By Vaishnav, For Vaishnav

Saturday, 31 October 2020

व्रज – कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा

व्रज – कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा
Sunday, 01 November 2020

पीत दुमालो बन्यो,कंठ मोतीनकी माला ।
सुंदर सुभग शरीर,झलमले नयन विशाला ।।

पीत दुमाला को श्रृंगार

विशेष – आज श्रीजी को अन्नकुट पर गोवर्धन लीला के अन्तर्गत गाए जाने वाले  ‘अपने अपने टोल क़हत ब्रिजवासिया’ के उपरोक्त पद के आधार पर पीत दुमाला का श्रृंगार धराया जाता है. जिसमें प्रभु को श्रीमस्तक पर पीले मलमल का बीच का दुमाला, पटका व तनिया धराया जाता है. 
वस्त्र व आभरण ऐच्छिक होते हैं और संभवतया निम्न वर्णित धराये जाते हैं. प्रभु को आज के दिन दुमाला धराया जाता है और फिरोज़ी ज़री के चाकदार वागा धराये जायेंगे.

गोवर्धन पूजा के पद गाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

सुनिये तात हमारो मतो श्रीगोवर्धन पूजा कीजे l
जो तुम यज्ञ रच्यो सुरपति को सोई याहि दे दीजे ll 1 ll
कंदमूल फल पहोपनकी निधि जो मागे सो पावे l
यह गिरी वास हमारो निशदिन निर्भय गाय चरावे ll 2 ll...अपूर्ण

साज – आज श्रीजी में लाल रंग के हांशिया वाली श्याम मलमल की पिछवाई धरायी जाती है. जिसमें गायों का चित्रांकन किया गया है. ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे श्रीजी गायों के मध्य विराजित हों. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को फ़िरोज़ी ज़री का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल दरियाई वस्त्र के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. विशेष रूप से मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्री मस्तक पर पीले मलमल का बीच का दुमाला मोर चन्द्रिका, एक कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
श्रीकर्ण में लोलकबंदी लड़ तथा झुमकी वाले कर्णफूल धराये जाते हैं.
कमल माला धराई जाती हैं.
 सफेद एवं पीले पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, चांदी के वेणुजी एवं दो वैत्रजी धराये जाते हैं.
पट चांदी का व गोटी बाघ-बकरी की आती है.आरसी नित्य की दिखाई जाती हैं.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर बीच का दुमाला ही रहता है और लूम तुर्रा नहीं धराये जाते. 

Thursday, 29 October 2020

व्रज - आश्विन शुक्ल चतुर्दशी (शरद पूर्णिमा)t

व्रज - आश्विन शुक्ल चतुर्दशी (शरद पूर्णिमा)
Friday, 30 October 2020

पूरी पूरी पूरण मासी पूरयो पूरयौ शरदको  चंदा,
पूरयौ है मुरली स्वर केदारो कृष्णकला संपूरण भामिनी रास रच्यो सुख कंदा.

शरद पूर्णिमा (रासोत्सव)
आज सायं 5.45 के पश्चात पूर्णिमा होने से पूर्ण चंद्र आज रात्रि को होगा इस लिए शरद पूर्णिमा आज मानी गई हैं.

रासपंचाध्यायी के आधार पर श्रीजी को शरद पूर्णिमा रास महोत्सव के मुकुट के पांच अध्याय के वर्णित श्रृंगार धराये जाते हैं. 

आश्विन शुक्ल अष्टमी को प्रथम वेणुनाद, गोपियों के प्रश्न, उपदेश तथा प्रणय गीत होते हैं. 

आश्विन शुक्ल एकादशी को लघुरास होता है और शयन में ललिताजी के भाव से गुलाबी उपरना धराया जाता है.

आश्विन शुक्ल चतुर्दशी को प्रभु गोपियों के प्रश्नों का उत्तर देते हैं, (इस बार त्रयोदशी) शयन में यमुनाजी के भाव से चूंदड़ी का उपरना धराया जाता है. चूंदड़ी के वस्त्र इस दिन इस ऋतु में अंतिम बार धराये जाते हैं.

आश्विन शुक्ल पूर्णिमा को शरद का श्रृंगार श्वेत एवं सुनहरी ज़री के वस्त्र मुकुट एवं आभरण हीरा मोती के धराये जाते हैं एवं स्वामिनीजी के भाव से शरद की सज्जा की जाती है. महारास के चित्रांकन की पिछवाई धरी जाती है.

कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा शरद का दूसरा ऐसा ही श्रृंगार किया जाता है और शयन में चन्द्रावलीजी के भाव से श्वेत उपरना धराया जाता है. 

श्रीजी का सेवाक्रम – रासोत्सव को पुष्टिमार्ग के मुख्य उत्सवों में एक माना जाता है अतः उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

आज प्रभु को नियम का रास का चौथा मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. आज के शरद के श्रृंगार में श्वेत एवं सुनहरी ज़री के वस्त्र मुकुट एवं आभरण हीरा-मोती के धराये जाते हैं एवं महारास के चित्रांकन की पिछवाई धरी जाती है. 

आज मंगला में श्रीजी को श्वेत ऊपरना धराया जाता हैं.
आज के वस्त्र श्रृंगार सर्व सखियों के अद्भुत भावों से धराये जाते हैं. मेघश्याम चोली यमुनाजी के भाव से, ऊपर की रूपहरी ज़री की काछनी स्वामिनीजी के भाव से, नीचे की सुनहरी ज़री की काछनी चन्द्रावलीजी के भाव से, सूथन कुमारिकाजी के भाव से एवं लाल पीताम्बर (रास-पटका) अनुराग भावरूप ललिताजी के भाव से धराया जाता है. 
आज प्रभु को  पीठिका पर रूपहरी ज़री का दत्तु ओढाया जाता है.
प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है. इस उपरांत निकुँज लीला में भी मुकुट धराया जाता है. मुकुट उद्बोधक है एवं भक्ति का उद्बोधन कराता है.

अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी का पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता.

जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है. 

जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं.

जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है. 

दान और रास के भाव के मुकुट-काछनी के श्रृंगार में पीताम्बर (जिसे रास-पटका भी कहा जाता है) धराया जाता है जबकि गौ-चारण के भाव में गाती का पटका (जिसे उपरना भी कहा जाता है) धराया जाता है.

आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (जलेबी-इलायची) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. इसके साथ शाकघर के मीठा में आज के दिन सीताफल का रस भी श्रीजी को विशेष रूप से अरोगाया जाता है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता भोग लगाया जाता है.
आज श्रीजी को सखड़ी में केसर युक्त पेठा, मीठी सेव, श्याम खटाई, कचहरिया आदि आरोगाया जाता हैं.

कल शरद का रास-पंचाध्यायी के आधार पर धराया जाने वाला पांचवा मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

बन्यौ रास मंडल अहो युवति यूथ मध्यनायक नाचे गावै l
उघटत शब्द तत थेई ताथेई गतमे गत उपजावे ll 1 ll
बनी श्रीराधावल्लभ जोरी उपमाको दीजै कोरी, लटकत कै बांह जोरी रीझ रिझावे l
सुरनर मुनि मोहे जहा तहा थकित भये मीठी मीठी तानन लालन वेणु बजावे ll 2 ll
अंग अंग चित्र कियें मोरचंद माथे दियें काछिनी काछे पीताम्बर शोभा पावे l
‘चतुर बिहारी’ प्यारी प्यारा ऊपर डार वारी तनमनधन, यह सुख कहत न आवे ll 3 ll 

साज - “द्वे द्वे गोपी बीच बीच माधौ” अर्थात दो गोपियों के बीच माधव श्री कृष्ण खड़े शरद-रास कर रहें हैं ऐसी महारासलीला के अद्भुत चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद लट्ठा की बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज सुनहरी और रुपहली ज़री का सूथन व काछनी तथा मेघश्याम रंग की दरियाई (रेशम) की  रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित चोली धरायी जाती है. लाल रंग का रेशमी रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद डोरिया के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज उत्सव के भारी श्रृंगार धराये जाते है. हीरे की प्रधानता एवं मोती, माणक, पन्ना से युक्त जड़ाव सोने के  सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हीरे का जड़ाव का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. आज चोटीजी नहीं धराई जाती हैं. 
कस्तूरी, कली एवं कमल माला धरायी जाती हैं
हीरा का शरद उत्सव वाला कोस्तुभ धराया जाता हैं.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.पट उत्सव का व गोटी जड़ाऊ काम की आती है.
आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में शरद की डांडी की दिखाई जाती हैं.
पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे का जड़ाव का चौखटा धराया जाता है.

शरद उत्सव

आरती के दर्शन के बाद सारे वस्त्र,आभरण, पिछवाई बड़े करके सफ़ेद मलमल का उपरना धराया जाता हैं. आज छोटा (छेड़ान) का हल्का श्रृंगार धराये जाते है. हीरा मोती के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर स्याम खिड़की की छज्जेदार पाग पर हीरा की किलंग़ी एवं मोती की लूम धरायी जाती हैं.

आज संध्या-आरती के पश्चात श्रीजी मंदिर में मणिकोठा, डोल-तिबारी, रतन-चौक आदि स्थानों पर सफेद बिछावट की जाती है. दीवालगरी, पर्दे, चंदरवा, वंदनमाल आदि सभी श्वेत रंग के ही बांधे जाते हैं, बीच में सांगामाची पधराई जाती हैं. अनोसर के भोग पाटिया पर आते हैं.

भीतर भी रासलीला की सुन्दर सज्जा की जाती है. कमल-चौक में प्रभु रास करेंगे इस भाव से चौक को भी जल से खासा किया जाता है और चौक में बने कमल को सुगन्धित गुलाब के इत्र से सराबोर किया जाता है. डोल-तिबारी में चांदनी आवे तब भीतर शयन आरती की जाती है.

आज मान के व पोढावे के कीर्तन नहीं गाये जाते. 
प्रभु पूरी रात रास रचाएंगे इस भाव से ध्रुवबारी के नीचे सभी मृदंग, झांझ, तानपुरा आदि सभी वाद्ययंत्र रखे जाते हैं.

आज गुप्त शरद है अतः आज शयन के दर्शन बाहर नहीं खोले जाते. 
आज की शरद-रास का आनंद प्रभु की अलौकिक सखियाँ ही लेती हैं. 

अगले दिन कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा (इस वर्ष पूर्णिमा) को ‘द्रश्य शरद’ का द्वितीय शरद-उत्सव मनाया जाता है. 

आज शयन अनोसर में उत्सव भोग रखे जाते हैं जो कि अगले दिन प्रातः शंखनाद के पश्चात सराये जाते हैं. 

उत्सव भोग में श्रीजी को विशेष रूप से चन्द्रकला (सूतर फेनी), चंवला के गुंजा, उड़द दाल की कचौरी, दूधघर में सिद्ध मावे के मेवा मिश्रित पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी (मलाई पूड़ी), बासोंदी, जीरा मिश्रित दही, पतली पूड़ी, चांवल की खीर, रसखोरा (खोपरा के लड्डू), घी में तले बीज-चालनी के सूखे मेवे, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, विविध कच्चे सूखे मेवे, मिश्री के खिलौने और मिठाई की टोकरी और फलफूल आदि अरोगाये जाते हैं.

Wednesday, 28 October 2020

व्रज - आश्विन शुक्ल त्रयोदशी

व्रज - आश्विन शुक्ल त्रयोदशी

गुरूवार, 29.10.2020

दीपावली के पूर्व कार्तिक कृष्ण एकादशी का आगम का श्रृंगार

विशेष - सभी बड़े उत्सवों के पहले उस श्रृंगार का आगम का श्रृंगार धराया जाता है.

आगम का अर्थ उत्सव के आगमन के आभास से है कि प्रभु के उत्सव की अनुभूति मन में जागृत हो जाए.
उत्सव आने वाला है और हम उसकी तैयारी आरंभ कर दें.

इसी श्रृंखला में आज दीपावली के पहले वाली एकादशी को धराये जाने वाले वस्त्र और श्रृंगार धराया जाता है जिसमें श्याम आधारवस्त्र पर जरदोजी के भरतकाम से सुसज्जित साज, पाग एवं श्याम जरी के चाकदार वागा धराये जाते हैं और कर्णफूल का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.

श्रीमस्तक पर श्याम चीरा (जरी की पाग) के ऊपर डांख का नागफणी (जमाव) का कतरा धराया जाता है.

लगभग यही वस्त्र व श्रृंगार दीपावली के पूर्व की एकादशी को भी धराये जायेंगे.

इस श्रृंगार को धराये जाने का अलौकिक भाव भी जान लें.
अन्नकूट के पूर्व अष्टसखियों के भाव से आठ विशिष्ट श्रृंगार धराये जाते हैं. जिस सखी का श्रृंगार हो उनकी अंतरंग सखी की ओर से ये श्रृंगार धराया जाता है. आज का श्रृंगार चंपकलताजी का है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के आभरण व श्रीमस्तक पर रुपहली लूम तुर्रा धराकर शयन दर्शन खुलते हैं.

राजभोग दर्शन -

कीर्तन - (राग: सारंग)

गोवर्धन पूजाको आये सकल ग्वाल ले संग ।
बाजत ताल मृदंग शंखध्वनि बीना पटह उपंग ।।1।।
नवसत साज चली व्रज तरुणी अपने अपने रंग ।
गावत गीत मनोहर बानी उपजत तान तरंग ।।2।।
अति पवित्र गंगाजल ले के डारत आनंद कंद ।
ता पाछे ले दूध धोरी को ढारत गोकुल चंद ।।3।।
रोरी चंदन चर्चन करके तुलसी पोहोप माल पहरावत ।
धुपदीप विचित्र भांतिनसो पीत वसन ऊपर ले उढावत ।।4।।
भाजन भर भर के कुनवारो ले ले गिरी को भोग धरावत ।
गाय खिलाय गोपाल तिलक दे पीठ थापे शिरपेच बंधावत ।।5।।
यह विधि पूजा करके मोहन सब व्रजको आनंद बढ़ावत ।
जय जय शब्द होत चहुदिशते ‘गोविन्द’ विमल यश गावत ।।6।।

साज - श्रीजी में आज गेरू (कत्थई) रंग के आधारवस्त्र के ऊपर पुष्पों की सजावट का सुनहरी सितारों के जरदोजी के काम वाली पिछवाई धरायी जाती है. 

पिछवाई पर श्याम रंग के कपड़े का हांशिया है जिस पर पुष्पों का जरदोजी का काम किया हुआ है. गादी, तकिया और चरणचैकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र - श्रीजी को आज श्याम रंग के एवं श्वेत जरी की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले दरियाई के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज छेड़ान (कमर तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरे, मोती एवं सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर श्याम रंग के चीरा (जरी की पाग) के ऊपर सिरपैंच, लूम तथा डाँख का जमाव (नागफणी) का कतरा रूपहली तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में हीरा के कर्णफूल के दो जोड़ी धराये जाते हैं. त्रवल नहीं धराया जाता वहीं हीरा की बग्घी धरायी जाती है.

