By Vaishnav, For Vaishnav

Wednesday, 30 September 2020

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल पूर्णिमा

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल पूर्णिमा
Thursday, 01 October 2020

आज के मनोरथ-

प्रातः काँच का बंगला

सायं रसिक मोहन बने भामिनी को मनोरथ

विशेष-अधिक मास में आज श्रीजी को श्वेत छाप का मुकुट काछनी का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

बन्यौ रास मंडल अहो युवति यूथ मध्यनायक नाचे गावै l
उघटत शब्द तत थेई ताथेई गतमे गत उपजावे ll 1 ll
बनी श्रीराधावल्लभ जोरी उपमाको दीजै कोरी, लटकत कै बांह जोरी रीझ रिझावे l
सुरनर मुनि मोहे जहा तहा थकित भये मीठी मीठी तानन लालन वेणु बजावे ll 2 ll
अंग अंग चित्र कियें मोरचंद माथे दियें काछिनी काछे पीताम्बर शोभा पावे l
‘चतुर बिहारी’ प्यारी प्यारा ऊपर डार वारी तनमनधन, यह सुख कहत न आवे ll 3 ll 

साज - “द्वे द्वे गोपी बीच बीच माधौ” अर्थात दो गोपियों के बीच माधव श्री कृष्ण खड़े शरद-रास कर रहें हैं ऐसी महारासलीला के अद्भुत चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद लट्ठा की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को मलमल का श्वेत छाप का सूथन, काछनी,पीताम्बर तथा चोली धरायी जाती है. ठाड़े वस्त्र श्वेत भातवार के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का  श्रृंगार धराया जाता है. हीरे एवं मोती सर्व आभरण धराये जाते हैं.

 श्रीमस्तक पर हीरे का जड़ाव का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. आज चोटीजी नहीं धराई जाती हैं.
कस्तूरी, कली आदि सभी माला धरायी जाती हैं
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.पट श्वेत व गोटी मोर की आती है.

ભક્તિના બે પ્રકાર છે.

ભક્તિના બે પ્રકાર છે.

 મુખારવિંદની ભક્તિ અને ચરણારવિંદની ભક્તિ. મુખારવિંદની ભક્તિમાં સર્વ સમર્પણ થતું હોવાથી આ ભક્તિ ઉગ્રભક્તિ છે. શ્રી મહાપ્રભુજીની કૃપાથી આ ભક્તિમાં પ્રભુના અધરામૃતની પ્રાપ્તિ દ્વારા સાક્ષાત સંબંધ થાય છે, આ ભક્તિમાં આર્તિ-તાપ- વિરહભાવ જરૂરી છે. આ ભક્તિમાં સર્વાત્મભાવ અને દીનતા એ જ મુખ્ય સાધનરૂપ અને ફળરૂપ છે.

બીજા પ્રકારની ભક્તિ કે સેવા જે ચરણારવિંદની છે. ચરણારવિંદની ભક્તિ ધર્મ કરતાં ધર્મવિશિષ્ટ છે જેનાથી શ્રી પ્રભુની પ્રાપ્તિ નિશ્ચિત છે. જેના વડે સાયુજ્ય ફળ મળે છે. પરંતુ આ ભક્તિમાં વિરહતાપ ઓછો હોવાથી ચરણારવિંદની ભક્તિ શીતળ કહેવાય છે. આ ભક્તિમાં શરણાગતિ મુખ્ય છે.

ભક્તિમાં નડતા પ્રતિબંધોમાં મદ, લોભ, લૌકિક કામનાઓ અને દુ:સંગ મુખ્ય છે. જેને દૂર કરવા માટે કામ, ક્રોધ લોભનો ત્યાગ કરી ભગવદ્દીયોનો સંગ કરી દ્રઢ ભગવદ આશ્રય લેવો અનિવાર્ય છે, અને સાથે સાથે શ્રીજીને સમર્પિત કરેલ ભોજનની પ્રસાદી લઇ જીવનમાં સંતોષ અને વૈરાગ્ય રાખવો અને તેમજ પ્રભુ દ્વારા મળતા દંડને શ્રી પ્રભુની કૃપાનું દાન ગણી લેવું.

Monday, 28 September 2020

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल त्रयोदशी

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल त्रयोदशी
Tuesday, 29 September 2020

आज के मनोरथ-

प्रातः स्याम घटा

सायं स्याम बंगला को मनोरथ 

शयाम ही सुन्दर श्याम ही अलकें 
श्याम बनी बेनी अति भारी।
श्याम ही भ्रोंह सोहनी बांकी
श्याम ही नेनन अंजन सारी।।
शयाम कपोलन शयाम ड़िठौना 
शयाम ओढे कामरिया कारि।
शयाम दृगन के श्याम हैं तारे 
शयाम सुन्दर गोविन्द गिरिधारी।।

विशेष-अधिक मास में आज श्रीजी को स्याम घटावत शृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

माई मेरो श्याम लग्यो संग डोले l
जहीं जहीं जाऊं तहीं सुनी सजनी बिनाहि बुलाये बोले ll 1 ll
कहा करो ये लोभी नैना बस कीने बिन मोले l
‘हित हरिवंश’ जानि हितकी गति हसि घुंघटपट खोले ll 2 ll 

स्यामा स्याम आवत कुंज महल ते रंगमगे-रंगमगे ।
मरगजी वनमाल सिथिल कटि किंकिन, अरुन नैन मानौं चारौ जाम जगे ।।१।।
सब सखी सुघराई गावत बीन बजावत, सब सुख मिली संगीत पगे ।
श्रीहरिदास के स्वामी स्याम कुंजबिहारी  की कटाक्ष सों कोटि काम दगे ।।२।।

साज – श्रीजी में आज श्याम रंग की मलमल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर श्याम बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्याम मलमल का पिछोड़ा ( चित्र में सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी) धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी श्याम रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण हीरा के धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर श्याम रंग की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, रुपहरी दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं. एक हार पंचलड़ा धराया जाता है.
हरे रंग के पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. हीरा की हमेल भी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में चांदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
 पट श्याम व गोटी चांदी की आती है.

Sunday, 27 September 2020

झारीजी का माहात्म्य

झारीजी का माहात्म्य 

श्री गुंसाईजी के सेवक एक स्त्री पुरुष ब्राह्मण गुजरात के दोनो निष्कंचनता से श्री ठाकुरजी की प्रेम पूर्वक सेवा करते।
एक दिन श्री गुंसाईजी के सेवक एक सेठ के घर स्त्री दर्शन करने गई। उस स्त्री ने वहा ठाकुरजी की सेवा में खूब वैभव देखा। दर्शन कर के स्त्री अपने घर आई। घर आकर स्त्री सेवा में नही पहुँची। जब बहार से पुरुष आया तब देखा की स्त्री अपरस कर सेवा में नही पहुँची। तब पुरुष ने स्त्री से पूछा की आज सेवा में क्यों नही पहुंचे तब स्त्री कहें आज आप ही सेवा में पहुँचो। पुरुष अपरस कर सेवा में पहुंचे। 
सेवा से निवृत्त होने के पश्चात् स्त्री के पास गये और पूछा, क्या हुआ तुम्हें आज सेवा में क्यों नही आये? तब स्त्री कहे की सेवा में तभी पहुचुंगी जब वैभव से सेवा करू। पुरुष कहे "भले वैभव से सेवा करना"।
दुसरे दिन सवेरे दोनों स्त्री पुरुष उठे। पुरुष ने स्त्री से कहा की एक काम करो यहा से एक कोस दूर एक वृक्ष है। वृक्ष के नीचे गड्ढा खोदना उसमे से खूब द्रव्य निकलेगा। एक टोकरी में द्रव्य को भरकर ले आना और खूब वैभव से सेवा करना। 
पुरुष के कहे अनुसार स्त्री उस वृक्ष के पास गई वृक्ष के नीचे से खूब द्रव्य निकला। स्त्री द्रव्य को एक टोकरी में भरने लगी। तभी वृक्ष में से एक वाणी प्रकट हुई, तुम्हें मुझे कुछ देना पड़ेगा तभी ये द्रव्य तुम यहा से ले जा सकती हो। स्त्री ने वृक्ष से कहा की क्या चाहिए तुम्हे? तब वृक्ष कहें की मुझे तुम एक झारीजी का फल दो तभी ये टोकरी भरकर द्रव्य तुम यहा से ले जा सकती हो। स्त्री कहें की झारीजी का फल तो में तुम्हें कभी भी नही दे सकती। वृक्ष कहें अधिक हो वो तुम रखना कम हो वो मुझे देना। अब तुम ही सोचो की कितनी झारीजी भरते हो तुम? वृक्ष की ये वाणी सुनकर स्त्री ने द्रव्य वही छोड़ दिया और अपने घर गई। घर जाकर उसने सारी बात पुरुष को कही।
तब पुरुष ने कहा की निष्कंचनता से झारीजी भरे सेवा पहुचे तो इसके फल की क्या कहनी? एक एक झारीजी का फल 100 अश्वमेघ यज्ञ के फल से भी कई अधिक है। अब तू ही बता झारीजी का फल कितना और द्रव्य कितना?
पुरुष की ये बाते सुनकर स्त्री ने कभी द्रव्य की कामना नही करी और मन में नित्य झारीजी भरने का संकल्प किया। 
स्त्री का झारीजी भरने की सेवा में ऐसा मन लगा की ठाकुरजी उसे साक्षात् सानुभाव जताने लगे। इस तरह स्त्री पुरुष सदा निष्कंचनता से निसाधन दीन भाव से सेवा करते और प्रभु की कृपा का आनंद लेते। सो स्त्री पुरुष श्री गुंसाईजी के ऐसे कृपापात्र भगवदीय हते। 
श्यामसुन्दर श्री यमुने महारानी की जय।

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल द्वादशी

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल द्वादशी
Monday, 28 September 2020

आज के मनोरथ-

राजभोग में बंगला

शाम को फूल की मंडली 

विशेष-अधिक मास में आज श्रीजी को दोहरा मल्लकच्छ का श्रृंगार धराया जायेगा.

मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) से बना है. 
ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह बालभाव का श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आशावरी)

तेरे लाल मेरो माखन खायो l
भर दुपहरी देखि घर सूनो ढोरि ढंढोरि अबहि घरु आयो ll 1 ll
खोल किंवार पैठी मंदिरमे सब दधि अपने सखनि खवायो l
छीके हौ ते चढ़ी ऊखल पर अनभावत धरनी ढरकायो ll 2 ll
नित्यप्रति हानि कहां लो सहिये ऐ ढोटा जु भले ढंग लायो l
‘नंददास’ प्रभु तुम बरजो हो पूत अनोखो तैं हि जायो ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में श्री गिरिराज-धारण की लीला के सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई धरायी जाती है. पिछवाई में श्रीकृष्ण एवं बलदेवजी मल्लकाछ टिपारा के श्रृंगार में हैं एवं नंदबाबा, यशोदा जी एवं गोपियाँ प्रभु के सम्मुख हाथ जोड़ कर खड़े हैं. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज एक आगे का पटका लाल एवं पिला लहरियाँ का एवं मल्लकाछ तथा दूसरा कंदराजी का हरा एवं सफ़ेद लहरियाँ का पटका तथा मल्लकाछ धराया जाता है. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को श्री कंठ के शृंगार छेड़ान के धराए जाते हे बाक़ी श्रृंगार भारी धराया जाता है. 
पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर टिपारा का साज धराया जाता है जिसमें लाल रंग के दुमाला के ऊपर सिरपैंच, मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरे कतरा और बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. चोटीजी नहीं धरायी जाती.
कमल माला धरायी जाती है.
श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी  धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी चांदी की बाघ-बकरी की आती है.

'શ્રી યમુના મહારાણી જી નું મહત્વ'

'શ્રી યમુના મહારાણી જી નું મહત્વ'

એક સમય ની વાત છે શ્રાઘ્ઘ પक्ष માં અમાસ ના દિવસે વજવાસી ઓ પ્રાત:કાળે પિતૃતર્પણ કરવા યમુનાજીના કિનારે બા્હ્મણો ને લઈ ને ગયા છે. 

તે સમયે રાઘાકૃષ્ણ , સખી ઓ તથા ગોવાળિયા ઓ પણ યમુનાજીના કિનારે પઘાયૉ છે.

નંદ બાબા એ શ્રી કૃષ્ણ ને કહ્યુ કે યમુનાજીના કિનારે જે માટીના પિંઙ બનાવી ને મૂક્યા છે તે યમુનાજીમા પઘરાવાે .

