-आरती में प्रभु को शीतल (जल में बूरा, गुलाबजल, इलायची, बरास आदि मिलाकर सिद्ध किया गया पेय) अरोगाया जाता है.
चंदन की गोलियां संध्या-आरती पश्चात श्रृंगार बड़ा हो तब बड़ी की (हटाई) जाती है.
शयन समय शैयाजी के ऊपर छींट की गादी एवं उसके ऊपर श्वेत मलमल की चादर रखी जाती है. शैयाजी का यह क्रम आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा तक रहता है.
आप सभी को अक्षय-तृतीया के उत्सव की ख़ूबख़ूब बधाई
Wednesday, 12 May 2021
व्रज - वैशाख शुक्ल द्वितीया
Tuesday, 11 May 2021
व्रज - वैशाख शुक्ल प्रतिपदा
Monday, 10 May 2021
व्रज - वैशाख कृष्ण अमावस्या
Sunday, 9 May 2021
व्रज - वैशाख कृष्ण चतुर्दशी
Saturday, 8 May 2021
व्रज - वैशाख कृष्ण त्रयोदशी
Friday, 7 May 2021
व्रज - वैशाख कृष्ण द्वादशी
व्रज - वैशाख कृष्ण द्वादशी
Saturday, 08 May 2021
श्री महाप्रभुजी के उत्सव का परचारगी श्रृंगार
विशेष – आज प्रातः मंगला से श्रृंगार तक श्री द्वारकेशजी महाराज कृत ‘मूल पुरुष’ गायी जाती है एवं सारे दिन प्रत्येक समां में बधाई एवं श्रीवल्लभ की बाल-लीला के कीर्तन गाये जाते हैं.
🌸 आज से श्रीजी के सेवाक्रम में भी कुछ परिवर्तन होते हैं.
मंगला दर्शन में पीठिका के ऊपर धरायी जाने वाली दत्तु आज से नहीं धरायी जाती है.
इसके अतिरिक्त घेरदार, चाकदार और खुलेबंद के वागा भी आज से नहीं धराये जायेंगे.
आज से प्रभु को मलमल के उष्णकाल के वस्त्र (पिछोड़ा, परदनी, धोती-पटका, मल्लकाछ आदि) ही धराये जायेंगे.
आज दो समय की आरती थाली में की जाती है. झारीजी सभी समय यमुनाजल की आती है.
आज पिछवाई के अलावा सभी वस्त्र एवं श्रृंगार पिछली कल की भांति ही होते हैं. केवल कल के खुलेबन्द के वागा के स्थान पर पिछोड़ा धराया जाता है (यदि ऋतु में ठंडक हो तो आज खुलेबन्द भी धराये जा सकते हैं).
इसे परचारगी श्रृंगार कहते हैं. श्रीजी में अधिकांश बड़े उत्सवों के एक दिन बाद उस उत्सव का परचारगी श्रृंगार होता है. परचारगी श्रृंगार के श्रृंगारी श्रीजी के परचारक महाराज (चिरंजीवी श्री विशालबावा) होते हैं. यदि वो उपस्थित हों तो वही श्रृंगारी होते हैं.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)
दान देत श्री लक्ष्मण प्रमुदित मणिमाणिक कंचन पट गाय l
श्री व्रजराज कुंवर यशोदासुत करुणाकर प्रगटे हरि आय ll 1 ll
रही न मन अभिलाष कछू अब याचक ना महतो कोऊ l
‘विष्णुदास’ उमगे अंतर तें दे असीस तुमसे नहि कोय ll 2 ll
साज – आज श्रीजी में एक ओर अग्नि-कुंड में से श्री महाप्रभुजी के प्राकट्य और दूसरी ओर श्री गिरिराजजी की कन्दरा में से श्रीजी के प्राकट्य के सुन्दर चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी
मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है. वस्त्र रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं परन्तु किनारी बाहर दृश्य नहीं होती अर्थात भीतर की ओर मोड़ दी जाती है. ठाड़े वस्त्र श्वेत मलमल के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर केसरी की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की मोर-चंद्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर उत्सव की मोती की चोटी (शिखा) भी धरायी जाती है.
आज बाजु पोची माणक की धरायी जाती हैं.
चैत्री गुलाबों एवं अन्य पुष्पों से निर्मित जाली वाला अत्यंत सुन्दर वन-चौखटा पीठिका के ऊपर धराया जाता है.
श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर थागवाली कलात्मक वनमाला धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट एवं गोटी जड़ाऊ की व आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की आती है.
व्रज - वैशाख कृष्ण एकादशी
Wednesday, 5 May 2021
व्रज - वैशाख कृष्ण दशमी
Tuesday, 4 May 2021
व्रज - वैशाख कृष्ण नवमी
Monday, 3 May 2021
व्रज - वैशाख कृष्ण अष्टमी
व्रज – माघ शुक्ल तृतीया
व्रज – माघ शुक्ल तृतीया Saturday, 01 February 2025 इस वर्ष माघ शुक्ल पंचमी के क्षय के कारण कल माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन बसंत पंचमी का पर्व ह...
-
By the Grace of God Prabhu layak Heavy Quality Cotton Sartin manufactured by us. 💝Pushti Sartin💝 👉Pushti Heavy Quality Sartin fabric @ ...
-
Saanjhi Utsav starts on Bhadrapad Shukl Poornima and lasts till Ashwin Krsna Amavasya. Vaishnavs make different kind of Saanjhi and Saan...
-
🔸Beautiful Creation🔸 🏵️ Handmade Pichwai with Original Chandan-Kesar on cotton fabric🏵️ ⚜️ Material used⚜️ ✨Chandan/Sandelwood ✨Kesa...