आज जुगावाली चार एवं सात माला धराई जाती हैं. गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी,विट्ठलेशजी वाले वेणुजी एवं एक वेत्रजी (एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं. पट प्रतिनिधि का व गोटी श्याम मीना की आती है.

શરદોત્સવ

શરદોત્સવ

એક વાત આમાં હજુ બીજી સમજો કે શરદપૂર્ણિમાએ પ્રભુ ફક્ત ગોપીઓના માટે જ પ્રકટ થયા હતા એવું નથી. આજે પણ જે વૈષ્ણવ પોતાના ઘરમાં શ્રીકૃષ્ણની સેવા કરવા ઇચ્છે છે તેના ઘરે પણ શ્રીકૃષ્ણ તે જ પ્રકારથી પ્રકટે છે, પ્રકટે છે અને પ્રકટે છે....આ રહસ્યને ક્યારેય ન ભૂલતા. આ પ્રકારનું માહાત્મ્ય જ્યારે તમે પોતાના માથે બિરાજતા ઠાકોરજીનું સમજશો ત્યારે પરમાત્મિકતા સમજાશે.

અત્યારના વૈષ્ણવ જેમ તેના માટે પોતાના ઘરમાં પ્રકટ થયેલા શ્રીકૃષ્ણને મુકી મુકીને હવેલી-મન્દિરોમાં બીજા-બીજા કૃષ્ણને તાકવા રખડતા હોય છે આવી જ રીતે જો રાસની ગોપીઓ પોતાના માટે પ્રકટ થયેલા શ્રીકૃષ્ણને મુકીને બીજાના માટે પ્રકટ થયેલા શ્રીકૃષ્ણને તાકવા લાગી જાત તો શું થાત ? રાસને બદલે રસાભાસ થઇ જાત. તારા માટે જે પ્રકટ્યો છે તેની સાથે તારે રાસ કરવો જોઇએ કે હવેલીઓમાં ભટકવું જોઇએ ! આ તો રસાભાસ થઇ ગયો. પણ રાસની કોઇપણ ગોપી આજના ઢોંગી વૈષ્ણવની જેમ પોતાના ઠાકોરજીને પડતા મુકીને દોડી જતી નથી. જે ગોપીની સાથે જે કૃષ્ણ પ્રકટ્યો તેની સાથે તેણે રાસ કર્યો છે. એમ આપણા માટે આપણા ઘરમાં જે સ્વરૂપ પ્રકટ થયું છે તેની સાથે આપણે સેવાનો રસ પ્રકટ કરવાનો છે. તેની સાથે આપણે રાસ કરવાનો છે.

શ્રીગુસાંઇજી શ્રીમહાપ્રભુજીને માટે કહે છે "રાસલીલૈકતાત્પર્યઃ કૃપયૈતત્કથાપ્રદઃ" શ્રીમહાપ્રભુજી રાસલીલૈકતાત્પર્ય છે. ગીતની જ્યાં તુક આવે ત્યાં આખા ગાયનનો ભાર હોય છે તેવી રીતે શ્રીગુસાંઇજી કહે છે કે બધીજ કૃષ્ણભક્તિનો ભાર શ્રીમહાપ્રભુજીનો રાસલીલામાં છે. બધીજ વાત રાસલીલા સમજાવવા માગે છે.

આપણે રાસલીલાનો મતલબ નાચવું સમજીએ છીએ, જેમ ગુજરાતમાં લોકો દાંડીયા નાચે છે. અરે ભાઇ ! નાચવું એજ એનો મતલબ નથી, તે તો તેનું સ્થૂળ રૂપ છે. તેનું સૂક્ષ્મરૂપ એકનું અનેક થવાનું છે. એકની અનેકની સાથે થતી ક્રીડાનું છે. એ શરત સાથે કે તમારી અંદર કૃષ્ણના ખંભા ઉપર હાથ રાખીને તેની સાથે નાચવાની ભાવના હોય. જો એવો ભાવ તમારામાં છે તો કૃષ્ણ તમારા ખંભા ઉપર હાથ રાખીને નાચી શકે છે. "સખા અંસ પર વામબાહુ દિયે યા છબિકી બિનમોલ બિકાઉં, સુંદર મુખકી હોં બલબલ જાઉં" ઠાકોરજી આ લીલા કરવા માટે તૈયાર છે. પણ પણ આપણી અંદર એ ભાવ ન હોય તો ઠાકોરજી શું કરે ? ઠાકોરજીની મુશ્કેલી એ છે કે તે કૃપા કરીને તમારા ઘરમાં પ્રકટ થઇ ગયા છે પણ તમે તેના પ્રત્યે રાસનો ભાવ ન રાખીને, જ્યાં સજાવટો વધારે છે, જ્યાં મોહનથાળ-મઠડી વધારે ભોગ ધરાઇ રહી છે, જ્યાં માણસોની ધક્કા-મુક્કી વધારે થઇ રહી છે ત્યાં જઇને ઉભા રહી જાવ છો, ઘરના ઠાકોરજીને તરછોડીને. આપણને તો એમ જ લાગે છે કે લોકોની ભીડ જ્યાં વધારે હોય ત્યાં ઠાકોરજી થોડાક વધારે સામર્થ્યવાળા બિરાજે છે. મારા ઘરમાં તો હું ને મારો ઠાકુર ફક્ત છીએ.

એક વાત સાફ સમજો કે સાચી પ્રેમિકાને પોતાના પ્રેમીની સાથે ભીડ પસંદ આવશે કે એકાંત ગમશે ? સાચી પ્રેમિકા તો ભીડમાં સંકોચ અનુભવશે. તે તો વિચારશે કે આટલી ભીડમાં કેવી રીતે પ્રેમાલાપ થઇ શકશે. તેને તો માણસોની ભીડ દુશ્મન જેવી લાગશે. આવીજ રીતે આપણે આપણા ઠાકોરજીની સાચી પ્રેમિકા હોત તો આપણને આપણા પ્રેમી ઠાકોરજી સાથે એકાંત જ ગમત. પણ આપણને તો ભીડ જ ગમે છે. જ્યાં ભીડ ભેગી થઇ કે આપણા પગમાં ખંજવાળ આવવા માંડે કે દોડો દોડો દોડો. કોણ જાણે ત્યાં શું મળી રહ્યું છે. આપણે ખાંડ મળશે એમ સમજીને લાઇન્ માં ઉભા છીએ અને ત્યાં મળી રહ્યું છે ઘાસલેટ. આમાં શ્રીમહાપ્રભુજી પણ બિચારા શું કરે, ઠાકોરજી પણ બિચારા શું કરે ? બિચારા શ્રીગુસાંઇજી શું કરે ? એમણે તો છતાં પણ સ્પષ્ટ વાત કહી દીધી "રાસલીલૈકતાત્પર્યઃ કૃપયૈતત્કથાપ્રદઃ" પણ એ વાત આપણને ગમતી નથી.આપણને તો બસ ઘાસલેટની લાઇન જ ગમે છે. પણ સાચી વાત તો એ છે કે તમારો ઠાકુર તમને લાઇનમાં ઉભા રાખવા નથી માગતો. તમારો ઠાકુર તો તમને બોલાવીને પોતાના ઘરના એકાંતમાં બધીજ સેવા આપવા માંગી રહ્યો છે. એ શરત સાથે કે તમે તમારા હ્રદયમાં એક સાચી પ્રેમિકા જેવો ભાવ તમારા ઠાકોરજી માટે રાખતા હો તો. તો તે સંપૂર્ણ સામર્થ્ય સાથે પ્રકટ થઇ રહ્યો છે.

એક-એક ગોપીને રાસમાં એવો અનુભવ હતો કે કૃષ્ણ તેનીજ સાથે નાચી રહ્યો છે. તેને ક્યારેય ખ્યાલ પણ ન આવ્યો કે બીજી ગોપીકાની સાથે પણ કૃષ્ણ નાચી રહ્યો છે કે નથી નાચી રહ્યો. આ તન્મયતાનું નામ રાસ છે. આ પ્રકારથી કૃષ્ણમાં ખોવાઇ જવાનું નામ રાસ છે. કૃષ્ણને આપણામાં ખોવડાવી દેવાનું નામ રાસ છે. કૃષ્ણમાં આપણે ખોવાઇ જઇએ, કૃષ્ણ આપણામાં ખોવાઇ જાય. કૃષ્ણને ભાન ન રહે કે તે ક્યાં છે, આપણને ભાન ન રહે કે આપણે ક્યાં છીએ.

આ પ્રકારથી જ્યારે આપણે એક-બીજામાં ખોવાઇ જઇએ તેનું નામ રાસપૂર્ણિમા છે. તેનું નામ શરદોત્સવ છે. તે દિવસે પુષ્ટિભક્તિની ચાંદની પૂરી ખિલી ગઇ. એવી શીતળ ચાંદની કે જેમાં આહ્લાદકતા અને આહ્લાદકતાના સિવાય કાંઇ જ નથી બચ્યું. આવી ચાંદની તે દિવસે ખિલશે કે જે દિવસે આપણે અને ઠાકોરજી એકબીજામાં ખોવાઇ જઇએ. પણ એની શરત એકજ છે : જે તમારા માટે તમારા ઘરમાં પ્રકટ થયો છે તેને તમે તમારો પ્રિયતમ માનો. તે તમારા ગળામાં હાથ નાખવા જતો હોય ત્યારે તમે ક્રુર બનીને જો તેને એમ કહીદો કે એક મિનિટ જરાક હું હવેલીમાં દર્શન કરીને આવું છું તો પછી રસાભાસ થઇ ગયો. તે તમને મળવા આવ્યો અને તમે બીજાકોકને મળવા જઇ રહ્યા છો !!!

Tuesday, 27 October 2020

व्रज – आश्विन शुक्ल द्वादशी

व्रज – आश्विन शुक्ल द्वादशी 
Wednesday, 28 October 2020

दीपावली के आगम के श्रृंगार आरम्भ 

(प्रथम कार्तिक कृष्ण दशमी का आगम का श्रृंगार)

सभी बड़े उत्सवों के पहले उस श्रृंगार के आगम के श्रृंगार धराये जाते हैं.
आगम का अर्थ उत्सव के आगमन के आभास से है कि प्रभु के उत्सव की अनुभूति मन में जागृत हो जाए कि उत्सव आने वाला है और हम उसकी तैयारी आरंभ कर दें.

आज से दीपावली के उत्सव के आगम के श्रृंगार आरम्भ होते हैं. 
इसी श्रृंखला में पहला आगम का श्रृंगार कार्तिक कृष्ण दशमी का आज श्रीजी को धराया जाता है जिसमें श्वेत एवं सुनहरी ज़री से सुसज्जित साज, चिरा (ज़री की छज्जेदार पाग) एवं वस्त्र धराये जाते हैं और कर्णफूल का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.

लगभग यही वस्त्र व श्रृंगार दीपावली के पूर्व की दशमी को भी धराये जायेंगे. 

इस श्रृंगार को धराये जाने का अलौकिक भाव भी जान लें.

आज से अन्नकूट तक अष्टसखियों के भाव से आठ विशिष्ट श्रृंगार धराये जाते हैं. जिस सखी का श्रृंगार हो उनकी अंतरंग सखी की ओर से ये श्रृंगार धराया जाता है. आज का श्रृंगार विशाखाजी का है और उनकी प्रिय सखी आच्छादिकाजी की ओर से किया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

नागरी नागरसो मिल गावत रासमें सारंग राग जम्यो l
तान बंधान तीन मूर्छना देखत वैभव काम कम्यौ ll 1 ll
अद्भुत अवधि कहां लगी वरनौ मोहन मूरति वदन रम्यो l
भजि ‘कृष्णदास’ थक्ति नभ उडुपति गिरिधर कौतुक दर्प दम्यो ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज सफेद रंग की मलमल की पिछवाई धरी जाती है जो कि सुनहरी सुरमा-सितारा के ज़रदोज़ी का काम तथा सुनहरी कशीदे की पुष्पलता से सुसज्जित है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज श्वेत रंग की कारचोव के दोहरी (रुपहली और सुनहरी) ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र गहरे लाल रंग के दरियाई के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

 श्रीमस्तक पर रुपहली ज़री के चिरा (छज्जेदार पाग) के ऊपर सिरपैंच, लूम की सुनहरी किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में पन्ना के कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज चार मालाजी धराई जाती हैं.
 श्वेत एवं पीले पुष्पों की विविध रंगों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट श्वेत गोटी छोटी सोने की आती हैं.
आरसी शृंगार में सोने की छोटी एवं राजभोग में बटदार दिखाई जाती हैं.

अनोसर में चिरा (छज्जेदार पाग) बड़ी करके गोल पाग धराई जाती हैं.

Monday, 26 October 2020

व्रज – आश्विन शुक्ल एकादशी

व्रज – आश्विन शुक्ल एकादशी
Tuesday, 27 October 2020 

पापांकुशा एकादशी

विशेष - आज पापांकुशा एकादशी है. 
रासपंचाध्यायी के आधार पर श्रीजी को शरद पूर्णिमा रास महोत्सव के मुकुट के पांच श्रृंगार धराये जाते हैं 

आज महारास की सेवा का द्वितीय मुकुट का श्रृंगार है जिसमें लघुरास, रासलीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. 
आज मुकुट धराया जाता है एवं श्री ललिताजी के भाव से शयन में गुलाबी उपरना धराया जाता है. 

इसके पूर्व प्रथम मुकुट का श्रृंगार आश्विन शुक्ल अष्टमी को था जिसमें प्रथम वेणुनाद, प्रश्न, उपदेश तथा प्रणय गीत होते हैं जिससे रास के भाव से आती गोपीजनों के चित्रांकन की पिछवाई धरायी जाती है. 

आज की सेवा श्री ललिताजी के भाव से होती है. वस्त्र का रंग एवं आभरण ऐच्छिक है परन्तु श्रृंगार ड़ाख का मुकुट-काछनी का ही धराया जाता है. 

आज प्रभु को नियम का मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. 

निकुँज लीला में भी मुकुट धराया जाता है. मुकुट उद्बोधक है एवं भक्ति का उद्बोधन कराता है.

अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी का पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता.

जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है. 

जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं.

जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है. 