જેવા શ્રી કૃષ્ણ પિંઙ યમુનાજીમા પઘરાવવા ગયા કે તે પિંઙ લેવા અનેક હાથ બહાર નીકળ્યા. તે જોઈને વૃજવાસી  ઓ આશ્ચયૅ ચકિત થઇ ગયા . 

ત્યારે પ્રભુ શ્રી કૃષ્ણે યમુનાજીને કહ્યું
 હું આમાંથી  કાેને પિંઙ અપૅણ કરૂં ?
 આ તાે ઘણાં બધાં છે ત્યારે યમુનાજી અે કહ્યું હે પ્રભુ વૃજવાસી ઓ એ જ્યાર થી રાઘાકૃષ્ણ નુ શરણું ગ્રહણ કયુૅ છે ત્યારથી તેમના પિતૃઓ તો અક્ષર ઘામ માં પહોંચી ગયા છે.
 
જેના કુળમાં જાે અેક જીવ રાઘાકૃષ્ણ નું શરણ ગ્રહણ કરે તો તેની 71 પેઢી ઓ સ્વગૅ માં જઈ ને વસે છે તેમાં સંશય નથી.

વ્રજવાસી ઓના કુળમાં તાે કાેઈ પિંઙ લેવા વાળું છે જ નહિ.ત્યારે પ્રભુએ કહ્યુંકે  આ બધા કાેણ છે? 

ત્યારે શ્રી યમુના મહારાણી કહે છે કે આ બધા મારા ભાઈ ના (યમરાજ) ગામ વાળા છે.

તેઓ તમારા હાથે પિંઙ લેવા આવ્યા છે જેથી તેમનો જન્મ મરણ નાે ફેરાે દુર થાય. ત્યારે પ્રભુ એ ક્હયુ તેમને કાેણે ચેતાવ્યા?

ત્યારે યમુનાજી કહે છે કે મેં ચેતાવ્યા

ત્યારે પ્રભુએ કહ્યું કે તમે મારા સાચા સ્વરૂપ ને જાણો છો આ જગત માં તમે ખુબ પવિત્ર કહેવાશો ....
કહો તમને શું વરદાન આપું ? 

યમુનાજી કહે છે કે મારો અંગીકાર કરો . 
ત્યારે પ્રભુ કહે છે કે હું તમારો અંગીકાર કરું છું અને વરદાન આપું છું કે 

વ્રજ મંડળના શ્રીયમુનાજી છે તેમાં 
અક્ષરાતીત નો આવેશ આવશે 
અને તમે શ્રીરાઘે ની જેમ
મહારાણી જી ની સમાનતા એ પુજનીય કહેવાશો

અને જ્યારે હું દ્રારકા નો રાજા બનીસ ત્યારે ભગવાન વિષ્ણુ આવશે..  ત્યારે તમને મારી પટરાણી બનાવીશ આમ પ્રભુ એ યમુનાજી ને વરદાન આપ્યું..  

હું આજ્ઞાના કરું છું કે આ વ્રજ મંડલ મા યમુનાજીના કિનારે કોઈ પિંઙ દાન કે શ્રાઘ્ઘ નહીં સરાવે અને જે કોઈ આ યમુનાજીમા સ્નાન કરશે તેને પોતાના પિંઙ લેવાની જરૂર નહી પડે અને જે મારુ યુગલ સ્વરૂપનું (રાઘાકૃષ્ણ) શરણું ગ્રહણ કરશે તેમના કુળમાં કોઈ ને પિતૃતર્પણ, પિંઙદાન ન કે શ્રાઘ્ઘ કરવાની જરૂર નહી પડે...

બોલો શ્રી રાઘાકૃષ્ણ કી જય
શ્રી યમુના મહારાણી કી જય

Saturday, 26 September 2020

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल एकादशी

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल एकादशी
Sunday, 27 September 2020

आज के मनोरथ-

राजभोग में कमल की मंडली 

शाम को ‘दानगढ़ मानगढ़’ का मनोरथ

विशेष-अधिक मास में आज श्रीजी को लाल छाप का मुकुट काछनी का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

मुकुट की छांह मनोहर कीये l
सघन कुंजते निकस सांवरो संग राधिका लीये ll 1 ll
फूलन के हार सिंगार फूलन के खोर चंदन की कीये l
'परमानंद दास'को ठाकुर ग्वालबाल संग लीये ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में श्री यमुना जी एवं प्रभु की सेवा में पधारती गोपियों के चित्रांकन की सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज मलमल का लाल छाप का सूथन, काछनी, गाती का पटका धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र श्वेत भातवार के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर सिलमा सितारा की मुकुट टोपी के ऊपर मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की शिखा (चोटी) धरायी जाती है.
श्रीकंठ में कली, कस्तूरी व कमल माला धरायी जाती है. 
श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लहरियाँ के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी नाचते मोर की आती है.

કદલીવન કરત વિહાર

કદલીવન કરત વિહાર

પુરાણોની કથા અનુસાર હાથીને ચાર પાંખો હતી. હાથીઓ પણ આકાશમાં ઉડતા હતા. ગગન વિહાર કરતા કરતા જ્યારે હાથીઓ થાકી જતા ત્યારે પક્ષીઓની જેમ ઘરતી પર ગમે ત્યાં ઉતરી જતા કોઈના ઘર પર, ખેતરોમાં વગેરે... આમ હાથીઓના આતંકથી ઘરતીવાસીઓ ત્રાહીમામ પોકારી ઉઠ્યા.
ધરતીવાસીઓએ દેવરાજ ઈન્દ્રની ઉપાસના કરી, ઈન્દ્રએ નારાયણની ઉપાસના કરી. નારાયણ પ્રસન્ન થયા. પ્રભુએ પોતાના સુદર્શન ચક્રથી હાથીઓની ચારે ચાર પાંખો કાપી નાંખી. હાથીઓ ખુબ નિરાશ થયા, ત્યારે નારાયણે હાથીઓની મુખ્ય મોટી બે પાંખો એક પર્ણ વિનાના વૃક્ષને આપી. આ વૃક્ષ એટલે ‘કદલી વૃક્ષ’ : ‘કેળ’. જ્યારે બીજી બે નાની સુંદર પીંછાઓ વાળી પાંખો હતી તે મયુર નામના પક્ષીને આપી.પછી હાથીને વરદાન આપ્યું કે તારી આ પાંખોનો જ્યાં સુધી મારા પુજનમાં ઉપયોગ નહીં થાય ત્યાં સુધી મારી પુજા કે સેવા પૂર્ણ થશે નહીં. આથી કેળના પાન વગર કોઈ પણ શુભકાર્ય પૂર્ણ થતું નથી, વળી પુર્ણપુરુષોત્તમ સ્વરૂપે જ્યારે પ્રભુ શ્રીકૃષ્ણ રૂપે અવતર્યા ત્યારે તેમણે પોતાના શ્રીમસ્તક પર મયુરપીંછ ધારણ કર્યુ. હાથીના આ બલિદાનને જોઇ માતા લક્ષ્મી પણ પ્રસન્ન થયા. તેમણે પણ તેને વરદાન આપ્યું કે હાથીની સેવા જે કોઈ પણ કરશે તેના પર મારી વિશેષ કૃપા રહેશે.

ગોકુળ-વૃંદાવનમાં પણ કેળના વન આવેલા છે. જ્યાં ગોપ-ગોપીઓ સાથે પ્રભુએ અનેક ગૂઢલીલાઓ કરી છે. હાથીની પાંખો એટલે કેળના પાનની છાંયા પ્રભુને પ્રિય છે,કેળના પાન પાથરીને તેમાં પ્રભુએ અનેકવાર રાજભોગ આરોગ્યા છે આ તમામ લીલાઓની સ્મૃતિમાં આજે કદલીવનનો મનોરથ કરવામાં આવ્યો છે.

જય શ્રીકૃષ્ણ

Friday, 25 September 2020

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल दशमी

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल दशमी
Saturday, 26 September 2020

आज के मनोरथ-

राजभोग में बगला का मनोरथ

शाम को ‘जल को गई सुघट नेह भर लाई’ मनोरथ

जमुनाजल घट भर चली चन्द्रावल नार ।  
मारग में खेलत मिले घनश्याम मुरार ।।१।।
नयनन सों नेना मिले मन हर लियो लुभाय ।  
मोहन मूरति मन बसी पग धर्यो न जाय ।।२।।
तब की  प्रीती प्रकट भई यह पहली ही भेंट ।  
परमानन्द ऐसी मिली जैसे गुड़ में चेट ।।३।।

विशेष-अधिक मास में आज श्रीजी को लाल सफ़ेद लहरियाँ के धोती पटका एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

जमुना जल भरन गई ।
देखत जीये सकुच रही पनघट पर देख्यों नंद दुलारो ।।१।।
दुपहरी झनक भई तामें आये पिय मेरे मैं ऊठ कीनो आदर । 
आँखे भर ले गई तनकी तपत सब ठौर ठौर बूंदन चमक ।।२।।
रोम रोम सुख संतोष भयो गयो अनंग तनमें न रह्यो ननक । 
मोहें मिल्यो अब धोंधी के प्रभु मिट गई विरह की जनक ।।३।।

साज – आज श्रीजी में लाल सफ़ेद लहरियाँ की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सफ़ेद लहरियाँ की ढोती एवं राजशाही पटका धराया जाता है. दोनों वस्त्र सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र फ़िरोज़ी रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फ़ीरोज़ा के सर्व-आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर गोल पाग के ऊपर जड़ाऊ सुनहरी लूम व तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में एक हार एवं श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरियाँ के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी मीना की आती हैं.

ટેરાની ભાવના

ટેરાની ભાવના

મંગલભોગ, શૃંગારભોગ, રાજભોગ વિગેરે ભોહ ધર્યા પછી ટેરો (પડદો) કરવામાં આવે  છે. આ ટેરો માયારુપ છે. માયા બે પ્રકારની છે. 

૧. અવિધારુપ માયા - જે આપણું મન પ્રભુની સેવામાં લાગવા દેતી નથી. 
૨. વિધારુપ માયા. - જે માયામાં સહાયક છે.

(૧) ભોગ ધરતાં ટેરો કરીએ છીએ તે વિધારુપ માયા છે, ભોગ સામગ્રી સ્વરુપાત્મક છે અને પ્રભુ ભોગ કર્તા છે. તેથી પ્રભુ એકાંતમાં ભોગ આરોગી શકે તેવી ભકતની મનોકામના ભાગરુપે માયારુપ ટેરો કરવામાં આવે છે.

(૨) વાત્સલ્યમાં ટેરો કરવાથી કોઇની નજર (દ્રષ્ટિ) લાગે નહિં. કુમારિકાનાભાવમાં શ્રીસ્વામિનીજી પધાર્યા છે, તેવી રીતે બાલભાવથી પ્રભુને શ્રીયશોદાજી  જે તે સમયના ભોગ ધરે છે. આ લીલાને ગુપ્ત રાખવા માટે ટેરો માયારુપે માનીને કરવામાં આવે છે.

https://m.facebook.com/PushtiSaaj/

Thursday, 24 September 2020

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल नवमी

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल नवमी
Friday, 25 September 2020

आज के मनोरथ-

इलाइची की मंडली का मनोरथ

विशेष-अधिक मास में आज श्रीजी को श्वेत मलमल पर लाल हाशिया का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

बैठे हरि राधा संग कुंजभवन अपने रंग
कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई l
मोहन अति ही सुजान परम चतुर गुन निधान
जान बुझ एक तान चूकके बजाई ll 1 ll
प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुन प्रवीन 
अति नवीन रूप सहित, वही तान सूनाई ll 2 ll
‘वल्लभ’ गिरिधरन लाल रिझ दई अंकमाल
कहत भले भले जु लाल सुंदर सुखदाई ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज लाल रंग की चोफूली चूंदड़ी की सुनहरी ज़री की तुईलैस की पठानी किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है. स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज श्वेत मलमल पर लाल हाशिया का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के होते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना तथा सोने के सर्वआभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल खिड़की की श्वेत छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी लूम तथा मोर चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
 सफेद एवं पीले पुष्पों की सुन्दर दो मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं दो वैत्रजी धराये जाते हैं.
पट श्वेत व गोटी मीना की आती है.