दान और रास के भाव के मुकुट-काछनी के श्रृंगार में पीताम्बर (जिसे रास-पटका भी कहा जाता है) धराया जाता है जबकि गौ-चारण के भाव में गाती का पटका (जिसे उपरना भी कहा जाता है) धराया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

बन्यौ रास मंडल अहो युवति यूथ मध्यनायक नाचे गावै l
उघटत शब्द तत थेई ताथेई गतमे गत उपजावे ll 1 ll
बनी श्रीराधावल्लभ जोरी उपमाको दीजै कोरी, लटकत कै बांह जोरी रीझ रिझावे l
सुरनर मुनि मोहे जहा तहा थकित भये मीठी मीठी तानन लालन वेणु बजावे ll 2 ll
अंग अंग चित्र कियें मोरचंद माथे दियें काछिनी काछे पीताम्बर शोभा पावे l
‘चतुर बिहारी’ प्यारी प्यारा ऊपर डार वारी तनमनधन, यह सुख कहत न आवे ll 3 ll 

राजभोग दर्शन – 

साज – “द्वे द्वे गोपी बीच बीच माधौ” अर्थात दो गोपियों के बीच माधव श्री कृष्ण खड़े रास कर रहें हैं ऐसी रासलीला के चित्रांकन वाली पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी एवं रास-पटका धराया जाता है.चोली स्याम सुतरु की धरायी जाती हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (चिकन) के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. 
मिलवा - हीरे एवं मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर डाख का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. शरद के दिनो में  चोटी (शिखा) नहीं धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
हीरा की बग्घी एवं बग्घी की कंठी धरायी जाती हैं.

श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी दो वैत्रजी धराये जाते हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत सारे वस्त्र, शृंगार ठाड़े वस्त्र पिछवाई बड़े कर के  शयन के दर्शन में मंगला के दर्शन की भांति गुलाबी उपरना एवं गोल पाग एवं हीरा मोती के छेड़ान के शृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर रुपहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.
आज से कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा तक आठों दर्शनों में रास के कीर्तन गाये जाते हैं

जोगीलीला

जोगीलीला

पुष्टिमार्ग में कुशग्रहणी अमावस्या जोगी-लीला के लिए प्रसिद्द है.
तब शंकर बालक श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए पधारे थे.

शंकरजी इन साकार ब्रह्म के दर्शन के लिए आए. मैया यशोदा को पता चला कि कोई साधु द्वार पर भिक्षा लेने के लिए खड़े हैं तो उन्होंने दासी को साधु को फल देने की आज्ञा की. दासी ने हाथ जोड़कर साधु को भिक्षा लेने व बालकृष्ण को आशीर्वाद देने को कहा.

शंकरजी ने दासी से कहा कि-"मेरे गुरू ने मुझसे कहा है कि गोकुल में यशोदाजी के घर परमात्मा प्रकट हुए हैं. इससे मैं उनके दर्शन के लिए आया हूँ. मुझे लाला के दर्शन करने हैं." 

(व्रज में छोटे बालकों को लाला कहते हैं, व शैव साधुओं को जोगी कहा जाता है)

दासी ने भीतर जाकर मैया यशोदा को सब बात बतायी. 
यशोदाजी को आश्चर्य हुआ. उन्होंने खिड़की से बाहर झाँककर देखा कि एक साधु खड़े हैं जिन्होंने बाघम्बर पहना है, गले में सर्प हैं, भव्य जटा हैं और हाथ में त्रिशूल है. 

मैया यशोदा ने साधु को बारम्बार प्रणाम करते हुए कहा कि- "महाराज आप महान पुरुष लगते हैं. क्या भिक्षा कम लग रही है?
आप माँगिये...मैं आपको वही दूँगी पर मैं लाला को बाहर नहीं लाऊँगी. 
हमने अनेक मनौतियाँ मानी हैं तब वृद्धावस्था में यह पुत्र हुआ है. 
यह मुझे प्राणों से भी प्रिय है. आपके गले में सर्प है और मेरा लाला अति कोमल है, वह उसे देखकर डर जाएगा."

जोगी वेषधारी शंकरजी ने कहा-"मैया, आपका पुत्र देवों का देव है, वह काल का भी काल है और संतों का तो सर्वस्व है. 
वह मुझे देखकर प्रसन्न होगा. माँ, मैं लाला के दर्शन के बिना पानी भी नहीं पीऊँगा. आपके आँगन में ही समाधी लगाकर बैठ जाऊँगा."

ऐसा कहकर वे वहीँ नंदभवन के बाहर ध्यान लगा कर बैठ गए. आज भी नन्दगाँव में नन्दभवन के बाहर आशेश्वर महादेव का मंदिर है जहां भगवान शंकर प्रभु श्रीकृष्ण के दर्शन की आशा में बैठे हैं.

शंकरजी महाराज ध्यान करते हुए तन्मय हुए तब बालकृष्णलाल उनके हृदय में पधारे और बालकृष्ण ने अपनी लीला की. 

अचानक बालकृष्ण ने जोर-जोर से रोना शुरु कर दिया. 

मैया यशोदा ने उन्हें दूध, फल, खिलौने आदि देकर चुप कराने की बहुत कोशिश की पर वह चुप ही नहीं हो रहे थे. 
एक गोपी ने मैया यशोदा से कहा कि आँगन में जो साधु बैठे हैं उन्होंने ही लाला पर कोई मन्त्र फेर दिया है. 

तब मैया यशोदा ने शांडिल्य ऋषि को लाला की नजर उतारने के लिए बुलाया. शांडिल्य ऋषि समझ गए कि भगवान शंकर ही कृष्णजी के बाल स्वरूप के दर्शन के लिए आए हैं. 
उन्होंने मैया यशोदा से कहा-"मैया, आँगन में जो साधु बैठे हैं, उनका लाला से जन्म-जन्म का सम्बन्ध है. उन्हें लाला का दर्शन करवाइये...तभी बालकृष्ण चुप होंगे।" 

मैया यशोदा ने लाला का सुन्दर श्रृंगार किया, बालकृष्ण को पीताम्बर पहनाया, लाला को नजर न लगे इसलिए गले में बाघ के सुवर्ण जड़ित नाखून को पहनाया।

साधू (जोगी) से लाला को एकटक देखने से मना कर दिया कि कहीं लाला को उनकी नजर न लग जाये।

मैया यशोदा ने शंकरजी को भीतर बुलाया।

नन्दगाँव में नन्दभवन के अन्दर आज भी नंदीश्वर महादेव विराजित हैं।

इस प्रसंग का अद्भुत पद सूरदासजी ने गाया है जिसे पढ कर भाव से आनंद लेने का प्रयास करें।

काहू जोगीयाकी दृष्टि लागी कन्हैया मेरौ रोवै हो माई 
घर घर पूँछत फिरत जशोदा दूध पीवै ना सोवै ll 
कहाँ गए जोगी नंदभवन व्रजमें फिरि फिरि हारे 
फन जोगिया कों ढूंढि निकासों सुतकौ ताप निवारौ  ll
चलिरे जोगी नंदभवनमें जसुमति मात बुलावै 
लटकत लटकत शंकर आवें मनमें मोद बढावे  ll 
आये जोगी नंदभवनमें राई लौन कर लीनो 
वारि फेरि लालनके ऊपर हाथ शीशपै दिनो  ll
रोग दोष सब दूरि गयो है किलक हँसे नंदलाला 
मगन भई नंदजूकी रानी दीनी मोतिन माला ll
रहो रहो जोगी नंदभवनमें व्रजमें बासो कीजै 
जब जब मेरो लाल रोवे तब तब दर्शन दीजै  ll 
तुम जो जोगी परम मनोहर तुमको वेद बखानैं 
बूढ़ों बाबा नाम हमारो सूरश्याम मोहि जानें  ll

Sunday, 25 October 2020

व्रज - आश्विन शुक्ल दशमी

व्रज - आश्विन शुक्ल दशमी

सोमवार, 26.10.2020

श्रीगुसाँईजी के ज्येष्ठ पुत्र श्री गिरधरजी के प्रथम लालजी श्रीमुरलीजी का उत्सव

विशेष - आज का श्रीजी का श्रृंगार कल के श्रृंगार का परचारगी श्रृंगार है.

अधिकांश बड़े उत्सवों के एक दिन उपरांत उस उत्सव का परचारगी श्रृंगार धराया जाता है.

इसमें सभी वस्त्र एवं श्रृंगार लगभग सम्बंधित उत्सव की भांति ही होते हैं. इसे परचारगी श्रृंगार कहते हैं. परचारगी श्रृंगार के श्रृंगारी श्रीजी के परचारक महाराज होते हैं. 

सेवाक्रम - पर्वरुपी उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. गेंद, चैगान, दीवाला आदि सभी सोने के आते हैं.

राजभोग दर्शन -

कीर्तन - (राग: सारंग)

नागरी नागरसो मिल गावत रासमें सारंग राग जम्यो ।
तान बंधान तीन मूर्छना देखत वैभव काम कम्यौ ।।1।।
अद्भुत अवधि कहां लगी वरनौ मोहन मूरति वदन रम्यो ।
भजि ‘कृष्णदास’ थक्ति नभ उडुपति गिरिधर कौतुक दर्प दम्यो ।।2।।

साज - आज श्रीजी में हरे रंग के आधार वस्त्र पर पुष्प-पत्रों की लता के सुरमा-सितारा के कशीदे के जरदोजी के भरतकाम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचैकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - श्रीजी को आज रुपहली जरी का चोली घेरदार वागा एवं सूथन लाल सलीदार जरी का धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र गहरे हरे दरियाई के धराये जाते हैं. पटका सुनहरी जरी का धराया जाता है.

श्रृंगार - आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक की प्रधानता एवं जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर चीरा (रुपहली जरी की पाग) के ऊपर माणक का पट्टीदार सिरपैंच, लूम, काशी के काम का तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. किलंगी नवरत्न की धराई जाती हैं. कली, कस्तूरी आदि माला धरायी जाती हैं.

श्रीकर्ण में माणक के चार कर्णफूल धराये जाते हैं. गुलाब एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में कमलछड़ी, माणक के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक हीरा का) धराये जाते हैं.

पट रुपहली जरी का व गोटी चांदी की आती है. आरसी शृंगार में पिले खण्ड की एवं राजभोग में सोना की दिखाई जाती है.

શ્રીગુસાંઈજી ના પ્રેરક પ્રસંગો

શ્રીગુસાંઈજી ના પ્રેરક પ્રસંગો

પ્રસંગ 1
શ્રીનાથજીની સેવાનો અધિકાર શ્રીગોપીનાથજીના પુત્ર શ્રીપુરુષોત્તમજીનો છે અને શ્રીવિઠ્ઠલેશનો નથી, એમ માની કૃષ્ણદાસ અધિકારીએ શ્રીવિઠ્ઠલેશને શ્રીનાથજીની સેવામાં જતાં રોકાયા, ત્યારે તેમણે કોઇ વિરોધ ન કર્યો. ચંદ્રસરોવર ઉપર જઇ, અન્નનો ત્યાગ કરી, છ માસ સુધી શ્રીનાથજીના વિરહમાં બિરાજ્યા. તે દિવસો દરમ્યાન તેમણે સંસ્કૃતમાં શ્રીનાથજી બાવાને દર્શન આપવા વિનંતી કરતાં સુંદર વિજ્ઞપ્તિ સ્તોત્રો રચ્યાં હતાં. જ્યારે બીરબલને આ વાતની ખબર પડી, ત્યારે તેણે કૃષ્ણદાસને કેદ કરાવ્યા. તે જાણીને શ્રીવિઠ્ઠલેશે કહ્યું કે : “શ્રીમહાપ્રભુજીના સેવકને કેદ ન હોય. જ્યાં સુધી તે કેદમાંથી છૂટશે નહીં, ત્યાં સુધી હું જલપાન પણ નહિ કરું”. તેમણે અપકારનો બદલો ઉપકારથી વાળ્યો. કૃષ્ણદાસને ફરીથી શ્રીનાથજીના મંદિરનો અધિકાર સોંપ્યો. 

પ્રસંગ ૨
એક વખત શ્રીવિઠ્ઠલેશ ગોકુલથી ગિરિરાજ જતા હતા. રસ્તામાં એક મુસલમાન ભાઇને બેભાન પડેલી જોઇ, તેંમણે ઘોડો રોકયો. સાથે આવેલા સેવકને આજ્ઞા કરી કેઃ “જળ લાવીને તેને પાઓ.” જળ મળ્યું નહિ, ત્યારે પોતાના માટે સોનાનાં ઝારીમાં પ્રસાદી જમુનાજળ હતું, તે પાવા કહ્યું. સેવકે કહ્યું કેઃ “ઝારી અપવિત્ર થશે, પછી કામમાં આવશે નહી. ઝારી સોનાનાં હોવાથી કિંમતી છે.” ત્યારે તેમણે કહ્યુંઃ “ઝારી બીજી આવશે. સોનાની નહીં બને, તો માટીની ઝારીથી કામ ચાલશે. પરંતુ તરસથી ગયેલા પ્રાણ પાછા નહીં આવે.” તેઓ આવા દયાળુ હતા.

પ્રસંગ ૩ 
બંગાળના બાદશાહ દાઉદના દિવાન નારાયણદાસ તેમના સેવક હતા. તેમના ત્યાં વિઠ્ઠલદાસ નામના વૈષ્ણવ નોકરી કરતા. પરંતુ પોતે વૈષ્ણવ છે, એ વાત ગુપ્ત રાખતા. એક વખત તેમનો વાંક આવતાં નારાયણદાસ દીવાને તેમને જેલમાં પૂરી ચાબખા મરાવ્યા. તેમનો વાંસો ચીરાઇ ગયો. શ્રીવિઠ્ઠલેશે આ જાણ્યું . તેમણે નારાયણદાસને ઠપકો આપ્યો કેઃ “ વૈષ્ણવ થઇ, તમે આવા નિર્દય થયા ?” દિવાને કહ્યું કે :“ મને ખબર ન હતી કે તેઓ વૈષ્ણવ છે.” શ્રીવિઠ્ઠલેશે કહ્યું કેઃ “વૈષ્ણવ હોવાની ખબર ન હતી, પરંતુ તેઓ માણસ છે, એટલી તો ખબર હતી ને? પ્રાણીમાત્રમાં પ્રભુ રહેલા છે. માટે પ્રાણીમાત્ર ઉપર કાયમ દયા રાખવી, મનથી, વાણીથી અને ક્રિયાથી કોઇને દુઃખ ન આપવું.” 

પ્રસંગ ૪
એક વખત સૌરાષ્ટ્રમાં નાગમતી નદીના કિનારે તેમનો મુકામ હતો. ત્યાં માછીમાર માછલાં પકડતા હતાં. શ્રીવિઠ્ઠલેશે તેમને કહ્યું કેઃ “તમે જીવહિંસાનું મોટું પાપ કરો છો. માછીમારી છોડી, ખેતી કે મજૂરી કરો.” માછીમારોએ કહ્યું કે : “ અમને જમીન કોણ આપશે ?” શ્રીવિઠ્ઠલેશે કહ્યું : “અહીંના રાજાને કહીને તમને જમીન અપાવીશ.” માછીમારો તેમના સેવક થવા તૈયાર થયા. શ્રીવિઠ્ઠલેશે કહ્યું કે : “સેવક થવા માટે ચાર શરત છે —(૧)જીવહિંસા કરવી નહીં.(૨) પ્રમાણિકતાથી મહેનત કરીને જીવવાનું . (૩) ન ખાવા જેવી વસ્તુઓ ખાવાની નહિ.(૪)દારુ નહિ પીવાનો.” સૌએ બધી શરતો કબૂલ કરી. 
  
પ્રસંગ ૫
એક વખત રૂપમુરારીદાસ વ્રજમાં આવ્યા. તેઓ રજપૂત હતા. અકબર બાદશાહના રસોડાના ઉપરી હતા. રસોઇ માટે પ્રાણીઓનો શિકાર કરતા. એક દિવસ તેમણે શ્રીવિઠ્ઠલેશનાં દર્શન કર્યાં. તે વખતે તેમનાં કપડાં લોહીથી ખરડાયેલાં હતાં. હાથમાં તીરકામઠું હતું. તેમને પોતાના પાપી જીવનનો ઘણો પસ્તાવો થયો. તેમણે કહ્યું કે :“મહારાજ, હુ ં મહાઅપરાધી છું. પેટ ખાતર મેં સેંકડો જીવની હિંસા કરી છે. મારો ઉદ્ધાર કરો”. શ્રીવિઠ્ઠલેશે કહ્યું : “ સાચો પસ્તાવો કરનારના બધા અપરાધ પ્રભુ ક્ષમા કરે છે. સાચા દિલથી પ્રભુનું શરણ સ્વીકારો. આજ પછી કદાપિ જીવહિંસા કરશો નહીં.” શ્રીવિઠ્ઠલેશે તેમને સેવક કર્યા.

પ્રસંગ ૬
એક વખત શ્રીવિઠ્ઠલેશ ખંભાત પધાર્યા હતા. ત્યાં આગેવાન વૈષ્ણવ સહજપાલ દોશીએ પૂ્છયું : “મહારાજ, વેપારમાં જુઠું બોલવું, પાપ ગણાય ?” શ્રીવિઠ્ઠલેશે કહ્યું : “ હા, જૂઠથી મોટું પાપ બીજું કોઇ નથી. વૈષ્ણવે કદાપિ જૂઠું ન બોલવું. સાચું બોલીને જ વેપાર કરવો.”
એક વખત તેઓ દિલ્હી પધાર્યા હતા. ત્યાં રાતે તેમના મુકામ ઉપર એક ચોર ચોરી કરવા આવ્યો. તેણે કિંમતી વસ્તુઓનું મોટું પોટલું બાંધ્યું, પણ તેનાથી તે ઉંચકાયું નહિ. શ્રીવિઠ્ઠલેશ જાગતા હતા. તેમણે જાતે જ ચોરને પોટલું ઉંચકવામાં મદદ કરતાં કહ્યું કે : “ચોરી કરવી એ પાપ છે.” ચોરે કહ્યું કે : “ હું બીજો કોઇ ધંધો જાણતો નથી. કુટુંબ માટે મારે આ પાપ કરવું પડે છે.” શ્રીવિઠ્ઠલેશે કહ્યું કે : “ચોરી કરીને, જૂઠું બોલીશ નહિ.” ચોરે સાચું બોલવાની પ્રતિજ્ઞા લીધી. તે થોડા સમયમાં ઇમાનદારીથી રાજ્યનો દીવાન બન્યો.

પ્રસંગ ૭
ગુજરાતના વૈષ્ણવોનો સંઘ પગપાળા વ્રજમાં જતો હતો. સાથે એક ગરીબ ખેડૂત વૈષ્ણવ હતા. રસ્તામાં મજૂરી કરી, જીવતા હતા. શ્રીગુસાંઇજીને ભેટ ધરવા, તેની પાસે કંઇ જ ન હતું. તેમણે વાડ પાસે ઊગેલાં શંખાવલિનાં ફૂલોની માળા બનાવી. આ માળા ગોકુળ પહોંચે, ત્યાં સુધીમાં તો કરમાઇ જાય. તેથી તેમણે ઘણું દુઃખ થયું . શ્રીવિઠ્ઠલેશ અંતર્યામી હતા. તેઓ ઘોડેસ્વાર થઇ સામે પધાર્યા. તેમની માળા અંગીકાર કરી. તેમણે વૈષ્ણવોને ઉપદેશ આપ્યો કે : “ ભગવાન ધનના ભૂખ્યા નથી, ભાવના ભૂખ્યા છે. જે ભાવથી ભગવાનને નાનકડું ફૂલ પણ ભેટ કરે છે, તેની ભેટ ભગવાન અવશ્ય સ્વીકારે છે.” શ્રીવિઠ્ઠલેશને મન ગરીબ અને તવંગર, સૌ વૈષ્ણવ સમાન હતા. 
  
પ્રસંગ ૮ 
આવો એક બીજો સંઘ વ્રજમાં જતો હતો. તેમાં એક ગરીબ વૈષ્ણવ હતા. તેમની પાસે એક માત્ર દાતરડું હતું. તેનાથી ઘાસ કાપી, તે વેચીને પેટ ભરતા, તે ગોકુળ આવ્યા. શ્રીવિઠ્ઠલેશને ભેટ કરવા, તેની પાસે એક પૈસો પણ ન હતો. તેમણે દાતરડું વેચ્યું. તેના બે પૈસા ઊપજ્યા. તેમણે પ્રેમથી તે શ્રીવિઠ્ઠલેશને ભેટ ધર્યા. શ્રીવિઠ્ઠલેશે પ્રસન્ન થઇને કહ્યું કે : “જેમના દિલમાં પૈસાનું અભિમાન છે, તેઓ પ્રભુને અને પુષ્ટિમાર્ગને સમજી શકશે નહી. જેનામાં દીનતા છે, તે સાચો વૈષ્ણવ છે. આ વૈષ્ણવે કાયમ પરસેવો પાડીને પ્રસાદ લીધો છે. તેણે દાતરડું વેચ્યું, ત્યારે તેના ભવિષ્યનો વિચાર ન કર્યો . તેને ધન્ય છે. તેનું સમર્પણ સાચું, સર્વસમર્પણ છે.” 
  
પ્રસંગ ૯
એક દિવસ સુરતના એક દીવાન શ્રીનાથજીનાં દર્શન કરવા ગિરિરાજ આવ્યા. તેમણે ચાંપાભાઇ ભંડારીને કહ્યું કે : “મને રાજભોગનાં દર્શન થયાં નથી. અમારા રાજાનો મુકામ ગોવર્ધનથી સાંજે ચાર વાગે ઊઠવાનો છે, તે પહેલાં મને જો ઉત્થાપનનાં દર્શન કરાવો, તો હું દસ હજાર રૂપિયા ભેટ ધરું.” ચાંપાભાઇએ શ્રીવિઠ્ઠલેશને વાત કરી. તેમણે કહ્યું કે : “ પુષ્ટિમાર્ગમાં રૂપિયાથી દર્શન કે સેવા ખરીદી શકાતાં નથી. આ માર્ગ પ્રભુ પ્રત્યેના સ્નેહનો અને પ્રભુના સુખનો માર્ગ છે. પુષ્ટિમાર્ગમાં પૈસાનું મહત્ત્વ નથી. પ્રભુપ્રેમનું મહત્ત્વ છે.” 

પ્રસંગ ૧૦
અકબરની માનીતી બેગમ તાજબીબીના મનમાં એવો વિચાર આવ્યો કે , બાદશાહ હંમેશા મારા જ વશમાં રહે. તે શ્રીવિઠ્ઠલેશની સેવક હતી. તેણે શ્રીવિઠ્ઠલેશને વશીકરણ મંત્ર લખી મોકલવા વિનંતી કરી. શ્રીવિઠ્ઠલેશે નીચેની કડી લખી મોકલી. 
મંત્ર તંત્ર અરુ જંત્ર કો, જિક કરો જિન કોઇ,
પતિ કહે સો કીજિયે, આપુહીતે વશ હોઇ.
આ વાત જ્યારે અકબરે જાણી, ત્યારે તે શ્રીગુસાંઇજી માટે વિશેષ માન ધરાવતો થયો. 

પ્રસંગ ૧૧
એક વખત અકબરે બિરબલને પ્રશ્ન કર્યો કે : “ઇશ્વર કેવી રીતે મળે?” બિરબલ અકબરને શ્રીવિઠ્ઠલેશ પાસે લઇ ગયો. શ્રીવિઠ્ઠલેશે કહ્યું કેઃ “જેવી રીતે તમે અમને મળ્યા, એવી રીતે ઇશ્વર મળે. રાજા ચાહે, ત્યારે પ્રજાને મળે. રાજાને રાહ જોવી ન પડે. પરંતુ પ્રજા ચાહે, ત્યારે રાજાને મળી શકે નહી. એવી રીતે ઇશ્વર ચાહે, તો આપણને તરત જ મળે, પરંતુ આપણે ચાહીએ, ત્યારે મળે નહી.” 

પ્રસંગ ૧૨ 
એક વખત શ્રીવિઠ્ઠલેશ અમદાવાદ પધાર્યા. અસારવામાં ભાઇલા કોઠારીના ત્યાં બિરાજ્યા હતા. તેમના જમાઇ નવ વર્ષના ગોપાળદાસ જન્મથી મૂંગા હતા. તેમણે જોઇને શ્રીવિઠ્ઠલેશે પૂછયું કે :“આ કોણ છે ?” કોઠારીએ કહ્યું : “ગોમતીનો વર છે.” શ્રીવિઠ્ઠલેશે કહ્યું : “ગોમતીનો વર તો સાગર હોય.” તેમણે પોતાનું પ્રસાદીપાન ગોપાળદાસને આપ્યું. તે ખાતાં જ તેમની જીભ ખૂલી ગઇ. નવ વર્ષના ગોપાળદાસે નવ કડવાંનું વલ્લભખ્યાન ગાયું. 

પ્રસંગ ૧૩
ધોળકામાં લાછાંબાઇ નામે રાણી હતાં. તેમના પ્રધાન બાજબહાદૂર હતા. તેઓ શ્રીવિઠ્ઠલેશનાં દર્શન કરવા અમદાવાદ આવ્યા. તેમણે કહ્યું : “મહારાજ, ગુજરાતમાં ભારે દુકાળ છે, પ્રજા ભૂખે મરે છે.” શ્રીવિઠ્ઠલેશનુ હૃદય પ્રજાના દુઃખે દ્રવી ગયું. બાજબહાદૂર ધોળકા પહોંચે, તે પહેલાં મુશળધાર વરસાદ પડયો. 

પ્રસંગ ૧૪
એક વખત શ્રીવિઠ્ઠલેશ કાશી પધાર્યા હતા. ત્યાં ગંગાકિનારે સંધ્યાવંદન કરતા હતા. સાથે મોટો રસાલો હતો. એક સંન્યાસી ત્યાં આવ્યો. તેણે પૂછયું કે : “આ કોણ છે ?” એક વૈષ્ણવે કહ્યું : “ અમારા ગુરુ, શ્રીગુસાંઇજી છે.” સંન્યાસીએ ક્રોધથી કહ્યું : “ગુસાંઇ શાના ? આટલા બધા વૈભવનો ત્યાગ કરવાની તેમનામાં હિંમત છે ?” આ સાંભળી ગુસાંઇજીએ પોતાની બધી સંપત્તિ ત્યાં ને ત્યાં દાનમાં આપી દીધી. પછી તેમણે સંન્યાસીને કહ્યું : “તમે પણ તમારાં વસ્ત્ર અને કમંડળ દાનમાં આપી દો.” સંન્યાસીએ કહ્યું : “ પછી હું શું કરું ?” શ્રીવિઠ્ઠલેશે કહ્યું કે : “વસ્તુમાંથી તમારો મોહ જતો નથી. તમને ઇશ્વર ઉપર શ્રદ્ધા નથી. તમે કેવા સંન્યાસી ?” સંન્યાસી શરમાઇ ગયો. શ્રીવિઠ્ઠલેશે વૈષ્ણવોને ઉપદેશ આપ્યો કે : “ ધનમાં આસક્તિ રાખવી નહીં. જરૂર કરતાં વધુ દ્રવ્ય ભેગું થાય, તો શ્રીઠાકોરજીની સેવામાં વાપરી દો. પ્રસાદથી સૌનાં પેટનું પોષણ કરો. તેમ કરવાથી સેવાધર્મ સાથે માનવધર્મ આપોઆપ સંધાય છે.” 
  
પ્રસંગ ૧૫
એક દિવસ શ્રીવિઠ્ઠલેશ ભોજન કરતા હતા. ભાજીના શાકમાં એક કઠણ તણખલું આવ્યું. તેમણે વિચાર કર્યો કે, શ્રીઠાકોરજી ઘણા કોમળ છે. સામગ્રી તૈયાર કરવામાં આટલી નાની સરખી બેદરકારીથી પણ શ્રીઠાકોરજીને પરિશ્રમ થાય. મારાથી બધી સેવા જાતે બનતી નથી. સેવકો ઉપર આધાર રાખવો પડે છે. પ્રભુને પરિશ્રમ થાય, તો જીવવું નકામું છે. આવો વિચાર કરી, તેમણે સંન્યાસ લેવા તેમના મોટા પુત્ર શ્રીગિરિધરજીને વસ્ત્રો ભગવા રંગથી રંગવા કહ્યું . શ્રીગિરિધરજીએ તેમ કર્યું. ત્યારે શ્રીઠાકોરજીએ પણ તેમનાં વસ્ત્રો ભગવા રંગે રંગાવ્યાં. તે જોઇને શ્રીગુસાંઇજીએ સંન્યાસ લેવાનો વિચાર માંડી વાળ્યો.