શૈયાજીની ભાવના

શૈયાજીની ભાવના

શૈયા મુખ્ય સ્વામિનીજી રૂપ છે. બન્ને બાજુના તકિયા ભક્તના હસ્ત રૂપ છે. શૈયાનું વસ્ત્ર ભક્તના હૃદય રૂપ છે. અથવા શૈયા ભક્તનું સ્વરૂપ પણ કહેવાય છે. ‘‘સકલ વ્રજમાં પોઢિયા, વહાલો કરે વિવિધ રસ સુખ દાનજી.’’ (શ્રી વલ્લભાખ્યાન) અને ચાર યૂથપતિના ભાવથી ચાર પાયા છે. ડાબી બાજુનો તકિયો શ્રીસ્વામિનીજીના ભાવથી છે. જમણી બાજુનો તકિયો શ્રી ચંદ્રાવલિજીના ભાવનો છે. શ્રીમસ્તકનો તકિયો શ્રીયમુનાજીના ભાવથી છે. તથા દુલીચા બધી સખીજનોના ભાવથી બિછાવવામાં આવે છે.
 
શૈયાની કસ પ્રબોધિનીથી રામનવમી સુધી બાંધવામાં આવે છે. તે એટલા માટે કે પ્રબોધિનીથી શીતકાલ શરૂ થાય છે. અને શીતકાલમાં વિરહ ભીતર હોય છે. તેથી કસ બાંધવાની જરૂર રહેતી નથી. કારણ કે અંગથી અંગ આપ મેળેજ ચીટકી રહે છે, અને ઉષ્ણકાલમાં વિરહ બહાર પ્રગટે છે. કારણ કે શૈયા ભક્ત રૂપ છે, તેથી વિરહ બહાર પ્રગટે છે, તેથી ભક્તો કસના મિષથી પ્રભુને ચારે બાજુથી ઘેરી લ્યે છે. તેથી શીતકાલ શ્રીઠાકુરજી તથા ભક્તો માટે પરમ સુખદાઈ છે.
 
શીતકાલમાં તેજાનાવાળી સામગ્રી પણ અધિક આરોગાવવામાં આવે છે. બધી સામગ્રી ભક્ત સ્વરૂપ છે. તેમાં એ ભાવ છે કે, અમારા ઉચ્છલિત ભાવરૂપ ગરમ સામગ્રી દ્વારા અમારો અંગીકાર કરો, એમ ભક્ત વિનતી કરે છે. શૈયાજી તથા સામગ્રીનો આ ભાવ વિચારવો. નિકુંજલીલામાં તમામ પ્રકારની સાહિત્ય-સામગ્રી, કુંજ-નિકુંજ, પશુ-પક્ષી, આદિ બધું જ દિવ્ય અને સ્વરૂપાત્મક છે.

Wednesday, 23 September 2020

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल अष्टमी

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल अष्टमी
Thursday, 24 September 2020

आज के मनोरथ-

राजभोग में शीशम का बंगला

शाम को गौचारण का मनोरथ

विशेष-अधिक मास में आज श्रीजी को पिले मलमल पर गुलाबी छाप का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर ग्वाल पगा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

नंदलाल चले गौचारण कूं, ग्वालिन कूं गोबर हेलि उचाई।।
बाकी सास अरु नंद निहार रही, इतराय रही है जे कैसी लुगाई।।
याकै रूप को जोबन मतवारौ, अंग अंग अनोखी हरषाई।।
श्याम गोरी बरसाने की, जापै रीझ रह्यौ यह कारो कन्हाई।।

साज – आज श्रीजी में गौचारण लीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है. स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज पिले रंग की मलमल पर गुलाबी छाप का का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण मिलमा धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर पिले रंग के ग्वालपाग (पगा) के ऊपर सिरपैंच, लूम, पगा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धराये जाते हैं. 
गुलाबी एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी वेत्र धराये जाते हैं.
पट पिला व गोटी चाँदी की बाघ बकरी की आती है.

પુષ્ટિભક્તિ એટલે કૃષ્ણ ને વ્હાલ કરવું

'પુષ્ટિભક્તિ' એટલે 'કૃષ્ણ ને વ્હાલ કરવું'.
   કૃષ્ણ ને પામવા નો એક જ ઉપાય - 'કૃષ્ણ ને વ્હાલ કરો'.
   'ભક્તિ' નો સારો અર્થ જ છે 'પ્રેમ' અર્થાત્ 'વ્હાલ'.
   'પુષ્ટિમાર્ગ' એટલે કૃષ્ણ ને વ્હાલ કરવાનો માર્ગ.
   કૃષ્ણ જ એક એવો દેવ છે જેના પર સહજ વ્હાલ આવે !
   તેના પ્રત્યેક ચરિત્ર પર 'વ્હાલ' જ આવે, ન ગુસ્સો કે અન્યથા ભાવ !
   આપણે માત્ર મુગ્ધ જ થઈ જઈએ.
   કેમકે એનું સર્વ કાંઈ મધુર જ લાગે.
   માટે જ શ્રીવલ્લભાચાર્યજી કહે છે - "મધુરાધિપતેરખિલં મધુરં".
   તેઓ કૃષ્ણ માટે વિશેષણ મુકે છે - 'અદ્ભત કર્મ કરવાવાળા'.
   ભક્ત કવિ કહે છે - ગ્વાલન 'છછીયા ભર છાછ ને પાંચ નચાવે'.
   છે કોઈ અન્ય દેવ - આટલા સરલ ! આટલા નિખાલસ !
   આમ તો છે ત્રિભુવન નો નાથ, પરંતુ સ્નેહપૂર્વક આપણા ઘરમાં પધરાવો તો ગોખલામાં બિરાજી આપણે આધિન થઈને રહે. સેંકડો પ્રમાણ મલશે.
   તેથીજ શ્રીમહાપ્રભુજીએ નામ આપ્યું છે - "ભક્ત વશ્યો".
   કૃષ્ણ માખણ ચોરે - ગોપીને ગુસ્સો નથી આવતો, એ તો ઈચ્છે છે - કૃષ્ણ રોજ માખણ ચોરવા આવે !
   કૃષ્ણ રમતમાં અંચાઈ કરે, ગોપો એની સાથે રમવાનું ત્યજી દેતાં નથી.
   બ્રહ્માજીએ પરિક્ષા કરવા ગોપ-બાલકો, વાછરડા ચોરી લીધા, કૃષ્ણે એમના રૂપ ધારણ કરી લીધાં. બ્રહ્માજીને ક્ષમાયાચના કરવી પડી.
      કૃષ્ણ માટી ખાવા છતાં ખોટું બોલે, યશોદાજી મુખ-દર્શન કરી સ્તબ્ધ થઈ જાય.
   શ્રીમહાપ્રભુજી કૃષ્ણ માટે કહે - "નિજેચ્છાત કરિષ્યતિ", એજ વિષ્ણૂ સ્વરૂપે દુર્વાસાને લાચાર બની કહે - "અહં ભક્ત પરાધિનો".
   ભીષ્મની પ્રતિજ્ઞા સાચી પાડવા, રથનું પૈડું ઉપાડી લીધું.
   દુર્યોધન ના છપ્પનભોગ છોડીને વિદુરજીની ભાજી આરોગી - વ્હાલને કારણે જ સ્તો !
   જેને જાતે મારે તેને ય મુક્તિ આપે, મુક્ત ન કરવો હોય તો 'કાલયવન' પેઠે મુચકુંદ ની દૃષ્ટિથી ભસ્મ કરી દે.
   વચન પાળવા શિશુપાલ ની સો ગાળો સહન કરે, અને છતાં એ મસ્તક ઉડાવીને મોક્ષ પણ આપે. કંસ મામા હોવા છતા એના દુષ્કૃત્યો માટેં યમરાજ ને એની ભેટ આપતાં ન અચકાય.
   ધોબીની અવળ વાણી ના કારણે એને મોતને ઘાટ ઉતારે પણ માલા પહેરાવનાર માળીને માગ્યા કરતાં વધુ દે.
   કંસના રંગમંડપ માં ત્યાં હાજર જુદી જુદી વ્યક્તિઓ ને એમના હ્રદયના ભાવો અનુસાર વિભિન્ન અનુભૂતિ કરાવી અલગ અલગ રસ પ્રકટ કરે.
   રૂક્મિણીનુ હરણ કરી પત્ની બનાવે, છતાં મશ્કરીમાં કહી દે "અમે તો ઉદાસીન છીએ, અમને પત્ની પુત્રાદિની ચાહ નથી. તેમછતાં તે મૂર્છા પામતાં તેને ઉઠાવી ને મુખ પોંછે, આલિંગન દે.
   પોતાને માથે કલંક મિટાવવા સ્યમંતક મણિ મેળવવા જાંબુવાનની ગુફામાં  જઈ ને યૂદ્ધ કરી મણિ તેમજ જાંબુવતિને પત્ની રૂપે મેળવે.
   ત્રેતા માં તપ કરતાં ઋષિઓએ મોહિત થવાથી રમણની ઈચ્છા કરી, જે કૃષ્ણે દ્વાપરમાં એમને વ્રજમાં ઋષિરૂપા ગોપીજનો રૂપે જન્માવી રાસ દ્વારા પૂર્ણ કરી.
     વેણુનાદ દ્વારા અધરસુધા નું પાન કરાવી ગોપીજનો ને નટવર વત્ - 'નટવત્' તેમજ 'વરવત્' સંયોગ અને વિપ્રયોગ નો અનુભવ કરાવે.
   'રાસ' દ્વારા સ્વરૂપાનંદ નો અનુભવ કરાવી અંતમાં "ન પારયે" કહી બ્રહ્માજીના આયુષ્યથી પણ ગોપીજનોના ઉપકારનો બદલો ચુકવવાની પોતાની અસમર્થતા કેવલ 'કૃષ્ણ' જ  નિખાલસતાથી પ્રકટ કરી શકે !
   કૃષ્ણ ના કેટકેટલા ચરિત્રો ! શેષનાગના સહસ્ત્ર મુખ થી વર્ણવી ન શકાય એટલાં !
   આવા દિવ્ય વ્યક્તિત્વ ધરાવતા તત્ત્વને જ કહી શકાય_
   "કૃષ્ણં વંદે જગદગુરું".
   આવા કૃષ્ણ પ્રત્યે કોને વ્હાલ ન આવે !
   અને જેને એમના પ્રત્યે વ્હાલ આવે, જેઓ સદાનંદ કૃષ્ણ ને ગોપીજનો ની માફક એમનાં આનંદનો અનુભવ કરાવી શકે, તેમને માટે કૃષ્ણ ઋણી બની અવશ્ય કહે - "ન પારયે".  તમને છોડી ક્યાંય ન જાય !
   એમને શું 'કૃષ્ણકૃપા' નો અનુભવ થયા વિના રહે !
   માટે જ મહાપ્રભુ શ્રીવલ્લભાચાર્યજીએ ભક્તિની વ્યાખ્યા કરતાં ભગવાન માં 'સુદૃઢ સર્વતોધિક સ્નેહ' ને મહત્વપૂર્ણ બતાવ્યું છે.
   કૃષ્ણ ની 'પુષ્ટિ' - કૃપા નો અનુભવ કરવા માટે કૃષ્ણ પ્રત્યે નિશ્ચલ પ્રેમ - નાના બાળક પ્રત્યે આવે એવું સહજ વ્હાલ અનિવાર્ય ગણાય !
   તદર્થ જ - 'પુષ્ટિભક્તિમાર્ગ' એટલે કૃષ્ણ ને પ્રેમ કરવાનો, સ્નેહથી ભિંજવવાનો, એના પર વ્હાલ વરસાવવા નો માર્ગ.
   ભક્તના નિઃસ્વાર્થ વ્હાલ માં વહી જનાર કૃષ્ણ કૃપા ક્રર્યા વિના રહે ખરાં !.
   શર્ત માત્ર એકજ - નક્કી કરો - "કૃષ્ણ એજ જીવન નું તાત્પર્ય".
🙏 જય શ્રીકૃષ્ણ🙏

Tuesday, 22 September 2020

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल सप्तमी

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल सप्तमी
Wednesday, 23 September 2020

आज के मनोरथ-

राजभोग में चाँदी का बंगला

शाम को ‘झूलत सुरंग हिंडोरे राधा मोहन को मनोरथ’ चाँदी का हिन्दोलना

विशेष-अधिक मास में आज श्रीजी को धोती, पटका और दुमाला पर सेहरा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

दिन दुल्है मेरो कुंवर कन्हैया l 
नित उठ सखा सिंगार बनावत नितही आरती उतारत मैया ll 1 ll
नित उठ आँगन चंदन लिपावे नित ही मोतिन चौक पुरैया l
नित ही मंगल कलश धरावे नित ही बंधनवार बंधैया ll 2 ll
नित उठ व्याह गीत मंगलध्वनि नित सुरनरमुनि वेद पढ़ैया l
नित नित होत आनंद वारनिधि नित ही ‘गदाधर’ लेत बलैया ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज संकेत वन में विवाह लीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - श्रीजी को आज पतंगी मलमल के  धोती एवं राजशाही पटका धराये जाते हैं.
ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को प्रभु को आज मध्य (घुटने तक) का श्रृंगार धराया जाता है. सोना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर पतंगी मलमल के दुमाला के ऊपर हीरा का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
 दायीं ओर सेहरे की मीना की चोटी धरायी जाती है.
श्रीकंठ में कली, कस्तूरी व कमल माला धरायी जाती है. 
 श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में सोना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट पतंगी व गोटी सोने की आती है.