Saturday, 24 October 2020

व्रज – आश्विन शुक्ल नवमी

व्रज – आश्विन शुक्ल नवमी 
Sunday, 25 October 2020

              विजयदशमी, दशहरा

नवम विलास कियौ जू  लडैती,   नवधा  भक्त  बुलाये ।
अपने अपने सिंगार सबै  सज,   बहु   उपहार   लिवाये ।। १ ।।
सब स्यामा जुर चलीं रंगभीनी,  ज्यों  करिणी  घनघोरें ।
ज्यों  सरिता  जल  कूल  छांडिकें,   उठत प्रवाह हिलोरें ।। २ ।।
बंसीवट  संकेत    सघन     बन,    कामकला   दरसाये ।
मोहन मूरति वेणुमुकुट  मणि,   कुंडल  तिमिर  नसाये ।। ३ ।।
काछनी कटि तट पीत पिछौरी, पग नूपुर झनकार करें ।
कंकण वलय हार मणि मुक्ता,  तीनग्राम स्वर भेद भरें ।। ४ ।।
सब सखियन अवलोक स्याम छबि,  अपनौ सर्वसु वारें ।
कुंजद्वार     बैठे     पियप्यारी,     अद्भुतरूप     निहारें ।। ५ ।।
पूआ    खोवा   मिठाई   मेवा,   नवधा   भोजन    आनें ।
तहाँ सतकार कियौ पुरुषोत्तम,  अपनों जन्मफल मानें ।। ६ ।।
भोग   सराय  अचबाय   बीरा   धर,    निरांजन   उतारे ।
जयजय   शब्द  होत  तिहुँपुरमें,   गुरुजन लाज निवारे ।। ७ ।।
सघनकुंज रसपुंज अलि गुंजत,   कुसुमन  सेज  सँवारी ।
रतिरण   सुभट  जुरे   पिय   प्यारी,   कामवेदना   टारी ।। ८ ।।
नवरस  रास  बिलास  हुलास,   ब्रजयुवतिन मिल कीने ।
श्रीवल्लभ चरण कमल कृपातें,   रसिक  दास  रस पीने ।। ९ ।।

आज की पोस्ट आज के विजयदशमी पर्व  की अद्भुत विलक्षणता को समाहित करते हुए  कुछ लम्बी परन्तु बहुत सुन्दर व अर्थपूर्ण है. समय देकर पूरी अवश्य पढ़ें

विशेष – आज नवम विलास का लीला स्थल बंशीवट है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी श्री लाडिलीजी ने नवधा भक्तों को बुलाया है सामग्री पूवा, खोवा, मिठाईमेवा आदि नवधा भाँती की होती है. 

आज नवविलास का अंतिम दिन है और समाप्ति पर नवम विलास में श्री लाडिलीजी की सेवा बंशीवट विहार एवं प्रियाप्रियतम की रसलीला का वर्णन है.
यह सामग्री श्रीजी में नहीं अरोगायी जाती है परन्तु कई पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सेव्य स्वरूपों को अरोगायी जाती है.

विजयदशमी, दशहरा

विशेष – आज नवमी प्रातः 7.41 तक ही होने से एवं उसके पश्चात दशमी लगने से दशहरा आज माना गया हैं.
आज असत्य पर सत्य की विजय का पर्व विजयदशमी (दशहरा) है.

श्रीजी का सेवाक्रम - पर्व रुपी उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

पूरे दिन सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. 
चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है. ऊष्णकाल में प्रभु की आरती में आरती के एक खण्ड में ही बाती लगायी जाती थी. विजयदशमी के दिन से शीत का अनुभव होने से आरती के सभी तीन खण्डों में बाती सजाई जाती है.
गेंद, चौगान व दीवाला सोने के आते हैं.

आज से ही प्रतिदिन खिड़क से गौमाता पधारें इस भाव से प्रभु के सम्मुख काष्ट (लकड़ी) की गाय पधरायी जाती है.

हल्की ठण्ड आरम्भ हो गयी है अतः आज से मंगला समय प्रभु स्वरुप की पीठिका पर दत्तु ओढाया जाता है.

आज से तीन माह पूर्व आषाढ़ शुक्ल एकादशी को तुलसी के बीज बोये जाते हैं एवं उनकी अभिवृद्धि और रक्षा हेतु प्रयत्न किये जाते हैं. कन्यावत उनका पालन कर कार्तिक शुक्ल एकादशी को उनका विवाह प्रभु के साथ किया जाता है. 
इससे श्रीजी में यह परंपरा है कि आज से एक माह तक समस्त पुष्टि-सृष्टि के वैष्णवों की ओर से सभी जीवों के कृतार्थ हेतु मंगला दर्शन उपरांत श्रीजी के श्रीचरणों में प्रतिदिन सवा लाख (1,25,000) तुलसी दल (पत्र) समर्पित किये जाते हैं.

मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को केसर युक्त चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

आज से प्रभु को ज़री के वागा धराये जाने आरम्भ हो जाते हैं जो कि बसंत पंचमी से एक दिन पूर्व तक धराये जायेंगे. ठाडे वस्त्र भी दरियाई के आरम्भ हो जाते हैं.

ज़री के वस्त्र प्रभु के श्रीअंग पर चुभें नहीं इस भाव से आज से प्रतिदिन प्रभु को सामान्य वस्त्रों के भीतर आत्मसुख के वागा धराये जाते हैं. 
आत्मसुख के वागा विजयदशमी से कार्तिक शुक्ल दशमी तक (मलमल के) व कार्तिक शुक्ल (देवप्रबोधिनी) एकादशी से डोलोत्सव तक (शीत वृद्धि के अनुसार रुई के) धराये जाते हैं.

आज के दिन सुदर्शनजी की सभी सात ध्वजाएं स्वर्ण की ज़री की चढ़ाई जाती है.

आज निर्गुण भक्तों के भाव की सेवा है अतः श्रीजी को नियम के रुपहली ज़री के श्वेत घेरदार वागा धराये जाते हैं और श्रीमस्तक पर रुपहली ज़री की पाग पर मोरपंख की सादी चंद्रिका धरायी जाती है.
आज श्रृंगार में विशेष यह है कि आज प्रभु के दायें श्रीहस्त में प्राचीन पन्ना की जडाऊ कटार धरायी जाती है.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोर (जलेबी-इलायची) के लड्डू और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है. 
सखड़ी में केसरयुक्त पेठा व मीठी सेव अरोगायी जाती है. आज से राजभोग समय अरोगाये जाने वाले फीका, थपडी के स्थान पर तले जमीकंद (सूरण, अरबी, रतालू व शकरकन्द) अरोगाये जाते हैं.

शक्तिरूपेण भाव से राजभोग समय प्राचीन मगर की खाल से बनी ढाल (जिसमें स्वर्ण का अद्भुत काम किया हुआ है) को तबकड़ी पर प्रभु के सम्मुख रखा जाता है एवं राजभोग पश्चात हटा लिया जाता है.

इसी भाव से एक दिवस पूर्व संध्या काल में प्रभु के स्वरुप के पीछे एक लकड़ी के लम्बे संदूक में विभिन्न आकारों की ढालें, तलवारें, अद्भुत काम से सुसज्जित कटारें, धनुष-बाण, चाकू आदि विभिन्न अस्त्र-शस्त्र रखे जाते हैं जिन्हें दशहरा के दिन संध्या-आरती दर्शन के उपरांत हटा लिया जाता है. 

तृतीय गृह प्रभु श्री द्वारकाधीशजी आदि कुछ पुष्टि स्वरूपों में नवरात्रि के अंतिम दिनों में अस्त्र, शस्त्र प्रभु के सम्मुख रखे जाते हैं.

नवरात्री के प्रथम दिन बोये जवारा उत्थापन समय सिद्ध कर लिए जाते हैं.
सायंकाल भोग के दर्शन में श्रीजी को तिलक, अक्षत किया जाता है. 
प्रभु के श्रीमस्तक पर पहले से धरायी मोर चन्द्रिका को बड़ा (हटा) कर उसके स्थान पर सिद्ध जवारा में से उत्तमोत्तम जवारा स्वर्ण की अंगूठीनुमा कड़ी में रेशमी डोरे से बांध, कलंगी बना कर धराये जाते हैं.
इस दौरान झालर-घंटा, शंखादी बजाये जाते हैं और धूप-दीप किये जाते हैं. चरणारविन्द में तुलसी व जवारा समर्पित किये जाते हैं और मुठियाँ वार के चांदी की थाली में आरती की जाती है. 

प्रभु को जवारा धराते समय निम्न पद गाया जाता हैं.

कीर्तन – (राग : सारंग/कान्हरो)

आज दशहरा शुभ दिन नीको ।
गिरिधरलाल जवारे बांधत बन्यो है भाल कुंकुम को टीको ।।१।।
आरती करत देत न्यौछावर चिरज़ीयो लाल भामतो जीको।
आसकरन प्रभु मोहन नागर त्रिभुवन को सुख लागत फीको ।।२।।

तदुपरांत संध्या-आरती के भोग में श्रीजी को उत्सव भोग अरोगाये जाते हैं.
उत्सव भोग में विशेष रूप से 10 माट अरोगाये जाते हैं जो कि दस प्रकार के भक्तों की भावना से अरोगाये जाते हैं. इसके संग बीज चालनी का सूखा मेवा, कच्चर व दूधघर में सिद्ध बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
प्रत्येक माट का वजन लगभग 20 किलो होता है और वर्ष भर में केवल आज के दिन ही अरोगाये जाते हैं.

आज भोग समय श्रीजी को अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर घी में तले बीज-चालनी का सूखा मेवा अरोगाया जाता है व आरती में अरोगाये जाने वाले ठोड के स्थान पर बूंदी के बड़े लड्डू अरोगाये जाते हैं. 
शाकघर में सिद्द मावे का मेवा मिश्रित माट भी आज ठाकुरजी को अरोगाये जाते हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रातः धराये श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर मोती की लूम व किलंगी में नए जवारा धराये जाते हैं.

आज से श्रीजी में शयन के दर्शन बाहर खुलना प्रारंभ हो जाते हैं जो कि आगामी मार्गशीर्ष शुक्ल षष्ठी (नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोकुलनाथजी के उत्सव के एक दिन पूर्व) तक अर्थात लगभग 55 दिन तक प्रतिदिन सायंकाल लगभग 7 बजे होंगे.

आज से अन्नकूट महायज्ञ की झांझ की बधाई बैठती है. अन्नकूट के कीर्तन गाये जाते हैं. अन्नकूट की सामग्री के निर्माण के प्रारंभ हेतु बालभोग का भट्टी-पूजन किया जाता है एवं श्रीजी के मुखियाजी प्रभु के मुख्य बालभोगिया को बीड़ा देकर अनसखड़ी की सेवा प्रारम्भ करने की आज्ञा देते हैं.

आज से लगभग 35 दिन तक प्रतिदिन सायंकाल कमलचौक में मानसीगंगा के दीपवृक्ष (आकाशदीप) की स्थापना की जाती है. ऐसी मान्यता है कि इसमें दीप प्रज्वलित करने से बालकों पर अनिष्ट की निवृति होती है एवं अतुल्य संपत्ति एवं सौभाग्य की प्राप्ति होती है. इसी भाव से आज से सुदर्शन चक्रराज के समक्ष भी तिल के तेल का दीपक (आकाशदीप) प्रज्वलित किया जाता है.

आज सायंकाल संध्या-आरती दर्शन पश्चात श्रीजी में अश्व पूजन होता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : नट बिलावल)

आन और आन कहत भेचक रहत व्रजनारी नर l
कटु तिकत आम्ल मधुर खारे सलोने प्रकार खटरसको प्रीतसों आरोगत सुन्दरवर ll 1 ll
गिरिराज बरन बरन शिला जु सहस्त्रन मोदक ठोर ठोर बेसन गुंजा बाबरन l
‘राजाराम’के प्रभु को अचवावन कारन इन्द्र झारी भर लायो जलधर ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में हरे रंग के आधार वस्त्र पर पुष्प-पत्रों की लता के सुरमा-सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के भरतकाम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज रुपहली ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र गहरे हरे दरियाई के धराये जाते हैं. पटका सुनहरी ज़री का धराया जाता है. 

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक की प्रधानता एवं जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर चीरा (रुपहली ज़री की पाग) के ऊपर माणक का पट्टीदार सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
किलंगी नवरत्न की धराई जाती हैं.
स्वर्ण का जड़ाव का चौखटा पीठिका के ऊपर धराया जाता है.
कली, कस्तूरी वल्लभी आदि माला धरायी जाती हैं.
 श्रीकर्ण में चार कर्णफूल धराये जाते हैं. गुलाब एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, माणक के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक हीरा का) धराये जाते हैं. 
दायें श्रीहस्त में ही आज विशेष रूप से पन्ने की कटार (श्री मुरलीधरजी वाली) धरायी जाती है.
पट रुपहली ज़री का व गोटी चांदी की आती है.
आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की दिखाई जाती है.

Friday, 23 October 2020

व्रज – आश्विन शुक्ल अष्टमी

व्रज – आश्विन शुक्ल अष्टमी
Saturday, 24 October 2020

आठों विलास कियौ श्यामाजू,
शांतनकुंड प्रवेशजू ।
उनकी मुख्य भामा सारंगी,
खेलत जनित आवेशजू  ।।१।।
सूरज मंदिर पूजन कर मेवा,
सामग्री भोगधरी ।
आनँद भरी चली व्रज ललना,
क्रीडन बनकों उमगि भरी ।।२।।
भद्रबन गमन कियौ बनदेवी,,
पूजन चंदनबंदन लीन ।
भोग स्वच्छ फेनी एनी,
सब अंबर अभरनचीने ।३।।
गावत आवत भावत चितवन,
नंदलालके रसमाती ।
कृष्णकला सुंदर मंदिरमें,
युवती भयी सुहाती।।४।।
देखी स्वरूप ठगी ललनाते,
चकचोंधीसी लाई ।
अँचवत दृगन अघात "दास रसिक,"
विहारीन राई ।।५।।

विशेष – आज दुर्गाष्टमी है. नवविलास के अंतर्गत पुष्टिमार्ग में आज अष्टम विलास का लीलास्थल शांतन कुंड है. 
आज के मनोरथ की मुख्य सखी भामाजी (भावनी जी) हैं और सामग्री चंद्रकला (सूतरफेणी) है. यह सामग्री श्रीजी में नहीं अरोगायी जाती है परन्तु कई पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सेव्य स्वरूपों को अरोगायी जाती है.

श्रीजी को आज गोपीवल्लभ में मोहनथाल आरोगाया जाता हैं.
आज श्रीजी को सखड़ी में अठपुड़ा प्रकार आरोगाया जाता हैं.

नवरात्रि में मर्यादामार्गीय शक्ति पूजन के मूल में शिव है जबकि पुष्टिमार्गीय शक्ति की लीला प्रकार के मूल में स्वयं नंदनंदन प्रभु श्रीकृष्ण है l

‘तिहिंछिन प्रभुजी आप पधारे कोटिक मन्मथ मोहै l’

आज श्रीजी की पिछवाई के सुन्दर चित्रांकन में गोपियाँ समूह में भद्रवन में वनदेवी के पूजन हेतु जा रही हैं किन्तु चिंतन एवं गुणगान नंदनंदन श्रीकृष्ण का ही कर रही हैं. 

आज प्रभु को नियम का मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. 