Gadiji, Takiyaji with cotton cover

One of our special creation
Gadiji, Takiyaji with cotton cover starting from Rs.601.

Available in all size.

પુષ્ટિ માર્ગ માં નામ સ્મરણનો મહિમા

આજનો સત્સંગ

પુષ્ટિ  માર્ગ માં  નામ  સ્મરણનો  મહિમા  છે?

હા.  પ્રભુનું  નામ  લેવુ  એટલે  પ્રભુને  સંદેશો  મોકલવો.

નામ  સ્મરણનો  મહિમા  મોટો  છે.
એનું  કારણ  એ છે કે  નામ  જેના  મુખમાં   હશે  તે  મુખ  અપશબ્દ  નહિ  બોલે.

નામ  કાનમાં  જશે  તો  કાન  કોઈની  નીંદા  નહિ  સાંભલે.

નામ  આંખમાં  હશે  તો  આંખ  ભગવદ્  દર્શન  કરશે.

નામ  હાથમાં  હશે  તો   હાથ  કોઈનું  અહિત  નહીં  કરે.

નામ  કપાલે  હશે  તો  કોઈના  વિશે  ખરાબ  વિચારો  નહીં  આવે.

નામ  સ્મરણથી  અંતરનો  મેલ  ધોવાય  છે.

નામ  લેવા  ખાતર  લેવાનું  નથી.  તેમાં  વિશ્વાસનો  રણકો  હોવો  જોઈએ.

શ્રીગુંસાઇજી  અને  હરિરાયજી  પણ  નામ  સ્મરણ  કરતાં  હતા.

નામ  સ્મરણની  અસર  પશુ,  પક્ષી,  જલ,  સ્થળ  સર્વ  ઉપર  થાય  છે.

સવારમાં  પ્રભુનું  નામ  લેવુ  તે   સંકલ્પ  છે.  અને  રાતે  પ્રભુનું  નામ  લેવું  તે  સરવૈયું  છે.

નામ  સ્મરણ  નિયમિત  લેવું  જોઈએ.

પ્રભુનાં  નામ  સ્મરણથી  જ  દિવસની  શરૂઆત  કરવી  જોઈએ.

https://m.facebook.com/PushtiSaaj/

Monday, 21 September 2020

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल षष्ठी

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल षष्ठी 
Tuesday, 22 September 2020

आज के मनोरथ-

राजभोग में मख़मल का बगला

शाम को ‘फ़ूलत तन शोभित शृंगार’
(फूल के आभरण) का मनोरथ

विशेष-अधिक मास में आज श्रीजी को सुथन, फेंटा और पटका का श्रृंगार धराया जायेगा. 

श्रीजी ने अपने सभी भक्तों को आश्रय दिया है, मान दिया है चाहे वो किसी भी जाति या धर्म से हो. 
इसी भाव से आज ठाकुर जी अपनी अनन्य मुस्लिम भक्त ताज़बीबी की भावना से सूथन-पटका का श्रृंगार धराते हैं. यह श्रृंगार ताज़बीबी की विनती पर सर्वप्रथम भक्तकामना पूरक श्री गुसांईजी ने धराया था. 

ताज़बीबी की ओर से यह श्रृंगार वर्ष में छह बार धराया जाता है. भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी (गणेश चतुर्थी) के दिन यह श्रृंगार नियम से धराया जाता है. अधिक मास में ये शृंगार उपरोक्त के अलावा धराया जायेगा.

ताज़बीबी बादशाह अकबर की बेग़म, प्रभु की भक्त और श्री गुसांईजी की परम-भगवदीय सेवक थी. उन्होंने कई कीर्तनों की रचना भी की है और उनके सेव्य स्वरुप श्री ललितत्रिभंगी जी वर्तमान में गुजरात के पोरबंदर में श्री रणछोड़जी की हवेली में विराजित हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

ढाडोई यमुनाघाट देखोई ।
कहा भयो घर गोरस बाढयो और गोधन के घाट ।।१।।
जातपांत कुलको न बड़ो रे चले जाहु किन वाट ।
परमानंद प्रभु रूप ठगोरी लागत न पलक कपाट ।।२।।

साज - श्रीजी में आज केसरी रंग की मलमल पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी की धोरेवाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है और चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल जड़ी होती है.

वस्त्र - श्रीजी को आज चोफुली चुंदड़ी के किनारी के धोरा का सूथन और राजशाही पटका धराया जाता है. दोनों वस्त्र सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के होते हैं.

श्रृंगार - ठाकुरजी को आज छेड़ान का (हलका) श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण के धराये जाते हैं.

 श्रीमस्तक पर चोफुली चुंदड़ी के फेंटा का साज धराया जाता है जिसमें चोफुली चुंदड़ी के फेंटा के ऊपर सिरपैंच, बीच की चंद्रिका, कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में हीरा के लोलकबंदी लड़ वाले कर्णफूल धराये जाते हैं. 
कमल माला धरायी जाती है. श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में एक कमल की कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल रंग का व गोटी बाघ-बकरी की आती है.

उत्थापन पीछे आभरण बड़े करके फूलन के आभरण धराये जाते हैं और प्रभु को  विशेष भोग सामग्री आरोगाए जाते हैं.

पुष्टि पुरुषोत्तम की सेवा में इन तीन के बिना सेवा अधुरी है।

पुष्टि पुरुषोत्तम की सेवा में इन तीन के बिना सेवा अधुरी है।
1-झारी-चरणस्पर्श 2-माला-बीडा 3-श्रीगार-सामग्री।

( 1 ) झारी जी को स्वरुप जाने
झारी जी, बालभाव में श्री यशोदाजी को स्वरुप है, दुसरो श्री यमुनाजी को स्वरुप है,जो लाल वस्त्र है वो श्रीयमुनाजी की ओढ़नी है, तीसरो झारीजी याने वैष्णव को हृदय और जल यानि भाव-प्रेम है; वाके द्वारा ही पुष्टिजीव वैष्णव श्रीठाकुरजी कों लाड लडावेहै। और चरणस्पर्श करिवे सुं दिनता आवे भाव-प्रेम में वृद्धि होय,

( 2 ) माला - बीडा-सामग्री,
जो वैष्णव पुष्टिप्रभुन की सेवा कर रह्यो हैं, वह श्रीगार समय में पुष्पमालाजी अवश्य धरावे यासुं वृजगोपीजन प्रसन्न होय तो श्रीठाकुरजी भी प्रसन्न होय,बीडा आरोगायवे सों श्रीयुगलस्वरुप पुष्टिजीव के उपर प्रेमाद्रष्टिसों निहारि अधरसुधारस दान करे हैं,

( 3 ) श्रीगार -
वो समय को नाम है,वासमय फूलेलश्रीअंगमें धरावनो, स्नानादि करवाने,अंगवस्त्र करनो,प्रणालिकानुसार "आभरण-आभूषण"चरणारविंद सों श्रीमस्तक तक आभरण धरावे, फिर श्रीठाकुरजी कों पुष्पमाला सुंदर बनाय आरसी-दर्पण दिखावे, वो समय श्रीगार समय है।और सामग्री दुध घर, अनसखड़ी, नागरी,और सखडी सुंदर सिद्ध करी अपने श्रीठाकुरजी कों धरावे!या प्रकार झारी चरणस्पर्श, माला बीडा-श्रीगारसामग्री को भाव जानी श्रीठाकुरजी के सन्मुख रहे, तो श्रीमहाप्रभुजी की आज्ञा को पालन करतो भयो सदा रहे।
https://m.facebook.com/PushtiSaaj/

Sunday, 20 September 2020

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल पंचमी

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल पंचमी 
Monday, 21 September 2020

आज के मनोरथ-

राजभोग में मेघश्याम घटा

शाम को मेघश्याम बंगला

अधिक मास में आज श्रीजी को मेघश्याम पिछोड़ा मेघश्याम घटा वत श्रृंगार धराया जायेगा. 

साज – श्रीजी में आज मेघश्याम मलमल की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. खण्ड पाट गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर मेघश्याम बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज मेघश्याम मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जायेंगे.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. नीलम के सर्वआभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर मेघश्याम गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी लूम तथा मेघश्याम दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में नीलम के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
 सफेद एवं पीले पुष्पों की सुन्दर चार मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, स्याम मीना के वेणुजी एवं दो वैत्रजी धराये जाते हैं.
पट स्याम व गोटी चाँदी की आती है. 

પુષ્ટિ ચિંતન

પુષ્ટિ ચિંતન

(1) શ્રી મહાપ્રભુજીના ઠાકોરજી શ્રીનાથજી અને આપણા ઠાકોરજી શ્રી મહાપ્રભુજી. આપણે સેવા કરી શ્રી મહાપ્રભુજીને રીઝવીએ તો જ આપણા ઠાકોરજી શ્રીનાથજી આપણી સાથે વાતો કરે. સીધા શ્રીનાથજીને આપણે કદાપિ રીઝવી ના શકીએ.

(2)  જ્યારે શ્રી સ્વામિનીજી અલગ ન બિરાજતાં હોય, એટલે શ્રી ઠાકોરજીના સ્વરૂપમાં જ બિરાજતાં હોય ત્યારે “શ્રીજી” અને જ્યારે અલગ બિરાજતાં હોય ત્યારે “શ્રીનાથજી”
 
(3)  પુષ્ટિમાર્ગમાં શ્રી ઠાકોરજી દ્વિભુજ છે. જે સ્વરૂપો ચતુર્ભુજ છે તેમાં બે ભુજાઓ સ્વામિનીજીની છે. સહસ્ત્ર ભુજ પ્રસારી આપશ્રીએ જે અન્નકુટ આરાગ્યો છે, ત્યાં પણ આપશ્રી તો દ્વિભુજ છે, બાકીની ભુજાઓ ભક્તોની છે.
 
(4)    ચતુર્ભુજ સ્વરૂપમાં સ્વામિનીજીની બે ભૂજા માત્ર પ્રક્ટ દર્શન આપે છે બાકીનુ શ્રીઅંગ તિરોહીત રહે છે.
 
(5) સ્વરૂપાસકિત એ પુષ્ટિ માર્ગનો સિદ્ધાંત છે. માહાત્મ્ય વધારવું એ પુષ્ટિમાર્ગનો સિદ્ધાંત નથી.
 
(6) આપણા માથે જે સ્વરૂપ બિરાજતુ હોય તે સ્વરૂપમાં જો ન્યૂનતા જોઈ, તો આપણું બધું ધૂળમાં મળી ગયું એમ સમજવું.
 
(7) શ્રી મહાપ્રભુજી સેવક ઉપર સ્વરૂપ પધરાવી આપતી વેળાએ પંચામૃત કરાવી, ઝારી ભરી ભોગ ધરી પોતે પ્રસાદ લેતા આ પુરાવો પ્રત્યક્ષ છે કે શ્રી ઠાકોરજી સાક્ષાત છે, નહિતર આપશ્રી પ્રસાદ કેમ લે ? ફક્ત ત્યારે જ પ્રસાદ ન લેવાય કે જ્યારે અનાચાર દેખાતો હોય, અને જ્યાં અનાચાર હોય ત્યાં શ્રી ઠાકોરજી આરોગે નહિં, અને શ્રી ઠાકોરજીના આરોગે તો પછી આપણાથી કેમ લેવાય ?
 
(8) શ્રી ઠાકોરજીની બે શક્તિઓ છે, એક ઇચ્છાશક્તિ અને બીજી કૃપાશક્તિ. ઇચ્છાશક્તિથી સૌ જીવોમાં ભાગ્યનું નિર્માણ થાય છે જ્યારે કૃપાશક્તિથી જે ભોગ ભોગવવાના હોય છે તે અલ્પ સમયમાં ભોગવાવી દે છે અને જીવને પોતાના તરફ ખેંચે છે.
 
(9) એક જીવનો ઉદ્ધાર કરવા માટે તે જીવ જ્યાં હોય ત્યાં શ્રી ઠાકોરજી પધારે છે અને તેની સાથે તેવા થઈને રહે છે. જીવને બે જન્મનો અંતરાય હોય તો આપ પણ બે જન્મનો અંતરાય અંગીકાર કરે છે અને આપણી વચ્ચે તેટલા સમય સુધી આપણા જેવા થઈને બિરાજે છે અને આપણા થકી સેવા લે છે.
 
(10)  ઇન્દ્રે જે વૃષ્ટિ કરી તેને શ્રી ઠાકોરજીએ સેવા માની, કેમ કે આટલું બધું આરોગ્યુ, તો જલ પણ એટલું બધું જોઈએ ને ?
 
(11)    પ્રભુ તો જીવનું હિત જ કરી રહ્યા છે પણ દુર્ભાગ્યની વાત એટલી જ છે કે જીવને આ વાતની ગમ નથી.
 
(12)   આટલો આટલો પરિશ્રમ શ્રી ઠાકોરજીને પડે છે છતાંય આપ કશું ચિત્તમાં લાવતા નથી એ બધુ નિભાવી જાય છે તે શ્રી મહાપ્રભુજીની કાનીથી.
 
(13) શ્રી મહાપ્રભુજીની કૃપા વગર ક્રિયા વધે, પણ ભાવ તો ના જ વધે. ઠાકોરજી ભલે સાનુભાવ હોય પરંતુ શ્રી મહાપ્રભુજીની કૃપા વગર વ્રજલીલાનો અનુભવ તો ના જ થાય.
 
(14) જીવ પાસે ઠાકોરજીને બીજું શું નિવેદન કરવાનું હોય ? તે તો પોતાના પાપનો ભારો અને અપરાધો જ આગળ લાવીને ધરે છે અને અગ્નિસ્વરૂપે શ્રી મહાપ્રભુજી આ બધાં પાપોને તથા અપરાધોને ભસ્મ કરી નાખીને તે જીવને કંચન જેવો બનાવી શ્રી ઠાકોરજી સન્મુખ કરે છે.
 
(15) શ્રી ઠાકોરજીના શ્રીઅંગ ઉપર શ્રી રામચંદ્રજી કૌસ્તુભ સ્વરૂપે બિરાજે છે. શ્રી વામનજી ક્ષુદ્ર ઘંટિકા સ્વરૂપે બિરાજે છે અને શ્રી નૃસિંહજી વાઘનખ સ્વરૂપે બિરાજે છે.
 
(16)  શ્રી રણછોડલાલજી મહારાજે એક વાર એક માજીને પુછયું કે “તમારા પગ આટલા જાડા હાથીના પગ જેવા કેમ થઈ ગયા ? તો માજીએ કહ્યું, હું વારંવાર મારા લાલજીની સેવા છોડીને મનોરથમાં દોડતી એ એમને સોહાતુ નહિ તેથી તેમણે આ લીલા કરી છે તેથી હવે મારાથી ચલાતું નથી, પણ લાલજીની સેવા થાય છે.”
 
વલ્લભજી વલલ્ભ જે કહે, ઠગ ઠાકોર ઓર ચોર,
કૃપાદ્રષ્ટિ વલ્લભ કરે, તો હો જાય બેડો પાર
નિર્મળ મનના ભાવથી, રસના રટે યહ નામ,
તે પર સદા પ્રસન્ન રહે, શ્રી વલ્લભ પરમ કૃપાળ

https://m.facebook.com/PushtiSaaj/

Saturday, 19 September 2020

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल चतुर्थी (तृतीया क्षय)

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल चतुर्थी (तृतीया क्षय)
Sunday, 20 September 2020

आज के मनोरथ-

राजभोग में माखनचोरी का मनोरथ

शाम को फूल मंडली

अधिक मास में आज श्रीजी को मल्लकाछ-टिपारा एवं पटका का श्रृंगार धराया जायेगा. 

मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है. 

आज कीर्तनों में माखनचोरी एवं गोपियों के उलाहने के पद गाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आशावरी)

तेरे लाल मेरो माखन खायो l
भर दुपहरी देखि घर सूनो ढोरि ढंढोरि अबहि घरु आयो ll 1 ll
खोल किंवार पैठी मंदिरमे सब दधि अपने सखनि खवायो l
छीके हौ ते चढ़ी ऊखल पर अनभावत धरनी ढरकायो ll 2 ll
नित्यप्रति हानि कहां लो सहिये ऐ ढोटा जु भले ढंग लायो l
‘नंददास’ प्रभु तुम बरजो हो पूत अनोखो तैं हि जायो ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में माखन-चोरी लीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल पीले लहरियाँ का मल्लकाछ एवं पटका धराया जाता है. इस श्रृंगार को मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार कहा जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान  (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना तथा सोने के सर्वआभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर टिपारा का साज धराया जाता है जिसमें स्वर्ण और मोती के टिपारे के ऊपर मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में हरे मीना के मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं. चोटीजी नहीं धराई जाती हैं.
श्री कंठ में कमल माला एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, झिने लहरिया के वेणुजी और वेत्रजी (एक सोना) का धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी चाँदी की बाघ-बकरी की आती हैं.

आज शाम को भोग समा के पीछे पिछवाई बड़ी करके फूल की मंडली धरायीं जाती हैं.

श्रीनाथजी के मन्दिर परिसर में जो स्थल है उसका परिचय

निकुंज नायक श्रीनाथजी

श्रीनाथजी का मन्दिर अन्य मन्दिरों के समान गुम्बजों, शिखरों वाला न होकर श्रीनंदबाबा की हवेली की तरह बना हुआ है। निज मन्दिर के उपर आज भी केलूपोश छत है जहॉं श्रीचक्रराज सुदर्शनजी बिराजमान है। आज हम श्रीनाथजी के मन्दिर परिसर में जो स्थल है उसका परिचय करेंगे।

१ निकुंज नायक श्रीनाथजी का निज मंदिर

२ मणि कोठा
जहां कीर्तनकार कीर्तन गान करते हैं एवं छडीदार अपनी छडी एवं अन्य सेवक गणों के साथ श्रीनाथजी की सेवा के लिए खडे रहते हैं।

३ गोल देहरी (देहली)
यहां से हम श्रीनाथजी को सन्मुख भेंट कर सकते है।

४ डोल तिबारी
यहां पर खडे होकर हम श्रीनाथजी के दर्शन कर सकते हैं।

५ कीर्तनिया गली
यहां कीर्तनकार अपने साज आदि रखते हैं व दर्शन के पूर्व व पश्चात मधुर राग रागिनीयों का गान करते हैं।

६ श्रीचक्रराज सुदर्शनजी
यहां ध्वजा फहराई जाती है एवं श्रीचक्रराज सुदर्शनजी को राजभोग के दर्शनों के समय इत्र एवं खाजा मठरी का भोग लगाया जाता है।

७ श्री ध्वजाजी
श्रीनाथजी का मंदिर पुष्टिमार्ग मेंएक मात्र ऐसा मन्दिर है जहॉं ध्वजा फहराई जाती है।

८ रतन चौक
जहां से हम दर्शन के लिए डोल तिबारी में प्रवेश करते हैं। इसी स्थान पर दीपावली पर भव्य कांच की हटडी का मनोरथ होता है, जिसमें श्रीनवनीतप्रियजी बिराजते हैं। यहॉं एक ताला लगा हुआ है, जिसे छूकर वैष्णव अपने को धन्य मानते हैं। ऐसी मान्यता है कि श्रीनाथजी ने इस ताला को छुआ था।

९ कमल चौक
चौक के मध्य में मार्बल से कमलाकार बना हुआ है, एवं प्रभु श्रीनाथजी के रास स्थल के रूप में जाना जाता है।

१९ समाधान विभाग
कमल चौक के पास ही है जहाँ मन्दिर में मनोरथ एवं भेंट आदि के राशि जमा कर रसीद प्राप्त की जा सकती है।

११ ध्रुव बारी
यहीं पर से मुगल सम्राट औरंगजेब ने प्रभु श्रीनाथजी का चमत्कार माना अपनी धृष्टता छोड दर्शन प्राप्त किये थे। इस स्थान पर मनौती स्वरुप नारियल बांधे जाते हैं।

१२ अनार चोक
यहॉं से कीर्तनिया गली में प्रवेश किया जाता है।

१३ प्रसादी भंडार
जहॉं से मन्दिर का प्रसाद प्राप्त किया जा सकता है।

१४ आरती का स्थान

१५ खासा भंडार
जहां भोग के लिए सामग्री एकत्रित कर उसे पवित्र करके मन्दिर की रसोई में जाती है।

१६ पानघर
श्रीनाथजी को पान अत्यन्त प्रिय है और इस हेतु पूरा पानघर बना हुआ है, जहौं विशेष विधि से गीली सुपारी चक्की में बारीक पीस एवं तैयार कर चूना कत्था के साथ पान का बीडा बनाया जाता है।

१७ फूलघर
श्रीनाथजी के श्रृंगार हेतु विविध भॉंति भाँति के फूल गुलाब, मोगरा, चमेली, चंपा आदि के कई मन फूल नित्य सेवा में काम में लिये जाते हैं।

१८ शाकधर
यहां श्रीनाथजी की सेवा के लिए वैष्णव शाक भाजी की सेवा कर रसोई में भेजने योग्य बनाते हैं।

19 पातलघर
श्रीनाथजी की सेवा के लिए विविध बर्तन एवं अन्य सामग्री यहॉं से उपलब्ध कराई जाती है।

20 मिश्रीघर
यहॉं श्रीनाथजी की सामग्री के लिए मिश्री व अन्य सामग्री की सेवा धराई जाती है।

21 पेडाघर
गंगामाटी व चंदन व गंगा,यमुना जल मिश्रित पेडे यहीं पर तैयार होते हैं।

22 दूधघर
यह विशेष स्थान है जहॉं पर रसोई एवं अन्य के लिए दूध की सामग्री इत्यादि तैयार होती है।

23 खरासघर
यहॉं गेहूँ इत्यादि अनाज पीस कर तैयार किया जाता है।

24 श्रीगोर्वद्धनपूजा का चौक
यहॉं दीपावली एवं अन्नकूट के दिन भव्य मनोरथ होता है एवं दर्शनों के लिए प्रवेश द्वार यहीं से हैं।

25 सूरजपोल
यहीं पर नवधा भक्ति की प्रतीक नौ सिढियां बनी हुई है और हम यहीं से रतन चौक में प्रवेश कर निज मन्दिर की और जाते हैं।

26 सिंहपोल
यहां से कमल चौक में प्रवेश किया जा सकता है।

27 धोली पटिया
ये स्थान श्रीरसागर स्वरूप माना गया है। सिंह पोल यहीं स्थित है।

28 वाचनालय
धोली पटिया पर स्थित है जहॉं हम पुष्टिमार्गीय साहित्य प्राप्त कर सकते हैं।

29 श्रीलालाजी का मन्दिर
यहॉं विभिन्न वैष्णव भक्तों द्वारा पुष्टिकृत ठाकुरजी पधराये गये हैं।

30 श्रीनवनीतप्रियजी का मन्दिर
मन्दिर के विभिन्न भागों में सभी बडे मनोरथों में श्रीनाथजी के प्रतिनिधि स्वरूप के रुप से श्रीनवनीतप्रियजी का स्वरूप ही पधराया जाता है, क्योंकि श्रीनाथजी का स्वरूप अचल है।

31 श्री कृष्ण भण्डार
मन्दिर से सम्बन्धित समस्त सेवा कार्यों के लिए यहीं से कार्यवाही होती है।

32 सोने चॉंदी की चक्की
श्रीनाथजी की सेवा के लिए प्रतिदिन इतनी केसर, कस्तूरी की आवश्यकता होती है कि उसे पीसने के लिए चक्की की आवश्यकता पडती है।

33 श्रीमहाप्रभुजी के बैठकजी
भावात्मक रुप से श्रीमहाप्रभुजी के बैठकजी यहां बिराजमान हैं।

34 श्री खर्च भण्डार
यहीं पर श्रीनाथजी की सेवा के लिए अनाज शुद्ध देशी घी का संग्रह किया जाता है इसी स्थान पर श्रीनाथजी के रथ का पहिया रूक गया था और आज भी उस स्थान पर श्रीनाथजी की चरण चौकी है। यहां पर शुद्ध घी संगंह के लिए कुए बने हुए हैं।

35 भीतर की बावडी
यहॉं से निज मन्दिर एवं रसोईघर के लिये पवित्र जल जाता है।

36 मोती महल
गोस्वामी तिलकायत श्री का आवास

37 धूप घडी
मोतीमहल की छत पर ही प्राचीन धूप घडी बनी हुई है।

38 प्राचीन घडी
इसी के पास प्राचीन घडी भी है जो लकडी एवं रस्सी के यंत्रो से चलती है।

39 श्री पुष्टिमार्गीय हवेली संगीत शिक्षणशाला
यहॉं पर हवेली संगीत की शिक्षा प्रदान की जाती है।

40 श्री पुष्टिमार्गीय पुस्तकालय
यहॉं पर प्राचीन हस्तलिखित एवं मुद्रित कई अमूल्य ग्रथ उपलब्ध हैं।

41 नक्कारखाना
यहॉं दर्शनों के समय नक्कारे एवं शहनाई का मधुर वादन चलता रहता है एवं दर्शन आदि की घोषणा होती है।

42 नक्कार खाना दरवाजा
इस मुक्ष्य द्वार से ही मन्दिर में प्रवेश किया जाता है। इसी के उपर नक्कारखाना बना हुआ है।

43 लाल दरवाजा
यह दरवाजा श्रीखर्च भण्डार के पास बना हुआ है। जो रात्रि के समय बन्द रहता है, इसी दरवाजे के पास मुगलों के द्वारा ली गई शपथ का शिलालेख लगा हुआ है।

https://m.facebook.com/PushtiSaaj/

Friday, 18 September 2020

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल द्वितीया

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल द्वितीया
Saturday, 19 September 2020

आज के मनोरथ-

राजभोग में रथ का मनोरथ

शाम को मणिकोठा में श्री मदनमोहनलालजी खुले रथ में बिराजे

विशेष – आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, मौसम की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है.