रासपंचाध्यायी के आधार पर श्रीजी को शरद पूर्णिमा रास महोत्सव के मुकुट के पांच श्रृंगार धराये जाते हैं जिनका वर्णन मैं आगे भी दूंगा. आज महारास की सेवा का प्रथम मुकुट का श्रृंगार है जिसमें प्रभु प्रथम वेणुनाद करते हैं, गोपियाँ प्रश्न करती हैं, उपदेश तथा प्रणय गीत होते हैं जिससे रास के भाव से आती गोपीजनों के चित्रांकन की पिछवाई धरायी जाती है. 

प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है. इस उपरांत निकुँज लीला में भी मुकुट धराया जाता है. मुकुट उद्बोधक है एवं भक्ति का उद्बोधन कराता है.

अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी का पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता.

जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है. 

जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं.

जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है. 

दान और रास के भाव के मुकुट-काछनी के श्रृंगार में पीताम्बर (जिसे रास-पटका भी कहा जाता है) धराया जाता है जबकि गौ-चारण के भाव में गाती का पटका (जिसे उपरना भी कहा जाता है) धराया जाता है.

कल विजयदशमी पर्व है. बहुत कुछ अद्भुत होगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

नागरी नागरसो मिल गावत रासमें सारंग राग जम्यो l
तान बंधान तीन मूर्छना देखत वैभव काम कम्यौ ll 1 ll
अद्भुत अवधि कहां लगी बरनौ मोहन मूरति वदन रम्यो l
भजि ‘कृष्णदास’ थक्ति नभ उडुपति गिरिधर कौतुक दर्प दम्यो ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज वेणुनाद सुन कर दोनों दिशाओं से प्रभु की ओर आते गोपियों के समूह की, रास के प्रारंभ के भाव की भद्रवन की लीला के अद्भुत चित्रांकन की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज अमरसी तथा श्याम रंग के छापा की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं काछनी धरायी जाती है. केसरी रंग के छापा का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र श्वेत छापा के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का श्रृंगार धराया जाता है. हीरे, मोती, एवं सोने के आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर डाख का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
आज अलख धराया जाता हैं.
 कली, कस्तूरी एवं कमल माला धरायी जाति हैं.रंग-बिरंगी पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट अमरसी एवं गोटी नाचते मोर की  आती हैं.

Thursday, 22 October 2020

व्रज – आश्विन शुक्ल सप्तमी

व्रज – आश्विन शुक्ल सप्तमी 
Friday, 23 October 2020 

सातौ विलास कियौ श्यामाजू, गह्वर वनमें मतौजू कीन ।
मुख्य कृष्णावती सहचरी, लघु लाघव अति ही प्रवीन ।। १ ।।
बनदेवी हे गुंजा कुंजा, पुहुपन गुही सुमाल ।
चंद्रावली प्रमुदित बिहसत मुख, मुख ज्यों मुनिया लाल ।। २ ।।
रच्यौ खेल देवी ढिंग युवती, कोक कला मनोज ।
अति आवेश भये अवलोकत, प्रगटे मदन सरोज ।। ३ ।।
कोऊ भुजधर कर चरन उर कोऊ, अंग अंग मिलाय ।
कुंवर किशोरकिशोरी रसिकमणि, दास रसिक दुलराय ।। ४ ।।

आगम के शृंगार के 

विशेष – आज नवविलास के अंतर्गत सप्तम विलास का लीला स्थल गहवर वन है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी कृष्णावतीजी हैं और सामग्री वड़ी एवं बूंदी है. 
यह सामग्री श्रीजी में नहीं अरोगायी जाती है परन्तु कई पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सेव्य स्वरूपों को अरोगायी जाती है. 

सामान्य तौर पर प्रत्येक बड़े उत्सव के पूर्व लाल वस्त्र, पीले ठाड़े वस्त्र एवं पाग पर सादी चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है. 
यह श्रृंगार प्रभु को अनुराग के भाव से धराया जाता है. 

श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में नवविलास के भाव से विशेष रूप से मोहनथाल अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

बैठे हरि राधासंग कुंजभवन अपने रंग
कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई ll
मोहन अतिही सुजान परम चतुर गुननिधान
जान बुझ एक तान चूक के बजाई ll 1 ll
प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुनप्रवीन
अति नवीन रूपसहित वही तान सुनाई ll
वल्लभ गिरिधरनलाल रिझ दई अंकमाल
कहत भलें भलें लाल सुन्दर सुखदाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में लाल रंग के छापा वाली सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी और हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल रंग के छापा के सुनहरी एवं रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
पन्ना तथा जड़ाव स्वर्ण के आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल रंग की छापा की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में पन्ना के  कर्णफूल की एक जोड़ी धरायी जाती हैं.
आज चार माला पन्ना की धराई जाती हैं.
 विविध पुष्पों की एक एवं दूसरी गुलाब के पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी छोटी सोना की आती है.
आरसी शृंगार में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.

રોજ ત્રણ વાર શંખનાદ અને ત્રણ વાર ટકોરા

એક સમયે શ્રીગોવર્ધનનાથજી અને ગોવિંદસ્વામી ખેલતાં ખેલતાં શ્યામઢાક પર પધાર્યા. શ્રીજી એક વૃક્ષ પર બિરાજમાન થઈને વેણુનાથ કરતા હતા અને ગોવિંદસ્વામી વૃક્ષ નીચે બિરાજ્યા.

એ વખતે ઉત્થાપનનો સમય થયો અને શ્રીવિઠ્ઠલનાથજી પ્રભુચરણ અપરસ સ્નાન આદિ કરી ગિરિરાજજી પર શ્રીજીના ઉત્થાપન કરવા પધારતા હતા.. શંખદાન થયો.. શ્રીજી અચાનક ચોંકી ગયા અને ઉતાવળે વૃક્ષથી નીચે ઉતર્યા. વસ્ત્ર - વાઘા વૃક્ષમાં ફસાંઈને ચિરાઈ ગયા. આપશ્રી નિજ મંદિક તરફ દોડ્યાં અને શ્રીપ્રભુચરણ ઉત્થાપનના દર્શન ખોલે એ પહેલા શ્રીજી નિજ મંદિરમાં બિરાજી ગયા.

શ્રીપ્રભુચરણે ટેરો હટાવ્યો અને શ્રીજી બાવાને અસ્તવ્યસ્ત વાઘામાં જોયા.. સૌને પૂછવા લાગ્યા કે "પ્રભુને શું થયું..? કોઈને ખ્યાલ છે..?"

એવામાં ગોવિંદસ્વામી ભગવાનના વાઘાનો એક ટુકડો વૃક્ષ પર ફસાંઈ ગયો હતો એ લઈને શ્રીગુંસાઈજી પાસે આવ્યા.

શ્રીગુંસાઈજીએ પૂછયું "પ્રભુના વસ્ત્રો કેમ ચિરાઈ ગયા..?"
ગોવિંદસ્વામી કહે "જયરાજ.. આપના પુત્રના લક્ષણ તો આપને ખ્યાલ જ છે.. ખૂબ જ ચંચળ છે.. વૃક્ષ પરથી કુદકો માર્યો અને પટકો વૃક્ષમાં ફસાંઈ ગયો હતો"

શ્રીપ્રભુચરણે નિજ મંદિરમાં પધારી શ્રીજીને વ્હાલ કર્યા અને પૂછ્યું "બાવા.. ઉતાવળ શા માટે કરી..?"
શ્રીજી કહે "કાકાજી.. આપ દર્શન ખોલવા માટે મંદિરે પધારતા હતા અને અચાનક ઉત્થાપનનો શંખદાન થયો.. એવામાં હું ચોંક્યો અને તરત જ ઉતાવળે નિજ મંદિર તરફ દોડ્યો"
(પ્રાચીન વ્રજભાષામાં કાકાજી એટલે પિતાજી. શ્રીપ્રભુચરણના બાળકો આપને કાકાજી કહેતા અટલે શ્રીજી પણ આપને કાકાજી કહીને જ બોલાવતા)

ત્યારે શ્રીપ્રભુચરણે મુખીયાજી અને ભિતરીયાજીઓને આજ્ઞા કરી કે "આજ પછી રોજ ત્રણ વાર શંખનાદ અને ત્રણ વાર ટકોરા (ધંટાનાદ) કરવા અને થોડા સમય પછી જ મંદિરના કમાળ ખોલવા જેથી પ્રભુ કોઈ જગ્યાએ પધાર્યા હોય તો ફરી નિજ મંદિરમાં બિરાજમાન થયા માટે ઉતાવળ ન કરવી પડે"

ત્યારથી લઈને આજ સુધી પુષ્ટિમાર્ગીમાં આ જ ક્રમ છે કે દર્શન પહેલાં ત્રણ વાર શંખનાદ અને ત્રણ વાર ટકોરા થાય છે અને થોડા સમય પછી જ ટેરો હટાવવામાં આવે છે. આમ પણ આપણા સેવ્ય કોણ છે..? તો કહે यशोदोत्संग लालित्य (યશોદાજીની ગોદીમા ખેલતાં લાલન) એટલે કે બાલકૃષ્ણ (શ્રીજીબાવા). માટે નાના બાળકને જેમ જગાવતા હોવ એમ નિરાંતે અને ખૂબજ શાંતિથી જ શ્રીઠાકોરજીને જગાવવા અને પોઢાવો ત્યાંરે પણ ઉતાવળ બિલકુલ ન કરવી..

જય શ્રીકૃષ્ણ 

જય શ્રીવલ્લભ

Wednesday, 21 October 2020

व्रज – आश्विन शुक्ल षष्ठी

व्रज – आश्विन शुक्ल षष्ठी
Thursday, 22 October 2020

छठो विलास कियो श्यामा जु 
गौधन वन चली भामा जु ।
पहेरे रंग रंग सारी  हाथन पूजन थारी ।
ताकी मुख्य सहचरी राई  खेलनमें बहुत सुधराई ।।१।।
चली बन बन बिहसी सुंदरी  हार कंकन जगमगे ।
आई मंदिर पूजन देवी  भोग सिखरन सगमगे ।।२।।
ता समे प्रभु पधारे  कोटि मन्मथ मोहे ही ।
निरखी सखियन कमल मुख मानो  निर्धन धन जो सोहे ।।३।।
खेलको आरंभ कीनो  राधा माधो बीच किये ।
वाकी परछाई परी तब रसिक चरनन चित दिये ।।४।।

विशेष - आज छठे विलास का लीला स्थल गोवर्धन वन है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी राईजी हैं और सामग्री मोहनथाल एवं दूधपूवा है यद्यपि यह सामग्री श्रीजी में नहीं अरोगायी जाती है परन्तु कई पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सेव्य स्वरूपों को अरोगायी जाती है. 

आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराजश्री के बहूजी का उत्सव है जिसे राणीजी का उत्सव भी कहा जाता हैं.

श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से सिकोरी (मूंगदाल, मावे, इलायची के मीठे मसाले से निर्मित पूरणपूड़ी जैसी सामग्री) अरोगायी जाती है.
आज श्रीजी को सखड़ी में पत्तरवेला प्रकार आरोगाया जाता हैं.

श्रीजी में सभी देवों को मान दिया जाता है और महाप्रभुजी ने भी भगवान विष्णु के दस अवतारों में से चार (श्रीकृष्ण, श्रीराम, श्रीवामन एवं श्रीनृसिंह) को मान्यता दी है. 
इसी सन्दर्भ में आज श्रीजी में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्रजी को मान देती आज श्री रामचंद्रजी के जीवन चरित्र का दर्शन कराती पिछवाई धरायी जाती है. 
इसी प्रकार रामभक्त हनुमान जी के गुणगान एवं अन्य रामभक्त जानकीजी को खोज रहे हैं ऐसी लीला के कीर्तन संध्या-आरती में मारू राग में गाये जाते हैं.

पायं तो पूजि चले रघुनाथ  
हनुमान आदि ले बडरे योद्धा लीने साथ।।
से तू  बांधि के लंका लूटी, रावण के काटे माथ।
कृष्ण दास सीता घर लाये, विभीषण  कियो सनाथ।।

आज प्रभु श्री रामचन्द्रजी के पराक्रम की भावना को दर्शाता मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार धराया जाता है. 
इस श्रृंगार के विषय में मैं पहले भी कई बार बता चुका हूँ कि मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) के मेल से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है.

आज के इस श्रृंगार की विशेषता यह है कि वर्षभर में केवल आज मल्लकाछ के ऊपर चाकदार वागा धराये जाते हैं जो कि विशिष्ट वीर-रस का धोतक है. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन (राग : सारंग)

वृन्दावन सघनकुंज माधुरी लतान तर जमुना पुलिनमे मधुर बाजे बांसुरी l
जबते धुनि सुनी कान मानो लागे मैंनबान, प्राननकी कासौ कहू पीर होत पांसुरी ll 1 ll
व्याप्यो जु अनंग ताते अंग सुधि भूल गई कौऊ वंदो कोऊ निंदो करौ उपहासरी l
ऐसे ‘व्रजाधीश’सों प्रीति नई रीति बाढ़ी जाके उर गढ़ रही प्रेम पुंज गांसरी ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में प्रभु श्री रामचंद्रजी के जन्म से रावण वध एवं उनके राज्याभिषेक तक के विविध प्रसंगों को दर्शाते चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग के सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित मल्लकाछ एवं इसी प्रकार गुलाबी रंग के छापा का, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित चोली एवं चड़ी आस्तीन का खुलेबंध का चाकदार वागा धराया जाता है. आज पटका लाल रंग का एक ही धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर टिपारा का साज धराया जाता है जिसमें लाल रंग के छापा की टिपारा की टोपी के ऊपर सिरपैंच, मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. बायीं ओर मोती की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के कुंडल धराये जाते हैं.
आज चड़ी आस्तीन का बागा धराने से हीरा की एक ही गोल पहुची धराई धराई जाती हैं.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गुलाबी  व गोटी बाघ-बकरी की आती है. 

नाथद्वारा में दरवाजे के ताले को नेत्र से वैष्णवों द्वारा क्यों लगाया जाता हे ?

नाथद्वारा में दरवाजे के ताले को नेत्र से वैष्णवों द्वारा क्यों लगाया जाता हे ?
वचनामृत के अनुसार ताला मंगल के बाद श्रीजी के दर्शन नहीं होते हे । ताला श्री महाप्रभुजी का हस्त का स्वरुप हे। और स्वमिनिजी की मुष्टिका का स्वरुप हे । वैष्णव द्वारा स्वमिनिजिको विनंती की जाती हे के आपकी कृपा से बार बार ठाकोरार्जी के दर्शन हो ऐसी भावना हे
जय श्रीकृष्ण...