मुझे ज्ञात जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को स्वेत धोती पटका श्रीमस्तक पर स्वेत कुल्हे और तीन मोर चंद्रिका की जोड़ धरायी जायेगी.

राजभोग दर्शन - 

कीर्तन – (राग : अड़ाना)

सुंदर वदन री सुख सदन श्यामको,
निरख नैन मन थाक्यो।।
हों ठाडी बिथिन व्हे निकस्यो,
उझाकि झरोखा झांक्यो।।१।।
लालन एक चतुराई कीनी,
गेंद उछार गगन मिस ताक्यो।।
बेरीन लाज भयी री मोको,
में गवार मुख ढांप्यो।।२।।
चितवन में कछु कर गयो मो तन,
चढ्यो रहत चित चाक्यो।।
"सुरदास"प्रभु सर्वस्व लेकें,
हंसत हंसत रथ हांक्यो।।३।।

साज - श्रीजी में आज रथयात्रा के चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई धरायी जाती है. पिछवाई में रथ का चित्रांकन इस प्रकार किया गया है कि श्रीजी स्वयं रथ में विराजित प्रतीत होते हैं. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज स्वेत मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित धोती एवं गाती का उपरना धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र केसरी धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छेड़ान का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, तीन मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरे के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
हांस, त्रवल, कड़ा, हस्तसांखला, पायल आदि सभी धराये जाते हैं.
रंग-बिरंगी पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट स्वेत सुनहरी किनारी का एवं गोटी सोना की राग रंग की आती हैं.

भगवान के लिए अधिक प्रिय कौन है?

भगवान के लिए अधिक प्रिय कौन है?

भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा- "हे! अर्जुन, चार प्रकार के उत्तम कर्म करने वाले 1.आर्त 2.अर्थार्थी 3.जिज्ञासु 4.ज्ञानी  भक्त मेरा स्मरण करते हैं।

इनमें ज्ञानी श्रेष्ठ हैं। क्योंकि वे हमेशा अनन्य-भाव से मेरी निर्मल (पवित्र) भक्ति में लीन रहते हैं। ऐसे भक्तों को मैं अत्यंत प्रिय होता हूँ तथा मुझे भी वे अत्यंत प्रिय होते हैं।

उपरोक्त चार प्रकार के भक्त मेरे लिए प्रिय है। परंतु मेरे अनुसार ज्ञानी भक्त मेरा ही स्वरूप होते हैं। क्योंकि वे स्थिर बुद्धि वाले होते हैं। उनका सबसे बड़ा लक्ष्य मुझे ही समझ कर मुझ में ही स्थित रहते हैं।

अनेक जन्मों के पश्चात अपने अंतिम जन्म में ज्ञानी भक्त मेरी शरण में आते हैं। तब वे यह जान लेते हैं कि सबके हृदय में बसने वाला मैं ही  हूँ। ऐसे व्यक्ति महात्मा होते हैं और वे बिरले (दुर्लभ) होते हैं"।
इस प्रकार श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा।

आर्त वे होते हैं, जो दुःख से छुटकारा पाना चाहते हैं। अर्थार्थी धन-दौलत चाहने वाले होते हैं। जिज्ञासु सिर्फ मुझे जानने की इच्छा रखते हैं। ज्ञानी वे है जो हमेशा अपनी भक्ति से परमात्मा का स्मरण करते रहते हैं।वे सिर्फ मोक्ष चाहते हैं।

ज्ञानी सभी  के प्रति एकात्म-भाव रखते हैं। समत्व-भाव (समान दृष्टि) भी रखते हैं। परमात्मा के लिए तो सभी प्रिय होते हैं। किंतु ज्ञानी कुछ अधिक प्रिय होते हैं।

किसी न किसी जन्म में ऐसा ज्ञान प्राप्त होगा, जिससे हम यह जान लेंगे कि समस्त प्राणियों के हृदय में परमात्मा ही स्थित हैं। उसी ज्ञान के कारण हम महात्मा बनेंगे। इसलिए भगवान कह रहे हैं कि एकात्म-भाव से परमात्मा की उपासना करना चाहिए। तब हम भी भगवान के प्रिय बन सकते हैं और अंत में मोक्ष भी पा सकते हैं।

(भगवद् गीता के 7-16 से 7-19 तक के श्लोकों के भावानुसार।)

https://m.facebook.com/PushtiSaaj/

Thursday, 17 September 2020

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल प्रतिपदा

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल प्रतिपदा
Friday, 18 September 2020

विशेष - आज से पुरशोत्तम (अधिक )  मास शुरू हो रहा हे जो 18 सितंबर 2020 से 16 ऑक्टोबर 2020 तक रहेगा. श्रीजी को पूरे अधिक मास में विविध प्रकार के मनोरथ कर के रिझाया जाएगा.
(अधिक मास पर विशेष अन्य पोस्ट में )

आज के मनोरथ-
राजभोग में सायबान की फूलन की मंडली 
शाम को मणि कोठा में साँझी को मनोरथ 
(सांझी भली बनी आई)

विशेष – आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, मौसम की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है.

मुझे ज्ञात जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को लाल मलमल का पिछोड़ा
श्रीमस्तक पर लाल कुल्हे और पाँच मोर चंद्रिका की जोड़  धरायी जायेगी.

राजभोग दर्शन - 

कीर्तन – (राग : सारंग)

बल बल आज की बानिक लाल l
कसुम्भी पाग पीत कुलह भरित कुसुम गुलाल ll 1 ll
विश्वमोहन नवकेसर को तिलक ललित भाल l
सुन्दर मुख कमल हि लपटावत मधुप जाल ll 2 ll
बरुनी पीत विथुरित बंद सुभग उर विसाल l
‘गोविंद’ प्रभुके पदनख परसत तरुन तुलसीमाल ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में लाल रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघस्याम रंग के होते हैं. 

शृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व-आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ और बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. बायीं ओर हीरा की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
 कली, कस्तूरी एवं कमल माला धराई जाती हैं.
पीले एवं श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, मीना के लहरियाँ के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी चाँदी की आती हैं.

देखि सांझी की शोभा आली ।
कुँज महल की पौरि रचाई ,श्याम सहेली घूंघट वाली ।१।
सांची प्रीति की  केली साँझी  ,मनमोहत सखी नई निराली ।
गावत मधुर गीत प्रीती के ,नृत्य संगीत संच सुर ताली ।२।
सजि धजि संग पूंजियै प्यारी,साजी सुरति सौंज की थाली ।
मनभायौ चाह्यौ सब पावौ,सुनि सिंगारि सजि हुलसत चाली ।३।
सांझी सुरति सेज सुख अद्भुत ,श्याम सहेली प्रीती पाली ।
कृष्णचंद्र राधा चरणदासि बलि ,पूंजत मिलीं मीत बनमाली ।४।

पुरशोत्तम मास

पुरशोत्तम मास

हर तीन साल में एक बार एक अतिरिक्त माह का प्राकट्य होता है, जिसे अधिकमास, मल मास या पुरूषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष ये अधिक आश्विन के रूप में 18 सितंबर 2020 से 16 ऑक्टोबर 2020 तक रहेगा.

वशिष्ठ सिद्धांत के अनुसार भारतीय ज्योतिष में सूर्य मास और चंद्र मास की गणना के अनुसार चलता है। अधिकमास चंद्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है, जो हर 32 माह, 16 दिन और 8 घटी के अंतर से आता है। इसका प्राकट्य सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच अंतर का संतुलन बनाने के लिए होता है। भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन वर्ष में लगभग 1 मास के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को पाटने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अस्तित्व में आता है, जिसे अतिरिक्त होने के कारण अधिकमास का नाम दिया गया है

अधिकमास के अधिपति स्वामी भगवान कृष्ण माने जाते हैं। पुरूषोत्तम भगवान कृष्ण  का ही एक नाम है। इसीलिए अधिकमास को पुरूषोत्तम मास के नाम से भी पुकारा जाता है। इस विषय में एक बड़ी ही रोचक कथा पुराणों में पढ़ने को मिलती है। कहा जाता है कि भारतीय मनीषियों ने अपनी गणना पद्धति से हर चंद्र मास के लिए एक देवता निर्धारित किए। चूंकि अधिकमास सूर्य और चंद्र मास के बीच संतुलन बनाने के लिए प्रकट हुआ, तो इस अतिरिक्त मास का अधिपति बनने के लिए कोई देवता तैयार ना हुआ। ऐसे में ऋषि-मुनियों ने भगवान कृष्ण से आग्रह किया कि वे ही इस मास का भार अपने उपर लें। भगवान कृष्ण ने इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और इस तरह यह मल मास के साथ पुरूषोत्तम मास भी बन गया.

अधिक मास के लिए पुराणों में बड़ी ही सुंदर कथा सुनने को मिलती है। यह कथा दैत्यराज हिरण्यकश्यप के वध से जुड़ी है। पुराणों के अनुसार दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने एक बार ब्रह्मा जी को अपने कठोर तप से प्रसन्न कर लिया और उनसे अमरता का वरदान मांगा। चुकि अमरता का वरदान देना निषिद्ध है, इसीलिए ब्रह्मा जी ने उसे कोई भी अन्य वर मांगने को कहा। तब हिरण्यकश्यप ने वर मांगा कि उसे संसार का कोई नर, नारी, पशु, देवता या असुर मार ना सके। वह वर्ष के 12 महीनों में मृत्यु को प्राप्त ना हो। जब वह मरे, तो ना दिन का समय हो, ना रात का। वह ना किसी अस्त्र से मरे, ना किसी शस्त्र से। उसे ना घर में मारा जा सके, ना ही घर से बाहर मारा जा सके। इस वरदान के मिलते ही हिरण्यकश्यप स्वयं को अमर मानने लगा और उसने खुद को भगवान घोषित कर दिया। समय आने पर भगवान विष्णु ने अधिक मास में नरसिंह अवतार यानि आधा पुरूष और आधे शेर के रूप में प्रकट होकर, शाम के समय, देहरी के नीचे अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का सीना चीन कर उसे मृत्यु के द्वार भेज दिया.

पुरशोत्तम मास का पुष्टिमार्ग में महत्व 

कलियुग सब जुगते अधिकाई।जा जुग मे प्रगटे जग शीतल श्रीवल्लभ सुखदाई।।

जैसे वल्लभ प्राकट्य के कारण कलियुग सभी युगों से अधिक है वैसे ही स्वयं पुरुषोत्तम द्वारा अपनाये जाने तथा अपना नाम देने के कारण पुरुषोत्तम मास सभी मासों से अधिक है।मलमास कहे जाने के कारण इसकी दीनता से प्रसन्न होकर प्रभु ने इसे अपनाया।यही पुष्टिमार्ग की परम विशेषता है।
यहां जो नि:साधन हैं,अहंकाररहित दैन्यभाव से परिपूर्ण हैं वे शीघ्र ही भगवान द्वारा अंगीकृत किये जाते हैं अतः जगत मे दीनहीन, तुच्छ, हीन होना चिंता की बात नहीं है मगर अभिमानी होना चिंताजनक है।वैष्णव को इससे सावधान रहना चाहिये।लाला जितना इससे रुठता है उतना और किसीसे नहीं।जहां जहाँ अभिमान की जरूरत पडे उसकी पूर्ति विवेकधैर्याश्रय से करनी चाहिए तथा अभिमान का परित्याग कर देना चाहिए।

अभिमानश्च संत्याज्य:स्वाम्यधीनत्वभावनात्।

अधिकमास के लिये ठाकुरजी हृदय मे एक भाव प्रकट कर रहे हैं कि एक बार गोलोक मे प्रभु के परिकर मे चर्चा चली कि वैसे तो प्रभु नित्य नूतन हैं आज और काल और दिन प्रति और और देखिये रसिक श्रीगिरिराजधरण, हम भी प्रभु को सुख पहुंचाने वाली सेवा करते ही हैं लेकिन अधिक से अधिक मात्रा मे यह कैसे संभव हो?परिकर ने कहा-चलो क्यों न प्रभु से ही पूछा जाय,अधिक के इस भाव की पूर्ति कैसे हो?
प्रभु का मनोरथ हो तो भक्त पूरा करें जैसे प्रभु भक्तों का मनोरथ पूर्ण करते हैं।भक्तमनोरथपूरकाय नम:।यहां भी भक्तों का मनोरथ पूरा करने के लिये प्रभु को अपना मनोरथ बताना रहा।प्रभु ने कहा-अधिकमास मे जो सेवा विशेष मनोरथ के रुप मे करोगे मै 
उसे 'अधिक'रुप मे ग्रहण करुंगा।वह मास भी पुरुषोत्तम मास के रुप मे होगा।
पुरुषोत्तम सभी पुरुषों से अधिक हैं ऐसे पुरुषोत्तम मास भी अधिक है।सभी देवों से अधिक होने के कारण श्रीनाथजी देवदमन हैं।

इस अधिक का आनंद भी अधिक होना चाहिए।जो वैष्णव सालभर सामान्य सेवा से समय निकाल देते हैं उनमे भी अधिक मास मे चैतन्य आ जाता है।इतना उत्साह आ जाता है कि कौनसे दिन क्या मनोरथ करना इसकी सूची भी तैयार हो जाती है।जो मनोरथ के रुप मे विशेष सेवायें नहीं कर पाते उन्हें भी यह स्मरण तो रहता ही है कि अधिकमास चल रहा है और हम कुछ नहीं कर रहे हैं।हर साल आता हो तब तो ठीक है लेकिन तीन साल मे एक बार,वह भी स्वयं प्रभु का मास पुरुषोत्तम मास,तो जाहिर है यह अवसर खोने जैसा नहीं है।प्रभु कहते हैं-मेरे इस मास मे जो जो भी करेगा मै उसे विशेष प्रसन्नता के साथ ग्रहण करुंगा।

गोलोक मे परिकर चिन्मयरुप है।यह तो भूतल पर ही वल्लभ विट्ठल समस्त गोस्वामी बालक,सभी वैष्णवों के साथ गिरधारी के साथ पुरुषोत्तम मास का आनंद उठाते हैं जो प्रभु को अति प्रिय है।पुरुषोत्तम से जुडने पर लौकिक चीज भी अलौकिक हो जाती है।

जैसे कोई नाथद्वारा किसी कार्य के लिये आये साथ मे श्रीनाथजी के दर्शन भी करले लेकिन कोई केवल श्रीनाथजी के लिये ही आये तो प्रभु देखते हैं।साल के सारे मास सामान्य रुप से निकल जायें परंतु यह पुरुषोत्तम मास है,स्वयं प्रभु का मास है यह ध्यान रखकर सारा मास विशेष सेवा,सत्संग,स्मरण मे व्यतीत करे तो वह भी प्रभु देखते ही हैं।केवल देखते ही नहीं, स्वयं भी उसमे शामिल हो जाते हैं।परिकर गोलोक छोडकर भूतल पर आया तो प्रभु भी आगये इस आनंद को लेने और देने।

अस्तु-हर मास का अपना माहात्म्य है अतः कई लोग सकाम भाव से उन मासों के व्रत,जप,पाठ,आयोजनादि करते हैं लेकिन अब आया पुरुषोत्तम मास।इसमे सकाम भाव से कुछ नहीं कर सकते।केवल भक्ति ही कर सकते हैं, पुरुषोत्तम का मास जो है।

देखा जाय तो पुष्टिमार्ग मे बारहों मास पुरुषोत्तम मास जैसा ही है-इतना उत्साह,इतना आनंद-रोज कुछ न कुछ नया।यदि ऐसा नहीं लगता तो फिर आता है पुरुषोत्तम मास नींद उडाने के लिये कि अब तो कुछ विशेष करलो।फिर हर रोज कोई न कोई नया उत्सव।ऐसे उत्सव कभी कभी आता है।कई दिनों पहले से उत्सव की तैयारी शुरु हो जाती है।पुरुषोत्तम मास मे रोज उत्सव।रोज अगले उत्सव की तैयारी।सारा महिना कहां निकल जाता है पता ही नहीं चलता।जिनसे कुछ नहीं ह़ो पाता वे भी दिन भर हाथ मे पुस्तक लेकर यमुनाष्टक, सर्वोतम जी,षोडशग्रंथादि का पाठ करते रहते हैं।एक ऐसा विशेष आनंद होता है कि फिर लगता है बारह मास पुरुषोत्तम मास ही रहे तो कैसा रहे!भागवत कथा सात दिन चलती है तो सारा वातावरण, सारी मानसिकता मे अलौकिक परिवर्तन आ जाता है।बाद मे सब सूना लगता है।
पुष्टिमार्ग मे यह सूना नहीं लगना चाहिये बल्कि पुरुषोत्तम मास से प्रेरणा ग्रहण कर पूरा वर्ष पुरुषोत्तम मास जैसा व्यतीत हो ऐसा प्रयत्न करना चाहिये।तब नित्य नूतन अनुभव समेत यह कीर्तन करना सार्थक हो जाता है-

आज और काल्ह और दिनप्रतिऔर और देखियेरसिक श्रीगिरिराजधरण।
छिनप्रतिनईछबिबरनें सो कौनकबि नित्यहीं शृंगारबागो बरण बरण।।
शोभासिंधु अंग अंग मोहत कोटिअनंगछबिकीउठततरंग विश्वको मनहरण।
चतुर्भुज प्रभु गिरिधर को स्वरुप सुधापान कीजेजीजेरहिये सदांही शरण।।

श्री वल्लभ 
नीको लागत पुरुषोत्तम मास।
जाकी महिमा जगत बखानत करत भक्त सब जाकी आस।।
आपही सूरज आपही चंदा आपहीको सब हॉट प्रकास।
आपही जोग भोग सब अर्पत वही प्रभु मम मन उल्लास।।
ज्यो ज्यो दान करत प्रभु हित त्यों त्यों बढ़त प्रेमकी आस।
सूरदास प्रभु सबके स्वामी दास को राखो चरण के पास।।

श्री शुभ अधिकमास (पुरषोत्तम मास) प्रारंभ की मंगल बधाई।

वैष्णव जीवन

वैष्णव जीवन

दूध को दुखी करो तो दही बनता है|

दही को सताने से मक्खन बनता है|

मक्खन को सताने से घी बनता है|

दूध से महंगा दही है,दही से महंगा मक्खन है,और मक्खन से महंगा घी है|

किन्तु इन चारों का रंग एक ही है सफेद|

इसका अर्थ है बाऱ- बार दुख और संकट आने पर भी जो इंसान अपना रंग नहीं बदलता,समाज में उसका ही मूल्य बढ़ता है|

दूध उपयोगी है किंतु एक ही दिन के लिए, फिर वो खराब हो जाता है....!!

दूध में एक बूंद छाछ डालने से वह दही बन जाता है जो केवल दो और दिन *टिकता* है....!!

दही का मंथन करने पर मक्खन बन जाती है, यह और तीन दिन टिकता है....!!

मक्खन को उबालकर घी बनता है, घी कभी खराब नहीं होता....!!

एक ही दिन में बिगड़ने वाले दूध में कभी नहीं बिगड़ने वाला घी छिपा है....!!

इसी तरह आपका मन भी अथाह शक्तियों से भरा है, उसमें कुछ सकारात्मक विचार डालो अपने आपको मथो अर्थात चिंतन करो....अपने जीवन को और तपाओ और तब देखना

आप कभी हार नहीं मानने वाले पक्के वैष्णव  बन जाओगे....!!।

वैष्णव विवेक, धैर्य और आश्रय से द्रढ हो कर 'घी' जैसा बन जाता है।

जीवन का कोइ भी उतार - चढाव उसे विचलित नहीं कर सकता।
https://m.facebook.com/PushtiSaaj/

Wednesday, 16 September 2020

व्रज – आश्विन कृष्ण अमावस्या

व्रज – आश्विन कृष्ण अमावस्या 
Thursday, 17 September 2020

सर्वपितृ अमावस्या, कोट की आरती, सांझी की समाप्ति

विशेष – आज सर्वपितृ अमावस्या है. पुष्टिमार्ग में आज दानलीला का अंतिम दिन है और इस कारण श्रीजी में आज श्री हरिरायजी कृत बड़ी दानलीला गायी जाती है.

दान के बीस दिनों में कई बार सात और कई बार आठ मुकुट काछनी के श्रृंगार धराये जाते हैं. आज दान का आठवाँ नियम का मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.  

आज श्रृंगार दर्शन में जब प्रभु को आरसी दिखावें तब स्वरुप से भी लम्बी एक लकुटी (छड़ी) प्रभु के निकट धरी जाती है जिसका भाव यह है कि भारी श्रृंगार के रहते प्रभु उछल के मटकी नहीं फोड़ पाएंगे अतः लम्बी लकुटी (छड़ी) पास में होगी होगी तो खड़े-खड़े ही प्रभु मटकी फोड़ देंगे. दान के दिनों में जब भी वनमाला का भारी श्रृंगार धरा जावे तब यह छड़ी श्रीजी के निकट धरी जाती है.
आज प्रभु द्वारा दूधघर का महादान अंगीकार किया जाता है.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में आज श्रीजी को शाकघर और दूधघर में विशेष रूप से सिद्ध किये गये दूध, दही, केशरिया दही, श्रीखंड, केशरी बासोंदी, मलाई बासोंदी, गुलाब-जामुन, छाछ, खट्टा-मीठा दही के बटेरा आदि अरोगाये जाते हैं. 
दान के अन्य दिनों के अपेक्षा आज प्रभु को दूधघर की कई गुना अधिक हांडियां अरोगायी जाती है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

दान निवेरी लाल घर आये l
आरती करत नंदजु की रानी और हँसी हँसी मंगल गीत गवाये ll 1 ll
ऐसे वचन सुने में श्रवणन बड़े महरि के पुत कहावे l
फिर फिर राय बात हँसि बूझत हमको कहौ कहा तुम लाये ll 2 ll
लाऊ कहा सुनों किन में छीन छीन सबकी दधि खाये l
‘श्रीविट्ठल गिरिधरलालने’ बातन ही दोऊ बौराये ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में श्याम रंग की मलमल पर सुनहरी सूरजमुखी के फूल के छापा और सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज कोयली रंग की मलमल पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी एवं रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद जमदानी के होते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर नीलम जड़ित स्वर्ण का मुकुट और मुकुट पर मुकुट पिताम्बर एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
कस्तूरी कली एवं कमल माला धराई जाती हैं.
पीले एवं श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट स्याम व गोटी दान की आती है. 

આશ્રય પદની લીલા

આશ્રય પદની લીલા

"દ્રઢ ઈન ચરનન કેરો ભરોસો.."

જયારે આ લીલા થઈ ત્યારે શ્રીમહાપ્રભુજી ભૂતલ પર બિરાજમાન નહોતા. 
આપશ્રીએ આસુરવ્યામોહ લીલા કરી ત્યાર પછીની વાત છે. સુરદાસજીની ઉંમર લગભગ ૧૦૦ વર્ષ ઉપર હતી અને તેઓ પરાસૌલી ચંદ્ર સરોવર પધાર્યા હતા.. જીવનની છેલ્લી ઘડીઓ ગણાતી હતી. શ્રીગુંસાઈજી પ્રભુચરણને સમાચાર મળ્યા કે, "સુરદાસજી હવે નિત્યલીલા (ગોલોકધામ)માં પધારવાના છે.."