Tuesday, 20 October 2020

व्रज – आश्विन शुक्ल पंचमी

व्रज – आश्विन शुक्ल पंचमी
Wednesday, 21 October 2020

पाँचो विलास कियौ शयामाजू,
कदली वन संकेत ।
ताकी मुख्य सखी संजावलि,
पिया मिलनके हेत ।।१।।
चली रली उमगी युवती सब,
पूजन देवी निकसीं ।
धूप,दीप,भोग,संजावलि,
कमल कली सों विकसीं ।।२।।
आनँद भर नाचत गाबत,
वधू रस में रस उपजाती ।
मंडलमें हरी ततच्छि आये,
हिल मिल भये एकपाँती ।।३।।
द्वै युग जाम श्यामश्या
संग भाभिनी यह रस पीनौ ।
उनकी कृपा द्रष्टि अवलोकत,
रसिक दास रस भीनौ ।।४।।

विशेष - आज पंचम विलास का लीला स्थल कदलीवन है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी संजावलीजी हैं और सामग्री मनोहर (इलायची-जलेबी) के लड्डू और दूधपूआ है. 

मनोर के लड्डू श्रीजी में नहीं अरोगाये जाते परन्तु कई पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सेव्य स्वरूपों को दोनों सामग्रियां अरोगायी जाती है. 

श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधपूआ (दूध में मेदे के घोल से सिद्ध मालपूए जैसी सामग्री) आरोगाए जाते हे 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

कहा कहो लाल सुघर रंग राख्यो मुरलीमें l
तान बंधान स्वर भेदलेत अतिजित
बिचबिच मिलवत विकट अवधर ll 1 ll
चोख माखनीकी रेख तामे गायन मिलवत लांबे लांबे स्वर l
बिच बिच लेत तिहारो नाम सुनरी सयानी,
‘गोविंदप्रभु’ व्रजरानी के कुंवर ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में श्याम रंग के छापा की, चाँद-सितारे और सूर्य की छापवाली, सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है जिसमें पीठिका के आसपास पुष्प-पत्रों का हांशिया बना है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज श्याम रंग के छापा का सूथन, श्याम छापा के वस्त्र की चोली एवं खुलेबंद का चाकदार वागा धराये जाते हैं जो कि सफेद ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (छेड़ान) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 

श्रीमस्तक पर श्याम रंग के छापा वाली ग्वालपगा के ऊपर सिरपैंच, पगा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में सोना की लोलकबिन्दी धराये जाते हैं. 
कमल माला धरायी जाती हैं.
श्वेत पुष्पों की विविध रंगों वाले पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट श्याम व गोटी बाघ-बकरी की आती है. 

ભગવત્ કૃપાનું લક્ષણ

ભગવત્ કૃપાનું લક્ષણ

મધુરમ્

ભગવત્ કૃપા અવ્યક્ત છે, એટલે આપણે તેને સમજીએ –ઓળખીએ.

પ્રભુ પ્રાપ્તિ માટેના જે જે પ્રયત્નો થાય છે, થઈ રહ્યા છે, તેમાં ભગવદ્ કૃપા વ્યાપ્ત જ રહે છે. એટલે કે સેવા, સ્મરણ, ગુણગાન, લીલા-શ્રવણ વિગેરે જે જે સાધનો આપણે કરીએ છીએ તે ભગવદ્ કૃપાના કારણેજ થાય છે. પ્રભુએ આપણો સ્વકીયત્વે અંગીકાર કર્યો છે તેનું એજ લક્ષણ છે કે, સેવા સ્મરણાદિ સાધનોમાં આપણી વધુને વધુ અભિચીરૂ થતી રહે. આપણો જ્યારથી અંગીકાર કર્યો છે ત્યારથી જ આપે પોતાની કૃપા શક્તિનો આપણા હૃદયમાં પ્રવેશ કરાવ્યો છે. અને પ્રિયતમને યોગ્ય બનીએ તેવી અવસ્થા, સેવા, સ્મરણાદિ સાધનો દ્વારા આ કૃપા શક્તિ સિદ્ધ કરી કહેલ છે.
સંસાર સાગરમાં પડેલા અને સ્વરૂપથી વિમુખ એવા આ જીવનમાં એવી કઈ શક્તિ છે કે પ્રભુની કૃપા વિના પ્રભુ પ્રાપ્તિનાં સાધનો કરી શકે ? સ્વકીયત્વે આપણો અંગીકાર કરેલો હોવાથી પોતાની કૃપા શક્તિનો હૃદયમાં પ્રવેશ કરાવી પોતાની પ્રાપ્તિ માટેનાં સાધનનો આપ કરાવી રહેલા છે એમ નિશ્ચયાત્મક માનવું જ. તેમજ નિત્યસખા પ્રભુ આપણા હૃદયમાં ભાવાત્મક સ્વરૂપથી પ્રગટ થવાની જ્યારે ઇચ્છા કરે છે ત્યારે કૃપા શક્તિ દ્વારા સેવા-સ્મરણ આદિ સાધનો વધુને વધુ પ્રમાણમાં કરાવે છે. 

એટલે સેવા-સ્મરણ આદિમાં રૂચી થવી એજ ભગવત્ કૃપાનું લક્ષણ છે.

Monday, 19 October 2020

व्रज – आश्विन शुक्ल चतुर्थी

व्रज – आश्विन शुक्ल चतुर्थी
Tuesday, 20 October 2020

चौथौ विलास कियौ श्यामाजू,
परासौली बन माँई ।
ताके वृक्षलता द्रुमवेली,
तन पुलकित आनंद न समाईं ।।१।।
चंद्रभगा मुख्य यथावलि,
अपनी सखी सब न्यौति बुलाई ।
खंडमंडा,जलेबी लडुआ,
प्रत्येक अंगकौ भाव जनाई ।।२।।
साज कियौ पूजन देविकौ,
बहू उपहार भेट लै आई ।
खेलन चली बनी तिहिंशोभा,
ज्यों धनमें चपला चमकाई ।।३।।
पोहोंची जाय दरस देवी तब है,
गये श्यामकिशोर कन्हाई ।
मनकौ चीत्यौ भयौ लालनकौ,
हास बिलास करत किलकाई ।।४।।
श्यामाश्याम भुज भर भेटे,
तृण तोरत,और लेत बलाई ।
कही न जाय शोभा ता सुख की.
कुंजन दुरे रसिक निधिपाई ।।५।।

विशेष – आज चतुर्थ विलास का लीलास्थल परासोली है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी चंद्रभागाजी हैं और सामग्री खरमंडा, जलेबी और लड्डू हैं यद्यपि ये भोगक्रम श्रीजी में नहीं होता परन्तु कई अन्य गृहों में यह सेवाक्रम होता है.

आज की पोस्ट आज के विशिष्ट दोहरा उत्सव की तरह काफी लम्बी परन्तु बहुत सुन्दर व अर्थपूर्ण है. समय देकर पूरी अवश्य पढ़ें

नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री दामोदरजी (दाऊजी प्रथम) महाराज का उत्सव, दोहरा उत्सव, भलका चौथ

आज नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गिरधरजी के पुत्र श्री दामोदरजी (दाऊजी) का उत्सव है. आप भाला धारण करते थे अतः आपको भाला वाले दाऊजी व आज के दिवस को भलका-चौथ भी कहा जाता है.

आपका प्राकट्य विक्रमाब्द 1853 में नाथद्वारा में एवं आपका उपनयन संस्कार घसियार में हुआ. आपने ही श्री गोवर्धनधरण प्रभु को घसियार से पुनः नाथद्वारा पधराया था.
आपने तिलकायत पद पर आसीन होने के पश्चात नगर की सुदृढ़ता के लिए कई विशिष्ठ कार्य किये थे. आपने विक्रमाब्द 1872 में नगर के प्रसिद्द लालबाग़ का निर्माण करवाया.
आपने विक्रमाब्द 1877 की मार्गशीर्ष कृष्ण 13 से विक्रमाब्द 1878 की मार्गशीर्ष कृष्ण 13 तक श्रीजी और श्री नवनीतप्रियाजी के दोहरा मनोरथ, नैमितिकोत्सव, महोत्सवादी किये.

इसके पश्चात सेवकों ने आपसे विनती की कि यह दोहरा (Double) सेवाक्रम व्यवहार रूप में अधिक समय तक निभाया नही जाना संभव नहीं अतः आपने इसे केवल अपने जन्मदिवस अर्थात आज के दिन करने की आज्ञा दी.

आपने श्रीजी की प्रेरणा व अपनी दादीजी श्री पद्मावतीजी की आज्ञानुसार सप्तस्वरूपोत्सव किया. इस प्रकार आपने सर्वप्रथम चार स्वरुप पधराये और श्री विट्ठलनाथजी (नाथद्वारा), श्री मथुराधीशजी (कोटा), श्री गोकुलनाथजी (गोकुल) एवं श्री नवनीतप्रियाजी को श्रीजी के साथ के विराजित कर बहुत धूमधाम से विविध मनोरथ किये.
पुष्टिमार्ग में षडरितु के मनोरथ को इसकी भाव-भावना का प्रमाण देकर प्राम्भ करने का श्रेय भी आप ही को जाता है.
तत्पश्चात आपने विक्रमाब्द 1878 की पौष कृष्ण 4 के दिवस छः स्वरूपोत्सव आयोजित किया जिसमें श्री विट्ठलनाथजी (नाथद्वारा), श्री द्वारकाधीशजी (कांकरोली), श्री गोकुलनाथजी (गोकुल), श्री गोकुलचंद्रमाजी (कामवन), श्री मदनमोहनजी (कामवन) एवं छठे स्वरुप श्री बालकृष्णलाल जी के बदले काशी से श्री मुकुंदरायजी पधारे और सभी स्वरूपों ने साथ विराजित हो अन्नकूट अरोगा.

विक्रमाब्द 1881 में आपने जगदीश यात्रा की और इसी वर्ष आप लीला में पधारे.

इस प्रकार छः स्वरूपोत्सव, बारह मास तक दोहरा मनोरथ एवं इसके मध्य अनेक भव्य मनोरथों की झड़ी लगा कर आपने श्रीजी को खूब लाड लड़ाए. प्रतिवर्ष अन्नकूट के दिन श्रीजी में धरायी जाने वाली पिछवाई आपके द्वारा निर्मित करायी गयी थी जो कि आज भी धरायी जाती है.

सेवाक्रम - आज श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी में मंगला से शयन तक सभी नियमित सेवाक्रम दोहरा (दोगुना) होता है.

पर्वरुपी उत्सव एवं दुहेरा मनोरथ होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को दोहरी कलात्मक रूप से हल्दी से माँड़ी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल भी दोहरी बाँधी जाती हैं. 
आज एक दिन की नोबत की बधाई बेठे झाँझ बजे

मंगला एवं उत्थापन में दो बार शंखनाद होते हैं, दिन की चारों आरती (मंगला, राजभोग, संध्या और शयन) दो बार (एक सोने की एवं एक चांदी की थाली में) की जाती है. 

महाप्रभुजी की बैठक में भोग धरवे की खबर भी हर बार दो बार जाती है. 
राजभोग समय माला दो बार बोलती है और राजभोग के भोग भी दो बार सरते हैं.
माला, बीड़ा, कमलछड़ी, झारीजी, बंटाजी आदि सभी साज दोहरा (Double) रखे जाते हैं. 

ठाकुरजी को आज केसरी डोरिया के घेरदारवस्त्र भी दोहरी किनारी वाले धराये जाते हैं. प्रभु समक्ष वेणुजी, वैत्रजी भी दो धराये जाते हैं.

कीर्तन भी दोगुने होते हैं.आज पूरे दिन झांझ (एक प्रकार का वाध्य) बजे
ग्वाल समय होने वाले धूप दीप भी दो बार होते हैं.
मंगलाभोग से ले कर संध्या आरती के पश्चात धैया (दूध) अरोगे तब तक सभी ‘नित्य-नियम के भोग’ भी दोहरा (दोगुना) अरोगाये जाते हैं. 

शयन भोग में पुनः भोग का क्रम पूर्ववत हो जाता है. केवल शयन की बासोंदी दोहरी अरोगायी जाती है.

श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से नवविलास के भाव से केशर की चाशनी युक्त घेवर व प्राकट्योत्सव के भाव से  केशर-युक्त जलेबी के टूक और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की दो हांडियां अरोगायी जाती है.

राजभोग समय अनसखड़ी में दाख (किशमिश) और दूसरा केले का रायता अरोगाया जाता है. 

राजभोग में नियम का सभी सखड़ी महाप्रसाद भी दोहरा (दोगुना) अरोगाया जाता है जिसमें विशेष मीठा में बूंदी प्रकार आरोगाया जाता हैं.

आज की एक अति विशिष्ट प्राचीन परम्परा है कि आज के द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी व तृतीय गृहाधीश्वर श्री द्वारकाधीश प्रभु को धराये जाने वाले केसर से रंगे डोरिया के वस्त्र भी श्रीजी से सिद्ध होकर जाते हैं. इसके साथ प्रभु के अरोगवे की सामग्री भी पधारती है. 
प्रधानगृह, द्वितीय गृह और तृतीय गृह में पधारने वाले ये वस्त्र विगत आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को केसर से रंगे जाते हैं.
 
वर्ष में केवल दो बार श्रीजी से इन दोनों गृहों के वस्त्र पधारते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

सदा व्रजहीमें करत विहार l
तबके गोप भेख वपु धार्यो अब द्विजवर अवतार ll 1 ll
तब गोकुलमें नंदसुवन अब श्रीवल्लभ राजकुमार l
आपुन चरित्र सिखावत औरन निजमत सेवा सार ll 2 ll
युगलरूप गिरिधरन श्रीविट्ठल लीला ईक अनुसार l
‘चत्रभुज’ प्रभु सुख शैल निवासी भक्तन कृपा उदार ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज नन्दमहोत्सव और छठी पूजन के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी घेरदार वागा, रुपहली ज़री की तुईलैस की दोहरी किनारी वाला जामदानी का सूथन, चोली, एवं पटका धराये जाते हैं. पटका का एक छोर  ऊर्ध्व भुजा की ओर और एक शैया मन्दिर की और धराया जाता है. 
ठाड़े वस्त्र श्वेत रंग के जामदानी के  धराये जाते है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे एवं पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 

श्रीमस्तक पर केसरी रंग के डोरिया की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम की सुनहरी किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में पन्ना के  कर्णफूल धराये जाते हैं. विविध पुष्पों की चार सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
आज अलक धराया जाता हैं.
श्रीहस्त में दो कमलछड़ी, पन्ना एवं हरे मीना के दो वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गोटी राग रांग की आती हैं.