️શ્રીપ્રભુચરણ અને આપના સેવકો.. વગેરે.. સુરદાસજીના છેલ્લાં દર્શન કરવાં પરાસૌલી પધાર્યા અને શ્રીપ્રભુચરણ એટલું બોલ્યા કે, "पुष्टिमार्ग को जहाज जाईं रह्यो है.. जाको कछुं लेनो होय सों लेलो" કેટલાંય રત્નો, ગુણ સુરદાસજીમાં બિરાજમાન હતાં.. માટે શ્રીગુંસાઈજીએ કહ્યું, કે પુષ્ટિમાર્ગનું જહાજ જાય છે.. જેને જે જોઈતું હોય તે લઈ લો.

આપશ્રી જોડે આપના સેવકોમાં એક કુંભનદાસજીના પુત્ર ચતુર્ભુજદાસજી પણ હતા.. અને એમણે સુરદાસજીને પૂછ્યું કે, "સુરદાસજી તમે તો શ્રીમહાપ્રભુજીની ખૂબ જ અનન્ય ભક્તિ કરી છે પછી આટલા બધા પદો રચ્યાં એ બધા શ્રીઠાકોરજીના. પરંતુ શ્રીમહાપ્રભુજીનુ એક પણ પદ ન રચ્યું, એમ કેમ

️સુરદાસજી કહે, न्यारो देखतो, तो न्यारो गातो.." એટલે કે બંન્ને સ્વરૂપને અલગ જોતો તો બંન્ને માટે અલગ અલગ પદ ગાતો, મારા માટે તો શ્રીજી જ શ્રીવલ્લભ છે.. અને શ્રીવલ્લભ જ શ્રીજી છે. પરંતુ જો તમને આ પ્રશ્ન થયો તો સ્વાભાવિક છે કે વૈષ્ણવ સૃષ્ટિને પણ થશે.. માટે આ લો ચતુર્ભુજદાસ.. શ્રીવલ્લભ માટે પદ ગાવ છું અને "આ પદ મારા સવા લાખ પદનું ફલ છે" એમ કહીં, સુરદાસજીએ શ્રીગુંસાઈજીના ચરણોમાં પોતાનો હસ્ત રાખ્યો અને શ્રીમહાપ્રભુજી માટે પદ ગાયું.

દ્રઢ ઈન ચરનન કેરો ભરોસો, દ્રઢ ઈન ચરનન કેરો ભરોસો
શ્રીવલ્લભ નખચંદ્ર છટા બિન સબ જગમાં જુ અંધેરો.. દ્રઢ ઈન ચરનન કેરો ભરોસો, દ્રઢ ઈન ચરનન કેરો ભરોસો

સાધન ઔર નહીં યા કલિમેં જાસું હોત નિવેરો
"સુર" કહાં કહે દ્વિવિધ આંધરો બિના મોલકો ચેરો.. ભરોસો દ્રઢ ઈન ચરનન કેરો.

દ્રઢ ઈન ચરનન કેરો ભરોસો, દ્રઢ ઈન ચરનન કેરો ભરોસો.

આ પદને આશ્રયનું પદ કહેવાય છે.. જે વિશ્વભરમાં વૈષ્ણવો ગાય છે. કોઈ વૈષ્ણવ પાઠ કરે કે ન કરે પરંતુ રોજ રાતે સૂતાં પહેલાં આ પદ ગાયને સૂવાનો આગ્રહ જરૂર રાખવો.

https://m.facebook.com/PushtiSaaj/

Tuesday, 15 September 2020

व्रज – आश्विन कृष्ण चतुर्दशी

व्रज – आश्विन कृष्ण चतुर्दशी 
Wednesday, 16 September 2020

विशेष – आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, मौसम की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है.

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को लाल चोफुली चूंदड़ी का पिछोड़ा गोल पाग एवं चंद्रिका धराये जाएगे.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

यहां अब काहेको दान देख्यो न सुन्यो कहुं कान ।
एैसे ओट पाऊठि आओ मोहन जु दूध दहीं लीयो चाहे मेरे जान ।।१।।
खिरक दुहाय गोरस लिये जात अपने भवन तापर एैसी ठानी आनकी आन ।
गोविंद प्रभुको कहेत व्रजसुंदरी चलो रानी जसोदा आगे नातर सुधे देहो जान ।।२।।

साज – श्रीजी में आज लाल चोफुली चूंदड़ी की सुनहरी ज़री की तुईलैस की पठानी किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है. स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल चोफुली चूंदड़ी का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के होते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्वआभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी लूम तथा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में हीरा के एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
सफेद एवं पीले पुष्पों की सुन्दर दो मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं दो वैत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी चाँदी की आती है. 

अष्टसखा - अष्टछाप

अष्टसखा - अष्टछाप

श्री गुसाईंजी श्रीविट्ठलनाथजी ने श्रीनाथजी की आठों भक्तियों में उनकी लीला-भावना के अनुसार समय और ऋतु के रागों द्वारा कीर्तन करने की व्यवस्था की थी। अपने चार और अपने पिता श्री के चार भक्त गायक शिष्यों की एक मंडली संगठित की थी। मंडली के आठों महानुभाव श्रीनाथ जी के परम भक्त होने के साथ अपने समय में पुष्टि-संप्रदाय के सर्वश्रेष्ट संगीतज्ञ, गायक और कवि भी थे। उनके निवार्चन से श्री गोस्वामी विट्ठलनाथजी ने उन पर मानों अपने आशीर्वाद की मौखिक 'छाप' लगाई थी, जिससे वे 'अष्टछाप' के नाम से प्रसिद्ध हुए। पुष्टि संप्रदाय की भावना के अनुसार वे श्रीनाथजी के आठ अंतरंग सखा है, जो उनकी समस्त लीलाओं में सदैव उनके साथ रहते हैं, अतः उन्हे अष्टसखा भी कहा गया है। (अष्टछाप परिचय पृष्ठ १-२)

अष्टछाप अथवा अष्ट सखा की शुभ नामावली इस प्रकार है-

श्री वल्लभाचार्य जी के शिष्य
१. कुंभनदास 
२. सूरदास
३. कृष्णदास
४. परमानंददास

श्री गुसाईंजी विट्ठलनाथजी के शिष्य
५. गोविन्द स्वामी
६. छीत स्वामी
७. चतुर्भुजदास
८. नंददास
आचार्यश्री के समय में श्रीनाथजी के प्रथम नियमित कीर्तनकार सूरदास थे। बाद में परमानंददास भी उन्हे नियमित सहयोग देने लगे थे। कुंभनदास यधपि सूरदास से पहले कीर्तन करते आ रहे थे, किन्तु गृहस्थ होने के कारण उन्हे नियमित रूप से अधिक समय देने की सुविधा नही थी। इस प्रकार श्री महाप्रभुजी के समय सूरदास और परमानंददास नियमित रूप से श्रीनाथजी की सभी झांकियों में कीर्तन करते थे तथा कुंभदास अपने अवकाश के अनुसार उन्हे सहयोग देते थे। अधिकारी कृष्णदास भी सुविधा से उनमें भाग लिया करते थे। श्री विट्ठलनाथजी ने अपने समय में श्रीनाथजी की कीर्तन प्रणाली को सुव्यवस्थित और विस्तृत किया था। अतः आठों समय की झांकियों में पृथक-पृथक कीर्तनकार नियुक्त किये जाने की आवश्यकता प्रतीत हुई थी। इसलिए इन सभी के ओसरे बांध दिये थे सभी अपने ओसरे के अनुसार सम्मुख कीर्तन करते दूसरे सभी झेलते थे।
ये सभी कीर्तनकार प्रभु श्रीनाथजी की कीर्तन सेवामें अपने जीवन के अन्तिम समय तक रहे और अपना जन्म सफल किया। इन अष्ट शाखाओं के पद ही कीर्तन सेवामें गाये जाते हैं।

https://m.facebook.com/PushtiSaaj/

Monday, 14 September 2020

व्रज – आश्विन कृष्ण त्रयोदशी

व्रज – आश्विन कृष्ण त्रयोदशी 
Tuesday, 15 September 2020

नित्यलीलास्थ गौस्वामी बालकृष्णजी का उत्सव

विशेष – आज श्री गुसांईजी के तृतीय पुत्र बालकृष्णजी का उत्सव है. 

उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

श्रीजी को दान की हांडियों के अतिरिक्त गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता भोग लगाया जाता है.

श्री गुसांईजी के सभी सात पुत्रों के जन्मोत्सव सभी गृहों में मनाये जाते हैं परन्तु आपश्री तृतीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री द्वारकाधीशजी के आचार्य थे अतः आज का उत्सव श्री द्वारकाधीश मंदिर (कांकरोली) में भव्य रूप से मनाया जाता है और इस अवसर पर वहां से जलेबी के टूक की सामग्री श्रीजी के भोग हेतु आती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीवल्लभ नंदन रूप अनूप स्वरुप कह्यो न जाई l
प्रकट परमानंद गोकुल बसत है सब जगत के सुखदाई ll 1 ll
भक्ति मुक्ति देत सबनको निजजनको कृपा प्रेम बरखत अधिकाई l
सुखद एक रसना कहां लो वरनो ‘गोविंद’ बलबल जाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की मलमल पर लाल रंग की गायों, हरे रंग की लता के भरतकाम वाली एवं लाल रंग के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरण चौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग की मलमल का रूपहरी किनारी से सुशोभित पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक तथा जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी चमक का घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मोती की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. 
श्वेत पुष्पों और कमल की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी,माणक के वेणुजी और दो वेत्रजी (एक स्वर्ण का)धराये जाते हैं.
पट पिला एवं गोटी श्याम मीना की आती हैं. आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.
https://m.facebook.com/PushtiSaaj/

श्री दमलाजी

श्री दमलाजी.
श्री वल्लभ की करूणा द्रष्टि श्री दमलाजी के मस्तक पर है । ओर श्री दमलाजी द्रष्टि श्री वल्लभ के चरणाराविंद में लगी रही है । दीनताभाव,द्र्ढनिष्टा,अनन्यता,स्वामिभाव के प्रतिक श्री दमलाजी है । जीनकुं संसार नही भावे है, लौकीक सब छुटो भयो हे,बालपन सुं ही शांत स्वभावी, मौनी,ध्यानी, ओर श्री वल्लभ के दर्शन की आर्ति जीन के ह्रदय में बनी भई हे ऐसे कोमल ह्रदयी श्री दमलाजी है । जो नित्यलीला में श्री ललिता सखी रुप है । सदा सेवा में युगल स्वरुप कुं आनंद करावे में तत्पर है । यह श्री ठाकुरजी ओर श्री स्वामिनी की प्रिय सखी है । श्री प्रभुन् की अनेक लीलान में मनोरथ सिध्ध करवें में उत्साही है । जो सदा युगल स्वरुप को सुख चाहे है,ये दूती रुप हे,यासुं दोनो की सेवा में हे,मानलीला में मुख्य इनकी यही सेवा है । मनायवे की कभी प्रियाजी मान में होवे तो कभी प्रितमजी मान में होंवे,दोनो रुठे तब श्री ललीताजी एसे मधुर हितकर वचन बोली के बडी चतुराई सो कभी प्रितमजी तो कभी प्रियाजी रुठे भये कुं मनाय के निकट पधराय लावे है । वही स्वरुप श्री दमलाजी को है,जो प्रिया प्रितम के उभय स्वरुप श्री वल्लभ सुं लीलान की वार्ता करें है,कभी प्रितमजी के मानकी कभी प्रियाजी के मान की फिर दोनो स्वरुप को मिलन कराय के संयोग रस बढाय के अधर सुधा को पान प्रियतमजी प्रियाजी कुं करायके रस द्रविभूत होय बहेवे लगे तब श्री ललीताजी कुं द्रष्टि सुं कटाक्ष करी कें प्रियाजी आज्ञा देवे है, शीध्र ही या रस को पान करी संयोगरस की लीला को अनुभव करो । एसी परस्पर प्रियाप्रितम की अनेक लीला में तत्पर रह कें प्रियाप्रितम कुं आनंद करायवें वारे श्री ललीताजी है । वही श्री दमलाजी वही प्रियाप्रितम के स्वरुप श्री वल्लभ या जीवन कुं लीला को परम रस देवे श्री ललीताजी के सहित भूतल पे पधारे है । एसे मेरे परम प्रिय श्रीवल्लभजी,श्री ललीताजी,श्री दमलाजी है ।

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया  Saturday, 01 February 2025 इस वर्ष माघ शुक्ल पंचमी के क्षय के कारण कल माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन बसंत पंचमी का पर्व ह...