ठाकुरजी की हवेली क्यो कहते हे

ठाकुरजी की हवेली क्यो कहते हे

श्रीनाथजी का निवास स्थान है। इसीलिए वे इसे मंदिर नहीं, अपितु ठाकुरजी की हवेली कहते हैं।

मंदिर के विभिन्न कक्ष  जो इस प्रकार हैं:
• दूधघर – दूध संचय कक्ष
• पानघर – पान के पत्तों का संचय कक्ष
• मिश्रीघर – मिश्री का संचय कक्ष
• पेडाघर – पेडे का संचय कक्ष
• फूलघर – पुष्प संचय कक्ष
• रसोईघर – पाक कक्ष
• गहनाघर – गहनों का कक्ष
• अश्वशाला – घुड़साल
• बैठक – बैठने का कक्ष

Sunday, 18 October 2020

व्रज - आश्विन शुक्ल तृतीया

व्रज - आश्विन शुक्ल तृतीया
Monday, 19 October 2020

तृतिय विलास कियो श्यामाजू प्रविन ।
खेलनको उत्साह सखी एकत्र किन ।।१।।
तिनमे मुख्यसखी विशाखाजू ऐन ।
चलीनिकुंज महेलमें कोकिला ज्यौं बैंन ।।२।।
भोग धरी सँवार बासोंधी सनी । 
कुसुमरंग अनेक गुही कामिनी ।।३।।
गानस्वर कियो बनदेवी बिहार । 
नव त्रियाकौ वेष कोटि काम वार ।।४।।
ढिंग आसन कराय प्यारीकों बेठाय । 
दोउ एकत्र किन निरखत लेत बलाय ।।५।।
यह लीलाको द्यान मम ह्रदय ठहराय । 
देखत सुरनर मुनिभूले रसिक बलबल जाय ।।६।।

विशेष – आज तृतीय विलास का लीला स्थल निकुंज महल है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी विशाखाजी हैं और सामग्री बासुंदी है. यद्यपि यह सामग्री श्रीजी में नहीं अरोगायी जाती परन्तु कई गृहों में प्रभु स्वरूपों को अरोगायी जाती है.

आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में ‘चाशनीयुक्त कूर के गुंजा’ अरोगाये जाते हैं l
यह एक समोसे जैसी सामग्री है जिसके भीतर कूर (घी में सेका कसार और कुछ सूखा मेवा) भरा होता है. इसके ऊपर चाशनी चढ़ी होती है l

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

बैठे हरि राधा संग कुंजभवन अपने रंग
कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई l
मोहन अति ही सुजान परम चतुर गुन निधान
जान बुझ एक तान चूकके बजाई ll 1 ll
प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुन प्रवीन 
अति नवीन रूप सहित, वही तान सूनाई ll 2 ll
‘वल्लभ’ गिरिधरन लाल रिझ दई अंकमाल
कहत भले भले जु लाल सुंदर सुखदाई ll 3 ll

साज – श्रीजी को आज हरे रंग के छापा की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल छापा का, सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी वाला सूथन और इसी प्रकार हरे रंग के छापा के वस्त्र पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी वाले खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र श्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर हरे रंग का छापा की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का नागफणी का कतरा व लूम और तुर्री सुनहरी जरी की एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में कर्णफूल के दो जोड़ी धराये जाते हैं.
 श्वेत रंग के पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, झिने लहरिया के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट श्याम व गोटी मीना की आती है. 

હિંડોળા

હિંડોળા
માઇ ફૂલકો હિંડોરો બન્યો ફૂલ રહી યમુના
ફૂલનકો ખંભ દોઉ ફૂલનકી ડાંડી ચાર
ફૂલનકી ચૌકી બની. હીરા જગમગના
ફૂલે અતિ બંસીબટ ફૂલે યમુનાતટ
સબ સખી ચહું ઓરેં ઝુલવત થોંરે થોંરે
‘નંદદાસ’ ફૂલે જહાં મન ભયો લગના.

ભારતીય સંસ્કૃતિ વૈદિક પરંપરા અને શાસ્ત્રો પરઆધારિત છે.આનંદની અનૂભૂતિ મેળવવી એ મનુષ્યજીવનનુ ધ્યેય છે.ભારતીય તહેવારો હ્રદયના આનંદઉલ્લાસને પ્રગટ કરવાનું માધ્યમ છે.

ભારતના દરેકપ્રાંતમા લોકો વર્ષ દરમિયાન પર્વ તહેવાર ઉજવતા હોય છે.પ્રત્યેક તહેવારોનું પોતાનુ મહત્વ હોય છે અને માહત્ય પણ.હોય છે.ધર્મિક તહેવારો કે પર્વને’ઉત્સવ’ કહેવાય છે.

ઉત્સવ આપણને રોજીંદા જીવનવ્યવહારમાંથી કઇં નવુ બક્ષે છે જેથી જીવનમાં શુષ્કતા રહેતી નથી.

શ્રીવલ્લભાચાર્ય રચિત પુષ્ટિ માર્ગમાઉત્સવોનું અનેરૂસ્થાન છે.પુષ્ટિમાર્ગ માં આરાધ્ય પરમાત્મા શ્રીકૃષ્ણનુંબાળ સ્વરૂપ છે.નંદવંદન યશોદોત્સંગ લાલિત વ્રજેશ્વેર શ્રીકૃષ્ણ ની સેવા થાય છે.

પુષ્ટિમાર્ગમાં નંદકુંવર કનૈયાનું લાલન પાલન નંદ -યશોદા અને વ્રજવાસીઓ કરતાં, એ રીતે સેવા પ્રણાલીમાં આવરીલેવામાં આવી છે.બાળકૃષ્ણની સેવા રસાનંદનો આનંદઆપે છે.પુષ્ટિમાર્ગમાં વિવિધ ઉત્સવોનુંઆયોજન થાય છે.

શ્રી ગુંસાઈજીએ પુષ્ટિસેવા પ્રણાલીમાં રાગ,ભોગઅને શૃંગારનો સમન્વય કરી સુંદર પરંપરા સ્થાપિતકરી છે. બારે માસના ઉત્સવ નિશ્ચિત કર્યા છે.ભગવાન ઉત્સવોના સમયે દર્શનોમાં અપૂર્વ રસદાન કરે છે.નેત્રોને સુખ પ્રાપ્ત થાય છે.  પરમાનંદની પ્રાપ્તી થાય છે.
પુષ્ટિમાર્ગમાં ઉત્સવોનો આધાર શ્રીભદ્ ભાગવત છે. શ્રીકૃષ્ણની વિવિધ લીલાઓનું સ્મરણ કરાવે છે.
શ્રીકૃષ્ણ રસાત્મક છે. 

વર્ષા ઋતુના આગમનથી પ્રકૃતિસોળે કળાએ ખીલી ઉઠે છે માનવી જ નહી ભગવાનનુ મન પણ મોહીત થઇ જાય છે. અષાઢ શ્રાવણમામેઘનુ આગમન, રીમઝીમ વરસાદ, વીજળીના ચમકાર, મંદ મંદ વાતો પવન, આવા સમયે શ્રીકૃષ્ણહિંડોળે બિરાજે છે. સંધ્યા સમયે પ્રભુના હિંડોળાનીરેશમી દોરી ઝાલી પ્રભુને હિચોળવા ભક્તો અધીરા થાય છે. સંતો ભક્તો ઝાઝ, પખાલ, મંજીરા, ઢોલકના તાલેહિંડોળાના પદ ગાઇ પ્રભુને આનંદ કરાવે છે તેમજ સ્વંય આનંદ પામે છે. શ્રીકૃષ્ણે રાધાજી અને ગોપીઓસાથે રાસ રમીને જે લીલા કરી હતી તેની સ્મૃતિ તાજી કરી હરિને હ્રદયમાં બેસાડી હિંડોળે ઝુલવવામાઆવે છે.

પુષ્ટિમાર્ગ હવેલી,સ્વામીનારાયણ સંપ્રદાયમાઅને ઇસ્કોન મંદિરમા હિંડોળા સજાવાય છે.
સામાન્ય રીતે અષાઢ વદ એકમથી હિંડોળા પ્રારંભથાય છે.ત્યાર પછી ત્રીસ દીવસ સુધી વિવિધ પ્રકારનાહિંડોળા થાય છે. ફળફૂલ, શાકભાજી, તુલસી, રાખડી, પવિત્રા, જરદોસી, મોતી, આભલાં, સૂકામેવા ના હિંડોળાના શણગાર થાય છે.

હિંડોળા ઉત્સવ એટલે પ્રભુના સામીપ્યનો ઉત્સવ વ્રજમા ૫૨ વન અને ૨૪ ઉપવન છે તેના આધારે શ્રી કૃષ્ણની વિવિધ લીલાઓનો ભાવ હિંડોળામા પ્રગટ થાય છે. ગોપીઓને યુગલ સ્વરૂપનોઆનંદ લેવડાવે છે, દેવીઓને નિકુંજ અને ઋતુનોઆનંદ લેવડાવે છે.

હિંડોળાનું પદ
દંપતી ઝૂલત સુરંગ હિંડોળે 
ગૌર શ્યામ તન અતિ છબિ રાજત જાનો ધનદામિની અનહોરે, વિદ્રુમખંભ જટિતનગ પટુલી કનક ડાંડી શોભા દેત ચહું ઓરે
‘ગોવિંદ’ પ્રભુકો દેખ લલિતાદિક હરખ હસત સબ નવલકિશોરે.

વ્રજવાસીઓએ શ્રીકૃષ્ણને વિવિધ સ્થળોએ ઝૂલાઝુલાવ્યા છે. કદમની ડાળે, સંકેતવનમાં, શ્રીગોર્વધનની તળેટીમા, શ્રી વૃંદાવનધામમાં, શ્રીકુંડ, કામવન આસ્થળે શ્રીકૃષ્ણે લીલા કરી છે. ભક્તો આ લીલાઓહિંડોળા દ્વારા પ્રગટ કરે છે.

Saturday, 17 October 2020

व्रज - आश्विन शुक्ल द्वितीया

व्रज - आश्विन शुक्ल द्वितीया
Sunday, 18 October 2020

द्वितीय विलास कियौ श्यामाजू, खेल
समस्या कीनी ।
ताकी मुख्य सखी ललिताजू, आनंद महारस भीनी ।। १ ।।
चली संकेत बिहार करन बलि, पूजा साजि संपूरन ।
बहु उपहार भोग पायस लै, बाँह हलावत मूर ।।२।।
मंदिर देवी गान करत यश, आय मिले गिरिधारी ।
मन कौ भायौ भयौ सबन कौ, काम वेदना टारी ।।३।।
स्यामा कौ शृंगार श्याम कौ,
ललिता नीवी खोली ।
लीला निरखत दास रसिकजन, श्रीमुख
स्यामा बोली ।। ४ ।।

द्वितीय विलास के अंतर्गत सेहरा के शृंगार

नवविलास के अंतर्गत द्वितीय विलास के आधार पर आज द्वितीय विलास की भावना का स्थल व्रज में संकेत वन है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी श्री ललिताजी है और सामग्री खीर की है. यद्यपि यह सामग्री श्रीजी में नहीं अरोगायी जाती परन्तु कई गृहों में नवविलास में अरोगायी जाती है.

आज श्रीजी प्रभु को नियम के पीले छापा के वस्त्र, पीला खूंट का दुमाला के ऊपर हीरो का सेहरा और आभरण में विशेष पन्ना के कुंडल व पन्ना की जोड़ी धरायी जाती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

दिन दुल्है मेरो कुंवर कन्हैया l 
नित उठ सखा सिंगार बनावत नितही आरती उतारत मैया ll 1 ll
नित उठ आँगन चंदन लिपावे नित ही मोतिन चौक पुरैया l
नित ही मंगल कलश धरावे नित ही बंधनवार बंधैया ll 2 ll
नित उठ व्याह गीत मंगलध्वनि नित सुरनरमुनि वेद पढ़ैया l
नित नित होत आनंद वारनिधि नित ही ‘गदाधर’ लेत बलैया ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज संकेत वन में विवाह लीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की छापा की सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी वाली धोती और इसी प्रकार का राजशाही पटका धराया जाता है. आज के वस्त्र विशिष्ठता लिए हुए है. आज विशेष रूप से धोती के ऊपर पीले रंग के छापा का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी वाला खुलेबंद के चाकदार वागा एवं चोली भी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है.पन्ना तथा जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर पीले रंग का छापा का खूंट का दुमाला के ऊपर हीरो का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. दायीं ओर सेहरे की मोती की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में पन्ना के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
कस्तूरी कली एवं कमल माला धराई जाती हैं.

श्वेत रंग के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी राग रांग की आती हैं.

दान लीला

हमने सुना है की दान के दिनों में दान लीला अवश्य बोलनी चाहिए । तो यह दान लीला क्या है  ?

ओह  ! दानलीला .....................
अपने यहां तीन-चार दान लीला प्रगट हुई है । श्री गुसांईंजी रचित ( संस्कृत में है ) , श्री हरिरायजी रचित  , सुरदासजी रचित  , कुंभनदासजी रचित ................
जैसे दर्शन हुए वैसी ही लीला प्रगट की वो दानलीला  .......
दानलीला का स्मरण होते हैं हमारे श्री नटखट प्रभु की याद आ जाती हैं । श्री ठाकुरजी ने जो वृज में गोप- गोपीजनो के साथ गोरस की लीला करी वोही दान लीला । दानलीला में श्री ठाकुरजी ओर गोपीजनो के साथ प्रेम का मीठा झगड़ा का अरसपरस संवाद है । क्या वो गोपीजनो का भाव था की श्री ठाकुरजी के साथ मीठा झगड़ा कर सके?  

जब भी दानलीला बोले या सुने तब अपने श्री सेव्यस्वरुप का स्मरण अवश्य करना चाहिए । अपने श्री सेव्यस्वरुप को भी विनंती करनी चाहिए की गोपीजनो के पास जैसे हठ करके दान लीया ऐसी ही कृपा हम पे करो । क्योंकि वो वृज में बिराजमान श्री ठाकुरजी ओर अपने घरमें बिराजमान श्री सेव्यस्वरुप दोनों एक ही है । फर्क हमारे प्रेम भाव ओर गोपीजनो के प्रेम भाव में है । 

दानलीला अवश्य बोलनी ही चाहिए। श्री हरिरायजी महाप्रभु को कितने सुंदर दर्शन हुए थे । जो हरिरायजी रचित दानलीला बोलो तब एकबार आंखें बंद करके अपने श्री सेव्यस्वरुप को याद करे ओर विनंती करे की है प्रभु आपने वृज में तो मांग-मांगकर आरोगे थे तो फिर हमारे पास, हमारे यहां क्युं नहीं  ? 
इतना जरुर याद रखो की बिनती आपकी ओर कृपा श्री सेव्यस्वरुप की ..............
यही तो दान लीला का प्रताप है।

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया  Saturday, 01 February 2025 इस वर्ष माघ शुक्ल पंचमी के क्षय के कारण कल माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन बसंत पंचमी का पर्व ह...